भारतीय मानक ब्यूरो ने राष्ट्रीय कृषि संहिता पर कार्यशाला आयोजित की

नई दिल्ली : भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने राष्ट्रीय कृषि संहिता (एनएसी) के विकास में तेजी लाने के लिए पिछले दिनों एक कार्यशाला आयोजित की. कृषि क्षेत्र के महत्व, संसाधनों और नवीनतम प्रौद्योगिकियों के अधिकतम उपयोग को समझते हुए बीआईएस ने एनएसी विकसित करने का प्रस्ताव रखा, जो फसल चयन से ले कर कृषि उपज के भंडारण तक सर्वोत्तम कार्य प्रणालियां सुनिश्चित करेगा.

एनएसी में उभरती कृषि प्रौद्योगिकियों, नवीन कृषि पद्धतियों और पूरे भारत में बदलती क्षेत्रीय स्थितियों को शामिल करने की परिकल्पना की गई है. इस कोड को विकसित करते समय जिन क्षेत्रों में मानकीकरण की कमी है, उन की पहचान की जाएगी और उन के लिए मानक विकसित किए जाएंगे.

यह कार्यक्रम राष्ट्रीय मानकीकरण प्रशिक्षण संस्थान (एनआईटीएस), नोएडा में आयोजित किया गया था, जिस में केंद्र और राज्य सरकारों, आईसीएआर संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और उद्योग संघों के हितधारकों ने भाग लिया. यह बीआईएस द्वारा विकसित अन्य सफल कोडों जैसे कि राष्ट्रीय भवन संहिता (एनबीसी), निर्माण और बिजली के लिए राष्ट्रीय विद्युत संहिता (एनईसी) की तर्ज पर है.

बीआईएस के महानिदेशक प्रमोद कुमार तिवारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और इस बात पर प्रकाश डाला कि कृषि मशीनरी, उपकरण और जानकारी के लिए मानक मौजूद हैं, लेकिन राष्ट्रीय कृषि संहिता (एनएसी) नीति निर्माताओं को आवश्यक सूचना और किसान समुदाय को मार्गदर्शन प्रदान कर के भारतीय कृषि में गुणवत्ता संस्कृति को सक्षम करने के रूप में काम करेगी. एनएसी के विकास के लिए मुख्य विचारों में इस का दृष्टिकोण, संरचना, जुड़ाव के लिए विभिन्न तरीके, संस्थागत तत्परता और प्रदर्शनों का महत्व शामिल होगा.

बीआईएस के डीडीजी (मानकीकरण) संजय पंत ने कहा कि एनएसी में किसानों के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बना कर भारत के कृषि क्षेत्र को बदलने की अपार संभावनाएं हैं. किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान कर के और कुशल व टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दे कर, एनएसी ग्रामीण भारत में लाखों लोगों की आजीविका में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है.

कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को 7 समूहों में संगठित किया गया, ताकि उन्हें फसल चयन, जमीन की तैयारी, बोआई/रोपाई, सिंचाई/जल निकासी, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, पौधों के स्वास्थ्य प्रबंधन, कटाई/थ्रैशिंग, प्रारंभिक प्रसंस्करण, कटाई के बाद के कामों, स्थिरता, रिकौर्ड रखरखाव, पता लगाने की क्षमता और स्मार्ट कृषि सहित कृषि के विशिष्ट पहलुओं पर गहन जानकारी दी जा सके. कार्यशाला का समापन एनएसी के विकास में योगदान देने के लिए नोडल संगठनों और विशेषज्ञों की पहचान के साथ हुआ.

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था, आजीविका और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20 फीसदी है और 50 फीसदी कार्यबल को रोजगार देती है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 60 फीसदी से अधिक आबादी को कृषि आवश्यक आय और रोजगार के अवसर प्रदान करती है.

भारत का कृषि क्षेत्र चावल, गेहूं, कपास और मसालों सहित दुनिया की प्रमुख फसलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पैदा करता है, जो इसे वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है. इस के अलावा कृषि कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण और अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान कर के भारत के औद्योगिक क्षेत्र का समर्थन करती है.

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और फसल बीमा योजनाओं जैसी पहलों के माध्यम से कृषि विकास पर सरकार का ध्यान किसानों की आजीविका को बढ़ाने, उत्पादकता को बढ़ावा देने और खाद्य उत्पादन में भारत की निरंतर आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है.

