मक्का की नई हाइब्रिड किस्म एचक्यूपीएम 28

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल ने चारे के लिए अधिक पैदावार देने वाली उच्च गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्का (एचक्यूपीएम) की संकर किस्म एचक्यूपीएम 28 विकसित की है. यह संकर किस्म फसल मानकों और कृषि फसलों की किस्मों की रिहाई पर केंद्रीय उपसमिति द्वारा भारत में खेती के लिए अनुमोदित की गई है, जिस में उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि यह नई किस्म एचक्यूपीएम 28 अधिक पैदावार देने के साथसाथ उर्वरक के प्रति क्रियाशील भी है. यह किस्म पोषण से भरपूर व प्रमुख रोग मेडिस पत्ती झुलसा रोग के प्रतिरोधी व प्रमुख कीट फाल आर्मी कीट के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी है. इस किस्म की हरे चारे की पैदावार 141 क्विंटल प्रति एकड़ और उत्पादन क्षमता 220 क्विंटल प्रति एकड़ है.

यह किस्म बिजाई के बाद केवल 60-70 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म का हरा चारा पौष्टिकता से भरपूर है, जिस में प्रोटीन 8.7 फीसदी, एसिड डिटर्जेंट फाइबर 42.4 फीसदी, न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर 65 फीसदी और कृत्रिम परिवेशीय पाचन शक्ति 54 फीसदी है. इस किस्म के यह सभी पाचन गुण इसे मौजूदा किस्मों से बेहतर बनाते हैं. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों की टीम को ईजाद की गई इस नई किस्म के लिए बधाई दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि तीनतरफा क्रौस हाइब्रिड होने के कारण इस का बीज उत्पादन किफायती है व क्यूपीएम हाइब्रिड होने के कारण यह पोषण से भरपूर है. इस में आवश्यक अमीनो एसिड लाइसिन और ट्रिप्टोफैन की मात्रा सामान्य मक्का की तुलना में दोगुनी है. क्यूपीएम और नवीनतम हाइब्रिड होने के कारण यह निश्चित है कि यह हाइब्रिड अपनी सिफारिश के क्षेत्र में मौजूदा लोकप्रिय किस्मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. इस के साथ ही यह चारे की बेहतर गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने में भी कारगर साबित हो रहा है.

क्षेत्रीय निदेशक डा. ओपी चौधरी ने एचक्यूपीएम 28 की बोआई का उपयुक्त समय बताते हुए कहा कि इस संकर किस्म को मार्च के पहले सप्ताह से ले कर सितंबर के मध्य तक उगाया जा सकता है. इस किस्म की बंपर पैदावार पाने के लिए जमीन तैयार करने से पहले 10 टन प्रति एकड़ अच्छी गुणवत्ता वाली गोबर की खाद डालनी चाहिए. हरे चारे की उपज को अधिकतम करने के लिए एनपीके उर्वरकों की सिफारिश खुराक 48:16:16 किलोग्राम प्रति एकड़ इस्तेमाल करनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बोआई के समय और नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बोआई के 3-4 सप्ताह बाद डालें.

वैज्ञानिकों की जिस टीम ने इस को विकसित करने में मुख्य योगदान दिया, उन में डा. एमसी कंबोज, प्रीति शर्मा, कुलदीप जांगिड़, पुनीत कुमार, साईं दास, नरेंद्र सिंह, ओपी चौधरी, हरबिंदर सिंह, नमिता सोनी, सोमबीर सिंह और संजय कुमार शामिल हैं.

सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके का करें इस्तेमाल

जयपुर : कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन के सभाकक्ष में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति, उपलब्धता एवं वितरण के बारे में जिलों के विभागीय अधिकारियों के साथ विडियो कौंफ्रेंस का आयोजन किया गया. उन्होंने किसानों द्वारा डीएपी के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट एवं एनपीके को अधिकाधिक उपयोग में लेने के लिए एवं विभागीय अधिकारियों को इस का प्रचारप्रसार करने के लिए कहा.

कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल ने बताया कि राज्य में इस वर्ष अच्छा मानसून होने से रबी फसलों की बोआई का क्षेत्र बढ़ने के कारण उर्वरकों की अतिरिक्त मांग होगी. राज्य में बोआई के समय उपयोग होने वाले उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं एवं किसानों की मांग के अनुरूप समय पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि उर्वरक आपूर्तिकर्ता कंपनियों एवं विक्रेताओं द्वारा यूरिया एवं डीएपी के साथ अन्य उत्पादों की टैगिंग न की जाए और सभी उर्वरक विक्रेता अपने पास उपलब्ध उर्वरकों का स्टाक मात्रा एवं मूल्य सूची प्रदर्शित करें. यदि इस संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो एफसीओ, 1985 के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी.

