बागानों में फलदार पेड़ों के नीचे खरपतवार को हटाने की समस्या बनी रहती है, जिस के लिए किसानों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है. इस पर ज्यादा मेहनत और रकम भी खर्च होती है. हाथ के औजारों से खरपतवार सही तरीके से हट भी नहीं पाती. यही वजह है कि वहां फिर से खरपतवार पैदा होने का डर बना रहता है. इस तरीके से खरपतवार हटाने में जमीन भी उपजाऊ नहीं बन पाती है. अगर इस के स्थान पर इंटरकल्टीवेटर का उपयोग किया जाए, तो यह ज्यादासुविधाजनक और सस्ता होने के साथ जमीन ज्यादा उपजाऊ बन सकती है.
एग्रीकल्चरर इंटरकल्टीवेटर डीजल या पैट्रोल से चलता है. इसे हाथ से चला कर किसान फलदार पेड़ों के नीचे उगी खरपतवार को पूरी तरह हटा देता है. साथ ही, जमीन को भी उपजाऊ बना देता है. इस की वजह से पेड़ों को पर्याप्त पोषण मिलने की वजह से उन में ज्यादा फल लगते हैं, जिस से किसान की आमदनी बढ़ जाती है.
इंटरकल्टीवेटर में लगे रोटर खरपतवार को काट कर जमीन में मिला देते हैं, जो पेड़ों के लिए खाद का काम करती है. इस कल्टीवेटर को आसानी से इधरउधर घुमा कर पेड़ के नीचे और आसपास उगी खरपतवार पूरी तरह टुकड़ेटुकड़े हो कर मिट्टी में मिल जाती है. जब पानी दिया जाता है, तो खरपतवार के टुकड़े उपजाऊ खाद में बदल जाते हैं. इंटरकल्टीवेटर से खरपतवार साफ करना भी ज्यादा सुविधाजनक होने के साथ सस्ता भी है. एक पेड़ के नीचे से मजदूरों द्वारा खरपतवार हटाने में तकरीबन 30-40 रूपए का खर्चा आता है, जबकि इंटरकल्टीवेटर से खरपतवार हटाने में 10 रुपए से भी कम का खर्चा होता है.
पेड़ों के नीचे के अलावा इन के बीच में बनी जमीन को भी इंटरकल्टीवेटर उपजाऊ बना देता है, क्योंकि कल्टीवेटर में लगे रोटर जमीन को खोद कर उसे इस तरह मिला देते हैं कि जमीन के गुणकारी तत्त्व मिट्टी में बने रहते हैं.
भरतपुर की लुपिन फाउंडेशन संस्था ने वैर पंचायत समिति क्षेत्र के नयावास और गोठरा गांव के 16 किसानों को एग्रीकल्चरर इंटरकल्टीवेटर अनुदान पर मुहैया कराए हैं.
वैसे, इंटरकल्टीवेटर ज्यादामंहगा भी नहीं आता. भारत में निर्मित कंपनियां किसानों को तकरीबन 35,000 रुपए में मुहैया करा रही हैं, जिस में घंटेभर में तकरीबन 1लिटर डीजल की खपत होती है. इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल लीची, अनार, अमरूद, नीबू वगैरह बागानों में किया जाता है, क्योंकि इन फलदार पौधों के तने काफी नीचे तक फैल जाते हैं. इन पेड़ों के नीचे उगी खरपतवार को हटाने में काफी परेशानी होती है.
गोठरा गांव के बागान मालिक भगवान सिंह ने बताया कि इंटरकल्टीवेटर हासिल हो जाने के बाद उसे पेड़ों के नीचे निराईगुड़ाई करने में आसानी हुई है और उत्पादन भी तकरीबन 25 फीसदी तक बढ़ गया है. इसी तरह गोठरा के मान सिंह तो खरपतवार से काफी परेशान था, जिसे इंटरकल्टीवेटर मिलने के बाद वह एक दिन में ही पूरे बागान के पेड़ों के नीचे पैदा हुई खरपतवार को हटाने में सक्षम हो गया है. इस के अलावा वह आसपास की जमीन को भी इंटरकल्टीवेटर के माध्यम से खुदाई कर उपजाऊ बना रहा है.
अब खेती में बोआई से कटाई तक हर कदम पर मशीनें काम आती हैं. इन के इस्तेमाल से वक्त, पैसा और मेहनत बचती है, पैदावार व कमाई बढ़ती है. खेती की मशीनें किसानों की तरक्की में मददगार साबित हुई हैं.
पहले किसान हल, बैल, कुदाल, हंसिया, खुरपी व फावड़े से खेती करते थे, जिन से काम कम होता था. धीरेधीरे खेती के तौरतरीके बदले. सुधरे हुए औजार और मशीनों का चलन बढ़ा. इन से खेती के मशक्कत भरे काम आसान हुए. लेकिन बड़ी मशीनें खरीदना सब के लिए आसान नहीं है.
बहुत से किसानों को खेती की मशीनें खरीदने के लिए तगड़े सूद पर कर्ज लेना पड़ता है. ऐसे में सम झदारी से काम लेना जरूरी है. अगर सोचसम झ कर कदम न उठाएं तो कई बार मशीनें फायदे की जगह नुकसान का सबब बन जाती हैं.
बहुत से किसानों ने बैंक से कर्ज ले कर ट्रैक्टर खरीदे और उस की किस्त चुकाने में अपनी जमीन गंवा बैठे. अपनी शान दिखाने के लिए फुजूल का दिखावा व दूसरों की देखादेखी कभी न करें. अपनी जेब व जरूरत के मुताबिक फैसला करें कि कब, कहां से कौन सी मशीन खरीदनी है.
बाजार में बहुत सी कंपनियों की मशीनें मौजूद हैं. कंपनियां किसान मेलों वगैरह में अपने स्टौल लगाती हैं, अपने इश्तिहार देती हैं. तसल्ली से पहले पूरी जानकारी करें, ताकि वाजिब दाम में सब से बेहतर मशीन खरीद सकें.
मशीन का मौडल, कूवत, कीमत व खासीयत पता करें. हमेशा किसी अच्छी साख वाली दुकान या कंपनी की एजेंसी से ही मशीन खरीदें, ताकि धोखाधड़ी की गुंजाइश न रहे.
सस्ती लोकल मशीनें हलकी होने के चलते जल्दी खराब होती हैं या वे अचानक कभी भी बीच में धोखा दे जाती हैं और काम रुक जाता है. उन में टूटफूट व मरम्मत का खर्च भी ज्यादा होता है.
आईएसआई या आईएसओ जैसे क्वालिटी निशान लगी मशीनों को तरजीह दें. खरीद के वक्त मशीन के नटबोल्ट और बौडी चैक करें. हो सके तो उसे चला कर देखें और खासकर भीतरी हिस्सों पर नजर डाल लें.
इस्तेमाल की हिदायतों का मैनुअल, तारीख, दस्तखत व मोहर लगा गारंटी कार्ड व पक्की रसीद जरूर लें और उसे संभाल कर रखें.
मशीनों की सही देखभाल
ज्यादातर किसान खेती में काम आने वाली मशीनों की खास परवाह नहीं करते और वे उन को ठीक से इस्तेमाल भी नहीं करते. धूलकीचड़ में सनी मशीनें यों ही खुले में खड़ी रहती हैं.
खुले में बारिश व धूप की मार सहती रहती हैं. उन्हें धो, पोंछ व सुखा कर, साफसुथरी पौलीथिन से ढक कर किसी छायादार जगह पर रखें. खराबी होने पर किसी अच्छे मेकैनिक को दिखाया जाए, तो मशीनें वक्त पर धोखा नहीं देतीं.