अंधाधुंध कीटनाशकों के चलते बासमती चावल पर गिरी गाज

बासमती ऐक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (बीईडीएफ), मोदीपुरम के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा ने बताया कि रसायनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण बासमती फसल के स्वाद और गुणवत्ता की रक्षा के लिए 10 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

30 जिलों में 10 कीटनाशकों पर प्रतिबंध

उत्तर प्रदेश से बासमती का निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार ने बासमती का उत्पादन करने वाले प्रदेश के 30 जिलों में 10 रासायनिक कीटनाशकों की खरीदबिक्री से ले कर उस के प्रयोग तक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. पूर्व में एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) और उस के बाद प्रदेश के कृषि निर्यात विभाग की अनुशंसा के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है.

कृषि विभाग ने 12 सितंबर को बासमती उत्पादन वाले सभी चिन्हित 30 जिलों में सूचीबद्ध 10 रासायनिक कीटनाशकों को रोक के आदेश जारी कर दिए.

सरकार के इस कदम से विदेशों खासकर यूरोपीय मध्यपूर्व के देशों में उत्तर प्रदेश से बासमती का निर्यात बढ़ जाएगा. बासमती चावल के निर्यात लक्ष्य को पाने में सरकार के सामने सब से बड़ी बाधा प्रदेश के खेतों में अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग है, क्योंकि कई देशों ने यहां के बासमती को उस के उत्पादन में अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग किए जाने के कारण लौटा दिया था. इस से न सिर्फ निर्यातकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, बल्कि प्रदेश और देश की इमेज को भी धक्का लगा था. उत्तर प्रदेश को मांस के बाद बासमती चावल के निर्यात से ही सब से अधिक विदेशी पैसा हासिल होता है.

सब से पहले अमेरिका और ईरान ने बासमती लेने से किया था मना

इन कीटनाशकों पर लगी है रोक :

कार्बनडाजिम, क्लोरोपाइरीफास, ट्राईसाइक्लाजोल, एसीफेट, थाइमैथोक्साम, बुफ्रोफेजिन, इमिडाक्लोप्रिड, प्रोपिकोनाजोल, हैक्साकोनाजोल, प्रोफिनोफास के नाम शामिल हैं.

इन जिलों में लगी है रोक

एपीडा व कृषि निर्यात विभाग की संस्तुति पर सरकार ने बासमती धान का उत्पादन करने वाले जिन 30 प्रमुख जिलों में रासायनिक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया है, उन में आगरा, अलीगढ़, औरैय्या, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, कासगंज, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, इटावा, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड़ आदि शामिल हैं. यह प्रतिबंध अगले 60 दिनों तक प्रभावी रहेगा.

उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने पर ध्यान देने के बावजूद भी बासमती चावल अप्रैलसितंबर, 2019-20 में भारत से निर्यात में 9.6 फीसदी की गिरावट आई है.

किसान, जो वास्तविक निर्माता हैं. उचित बुनियादी ढांचे को क्रम में सुनिश्चित किया जाना चाहिए. खाद्यान्नों का भंडारण करना, ताकि किसानों को परिरक्षकों का उपयोग करने के लिए मजबूर न होना पड़े. किसान कई रोग और कीट प्रतिरोधी/सहनशील किस्मों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. अधिक लाभ कमाने के लिए बाजार में उपलब्ध है. नियामक संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करते हैं, यह अनुपालन भारत करेगा, इस के जैविक विनियमन और ब्रांडिंग के लिए रणनीतियों का भी पता लगाएं. किसान कम में अधिक कमा सकें इनपुट. जैविक भोजन को देखते हुए ऐसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता.

जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी

कोलकाता : केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने पिछले दिनों कोलकाता स्थित आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) का मत्स्यपालन प्रबंधन संबंधी ड्रोन अनुप्रयोग के क्षेत्र में इस संस्थान के अनुसंधान एवं विकास की समीक्षा करने के लिए दौरा किया.