चिन्मयी गोपाल ने जिला अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे जिले के उर्वरक विक्रेताओं के पास उपलब्ध स्टाक का पीओएस स्टाक से मिलान कर भौतिक सत्यापन करें. उर्वरक आपूर्तिकर्ता फर्मों के जिला प्रतिनिधियों से समन्वय कर पूरे क्षेत्र में जरूरत के अनुसार समान रूप से उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करें.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जिले में उर्वरकों की कहीं भी कोई कालाबाजारी और जमाखोरी न हो. जिले में उर्वरकों के वितरण पर सतत निगरानी रखते हुए जिले के किसानों को ही उर्वरकों का वितरण करें एवं राज्य के बोर्डर एरिया से उर्वरकों का परिगमन होने से रोकें.

बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि (आदान) डा. सुवा लाल जाट, संयुक्त निदेशक कृषि (आदान)
लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक कृषि (उर्वरक) बीएल कुमावत सहित विभागीय अधिकारी और समस्त अतिरिक्त निदेशक कृषि (विस्तार) खंड व समस्त संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार) जिला परिषद वीडियो कौंफ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहे.

बजट घोषणाओं (Budget Announcements) को समय पर पूरा करें

जयपुर : डेयरी एवं पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि बजट घोषणा में लिए गए निर्णयों की क्रियान्विति समय पर सुनिश्चित की जाए. वह राजस्थान कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन के साथ डेयरी की बजट घोषणाओं की समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि डेयरी उत्पादों में मिलावटखोरी और अनियमितता को किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं किया जाएगा और जो कोई भी उस में लिप्त पाया जाता है, उस के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाए.

उन्होंने डेयरी उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले में गुणवत्ता नियंत्रण वाहन शुरू करने के निर्देश दिए. उन्होंने दुग्ध उत्पादक संबल योजना के तहत शेष रहे अनुदान की राशि का भी जल्द से जल्द हस्तांतरित करने के निर्देश दिए.

उल्लेखनीय है कि बजट घोषणा के अनुसार राज्य में 2,000 डेयरी बूथ और 1,500 दुग्ध सहकारी समितियां खोली जानी हैं. इस के अलावा 1,000 सरस मित्र बनाने का निर्णय भी बजट घोषणा में लिया गया है. उन्होंने इन सभी घोषणाओं को जल्द से जल्द क्रियान्विति में बदलने के निर्देश अधिकारियों को दिए.

मंत्री जोराराम कुमावत ने बताया कि चित्तौड़, कोट और रानीवाड़ा सहित कुछ डेयरी प्लांट्स अपग्रेड किए जाने हैं, वहीं पाली में 95 करोड़ का पाउडर प्लांट खोला जाना है. पाली में पाउडर प्लांट खोलने के लिए जमीन की पहचान कर ली गई है. जल्द ही इस पर काम भी शुरू हो जाएगा.

बैठक में आरसीडीएफ की प्रबंध संचालक श्रुति भारद्वाज, जयपुर डेयरी के प्रबंध निदेशक दिव्यम कपूरिया, आरसीडीएफ के वित्तीय सलाहकार ललित वर्मा और प्रबंधक संतोष कुमार सहित अन्य अधिकारियों ने भाग लिया.

कृषि वैज्ञानिक किसानों को दें खेती की तकनीकी जानकारी

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की गई. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि फील्ड वर्क कृषि की आत्मा है, इसलिए केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए.

किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए. साथ ही, शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसल उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके. किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है. इस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.
कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू, करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

कोल्ड स्टोरेज लगाने के लिए 1 करोड़ 40 लाख रूपये तक काअनुदान

जयपुर : कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा कृषक उद्यमी या कृषक समूह को कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए तक का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

उन्होंने बताया कि आवेदनकर्ता 4 अक्तूबर तक संबंधित जिले के उद्यानिकी विभाग कार्यालय में आवेदन कर अनुदान का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने पिछले दिनों पंत कृषि भवन के सभा कक्ष में राजस्थान हौर्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोरेज पर राष्ट्रीय हौर्टिकल्चर मिशन योजना के अंतर्गत 250 मीट्रिक टन से ले कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन का कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

कोल्ड स्टोरेज बनाने पर इकाई लागत का 8 हजार रुपए प्रति मीट्रिक टन से गणना कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन पर इकाई लागत का 35 फीसदी या अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है.

बैठक में कोल्ड स्टोरेज व हाईटैक नर्सरी स्थापना के परियोजना प्रस्तावों का पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुतीकरण भी किया गया. आयुक्त कृषि चिन्मयी गोपाल, आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, प्रबंध निदेशक राजस्थान राज्य बीज निगम निमिषा गुप्ता, अतिरिक्त निदेशक उद्यान केसी मीना, सहायक निदेशक रामचंद्र जीतरवाल सहित विभागीय अधिकारी मौजूद रहे.