खेती में काम आने वाली मशीनों की सही देखभाल करना कोई महंगा या मुश्किल काम नहीं है. अगर किसान चाहें तो वे इसे आसानी से कर सकते हैं. पड़ोसी देश चीन के किसान इस मामले में बहुत आगे हैं. वे अपनी मशीनों का मोल पहचानते हैं. उन को जान से ज्यादा संभाल कर रखते हैं और ज्यादा फायदा उठाते हैं.
महंगाई के दौर में किसान अगर मशीनों की खरीद, उन के इस्तेमाल व रखरखाव में पूरी सावधानी बरतें, तो वे मशीनों से अपना काम करने के अलावा किराए पर चला कर और फायदा उठा सकते हैं.
फसल की कटाई का ज्यादातर काम हंसिए से किया जाता है. एक हेक्टेयर फसल की एक दिन में कटाई के लिए 20-25 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. फसल पकने के बाद के कामों में लगने वाले कुल मजदूरों का 65-75 फीसदी, फसलों की कटाई और बाकी उन्हें इकट्ठा करने, बंडल बनाने, ट्रांसपोर्ट व स्टोर वगैरह में खर्च होता है. इन सभी कामों को पूरा करने में फसल को कई तरह के नुकसान भी होते हैं.
अगर फसल की कटाई समय पर न की जाए तो नुकसान और भी बढ़ सकता है. कटाई से जुड़ी मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की कमी को पूरा किया जा सकता है और इस से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. फसल कटाई की एक खास मशीन वर्टिकल कनवेयर रीपर है.
फसल कटाई यंत्र रीपर
फसलों की कटाई करने के लिए वर्टिकल कनवेयर रीपर बहुत ही कारगर मशीन है. इस के द्वारा कम समय में ज्यादा फसल कम खर्च पर काटी जा सकती है. मजदूरों की बढ़ती परेशानी के चलते यह वर्टिकल कनवेयर रीपर और भी कारगर साबित हो रहा है.
ट्रैक्टर से चलने वाले इस रीपर की अपनी कुछ खासीयतों के चलते यह दूसरी कटाई मशीनों से अलग है.
इस मशीन से फसलों की बाली मशीन के संपर्क में नहीं आती. इस से फसल के टूटने से होने वाला नुकसान कम होता है. यह रीपर कटाई के बाद फसलों को एक दिशा में लाइन में रखता है, जिस से फसलों को इकट्ठा करना व बंडल बनाना आसान हो जाता है.
इस मशीन को ट्रैक्टर के द्वारा जरूरत के मुताबिक ऊपरनीचे किया जा सकता है. खड़ी फसल को एक सीध में पंक्ति बना कर रखा जाता है और स्टार ह्वील फसलों को कटरबार की तरफ ढकेलता है. उस के बाद कटरबार खड़ी फसल की कटाई कर देता है.
रीपर का इस्तेमाल उन्हीं फसलों की कटाई के लिए किया जाता है, जिन के बीच में कोई दूसरी फसल न बोई गई हो. कटाई के बाद बैल्ट कनवेयर की मदद से कटी फसल को मशीन की दाहिनी दिशा में ले जाया जाता है. उसे लाइन से मशीन की दिशा में जमीन पर रखता जाता है.
आमतौर पर एक हेक्टेयर गेहूं की फसल की एक घंटे की कटाई व मढ़ाई के लिए 48 मजदूरों की जरूरत होती है, जबकि वर्टिकल कनवेयर रीपर द्वारा इस काम के लिए 3-4 मजदूरों की ही जरूरत होती है. इस के इस्तेमाल से किसान फसलों से भूसा भी हासिल कर सकते हैं, जबकि कंबाइन से कटाई के बाद भूसा नहीं मिलता है. किसान इसे अपना कर समय, पैसा और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं.
रीपर का रखरखाव
अगर रीपर चलाने में परेशानी हो तो रीपर के कटरबार पर लंबाई के मुताबिक वजन कम होना चाहिए. छुरी पैनी न हो, तो उन्हें पैना करवाना चाहिए या बदल कर नया लगाना चाहिए. अगर रीपर से कटाई एकजैसी नहीं हो रही हो तो यह देखना चाहिए कि लेजर प्लेट कहीं से टूटी तो नहीं है. और अगर ऐसा है तो प्लेट बदल देनी चाहिए. मशीन को चलाते समय सभी नटबोल्ट अच्छी तरह से कसे होने चाहिए व दोनों कनवेयर बैल्ट और स्टार ह्वील आसानी के साथ बिना रुकावट के चलना चाहिए.
मशीन के सभी घूमने वाले भागों में अच्छी तरह से ग्रीस या तेल डालते रहना चाहिए. छुरों के धार को समयसमय पर तेज करते रहना चाहिए. खेत में काम पूरा करने के बाद कटरबार की सफाई करना बहुत जरूरी होता है. मशीन के काम करते समय इस के नजदीक किसी भी इनसान को नहीं होना चाहिए, वरना दुर्घटना घट सकती है.
कल्टीवेटर
कल्टीवेटर खेती की बहुत ही कारगर मशीन है. नर्सरी की तैयारी के बाद या खेत में फसल बोने से ले कर कटाई के समय तक के सभी काम जल्दी और आसानी से कल्टीवेटर करता है.
कल्टीवेटर का इस्तेमाल लाइन में बोई गई फसलों के लिए ही होता है. यह निराई करने की खास मशीन है. पावर के आधार पर कल्टीवेटर हाथ से चलाने वाला, पशु चलित व ट्रैक्टर से चलने वाले होते हैं.
बनावट के आधार पर खुरपादार, तवेदार और सतही कल्टीवेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं.
ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर कमानीदार, डिस्क व खूंटीदार होते हैं. इस की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन में एक लोहे के फ्रेम में छोटेछोटे नुकीले खुरपे लगे होते हैं, जो कि निराई का काम करते हैं. निराई के अलावा कल्टीवेटर जुताई व बोआई के लिए तभी किया जाता है, जब खेत अच्छी तरह जुता हुआ हो. कल्टीवेटर से निराई का काम करने के लिए फसलों को लाइन में बोना जरूरी होता है.
लाइनों की चौड़ाई के मुताबिक कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है. कल्टीवेटर से काम करने के लिए 2 आदमियों की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस के इस्तेमाल से समय, पैसा व मजदूरी की बचत होती है.
कल्टीवेटर का काम
खेत में छिटकवां विधि से बीज बोने के बाद कल्टीवेटर से हलकी जुताई कर दी जाती है, जिस से बीज कम समय में मिट्टी में मिल जाते हैं. जो फसल लाइनों में तय दूरी पर बोई जाती है, उन की निराईगुड़ाई करने के लिए कल्टीवेटर बड़े काम का है.
गन्ना, कपास, मक्का वगैरह की निराईगुड़ाई कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा कर के या 1-2 खुरपों को निकाल कर की जाती है.
जुते हुए खेतों में कल्टीवेटर का इस्तेमाल करने से खेत की घास खत्म होती है. मिट्टी भुरभुरी हो जाती है व मिट्टी में नीचे दबे हुए ढेले ऊपर आ कर टूट जाते हैं.
कल्टीवेटर पर बीज बोने का इंतजाम कर के गेहूं जैसी फसलों को लाइन में बोया जा सकता है. इस में 3 या 5 कूंड़े एकसाथ बोए जाते हैं और देशी हल के मुकाबले कई गुना ज्यादा काम होता है.
खेत में गोबर या कंपोस्ट वगैरह खाद बिखेर कर कल्टीवेटर की मदद से उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है.
मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने के लिए कल्टीवेटर की बाहर की 2 शावल निकाल कर उन की जगह पर हिलर्स यानी रिजर के फाल का आधा भाग लगा दिए जाते हैं.