इस कार्यक्रम में वैज्ञानिक, राज्य मत्स्यपालन अधिकारी, मछुआरे और मछुआरियां शामिल हुईं. प्रस्तुति के दौरान, राज्यों के मत्स्यपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, नागर विमानन मंत्रालय, नेफेड, एनसीडीसी, एनईआरएमएआरसी, एसएफएसी, खुदरा विक्रेताओं, स्टार्टअप, मत्स्यपालन अधीनस्थ कार्यालयों, राज्य सरकार के अधिकारियों, एफएफपीओ, सहकारी समितियों आदि को वर्चुअल कौंफ्रेंस के माध्यम से शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है.

ड्रोन प्रदर्शन के दौरान, डा. अभिलक्ष लिखी ने मछलीपालकों और मछुआरों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की, उन के अनुभवों, उन की सफलता की कहानियों और उन के दैनिक कार्यों में आने वाली चुनौतियों को सुना. इस बातचीत ने इस बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की कि कैसे ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी उन की जरूरतों को पूरा कर सकती है, दक्षता में सुधार कर सकती है और मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ा सकती है. साथ ही, उन्हें अपनी आकांक्षाओं और चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच भी प्रदान कर सकती है.

इस मौके पर बोलते हुए सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने कहा कि आईसीएआर-सीआईएफआरआई द्वारा शुरू की गई पायलट परियोजना मछलीपालन के क्षेत्र में नए अवसरों को खोलेगी, जो कम समय और न्यूनतम मानवीय भागीदारी के साथ ताजी मछली के परिवहन के लिए एक प्रभावी और आशाजनक विकल्प प्रदान करेगी और साथ ही मछलियों पर तनाव को कम करेगी.

उन्होंने आगे कहा कि निजी भागीदारी के साथ ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के मछली परिवहन पर अनुसंधान और विकास भी उपभोक्ताओं और किसानों को आपूर्ति श्रंखला प्रणाली में बेहतर स्वच्छ ताजी मछली उपलब्ध कराने में सक्षम बनाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि फरवरी, 2024 में 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) को स्वीकृति दी गई थी, जिस का उद्देश्य साल 2025 तक मत्स्यपालन क्षेत्र के सूक्ष्म उद्यमों और छोटे उद्यमों सहित मछली किसानों, मछली विक्रेताओं को कार्य आधारित पहचान देने के लिए एक राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफार्म (एनएफडीपी) बना कर असंगठित मत्स्यपालन क्षेत्र को औपचारिक रूप देना है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने कहा कि एनएफडीपी के जरीए पीएम-एमकेएसएसवाई संस्थागत ऋण की पहुंच और प्रोत्साहन, जलीय कृषि बीमा की खरीद, सहकारी समितियों को एफएफपीओ बनने के लिए मजबूत करना, ट्रेसबिलिटी को अपनाना, मूल्य श्रंखला दक्षता और सुरक्षा व गुणवत्ता आश्वासन और रोजगार सृजन करने वाली प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रदर्शन अनुदान को सुगम बनाएगा.

उन्होंने आईसीएआर-सीआईएफआरआई और अन्य हितधारकों से ड्रोन आधारित इन अनुप्रयोगों को मछली किसानों तक पहुंचाने के लिए कदम उठाने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि सभी की इन अनुप्रयोगों तक पहुंच हो सके. उन्होंने मत्स्यपालन विभाग से इन सभी मूल्यवान प्रदर्शनों का दस्तावेजीकरण करने और उन को मंत्रालय को भेजने के लिए भी कहा, ताकि उन का इस्तेमाल देशभर के मछली किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए किया जा सके.

इस समीक्षा बैठक में आईसीएआर-सीआईएफआरआई के निदेशक डा. बीके दास ने ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों में संस्थान की उपलब्धियों और प्रगति को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया. मत्स्यपालन में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पर एक स्टार्टअप द्वारा प्रस्तुति भी दी गई.

विभिन्न ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों, जैसे स्प्रेयर ड्रोन, फीड ब्राडकास्ट ड्रोन और कार्गो डिलीवरी ड्रोन का प्रदर्शन आईसीएआर-सीआईएफआरआई और स्टार्टअप कंपनियों द्वारा 100 से अधिक मछुआरों और मछुआरिनों के बीच किया गया.

भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में जलीय संसाधनों की निगरानी और प्रबंधन में कई चुनौतियां हैं, जो जलीय संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रभावी और टिकाऊ योजना बनाने में बाधा डालती हैं. हालांकि आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लगातार बढ़ते विकास के साथ तालमेल रखने के लिए कृषि प्रणाली में हर दिन सुधार हो रहा है, लेकिन उतरी हुई मछलियों के किफायती उपयोग के लिए व्यवस्थित मछली परिवहन में उचित वैज्ञानिक पद्धति, समय दक्षता और लागत प्रभावी साधनों का अभाव है, क्योंकि यह हमारे मत्स्यपालन और मछली प्रसंस्करण उद्योगों के समुचित विकास के लिए एक जरूरी शर्त है. दूरदराज के मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों से लंबी दूरी तक परिवहन के लिए आवश्यक लंबा समय और हैंडलिंग और संरक्षण की कमी से मछलियों को अपूरणीय क्षति हो सकती है. यहां तक कि वे मर भी सकती हैं, जिस से बाजार में उन की कीमत कम हो जाती है और किसानों को भारी नुकसान होता है.

हाल ही में ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी में दूरदराज के स्थानों पर महत्वपूर्ण सामान पहुंचाने, पहुंच बाधाओं को दूर करने और तेजी से डिलीवरी को सक्षम बनाने की जबरदस्त क्षमता है. मत्स्यपालन उद्योग में ड्रोन प्रौद्योगिकी की क्षमता का पता लगाने के लिए, केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग ने आईसीएआर-सीआईएफआरआई को “जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी विकसित करने” संबंधी एक पायलट परियोजना सौंपी है.

यह परियोजना आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई), कोलकाता द्वारा कार्यान्वित की जाएगी, जिस का उद्देश्य 100 किलोग्राम पेलोड वाला ड्रोन डिजाइन करना और विकसित करना है, जो 10 किलोमीटर तक जिंदा मछली ले जा सकेगा.

पराली प्रबंधन : 100 दिनों में 7 बड़ी कृषि योजनाएं मंजूर

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान और किसान संगठनों से संवाद के क्रम की दिल्ली में शुरुआत की. उन्होंने कहा कि मैं ने पहले भी कहा है कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. पिछली बार जब मैं 100 दिन की उपलब्धियों की चर्चा कर रहा था, तब यह तय किया था कि हर मंगलवार को किसान या किसान संगठनों से मिलने का क्रम प्रारंभ करूंगा, क्योंकि कई बार औफिस में बैठ कर समस्याएं समझ में नहीं आती हैं. जिन की समस्याएं हैं, उन से सीधे संवाद करना, चर्चा करना और कोई विषय आए, तो उस का समाधान करना यह हमारा कर्तव्य है. संवाद के दौरान कृषि मंत्रालय व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अधिकारी भी शामिल थे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए लगातार काम हो रहा है. कृषि जगत से जुड़ी अनेक योजनाएं पिछले 10 वर्षों में लागू की गई हैं और ये क्रम जारी है. सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अभी तक 7 बड़ी योजनाएं मंजूर की गई हैं. इन योजनाओं पर केंद्र सरकार 15,000 करोड़ रुपए खर्च करेगी, जिस से किसानों को लाभ मिलेगा.

डिजिटल कृषि मिशन के लिए 2817 करोड़ रुपए दिए जाएंगे और टैक्नोलौजी द्वारा कृषि सुधार जारी रहेंगे. किसानों व देश हित में फैसले लिए जा रहे हैं, किसानों के साथ मिलबैठ कर उन की समस्याओं के समाधान का प्रयास जारी है. पीएम अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम आशा) 35,000 करोड़ रुपए के साथ जारी रखना मंजूर किया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं ने पिछले दिनों अलगअलग किसान संगठनों से बात की है. लगभग 50 किसान नेताओं से भेंट की, उन के अनेकों सुझाव हमें मिले हैं, उन में कुछ फसलों के मूल्य से संबंधित हैं और कुछ फसल बीमा योजना के बारे में हैं. कुछ सुझाव आवारा पशुओं की समस्या और उन के कारण होने वाले नुकसान के बारे में भी है. नई फसल आने पर कौन सी फैसले होनी चाहिए, उस के बारे में भी अनेक सुझाव आए हैं.

उन्होंने कहा कि अधिकारियों के साथ बैठ कर सभी सुझावों पर तत्काल गंभीरतापूर्वक से वर्कआउट करेंगे और वर्कआउट कर के जो हो सकता है वह करने का पूरा प्रयत्न करेंगे. किसानों की भलाई, उन के उत्थान के लिए हम कोई कोरकसर नहीं छोड़ेंगे. सौहार्दपूर्ण माहौल में किसान संगठनों से चर्चा हुई है और मोदी सरकार के कई निर्णयों की किसानों ने प्रशंसा की है.