फास्फेटिक और पोटैशिक उर्वरकों (fertilizers) पर भी सब्सिडी मिलेगी

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रबी फसल सत्र 2024 (1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक) के लिए फास्फेटिक और पोटाश (पीएंडके) उर्वरकों (fertilizers)पर पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) दरें तय करने के उद्देश्य से रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है. इस संबंध में रबी फसल सत्र 2024 के लिए अस्थायी बजटीय आवश्यकता लगभग 24,475.53 करोड़ रुपए होगी.

निर्णय से होने वाले लाभ

इस पहल से किसानों को रियायती, किफायती और उचित मूल्य पर उर्वरकों (fertilizers) की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी. उर्वरकों और निविष्टियों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में हालिया रुझानों को देखते हुए फास्फेटिक और पोटैशिक उर्वरकों पर सब्सिडी को तर्कसंगत बनाया जाएगा.

किसानों को सस्ती कीमतों पर इन उर्वरकों (fertilizers) की सुचारु उपलब्धता सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ रबी सत्र 2024 के लिए अनुमोदित दरों (1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक लागू) के आधार पर फास्फेटिक और पोटैशिक उर्वरकों पर सब्सिडी दी जाएगी.

सरकार उर्वरक निर्माताओं/आयातकों के माध्यम से किसानों को रियायती दरों पर 28 ग्रेड के फास्फेटिक और पोटैशिक  उर्वरक उपलब्ध करा रही है. ऐसे पीएंडके उर्वरकों (fertilizers) पर सब्सिडी 1 अप्रैल, 2010 से पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना द्वारा नियंत्रित होती है. सरकार अपने किसान हितैषी दृष्टिकोण के अनुरूप देश के किसानों को किफायती मूल्यों पर पीएंडके उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

सरकार ने उर्वरकों (fertilizers) और निविष्टियों यानी यूरिया, डीएपी, एमओपी और सल्फर की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में हालिया रुझानों को देखते हुए, रबी 2024 के लिए फास्फेटिक और पोटैशिक (पीएंडके) उर्वरकों (fertilizers) पर 1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक प्रभावी पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना दरों को मंजूरी देने का फैसला किया है. उर्वरक कंपनियों को अनुमोदित और अधिसूचित दरों के अनुसार सब्सिडी प्रदान की जाएगी, ताकि किसानों को सस्ते दामों पर उर्वरक उपलब्ध कराई जा सके.

जीरा और सौंफ की गुणवत्ता पर प्रशिक्षण

जयपुर : जीरा व सौंफ की खेती में गुणवत्ता संवर्धन के लिए पिछले दिनों प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान किसानों को उन्नत खेती की तकनीकों और गुणवत्ता प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई.

भारत सरकार के क्षेत्रीय कार्यालय मसाला बोर्ड, जोधपुर और एफपीओ, बिलाड़ा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सहयोग से यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. मसाला बोर्ड, जोधपुर के उपनिदेशक जुगलदास ने मसाला किसानों को समर्थन देने के लिए मसाला बोर्ड द्वारा दी गई पहले की रूपरेखा प्रस्तुत की. उन्होंने किसानों और बाजारों के बीच खाई को पाटने और मसाला उत्पादन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने में एफपीओ की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया.

मसाला बोर्ड, जोधपुर के डा. श्रीशैल कुल्लोली ने जीरा और सौंफ के लिए उन्नत खेती की तकनीक प्रस्तुत की. मुख्य वक्ता, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के सेवानिवृत्त प्रो. डा. तखतसिंह राजपुरोहित ने जीरा और सौंफ की खेती की विस्तार से चर्चा की. इस में मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, फसल चक्र, उन्नत किस्म के बीज, बोआई का सही समय, सिंचाई प्रबंधन और फसलों में लगने वाले कीट एवं रोगों के लक्षण, पहचान व निदान के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

डा. तखतसिंह राजपुरोहित ने गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जीरा और सौंफ की साफसफाई व रखरखाव पर भी विस्तार से बताया. उन्होंने बीज मसालों में कीटनाशकों एवं रसायनों के अवशेष न रहे, इसलिए मसाला फसलों में जैविक विधियां, जैव उर्वरक, बायोएजेंट, प्लांट प्रोडक्शन एवं आइपीएस (समन्वित कीट प्रबंधन) पर जानकारी दी. भूमि मसाला फसलों के उत्पादन में कीटनाशकों का अवशेष कम होगा, तो अधिक आय होगी. स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होगा, जिस की मांग है.

