बस्ती : फसलों के अवशेष जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए पराली प्रबंधन जरूरी है. उक्त जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के जनपदों में किसानों को जागरूक करते हुए फसल अवशेष न जलाए जाने का सुझाव दिया है.
उन्होंने यह भी बताया कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वराशक्ति कमजोर होती है और पैदावार में गिरावट आती है. कंबाइन हार्वेस्टर के साथ एसएमएस यंत्र का प्रयोग करें, जिस से पराली प्रबंधन कटाई के समय ही हो जाए. इस के विकल्प के रूप में अन्य फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र जैसे- स्ट्रा रीपर, मल्चर, पैड़ी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, स्ट्रा रेक व बेलर का भी प्रयोग कंबाइन हार्वेस्टर के साथ किया जाए, जिस से खेत में फसल अवशेष बंडल बना कर अन्य उपयोग में लाया जा सके.
उन्होंने आगे बताया कि कंबाइन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि फसल कटाई के साथ फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का प्रयोग करें, अन्यथा कंबाइन हार्वेस्टर के मालिक के विरुद्ध नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जाएगी.
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि पराली जलाए जाने की घटना पाए जाने पर संबंधित को दंडित करने, क्षति पूर्ति वसूली जैसे 02 एकड़ से कम क्षेत्र के लिए 2,500 रुपए, 02 से 05 एकड़ के लिए 5,000 रुपए और 05 एकड़ से अधिक के लिए 15,000 रुपए तक पर्यावरण कंपनसेशन की वसूली एवं पुनरावृत्ति होने पर अर्थदंड की कार्यवाही का प्रावधान है.
यदि कोई किसान बिना पराली को हटाए रबी के बोआई के समय जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल या सुपर सीडर का प्रयोग कर सीधे बोआई करना चाहता है, तो ऐसे किसानों को कृषि विभाग द्वारा निःशुल्क डीकंपोजर उपलब्ध कराया जाता है. इस के लिए किसान संबंधित उपसंभागीय कृषि प्रसार अधिकरी या राजकीय कृषि बीज भंडार से संपर्क कर डीकंपोजर प्राप्त कर सकते हैं. पराली से देशी खाद तैयार करने और फसल अवशेष को गोशाला में दान करने के लिए प्रेरित किया गया है.
बस्ती : गेहूं फसल अवशेष जलने की घटना का स्थलीय सत्यापन एवं घटनाओं के नियंत्रण के लिए क्षेत्रीय कर्मचारियों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने के साथ ही शासन एवं कृषि विभाग द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कराने के लिए संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के तीनों उपनिदेशक कृषि एवं जिला कृषि अधिकारियों को निर्देशित किया है.
अधिकारियों को लिखे पत्र में संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने कहा है कि जनपद स्तर पर एक सेल का गठन करते हुए प्रत्येक दिन की घटनाओं का अनुश्रवण किए जाने एवं प्रत्येक गांव के ग्राम प्रधान एवं क्षेत्रीय लेखपाल को प्रत्येक दशा में अपने से संबंधित क्षेत्र में पराली/कृषि अपशिष्ट जलाने की घटना को रोके जाने के लिए निर्देशित करें.
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राजस्व ग्राम अथवा राजस्व ग्राम क्लस्टर के लिए एक राजकीय कर्मचारी को नोडल अधिकारी नामित करें, जो कि सभी के बीच प्रचारप्रसार करते हुए फसल अवशेष आदि को न जलने के लिए प्रेरित करे. लेखपाल की जिम्मेदारी होगी कि अपने क्षेत्र में फसल अवशेष जलने की घटनाएं बिलकुल न होने दें, अन्यथा शिकायत मिलने पर उन के विरुद्ध भी कार्यवाही की जाएगी. जनपद स्तर पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक सेल स्थापित करने के निर्देश पूर्व में दिए जा चुके हैं.
उपजिलाधिकारी के अंतर्गत गठित सचल दस्ते का दायित्व होगा कि फसल अवशेष आदि जलने की घटना की सूचना मिलते ही तत्काल मौके पर पहुंच कर संबंधित के विरुद्ध विधिक कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे.
उन्होंने बताया कि 2 एकड़ से कम जोत वाले किसानों के लिए फसल अवशेष जलाने पर 2,500 रुपए प्रति घटना और 2 एकड़ से अधिक जोत वाले किसानों से 5,000 रुपए प्रति घटना तहसीलदार के स्तर से आर्थिक दंड लगाया जाएगा.
