समोसे तरहतरह के

पहले जहां केवल आलू के समोसे ही बाजार में बिकते थे अब कई तरह के समोसे जिन में खोया वाले मीठे समोसे भी मिठाई की दुकानों में बिकने लगे हैं. खोया और आलू के समोसे ज्यादा दिन तक नहीं रखे जा सकते इसलिए इन्हें बनने के कुछ घंटे बाद ही खाना सही रहता है. अब मेवा और मसालों से ऐसे समोसे भी तैयार किए जाने लगे हैं, जो कई दिनों तक चलते हैं. यह नमकीन की तरह नाश्ते में इस्तेमाल होते हैं. पौष्टिक होने से इन को खाने के बाद भूख कम लगती है. मेवा मिला होने से यह शरीर को ताकत भी देते हैं.

समोसा भारत का ही नहीं पश्चिम एशियाई देशों का भी प्रमुख नाश्ता है. कमाल की बात यह है कि 1000 साल से इस का तिकोना आकार नहीं बदला है. अपने खास आकार के कारण ही इस को कई इलाकों में तिकोना भी कहा जाता है. यह छोटे से बडे सभी तरह के आकार में मिलता है. आकार के हिसाब से ही इस को कीमत तय होती है.

मुगलकाल में मीट वाला समोसा सब से ज्यादा प्रचलित था. भारत में आने के बाद समोसा के अंदर भरी जाने वाली सामग्री में बदलाव आया. ब्रिटिश काल में जब चाय का चलन बसे तो भारतीयों को चाय का स्वाद पसंद नहीं आता था. ऐसे में चाय और समोसे की जुगलबंदी तैयार हो गई. आज गलीचौराहों पर सब से ज्यादा चायसमोसा ही बिकता है.

आज समोसा भारत का सब से ज्यादा बिकने वाला स्ट्रीट फूड है. उत्तर भारत के हर कस्बे और शहर में समोसे की दुकान है. महाराष्ट्र के कुछ शहरों में रगड़ा समोसा चलन में है.

इस में समोसे के अंदर ब्रेड, आलू, भुजिया और दूसरी कई चीजें भरी जाती हैं. समोसे में स्वाद के लिए पनीर समोसा व मटरकाजू समोसे का इस्तेमाल भी होने लगा है. गोआ में कुछ खास दुकानों पर मीट वाला मांसाहारी समोसा मिलता है. समोसा अकेला ऐसा व्यंजन है जो इतना पुराना होने के बाद भी बदला नहीं है.

आलू भरे समोसे का अपना अलग बाजार है. समोसा भारतीय खानपान व संस्कृति के साथ पूरी तरह से रच बस गया है. यह रोजगार का भी बडा साधन है. कसबों और सड़क किनारे छोटी सी पूंजी लगा कर समोसा बनाने की दुकान खोली जा सकती है. समोसा लोगों को इतना पसंद है कि इस में नुकसान की आशंका नहीं रहती है.

मुनाफे का गणित

डेढ़ किलो आलू और 1 किलो मैदा से करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह सामान्य आकार के करीब 60-70 ग्राम वाले समोसे होंगे. इस को बनाने के लिए 30 रुपए का आलू, 30 रुपए का मैदा, 30 रुपए का बेजिटेबल आयल और 30 रुपए का मसाला लगता है. ऐसे में 120 रुपए खर्च कर करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह समोसे 8 रुपए प्रति समोसे के हिसाब से बिकेंगे. ऐसे में यह समोसे 280 रुपए के बिकेंगे. जिस में 95 रुपए का मुनाफा होगा. समोसा महंगा करने के लिए दुकानदार उस में कई बार मटर, काजू और पनीर डाल कर उस की कीमत दोगुनी कर देते हैं. जबकि ऐसा करने में प्रति समोसा केवल 2 रुपए की लागत बढ़ेगी.

समोसा बनाना आसान

समोसा बनाने के लिए सामग्री के रूप में मैदा, आलू , रिफाइंड तेल, नमक, धनिया पाउडर, गरम मसाला और पिसी खटाई का प्रयोग किया जाता है. सब से पहले आलू को उबाल लें. इस के बाद मैदा में तेल और नमक डाल कर अच्छी तरह से गूंथ लें. उबले आलू हाथ से ही मोटामोटा फोड़ दें. कढ़ाई में तेल डाल कर कर उस में धनिया पाउडर, गरम मसाला, नमक और अमचूर मिलाते हुए भून लें. अब इस में आलू डाल कर ठीक से मिला कर रख दें. पहले से तैयार मैदा के छोटेछोटे पीस तैयार करें. इन को गोल रोटी की तरह 8 इंच व्यास के आकार में तैयार करें. फिर चाकू से 2 हिस्सों में काट दें. एक भाग को तिकोना बनाते हुए उस में आलू मसाला भर लें. दोनों कोने चिपका दें. कढ़ाई में रिफाइंड तेल डाल कर तैयार समोसे तल लें. समोसे को मीठी और नमकीन दोनों ही चटनी के साथ खाया जाता है. मेवा और मसाला समोसे में आलू की जगह मेवा और मसाला पहले से तैयार कर के भरा जाता है.

स्वामी विवेकानंद जयंती पर किसानों के लिए नई सौगात

उदयपुर : 12 जनवरी, 2025. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, छात्र कल्याण निदेशालय द्वारा प्रशासनिक भवन पर स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई गई.

इस अवसर पर अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत चल रही राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत चल रही रही जैविक आदान उत्पादन एवं जैविक खेती तकनीकियों का विकास परियोजना द्वारा तैयार मोबाइल एप जैसे शीर्षक और्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming)- जैविक खेती का विमोचन कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डा. शांति कुमार शर्मा, सहायक महानिदेशक, (मानव संसाधान प्रबंधन), नई दिल्ली के सानिध्य में किया.

उन्होंने कहा कि ये मोबाइल एप किसानों के साथसाथ वैज्ञानिक, विद्यार्थियों और कृषि विभाग के अधिकारियों के लिए बहुपयोगी सिद्ध होगा. यह मोबाइल एप  और्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming)- जैविक खेती  किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और सतत कृषि विकास की दिशा में एक मजबूत कदम है, जो डिजिटल युग में कृषि क्षेत्र को उन्नति की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध होगा.

कुलपति ने मोबाइल एप को तैयार करने के लिए प्रणेता डा. शांति कुमार शर्मा और परियोजना प्रभारी डा. रविकांत शर्मा और सहप्रभारी डा. अमित त्रिवेदी, डा. एसएस लखावत, डा. हरि सिंह, डा. देवेंद्र जैन, डा. श्रवण और डा. रवींद्र कुमार जैन के अथक प्रयासों की सराहना की.

डा. शांति कुमार शर्मा ने एप के बारे में बताते हुए कहा कि इस एप में विश्वविद्यालय में विगत 6 वर्षों से संचालित परियोजना में विकसित विभिन्न जैविक आदानों, उन्नत तकनीकियों और प्रभावी मौड्यूल्स को शामिल किया गया है, जिस से घरबैठे किसानों को समस्त बहुपयोगी जैविक खेती से संबंधित जानकारी उन के मोबाइल फोन पर उपलब्ध हो जाएगी, जिस से भारत में जैविक खेती के विस्तार को प्रभावी गति मिल पाएगी.

अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने कहा कि यह एप किसानों को जैविक खेती में उपयोग होने वाले सभी जैविक आदानों जैसे जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक और जैव उत्पादों के बनाने की विधियों का सचित्र विवरण मुहैया करता है. इस से किसान खुद ही यह उत्पाद तैयार कर सकते हैं और अपनी खेती की लागत को कम कर सकते हैं.

कौशल विकास से ग्रामीण महिलाएं बनेंगी आत्मनिर्भर

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ग्राम पंचायत लोयरा की महिलाओं के लिए सुरक्षात्मक कपड़ों का डिजाइन व विकास और ग्राम ब्राह्मणों की हुंदर की महिलाओं के लिए अपशिष्ट फूलों का मूल्य संवर्धित उत्पादों में रूपांतरण पर 10 दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन 30 दिसंबर, 2024 से शुरू किया गया.

विगत 10 दिनों से प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाओं ने ब्लाउज, शर्ट, पैंट, कुरता, लहंगा, पेटीकोट, पटियाला सलवार इत्यादि कपड़ों के डिजाइन कर के कपड़े सिले. साथ ही, अपशिष्ट फूलों का उपयोग कर अगरबत्ती, धूपबत्ती, पौट पोरी, प्राकृतिक पौट, हर्बल हवन दीपक एवं खाद का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया.