कार्यक्रम में किसानों की शंका का समाधान एवं प्रश्नों के उत्तर दिए. बिलाड़ा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी के कार्यकारी अधिकारी सलीम अहमद ने बाजार पहुंच व गुणवत्ता सुधार में एफपीओ की भूमिका के बारे में जानकारी दी.

एडीएस, जयपुर के भूराराम चौधरी ने गुणवत्ता संवर्धन प्रथाओं को लागू करने वाले सफल मसाला किसानों की केस स्टडी प्रस्तुत की. गोपाराम, कालूराम, पूसाराम पैनलिस्ट के रूप में पैनल चर्चा आयोजित की गई. इस में तमाम प्रगतिशील किसान मौजूद रहे. एफपीओ के चेयरपर्सन कुन्नाराम काग ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान को मंजूरी

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनजातीय बहुल गांवों और आकांक्षी जिलों में जनजातीय परिवारों के लिए परिपूर्णता लक्ष्य को अपना कर जनजातीय समुदायों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए 79,156 करोड़ रुपए (केंद्रीय हिस्सा: 56,333 करोड़ रुपए और राज्य हिस्सा : 22,823 करोड़ रुपए) के कुल परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान को मंजूरी दी.

बजट भाषण 2024-25 की घोषणा के अनुरूप इस में लगभग 63,000 गांव शामिल होंगे, जिस से 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोगों को लाभ होगा. इस में 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जनजातीय बहुल 549 जिले और 2,740 ब्लौक के गांव शामिल होंगे.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.45 करोड़ है और देशभर में 705 से अधिक जनजातीय समुदाय हैं, जो दूरदराज और पहुंच से दूर क्षेत्रों में रहते हैं. प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान का उद्देश्य भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सामाजिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका में महत्वपूर्ण अंतराल को भरना और पीएम जनमन (प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान) की सीख और सफलता के आधार पर जनजातीय क्षेत्रों एवं समुदायों का समग्र और सतत विकास सुनिश्चित करना है.

इस मिशन में 25 कार्यक्रम शामिल हैं, जिन्हें 17 मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा. प्रत्येक मंत्रालय/विभाग अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएसटी) के तहत उन्हें आवंटित धनराशि के माध्यम से अगले 5 सालों में समयबद्ध तरीके से इस से संबंधित योजना के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी होगा, ताकि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके :

लक्ष्य- 1 : सक्षम बुनियादी ढांचे का विकास

पात्र परिवारों के लिए पक्का घर और अन्य सुविधाएं : पात्र अनुसूचित जनजाति (एसटी) परिवारों को पीएमएवाई (ग्रामीण) के तहत नल के पानी (जल जीवन मिशन) और बिजली आपूर्ति (आरडीएसएस) की उपलब्धता के साथ पक्के घर मिलेंगे. पात्र एसटी परिवारों की आयुष्मान भारत कार्ड (पीएमजेएवाई) तक भी पहुंच होगी.

गांव के बुनियादी ढांचे में सुधार : एसटी बहुल गांवों (पीएमजीएसवाई) के लिए सभी मौसम में बेहतर सड़क संपर्क, मोबाइल कनेक्टिविटी (भारत नैट) और इंटरनैट तक पहुंच प्रदान करना, स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में सुधार के लिए बुनियादी ढांचा (एनएचएम, समग्र शिक्षा और पोषण) सुनिश्चित करना.

लक्ष्य- 2 : आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना
कौशल विकास उद्यमिता को बढ़ावा देना और आजीविका (स्वरोजगार) में सुधार करना : प्रशिक्षण (कौशल भारत मिशन/जेएसएस) तक पहुंच प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना कि एसटी समुदाय के छात्र/छात्राएं हर साल 10वीं/12वीं कक्षा के बाद दीर्घकालिक कौशल पाठ्यक्रमों तक पहुंच प्राप्त करें. इस के अलावा, जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र (टीएमएमसी) के माध्यम से विपणन सहायता, पर्यटक गृह प्रवास, कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के माध्यम से एफआरए पट्टाधारकों को सहायता प्रदान करना.

लक्ष्य- 3 : सभी की अच्छी शिक्षा तक पहुंच
शिक्षा : स्कूल और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाना और जिला/ब्लौक स्तर पर स्कूलों में जनजातीय छात्रावासों की स्थापना कर के एसटी छात्रों (समग्र शिक्षा अभियान) के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सस्ती और सुलभ बनाना.

