किसान डीएपी और यूरिया पर निर्भरता करें कम

झाबुआ : कलक्टर नेहा मीना के मार्गदर्शन में उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास एनएस रावत के द्वारा निरंतर प्रयास से जिले के किसानों को उन की आवश्यकता के अनुरूप उर्वरक की आपूर्ति भी की जा रही है और उर्वरक भंडारण एवं वितरण कार्य गतिशील है. अद्यतन स्थिति में जिले में 8927 मीट्रिक टन यूरिया, डीएपी, 2488 मीट्रिक टन, एनपीके 3040 मीट्रिक टन, एमओपी 521 मीट्रिक टन और एसएसपी 1624 मीट्रिक टन भंडारित हो कर जिले के किसानों के लिए उपलब्ध है.

रबी के सीजन में किसानों के द्वारा बोनी के समय आधार डोज के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है. विगत कई वर्षों से यह देखने में आया है कि किसानों द्वारा एक ही प्रकार के उर्वरक जैसे यूरिया, डीएपी, सुपर फास्फेट का ही प्रयोग किया जा रहा है. इस से एक ही प्रकार के उर्वरक के प्रति किसानों की निर्भरता बनी हुई है, जिस की पूर्ति अन्य उर्वरक जैसे 12:32:16 एवं 10:26:26 मिश्रित उर्वरकों का उपयोग कर किसान डीएपी एवं यूरिया पर निर्भरता कम कर सकते हैं. ये मिश्रित उर्वरक समितियों एवं बाजारों में निजी विक्रेताओं के पास भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं.

रबी फसल गेहूं के लिए प्रति हेक्टेयर 120:60:40 किलोग्राम पोषक तत्व नत्रजन, सिंगल सुपर फास्फेट, पोटाश की आवश्यकता होती है. इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किसान पहले विकल्प के रूप में 260 किलोग्राम यूरिया, 375 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 67 किलोग्राम पोटाश उर्वरक का उपयोग कर सकते है.

गेहूं फसल के लिए दूसरे विकल्प के रूप में किसान 168 किलोग्राम यूरिया, 188 किलोग्राम मिश्रित उर्वरक 12:32:16 एवं पोटाश 27 किलोग्राम उर्वरक का उपयोग कर सकते है, वहीं तीसरे विकल्प के रूप में किसान 150 किलोग्राम यूरिया, 20 किलोग्राम मिश्रित उर्वरक 10:26:26 एवं पोटाश 25 किलोग्राम उर्वरक का उपयोग कर सकते हैं. इन तीनों विकल्पों से गेहूं फसल के लिए जरूरी तत्वों की पूर्ति की जा सकती है.

चना फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 20:60:00 किलोग्राम पोषक तत्व नत्रजन एवं सिंगल सुपर फास्फेट की आवश्यकता होती है. इन पोषक तत्वों की पूर्ति करने के लिए पहले विकल्प के रूप में 43 किलोग्राम यूरिया के साथ 375 किलोग्राम सिंगल सुपर फस्फेट का प्रयोग किया जा सकता है. दूसरे विकल्प के रूप में किसान 192 किलोग्राम मिश्रित उर्वरक 12:32:16 का उपयोग कर सकते है. वहीं तीसरे विकल्प के रूप में किसान 100 किलोग्राम यूरिया के साथ 100 मिश्रित उर्वरक 10:26:26 का उपयोग कर सकते है.

कृषि विभाग किसानों से आग्रह करता है कि उच्च गुणवत्ता वाले कृषि आदान उचित मुल्य पर अधिकृत विक्रेताओं से ही खरीदें और पक्का बिल अवश्य लें. अधिक जानकारी के लिए नजदीकी क्षेत्र के मैदानी अमलों, कृषि कार्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.

अमरूद की खेती से हो रही बंपर आमदनी

विदिशा : जिले के प्रगतिशील किसान थान सिंह यादव उद्यानिकी फसलों के प्रेरणास्रोत बने हैं. उन्होंने अपने खेतो में नवाचारों की फसल कर के दूसरे किसानों को इस ओर बढ़ने की लालसा बढ़ाई है. उदयगिरि गुफाओं के पास ही थान सिंह के खेतों में उद्यानिकी फसलें पर्यटकों का ध्यानाकर्षण कर रही हैं.

पर्यावरण में प्रत्यक्ष रूप से योगदान करने वाले किसान थान सिंह यादव ने जब से उद्यानिकी फसलों का दामन पकड़ा है, तब से आमदनी में चौगुना मुनाफा हो रहा है. उद्यानिकी विभाग की योजनाएं, प्रशिक्षण भ्रमण कार्यक्रमों से प्राप्त जानकारियों को सीधे खेतों में उतार कर प्रगतिशील किसान का ओहदा हासिल करने वाले सुनपुरा के किसान शासन की किसान हितैषी योजनाओं से पृथकपृथक प्रगति हासिल की गई है.