शावल अलग कर के हिलर जोड़ने से कल्टीवेटर पीछे की ओर एक मेंड़ बनाता हुआ चलता है. मेंड़ की मोटाई कल्टीवेटर की चौड़ाई घटानेबढ़ाने से कम या ज्यादा की जा सकती है. आलू व शकरकंद जैसी फसलों की मेंड़ इस की मदद से बनाई जा सकती है.
फसल बोने के बाद ही बारिश हो जाती है तो 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई तक कल्टीवेटर की मदद से पपड़ी तोड़ी जा सकती है.
इस्तेमाल का तरीका
कल्टीवेटर टाइनों के बीच की दूरी छेदों पर टाइन कैरियर की बोल्ट को कस कर हासिल की जाती है. ये छेद मुख्य फ्रेम में एक इंच के अंतर पर होते हैं. हर टाइन में एक बदलने के लिए खुरपा लगा होता है, जो टाइन में 2 बोल्ट से कसा होता है. जब खुरपा बिलकुल घिस जाए, तो खुरपे को पलट दें या नया लगाना चाहिए.
कल्टीवेटर का रखरखाव
कल्टीवेटर के सभी नटबोल्टों की जांच करते रहना चाहिए, जिस से वे हमेशा कसे रहें. रोज काम खत्म करने के बाद मशीन की सतहों पर ग्रीस लगाना चाहिए, जिस से कल्टीवेटर में जंग न लगने पाए. जो पार्ट काम के दौरान घिस गए हैं या खराब हो गए हैं, उन को बदल देना चाहिए. पार्ट हमेशा भरोसेमंद कंपनी व दुकानदार से जांचपरख के बाद ही लेना चाहिए.
इस्तेमाल के दौरान एहतियात
बोआई करते समय फालों के बीच एक तय दूरी होनी चाहिए और फालों की गहराई भी बराबर होनी चाहिए. बीज बोने वाला इनसान होशियार होना चाहिए. खेत की तैयारी करते समय लाइनों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि खेत बिना जुता हुआ रहे.
खाद डालते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि खाद सूखी व भुरभुरी है या नहीं. अगर भुरभुरी न हो तो उसे सुखा लेना चाहिए. खाद डालने के लिए मशीन में लगने वाले भाग में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहिए. मशीन में निराईगुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लाइनों में बोए हुए पौधे खराब न हों.
थ्रेशर यंत्र और उसकी देखभाल
अकसर देखा गया है कि गेहूं की दौनी करने के बाद थ्रेशर को खुली जगह पर रख देते हैं. थ्रेशर को भी देखभाल की जरूरत होती है. इस से थ्रेशर के काम करने की उम्र बढ़ जाती है. फसल की दौनी हो जाने के बाद किसानों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :
* जब थ्रेशर का काम पूरी तरह से खत्म हो जाए, तो उसे 10-15 मिनट तक खाली चलाना चाहिए, ताकि उस में बचीखुची बालियां या भूसा बाहर निकल जाए. थ्रेशर को बंद करने के बाद उस की कपड़े वगैरह से भी सफाई कर दें.
* थ्रेशर से ट्रैक्टर, मोटर, इंजन वगैरह को अलग कर देना चाहिए.
* सभी बैल्ट को निकाल कर उन्हें साफ कर महफूज रखें. थ्रेशर को अच्छी तरह से साफ पानी से धोएं और उसे धूप में सुखा लें.
* जहांजहां जरूरत हो, वहां रंगाई करें या ग्रीस की पतली परत थ्रेशर पर चढ़ा दें. ग्रीस की जगह काम में लाया हुआ इंजन का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से थ्रेशर में जंग कम लगती है.
* ग्रीस कप व बेयरिंग को डीजल या केरोसीन से धो कर साफ करें और उन में नया ग्रीस और तेल डालें.
* थ्रेशर को ऐसी जगह रखें, जहां धूप और बारिश से उस का बचाव हो सके. थ्रेशर के पायदानों को लकड़ी के टुकड़े या ईंट के ऊपर रखें.
* थ्रेशर का इस्तेमाल साल में कुछ समय के लिए ही होता है. 8-10 महीने तक यह बिलकुल भी काम में नहीं आता, इसलिए यह जरूरी है कि इस की देखभाल ठीक से की जाए, ताकि समय आने पर किसान जल्द से जल्द इस का इस्तेमाल कर पाएं.
हमारे देश की राजधानी दिल्ली व आसपास के इलाकों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर खूब होहल्ला मचा. यह केवल इसी साल की बात नहीं है, पिछले कई सालों से धान की कटाई होने के बाद और इसे जलाने को ले कर प्रदेश की सरकारों में एकदूसरे पर आरोप लगाने का दौर चलता है और देश की अदालत को भी इस में अपना दखल देना पड़ता है. आखिरकार नतीजा भी कुछ खास नहीं निकलता और समय के साथ और मौसम में बदलाव होने पर यह मामला अपनेआप खत्म हो जाता है.
हां, इस प्रदूषित वातावरण के माहौल को ले कर राजनीतिक दलों में जरूर बन आती है, जो एकदूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं और लेदे कर निशाना किसानों को बनाते हैं.
पराली प्रदूषण को ले कर देश की राजधानी दिल्ली में नियम लागू कर दिए जाते हैं, जिस में आम जनता जरूर परेशान होती है, पर नतीजा नहीं निकलता. भवन निर्माण जैसे कामों पर रोक लगा दी जाती है. इस का फायदा वे सरकारी कर्मचारी उठाते हैं, जो लोगों से अच्छीखासी रकम वसूलते हैं और चोरीछिपे यह काम भी चलता है.
प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर भी रोक लगाई जाती है, लेकिन लेदे कर चोरीछिपे वह भी चलती है और जब कभी ऊपर से बड़े अधिकारियों का दबाव आता है तो बिचौलियों के माध्यम से फैक्टरी मालिकों को पहले ही आगाह कर दिया जाता है कि फलां दिन फलां समय अधिकारियों का दौरा है, इसलिए फैक्टरियां बंद रखें.
कहने का मतलब है कि सरकार का काम नियम बनाना है, लेकिन उस को अमलीजामा पहनाना सरकारी मुलाजिमों का काम है, इसलिए सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, चाहे वे आम आदमी हो या सरकारी मुलाजिम, सरकार हो या किसान, तभी इस तरह की समस्या का समाधान संभव है.
किसानों का कहना है कि धान की फसल कटाई और गेहूं बोआई के बीच का समय कम रहा है और सभी किसानों के पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो पराली को इतने कम समय में ठिकाने लगा सकें. ज्यादातर किसानों की पहुंच ऐसे कृषि यंत्रों या ऐसी तकनीक तक नहीं है, जो पराली नष्ट करने में काम आते हैं.
पराली की खाद बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने अनेक तरीके बताए हैं. उस की जानकारी भी समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती. इस दिशा में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पराली से खाद बनाने के लिए वेस्ट डीकंपोजर व पूसा संस्थान, नई दिल्ली द्वारा कैप्सूल बनाए हैं, जिन में बहुत ज्यादा असरकारक बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो तय समय में पराली को सड़ा कर खाद बनाने का काम करते हैं.
4 कैप्सूल से 1 एकड़ की पराली बनेगी खाद
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल तैयार किया है, जिस की कीमत महज 5 रुपए है. इस के 4 कैप्सूल ही एक एकड़ खेत की पराली को खाद बनाने में सक्षम है. इस के इस्तेमाल से पराली की खाद तो बनती ही है, इस के अलावा जमीन में नमी भी बनी रहती है. यह कैप्सूल जो एक तरफ तो पराली को सड़ा कर खाद बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ खेत की मिट्टी को उपजाऊ भी बनाते हैं.