लक्ष्य- 4 : स्वस्थ जीवन और सम्मानजनक वृद्धावस्था

एसटी परिवारों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करना, शिशु मृत्युदर (आईएमआर), मातृत्व मृत्युदर (एमएमआर) में राष्ट्रीय मानकों को हासिल करना और उन स्थानों, जहां स्वास्थ्य उपकेंद्र मैदानी क्षेत्रों में 10 किलोमीटर से अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 5 किलोमीटर से अधिक हैं, वहां मोबाइल मैडिकल यूनिट के माध्यम से टीकाकरण का कवरेज (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन).

इस अभियान के तहत शामिल जनजातीय गांवों को पीएम गति शक्ति पोर्टल पर मैप किया जाएगा और संबंधित विभाग अपनी योजनानुसार आवश्यकताओं के अंतरों का पता लगाएंगे.. पीएम गति शक्ति प्लेटफार्म पर भौतिक और वित्तीय प्रगति की निगरानी की जाएगी और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले जिलों को पुरस्कृत किया जाएगा.

अन्य कार्यक्रमों को शामिल करके जनजातीय विकास/ पीएमएएजीवाई के लिए एससीए का दायरा बढ़ाना

100 जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र, आश्रम विद्यालयों, छात्रावासों, सरकारी/राज्य जनजातीय आवासीय विद्यालयों की अवसंरचना में सुधार, सिकल सेल रोग (एससीडी) के लिए सक्षमता केंद्र और परामर्श सहायता, एफआरए और सीएफआर प्रबंधन संबंधी उपायों के लिए सहायता, एफआरए प्रकोष्ठों की स्थापना और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले जनजातीय जिलों के लिए प्रोत्साहन के साथ परियोजना प्रबंधन का बुनियादी ढांचा.

जनजातीय क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के आधार पर और राज्यों व अन्य हितधारकों के साथ विचारविमर्श के बाद अभियान ने जनजातीय और वनवासी समुदायों के बीच आजीविका को बढ़ावा देने एवं आय अर्जित करने के लिए कुछ नवीन योजनाएं बनाई हैं.

जनजातीय गृह प्रवास

जनजातीय क्षेत्रों की पर्यटन क्षमता का दोहन करने और जनजातीय समुदाय को वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने के लिए पर्यटन मंत्रालय के माध्यम से स्वदेश दर्शन के अंतर्गत 1,000 गृह प्रवासों को बढ़ावा दिया जाएगा. जिन गांवों में पर्यटन की संभावना है, वहां जनजातीय परिवारों और गांव को एक गांव में 5-10 गृह प्रवासों के निर्माण के लिए वित्त पोषण प्रदान किया जाएगा. प्रत्येक परिवार 2 नए कमरों के बनाने के लिए 5 लाख रुपए और मौजूदा कमरों के पुनर्निर्माण के लिए 3 लाख रुपए तक व ग्राम समुदाय आवश्यकता के लिए 5 लाख रुपए का पात्र होगा.

स्थायी आजीविका वन अधिकार धारक (एफआरए)
इस मिशन का विशेष ध्यान वन क्षेत्रों में रहने वाले 22 लाख एफआरए पट्टाधारकों पर है. जनजातीय कार्य मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (एमओएएफडब्ल्यू), पशुपालन विभाग, मत्स्यपालन विभाग और पंचायती राज मंत्रालय के साथ मिल कर उन्हें विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान किया जाएगा. इन का उद्देश्य वन अधिकारों को मान्यता देने और उन्हें सुरक्षित करने की प्रक्रिया में तेजी लाना, जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना, ताकि वे वनों के रखरखाव और संरक्षण के लिए सक्षम हो सकें और सरकारी योजनाओं के समर्थन के माध्यम से उन्हें स्थायी आजीविका प्रदान कर सकें.

अभियान यह भी सुनिश्चित करेगा कि लंबित एफआरए के दावों में तेजी लाई जाए और जनजातीय कार्य मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय द्वारा ब्लौक, जिला और राज्य स्तर पर सभी हितधारकों एवं अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा.

सरकारी आवासीय विद्यालयों और छात्रावासों के बुनियादी ढांचे में सुधार

जनजातीय आवासीय विद्यालय और छात्रावास दूरदराज के जनजातीय क्षेत्रों को लक्षित करते हैं और स्थानीय शैक्षिक संसाधनों को विकसित करने एवं नामांकन और छात्रों की संख्या को बरकरार रखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं.

अभियान का उद्देश्य पीएम-श्री स्कूलों की तर्ज पर उन्नयन के लिए आश्रम स्कूलों/छात्रावासों/जनजातीय स्कूलों/सरकारी आवासीय विद्यालयों के बुनियादी ढांचे में सुधार करना है.