किसान थान सिंह यादव द्वारा साल 2017-18 मे उद्यान विभाग की सहायता से अनुदान पर अमरूद की एल-49, इलाहबादी सफेदा किस्म का चयन कर फल अनुसंधान केंद्र, ईटखेडी, भोपाल से पौधे लाए गए और इन को उच्च घनत्व मे 6 बाई 3 मीटर की दूरी पर रोपा गया. विभाग द्वारा अनुदान पर 0.500 हेक्टेयर में अमरूद फलोद्यान एवं ड्रिप लगाई गई. वर्ष 2021-22 से किसान को फलोद्यान से उत्पादन प्राप्त होने लगा. साल 2023 में तकरीबन 1.80 लाख रुपए की आमदनी प्राप्त की गई.

थान सिंह यादव बताते हैं कि ड्रिप लगाने से फलोद्यान मे 25-30 फीसदी उत्पादन बढ़ा. साथ ही, सभी पौधों को समान रूप से पानी उपलब्ध हो पाया, जिस से शतप्रतिशत पौधे जीवित रहे. फलोद्यान के रखरखाव में हर साल 50,000 रुपए खर्च आता है. इस प्रकार 1.20 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त करते हैं, जो कि कृषि फसलों की अपेक्षा दोगुना लाभ दे रही है. प्रगतिशील किसान थान सिंह यादव ने किसान हितैषी योजनाओं का लाभ उठाने का आह्वान किसानों से किया गया.

पराली जलाने की रोकथाम के लिए उड़नदस्‍ते तैनात

चंडीगढ़ : सीएक्यूएम के निर्देशों के तहत पंजाब और हरियाणा राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई व्यापक कार्ययोजनाओं का लक्ष्य खरीफ सीजन 2024 में धान की पराली जलाने की घटनाओं को रोकना है.

पंजाब और हरियाणा राज्यों में धान की कटाई के मौसम के दौरान धान की पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम के लिए एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और निगरानी कार्रवाई को तेज करने के लिए सीएक्यूएम की सहायता करने वाले सीपीसीबी के उड़नदस्ते को 01 अक्तूबर, 2024 से 30 नवंबर, 2024 के दौरान पंजाब और हरियाणा के चिन्हित जिलों में तैनात किया गया है, जहां धान की पराली जलाने की घटनाएं आमतौर पर अधिक होती हैं.

इस तरह से तैनात किए गए उड़नदस्ते संबंधित अधिकारियों/जिला स्तर के अधिकारियों/संबंधित राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारियों के साथ निकट समन्वय में काम करेंगे.

पंजाब के जिन 16 जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं, उन में अमृतसर, बरनाला, बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, फाजिल्का, फिरोजपुर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना, मानसा, मोगा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरनतारन शामिल हैं. वहीं हरियाणा के जिन 10 जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं, उन में अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर शामिल हैं.

उड़नदस्‍ते संबंधित अधिकारियों के साथ निकट समन्वय में जमीनी स्तर की स्थिति का आंकलन करेंगे और दैनिक आधार पर आयोग और सीपीसीबी को रिपोर्ट करेंगे. इस रिपोर्ट में आवंटित जिले में धान की पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी. इस के अलावा सीएक्यूएम जल्द ही पंजाब और हरियाणा में कृषि विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ निकट समन्वय के लिए धान की कटाई के मौसम के दौरान मोहाली/चंडीगढ़ में “धान की पराली प्रबंधन” सेल स्थापित करेगा. दोनों राज्‍यों के विभिन्‍न जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं.

पाम औयल की खेती (Palm Oil Cultivation) पर कार्यशाला

गुवाहाटी: असम के कृषि विभाग द्वारा भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्लू) के सहयोग से आयोजित सतत तेल पाम खेती पर दोदिवसीय राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा और कार्यशाला गुवाहाटी में संपन्न हुई. इस कार्यक्रम में सरकारी निकायों, निजी कंपनियों, किसानों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख हितधारकों को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का आदानप्रदान करने और भारत में सतत तेल पाम खेती को आगे बढ़ाने के लिए एकसाथ लाया गया.