कैसे इस्तेमाल करें
कृषि वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह के मुताबिक, सब से पहले हमें 150 ग्राम पुराना गुड़ लेना है. उसे पानी में उबालना है. उबालते समय उस में जो भी गंदगी आती है, उसे निकाल कर फेंक देना है. फिर उस घोल को ठंडा कर के लगभग 5 लिटर पानी में घोल देना है. इस में लगभग 50 ग्राम बेसन भी घोल कर मिला दें. इस के बाद इस में पूसा संस्थान से खरीदे गए 4 कैप्सूलों को खोल कर उसी घोल में मिला दें. इस काम के लिए बड़े आकार यानी चौड़ाई वाला प्लास्टिक या मिट्टी का बरतन लेना है.
अब इस घोल को हलके गरमाहट वाले किसी स्थान पर लगभग 5 दिनों के लिए रख दें. अगले दिन इस घोल की ऊपरी सतह पर एक परत जम जाएगी. इस परत को डंडे की मदद से उसी घोल में फिर मिला देना है. यह प्रक्रिया लगातार 5 दिनों तक करनी है. इस तरीके से आप का कंपोस्ट घोल तैयार हो जाएगा. यह
5 लिटर घोल लगभग 10 क्विंटल पराली को खाद बनाने के लिए काफी है.
अब इस तैयार घोल को आप खेत में फैली पराली पर छिड़क दें. फिर खेत में रोटावेटर चला दें. लगातार 20-25 दिनों में पराली की खाद बन जाएगी. इस के अलावा सिंचाई द्वारा भी इस घोल को पानी में डाल सकते हैं. यह घोल समान रूप से पानी में मिल कर पराली वाले खेतों में पहुंच जाए. 20-25 दिनों में ही पराली को खाद में बदल देते हैं.
कृषि यंत्रों का होना जरूरी
इस काम में कृषि यंत्रों का होना बेहद जरूरी है जो पराली को खेत में मिला सके. उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों को किसानों तक पहुंचाने के लिए कस्टम हायरिंग सैंटर बनाए गए हैं, जिन्हें किसान समितियों द्वारा मिल कर चलाया जा रहा है. इस स्कीम के तहत 80 फीसदी अनुदान पर यह यंत्र किसानों की समितियों को मुहैया कराए जाते हैं, जिन्हें किसान अपनी खेती में तो इस्तेमाल करेंगे ही, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी यंत्र किराए पर दे सकेंगे.
पराली में काम आने वाले यंत्रों में मल्चर, एमबी प्लाऊ, रोटावेटर व सीडर है, जो पराली को काट कर मिट्टी में दबा देते हैं या अवशेषों को जमीन में दबा देते हैं. जीरो टिलेज या हैप्पी सीडर जैसे यंत्र से धान के कटने के बाद खेत में गेहूं की सीधे बोआई कर सकते हैं. हैप्पी सीडर यंत्र धान की पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर खेत में मिला देता है, जिस की खाद बन जाती है और साथ ही, गेहूं की बोआई भी करता है. इस तरीके से किसान के एकसाथ 2 काम हो जाते हैं.
क्या कहते हैं कृषि मंत्री
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है औैर चिंता की बात है. सभी लोग इस मसले पर गंभीर हैं खासकर दिल्ली व एनसीआर में बुरे हालात बने हैं. इस सिलसिले में पराली प्रोसैस के लिए कृषि मंत्रालय ने एक स्कीम तैयार की है. इस के तहत किसानों को अनुदान पर ऐसे कृषि यंत्रों को उपलब्ध कराया जा रहा है, जो इस समस्या के समाधान का सहायक है.
20 रुपए में वेस्ट डीकंपोजर से खाद
20 रुपए में मिलने वाले इस वेस्ट डीकंपोजर को गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित नैशनल सैंटर औफ आर्गेनिक फार्मिंग द्वारा तैयार किया गया है. इस के इस्तेमाल से लगभग 30 से 40 दिनों में यह पराली की खाद बना देता है.
यह वेस्ट डीकंपोजर पर्यावरण और किसान दोनों के लिए फायदेमंद है. खाद बनाने के साथसाथ खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और दीमक वगैरह में भी खेत का बचाव करता है और खेत में नमी बनाए रखता है.
इस का इस्तेमाल करने के लिए एक बडे़ प्लास्टिक के ड्रम में 200 लिटर पानी भर लें और इस में डीकंपोजर की डब्बी को खोल कर मिला दें. इसे किसी छायादार जगह पर रख लें. फिर 3 दिनों तक इस घोल को सुबहशाम रोज डंडे से मिला दिया करें. इस के बाद 11-12 दिनों तक इसे ऐसे ही छोड़ दें. यह घोल तैयार हो जाएगा औैर अच्छे नतीजों के लिए इस घोल को बनाते समय इस में गुड़ व बेसन भी मिला सकते हैं.
तैयार इस घोल को पहले की तरह ही पानी के जरीए खेत में पहुंचाना है, जो पराली को सड़ा कर खाद बना देगा.
कृषि यंत्र पैडी स्ट्रा चौपर
हार्वेस्टर मशीनें धान की कटाईर् में खेत की सतह से लगभग 1 फुट की ऊंचाई पर करती हैं, बाकी फसल अवशेष खेत में खड़ा रह जाता है जो किसानों के लिए समस्या बन जाता है. इस के समाधान के लिए पैडी स्ट्रा चौपर यंत्र है जो खेत में खड़ी पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट देता है. इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. यंत्र की कीमत लगभग डेढ़ लाख रुपए है.
यह जुताई का एक ऐसा खास उपकरण है जिस में ऊपर और नीचे की तरफ 2 या 3 हल जैसे नुकीले आकार की रौड लगी होती है जो जमीन में 1 से 1.5 फुट की गहराई तक जुताई कर मिट्टी को पलट देता है. यह हाइड्रोलक सिस्टम से नियंत्रित होता है.
रोटावेटर के लाभ
* इस में लगे हुए नुकीले हल मिट्टी की जुताई करते हैं और ब्लेडनुमा रौड मिट्टी को पलटने का काम करती है, जिस से कठोर परत टूट जाती है.
* मिट्टी नरम होने की वजह से फसलों और पौधों की जड़ों को बिना किसी रुकावट के प्रसार करने में मदद मिलती है और वे बेहतर विकास और उपज देती है.
* ऐसा करने से मिट्टी की जड़ों तक औक्सीजन आसानी से पहुंचती है, जो फसलों और पौधों के लिए बहुत जरूरी है. इस वजह से फसल की बढ़वार और पैदावार अच्छी होती है.
* जमीन में उगे खरपतवार और दूसरे वनस्पति को उखाड़ कर जमीन में मिला देता है जिस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है और उपज अच्छी होती है.
* खेत में एक बार ही रिवर्सिबल प्लाऊ से जुताई करने से जमीन की पानी ग्रहण करने की कूवत बढ़ जाती है.
* मिट्टी पलटने से खरपतवारों के बीज जमीन की गहराई में दब जाते हैं, जिस से उन का अंकुरण कम होता है और खरपतवार नियंत्रण में कारगर है.
* यह मशीन पिछली फसल कटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उन्हें जड़ से खोद कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देती है.
* ये खेत में नाली नहीं बनाता क्योंकि खुद ही ट्रैक्टर के साथ बदल जाता है और दूसरी तरफ से बनी हुई नाली में मिट्टी डाल देता है जिस से मिट्टी का कटाव नहीं होता.
इस का रखरखाव कैसे करें
* इस्तेमाल करने से पहले तय यह कर लें कि उपकरण पूरी तरह से सही है.
* इस्तेमाल के बाद उपकरण छायादार जगह पर रखें.
* बेरिंगों में ग्रीस या मौबिल औयल का इस्तेमाल करते रहें.