कार्यक्रम का समापन 9 जनवरी, 2025 को किया गया, जिस में मुख्य अतिथि प्रो. अरविंद कुमार वर्मा, निदेशक अनुसंधान निदेशालय रहे. उन्होंने कहा कि एक महिला के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित होगा, सुदृढ़ होगा. ज्ञान से व्यक्ति में आत्मनिर्भरता आती है. हुनर चाहे सिलाई का हो या बच्चे पालने का, उस में महिलाओं का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसलिए महिला शिक्षा पर बल दिया जाता है एवं कृषि क्षेत्र में भी महिलाओं का योगदान होने से आर्थिक विकास निश्चित रूप से होता है. कृषि के साथसाथ अन्य विधाओं में कौशल विकास से महिलाएं जीविकोपार्जन करने में सक्षम होती हैं.

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि सरपंच प्रियंका सुथार ने बताया कि महाविद्यालय से समयसमय पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिस में  बीज वितरण, सिलाई, मूल्य संवर्धित उत्पाद, श्रम साध्य कृषि उपकरणों की जानकारी आदि महिलाओं में आत्मविश्वास जगाती हैं.

परियोजना समन्वयक डा. विशाखा बंसल ने बताया कि  भाकृअप के केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान, सीवा, भुवनेश्वर द्वारा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत इस वर्ष 100 ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न विषयों पर कौशल विकास करने का लक्ष्य था. इस के अंतर्गत न्यूट्री स्मार्ट विलेज लोयरा की 30 महिलाओं को, मदार की 20 महिलाओं को, ब्राह्मणों की हुंदर की 40 महिलाओं को एवं थूर की 28 महिलाओं को विभिन्न विधाओं में अब तक प्रशिक्षण दिया जा चुका है. साथ ही, विभिन्न शोध के परिणामों के आधार पर महिलाओं को समयसमय पर प्रशिक्षण दिया जाता है.

कार्यक्रम में प्रो. हेमू राठोड़, डा. विशाखा सिंह, डा. सुमित्रा मीणा उपस्थित रही. कार्यक्रम का संचालन डा. कुसुम शर्मा, यंग प्रोफेशनल द्वारा किया गया. कार्यक्रम में मुख्य भूमिका सिखाने वाले मास्टर ट्रेनर रवि मितवा और अनुष्का तिवारी की रही. परियोजना द्वारा विगत 10 दिवस में  70 ग्रामीण महिलाओं का कौशल विकास किया गया.

22 से 24 फरवरी तक लगेगा पूसा संस्थान, नई दिल्ली में कृषि मेला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित किया जाने वाला पूसा कृषि विज्ञान मेला इस वर्ष फरवरी 22-24, 2025 के दौरान संस्थान के मेला ग्राउंड में आयोजित किया जा रहा है. इस मेले का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” है. इस में विभिन्न कृषि कंपनियां, सरकारी व गैरसरकारी संस्थान, उद्यमी और प्रगतिशील किसान अपना स्टाल लगाएंगे. इस मेले में हर साल देश के विभिन्न भागों से 1 लाख से अधिक किसान, उद्यमी, राज्यों के अधिकारी, छात्र एवं अन्य उपयोक्ता भाग लेते हैं.

इस मेले के प्रमुख आकर्षणों में फसलों का जीवंत प्रदर्शन, फूलों और सब्जियों की संरक्षित खेती, गमलों में खेती, ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) खेती, मिट्टी एवं पानी की मुफ्त जांच, कट फ्लावर, विदेशी सब्जियों एवं उन्नत किस्म के फलों की प्रदर्शनी और विभिन्न भागीदारों द्वारा उच्च उपजशील बीजों/पौधों, कृषि प्रकाशनों की बिक्री और वैज्ञानिकों व किसानों की परस्पर चर्चा शामिल हैं.

इस अवसर पर किसानों को नवोन्मेषी एवं अध्येता सम्मान से सम्मानित किया जाएगा, जिस के लिए उन से आवेदन मांगे गए हैं. किसान अधिक से अधिक संख्या में इस सम्मान के लिए अपना आवेदन अतिशीघ्र भेजें. संबंधित विवरण पूसा संस्थान की वैबसाइट पर उपलब्ध है :

https://iari.res.in/en/krishi-vigyan-mela-2025.php.

कुलपति डा. कर्नाटक नई दिल्ली में मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित

नई दिल्ली : भारतीय कीट विज्ञान सोसाइटी ने 7 जनवरी, 2025 को नई दिल्ली में कीट विज्ञान में स्थापना दिवस समारोह और फ्रंटियर्स इन एंटोमोलौजी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित किया.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को पुरस्कार प्रदान करते हुए सोसाइटी के अध्यक्ष डा. वीवी राममूर्ति ने कीट विज्ञान शिक्षण, अनुसंधान व प्रसार में उन के आजीवन योगदान की सराहना की.

उल्लेखनीय है कि डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने 40 साल तक कृषि एवं कीट विज्ञान क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दी हैं. इन्हें मधुमक्खीपालन, चावलगेहूं और गन्ना पारिस्थितिकी तंत्र के कीट प्रबंधन और मृदा जैव प्रबंधन में विशेषज्ञता प्राप्त है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने तराई क्षेत्र में मधुमक्खी की एपिस मेलिफेरा प्रजाति स्थापित की और इस के पालन के लिए प्रबंधन पद्धतियां विकसित कीं, जिस से शहद, मोम और दूसरे शहद उत्पादों के उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि हुई है और परपरागण वाली फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने उत्तराखंड सरकार के कृषि पोर्टल का मधुमक्खीपालन भाग विकसित किया. डा. कर्नाटक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा साल 2021 का सर्वश्रेष्ठ कुलपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

पिछले कुछ सालों में डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिन में सोसाइटी फौर कम्युनिटी मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमेंट, नई दिल्ली द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, प्लांटिका एसोसिएशन औफ प्लांट साइंस रिसर्चर्स, देहरादून द्वारा डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षाविद सम्मान और सतत कृषि व संबद्ध विज्ञान के लिए वैश्विक अनुसंधान पहल पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान कीट विज्ञान अनुसंधान में उन के योगदान के लिए चौधरी हंसा सिंह पुरस्कार शामिल हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और राजस्थान के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन के लिए कई महत्वपूर्ण समितियों में नामित भी किया गया है.

स्वास्थ्यवर्धक है चुकंदर

व्यस्तता के चलते आजकल लोग अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते, जिस से आएदिन शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने से वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लंबी आयु के लिए जरूरी है कि अपने खानपीन में फल व हरी सब्जियों के साथ चुकंदर भी शामिल किया जाए. जब खानपान पर सही ध्यान दिया जाएगा तो निश्चित रूप से शरीर की इम्यूनिटी अच्छी होगी और आएदिन होने वाली तकलीफों से बचा जा सकेगा.

चुकंदर खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है. यह महिलाओं में होने वाली एनीमिया की बीमारी को दूर करने का सब से सही साधन है. इस के गुणों को देखते हुए भारत में इस की व्यापक खेती की जा रही है. यह कैंसर, हाईब्लड प्रेशर के साथ ही अल्जाइमर  की बीमारी को भी दूर करने में कारगर है. चुकंदर स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खास है. इस में मौजूद तत्त्व जहां शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं, वहीं विभिन्न रोगों से लड़ने की कूवत भी विकसित करते हैं. चुकंदर का नियमित सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद है. खासतौर से बढ़ती उम्र के बच्चों और महिलाओं के लिए यह सब से उत्तम आहार है.

चुकंदर सलाद के रूप में नियमित खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्ष्म हो जाता है. गर्भवती महिलाओं को तो इस का सेवन जरूर करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर खून की कमी हो जाती है, जिसे एनीमिया कहा जाता है. जो महिलाएं नियमित रूप से चुकंदर का सेवन करती हैं. उन्हें खून की कमी नहीं होती. कई बार बच्चे भी खून की कमी की वजह से बीमार रहने लगते हैं. ऐसे बच्चों को चुकंदर का जूस पिलाना लाभकारी रहता है. चुकंदर एक तरह की जड़ है. आमतौर पर यह लाल रंग का होता है. कुछ जगहों पर सफेद रंग का चुकंदर भी पाया जाता है. इस के पत्तों को शाक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

किसानों को चुकंदर का अच्छा दाम मिलता है. इस में मौजूद गुणों के कारण इसे अब मौसमी सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. चुकंदर में सही मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और रक्तशोधन के काम में सहायक होते हैं. इस में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट तत्त्व शरीर को रोगों से लड़ने की कूवत देते हैं. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य खास विटामिन पाए जाते हैं.

चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं. इस में मौजूद पोटेशियम जहां शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में सहायता करता है. यह पाचन संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी है. चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है. महिलाओं के लिए तो यह काफी गुणकारी है. चुकंदर में बेटेन नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस की आंत व पेट को साफ रखने के लिए हमारे शरीर को जरूरत रहती है, चुकंदर में मौजूद यह तत्त्व उस की आपूर्ति करता है.

काफी पहले यूरोप में कैंसर के इलाज के लिए चुकंदर का काफी इस्तेमाल किया जाता था. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का अच्छा जरीया हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की परेशानी को दूर करने में मदद करते हैं.

कैसे खाएं : चुकंदर कई तरीके से खाया जाता है. आमतौर पर इसे कच्चे सलाद के रूप में खाया जाता है. मूली, गाजर, प्याज, टमाटर आदि की तरह ही चुकंदर को भी सलाद में शामिल करें.

इस के अलावा इसे दक्षिण भारत में उबाल कर खाने का भी प्रचलन है. हालांकि उबालने से इस के कुछ तत्त्व खत्म हो जाते हैं. इसलिए इसे कच्चा खाना ही सब से लाभप्रद है. बुजुर्गों और बच्चों को चुकंदर का जूस देना चाहिए. इस के अलावा देश में चुकंदर की सब्जी बना कर खाने का भी चलन है.

Beetroot

चुकंदर के औषधीय गुण

एनीमिया दूर करे चुकंदर : एनीमिया रोग के लिए चुकंदर रामबाण माना जाता है. चुकंदर में उचित मात्रा में आयरन, विटामिंन और मिनिरल्स होते हैं, जो रक्त बढ़ाने और उस के शोधन का काम करते हैं. यही कारण है कि महिलाओं को इस के नियमित सेवन की सलाह दी जाती है.

गुर्दों के लिए लाभकारी : चुकंदर में गुर्दे को स्वस्थ और साफ रखने के गुण मौजूद हैं. किडनी रोगियों को चुकंदर का रस देना लाभकारी है. इस में मौजूद क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ रखने में मदद करता है.

पित्ताशय के लिए गुणकारी : शोध में पाया गया है कि यह किडनी के साथ ही पित्ताशय के लिए भी कारगर है. इस में मौजूद पोटेशियम शरीर को रोजाना पोषण देने में मदद करता है, वहीं क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ करने में मदद करता है.

पाचन में सहायक : बच्चों और युवाओं को चुकंदर चबाचबा कर खाना चाहिए. इस से दांत और मसूढे़ मजबूत होते हैं. यह पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी लाभकारी है. इस का नियमित सेवन करने से अपाच्य की समस्या खत्म हो जाती है. बढ़ती उम्र के बच्चों को चुकंदर जरूर खिलाना चाहिए, इस से उन का शारीरिक सौष्ठव बेहतर होता है और बच्चों के चेहरे पर चमक दिखती है.

उल्टीदस्त : यदि उल्टीदस्त की शिकायत हो तो चुकंदर के रस में चुटकीभर नमक मिलाना फायदेमंद रहता है. इस से पेट में बनने वाली गैस खत्म हो जाती है. उल्टी बंद होने के साथ ही दस्त भी बंद हो जाते हैं.

पीलिया में लाभकारी : चुकंदर पीलिया के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है. पीलिया के रोगियों को चुकंदर का रस दिन में 4 बार देना चाहिए. ध्यान रखें कि एक बार 1 कप से ज्यादा जूस न दें.

हाइपरटेंशन : चुकंदर का जूस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर करता है. इस के नियमित सेवन से चिड़चिड़ापन दूर हो जाता है. खास कर यह महिलाओं के लिए काफी लाभकारी है.

मासिक धर्म में लाभकारी : मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कमर व पेडू दर्द और अन्य शारीरिक दुर्बलताओं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चुकंदर के नियमित इस्तेमाल से मासिक धर्म के दौरान होने ली तकलीफ नहीं होती है.

माहवारी, फोड़े, जलन और मुहासों के लिए भी यह काफी उपयोगी है. खसरा और बुखार में भी त्वचा साफ करने में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बालों की रूसी भगाए : चुकंदर के काढ़े में थोड़ा सा सिरका मिला कर सिर में लगाएं या सिर पर चुकंदर के पानी में अदरक के टुकउ़ों को भिगो कर रात में मसाज करें. सुबह बालों को धो लें.

चुकंदर खाएं ब्लडप्रेशर भगाएं : ब्लडप्रेशर के रोगियों को चुकंदर जरूर खिलाएं. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का एक अच्छा जरीया है, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं. रोज चुकंदर में गाजर और सेब मिला कर उस का जूस पीने से हाईब्लड प्रेशर में कमी आती है. एक अध्ययन के मुताबिक रोजाना 2 कप चुकंदर का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है.

हालांकि इस का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए. इस के ज्यादा सेवन करने से चक्कर आना या वोकल कार्ड पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है.

चुकंदर की सब्जी भी लाभदायक : चुकंदर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद सब्जी है. इस में कार्बोहाइड्रेट और कम मात्रा में प्रोटीन और वसा पाई जाती है. यह प्राकृतिक शुगर का सब से अच्छा स्रोत है. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन, विटामिन ‘बी1’, ‘बी2’ और ‘सी’ पाया जाता है. इस में कैलोरी काफी कम होती हैं.

पशुओं के स्वास्थ्य में भी कारगर : चुकंदर इतना गुणकारी है कि यह इंसान के साथसाथ पशुओं के लिए भी कारगर है. यही कारण है कि हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सीजनल पशु आहार के रूप में खिलाया जाता है. विशेष रूप से दुधारू पशुओं को खिलाने से उन का स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूध में भी इजाफा होता है.

इस में मौजूद तत्त्व पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों से उन का बचाव करते हैं. इसे खिलाने से पशुओं में आमतौर पर होने वाली बांझपन की समस्या खत्म हो जाती है.

दुधारू पशु 3 से 4 बार ब्याने के बाद कमजोर हो जाते हैं और कुछ में बांझपन के लक्षण भी आ जाते हैं, लेकिन जिन पशुपालकों ने नियमित रूप से उन के चारे में चुकंदर को शामिल किया है, उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

स्टीविया की वैज्ञानिक खेती

स्टीविया को मीठी तुलसी, चीनी व मधुपत्र आदि नामों से भी जाना जाता है. स्टीविया लेमिएसी कुल का बहुवर्षीय, झाड़ीनुमा, शाकीय पौधा है.

भारत में अभी यह नया पौधा है. मौजूदा समय में इस की खेती खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में ही होती है. औषधीय गुणों की वजह से इस के क्षेत्रफल और पैदावार में बढ़ोतरी की जरूरत है. स्टीविया एक छोटा पौधा है, जिस की लंबाई 60-70 सेंटीमीटर तक होती है. इस के फल छोटे, सफेद और कई आकार में लगते हैं.

स्टीविया का पौधा चीनी से तकरीबन 25-30 गुना ज्यादा मीठा होता है. इस की पत्तियों में मिठास के कई तत्त्व पाए जाते हैं, जिन में स्टीवियोसाइड, रीबाऊदिस, रीबाऊदिस साइड सी और डाल्कोसाइड खास हैं. इन के अलावा इस की पत्तियों में 6 अन्य तत्त्व भी पाए जाते हैं, जिन में इंसुलिन को संतुलित करने के खास गुण मौजूद होते हैं. स्टीविया की पत्तियों से निकाले जाने वाले स्टीवियोसाइड में चीनी से 250 गुना ज्यादा और सुक्रोज से 300 गुना ज्यादा मिठास पाई जाती है.

स्टीविया कैलोरी रहित होने के कारण मधुमेह रोगियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण मीठा पदार्थ है. स्टीविया का सब से ज्यादा उपयोगी घटक स्टीवियोसाइड है.

स्टीविया की पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा 3 से 20 फीसदी तक हो सकती है. स्टीविया की 9 फीसदी या इस से ज्यादा मात्रा वाली स्टीवियोसाइड प्रजातियों को अच्छा माना जाता है.