कार्यशाला की अगुआई में, किसानों और तेल पाम उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ एक संवाद सत्र आयोजित किया गया, जिस में तेल पाम उद्योग की चुनौतियों पर चर्चा की और सर्वोत्तम प्रथाओं पर विचारविमर्श किया गया. देश के विभिन्न हिस्सों से तेल पाम किसानों के साथसाथ उद्योग के प्रतिनिधियों ने संवाद सत्र में भाग लिया. इस के बाद राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ खाद्य तेल, तेल पाम (एनएमईओ-ओपी) पर राष्ट्रीय मिशन के कार्यान्वयन में बाधाओं की पहचान करने के लिए राज्य के प्रदर्शन की भौतिक और वित्तीय समीक्षा की गई, जिस से कार्यान्वयन दक्षता में सुधार के लिए भविष्य की कार्रवाई को आकार देने में मदद मिली.

सम्मेलन को संबोधित करते हुए असम के कृषि मंत्री अतुल बोरा ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए टिकाऊ तेल पाम की खेती के रणनीतिक महत्व पर जोर दिया और किसानों को सरकार के निरंतर समर्थन का आश्वासन दिया. उन्होंने असम की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि असम पूरे पूर्वोत्तर और देश में टिकाऊ तेल पाम क्षेत्र को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

भारत सरकार के डीए एंड एफडब्ल्यू के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी ने देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के राष्ट्रीय उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पाम औयल की खेती के महत्व पर प्रकाश डाला और सभी हितधारकों से यह सुनिश्चित करने के लिए एकसाथ आने को कहा कि घरेलू स्तर पर उत्पादित पाम औयल का हिस्सा अगले 5-6 वर्षों में मौजूदा 2 फीसदी से बढ़ कर 20 फीसदी हो जाए.

चर्चा की शुरुआत करते हुए, संयुक्त सचिव (तिलहन), डीए एंड एफडब्ल्यू अजीत कुमार साहू ने एनएमईओ-ओपी के कार्यान्वयन के मुद्दों के बारे में विस्तार से बताया, चुनौतियों से निबटने के लिए राज्यों, किसानों और उद्योग के बीच सहयोग पर जोर दिया.

कार्यक्रम की शुरुआत में असम की कृषि उत्पादन आयुक्त अरुणा राजोरिया ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और विशेष रूप से पूर्वोत्तर में टिकाऊ तेल पाम प्रथाओं को बढ़ावा देने में राज्य की अग्रणी भूमिका को रेखांकित किया.

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा ने पाम औयल की खेती के आर्थिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने प्रौद्योगिकी और टिकाऊ प्रथाओं की भूमिका को बेहतर लाभप्रदता से जोड़ते हुए इस के महत्व पर प्रकाश डाला.

संजय अग्रवाल, पूर्व सचिव डीए एंड एफडब्ल्यू की अध्यक्षता में आयोजित एक महत्वपूर्ण सत्र में एनएमईओ-ओपी के कार्यान्वयन चुनौतियों की जांच की गई. उन्होंने तेल पाम उत्पादन में तेजी लाने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग जगत के नेताओं और किसानों के बीच अधिक समन्वय का आग्रह किया, जिस में नीति और कार्यान्वयन की बाधाओं पर चर्चा की गई.

कार्यशाला में पौधों की गुणवत्ता और तेल की पैदावार में सुधार के लिए शेल जीन तकनीक सहित तकनीकी प्रगति का प्रदर्शन किया गया. उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर मुख्य ध्यान दिया गया, जो तेल पाम की खेती की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है. इस के अतिरिक्त पाम तेल के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी पहलुओं पर चर्चा की गई, गलत धारणाओं को दूर किया गया और इस के लाभों पर प्रकाश डाला गया.

पाम औयल उत्पादक देशों की परिषद (सीपीओपीसी) के प्रतिनिधियों सहित अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने पाम औयल की खेती में वैश्विक रुझानों और विनियामक विकास पर जानकारी प्रदान की. राउंड टेबल सस्टेनेबल पाम औयल (आरएसपीओ) और वर्ल्ड वाइड फंड फौर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने स्थिरता और जलवायु लचीलेपन पर चर्चा में योगदान दिया, भारत के लिए टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने और अन्य क्षेत्रों में अनुभव किए गए पर्यावरणीय नुकसानों से बचने के लिए रणनीतियों को साझा किया.

पाम औयल की खेती (Palm Oil Cultivation)

गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड (जीएवीएल), 3एफ औयल पाम प्राइवेट लिमिटेड, पतंजलि फूड्स लिमिटेड (पीएफएल) और एएके जैसे उद्योग जगत के नेताओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया और औयल पाम मूल्य श्रंखला में अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने भारत में स्थायी औयल पाम उत्पादन को बढ़ाने में निजी क्षेत्र की भूमिका पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से.