सिकल सेल रोग के निदान के लिए उन्नत सुविधाएं

प्रसव पूर्व निदान पर विशेष जोर देने के साथ सस्ती और सुलभ नैदानिक एवं एससीडी प्रबंधन सुविधाएं प्रदान करने और भविष्य में इस रोग की व्यापकता को कम करने के लिए एम्स और उन राज्यों के प्रमुख संस्थानों में सक्षमता केंद्र (सीओसी) स्थापित किए जाएंगे, जहां सिकल रोग अधिक हैं और ऐसी प्रक्रियाओं की विशेषज्ञता उपलब्ध है.

सक्षमता केंद्र (सीओसी) स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार प्रसव पूर्व निदान के लिए सुविधाओं, प्रौद्योगिकी, कर्मियों और अनुसंधान क्षमताओं से लैस होगा और इस में 6 करोड़ रुपए/सीओसी की लागत से प्रसव पूर्व निदान के लिए नवीनतम सुविधाएं, प्रौद्योगिकी, कर्मियों और अनुसंधान क्षमताएं होंगी.

जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र

जनजातीय उत्पादों के प्रभावी विपणन और विपणन बुनियादी ढांचे, जागरूकता, ब्रांडिंग, पैकेजिंग एवं परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिए 100 टीएमएमसी स्थापित किए जाएंगे, ताकि जनजातीय तबके के उत्पादकों को उन के उत्पाद/उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और उपभोक्ताओं को जनजातियों से सीधे उचित मूल्य पर उत्पाद खरीदने में सुविधा हो. इस के अलावा इन टीएमएमसी को एकत्रीकरण और मूल्यवर्धन मंच के रूप में डिजाइन करने से उत्पादों की पैदावार के बाद नुकसान को कम करने और उत्पाद मूल्य को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी.

यह अभियान प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान (पीएम-जनमन) की योजना और सफलता के आधार पर बनाया गया है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने15 नवंबर, 2023 को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर पीवीटीजी आबादी पर ध्यान केंद्रित करते हुए 24,104 करोड़ रुपए  के बजट के साथ शुरू किया था.

प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम सहकारी संघवाद का अनूठा उदाहरण है, जहां सरकार पूरी तरह से जनकल्याण के लिए मिल कर काम करती है और इस प्रयास में समन्वय और पहुंच को प्राथमिकता दी जाती है.

एमपीयूएटी विश्वविद्यालय नवाचार और शोध पर कार्य कर रहा काम

उदयपुर : 23 सितंबर, 2024. क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति संभाग चतुर्थ-अ की बैठक अनुसंधान निदेशालय के सभागार में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति की अध्यक्षता में 23 सितंबर, 2024 को कृषि अनुसंधान केंद्र, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर में आयोजित की गई.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 54 पेटेंट प्राप्त किए, जिस में से 25 पेटेंट वर्ष 2024 में प्राप्त किए.

उन्होंने आगे कहा कि औषधीय एवं सुगंधी फसलों एवं जैविक खेती इकाई ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई. विश्वविद्यालय अध्यापन, अनुसंधान, प्रसार एवं उद्यमिता पर काम कर रहा है. साथ ही, यह विश्वविद्यालय नवाचारयुक्त आधुनिक शोध पर काम कर रहा है. अपनी तकनीकियों का वाणिज्यकरण की दिशा में काम करते हुए मक्का की उन्नत किस्म प्रताप मक्का-6 का देश की 7 कंपनियों के साथ समझौता किया.

उन्होंने यह भी बताया कि मक्का की इस किस्म से इथेनोल तैयार हो सकता है, जो कि ग्रीनफ्यूल में उपयोग किया जाएगा. उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि सभी फसलों की जलवायु अनुकूलित नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके.

कुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने संबोधन में कहा कि जैविक खेती के साथ प्राकृतिक खेती पर जोर देना चाहिए, जिस से गुणवत्तायुक्त उत्पाद कम लागत में तैयार हो सके, जिस से कि किसान की जीविका में बढ़ोतरी होगी.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के 2 वैज्ञानिक देशभर के 2 फीसदी वैज्ञानिकों में शामिल हैं. इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों की जरूरतों के लिए छोटेछोटे कृषि उपकरण, बायोचार उपचार के लिए छोटी इकाई का निर्माण आदि किया.