भारत में ज्यादातर लोग बिना मीठे के भोजन नहीं करते, इसलिए यहां स्टीविया के लिए बड़ा बाजार बन सकता है. चायकौफी में इस्तेमाल करने के साथसाथ इसे कई तरह की मिठाइयों और चाकलेट्स में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. स्टीविया मधुमेह के रोगियों के लिए काफी लाभदायक है.

खेती की तकनीक

जलवायु : स्टीविया का पौधा 11 से 41 डिगरी सेल्सियस तापमान पर ज्यादा बढ़ता है. 131-140 सेंटीमीटर सालाना बारिश वाले इलाकों में यह आसानी से उगाया जा सकता है.

जमीन : स्टीविया का पौधा ज्यादा पानी वाली मिट्टी में नहीं उगता है. इस के लिए सही जल निकास वाली रेतीली जमीन जिस का पीएच मान 6.5-7.5 हो, काफी अच्छी रहती है.

जमीन की तैयारी : स्टीविया बहुवर्षीय पौधा होने से 1 बार लगाने के बाद 4-5 सालों तक खेत में रहता है, इसलिए मिट्टी को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए. खेत को 1 बार मिट्टी पलट हल से गहरा जोतने के बाद 4-6 जुताई हैरो और कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए. आखिरी जुताई से पहले 20 टन गोबर की खाद, 6 से 8 टन कंपोस्ट खाद या 2-2.5 टन वर्मी कंपोस्ट डाल कर जुताई करनी चाहिए और हर जुताई के बाद पाटा लगा देना चाहिए ताकि खेत में ढेले न बनें और मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाए.

बोआई का तरीका और समय : इस की पौध बीज और कलम दोनों तरह से तैयार की जाती है. बीजों का अंकुरण कम होने से इसे ज्यादातर कलम से ही लगाया जाता है. इस की रोपाई मेंड़ों पर की जाती है. रोपाई के लिए तकरीबन 6 से 8 इंच ऊंची मेंडें़ बनाई जाती हैं. इन मेंड़ों पर पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रख कर कलमों की रोपाई की जाती है. रोपाई के तुरंत बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

इस की रोपाई का सब से अच्छा समय सितंबरनवंबर और फरवरीअप्रैल है. 15 सेंटीमीटर लंबी तने की कटिंग्स को 100 पीपीएम पैक्लान बूटेजाल से उपचारित कर के फरवरी में रोपाई करने से जड़ें ज्यादा और जल्दी निकलती हैं.

खाद और उर्वरक : स्टीविया की फसल को 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की प्रति हेक्टेयर जरूरत पड़ती है. फसल के इन जरूरी तत्त्वों की पूर्ति केवल कार्बनिक खादों से ही करनी चाहिए. स्टीविया में किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. बोरोन और मोलिब्डेनम का खड़ी फसल पर छिड़काव करने से पत्तियों में स्टीवियोसाइड की संख्या में बढ़ोतरी होती है.

सिंचाई : स्टीविया को सालभर पानी की जरूरत होती है. गरमी में 6 से 8 दिनों और सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए. यदि मुमकिन हो तो स्टीविया की सिंचाई के लिए टपक सिंचाई विधि का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

stevia

प्रजातियां : स्टीविया का मूल्य उस में पाए जाने वाले स्टीवियोसाइड की मात्रा पर निर्भर करता है. इसलिए स्टीविया की खेती के लिए ऐसी किस्में जिन में स्टीवियोसाइड की ज्यादा मात्रा पाई जाती है, को ही चुना जाना चाहिए. मौजूदा समय में स्टीविया की 3 किस्में ज्यादा प्रचलित हैं.

बीआरआई 28 : स्टीविया की यह किस्म खेती के लिए काफी सही मानी जाती है, क्योंकि इस में 21 फीसदी तक ग्लूकोसाइड्स पाए जाते हैं. यह प्रजाति जितनी अच्छी भारत के दक्षिणी इलाकों के लिए है, उतनी ही उत्तरी इलाकों के लिए भी है. यह किस्म बायोवेद संस्थान, इलाहाबाद ने विकसित की है.

बीआरआई 123 : स्टीविया की यह किस्म भारत के दक्षिणी पठारी इलाकों के लिए अच्छी है. इस में 9.12 फीसदी तक ग्लूकोसाइड्स पाए जाते हैं. यह किस्म साल में 5 कटाई देती है.

बीआरआई 512 : इस प्रजाति की साल में 4 बार कटाई होती है. यह किस्म उत्तर भारत के लिए ज्यादा सही है. इस में 9 से 12 फीसदी तक ग्लूकोसाइड्स पाए जाते हैं.

खरपतवारों की रोकथाम : स्टीविया की फसल से हमेशा खरपतवारों को दूर रखना चाहिए. इस के लिए फसल की खुरपी आदि से निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. स्टीविया के पौधों के बीच से खरपतवार हाथ से ही हटा देना चाहिए.

स्टीविया की फसल में किसी भी तरह के रासायनिक खरपतवारनाशी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

फसल सुरक्षा : ज्यादातर स्टीविया की फसल पर किसी तरह के रोग और कीट नहीं लगते, लेकिन कभीकभी जमीन में बोरोन की कमी की वजह से पत्ती धब्बा जैसी बीमारी हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए 6 फीसदी बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिए.

स्टीविया को जमीन में पाए जाने वाले कीड़ों व दीमक वगैरह से बचाने के लिए 15-20 किलोग्राम बायोनीमा जैविक खाद का इस्तेमाल मिट्टी में करना चाहिए और गौमूत्र का भी समयसमय पर छिड़काव कर सकते हैं.

फूल तोड़ना : स्टीविया की पत्तियों में सब से ज्यादा स्टीवियोसाइड्स मौजूद होते हैं. इसलिए पत्तियों की ज्यादा बढ़त के लिए पौधों से फूलों को हटा देना चाहिए, क्योंकि फूल आने के बाद पौधे की वानस्पतिक बढ़त रुक जाती है. पौध रोपने के 30, 45, 60, 75 व 85 दिनों बाद और कटाई के समय फूल तोड़ देने चाहिए. पेड़ी फसल में पहली कटाई के 40 दिनों बाद फूल आने लगते हैं, लिहाजा 40 दिनों बाद कटाई के समय फूलों को तोड़ देना चाहिए.

कटाई : रोपाई के तकरीबन 110-120 दिनों बाद फसल कटाई लायक हो जाती है. फसल की कटाई फूल तोड़ने के बाद और दोबारा फूल आने से पहले कर लेनी चाहिए. फिर 3 से 4 कटाई 90-90 दिनों के बीच कर लेनी चाहिए.

उपज : बहुवर्षीय फसल होने से स्टीविया की उपज में हर कटाई के बाद लगातार बढ़त होती है. स्टीविया की सालभर में 4 कटाई में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियां हासिल हो जाती हैं.

बागबानी महोत्सव के जरीए बिहार ने उन्नत बागबानी से कराया रूबरू

बिहार सरकार द्वारा राज्य के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए हर एक दिन  नए प्रयोग और योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है. इस के लिए पिछले दिनों राज्य लैवल से ले कर जिला और ब्लौक लैवल पर गोष्ठियां, प्रदर्शनियां और ट्रेनिंग कार्यक्रमों का बेहद सफल आयोजन किया गया.

इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार के कृषि महकमे के उद्यान निदेशालय द्वारा पटना के गांधी मैदान में बीते 3 जनवरी से 5 जनवरी, 2025 तक तीनदिवसीय बागबानी महोत्सव का आयोजन किया गया. इस बागबानी महोत्सव में बिहार के सभी जिलों से तकरीबन 1500 किसान 14 हजार से ज्यादा प्रविष्टियों के साथ शामिल हुए.

बागबानी महोत्सव में प्रदर्शनी में तकरीबन 60 स्टाल लगाए गए, जहां से खेतीबागबानी में रुचि रखने वाले लोगों ने अपने पसंद के फल, फूल, सब्जी के बीज/बिचड़ा, पौधा, गमला, मधु, मखाना, मशरूम आदि की खरीदारी भी की.

बागबानी महोत्सव का उद्घाटन राज्य के कृषि और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने किया. इस मौके पर पटना के गांधी मैदान में आयोजित इस प्रदर्शनी में उन्होंने राज्‍य के भूमिहीन किसानों को ले कर बड़ी घोषणा की.

बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि विभाग बिहार में जल्दी ही शहद के उत्पादन और प्रोत्साहन के लिए नीति बनाएगा, जिसे सरकार राज्यभर में बढ़ावा देगी खासकर भूमिहीन किसानों को शहद उत्पादन से जोड़ने की पहल को ले कर नीति बनाई जाएगी.