कार्यक्रम का समापन सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ हुआ, जिस में भारत में, विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में पाम की खेती के भविष्य की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया. चर्चाओं में डाउनस्ट्रीम उद्योगों और सार्वजनिक-निजी सहयोग की भूमिका पर विचार किया गया, जिस से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल सके.

कार्यशाला से प्राप्त मुख्य बातों से हितधारकों को एनएमईओ-ओपी को लागू करने के लिए अपनी रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद मिलने की उम्मीद है. साथ ही, इस में शामिल सभी लोगों के लिए स्थिरता, लाभप्रदता और आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा.

नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के नेताओं, किसानों और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोग ने भारत में पाम औयल उत्पादन के भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रखी, जिस में पूरे श्रंखला में विकास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया गया.

खादबीज की कालाबाजारी की तो होगी सख्त कार्यवाही

अशेाक नगर : कलक्टर सुभाष कुमार द्विवेदी द्वारा निर्देशित किया गया कि सभी लोग इस बात का ध्यान रखें कि आगामी रवि सीजन को देखते हुए किसान भाइयों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े, इसलिए सही प्रकार से उच्च गुणवत्ता के उर्वरकों का निर्धारित दर पर बिक्री किया जाना सुनिश्चित करें. साथ ही, डीएपी के विकल्प के रूप में एनपीके 20 :20 :0 :13 ,12:32:16, 16: 16 : 16, सिंगल सुपर फास्फेट एवं टीएसपी उर्वरकों से पूर्ति करने के लिए किसान भाइयों को तकनीकी रूप से सलाह दी जाएं. साथ ही, समस्‍त डीलरों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षण भी दिया गया. आने वाले समय में किसानों को पर्याप्त मात्रा में खादबीज उपलब्ध रहे.

बैठक में कलक्‍टर सुभाष द्विवेदी ने निर्देश दिए कि जिले में खादबीज की कालाबाजारी न हो, सुनिश्चित किया जाए. साथ ही, उन्होंने निर्देश दिए कि कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.

उन्होंने यह भी कहा कि जिले में पर्याप्त मात्रा में यूरिया है. यूरिया की कोई कमी नहीं है. साथ ही, उन्होंने कृषि विभाग को निर्देशित किया कि किसानों की मांग के अनुसार डीएपी और एनपीके के प्रस्ताव बना कर शासन को भेजा जाए, जिस से जिले में खाद की कमी न रहे.

उन्होंने आगे कहा कि जिले में किसी प्रकार की कोई नकली खाद न बिके, यह सुनिश्चित किया जाए. बैठक उपसंचालक, कृषि, केएस कैन एवं समस्त वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी और समस्त थोक एवं रिटेलर खादबीज विक्रेता एवं कृषक उत्‍पादन संगठन उपस्थित रहे.

अंधाधुंध कीटनाशकों के चलते बासमती चावल पर गिरी गाज

बासमती ऐक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (बीईडीएफ), मोदीपुरम के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा ने बताया कि रसायनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण बासमती फसल के स्वाद और गुणवत्ता की रक्षा के लिए 10 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

30 जिलों में 10 कीटनाशकों पर प्रतिबंध

उत्तर प्रदेश से बासमती का निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार ने बासमती का उत्पादन करने वाले प्रदेश के 30 जिलों में 10 रासायनिक कीटनाशकों की खरीदबिक्री से ले कर उस के प्रयोग तक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. पूर्व में एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) और उस के बाद प्रदेश के कृषि निर्यात विभाग की अनुशंसा के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है.

कृषि विभाग ने 12 सितंबर को बासमती उत्पादन वाले सभी चिन्हित 30 जिलों में सूचीबद्ध 10 रासायनिक कीटनाशकों को रोक के आदेश जारी कर दिए.

सरकार के इस कदम से विदेशों खासकर यूरोपीय मध्यपूर्व के देशों में उत्तर प्रदेश से बासमती का निर्यात बढ़ जाएगा. बासमती चावल के निर्यात लक्ष्य को पाने में सरकार के सामने सब से बड़ी बाधा प्रदेश के खेतों में अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग है, क्योंकि कई देशों ने यहां के बासमती को उस के उत्पादन में अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग किए जाने के कारण लौटा दिया था. इस से न सिर्फ निर्यातकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, बल्कि प्रदेश और देश की इमेज को भी धक्का लगा था. उत्तर प्रदेश को मांस के बाद बासमती चावल के निर्यात से ही सब से अधिक विदेशी पैसा हासिल होता है.