पिछले वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ असालिया एवं मूंगफली की किस्में विकसित की. आज कृषि में स्थायित्व लाने के लिए कीट व बीमारी प्रबंधन एवं जल प्रबंधन पर काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय ने जैविक/प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय पहचान बनाई है. उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक ने विश्वविद्यालय से कहा कि भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के साथ मिल कर अपने भाषण के दौरान उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल इंजीनियरिंग एवं यंत्र अधिगम पर उत्कृष्टता केंद्र पर बल दिया. साथ ही, उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से कहा कि विश्वविद्यालय की आय विभिन्न तकनीकियों द्वारा बढ़ाई जाए.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने बैठक की शुरुआत में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति की बैठक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई तकनीकों का कृषि विभाग के आधिकारियों के साथ मिल कर पैकेज औफ प्रैक्टिस में सम्मिलित की जाती है. विश्वविद्यालय में तकनीकी विकसित करने के लिए 27 अखिल भारतीय समन्वित परियोजना एवं 3 नैटवर्क परियोजनाएं चल रही हैं. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 2 परियोजनाएं चल रही हैं.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने गत वर्ष विभिन्न फसलों की 4 किस्में विकसित की गईं. मक्का परियोजना द्वारा विकसित प्रताप संकर मक्का- 6 देश के 4 राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात के लिए उपयुक्त है. यह किस्म जल्दी पकने वाली (82-85), फूल आने के बाद डंठल का सड़ना रोग मुक्त एवं 65-70 क्विंटल उपज देती है.

डा. आरबी दुबे, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने बीज की समस्या पर कहा कि देश में 51 हजार टन बीज की आवश्यकता है, जिस में से 40 हजार टन बीज ही उपलब्ध है और इस में भी 80-90 फीसदी हिस्सा निजी संस्था उपलब्ध कराती है.

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि कम उपयोग में आने वाली फसलों विशेषकर किकोडा, बालम काकडी, टिंडोरी आदि पर अनुसंधान की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 में एक टन से 380 लिटर इथेनोल प्राप्त किया जा सकता है, जिस की कीमत 55-65 लिटर होती है. प्रताप संकर मक्का चरी- 6 से 300-400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही, बेबीकार्न मक्का भी प्राप्त किया जा सकता है.

डा. आरए कौशिक, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित तकनीकों को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के खेतों पर पहुंचाया जाता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंगफली छीलने वाली मशीन एवं सौर ऊर्जा आधारित मक्का छीलने की मशीन किसानों के यहां बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. उन्होंने जनजाति क्षेत्र में गुणवत्तायुक्त बीज एवं पौध के वितरण पर जोर दिया.

इस बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा डा. राम अवतार शर्मा और संयुक्त निदेशक, उद्यान, भीलवाड़ा एवं संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, संयुक्त निदेशक, कृषि, चित्तौडगढ़, राजसमंद एवं अन्य अधिकारी एवं एमपीयूएटी के वैज्ञानिकों ने भाग लिया.

बैठक के प्रारंभ में डा. राम अवतार शर्मा, अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा ने गत रबी में वर्षा का वितरण, बोई गई विभिन्न फसलों के क्षेत्र एवं उन की उत्पादकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने संभाग में विभिन्न फसलों में रबी 2023 के दौरान आई समस्याओं को बताया और अनुरोध किया कि वैज्ञानिक इन के समाधान के लिए उपाय सुझावें. साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्नत बीज, वैज्ञानिक एवं प्रसार अधिकारियों द्वारा तकनीकियों का प्रसार, फसल विविधीकरण एवं मूल्य संवर्धित उत्पाद के बारे में बताया.

क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. अमित त्रिवेदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बैठक को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की जानकारी दी और कृषि संभाग चतुर्थ अ की कृषि जलवायु परिस्थितियों व नई अनुसंधान तकनीकों के बारे में प्रकाश डाला.

डा. अमित त्रिवेदी ने संभाग की विभिन्न फसलों में आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.

बैठक में डा. मनोज कुमार महला, निदेशक, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. बीएल बाहेती, निदेशक, आवासीय एवं निर्देशन एवं गोपाल लाल कुमावत, संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, महेश चेजारा, संयुक्त निदेशक उद्यान, भीलवाड़ा, दिनेश कुमार जागा, संयुक्त निदेशक कृषि, चित्तौड़गढ, ग्राह्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, चित्तौड़गढ़, डा. शंकर सिंह राठौड़, पीडी, आत्मा, भीलवाड़ा, रमेश आमेटा, संयुक्त निदेशक, शाहपुरा, रविंद्र वर्मा, संयुक्त निदेशक उद्यानिकी एवं डा. रविकांत शर्मा, उपनिदेशक, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर उपस्थित थे.