भूमिहीन किसान मधुमक्खीपालन कर खुद को सशक्त बनाएंगे. सूरजमुखी, सहजन, सरसों, लीची जैसे फल, फूलों के शहद का उत्पादन करने की नीति बनेगी.

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो राज्य के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों का आधार है. रंगबिरंगे फल, फूल, सब्जी और अन्य बागबानी उत्पादों से सुसज्जित बागबानी महोत्सव, 2025 किसानों के उत्साह का गवाह है.

प्रति व्‍यक्ति आय बढ़ाने में किसानों की भूमिका

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि बिहार की अर्थव्यवस्था में बागबानी खासकर फल, फूल, सब्जी, मसाला आदि की भूमिका अहम साबित हो रही है. साल 2005 के समय राज्य में प्रति व्यक्ति आय 7,500 रुपए के करीब थी, वहीं आज इस राज्य की प्रति व्यक्ति आय 66,000 रुपए हो गई है.

उन्होंने आगे कहा कि बीते 20 वर्षों में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य में लगभग 8 गुना से अधिक प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है, जिस में किसानों की बढ़ी आय का बड़ा योगदान रहा है. अगर हम सभी राज्य को सुखी और समृद्ध बनाना चाहते हैं, तो बागबानी के माध्यम से किसानों को समृद्ध कर उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं.

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि महोत्सव में सिर्फ बागबानी उत्पादों का प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि फल, फूल, सब्जी के बीज, बिचड़ा, पौधा, बागबानी उपकरण, मधु, मखाना, मशरूम, चाय आदि की बिक्री की भी व्यवस्था की गई है. बिहार में कुल 13.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बागबानी फसलों की खेती की जाती है, जिस से तकरीबन 286.45 लाख मीट्रिक टन फल, फूल, सब्जी आदि का उत्पादन होता है, जिसे आने वाले समय में और बढ़ाने का लक्ष्य है.

बागबानी क्षेत्र को बढ़ाने पर दिया जोर

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि रोडमैप के लक्ष्य से आगे बढ़ कर भी सोचने की जरूरत है. सालाना लक्ष्य निर्धारित करने की दिशा में भी हम सोच सकते हैं. हमें साल 2025 में बागबानी का लक्ष्य बढ़ा कर 18 लाख हेक्टेयर एवं 2026 में इसे बढ़ा कर 20 लाख हेक्टेयर पर ले जाने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए.

बागबानी के क्षेत्र में बिहार लगातार आगे बढ़ रहा है. आज हमारे किसान पारंपरिक बागबानी फसलों के साथसाथ उच्च बाजार मूल्य वाले एक्जोटिक फल, ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्राबेरी आदि की खेती कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि इन उत्पादों का उचित भंडारण हो, प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग एवं मूल्य संवर्द्धन हो, बाजार की सुलभ उपलब्धता हो, इस दिशा में तीव्र गति से काम किया जा रहा है. इस कड़ी में राज्य सरकार के द्वारा कृषि विभाग के अंतर्गत कृषि मार्केटिंग निदेशालय का गठन किया गया है, जिस का उद्देश्य किसानों को उन की उपज का उचित मूल्य उपलब्ध कराना, किसानों को बाजार की व्यवस्था उपलब्ध कराना, किसानों के उत्पादों में मूल्य संवर्द्धन कराना, भंडारण की सुविधा, बेहतर पैकेजिंग आदि की व्यवस्था सुनिश्चित किया जाना है.

विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य बाजारोन्मुख बागबानी उत्पादों के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए किसानों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना है, वहीं बागबानी के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी उपकरण से रूबरू कराना और किसानों को उन के उत्पादों का सही मूल्य प्राप्त हो, इस के लिए निर्यात प्रोत्साहन के लिए किसानों और व्यापारियों को एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराना है.

इस अवसर पर अभिषेक कुमार, निदेशक उद्यान, आलोक रंजन घोष, एमडी, बिहार राज्य बीज निगम, अमिताभ सिंह, आप्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्री, संतोष कुमार उत्तम, निदेशक पीपीएम, वीरेंद्र प्रसाद यादव, विशेष सचिव, कृषि विभाग, पद्मश्री से सम्मानित किसान चाची राजकुमारी देवी, मनोज कुमार, संयुक्त सचिव समेत कई अधिकारी कार्यक्रम में मौजूद रहे.

gardening festival

मन मोह लेने वाला रहा बागबानी महोत्सव, भाग लेने वाले प्रतिभागियों की प्रविष्टियां

पटना के गांधी मैदान में लगाए गए बागबानी महोत्सव में सब्जी, फल, फूल और सजावटी पौधों को ले कर किसानों और शहरी क्षेत्र के लोगों से प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आवेदन मांगे गए थे, जिस में उन के प्रविष्टियों की कोडिंग की गई थी. निर्णायक मंडल द्वारा निष्पक्ष रूप से प्रतियोगिता में भाग लेने वाले लोगों के साथ इंसाफ किया जा सके.

16 वर्गों में आयोजित की गई प्रतियोगिताएं

बागबानी महोत्सव में भाग लेने लिए किसानों और बागबानी प्रेमियों के लिए 16 वर्गों में प्रविष्टियां आमंत्रित की गई थीं, जिस में सब्जी, मशरूम, फल, शहद, पान, कटे फूल डंठल सहित, औषधीय एवं सुगंधित पौधा, चित्रकला प्रतियोगिता, क्विज प्रतियोगिता, फल संरक्षण (घर की बनी), शोभाकार पत्तीदार पौधा, बोनसाई, जाड़े के मौसमी फूलों के पौधे, कैक्टस एवं सकुलेंट पौधा, विभिन्न तरह के पाम, कलात्मक पुष्प सज्जा एवं नक्काशी शामिल रहा. इन वर्गों को विभिन्न शाखाओं में बांटा गया था.

इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रत्येक वर्ग से प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार के रूप में नकद इनाम भी दिया गया. इस के अंतर्गत महोत्सव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को प्रथम पुरस्कार के रूप में 5,000 रुपए, द्वितीय पुरस्कार के रूप में 4,000 रुपए व तृतीय पुरस्कार के रूप में 3,000 रुपए  प्रदान किए गए.

रंगबिरंगे फूलों और सजावटी पौधों ने मोहा मन, ली जम कर सैल्फी

बिहार सरकार द्वारा पटना के गांधी मैदान में लगाए गए बागबानी महोत्सव में चारों तरफ रंगबिरंगे फूलों की खुशबू बिखरी रही और इन पौधों ने लोगों को सैल्फी लेने को मजबूर कर दिया.

प्रदर्शनी में ये पौधे विभिन्न प्रतियोगियों द्वारा प्रतियोगिता में इनाम पाने के लिए प्रदर्शित किए गए थे. इस के तहत कैक्टस, पाम, गुलाब, गेंदा, सकुलेंट, पान, क्रोटन, गुलदाउदी, जरबेरा, एलोवेरा, विभिन्न पेड़ों के बोनसाई के हजारों की संख्या में पौधे शामिल रहे, जबकि एक विशिष्ट पुरस्कार के लिए 10,000 रुपए का नकद इनाम दिया गया.

रंगीन और विदेशी सब्जियों को देख हैरान हुए लोग

गांधी मैदान में लगाए तीनदिवसीय बागबानी महोत्सव में प्रदेश के विभिन्न जिलों के किसान फल, फूल और सब्जियों के पौधे ले कर प्रतियोगिता में शामिल होने आए थे, जिन्हें प्रदर्शन के लिए आम दर्शकों के लिए रखा गया था. इन प्रतियोगिताओं में आदमकद और जंबो साइज की सब्जियां और फलफूल देखने को मिले.

इस में 20 से 40 किलोग्राम का कद्दू, 5 से 10 किलोग्राम की फूलगोभी, डेढ़ किलोग्राम तक की गांठगोभी, जंबो साइज के सूरन, लौकी, बैगन, टमाटर, बंदगोभी, सेम, गाजर, आलू, मटर, अदरक, हलदी, ड्रैगन फ्रूट के अलावा जैविक तरीके से उगाए गए फलफूल और सब्जी को देख कर लोग हैरान हो कर फोटो और वीडियो बनाने से खुद को रोक नहीं पाए.