उन्होंने कहा कि पाम औयल पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा कर 27.5 फीसदी इफेक्टिव हो गई, बासमती से मिनिमम ऐक्सपोर्ट प्राइस हटाई है, प्याज के निर्यात के लिए ऐक्सपोर्ट ड्यूटी 40 फीसदी से घटा कर 20 फीसदी की गई, वैसे ही तुअर, उड़द और मसूर सरकार पूरी खरीदेगी आदि हाल ही में लिए गए कई फैसलों की किसानों ने प्रशंसा की.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान से जो संवाद हम ने प्रारंभ किया है, वह सब के मन को भाया है. यह संवाद लगातार जारी रहेगा. हमारे अपने किसानों से हम बात भी करेंगे और उन की समस्याओं का ईमानदारी से समाधान करने का प्रयास भी करेंगे.

उन्होंने पराली प्रबंधन को ले कर कहा कि कई अनुसंधान हुए हैं, मशीनें भी बनी हैं, किसानों को पराली जलानी नहीं पड़ेगी, काट कर पराली का वेस्ट, वेस्ट नहीं वेल्थ बन जाता है. उस का भी हम बेहतर उपयोग करेंगे, अवेयरनेस क्रिएट कर किसानों को समझाने की कोशिश करेंगे.

डिजिटल कृषि मिशन के तहत राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन

नई दिल्ली: भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नई दिल्ली में डिजिटल कृषि मिशन के तहत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) को लागू करने पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन का उद्देश्य कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने के लिए केंद्र व राज्य सहयोग की निरंतरता में डीपीआई के कार्यान्वयन पर चर्चा करना है, जो डिजिटल कृषि मिशन के घटकों जैसे एग्री स्टैक, कृषि डीएसएस, मृदा प्रोफाइल मानचित्रण और अन्य के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करता है, ताकि सेवा वितरण को सुव्यवस्थित किया जा सके और कृषि योजनाओं की दक्षता बढ़ाई जा सके.

देश के सभी हिस्सों के वरिष्ठ अधिकारियों ने सम्मेलन में भाग लिया. यह किसान रजिस्ट्री को लागू करने, विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) योजना निधि का लाभ उठाने और राज्य स्तरीय कार्यान्वयन के साथ राष्ट्रीय प्रयासों के तालमेल के लिए आवश्यक तकनीकी और प्रशासनिक सुधारों को संबोधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच था.

सम्मेलन एक औपचारिक उद्घाटन सत्र के साथ शुरू हुआ, जहां सचिव (डीए एंड एफडब्ल्यू), देवेश चतुर्वेदी ने डिजिटल कृषि मिशन और विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) योजना का अवलोकन प्रस्तुत किया, जिस में प्रौद्योगिकी सक्षमता के माध्यम से कृषि में क्रांति लाने के लिए सरकार के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया. इस के बाद भूमि संसाधन विभाग के सचिव मनोज जोशी ने भूमि सुधारों, किसान रजिस्ट्री और इन सुधारों को लागू करने में राज्यों की भूमिका के बीच तालमेल पर चर्चा की.

किसान रजिस्ट्री कार्यान्वयन के लिए डिजिटल कृषि मिशन और एससीए के दिशानिर्देशों और किसान रजिस्ट्री हैंडबुक का अनावरण डिजिटल कृषि पहल की स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो भारत सरकार द्वारा राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता का संकेत देता है.

डिजिटल कृषि पहल जैसे किसान रजिस्ट्री कार्यान्वयन, डिजिटल फसल सर्वे आदि के बहुमुखी परिदृश्य पर सार्थक चर्चा के लिए इंटरैक्टिव सत्रों की एक श्रंखला बुलाई गई. इन चर्चाओं ने हितधारकों के लिए दृष्टिकोण, अंतर्दृष्टि और अनुभवों का आदानप्रदान करने के लिए एक मंच के रूप में काम किया, जो किसान केंद्रित प्रौद्योगिकी इकोसिस्‍टम के पोषण में राज्यों के मुद्दों और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है. केंद्र और राज्यों ने मुद्दों पर चर्चा की, अपनी शंकाओं को स्पष्ट किया और केंद्र व राज्यों के बीच निर्बाध सहयोग को प्रोत्साहित करने वाले समाधानों पर चर्चा की.