सब से पहले अमेरिका और ईरान ने बासमती लेने से किया था मना

इन कीटनाशकों पर लगी है रोक :

कार्बनडाजिम, क्लोरोपाइरीफास, ट्राईसाइक्लाजोल, एसीफेट, थाइमैथोक्साम, बुफ्रोफेजिन, इमिडाक्लोप्रिड, प्रोपिकोनाजोल, हैक्साकोनाजोल, प्रोफिनोफास के नाम शामिल हैं.

इन जिलों में लगी है रोक

एपीडा व कृषि निर्यात विभाग की संस्तुति पर सरकार ने बासमती धान का उत्पादन करने वाले जिन 30 प्रमुख जिलों में रासायनिक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया है, उन में आगरा, अलीगढ़, औरैय्या, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, कासगंज, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, इटावा, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड़ आदि शामिल हैं. यह प्रतिबंध अगले 60 दिनों तक प्रभावी रहेगा.

उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने पर ध्यान देने के बावजूद भी बासमती चावल अप्रैलसितंबर, 2019-20 में भारत से निर्यात में 9.6 फीसदी की गिरावट आई है.

किसान, जो वास्तविक निर्माता हैं. उचित बुनियादी ढांचे को क्रम में सुनिश्चित किया जाना चाहिए. खाद्यान्नों का भंडारण करना, ताकि किसानों को परिरक्षकों का उपयोग करने के लिए मजबूर न होना पड़े. किसान कई रोग और कीट प्रतिरोधी/सहनशील किस्मों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. अधिक लाभ कमाने के लिए बाजार में उपलब्ध है. नियामक संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करते हैं, यह अनुपालन भारत करेगा, इस के जैविक विनियमन और ब्रांडिंग के लिए रणनीतियों का भी पता लगाएं. किसान कम में अधिक कमा सकें इनपुट. जैविक भोजन को देखते हुए ऐसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता.

जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी

कोलकाता : केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने पिछले दिनों कोलकाता स्थित आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) का मत्स्यपालन प्रबंधन संबंधी ड्रोन अनुप्रयोग के क्षेत्र में इस संस्थान के अनुसंधान एवं विकास की समीक्षा करने के लिए दौरा किया.

इस कार्यक्रम में वैज्ञानिक, राज्य मत्स्यपालन अधिकारी, मछुआरे और मछुआरियां शामिल हुईं. प्रस्तुति के दौरान, राज्यों के मत्स्यपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, नागर विमानन मंत्रालय, नेफेड, एनसीडीसी, एनईआरएमएआरसी, एसएफएसी, खुदरा विक्रेताओं, स्टार्टअप, मत्स्यपालन अधीनस्थ कार्यालयों, राज्य सरकार के अधिकारियों, एफएफपीओ, सहकारी समितियों आदि को वर्चुअल कौंफ्रेंस के माध्यम से शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है.

ड्रोन प्रदर्शन के दौरान, डा. अभिलक्ष लिखी ने मछलीपालकों और मछुआरों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की, उन के अनुभवों, उन की सफलता की कहानियों और उन के दैनिक कार्यों में आने वाली चुनौतियों को सुना. इस बातचीत ने इस बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की कि कैसे ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी उन की जरूरतों को पूरा कर सकती है, दक्षता में सुधार कर सकती है और मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ा सकती है. साथ ही, उन्हें अपनी आकांक्षाओं और चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच भी प्रदान कर सकती है.

इस मौके पर बोलते हुए सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने कहा कि आईसीएआर-सीआईएफआरआई द्वारा शुरू की गई पायलट परियोजना मछलीपालन के क्षेत्र में नए अवसरों को खोलेगी, जो कम समय और न्यूनतम मानवीय भागीदारी के साथ ताजी मछली के परिवहन के लिए एक प्रभावी और आशाजनक विकल्प प्रदान करेगी और साथ ही मछलियों पर तनाव को कम करेगी.

उन्होंने आगे कहा कि निजी भागीदारी के साथ ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के मछली परिवहन पर अनुसंधान और विकास भी उपभोक्ताओं और किसानों को आपूर्ति श्रंखला प्रणाली में बेहतर स्वच्छ ताजी मछली उपलब्ध कराने में सक्षम बनाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि फरवरी, 2024 में 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) को स्वीकृति दी गई थी, जिस का उद्देश्य साल 2025 तक मत्स्यपालन क्षेत्र के सूक्ष्म उद्यमों और छोटे उद्यमों सहित मछली किसानों, मछली विक्रेताओं को कार्य आधारित पहचान देने के लिए एक राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफार्म (एनएफडीपी) बना कर असंगठित मत्स्यपालन क्षेत्र को औपचारिक रूप देना है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने कहा कि एनएफडीपी के जरीए पीएम-एमकेएसएसवाई संस्थागत ऋण की पहुंच और प्रोत्साहन, जलीय कृषि बीमा की खरीद, सहकारी समितियों को एफएफपीओ बनने के लिए मजबूत करना, ट्रेसबिलिटी को अपनाना, मूल्य श्रंखला दक्षता और सुरक्षा व गुणवत्ता आश्वासन और रोजगार सृजन करने वाली प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रदर्शन अनुदान को सुगम बनाएगा.