प्रदर्शनी में विदेशी सब्जियों में पाकचोई, जुकुनी सहित कई सब्जियां भी प्रतियोगिता के लिए रखी गई थीं, जिस का परिचय जानने के लिए लोग उत्सुक रहे.

चोरमा गांव के बाशिंदे सुरेश गिरी इस महोत्व में हरी मिर्च के पौधे ले कर आए थे. उन के एक पौधे में 60 मिर्चें लगी हुई थीं. वे बताते हैं कि उन्होंने जैविक तरीके से 2 कट्ठे में मिर्च की खेती की. एक कट्ठा में मिर्च गाने में 10,000 रुपए खर्च होते हैं और कमाई तकरीबन 60,000 रुपए होती है.

gardening festivalप्रदर्शनी के स्टालों पर खूब बिकी बागबानी से जुड़ी चीजें

बागबानी महोत्सव में बागबानी से जुड़े उपकरणों, खाद, उर्वरक, बीज, पौधे, गमले इत्यादि से जुड़े लगभग 60 स्टाल लगाए गए थे. जिस में निजी कंपनियों से ले कर सरकारी संस्थान, विश्वविद्यालय, आईसीएआर से जुड़े संस्थान और महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़े लोग शामिल रहे.

इन स्टालों पर लोगों ने बागबानी से जुड़े ब्रांडेड कंपनियों के छोटेछोटे मैनुअल उत्पाद और उपकरण तो खरीदे ही, साथ में उन्नत किस्मों के बीज और पौधों की भी जम कर खरीदारी की.

इस महोत्सव में राष्ट्रीय बीज निगम के स्टाल पर मोटे अनाज, फल, फूल और सब्जियों के प्रमाणित बीजों की खूब बिक्री हुई, जिस में मंडुआ, सांवा, मटर, धनिया, कैलेंडुला, बैगन, मूली, लाल साग और  प्याज के बीज आदि शामिल रहे.

इसी तरह 3 रुपए प्रति पौध की दर से टमाटर, बैगन, पत्तागोभी, लाल फूलगोभी का पौधा भी खूब बिका. एक स्टाल पर बिना बीज वाला खीरा 40 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिका, जो खाने में बिलकुल भी तीखा नहीं होता. इसी तरह आम, अमरूद, चीकू और आंवला के पौधों की बिक्री भी जम कर हुई.

gardening festivalबिहारी व्यंजनों का स्वाद

बागबानी महोत्सव न केवल किसानों और बागबानी में रुचि रखने वाले लोगों के लिए खास रहा, बल्कि यह महोत्सव खानेपीने वाले लोगों को भी अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहा.

महोत्सव में बिहार के स्थानीय पारंपरिक व्यंजनों का भी स्टाल लगाया गया था, जहां लिट्टीचोखा, मशरूम के व्यंजन, मंगोड़े इत्यादि का भी लोगों ने जम कर स्वाद लिया.

छत पर फार्मिंग बैड योजना एवं गमले पर मिल रहा अनुदान

बिहार सरकार द्वारा चुनिंदा जनपदों में छत पर खेती किए जाने को प्रोत्साहित करने के लिए छत पर बागबानी योजना के तहत सहायता अनुदान मुहैया कराया जा रहा है, जिस का उद्देश्य शहरों में रहने वाले लोगों में जैविक उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा देने सहित छत पर खेती के जरीए शहरी प्रदूषण में कमी लाना और सब्जियों, फलों के ऊपर लोगों की बाजार पर निर्भरता को कम करना भी है.

यह योजना उन के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है, जिन के पास अपनी खुद की खेती के लिए जमीन नहीं है. वे लोग अगर खेती और बागबानी में रुचि रखते हैं, तो अपने घर की छत पर शौक को अमलीजामा पहना कर अपने इस शौक को पूरा कर सकते हैं.

बागबानी महोत्सव में इस योजना के प्रचारप्रसार के लिए लाइव डैमो प्रदर्शन किया गया था, जहां इस योजना से जुड़ी सभी जानकारियों सहित योजना का लाभ लेने के इच्छुक लोगों का मौके पर ही पंजीकरण किया गया.

योजना से जुड़ी खास बातें

योजना से जुड़े उपकरण, बीज पौधे व अन्य जरूरी संसाधन मुहैया कराने वाली एक कंपनी से जुड़े विकास कुमार ने महोत्सव में उक्त योजना का डैमो प्रदर्शन लगा रखा था. इस दौरान उन्होंने बातचीत में बताया कि अभी केवल बिहार के पटना सदर, दानापुर, फुलवारी एवं खगौल और भागलपुर, गया एवं मुजफ्फरपुर जिले के शहरी क्षेत्र में इस योजना का लाभ लिया जा सकता है. जिस के पास अपना घर हो अथवा अपार्टमेंट में फ्लैट हो, जिस की छत पर 300 वर्ग फुट की जगह हो, वे फार्मिंग बैड योजना का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि स्वयं के मकान की स्थिति में छत पर 300 वर्ग फुट खाली स्थल, जो किसी भी हस्तक्षेप से स्वतंत्र हो और अपार्टमेंट की स्थिति में अपार्टमेंट की पंजीकृत सोसाइटी से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त होना जरूरी है.

विकास कुमार ने बताया कि फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत प्रति इकाई (300 वर्ग फुट) का इकाई लागत 48574 रुपए एवं अनुदान 75 फीसदी  और शेष 12143.50 रुपए लाभार्थी द्वारा दिया जाना है. इसी तरह गमले की योजना के अंतर्गत प्रति इकाई लागत 8975 रुपए एवं अनुदान 75 फीसदी और शेष 2243.75 रुपए लाभार्थी द्वारा देय होगा.

उन्होंने यह भी बताया कि आवेदन करने के बाद फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत प्राप्त रसीद पर लाभार्थी को अपने अंश की राशि 12143.50 रुपए प्रति इकाई (300 वर्ग फीट) और गमले की योजना के अंतर्गत प्राप्त रसीद पर लाभुक को अपने अंश की राशि 2243.75 रुपए प्रति इकाई जमा करने के लिए बैंक खाता संख्या एवं विस्तृत विवरणी प्राप्त होगी.

संबंधित जिले के संबंधित खाता संख्या में लाभुक अंश की राशि जमा होने के बाद  ही आगे की कार्रवाई की जाएगी. इस योजना का लाभ प्राप्त करने वाले लाभार्थी द्वारा छत पर लगे बागबानी इकाई का रखरखाव स्वयं के स्तर से करना अनिवार्य होगा.

उन्होंने बताया कि फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत स्वयं के मकान की स्थिति में 2 इकाई और अपार्टमेंट एवं शैक्षणिक/अन्य संस्थान के लिए अधिकतम 5 इकाई का लाभ दिया जाएगा. गमले की योजना का लाभ संस्थाओं को नहीं दिया जाएगा और  गमले की योजना का लाभ किसी आवेदक द्वारा अधिकतम 5 यूनिट तक लिया जा सकेगा.

विकास कुमार ने बताया कि इस योजना की गाइडलाइन के अनुसार चयन के लिए  जिले के लक्ष्य के अंतर्गत 78.60 फीसदी सामान्य जाति, 20 फीसदी अनुसूचित जाति और 1.40 फीसदी  अनुसूचित जनजाति की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जिस में कुल भागीदारी में 30 फीसदी  महिलाओं को प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान है.

गमला योजना में शामिल हैं ये चीजें

गमला योजना के तहत 30 गमले में अलगअलग तरह के पौधे लगा कर दिए जाएंगे. इस में तुलसी, अश्वगंधा, एलोवेरा, स्टीविया, पुदीना, स्नेक प्लांट, मनी प्लांट, गुलाब, चांदनी, एरिका पाम, अपराजिता, करीपत्ता, बोगनविलिया, अमरूद, आम, नीबू, चीकू, केला, रबर आदि के पौधे रहेंगे. इन में 10 इंच के 5, 12 इंच के 5, 14 इंच के 10 और 16 इंच के 10 गमले दिए जाएंगे. इस योजना की लागत 8,974 रुपए की है, लेकिन 75 फीसदी अनुदान के बाद आवेदक को केवल 2,244 रुपए ही देने होंगे.