इस सत्र में डा. प्रमोद कुमार मेहरदा, अतिरिक्‍त सचिव (डिजिटल), डीओए एंड एफडब्ल्यू ने किसान रजिस्ट्री कार्यान्वयन पर राज्यों को डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) और एससीए योजना निधि को लागू करने पर एक व्यावहारिक प्रस्तुति दी गई.

वर्षा जोशी, अतिरिक्त सचिव, पशुपालन और डेयरी विभाग ने लाइव स्टैक (पशुधन और पशुपालन क्षेत्र के लिए डीपीआई) को लागू करने के बारे में बात की, जबकि सागर मेहरा, संयुक्त सचिव (मत्स्यपालन) ने एक्वा स्टैक (मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए डीपीआई) और मत्स्यपालन में एकीकृत डिजिटल समाधान के लिए एक दृष्टिकोण प्रदान किया.

दूसरे सत्र में राजीव चावला, मुख्य ज्ञान अधिकारी और सलाहकार, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने इस विषय से संबंधित प्रस्तुति दी.

पहली पैनल चर्चा कृषि स्टैक के हिस्से के रूप में राज्य किसान रजिस्ट्री कार्यान्वयन पर थी, जिस की अध्यक्षता देवेश चतुर्वेदी, सचिव (डीए एंड एफडब्ल्यू) ने की, जिस में वरिष्ठ केंद्रीय और राज्य अधिकारियों की भागीदारी थी.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त सचिव डा. प्रमोद कुमार मेहरदा ने राज्यों के साथ दूसरी पैनल चर्चा की अध्यक्षता की. सत्र में किसान रजिस्ट्री, डिजिटल फसल सर्वे और उन्नत सेवा वितरण, डेटा सटीकता और मौजूदा प्रणालियों में अंतराल को संबोधित करने के लिए रजिस्ट्रियों का समर्थन करने में चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा की गई.

दूसरे सत्र में रुचिका गुप्ता, सलाहकार (डीए), कृषि विभाग द्वारा समर्थन रजिस्टरों को अपनाने पर एक संदर्भ सेटिंग शामिल थी.

तीसरी चर्चा सीकेओएंडए और सलाहकार (डीए) द्वारा लिए गए डिजिटल फसल सर्वे (डीसीएस) को लागू करने के मुद्दों पर केंद्रित थी. मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई और राज्यों को समाधान प्रस्तुत किए गए.

यह कार्यक्रम एग्री स्टैक टैक्निकल टीम के नेतृत्व में तकनीकी चर्चाओं के साथ संपन्न हुआ, जिस में कृषि मूल्य श्रंखला में डीपीआई को आगे बढ़ाने के लिए परिचालन विवरण और भविष्य के रोडमैप पर जोर दिया गया.

सम्मेलन ने न केवल डिजिटल प्रौद्योगिकियों की क्षमता पर गहन विचारविमर्श की सुविधा प्रदान की, बल्कि डिजिटल इंडिया मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की भूमिका को भी रेखांकित किया. रवि रंजन सिंह, निदेशक (डीए) ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

मक्का की नई हाइब्रिड किस्म एचक्यूपीएम 28

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल ने चारे के लिए अधिक पैदावार देने वाली उच्च गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्का (एचक्यूपीएम) की संकर किस्म एचक्यूपीएम 28 विकसित की है. यह संकर किस्म फसल मानकों और कृषि फसलों की किस्मों की रिहाई पर केंद्रीय उपसमिति द्वारा भारत में खेती के लिए अनुमोदित की गई है, जिस में उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि यह नई किस्म एचक्यूपीएम 28 अधिक पैदावार देने के साथसाथ उर्वरक के प्रति क्रियाशील भी है. यह किस्म पोषण से भरपूर व प्रमुख रोग मेडिस पत्ती झुलसा रोग के प्रतिरोधी व प्रमुख कीट फाल आर्मी कीट के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी है. इस किस्म की हरे चारे की पैदावार 141 क्विंटल प्रति एकड़ और उत्पादन क्षमता 220 क्विंटल प्रति एकड़ है.