हाइड्रोलिक रिवर्सिबल प्लाऊ पर सरकार कितना अनुदान देगी : इस की अनुमानित कीमत 50,000 से 1,40,000 रुपए तक है. इस में सरकार आप को एनएफएसएम योजना के तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति लघु सीमांत और महिला किसानों के लिए इकाई लागत का 50 फीसदी और सामान्य किसानों के लिए 40 (20 हौर्सपावर से कम ट्रैक्टर पर 20,000 और 16,000 रुपए) 20 से 35 हौर्सपावर तक के ट्रैक्टर पर 70,000 रुपए और 56,000 रुपए अधिकतम अनुदान देती है.
अनुदान के लिए कागजात
* आवेदन पात्र मय लाभार्थी के पासपोर्ट साइज का प्रमाणित फोटो.
* जमीन की जमाबंदी या पासबुक.
* मशीन का क्रय बिल या प्रोफार्मा इनवोइस और अधिकृत विक्रेता का प्रमाणपत्र.
* यंत्र का प्रमाणित फोटो लाभार्थी के साथ.
* शपथपत्र या अंडरटेकिंग.
* ट्रैक्टर के कागजातों की प्रतिलिपि.
अलगअलग राज्यों में अनुदान अलग हो सकता है. यह योजना ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर है. योजना का फायदा लेने के लिए क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक/सहायक कृषि अधिकारी/सहायक निदेशक, कृषि अधिकारी से संपर्क करें.
हमारे देश के कई हिस्सों में आलू की खुदाई शुरू हो चुकी है. लेकिन इस बार भी आलू की बंपर पैदावार के चलते किसानों को आलू की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. यही वजह है कि कुछ किसानों ने तो कुछ दिनों के लिए अपने खेत से आलू की खुदाई रोक दी है. उन्हें इंतजार है कि आलू का बाजार भाव कुछ ठीक हो तो खुदाई करें.
हालांकि आलू की अगेती खेती लेने वाले किसान अपने खेत में आलू की फसल लेने के तुरंत बाद गेहूं की बोआई कर देते हैं. अभी जो बाजार में आलू आ रहा है, वह कच्चा होता है. उस का छिलका भी हलका रहता है, इसलिए इस में टिकाऊपन नहीं होता. इसे स्टोर कर के नहीं रखा जाता.
फरवरी महीने तक आलू पूरी तरह से तैयार होता है. इसे किसान बीज के लिए व आगे बेचने के लिए भी कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं. इस के लिए किसान आलू की अलगअलग साइजों में छंटाई कर ग्रेडिंग कर के रखें, तो अच्छे दाम भी मिलते हैं और आगे के लिए स्टोर करने के लिए सुविधा रहती है.
आलू की फसल आने के बाद उस के रखरखाव की भी खासा जरूरत होती है, क्योंकि आलू को खुला रखने पर उस में हरापन आ जाता है.
आलू की फसल तैयार होने के बाद आलू की खुदाई मजदूरों द्वारा और आलू खुदाई यंत्र (पोटैटो डिगर) से की जाती है. हाथ से खुदाई करने पर काफी आलू कट जाते हैं और मंडी में आलू की सही कीमत नहीं मिलती है.
इसी काम को अगर आलू खोदने वाली मशीन से किया जाए, तो कम समय में आलू की खुदाई कर सकते हैं. मशीन के द्वारा आलू खुदाई करने पर आलू साफसुथरा भी निकलता है. उस के बाद आने वाली फसल की बोआई भी समय पर कर सकते हैं.
आलू की फसल खुदाई करने लायक होने पर आलू के पौधों को ऊपर से काट दें या उस पर खरपतवारनाशी दवा का छिड़काव कर दें, ताकि पौधों के पत्ते सूख जाएं और फसल की खुदाई ठीक से हो सके.
आलू खुदाई यंत्र
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा तैयार आलू खुदाई यंत्र एकसाथ 2 लाइनों की खुदाई करता है. इस यंत्र में 2 तवेदार फाल लगे होते हैं, जो मिट्टी को काटते हैं. इस में नीचे एक जालीदार यंत्र भी लगा होता है, जो मिट्टी में घुस कर आलू को मिट्टी के अंदर से निकाल कर बाहर करता है. साथ ही, इस यंत्र पर एक बैड लगा होता है, जिस पर जाल के घेरे से आलू निकल कर गिरते हैं.
यह बैड लगातार हिलता रहता है. इस बैड के हिलने से मिट्टी के ढेले टूट कर गिरते रहते हैं और साफ आलू खेत में मिट्टी की सतह पर गिरते हुए निकलते हैं. इस के बाद मजदूरों की सहायता से आलुओं को बीन कर खेत में जगहजगह इकट्ठा कर लिया जाता है.
संस्थान द्वारा निर्मित पोटैटो डिगर को 35 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. एक हेक्टेयर जमीन की आलू खुदाई में 3 घंटे का समय लगता है और 12 लिटर डीजल की खपत होती है.
इस यंत्र की अधिक जानकारी के लिए आप केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नवी बाग, भोपाल से संपर्क कर सकते हैं या आप अपने नजदीकी कृषि विभाग से भी आलू खुदाई यंत्र के बारे में जानकारी ले सकते हैं.
महेश एग्रो का पोटैटो डिगर
महेश एग्रो वर्क्स के पोटैटो डिगर में 56 इंच और 42 इंच के बैड लगे होते हैं. 2 लाइनों में आलुओं की खुदाई होती है. 45 हौर्सपावर के ट्रैक्टर में आलू खुदाई यंत्र को जोड़ कर चलाया जा सकता है.
प्रकाश पोटैटो डिगर
यह मशीन भी सभी प्रकार के आलू खुदाई के लिए उत्तम है. 35 हौर्सपावर या उस से अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टर के साथ इसे चलाया जाता है. मशीन में डबल जाल लगा होने के कारण आलू भी साफसुथरा निकलता है.
नवभारत इंडस्ट्रीज के प्रकाश ब्रांड के कृषि यंत्र आज भी खेती के क्षेत्र में अच्छी पकड़ बना रहे हैं.
इस के अलावा अनेक पोटैटो डिगर बाजार में मौजूद हैं. इस के लिए आप कृषि विभाग या अपने नजदीकी कृषि यंत्र निर्माता से पता कर सकते हैं.
सुपर सीडर के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की जरूरत नहीं होती है. साथ ही, धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है, जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है.
धान की कटाई के तुरंत बाद गेहूं की बोआई करने के लिए उपयोग में आने वाला सुपर सीडर एक यंत्र है. पराली को खेतों से बिना निकाले यह यंत्र गेहूं की सीधी बोआई (बिजाई) करने के काम में लाया जाता है.
हर साल ठंड का महीना शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत में प्रदूषण काफी बढ़ जाता है. इस की एक वजह पराली जलाने की समस्या है.
हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इसे खेत में जलाने से न केवल प्रदूषण फैलता है, बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है.
किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं बोना होता है और धान की पराली का कोई समाधान न होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प न होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है.
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पराली की समस्या का समाधान
इस समस्या से नजात पाने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह है. इस मशीन के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की जरूरत नहीं होती है.
सुपर सीडर के साथ धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है. जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है.
इस प्रकार सुपर सीडर मशीन से बोआई पर खर्च कम लगेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा. धान की सीधी बिजाई एवं गेहूं की सुपर सीडर से बोआई करने पर कम समय एवं कम व्यय के साथसाथ अधिक उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण और जल का संचयन भी आसानी से किया जा सकता है.
सुपर सीडर प्रैस व्हील्स के साथ बोआई और भूमि की तैयारी के संयुक्त अनुप्रयोग के लिए सब से अच्छा आविष्कार है. यह प्रैस व्हील्स के साथ सीड प्लांटर और रोटरी टिलर का कौम्बिनेशन है. सुपर सीडर का काम विभिन्न प्रकार के बीज जैसे सोयाबीन, गेहूं, धान आदि को बोना है. इस के अलावा इस का उपयोग कपास, केला, धान, गन्ना, मक्का आदि की जड़ों और ठूंठ को हटाने के लिए किया जाता है.