इस बैठक में विभिन्न वैज्ञानिकों व अधिकारियों द्वारा गत रबी में किए गए अनुसंधान एवं विस्तार कार्यों का प्रस्तुतीकरण किया गया और किसानों को अपनाने के लिए सिफारिशें जारी की गईं. कार्यक्रम के अंत में अनुसंधान निदेशालय के सहायक आचार्य डा. बृज गोपाल छीपा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

मत्स्यपालन विभाग में विशेष अभियान

नई दिल्ली : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्यपालन विभाग प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) की पहल विशेष अभियान 4.0 की तैयारियों में है. 2 अक्तूबर से 31 अक्तूबर, 2024 तक चलाए जाने वाले इस अभियान का उद्देश्य स्वच्छता को संस्थागत बनाना और सरकारी कार्यालयों में लंबित मामलों में कमी लाना है. विशेष अभियान 4.0 को 2 चरणों में चलाया जाएगा, जिन में 16 सितंबर से 30 सितंबर, 2024 तक प्रारंभिक चरण और 2 अक्तूबर से 31 अक्तूबर, 2024 तक कार्यान्वयन चरण शामिल है.

मत्स्यपालन विभाग स्वच्छता को बढ़ावा देने, लंबित संदर्भों के निबटान में तेजी लाने और अभिलेखों के प्रबंधन को सुव्यवस्थित बनाने से संबंधित इस राष्ट्रव्यापी पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह अभियान कार्यालय में जगह के बेहतर प्रबंधन और परिचालन दक्षता के माध्यम से शासन में सुधार लाने के सरकार के व्यापक विजन के अनुरूप है.

विशेष अभियान 4.0 की तैयारी के लिए मत्स्यपालन विभाग के सचिव अभिलक्ष लिखी ने मत्स्यपालन विभाग के संयुक्त सचिव (प्रशासन) सागर मेहरा और विभाग के अन्य अधिकारियों के साथ एक तैयारी बैठक की अध्यक्षता की. इस बैठक में विभागीय स्तर पर और साथ ही सभी फील्ड कार्यालयों/इकाइयों में अभियान के दौरान गतिविधियों और अभियान की योजना और क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया.

इस के अतिरिक्त मत्स्यपालन विभाग के संयुक्त सचिव सागर मेहरा ने भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण (एफएसआई), केंद्रीय मत्स्यपालन तटीय इंजीनियरिंग संस्थान (सीआईसीईएफ), राष्ट्रीय मत्स्यपालन पोस्टहार्वेस्ट प्रौद्योगिकी एवं प्रशिक्षण संस्थान (एनआईपीएचएटीटी), राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), केंद्रीय मत्स्य नौचालन एवं इंजीनियरी प्रशिक्षण संस्थान (सिफनेट), तटीय जलीय कृषि प्राधिकरण (सीएए) सहित विभाग की क्षेत्रीय इकाइयों के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की. बैठक में इन संस्थानों में विशेष अभियान के लिए चल रही तैयारियों का आकलन किया गया.

Fisheries

कार्यान्वयन चरण के दौरान विभाग लंबित संदर्भों के निबटान के लिए विशेष अभियान चलाएगा, जिस में निम्‍नलिखित पर विशेष ध्यान दिया जाएगा :

-मंत्रियों, संसद सदस्यों, राज्य सरकारों, अंतरमंत्रालयी संचार, पीएमओ संदर्भ, लोक शिकायत और संसदीय आश्वासनों से लंबित संदर्भों का निपटान.

-केंद्रीय सचिवालय कार्यालय प्रक्रिया मैनुअल (सीएसएमओपी) और सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 के अनुपालन में भौतिक फाइलों/अभिलेख की समीक्षा, अभिलेखन और छंटाई.

-कार्यालय में स्थान खाली करने के लिए अनुपयोगी स्टोर और कार्यालय उपकरणों को अलग करना और उन का निबटान करना, कार्यालय आवास और परिसरों में स्वच्छता को बढ़ावा देना, अव्यवस्था में कमी लाना और कामकाज के लिए सुव्‍यवस्थित और उपयोगी वातावरण सुनिश्चित करना.

अभियान की तैयारी के लिए सचिव (मत्स्यपालन) ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ नई दिल्ली में कृषि भवन और चंद्रलोक भवन में विभाग के कार्यालयों का निरीक्षण किया. निरीक्षण में विभिन्न अनुभागों/इकाइयों में पुरानी फाइल/अभिलेख, अनुपयोगी स्टोर और पुरानी पत्रिकाओं/अख़बारों का ढेर पाया गया. अभिलेख प्रबंधन में सुधार और कार्यालय स्थान के कुशल उपयोग के लिए पुराने अभिलेख /फाइलों और स्टोर को समय पर अलग करने और निबटान सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश जारी किए गए.

विशेष अभियान 4.0 कार्यालय के बेहतर प्रबंधन, स्वच्छता और लंबित मामलों के त्वरित समाधान के माध्यम से शासन में सुधार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है. मत्स्यपालन विभाग स्वच्छता को अपनी संगठनात्मक संस्कृति का स्थायी हिस्सा बनाने के लिए है और एक स्वच्छ और अधिक कुशल कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए अभियान में सक्रिय रूप से शामिल होना जारी रखेगा.