यह किस्म बिजाई के बाद केवल 60-70 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म का हरा चारा पौष्टिकता से भरपूर है, जिस में प्रोटीन 8.7 फीसदी, एसिड डिटर्जेंट फाइबर 42.4 फीसदी, न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर 65 फीसदी और कृत्रिम परिवेशीय पाचन शक्ति 54 फीसदी है. इस किस्म के यह सभी पाचन गुण इसे मौजूदा किस्मों से बेहतर बनाते हैं. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों की टीम को ईजाद की गई इस नई किस्म के लिए बधाई दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि तीनतरफा क्रौस हाइब्रिड होने के कारण इस का बीज उत्पादन किफायती है व क्यूपीएम हाइब्रिड होने के कारण यह पोषण से भरपूर है. इस में आवश्यक अमीनो एसिड लाइसिन और ट्रिप्टोफैन की मात्रा सामान्य मक्का की तुलना में दोगुनी है. क्यूपीएम और नवीनतम हाइब्रिड होने के कारण यह निश्चित है कि यह हाइब्रिड अपनी सिफारिश के क्षेत्र में मौजूदा लोकप्रिय किस्मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. इस के साथ ही यह चारे की बेहतर गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने में भी कारगर साबित हो रहा है.

क्षेत्रीय निदेशक डा. ओपी चौधरी ने एचक्यूपीएम 28 की बोआई का उपयुक्त समय बताते हुए कहा कि इस संकर किस्म को मार्च के पहले सप्ताह से ले कर सितंबर के मध्य तक उगाया जा सकता है. इस किस्म की बंपर पैदावार पाने के लिए जमीन तैयार करने से पहले 10 टन प्रति एकड़ अच्छी गुणवत्ता वाली गोबर की खाद डालनी चाहिए. हरे चारे की उपज को अधिकतम करने के लिए एनपीके उर्वरकों की सिफारिश खुराक 48:16:16 किलोग्राम प्रति एकड़ इस्तेमाल करनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बोआई के समय और नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बोआई के 3-4 सप्ताह बाद डालें.

वैज्ञानिकों की जिस टीम ने इस को विकसित करने में मुख्य योगदान दिया, उन में डा. एमसी कंबोज, प्रीति शर्मा, कुलदीप जांगिड़, पुनीत कुमार, साईं दास, नरेंद्र सिंह, ओपी चौधरी, हरबिंदर सिंह, नमिता सोनी, सोमबीर सिंह और संजय कुमार शामिल हैं.

सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके का करें इस्तेमाल

जयपुर : कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन के सभाकक्ष में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति, उपलब्धता एवं वितरण के बारे में जिलों के विभागीय अधिकारियों के साथ विडियो कौंफ्रेंस का आयोजन किया गया. उन्होंने किसानों द्वारा डीएपी के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके को अधिकाधिक उपयोग में लेने के लिए एवं विभागीय अधिकारियों को इस का प्रचारप्रसार करने के लिए कहा.

कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल ने बताया कि राज्य में इस वर्ष अच्छा मानसून होने से रबी फसलों की बोआई का क्षेत्र बढ़ने के कारण उर्वरकों की अतिरिक्त मांग होगी. राज्य में बोआई के समय उपयोग होने वाले उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं एवं किसानों की मांग के अनुरूप समय पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि उर्वरक आपूर्तिकर्ता कंपनियों एवं विक्रेताओं द्वारा यूरिया एवं डीएपी के साथ अन्य उत्पादों की टैगिंग न की जाए और सभी उर्वरक विक्रेता अपने पास उपलब्ध उर्वरकों का स्टाक मात्रा एवं मूल्य सूची प्रदर्शित करें. यदि इस संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो एफसीओ, 1985 के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी.

चिन्मयी गोपाल ने जिला अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे जिले के उर्वरक विक्रेताओं के पास उपलब्ध स्टाक का पीओएस स्टाक से मिलान कर भौतिक सत्यापन करें. उर्वरक आपूर्तिकर्ता फर्मों के जिला प्रतिनिधियों से समन्वय कर पूरे क्षेत्र में जरूरत के अनुसार समान रूप से उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करें.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जिले में उर्वरकों की कहीं भी कोई कालाबाजारी और जमाखोरी न हो. जिले में उर्वरकों के वितरण पर सतत निगरानी रखते हुए जिले के किसानों को ही उर्वरकों का वितरण करें एवं राज्य के बोर्डर एरिया से उर्वरकों का परिगमन होने से रोकें.

बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि (आदान) डा. सुवा लाल जाट, संयुक्त निदेशक कृषि (आदान)
लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक कृषि (उर्वरक) बीएल कुमावत सहित विभागीय अधिकारी और समस्त अतिरिक्त निदेशक कृषि (विस्तार) खंड व समस्त संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार) जिला परिषद वीडियो कौंफ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहे.

बजट घोषणाओं (Budget Announcements) को समय पर पूरा करें

जयपुर : डेयरी एवं पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि बजट घोषणा में लिए गए निर्णयों की क्रियान्विति समय पर सुनिश्चित की जाए. वह राजस्थान कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन के साथ डेयरी की बजट घोषणाओं की समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि डेयरी उत्पादों में मिलावटखोरी और अनियमितता को किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं किया जाएगा और जो कोई भी उस में लिप्त पाया जाता है, उस के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाए.

उन्होंने डेयरी उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले में गुणवत्ता नियंत्रण वाहन शुरू करने के निर्देश दिए. उन्होंने दुग्ध उत्पादक संबल योजना के तहत शेष रहे अनुदान की राशि का भी जल्द से जल्द हस्तांतरित करने के निर्देश दिए.

उल्लेखनीय है कि बजट घोषणा के अनुसार राज्य में 2,000 डेयरी बूथ और 1,500 दुग्ध सहकारी समितियां खोली जानी हैं. इस के अलावा 1,000 सरस मित्र बनाने का निर्णय भी बजट घोषणा में लिया गया है. उन्होंने इन सभी घोषणाओं को जल्द से जल्द क्रियान्विति में बदलने के निर्देश अधिकारियों को दिए.

मंत्री जोराराम कुमावत ने बताया कि चित्तौड़, कोट और रानीवाड़ा सहित कुछ डेयरी प्लांट्स अपग्रेड किए जाने हैं, वहीं पाली में 95 करोड़ का पाउडर प्लांट खोला जाना है. पाली में पाउडर प्लांट खोलने के लिए जमीन की पहचान कर ली गई है. जल्द ही इस पर काम भी शुरू हो जाएगा.

बैठक में आरसीडीएफ की प्रबंध संचालक श्रुति भारद्वाज, जयपुर डेयरी के प्रबंध निदेशक दिव्यम कपूरिया, आरसीडीएफ के वित्तीय सलाहकार ललित वर्मा और प्रबंधक संतोष कुमार सहित अन्य अधिकारियों ने भाग लिया.

कृषि वैज्ञानिक किसानों को दें खेती की तकनीकी जानकारी

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की गई. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि फील्ड वर्क कृषि की आत्मा है, इसलिए केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए.

किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए. साथ ही, शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसल उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके. किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है. इस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.
कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू, करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

कोल्ड स्टोरेज लगाने के लिए 1 करोड़ 40 लाख रूपये तक काअनुदान

जयपुर : कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा कृषक उद्यमी या कृषक समूह को कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए तक का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

उन्होंने बताया कि आवेदनकर्ता 4 अक्तूबर तक संबंधित जिले के उद्यानिकी विभाग कार्यालय में आवेदन कर अनुदान का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने पिछले दिनों पंत कृषि भवन के सभा कक्ष में राजस्थान हौर्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोरेज पर राष्ट्रीय हौर्टिकल्चर मिशन योजना के अंतर्गत 250 मीट्रिक टन से ले कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन का कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

कोल्ड स्टोरेज बनाने पर इकाई लागत का 8 हजार रुपए प्रति मीट्रिक टन से गणना कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन पर इकाई लागत का 35 फीसदी या अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है.

बैठक में कोल्ड स्टोरेज व हाईटैक नर्सरी स्थापना के परियोजना प्रस्तावों का पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुतीकरण भी किया गया. आयुक्त कृषि चिन्मयी गोपाल, आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, प्रबंध निदेशक राजस्थान राज्य बीज निगम निमिषा गुप्ता, अतिरिक्त निदेशक उद्यान केसी मीना, सहायक निदेशक रामचंद्र जीतरवाल सहित विभागीय अधिकारी मौजूद रहे.