सुपर सीडर पराली जलाने पर रोक लगा कर खेती की मौजूदा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. इस यंत्र में बीज की किस्मों को बदलने और बीज को कम करने के लिए एक सीधी मीटरिंग प्रणाली है.
सुपर सीडर मशीन एकसाथ खेत की बोआई, मल्चिंग और उर्वरक का छिड़काव आदि प्रदान करती है. सुपर सीडर एक अच्छा उपाय है, जो जुताई, बोआई और बीजों को ढंकने के कामों को करती है. इस से किसानों की काम करने की क्षमता और आमदनी के अवसर एक ही बार में बढ़ जाते हैं. यह मशीन धान के ठूंठों को हटाने, उन्हें मिट्टी में मिलाने, जमीन तैयार करने और बीज बोने का अल्टीमेट सौल्यूशन है.
सुपर सीडर मशीन कैसे काम करती है
सुपर सीडर मशीन धान के ठूंठों को हटा कर मिट्टी में मिलाने का काम करती है. सभी किस्मों के बीज बोते हुए जमीन तैयार करती है.
सुपर सीडर मशीन में धान के अवशेषों को कुतरने के लिए एक रोटर और गेहूं बोने के लिए एक जीरो टिल ड्रिल है.
अवशेष प्रबंधन रोटर पर फ्लेल टाइप के सीधे ब्लेड लगे होते हैं, जो बोआई के समय पुआल या ढीले पुआल को काट/दबा/हटा सकते हैं. फिर यह मिट्टी में बीज के उचित स्थान के लिए प्रत्येक टाइन को रोटर के एक चक्कर में 2 बार साफ करता है. साथ ही, बीज वाली कतारों के बीच अवशेषों को यथासंभव सतह पर धकेलते हैं.
यह मशीन कार्यशक्ति के हिसाब से 35 से 65 हौर्सपावर के ट्रैक्टर से चलाई जा सकती है. इस में बोआई के समय फसलों की दूरी और गहराई भी सुनिश्चित की जा सकती है.
ये पीटीओ संचालित सर्वश्रेष्ठ सुपर सीडर मशीनें उपयुक्त काम कर सकती हैं, सभी निम्न से उच्च एचपी ट्रैक्टर 0.3-0.4 हेक्टेयर प्रति घंटा से अधिक की दूरी तय कर सकते हैं.
सुपर सीडर की खासियत है कि एक बार की जुताई में ही बोआई हो जाती है. पराली की हरित खाद बनने से खेत में कार्बन तत्त्व बढ़ जाता है और इस से अच्छी फसल होती है. इस विधि से बोआई करने पर तकरीबन 5 फीसदी उत्पादन बढ़ सकता है और 50 फीसदी बोआई लागत कम होती है.
पहले बोआई के लिए 4 बार जुताई की जाती थी. ज्यादा श्रम शक्ति भी लगती थी. सुपर सीडर यंत्र से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बोआई की जा सकती है, जबकि किसान धान काटने के बाद 5-6 दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बोआई करते हैं. इस से गेहूं की बोआई में ज्यादा लागत आती है, जबकि सुपर सीडर यंत्र से बोआई करने पर लागत में भारी कमी आती है.
सुपर सीडर मशीन की विशेषताएं
* सुपर सीडर मशीनें सब से कुशल और विश्वसनीय फार्म इक्विपमेंट हैं, जो कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती हैं. वे किफायती, कुशल हैं और उच्च कृषि उपज में मदद करते हैं.
सुपर सीडर मशीनों की कुछ विशेषताएं इस तरह से हैं :
* ट्रैक्टर से चलने वाली सुपर सीडर मशीन बीज बोने में मददगार साबित हुई है. यह धान के ठूंठों को हटा कर, मल्चिंग के लिए मिट्टी में मिला कर और उचित गहराई और दूरी पर बीज बो कर मिट्टी तैयार करता है.
* मीटरिंग डिवाइस को मजबूत और बेहतर प्रदर्शन के लिए कच्चा लोहा और एल्यूमीनियम के साथ निर्मित किया जाता है.
* मौडर्न सुपर सीडर में जेएलएफ-टाइप के ब्लेड होते हैं, जो मिट्टी और अवशेषों को प्रभावी ढंग से मिलाने की अनुमति देते हैं.
* ट्रैक्टर सुपर सीडर इंप्लीमैंट का एक स्पैशल डिजाइन और बिल्ट क्वालिटी है, जो कठोर मिट्टी की स्थिति में भी प्रभावी प्रदर्शन करता है.
* यह एक पैमाइश तंत्र के साथ आता है, जो किसी भी बीज की बरबादी के बिना बीज की बोआई को आसान और तेज बनाता है.
* इस मशीन से एक बार की जुताई में ही बोआई हो जाती है.
* मशीन की मदद से पराली की हरित खाद बनाई जाती है, जिस से खेत में कार्बन तत्त्व बढ़ जाता है और फसल अच्छी होती है.
* इस विधि से बोआई करने पर फसल का तकरीबन 5 फीसदी उत्पादन बढ़ कर मिलता है.
* बोआई की लागत तकरीबन 50 फीसदी से भी कम होती है.
* श्रम शक्ति कम लगती है.
* इस मशीन से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बोआई कर सकते हैं.
* किसान धान काटने के बाद 5-6 दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बोआई कर सकते हैं.
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सुपर सीडर मशीन के लाभ
सुपर सीडर एक मल्टीपर्पज फार्म इंप्लीमैंट है, जो निम्नलिखित तरीकों से मदद करता है :
* यह गेहूं, सोयाबीन, या घास के विभिन्न प्रकार के बीजों को लगाने में मदद करता है.
* धान के पुआल की खेती में यह मदद करता है. गन्ना, धान, मक्का, केला आदि फसलों की जड़ों और ठूंठ को यह हटाता है.
* यह चावल के भूसे को काटने और उठाने में मदद करता है. जमीन में गेहूं बोता है और बोआई क्षेत्र में पलवार को फैलाने में मदद करता है.
* यह अवशेषों को जलाने से रोकने और पर्यावरण की रक्षा करने का एक अद्वितीय समाधान है.
* सुपर सीडर मशीन को चलाना और संभालना आसान है. यह कल्टीवेशन, मल्चिंग, बोआई और उर्वरक को एकसाथ फैलाने के कार्यों को करता है. वे टाइन और डिस्क मौडल में उपलब्ध हैं.
* रबी फसल जैसे गेहूं की परंपरागत तरीके से बोआई के बजाय सुपर सीडर से बोआई में लागत कम आती है. वैसे, धान की कटाई के उपरांत रबी फसल की बोनी के लिए 15 दिन का समय लगता है.
* इस तकनीक से बोआई करने पर सिंचाई की पानी में भी बचत होती है और खेतों में खरपतवार कम होते हैं.
* सुपर सीडर पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि यह पानी बचाने में मदद करता है और मिट्टी और जमीन को अधिकतम लाभ प्रदान करता है. यह धान के अवशेषों के साथ मल्चिंग में मदद करता है. आवश्यकता के आधार पर इस का उपयोग जुताई के लिए भी किया जा सकता है. इन मशीनों के लिए कम निवेश की आवश्यकता होती है और किसानों के महत्त्वपूर्ण पैसे की बचत होती है.
सुपर सीडर अल्टीमेट मौडर्न फार्मिंग सौल्यूशन है, जो फसल अवशेषों को जलने से रोकता है. चूंकि यह एक बार में जुताई, बोआई और सीडबेड कवरिंग के तीन कार्यों को करता है, इसलिए किसानों को अलगअलग मशीनों में निवेश करने की आवश्यकता नहीं होती है. इस से उन के पैसे की बचत होती है और उन की उत्पादन क्षमता में इजाफा होता है.
