नई दिल्ली : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य विभाग ने आजादी का अमृत महोत्‍सव के तहत 'सस्‍टेनेबिलिटी औफ फिश मील इंडस्‍ट्री एंड द लाइवलीहुड्स औफ फिशरमैन' यानी 'फिश मील उद्योग की निरंतरता एवं मछुआरों की आजीविका' विषय पर एक राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन किया. इस कार्यक्रम की सहअध्यक्षता मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (आईएफ) सागर मेहरा और भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने की.

कार्यक्रम में मछुआरा समुदाय के प्रतिनिधियों, निर्यातकों, उद्यमियों, मत्स्य संघों, मत्स्य विभाग के अधिकारियों, भारत सरकार के अधिकारियों और विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्य विभाग के अधिकारियों, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा एवं मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, मत्स्य अनुसंधान संस्थानों के संकायों, मत्स्य सहकारी समितियों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों, छात्रों और मत्स्‍यपालन से जुड़े देशभर के हितधारकों ने भाग लिया.

वैबिनार की शुरुआत भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्‍त सचिव सागर मेहरा के स्वागत भाषण से हुई. उन्होंने बताया कि एक्वाकल्चर के जरीए पैदा होन वाली तकरीबन 70 फीसदी मछलियों और क्रस्टेशियन को प्रोटीनयुक्त भोजन खिलाया जाता है, जिस में फिश मील प्रमुख रूप से शामिल होता है. फिश मील उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आवश्यक एमीनो एसिड, विटामिन, आवश्यक खनिज (जैसे फास्फोरस, कैल्शियम एवं आयरन) और मछलियों के विकास के लिए आवश्‍यक अन्य तत्‍वों से भरपूर एक पूरक पौष्टिक आहार है. बेहतरीन पोषण मूल्य के कारण इसे पालतू पशुओं के आहार के लिए पूरक प्रोटीन के तौर पर पसंद किया जाता है.

आमतौर पर यह मछली और झींगा के आहार में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है. हर साल लगभग 2 करोड़ टन कच्चे माल के उपयोग से फिश मील एवं फिश औयल का उत्पादन किया जा रहा है. उन्‍होंने तकनीकी चर्चा शुरू करने के लिए सभी पैनलिस्टों का स्वागत किया.

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