उन्होंने आगे बताया कि फसल कटाई के दौरान प्रयोग की जाने वाली कंबाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अथवा स्ट्रा रीपर अथवा स्ट्रा रेक एवं बेलर अथवा अन्य कोई फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र का उपयोग किया जाना अनिवार्य होगा.
यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उक्त व्यवस्था बगैर आप के जनपद में कोई कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई न करने पाए. प्रत्येक कंबाइन हार्वेस्टर के साथ कृषि विभाग/ग्राम्य विकास का एक कर्मचारी नामित रहे, जो कि अपनी देखरेख में कटाई काम कराएं. फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों के बगैर चलते हुए पाए जाए, तो उस को तत्काल सीज कर लिया जाए और कंबाइन मालिक के स्वयं के खर्चे पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगवा कर ही छोड़ा जाए.
फसल कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर का इस्तेमाल पिछले कुछ सालों में ज्यादा बढ़ा है. इस से फसल के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं, जिसे किसान बाद में जला देते हैं. किसानों को फसल अवशेष जलाने से फायदा होने के बजाय नुकसान ज्यादा होता है, क्योंकि इन अवशेषों को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्त्व खत्म हो जाते हैं.
साथ ही, फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण भी बहुत ज्यादा होने लगा है. यही वजह है कि इस साल सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाए जाने को ले कर सरकार से जवाबतलब किया था. सरकार पराली जलाने के बजाय खरीदने का मन बना रही है, जिस से किसानों को फायदा हो और उस से बिजली बनाई जा सके. गेहूं के अवशेष को डीकंपोजर के जरीए सड़ा कर खाद बनाने से किसानों को काफी फायदा हो सकता है.
वेस्ट डीकंपोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, गाजियाबाद ने विकसित किया है. वेस्ट डीकंपोजर को गाय के गोबर से खोजा गया है. इस में सूक्ष्म जीवाणु तत्त्व होते हैं, जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिस से जहां ये डाले जाते हैं, एक चेन तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ा कर खाद बना देती है. यह मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की तादाद को भी काबू में करने का काम करता है.
वेस्ट डीकंपोजर की खास बात यह है कि इस की एक शीशी ही एक बड़े रकबे की समस्याओं का समाधान कर सकती है. इस के इस्तेमाल से खाद जल्दी तैयार हो जाती है, जिस से जमीन की उपजाऊ ताकत बढ़ती है, साथ ही मिट्टी की कई बीमारियों से भी छुटकारा मिल जाता है.
ऐसे करें इस्तेमाल
फसल कटाई से पहले 200 लिटर वेस्ट डीकंपोजर सौल्यूशन का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें. फसल कटाई के बाद रोटावेटर की मदद से फसल अवशेष को मिट्टी में मिला दें.
20-25 दिन बाद फसल अवशेष बिना किसी समस्या के खेत में मिल जाता है. इस के अलावा फसल कटाई के बाद सिंचाई में पानी के साथ वेस्ट डीकंपोजर सौल्यूशन को खेत में मिला देना चाहिए, इस के बाद रोटावेटर की सहायता से अवशेष को मिट्टी में मिला दें.
यह जैविक खाद एक छोटी शीशी में होता है. 200 लिटर पानी में 2 किलोग्राम गुड़ डाल कर इस विशेष जैविक खाद को उस में मिला दिया जाता है. इस 200 लिटर घोल में से एक बालटी घोल को फिर 200 लिटर पानी में मिला लें. इस तरह यह घोल बनाते रहें.
खेत की सिंचाई करते समय पानी में इस घोल को डालते रहें. ड्रिप सिंचाई के साथ इस घोल का प्रयोग कर सकते हैं, जिस से यह पूरे खेत में फैल जाएगा. किसान भाई यह तरीका अपना कर फसल के साथ उस के अवशेष से भी फायदा उठा सकते हैं. गेहूं के अवशेष को जलाने से बेहतर है कि इस से जैविक खाद बना कर अपने खेतों की उर्वराशक्ति बढ़ाएं.
ध्यान देने की बात यह है कि डीकंपोजर सौल्यूशन बहुत कम कीमत का है. इसे कोई भी आसानी से खरीद सकता है. आज भी किसानों में यह बात मानी जाती है कि खेत में आग लगाने से अगली फसल ज्यादा अच्छी होती है, जबकि कृषि वैज्ञानिक ऐसी किसी भी मनगढंत बातों को अफवाह के सिवा कुछ नहीं मानते, इसलिए खेत में आग न लगाएं, बल्कि फसल अवशेष से जैविक खाद बनाएं, जिस से आबोहवा के साथ किसानों को भी लाभ हो.