उन्होंने आईसीएआर-सीआईएफआरआई और अन्य हितधारकों से ड्रोन आधारित इन अनुप्रयोगों को मछली किसानों तक पहुंचाने के लिए कदम उठाने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि सभी की इन अनुप्रयोगों तक पहुंच हो सके. उन्होंने मत्स्यपालन विभाग से इन सभी मूल्यवान प्रदर्शनों का दस्तावेजीकरण करने और उन को मंत्रालय को भेजने के लिए भी कहा, ताकि उन का इस्तेमाल देशभर के मछली किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए किया जा सके.

इस समीक्षा बैठक में आईसीएआर-सीआईएफआरआई के निदेशक डा. बीके दास ने ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों में संस्थान की उपलब्धियों और प्रगति को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया. मत्स्यपालन में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पर एक स्टार्टअप द्वारा प्रस्तुति भी दी गई.

विभिन्न ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों, जैसे स्प्रेयर ड्रोन, फीड ब्राडकास्ट ड्रोन और कार्गो डिलीवरी ड्रोन का प्रदर्शन आईसीएआर-सीआईएफआरआई और स्टार्टअप कंपनियों द्वारा 100 से अधिक मछुआरों और मछुआरिनों के बीच किया गया.

भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में जलीय संसाधनों की निगरानी और प्रबंधन में कई चुनौतियां हैं, जो जलीय संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रभावी और टिकाऊ योजना बनाने में बाधा डालती हैं. हालांकि आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लगातार बढ़ते विकास के साथ तालमेल रखने के लिए कृषि प्रणाली में हर दिन सुधार हो रहा है, लेकिन उतरी हुई मछलियों के किफायती उपयोग के लिए व्यवस्थित मछली परिवहन में उचित वैज्ञानिक पद्धति, समय दक्षता और लागत प्रभावी साधनों का अभाव है, क्योंकि यह हमारे मत्स्यपालन और मछली प्रसंस्करण उद्योगों के समुचित विकास के लिए एक जरूरी शर्त है. दूरदराज के मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों से लंबी दूरी तक परिवहन के लिए आवश्यक लंबा समय और हैंडलिंग और संरक्षण की कमी से मछलियों को अपूरणीय क्षति हो सकती है. यहां तक कि वे मर भी सकती हैं, जिस से बाजार में उन की कीमत कम हो जाती है और किसानों को भारी नुकसान होता है.

हाल ही में ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी में दूरदराज के स्थानों पर महत्वपूर्ण सामान पहुंचाने, पहुंच बाधाओं को दूर करने और तेजी से डिलीवरी को सक्षम बनाने की जबरदस्त क्षमता है. मत्स्यपालन उद्योग में ड्रोन प्रौद्योगिकी की क्षमता का पता लगाने के लिए, केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग ने आईसीएआर-सीआईएफआरआई को “जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी विकसित करने” संबंधी एक पायलट परियोजना सौंपी है.

यह परियोजना आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई), कोलकाता द्वारा कार्यान्वित की जाएगी, जिस का उद्देश्य 100 किलोग्राम पेलोड वाला ड्रोन डिजाइन करना और विकसित करना है, जो 10 किलोमीटर तक जिंदा मछली ले जा सकेगा.

पराली प्रबंधन : 100 दिनों में 7 बड़ी कृषि योजनाएं मंजूर

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान और किसान संगठनों से संवाद के क्रम की दिल्ली में शुरुआत की. उन्होंने कहा कि मैं ने पहले भी कहा है कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. पिछली बार जब मैं 100 दिन की उपलब्धियों की चर्चा कर रहा था, तब यह तय किया था कि हर मंगलवार को किसान या किसान संगठनों से मिलने का क्रम प्रारंभ करूंगा, क्योंकि कई बार औफिस में बैठ कर समस्याएं समझ में नहीं आती हैं. जिन की समस्याएं हैं, उन से सीधे संवाद करना, चर्चा करना और कोई विषय आए, तो उस का समाधान करना यह हमारा कर्तव्य है. संवाद के दौरान कृषि मंत्रालय व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अधिकारी भी शामिल थे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए लगातार काम हो रहा है. कृषि जगत से जुड़ी अनेक योजनाएं पिछले 10 वर्षों में लागू की गई हैं और ये क्रम जारी है. सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अभी तक 7 बड़ी योजनाएं मंजूर की गई हैं. इन योजनाओं पर केंद्र सरकार 15,000 करोड़ रुपए खर्च करेगी, जिस से किसानों को लाभ मिलेगा.