सिंचाई की बचत
सीधी बिजाई/बोआई से धान में तकरीबन 30 फीसदी तक पानी की बचत होती है, जबकि गेहूं की फसल में एक सिंचाई की बचत होती है. इस मशीन के उपयोग से किसानों की परंपरागत कृषि पद्धतियों की अपेक्षा लगभग 3 से 5 फीसदी अधिक अनाज की उपज होती है.
इस तकनीक में जहां एक ओर खेत तैयार करने में लगे समय, पैसे और ईंधन की बचत होती है, तो वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरण हितैषी भी है.
उत्पादन में बढ़ोतरी
धान की लंबी अवधि वाली प्रजातियों की कटाई के बाद नहर सिंचित क्षेत्रों में नमी अधिक होने के कारण जुताई एवं बोआई द्वारा खेत तैयार करने में देरी होती है, जिस से उत्पादन भी कम होता है. धान की फसल की कटाई के बाद खड़ी ठूंठ में बिना जुताई के पंक्तियों से बोआई करने से लागत कम लगती है. साथ ही, डेढ़ गुना अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.
परती खेतों में बोआई करने से सिंचाई के पानी की बचत होगी और खरपतवार कम होंगे. कतार में बोते समय बीज एक निश्चित अंतराल की गहराई पर गिरता है. एक एकड़ के लिए 40 किलोग्राम गेहूं के बीज और 50 किलोग्राम डीएपी की जरूरत होती है.
फरवरी महीने में जब गरम हवा चलती है, तो सिंचाई करने पर फसल नहीं गिरती. इतना ही नहीं, लाइन में आसानी से फसल बोई जा सकती है. लागत में 4,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की कमी कर के बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही, गेहूं की बोआई कम समय और कम खर्च के साथसाथ अधिक उत्पादन मिलता है.
आज बाजार में अनेक हौर्सपावर के ट्रैक्टर मौजूद हैं, लेकिन जरूरत इस बात की है कि किसान अपनी जरूरत के अनुसार ही ट्रैक्टर खरीदें. यहां फार्मट्रैक 60 ट्रैक्टर के बारे में कुछ जानकारी दी जा रही है, जो किसानों के लिए मददगार हो सकती है.
फार्मट्रैक 60 पावरमैक्स
आज देशभर में अनेक ब्रांड के ट्रैक्टर बाजार में मौजूद हैं. सभी की अपनीअपनी खासीयतें हैं. मजबूत ट्रैक्टरों में फार्मट्रैक की पावरमैक्स सीरीज किसानों के बीच खासा पसंदीदा ब्रांड है.
फार्मट्रैक पावरमैक्स सीरीज में 50 से 60 एचपी तक ट्रैक्टरों की विस्तृत रेंज शामिल है. इस ट्रैक्टर के फ्रंट में 90 किलोग्राम का बंपर दिया गया है. फ्रंट में काफी बड़ी रेडिएटर ग्रिल दी हुई है. ग्रिल के ऊपर बोनट पर फार्मट्रैक और पावर की ब्रांडिंग की गई है. फ्रंट लाइट साइड माउंटेड है, जो एलईडी डीआरएल बल्ब के साथ हैलोजन टाइप में आती है.
इस ट्रैक्टर में इंजन की हीट को किसानों तक पहुंचने से रोकने के लिए हीट गार्ड दिए गए हैं. ट्रैक्टर में सिंगल यूनिट बोनट दिया गया है, जिसे खोलना और बंद करना बेहद आसान है. इंजन को ठंडा रखने के लिए बड़ा रेडिएटर दिया गया है. ट्रैक्टर से कम प्रदूषण फैले, इसलिए इस में ईजीआर सिस्टम दिया गया है.
इंजन की खासीयतें
फार्मट्रैक ट्रैक्टर के इस मौडल में 60 पावरमैक्स ट्रैक्टर में 3 सिलैंडर, 55 एचपी और 3510 सीसी का शक्तिशाली इंजन दिया गया है. इस ट्रैक्टर में 240 न्यूटन मीटर का टार्क और 35 फीसदी का बैकअप टार्क मिलता है, जिस की सहायता से बड़े इंप्लीमैंट्स को आसानी से चलाया जा सकता है.
इस ट्रैक्टर में ड्यूल एलीमैंट के साथ एयर क्लीनर दिया गया है. डीजल में से पानी को निकालने के लिए वाटर सैपरेटर भी इस ट्रैक्टर में आता है. इस ट्रैक्टर में माइको बाश कंपनी का फ्यूल इंजैक्शन पंप दिया गया है.
ट्रैक्टर में कुल 20 गियर दिए गए हैं. 16 गियर आगे के लिए और 4 गियर पीछे के लिए दिए गए हैं. ट्रैक्टर की अधिकतम स्पीड आगे की ओर 34.8 किलोमीटर प्रतिघंटा और पीछे की ओर 15.8 किलोमीटर प्रतिघंटा है.
इस ट्रैक्टर में 48 एंपीयर की बैटरी लगी हुई है. ट्रैक्टर में 40 एंपीयर का अल्टरनेटर दिया गया है. यह ट्रैक्टर ड्यूल क्लच के साथ आता है. साथ ही, इस में इनडिपैंडैंट क्लच का औप्शन मिलता है.
स्टीयरिंग और टायर
यह ट्रैक्टर ड्यूल एक्टिंग पावर स्टीयरिंग के साथ आता है. इस में तेल में डूबे हुए ब्रेक दिए गए हैं. स्टीयरिंग के नीचे हैंड रेस का लीवर दिया गया है. इस ट्रैक्टर में किसान के आराम के लिए सुपर डीलक्स एडजस्टेबल सीट दी गई है, जिसे किसान अपनी सुविधानुसार एडजस्ट कर सकता है. इस ट्रैक्टर में 60 लिटर का डीजल टैंक दिया गया है.
हाइड्रोलिक्स से लैस यह ट्रैक्टर 2500 किलोग्राम की लिफ्टिंग क्षमता के साथ आता है. इस ट्रैक्टर में 3 पौइंट सैंसिंग के साथ औटोमैटिक ड्राफ्ट और डैप्थ कंट्रोल (एडीडीसी) टाइप की हाइड्रोलिक दी गई है, जिस की सहायता से कृषि उपकरणों को गहराई के हिसाब से सैट किया जा सकता है.
इस ट्रैक्टर में डबल डिस्ट्रीब्यूटर वाल्व भी आते हैं, जिन की सहायता से लेजर लैवलर और एमबी प्लाऊ को आसानी से चलाया जा सकता है. ट्रैक्टर में एडजस्टेबल हिच दिया गया है.
इस ट्रैक्टर के टायर हैवी ड्यूटी ह्वील के साथ आते हैं. अगले टायर 7.5×16 और पिछले टायर 14.9×28/16.9 × 28 साइज में आते हैं.
फार्मट्रैक 60 पावरमैक्स ट्रैक्टर का कुल वजन 2280 किलोग्राम है. ट्रैक्टर की कुल लंबाई 3445 एमएम और चौड़ाई 1845 एमएम है. ग्राऊ फार्मट्रैक 60 पावरमैक्स ट्रैक्टर की कीमत 7.40-7.70 लाख रुपए है, कीमत में उतारचढ़ाव संभव है, जो आप के शहर व राज्य के अनुसार अलगअलग हो सकती है.
कंपनी इस ट्रैक्टर पर 5 साल या 5 हजार घंटे की वारंटी देती है. अधिक जानकारी के लिए आप इन की वैबसाइट पर या नजदीकी डीलर से संपर्क कर सकते हैं.
आज भारीभरकम मशीनों को जुताई, फसल की कटाई व दूसरे जरूरी कामों के लिए खेत में चलते देखना आम बात है. इस तरह की खेती में खेत की लगभग 25 सैंटीमीटर से ज्यादा गहराई तक की परत कड़ी बनती जा रही है.