 12,000 रुपए में छत पर बागबानी का सपना होगा सच

फार्मिंग बैड योजना के तहत लाभार्थी के घर की छत पर कई तरह के फार्मिंग बैड और बैग लगाए जाएंगे. इन में 10 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा 3 फार्मिंग बैड, 2 फुट लंबा और एक फुट चौड़ा एक फार्मिंग बैग, 2 फीट लंबा और 2 फीट चौड़ा 6 बैग लगाए जाएंगे. इस में ड्रिप सिस्टम और मोटर लगा कर दिया जाएगा. ड्रिप सिस्टम में लगे स्विच को चालू करते ही पौधों की सिंचाई हो जाएगी. साथ ही, 30 किलोग्राम कोकोपिट और 50 किलोग्राम वमीं कंपोस्ट दिया जाएगा.

फार्मिंग बैड योजना के तहत लोगों को मौसमी सब्जी और फल के पौधे लगा कर इस योजना के तहत 9 माह तक प्रबंधन का काम एजेंसी ही करेगी. इस दौरान एजेंसी के लोग 18 बार निरीक्षण करने आएंगे. पौधों का विकास, उन की जरूरत के हिसाब से वे काम करेंगे.

एजेंसी पूरी करेगी जरूरतें

सरकार द्वारा इस योजना का लाभ लोगों को आसानी से मुहैया हो पाए, इस के लिए ऐसी व्यवस्था की है कि आवेदन के लिए कहीं चक्कर लगाने की जरूरत न पड़े. इस के लिए सबकुछ एजेंसी पहुंचाने का काम कर रही है. इस योजना के लिए आवेदक को निदेशालय की वैबसाइट https:// horticulture.bihar.gov.in पर जाना होगा. इस वैबसाइट पर ही औनलाइन आवेदन करना होगा. इस के बाद आवेदन किए जाने के 10 दिन के अंदर ही आप के घर की छत पर बागबानी कर दी जाएगी.

फसल से ज्यादा उत्पादन के मूलमंत्र

आमतौर पर खेती का उत्पादन मौसम व खेती के तरीकों पर टिका होता है. वर्षा, तापमान, सूर्य का प्रकाश व हवा आदि हमारी पहुंच से बाहर हैं, लेकिन खेती के तरीके हमारी पहुंच में हैं. समय पर सही ध्यान दे कर फसलों की मौजूदा उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है. ज्यादा उत्पादन के निम्न मूलमंत्र हैं, जिन पर गौर फरमा कर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है:

समय

फसल उत्पादन में समय एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. फसल की बोआई से ले कर कटाई तक फसल संबंधी सभी क्रियाएं सही समय पर करनी चाहिए. कभीकभी जानकारी न होने से मजबूरी या लापरवाहीवश बोआई, खरपतवारों की रोकथाम, कीड़ों की रोकथाम और सिंचाई जैसे जरूरी कामों को किसान समय पर नहीं कर पाते हैं, जिस वजह से उत्पादन में भारी कमी आती है.

कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विभाग द्वारा चलाए जा रहे कई प्रशिक्षणों द्वारा किसान भाई खेती की नवीनतम तकनीक का ज्ञान हासिल कर सकते हैं. किसानों को कभीकभी कृषि की कई जरूरी चीजें जैसे उन्नत बीज, उर्वरक, फफूंदनाशक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक वगैरह समय पर नहीं मिल पाते हैं, जिस से वे सही समय पर खेती के सभी काम नहीं कर पाते हैं. ऐसे हालात में फसल के उत्पादन में कमी आती है. इसलिए ऐसी हालत से बचने के लिए जरूरी सामान का प्रबंध सही समय पर करें.

production from crops

उम्दा बीज

बीजों की गुणवत्ता का उत्पादन पर 20 से 30 फीसदी असर पड़ता है. इसलिए किसान भाइयों को स्थानीय और परंपरागत बीजों के बजाय अच्छे प्रमाणिक बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि ऐसे बीज ज्यादा उत्पादन और गुणवत्ता वाले होते हैं. इसलिए जहां तक हो सके विभिन्न फसलों के अच्छे और प्रमाणिक बीजों का ही इस्तेमाल करें. विभिन्न फसलों की संकर किस्मों के बीजों को दोबारा बोआई के काम में न लें, क्योंकि उन की उत्पादन कूवत कम हो जाती है. इसलिए हर साल प्रमाणिक बीज ही खरीद कर बोएं.

बीजों को बोने से पहले घरेलू तकनीक से उन की अंकुरण कूवत परख लें और पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही बीज बोएं ताकि अंकुरण संबंधी किसी भी समस्या का हल बोआई से पहले ही हो जाए.

यदि किसान अपना पैदा किया बीज इस्तेमाल में लेते हैं तो बीज की बोआई से पहले ग्रेडिंग जरूर करें. बोआई से पहले बीज का उपचार भी फायदेमंद रहता है.

पोषक तत्त्व प्रबंधन

उर्वरक और खाद खेती के महत्त्वपूर्ण, हिस्से हैं. ये पौधों की बढ़त के साथसाथ पौधों द्वारा पानी सोखने की कूवत में भी वृद्धि करते हैं. विभिन्न फसलों में ज्यादातर किसान बिना मिट्टी की जांच के अपनी इच्छा से अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं, जिस से धीरेधीरे मिट्टी की उर्वरता में कमी आ जाती है. लिहाजा किसानों को कम से कम 2 से 3 साल में खेतों की मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए, जिस से खेतों में मौजूद पोषक तत्त्वों के सही स्तर का पता चल सके.

मिट्टी की जांच के मुताबिक ही फसलों में उर्वरकों का इस्तेमाल करें. इस से उस की लवणीयता और क्षारीयता का भी पता चलता है और ऐसी मिट्टी को सही तरीके से सुधारने में मदद मिलती है.

उर्वरकों को फसल की सही अवस्थाओं में सही तरीके से देना चाहिए, जिस से मिट्टी की कूवत बढ़ती है. उर्वरकों को बीज के साथ कभी न मिलाएं और हमेशा बीज से 2 इंच नीचे दबाएं.

लगातार उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से फसलों की पैदावार में कमी आने लगी है, क्योंकि उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी के भौतिक गुणों पर उलटा असर पड़ने लगा है. लिहाजा ज्यादा उत्पादन और टिकाऊ खेती के लिए उर्वरकों के साथसाथ कार्बनिक खादों पर समुचित ध्यान देना जरूरी है.

इस के लिए कम से कम 3 सालों में 1 बार गोबर की सड़ी या कंपोस्ट खाद का जरूर इस्तेमाल करें या फिर सनई, ग्वार या ढैंचा को वर्षाऋतु में उगा कर फूल आने पर खेत में दबा कर हरी खाद के रूप में काम में लें.

खाद और उर्वरक के अलावा विभिन्न फसलों में निर्धारित जीवाणु खादों जैसे राइजोबियम जीवाणु, एजेटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम, फोस्फोबैक्टेरियम जीवाणु, नील हरित शैवाल, एजोला, फर्न, माइकोराइजा आदि का भी इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि इन के इस्तेमाल से विभिन्न पोषक तत्त्वों की मौजूदगी बढ़ती है. जीवाणु खाद न केवल किफायती है, बल्कि यह पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है. जीवाणु खाद वायु से नाइट्रोजन ले कर पौधों को मुहैया कराती है.

खरपतवार प्रबंधन

फसल में मौजूद खरपतवार पौधों से हवा, पानी, सूर्य की रोशनी और पोषक तत्त्वों के लिए मुकाबला कर के उन की बढ़वार पर असर डाल कर उत्पादकता कम कर देते हैं और कभीकभी फसल को भी नष्ट कर देते हैं. इसलिए ज्यादा उत्पादन के लिए फसलों को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए कुदाली, कुल्फा और खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग कर सकते हैं. इस के अलावा गरमी में गहरी जुताई कर के भी खरपतवार की रोकथाम कर सकते हैं.

सिंचाई प्रबंधन

सिंचाई प्रबंधन सब से महत्त्वपूर्ण होता है. प्रकृति के सीमित साधनों का रखरखाव कर किफायत से पानी इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए खेतों को पूरी तरह समतल कर के चारों तरफ मजबूत मेंड़बंदी करनी चाहिए ताकि खेत का पानी खेत में ही रुक सके.

पानी का सही इस्तेमाल करने के लिए फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं में सिंचाई करनी चाहिए. फसल में जरूरत से ज्यादा पानी न दें और सिंचाई के नए तरीकों जैसे फव्वारा, ड्रिप और पाइपों का इस्तेमाल करें.

फसल संरक्षण

बीजजनित कीटों और रोगों की कारगर रोकथाम के लिए बीज उपचार एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

सभी फसलों के बीजों को बोआई से पहले खास रसायनों से उपचारित करने के बाद बोआई करें. बीजों को पहले फफूंदनाशी, फिर कीटनाशी और आखिर में जीवाणु कल्चर से उपचारित कर बोआई करें.