डिजिटल कृषि मिशन के लिए 2817 करोड़ रुपए दिए जाएंगे और टैक्नोलौजी द्वारा कृषि सुधार जारी रहेंगे. किसानों व देश हित में फैसले लिए जा रहे हैं, किसानों के साथ मिलबैठ कर उन की समस्याओं के समाधान का प्रयास जारी है. पीएम अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम आशा) 35,000 करोड़ रुपए के साथ जारी रखना मंजूर किया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं ने पिछले दिनों अलगअलग किसान संगठनों से बात की है. लगभग 50 किसान नेताओं से भेंट की, उन के अनेकों सुझाव हमें मिले हैं, उन में कुछ फसलों के मूल्य से संबंधित हैं और कुछ फसल बीमा योजना के बारे में हैं. कुछ सुझाव आवारा पशुओं की समस्या और उन के कारण होने वाले नुकसान के बारे में भी है. नई फसल आने पर कौन सी फैसले होनी चाहिए, उस के बारे में भी अनेक सुझाव आए हैं.

उन्होंने कहा कि अधिकारियों के साथ बैठ कर सभी सुझावों पर तत्काल गंभीरतापूर्वक से वर्कआउट करेंगे और वर्कआउट कर के जो हो सकता है वह करने का पूरा प्रयत्न करेंगे. किसानों की भलाई, उन के उत्थान के लिए हम कोई कोरकसर नहीं छोड़ेंगे. सौहार्दपूर्ण माहौल में किसान संगठनों से चर्चा हुई है और मोदी सरकार के कई निर्णयों की किसानों ने प्रशंसा की है.

उन्होंने कहा कि पाम औयल पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा कर 27.5 फीसदी इफेक्टिव हो गई, बासमती से मिनिमम ऐक्सपोर्ट प्राइस हटाई है, प्याज के निर्यात के लिए ऐक्सपोर्ट ड्यूटी 40 फीसदी से घटा कर 20 फीसदी की गई, वैसे ही तुअर, उड़द और मसूर सरकार पूरी खरीदेगी आदि हाल ही में लिए गए कई फैसलों की किसानों ने प्रशंसा की.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान से जो संवाद हम ने प्रारंभ किया है, वह सब के मन को भाया है. यह संवाद लगातार जारी रहेगा. हमारे अपने किसानों से हम बात भी करेंगे और उन की समस्याओं का ईमानदारी से समाधान करने का प्रयास भी करेंगे.

उन्होंने पराली प्रबंधन को ले कर कहा कि कई अनुसंधान हुए हैं, मशीनें भी बनी हैं, किसानों को पराली जलानी नहीं पड़ेगी, काट कर पराली का वेस्ट, वेस्ट नहीं वेल्थ बन जाता है. उस का भी हम बेहतर उपयोग करेंगे, अवेयरनेस क्रिएट कर किसानों को समझाने की कोशिश करेंगे.

मक्का की नई हाइब्रिड किस्म एचक्यूपीएम 28

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल ने चारे के लिए अधिक पैदावार देने वाली उच्च गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्का (एचक्यूपीएम) की संकर किस्म एचक्यूपीएम 28 विकसित की है. यह संकर किस्म फसल मानकों और कृषि फसलों की किस्मों की रिहाई पर केंद्रीय उपसमिति द्वारा भारत में खेती के लिए अनुमोदित की गई है, जिस में उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि यह नई किस्म एचक्यूपीएम 28 अधिक पैदावार देने के साथसाथ उर्वरक के प्रति क्रियाशील भी है. यह किस्म पोषण से भरपूर व प्रमुख रोग मेडिस पत्ती झुलसा रोग के प्रतिरोधी व प्रमुख कीट फाल आर्मी कीट के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी है. इस किस्म की हरे चारे की पैदावार 141 क्विंटल प्रति एकड़ और उत्पादन क्षमता 220 क्विंटल प्रति एकड़ है.