खेत की निचली सतह में इस तरह की कड़ी परत बन जाने की वजह से मिट्टी में पानी व हवा का आनाजाना कम हो जाता है. मिट्टी के कड़ा होने के कारण पानी जमीन में नीचे की ओर नहीं जा पाता और खेतों में पानी भराव जैसी परेशानी पैदा होने लगती है.
इतना ही नहीं, इन्हीं सख्त परतों के चलते पौधों की जड़ें भी मिट्टी में ज्यादा गहराई तक नहीं जा पाती हैं. सख्त परतों के नीचे मौजूद पोषक तत्त्वों व पानी का इस्तेमाल भी नहीं कर पाती हैं. नतीजा पैदावार कम होती है.
खेत में बनी इन सख्त परतों से नजात दिलाने के लिए एक मशीन तैयार की गई है, जिस को सबसौयलर कहते हैं. यह सबसौयलर कई आकार, प्रकार व नामों से बाजार में उपलब्ध हैं. इस मशीन के इस्तेमाल से खेत की निचली सतहों में मौजूद कठोर परतों को तोड़ कर मिट्टी को मुलायम व हवादार बना दिया जाता है, जिस से खेत में पानी भराव जैसी स्थिति पैदा नहीं होती व पैदावार भी अच्छी मिलती है.
इस मशीन का इस्तेमाल किसी भी तरह की मिट्टी में हो सकता है, लेकिन हलकी बलुई दोमट, दोमट व चिकनी मिट्टी में इस का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है, क्योंकि इस तरह की मिट्टी में ही ज्यादातर सख्त परतें बनती हैं.
सबसौयलर से जुताई के फायदे
इस मशीन का खास काम मिट्टी में बनी सख्त परतें तोड़ना है व जब ये परतें टूट जाती हैं, तो उस के कई फायदे होते हैं.
* सख्त परतें टूट जाने से मिट्टी में हवा का आवागमन बढ़ता है और मिट्टी में मौजूद फायदेमंद छोटे जीवों की काम करने की ताकत बढ़ जाती है.
* मिट्टी में पानी का आवागमन बढ़ता है, जिस से खेत की पानी सोखने की कूवत बढ़ जाती है व खेत में पानी भराव के हालात पैदा नहीं होते.
* कड़ी परतें टूट जाने के बाद पौधों की जड़ें खेत में ज्यादा गहराई तक जा कर पोषक तत्त्वों व पानी का अवशोषण करती हैं, जिस से उन के विकास में बढ़वार तो होती ही है, साथ ही खेत में मौजूद पोषक तत्त्व व पानी का सही इंतजाम भी होता है.
* इस मशीन के इस्तेमाल से खेत में दीमक का असर भी कम हो जाता है, क्योंकि मशीन चलने से दीमक के घर खत्म हो जाते हैं.
* जब सबसौयलर खेत चले में तो पौधों की जड़ें ज्यादा गहरी जाती हैं, इसलिए आंधीतूफान व बाढ़ वगैरह की स्थिति आने पर फसल गिरने की समस्या कम हो जाती है.
* ज्यादा लवण वाली मिट्टी में इस मशीन को चलाने से मिट्टी की ऊपरी सतह में मौजूद लवण की फालतू मात्रा पानी के साथ रिस कर जमीन के काफी नीचे चली जाती है और खेत ऊसर नहीं बनता.
ऐसे करें मशीन का इस्तेमाल
इस मशीन को ट्रैक्टर के पीछे लगा कर खेत में चलाया जाता है. हालांकि इस का खास काम मिट्टी की कड़ी परतों को तोड़ना है, लेकिन इस के मूल ढांचे में थोड़ा सा बदलाव कर इस को ज्यादा कारगर बना दिया गया है. अब इस मशीन से परत तोड़ने के साथसाथ खेत में गहराई पर खाद देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
सबसौयलर का इस्तेमाल करते समय कुछ जरूरी बातों का खयाल रखें :
* सबसौयलर के टाइंस की दूरी ठीक होनी चाहिए.
* खेत में नमी बहुत ज्यादा या बहुत कम नहीं होनी चाहिए.
* सबसौयलर चलाने के बाद खेत में भारी मशीनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
खेत की जुताई अब आमतौर पर ट्रैक्टरचालित कृषि यंत्रों द्वारा ही की जाती है. कृषि यंत्रों के इस्तेमाल से जुताई का काम कम समय में बेहतरी के साथ होता है. खासकर गरमी के समय खेत की जुताई कर के कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ देना फसल उत्पादन के लिए अच्छी प्रक्रिया है.
एमबी प्लाऊ : यह एक टैक्टरचालित कृषि यंत्र है. इस के बार पौइंट प्लाऊ मिट्टी की सख्त सतह को तोड़ने में सक्षम बनाते हैं. इस का प्रयोग प्राथमिक जोत के आपरेशन के लिए किया जाता है. यह फसल अवशेषों को काट कर पूरी तरह से मिट्टी में दबा देता है. यह पूरी तरह से लोहे का बना होता है. इस में नीचे लगा फाल मिट्टी को काटता है और फाल से लगाई हुई लोहे की मुड़ी हुई प्लेट मिट्टी को पलटती है.
डिस्क प्लाऊ : इस में एक साधारण फ्रेम, डिस्क बीम असेंबली, रौकशाफ्ट, एक भारी स्प्रिंग फरों ह्वील और गेज ह्वील शामिल होते हैं. डिस्क के कोण 40 से 45 डिगरी तक वांछित कटाई की चौड़ाई के अनुसार और खुदाई के लिए 15 से 25 डिगरी तक व्यवस्थित किए जा सकते हैं. इस का प्रयोग बंजर भूमि और अप्रयुक्त भूमि में कृषि हेतु भूमि की प्रारंभिक कटाव प्रक्रिया के लिए खासतौर पर सख्त व शुष्क, बंजर, पथरीली और ऊबड़खाबड़ भूमि पर और जो भूमि कूड़ाकरकट वाली है, पर किया जाता है.
सबसौयलर : सालोंसाल खेत को कम गहरे तक जुताई करने से खेत के नीचे की जमीन कठोर हो जाती है, जिस के कारण जड़ें ज्यादा फैल नहीं पातीं और फसल की पैदावार में कमी आती है, इसलिए सबसौयलर द्वारा हमें 2 साल में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. इस का प्रयोग मिट्टी की सख्त सतह को तोड़ने, मिट्टी को ढीला करने और मिट्टी में पानी पहुंचाने की व्यवस्था को उत्तम बनाने व अनप्रयुक्त पानी की निकासी के लिए किया जाता है.
कल्टीवेटर: यह एक अत्यंत बहुपयोगी उपकरण है, क्योंकि इसे ग्रीष्मकालीन जुताई के साथ ही द्वितीयक जुताई के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे सीड्ररील के लिए रूपांतरित किया जा सकता है. यह कल्टीवेटर केवल सूखी स्थिति में इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि मिट्टी को पलटने के बजाय यह मिट्टी को चीरता है और खरपतवार को काट कर और नोच कर यह उन्हें सतह पर ला छोड़ता है. इस कल्टीवेटर का वहां इस्तेमाल किया जाता है, जहां फसल के अवशेषों को सतह पर ला कर छोड़ने की जरूरत होती है.
जुताई करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
* खेत में 15 अप्रैल से 15 मई तक गहरी जुताई करें.
* कम से कम 20 से 30 सैंटीमीटर तक गहरा हल चलाएं.
* खेत में खरपतवार होने के हालात में 10 से 15 दिन के अंतराल में जुताई को दोहराएं.
* खेत में कीटपतंगे नष्ट करने के लिए सुबह 7 बजे से 11 बजे तक व शाम 4 बजे से 6 बजे तक जुताई करें.