इस क्रम में किसी प्रकार का बदलाव न करें. कीटों और रोगों की रोकथाम के लिए 3 साल में एक बार गरमी में गहरी जुताई कर के खेत तपने के लिए कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें.

किसी भी तरह का कीटनाशक अपनी इच्छा या विक्रेता के कहने पर इस्तेमाल में नहीं लेना चाहिए. विभिन्न फसलों में संबंधित जानकारों की सलाह से ही रसायनों का इस्तेमाल करें.

रसायनों को खरीदते समय दवा का असर खत्म होने की तारीख जरूर देखें और बिल जरूर लें. मित्र कीटों का रखरखाव करें. प्रकाशपाश व फेरामोनट्रेप को काम में लें. इस से रसायनों का इस्तेमाल कम होगा और बिना रसायनों के कीड़ों की रोकथाम होगी, जिस से लागत में कमी आएगी.

production from crops

फसल बीमा

किसानों की फसल कुदरती आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि से बरबाद हो जाती है, जिस से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. कुदरती कारणों से होने वाले नुकसान की भरपाई का सीधा तरीका है फसल बीमा.

फसल बीमा होने से किसान फसल की नई किस्मों और नई तकनीकों को इस्तेमाल में ले सकते हैं, क्योंकि यह जोखिम बीमा द्वारा रक्षित होता है. भारत सरकार ने देशभर में विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की है.

इन में व्यापक फसल बीमा योजना, प्रायोगिक फसल बीमा, कृषि आय बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना आदि शामिल हैं.

जमीन और फसल की उत्पादकता बढ़ाने और उत्पादन लागत कम करने के लिए निम्न बातों पर गौर करना चाहिए:

* ज्यादा उत्पादन पाने के लिए समय पर बोआई करें.

* प्रमाणित उन्नत बीज ही बोएं, इस से उपज में बढ़ोतरी होती है.

* कम खर्च में निरोग व स्वस्थ फसल पाने के लिए बीजोपचार जरूर करें.

* बारिश का पानी ज्यादा से ज्यादा जमीन के अंदर संरक्षित करने के लिए जुताई व बोआई ढलान के विपरीत करें.

* पौधों की सही संख्या व सही दूरी से अच्छी बढ़वार व उपज पाने के लिए अच्छी बीज दर रखें.

* कतार में बोआई करें और लाइनों की दूरी बराबर रखें.

* फसलें बदलबदल कर बोएं जिस से कीट व रोग में कमी आएगी.

* दलहनी और तिलहनी फसलों में जिप्सम का इस्तेमाल करें.

* मिट्टी की जांच की सिफारिश के अनुसार उर्वरक का इस्तेमाल करें जिस से उर्वरक पर खर्च में कमी आएगी.

* जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए गोबर की खाद, कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट आदि का इस्तेमाल करें.

* रासायनिक उर्वरकों से होने वाले नुकसानों से बचने के लिए जैविक खेती अपनाएं.

* कम पानी की स्थिति में फसल की समयसमय पर सिंचाई करें.

* सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के लिए फव्वारा, ड्रिप व पाइपलाइन का इस्तेमाल करें, जिस से पानी की बचत हो.

* मित्र कीटों का रखरखाव करें. प्रकाशपाश व फेरामोनट्रेप काम में लें. इस से रसायनों का इस्तेमाल कम होगा और बिना रसायनों के कीड़ों की रोकथाम होगी, जिस से लागत में कमी आएगी.

* खरपतवार, रोग व कीट के असर में कमी लाने के लिए गरमी में गहरी जुताई जरूर करें.

* धोखाधड़ी से बचने के लिए खाद, बीज व दवा खरीदते समय बिल जरूर लें. इस से अनाज की गुणवत्ता भी पक्की होगी.

* उपज सुखा कर और अच्छी तरह साफ कर के बाजार में ले जानी चाहिए, जिस से उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके.

* फसल बीमा जरूर करवाएं. इस से फसल जोखिम कम होता है.

* समय, मेहनत और पैसा बचाने के लिए उन्नत कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करें.

* कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाएं, नवीनतम जानकारी लें और समस्या का समाधान पाएं व उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर के उत्पादन बढ़ाएं.

शकरकंद (Sweet Potatoes) सर्दियों से बचाए

सर्दियां शुरू होते ही बाजार में तरहतरह की सब्जियां, फल और कंदमूल आने लगते हैं. सर्दियों से बचाव के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं, इन में गरम कपड़ों से ले कर खानेपीने की चीजें भी हैं. अमीर तो जो चाहे वह खरीद कर खा सकते हैं, लेकिन गरीबों को अपने बजट के हिसाब से खर्च करना पड़ता है. हम आप को बता रहे हैं, ऐसी ही एक चीज जिसे आसानी से खरीद कर खा सकते हैं और सर्दियों में अपने शरीर को गरम रख सकते हैं.

हम बात कर रहे हैं शकरकंद की, जिसे स्वीट पोटैटो भी कहा जाता है. यह ऊर्जा का खजाना है. अकसर लोग इसे आलू से जोड़ कर देखते हैं, लेकिन पोषक तत्त्वों और सेहत के लिहाज से इस के कई फायदे हैं. शकरकंद खाने में मजेदार तो होता ही है, साथ ही काफी फायदेमंद भी है.

शकरकंद का इस्तेमाल सर्दियों में बहुत मुफीद होता है. सर्दियों में कंदमूल ज्यादा फायदेमंद रहते हैं, क्योंकि ये शरीर को गरम रखते हैं. इसलिए सर्दी के मौसम में शकरकंद खाना सेहत के लिए फायदेमंद है.

* शकरकंद विटामिन ‘डी’ का एक अच्छा सोर्स है. यह दांतों, हड्डियों, त्वचा और नसों की बढ़ोतरी और मजबूती के लिए जरूरी है. शकरकंद विटामिन ‘ए’ का भी काफी अच्छा माध्यम है. इस के इस्तेमाल से शरीर की 90 फीसदी तक विटामिन ‘ए’ की पूर्ति होती है.

*             शकरकंद में भरपूर आयरन होता है. आयरन की कमी से हमारे शरीर में ऐनर्जी नहीं रहती, रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और ब्लड सेल्स का निर्माण भी ठीक से नहीं होता. शकरकंद आयरन की कमी को दूर करने में मददगार रहता है.

*             शकरकंद पोटैशियम का अच्छा स्रोत है. यह नर्वस सिस्टम की सक्रियता को सही बनाए रखने के लिए जरूरी है. साथ ही किडनी को भी स्वस्थ रखने में यह खास योगदान देता है.

*             शकरकंद में आयरन, फोलेट, कौपर, मैगनीशियम, विटामिन्स आदि होते हैं. इसे खाने से त्वचा में चमक आती है और चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़तीं. इस में मौजूद विटामिन ‘सी’ त्वचा में कोलाजिन का निर्माण करता है जिस से आप हमेशा जवान और खूबसूरत दिखते हैं.

*             शकरकंद डायट्री फाइबर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर है. शकरकंद खाने में मीठा होता है. इस के इस्तेमाल से खून बढ़ता है, शरीर मोटा होता है साथ ही यह कामशक्ति को भी बढ़ाता है. नारंगी रंग के शकरकंद में विटामिन ‘ए’ सही मात्रा में होता है. शकरकंद में कैरोटीनौयड नामक तत्त्व पाया जाता है जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है.

*             अगर आप का ब्लड शुगर लैवल कुछ भी खाने से तुरंत बढ़ जाता है तो शकरकंद खाना ज्यादा अच्छा है. इसे खाने से ब्लड शुगर हमेशा कंट्रोल रहता है और इंसुलिन बढ़ने नहीं देता.

*             शकरकंद में कैलोरी और स्टार्च की सामान्य मात्रा होती है. वहीं, सैचुरेटेड फैट और कोलेस्ट्रौल की मात्रा इस में न के बराबर रहती है. इस में फाइबर, एंटीऔक्सीडेंट्स, विटामिन और लवण भरपूर होते हैं.

*             शकरकंद में भरपूर मात्रा में विटामिन ‘बी6’ पाया जाता है, जो शरीर में होमोसिस्टीन नाम के अमीनो एसिड के स्तर को कम करने में सहायक होता है. इस अमीनो एसिड की मात्रा बढ़ने पर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.