बदांयू: एचपीसीएल के संपीड़ित बायोगैस संयंत्र (सीबीजी) के बारे में बोलते हुए पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस व आसवन और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि इस संयंत्र में 100 एमटीपीडी चावल के भूसे की प्रसंस्करण क्षमता है और यह 65 एमटीपीडी ठोस खाद के साथ 14 एमटीपीडी सीबीजी उत्पन्न कर सकता है. बदायूं में सीबीजी संयंत्र एचपीसीएल द्वारा तकरीबन 133 करोड़ रुपए के निवेश से चालू किया गया है और यह तकरीबन 50 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है.
एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरदीप सिंह पुरी की उपस्थिति में हिंदुस्तान पैट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के अग्रणी बायोमास आधारित संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र का उद्घाटन बदांयू में किया.
इस अवसर पर केंद्रीय पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस एवं श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली, आंवला के सांसद धर्मेंद्र कश्यप, दातागंज के विधायक राजीव कुमार सिंह, बदायूं सदर के विधायक महेश चंद्र गुप्ता और एमओपीएनजी और उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, जिस में एचपीसीएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक और एचपीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, उपस्थित थे.
इस सीबीजी संयंत्र का उद्घाटन भारत सरकार के आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने पर जोर देने के अनुरूप है. राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 के हिस्से के रूप में, यह पहल दूसरी पीढ़ी (2जी) के जैव तेलशोधक कारखानों और संपीड़ित जैव गैस संयंत्रों पर ध्यान देने के साथ आयात निर्भरता को 10 फीसदी तक कम करने के सरकार के लक्ष्य में योगदान देती है.
केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि उत्पादन स्थिर होने पर बदांयू में सीबीजी संयंत्र 17,500-20,000 एकड़ खेतों में पराली जलाने की समस्या को कम करने में मदद करेगा, जिस से सालाना 55,000 टन ब्व्2 उत्सर्जन में कमी आएगी और तकरीबन 100 लोगों के लिए प्रत्यक्ष रूप से रोजगार और 1,000 लोगों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पैदा होगा.
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा ऐसे बायोगैस संयंत्र लगाए जाएंगे.
मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), स्मार्ट सिटी मिशन, पीएम स्वनिधि योजना आदि सहित भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं में उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन की सराहना की.
उन्होंने पिछले साढे़ 9 सालों में उत्तर प्रदेश में तेल और गैस क्षेत्र की प्रगति का एक स्नैपशाट प्रदान किया. उन्होंने पैट्रोल पंपों, एलपीजी वितरकों, पीएनजी कनैक्शन, सीएनजी स्टेशनों, एलपीजी कनैक्शन आदि की संख्या के मामले में राज्य की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला.
बदायूं में सीबीजी संयंत्र
बदायूं में तकरीबन 100 टन प्रतिदिन लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास की प्रसंस्करण क्षमता वाला, बदायूं में सीबीजी संयंत्र, 14 टीपीडी सीबीजी का उत्पादन करने के लिए डिजाइन की गई एक अभूतपूर्व पहल है. इस परियोजना में कच्चे माल की प्राप्ति और भंडारण, सीबीजी प्रसंस्करण अनुभाग, संबंधित उपयोगिताएं, सीबीजी कैस्केड फिलिंग शेड और ठोस खाद भंडारण एवं बैगिंग सुविधा शामिल हैं.
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
परियोजना का लक्ष्य स्थानीय किसानों और किसान उत्पादक संगठनों से बायोमास खरीद कर किसानों की आय को बढ़ावा देना है, जिस से 100 से अधिक लोगों को आजीविका के अवसर मुहैया होंगे. यह संयंत्र हजारों किसानों, ट्रांसपोर्टरों और खेतिहर मजदूरों को प्रत्यक्ष आजीविका के अवसर और अप्रत्यक्ष लाभ भी प्रदान करेगा. इस के अलावा किसानों को जैविक खाद की बिक्री का उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता और फसल की पैदावार को बढ़ाना है, जो टिकाऊ कृषि में योगदान देता है.
अनूठी विशेषताएं
सीबीजी उत्पादन की तकनीकी के लिए मैसर्स प्राज इंडस्ट्रीज लिमिटेड, पुणे से लाइसेंस लिया गया है और डाइजैस्टर का डिजाइन बायोगैस के उत्पादन को अधिकतम बनाता है. उर्वरक नियंत्रण आदेश के कड़े मानदंडों का पालन करते हुए, संयंत्र में प्रदूषण सूक्ष्मग्राही शून्य तरल स्राव डिजाइन समाविष्ट है.
पर्यावरणीय प्रभाव
सीबीजी, सीएनजी के समान गुणों के साथ, हरित, नवीकरणीय आटोमोटिव ईंधन के रूप में काम करता है. यह परियोजना प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल के आयात में कमी, उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों और स्वच्छ भारत मिशन में सकारात्मक योगदान की उम्मीद करती है.
परियोजना लागत और समयसीमा
सीबीजी संयंत्र को 133 करोड़ रुपए की लागत के साथ मंजूरी दी गई थी. यह काम पूरा हो चुका है और वर्तमान में इस की प्रक्रिया स्थिरीकरण और परीक्षण चल रहा है. इस संयंत्र में अपनी तरह की पहली फास्फेट रिच और्गेनिक खाद (पीआरओएम) सुविधा भी है, जो पैमाने और डिजाइन में अद्वितीय है, ताकि कड़े उर्वरक नियंत्रण आदेश मानदंडों को पूरा करते हुए जैविक खाद का उत्पादन किया जा सके.
एचपीसीएल सीबीजी प्लांट का उद्घाटन भारत के टिकाऊ ऊर्जा समाधानों की खोज में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि को चिन्हित करता है और यह ऊर्जा पहुंच, दक्षता, स्थिरता एवं सुरक्षा पर आधारित भविष्य के लिए प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप है.
हमारे देश की राजधानी दिल्ली व आसपास के इलाकों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर खूब होहल्ला मचा. यह केवल इसी साल की बात नहीं है, पिछले कई सालों से धान की कटाई होने के बाद और इसे जलाने को ले कर प्रदेश की सरकारों में एकदूसरे पर आरोप लगाने का दौर चलता है और देश की अदालत को भी इस में अपना दखल देना पड़ता है. आखिरकार नतीजा भी कुछ खास नहीं निकलता और समय के साथ और मौसम में बदलाव होने पर यह मामला अपनेआप खत्म हो जाता है.
हां, इस प्रदूषित वातावरण के माहौल को ले कर राजनीतिक दलों में जरूर बन आती है, जो एकदूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं और लेदे कर निशाना किसानों को बनाते हैं.
पराली प्रदूषण को ले कर देश की राजधानी दिल्ली में नियम लागू कर दिए जाते हैं, जिस में आम जनता जरूर परेशान होती है, पर नतीजा नहीं निकलता. भवन निर्माण जैसे कामों पर रोक लगा दी जाती है. इस का फायदा वे सरकारी कर्मचारी उठाते हैं, जो लोगों से अच्छीखासी रकम वसूलते हैं और चोरीछिपे यह काम भी चलता है.
प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर भी रोक लगाई जाती है, लेकिन लेदे कर चोरीछिपे वह भी चलती है और जब कभी ऊपर से बड़े अधिकारियों का दबाव आता है तो बिचौलियों के माध्यम से फैक्टरी मालिकों को पहले ही आगाह कर दिया जाता है कि फलां दिन फलां समय अधिकारियों का दौरा है, इसलिए फैक्टरियां बंद रखें.
कहने का मतलब है कि सरकार का काम नियम बनाना है, लेकिन उस को अमलीजामा पहनाना सरकारी मुलाजिमों का काम है, इसलिए सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, चाहे वे आम आदमी हो या सरकारी मुलाजिम, सरकार हो या किसान, तभी इस तरह की समस्या का समाधान संभव है.
किसानों का कहना है कि धान की फसल कटाई और गेहूं बोआई के बीच का समय कम रहा है और सभी किसानों के पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो पराली को इतने कम समय में ठिकाने लगा सकें. ज्यादातर किसानों की पहुंच ऐसे कृषि यंत्रों या ऐसी तकनीक तक नहीं है, जो पराली नष्ट करने में काम आते हैं.
पराली की खाद बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने अनेक तरीके बताए हैं. उस की जानकारी भी समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती. इस दिशा में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पराली से खाद बनाने के लिए वेस्ट डीकंपोजर व पूसा संस्थान, नई दिल्ली द्वारा कैप्सूल बनाए हैं, जिन में बहुत ज्यादा असरकारक बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो तय समय में पराली को सड़ा कर खाद बनाने का काम करते हैं.