यह किस्म बिजाई के बाद केवल 60-70 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म का हरा चारा पौष्टिकता से भरपूर है, जिस में प्रोटीन 8.7 फीसदी, एसिड डिटर्जेंट फाइबर 42.4 फीसदी, न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर 65 फीसदी और कृत्रिम परिवेशीय पाचन शक्ति 54 फीसदी है. इस किस्म के यह सभी पाचन गुण इसे मौजूदा किस्मों से बेहतर बनाते हैं. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों की टीम को ईजाद की गई इस नई किस्म के लिए बधाई दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि तीनतरफा क्रौस हाइब्रिड होने के कारण इस का बीज उत्पादन किफायती है व क्यूपीएम हाइब्रिड होने के कारण यह पोषण से भरपूर है. इस में आवश्यक अमीनो एसिड लाइसिन और ट्रिप्टोफैन की मात्रा सामान्य मक्का की तुलना में दोगुनी है. क्यूपीएम और नवीनतम हाइब्रिड होने के कारण यह निश्चित है कि यह हाइब्रिड अपनी सिफारिश के क्षेत्र में मौजूदा लोकप्रिय किस्मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. इस के साथ ही यह चारे की बेहतर गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने में भी कारगर साबित हो रहा है.

क्षेत्रीय निदेशक डा. ओपी चौधरी ने एचक्यूपीएम 28 की बोआई का उपयुक्त समय बताते हुए कहा कि इस संकर किस्म को मार्च के पहले सप्ताह से ले कर सितंबर के मध्य तक उगाया जा सकता है. इस किस्म की बंपर पैदावार पाने के लिए जमीन तैयार करने से पहले 10 टन प्रति एकड़ अच्छी गुणवत्ता वाली गोबर की खाद डालनी चाहिए. हरे चारे की उपज को अधिकतम करने के लिए एनपीके उर्वरकों की सिफारिश खुराक 48:16:16 किलोग्राम प्रति एकड़ इस्तेमाल करनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बोआई के समय और नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बोआई के 3-4 सप्ताह बाद डालें.

वैज्ञानिकों की जिस टीम ने इस को विकसित करने में मुख्य योगदान दिया, उन में डा. एमसी कंबोज, प्रीति शर्मा, कुलदीप जांगिड़, पुनीत कुमार, साईं दास, नरेंद्र सिंह, ओपी चौधरी, हरबिंदर सिंह, नमिता सोनी, सोमबीर सिंह और संजय कुमार शामिल हैं.

सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके का करें इस्तेमाल

जयपुर : कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन के सभाकक्ष में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति, उपलब्धता एवं वितरण के बारे में जिलों के विभागीय अधिकारियों के साथ विडियो कौंफ्रेंस का आयोजन किया गया. उन्होंने किसानों द्वारा डीएपी के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके को अधिकाधिक उपयोग में लेने के लिए एवं विभागीय अधिकारियों को इस का प्रचारप्रसार करने के लिए कहा.

कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल ने बताया कि राज्य में इस वर्ष अच्छा मानसून होने से रबी फसलों की बोआई का क्षेत्र बढ़ने के कारण उर्वरकों की अतिरिक्त मांग होगी. राज्य में बोआई के समय उपयोग होने वाले उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं एवं किसानों की मांग के अनुरूप समय पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि उर्वरक आपूर्तिकर्ता कंपनियों एवं विक्रेताओं द्वारा यूरिया एवं डीएपी के साथ अन्य उत्पादों की टैगिंग न की जाए और सभी उर्वरक विक्रेता अपने पास उपलब्ध उर्वरकों का स्टाक मात्रा एवं मूल्य सूची प्रदर्शित करें. यदि इस संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो एफसीओ, 1985 के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी.

चिन्मयी गोपाल ने जिला अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे जिले के उर्वरक विक्रेताओं के पास उपलब्ध स्टाक का पीओएस स्टाक से मिलान कर भौतिक सत्यापन करें. उर्वरक आपूर्तिकर्ता फर्मों के जिला प्रतिनिधियों से समन्वय कर पूरे क्षेत्र में जरूरत के अनुसार समान रूप से उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करें.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जिले में उर्वरकों की कहीं भी कोई कालाबाजारी और जमाखोरी न हो. जिले में उर्वरकों के वितरण पर सतत निगरानी रखते हुए जिले के किसानों को ही उर्वरकों का वितरण करें एवं राज्य के बोर्डर एरिया से उर्वरकों का परिगमन होने से रोकें.

बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि (आदान) डा. सुवा लाल जाट, संयुक्त निदेशक कृषि (आदान)
लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक कृषि (उर्वरक) बीएल कुमावत सहित विभागीय अधिकारी और समस्त अतिरिक्त निदेशक कृषि (विस्तार) खंड व समस्त संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार) जिला परिषद वीडियो कौंफ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहे.