हैचरी स्थापित : स्वरोजगार का अवसर

भोपाल: मत्स्य विभाग के अंतर्गत नील क्रांति योजना में मत्स्य बीज उत्पादन के लिए सर्कुलर हैचरी उच्च गुणवत्ता का मत्स्य बीज उत्पादन किया जाता है और रोजगार का लाभ भी ले सकते हैं.

योजना में सभी तबके के इच्छुक व्यक्ति, जो हैचरी निर्माण कर, मत्स्य बीज उत्पादन से स्वयं का रोजगार स्थापित करना चाहते हों, वे जिले के मत्स्य विभाग के अधिकारी और क्षेत्रीय अधिकारियों को आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं.

भोपाल के मत्स्य अधिकारी ने बताया कि योजना में इकाई लागत राशि 25 लाख रुपए की होती है, जिस में हितग्राही को 50 फीसदी का अनुदान दिया जाता है.

मत्स्य अधिकारी ने यह भी जानकारी दी कि मत्स्य बीज उत्पादन के लिए सर्कुलर हैचरी की स्थापना कर स्वयं का रोजगार प्राप्त करने के लिए हितग्राही के नाम से 2.00 हेक्टेयर से अधिक भूमि दस्तावेज के साथ आवश्यक अनुमति होनी चाहिए. चयनित हितग्राही के लिए योजना निर्माण कार्य के लिए उपर्युक्त स्थल का चयन, भूमि का नक्शा एवं खसरा संबंधित सभी दस्तावेज होना आवश्यक है.

हितग्राही स्वयं के व्यय से राष्ट्रीयकृत बैंकों से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है. सहायक यंत्री, तकनीकी अधिकारियों द्वारा भूमि के निरीक्षण के उपरांत प्लान और एस्टीमेट बनाया जाएगा. हितग्राही को संबंधित विषय का प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक होगा. निर्माण कार्य तकनीकी अमले के निर्देशन में किया जाएगा.

हितग्राही को शासकीय दर से मत्स्यपालकों को मत्स्य बीज विक्रय करना होगा और हैचरी निर्माण के पश्चात हैचरी में सुधार, मरम्मत व प्रबंधन स्वयं करना होगा. हितग्राही की प्रशिक्षण अवधि 5 दिवस की होगी.

मछुआरों का उत्थान, उन का आर्थिक और सामाजिक विकास यात्रा का प्रमुख मिशन: परशोत्तम रूपाला

भारत के दक्षिणी तटीय राज्य केरल में 590 किलोमीटर की विस्तृत तटरेखा है. देश में मछली उत्पादन में केरल का अहम योगदान है. केरल, समुद्री मत्स्यपालन के अतिरिक्त, अंतर्देशीय मछली पकड़ने की गतिविधियों के लिए भी लोकप्रिय है. सागर परिक्रमा यात्रा सातवां चरण, जो 8 जून 2023 से मडक्करा, केरल से शुरू हुआ और पल्लीकारा, बेकल, कन्हांगडु, कासरगोड जैसे स्थानों से हो कर गुजरा, 9, जून, 2023 को माहे (पुड्डुचेरी), कोझिकोड जिले से होता हुआ 10 जून को केरल के त्रिशूर जिले में पहुंचा और कोचीन और त्रिवेंद्रम होते हुए केरल के पूरे तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ेगा.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला, केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी राज्य मंत्री, डा. एल. मुरुगन, मत्स्यपालन मंत्री केरल सरकार, साजी चेरियान की उपस्थिति में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केएस श्रीनिवास, प्रमुख सचिव (मत्स्य), केरल सरकार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड डा. सुवर्ण चंद्रपरागरी और अन्य सरकारी अधिकारी त्रिशूर के नत्तिका में एसएन सभागार आए और इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई.

सागर परिक्रमा के तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत त्रिशूर के नत्तिका में परशोत्तम रूपाला और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के गर्मजोशी से स्वागत के साथ हुई.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी ने सभी मेहमानों का परिचय दिया. उन्होंने केरल में सागर परिक्रमा के सातवें चरण की यात्रा पर प्रकाश डाला.

इस कार्यक्रम में उपस्थित मछुआरे इस दौरान काफी खुश नजर आए. वे यात्रा के प्रभाव और महत्व से परिचित हुए जो उन के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा.

इस दौरान विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) आदि के संबंध में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई.

मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला ने अपने संबोधन में कहा कि मछुआरों का उत्थान, उन की आवश्यकताओं को समझ कर उन का आर्थिक और सामाजिक विकास इस यात्रा का प्रमुख मिशन है.

इस दौरान यह भी बताया गया कि तटीय राज्यों के दौरे का उद्देश्य मत्स्यपालन क्षेत्र में काम कर रहे अन्य हितधारकों के मुद्दे को समझना भी है.

इस के अलावा उन्होंने मछुआरों, महिला मछुआरों, मछली किसानों और तटीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों जैसे लाभार्थियों के साथ बातचीत की. मछुआरों ने भी अपने मुद्दों को उजागर करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), एफआईडीएफ और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) आदि जैसी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद दिया.

मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला, डा. एल. मुरुगन, साजी चेरियान, केरल के विधायक सीसी मुकुंदन, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केएस श्रीनिवास, प्रधान सचिव (मत्स्य), केरल सरकार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड डा. सुवर्ण चंद्रपरागरी और अन्य सरकारी अधिकारियों ने थिप्परयार के टीएसजीए इंडोर स्टेडियम का दौरा किया. उन्होंने सागर परिक्रमा लाभार्थी के लिए केरल सरकार के एक कार्यक्रम ‘थीरा सदासु’ पहल की सराहना की.

कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य कार्यकारी, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड, भारत सरकार डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी ने एक स्वागत भाषण दिया. उन्होंने यह बताया कि ‘एक्वा किसान’ आगे आए हैं और तटीय समुदाय की स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं.

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मत्स्य क्षेत्र को दिए गए महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि मत्स्य क्षेत्र के लिए विशेष धनराशि आवंटित की गई है.

उन्होंने यह भी बताया कि केसीसी शिविर शुरू करने, शिकायत निवारण के लिए टीम गठित करने, विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के निरीक्षण के लिए तकनीकी अधिकारियों की टीम गठित करने जैसी प्रमुख पहल की गई हैं, साथ ही, 62 केसीसी शिविर आयोजित किए गए, जिन में से 744 केसीसी कार्ड जारी किए गए हैं और 178 पोस्ट हार्वेस्टिंग सुविधाएं स्वीकृत की गई हैं.

साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि मछली पकड़ने के बंदरगाह के विस्तार, बायोफ्लाक इकाई के उन्नयन, सजावटी मछली पकड़ने, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के जहाज, केज वाटर कल्चर जैसी कई परियोजनाओं के साथसाथ आजीविका में सुधार और मत्स्य इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए अर्थुल मछली पकड़ने के बंदरगाह का शुभारंभ किया गया है.

उन्होंने सागर परिक्रमा कार्यक्रम यात्रा, सातवें चरण में समर्थन के लिए तट रक्षकों और केरल सरकार को धन्यवाद दिया.

डा. एल. मुरुगन ने बढ़ती मांग को पूरा करने में मछली किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया और उन्होंने मछुआरों और मछली किसानों के अमूल्य योगदान को भी रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि मछुआरे भोजन और जीविका प्रदान करने के लिए अथक प्रयास करते हैं. दीर्घकालिक मछली पकड़ने का तरीका न केवल उत्पादकता बढ़ाता है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करता है.

केरल के मत्स्यपालन मंत्री साजी चेरियान ने राज्य की मात्स्यिकी के बारे में प्रकाश डाला, जो देश में समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्यपालन दोनों के लिए अच्छी क्षमता रखता है.

उन्होंने मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को बढ़ाने के लिए अपने सुझाव साझा करने के लिए मछुआरों, मछली किसानों, लाभार्थियों, तट रक्षक अधिकारियों को धन्यवाद दिया.

परशोत्तम रूपाला ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मुद्दों और इस के विकास के अवसरों की चर्चा की.

उन्होंने कहा कि मत्स्य इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए लाभार्थियों से विभिन्न आवेदन प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अपनी राय भी साझा की है कि पीएमएमएसवाई योजना की गतिविधियों को संचालित करने से भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. इस का उद्देश्य मछली पकड़ने और जलीय कृषि की आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर मछली के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है. इस पहल से न केवल मछुआरों और मछली किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि बाजार में मछली की उपलब्धता भी बढ़ेगी, जिस का खाद्य सुरक्षा और पोषण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सागर परिक्रमा यात्रा तटीय समुदायों और मछुआरों को सरकार द्वारा क्रियान्वित मत्स्य संबंधी योजनाओं/कार्यक्रमों के बारे में जानकारी का प्रसार कर के, सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन, मत्स्यपालन को बढ़ावा देने और सभी मछुआरों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित कर के सशक्त बनाएगी.

मंत्री परशोत्तम रूपाला ने भास्करीयम कन्वेंशन सेंटर, एलमक्करा, एर्नाकुलम में एफपीओ की बिजनैस मीट -2023 का उद्घाटन किया और वहां उपस्थित लोगों को संबोधित किया. उन्होंने सूचित किया कि देशभर के मछुआरों की आजीविका में सुधार के लिए उन की सहायता करने की उच्च मांग के कारण, प्रधानमंत्री ने मत्स्यपालन के लिए अलग विभाग की स्थापना की.

उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के बाद से वर्ष 2014 तक, मत्स्य क्षेत्र में निवेश लगभग 3,681 करोड़ रुपए था. वर्ष 2014 से केंद्र सरकार ने मत्स्यपालन क्षेत्र में जमीनी हकीकत को समझ कर पीएमएमएसवाई, एफआईडीएफ और अन्य योजनाओं की शुरुआत की है और लगभग 32,000 करोड़ रुपए की योजनाएं बनाई गई हैं.

सागर परिक्रमा सातवें चरण में विभिन्न स्थानों से लगभग 4,000 मछुआरे, विभिन्न मत्स्य हितधारकों ने भाग लिया, जिन में से लगभग 1300 महिला मछुआरों ने भाग लिया. कार्यक्रमों को यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक जैसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लाइव स्ट्रीम किया गया.

सागर परिक्रमा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक भलाई में सुधार लाने में प्रभाव डालेगी और आजीविका के अधिक अवसर पैदा करेगी. सागर परिक्रमा मछुआरों, अन्य हितधारकों के मुद्दों को हल करने में सहायता करेगी और विभिन्न मत्स्य योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित कार्यक्रम के माध्यम से उन के आर्थिक उत्थान की सुविधा प्रदान करेगी. सागर परिक्रमा का सातवां चरण अगले 2 दिनों तक केरल के पूरे तटीय क्षेत्र को कवर करता रहेगा.

आधुनिक बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास के लिए 7,500 करोड़ रुपए स्‍वीकृत

कोच्चि : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्तम रूपाला एवं पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पिछले दिनों केरल के कोचिन पोर्ट अथा एमरिटी विलिंगडन द्वीप थोप्पुमपडी के समुद्रिका हाल में कोचिन फिशिंग हार्बर के आधुनिकीकरण और उन्नयन की परियोजना की आधारशिला रखी.

इस कार्यक्रम में एर्नाकुलम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सांसद हिबी ईडन, कोच्चि निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा सदस्य केजे मक्सी, एर्नाकुलम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा सदस्य टीजे विनोद, कोच्चि नगरनिगम के महापौर, एडवोकेट अनिल कुमार, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के विशेष कार्य अधिकारी डा. अभिलक्ष लि‍खी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी, केरल सरकार के मत्स्यपालन विभाग के प्रमुख सचिव केएस श्रीनिवास और कोचिन बंदरगाह प्राधिकरण की अध्‍यक्ष डा. एम. बीना उपस्थित रहे.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने मार्च, 2022 में सागरमाला योजना के अंतर्गत बंदरगाह नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय के साथ कन्वर्जन्स में प्रधानमंत्री मत्‍स्‍य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत थोप्पुमपडी में कोचिन फि‍शिंग हार्बर के आधुनिकीकरण और उन्‍नयन के लिए कोचिन पोर्ट ट्रस्‍ट के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति दी थी. उन्होंने कुल 169.17 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता प्रदान की थी.

700 मछली पकड़ने वाली नौकाओं के नाविकों को मिलेगा सीधा लाभ

इस परियोजना का लाभ कोचिन मछली पकड़ने के बंदरगाह पर 700 मछली पकड़ने वाली नौकाओं के नाविकों को होगा. इन नौकाओं से लगभग 10,000 मछुआरों को प्रत्यक्ष आजीविका मिलेगी और लगभग 30,000 मछुआरों को अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका अर्जित करने में सहायता मिलेगी. आधुनिकीकरण परियोजना से इस क्षेत्र में स्वच्छता की स्थितियों में पर्याप्त सुधार होगा और मछली और मत्‍स्‍य उत्पादों के निर्यात से आय में वृद्धि में होगी.

आधुनिकीकरण पर होगा जोर

आधुनिकीकरण के अंतर्गत शुरू की गई मुख्य गतिविधियों में वातानुकूलित नीलामी हाल, मछली ड्रेसिंग इकाई, पैकेजिंग इकाई, आंतरिक सड़कें, लोडिंग और अनलोडिंग प्लेटफार्म, कार्यालय, डारमेट्री और फूड कोर्ट की स्थापना शामिल है.

इस परियोजना में सार्वज‍निक निजी भागीदारी के तहत 55.85 करोड़ रुपए के कोल्ड स्टोरेज, स्लरी और ट्यूब आइस प्लांट, मल्टीलेवल कार पार्किंग सुविधा, रिवर्स औस्मोसिस प्लांट, फूड कोर्ट, खुदरा बाजार आदि की स्थापना की जाएगी.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने कहा कि सरकार ने मस्‍त्‍यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (एफआईडीएफ), सागरमाला योजना और प्रधानमंत्री मत्‍स्‍य संपदा योजना के तहत मछली पकड़ने के आधुनिक बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास के लिए सरकार ने 7,500 करोड़ रुपए से अधिक की परियोजनाओं की स्‍वीकृति दी है.

‘मछुआरों की आजीविका’ विषय पर राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन

नई दिल्ली : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य विभाग ने आजादी का अमृत महोत्‍सव के तहत ‘सस्‍टेनेबिलिटी औफ फिश मील इंडस्‍ट्री एंड द लाइवलीहुड्स औफ फिशरमैन’ यानी ‘फिश मील उद्योग की निरंतरता एवं मछुआरों की आजीविका’ विषय पर एक राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन किया. इस कार्यक्रम की सहअध्यक्षता मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (आईएफ) सागर मेहरा और भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने की.

कार्यक्रम में मछुआरा समुदाय के प्रतिनिधियों, निर्यातकों, उद्यमियों, मत्स्य संघों, मत्स्य विभाग के अधिकारियों, भारत सरकार के अधिकारियों और विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्य विभाग के अधिकारियों, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा एवं मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, मत्स्य अनुसंधान संस्थानों के संकायों, मत्स्य सहकारी समितियों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों, छात्रों और मत्स्‍यपालन से जुड़े देशभर के हितधारकों ने भाग लिया.

वैबिनार की शुरुआत भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्‍त सचिव सागर मेहरा के स्वागत भाषण से हुई. उन्होंने बताया कि एक्वाकल्चर के जरीए पैदा होन वाली तकरीबन 70 फीसदी मछलियों और क्रस्टेशियन को प्रोटीनयुक्त भोजन खिलाया जाता है, जिस में फिश मील प्रमुख रूप से शामिल होता है. फिश मील उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आवश्यक एमीनो एसिड, विटामिन, आवश्यक खनिज (जैसे फास्फोरस, कैल्शियम एवं आयरन) और मछलियों के विकास के लिए आवश्‍यक अन्य तत्‍वों से भरपूर एक पूरक पौष्टिक आहार है. बेहतरीन पोषण मूल्य के कारण इसे पालतू पशुओं के आहार के लिए पूरक प्रोटीन के तौर पर पसंद किया जाता है.

आमतौर पर यह मछली और झींगा के आहार में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है. हर साल लगभग 2 करोड़ टन कच्चे माल के उपयोग से फिश मील एवं फिश औयल का उत्पादन किया जा रहा है. उन्‍होंने तकनीकी चर्चा शुरू करने के लिए सभी पैनलिस्टों का स्वागत किया.

उच्च गुणवत्ता वाले फिश मील के उत्पादन पर जोर

तकनीकी सत्र की शुरुआत सीएलएफएमए के प्रबंध समिति के सदस्‍य निसार एफ. मोहम्मद द्वारा ‘ओवरव्‍यू औफ फिश मील इंडस्‍ट्री’ यानी ‘फिश मील उद्योग का संक्षिप्‍त परिचय’ विषय पर परिचर्चा के साथ हुई. उन्होंने फिश मील के महत्व को उजागर किया और बताया कि उच्च गुणवत्ता वाले फिश मील का उत्पादन कैसे किया जा सकता है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि फिश मील में मछली के कचरे का उपयोग किए जाने से जल प्रदूषण कम होता है. यह पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मेमनों, सूअरों आदि में मृत्यु दर को कम करता है.

दूसरे वक्ता बेंगलुरु के इंडियन मैरीन इनग्रेडिएंट्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष मोहम्मद दाऊद सैत ने फिश मील उद्योग की समस्‍याओं एवं चुनौतियों के बारे में बात की.

उन्होंने मत्स्यपालन उद्योग की उन्नति एवं कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से भारत के फिश मील एवं फिश औयल उत्पादकों को साथ लाने के लिए निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया.

फिश मील-फीड उद्योग पर हुई चर्चा

अवंति फीड प्रा. लिमिटेड के अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ए. इंद्र कुमार ने फिश मील और श्रिंप फीड उद्योग के बारे में बात की, जो साल दर साल लगातार बढ़ रहा है. एक्‍वाकल्‍चर के जरीए उत्‍पादन तकरीबन 95 फीसदी झींगा का निर्यात किया जाता है. इसलिए सभी आयातकों की मांग टिकाऊ एक्‍वाकल्‍चर एवं मैरीटाइम ट्रस्ट से उत्‍पादित मछलियों के लिए होती है.

वरिष्‍ठ वैज्ञानिक एवं वेरावल-आईसीएआर सैंट्रल इंस्टीट्यूट औफ फिशरीज टैक्नोलौजी के प्रभावी वैज्ञानिक डा. आशीष कुमार झा ने ‘फिश मील एंड इट्स अल्‍टरनेटिव टु एक्वा फीड इडस्‍ट्री’ यानी ‘एक्‍वा फीड उद्योग में फिश मील एवं उस का विकल्प’ विषय पर चर्चा की.

उन्‍होंने ओवरफिशिंग, बायकैच और प्रदूषण के 3 मुद्दों के बारे में जानकारी दी. साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि कीट, पत्ते, फल, बीज आदि को फिश मील के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

आईसीएआर- सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डा. एपी दिनेश बाबू ने भारतीय समुद्री मत्‍स्‍य उद्योग में किशोर मछलियों को न पकड़ने के बारे में बात की. उन्‍होंने मेश साइज रेग्यूलेशन, जुवेनाइल बाइकैच रिडक्शन डिवाइस (जेबीआरडी) और न्यूनतम कानूनी दायरे (एमएलएस) को लागू करने का सुझाव दिया.

मछलियों की बरबादी को रोकने पर दिया जोर

कर्नाटक सरकार के मत्‍स्‍य निदेशक रामाचार्य ने आग्रह किया कि तरीबन 12 से 18 फीसदी मछलियां बरबाद हो रही हैं, इसलिए उद्योग को मदद दी जानी चाहिए.

उन्होंने माना कि सही नीतिगत उपायों और विनियमन जैसे विभिन्‍न मुद्दों के बारे में तमाम प्‍ लेटफार्म के जरीए जागरूकता पैदा की जा रही है. कर्नाटक सरकार ने बिना नियमन के मछली पकड़ने पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए हैं.

संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने जागरूकता पैदा करने और किशोर मछलियों को पकड़े जाने के कारणों पर ध्यान दिए जाने के महत्व के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि मछलियों की दोबारा आूपर्ति में कृत्रिम रीफ स्‍थापित करना काफी महत्‍वपूर्ण होगा. इस से किशोर मछलियों के पकड़े जाने पर भी लगाम लगेगी.

उस के बाद मंच परिचर्चा के लिए खुला और उस का नेतृत्व संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने किया. मत्‍स्‍य किसानों और उद्योग के प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए सवालों एवं शंकाओं पर चर्चा की गई और उन्हें आश्‍वस्‍त किया गया.

उपरोक्‍त व्यावहारिक चर्चाओं के साथसाथ क्षेत्रीय रणनीति एवं कार्ययोजना तैयार करने के उद्देश्‍य से बाद की कार्यवाही के लिए कई बिंदु तैयार किए गए.

वैबिनार का समापन मत्‍स्‍यपालन विभाग में सहायक आयुक्‍त (एफवाई) डा. एसके द्विवेदी द्वारा अध्यक्ष, प्रतिनिधियों, अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद प्रस्ताव के किया गया.