4 कैप्सूल से 1 एकड़ की पराली बनेगी खाद
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल तैयार किया है, जिस की कीमत महज 5 रुपए है. इस के 4 कैप्सूल ही एक एकड़ खेत की पराली को खाद बनाने में सक्षम है. इस के इस्तेमाल से पराली की खाद तो बनती ही है, इस के अलावा जमीन में नमी भी बनी रहती है. यह कैप्सूल जो एक तरफ तो पराली को सड़ा कर खाद बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ खेत की मिट्टी को उपजाऊ भी बनाते हैं.
कैसे इस्तेमाल करें
कृषि वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह के मुताबिक, सब से पहले हमें 150 ग्राम पुराना गुड़ लेना है. उसे पानी में उबालना है. उबालते समय उस में जो भी गंदगी आती है, उसे निकाल कर फेंक देना है. फिर उस घोल को ठंडा कर के लगभग 5 लिटर पानी में घोल देना है. इस में लगभग 50 ग्राम बेसन भी घोल कर मिला दें. इस के बाद इस में पूसा संस्थान से खरीदे गए 4 कैप्सूलों को खोल कर उसी घोल में मिला दें. इस काम के लिए बड़े आकार यानी चौड़ाई वाला प्लास्टिक या मिट्टी का बरतन लेना है.
अब इस घोल को हलके गरमाहट वाले किसी स्थान पर लगभग 5 दिनों के लिए रख दें. अगले दिन इस घोल की ऊपरी सतह पर एक परत जम जाएगी. इस परत को डंडे की मदद से उसी घोल में फिर मिला देना है. यह प्रक्रिया लगातार 5 दिनों तक करनी है. इस तरीके से आप का कंपोस्ट घोल तैयार हो जाएगा. यह
5 लिटर घोल लगभग 10 क्विंटल पराली को खाद बनाने के लिए काफी है.
अब इस तैयार घोल को आप खेत में फैली पराली पर छिड़क दें. फिर खेत में रोटावेटर चला दें. लगातार 20-25 दिनों में पराली की खाद बन जाएगी. इस के अलावा सिंचाई द्वारा भी इस घोल को पानी में डाल सकते हैं. यह घोल समान रूप से पानी में मिल कर पराली वाले खेतों में पहुंच जाए. 20-25 दिनों में ही पराली को खाद में बदल देते हैं.
कृषि यंत्रों का होना जरूरी
इस काम में कृषि यंत्रों का होना बेहद जरूरी है जो पराली को खेत में मिला सके. उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों को किसानों तक पहुंचाने के लिए कस्टम हायरिंग सैंटर बनाए गए हैं, जिन्हें किसान समितियों द्वारा मिल कर चलाया जा रहा है. इस स्कीम के तहत 80 फीसदी अनुदान पर यह यंत्र किसानों की समितियों को मुहैया कराए जाते हैं, जिन्हें किसान अपनी खेती में तो इस्तेमाल करेंगे ही, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी यंत्र किराए पर दे सकेंगे.
पराली में काम आने वाले यंत्रों में मल्चर, एमबी प्लाऊ, रोटावेटर व सीडर है, जो पराली को काट कर मिट्टी में दबा देते हैं या अवशेषों को जमीन में दबा देते हैं. जीरो टिलेज या हैप्पी सीडर जैसे यंत्र से धान के कटने के बाद खेत में गेहूं की सीधे बोआई कर सकते हैं. हैप्पी सीडर यंत्र धान की पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर खेत में मिला देता है, जिस की खाद बन जाती है और साथ ही, गेहूं की बोआई भी करता है. इस तरीके से किसान के एकसाथ 2 काम हो जाते हैं.
क्या कहते हैं कृषि मंत्री
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है औैर चिंता की बात है. सभी लोग इस मसले पर गंभीर हैं खासकर दिल्ली व एनसीआर में बुरे हालात बने हैं. इस सिलसिले में पराली प्रोसैस के लिए कृषि मंत्रालय ने एक स्कीम तैयार की है. इस के तहत किसानों को अनुदान पर ऐसे कृषि यंत्रों को उपलब्ध कराया जा रहा है, जो इस समस्या के समाधान का सहायक है.
20 रुपए में वेस्ट डीकंपोजर से खाद
20 रुपए में मिलने वाले इस वेस्ट डीकंपोजर को गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित नैशनल सैंटर औफ आर्गेनिक फार्मिंग द्वारा तैयार किया गया है. इस के इस्तेमाल से लगभग 30 से 40 दिनों में यह पराली की खाद बना देता है.
यह वेस्ट डीकंपोजर पर्यावरण और किसान दोनों के लिए फायदेमंद है. खाद बनाने के साथसाथ खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और दीमक वगैरह में भी खेत का बचाव करता है और खेत में नमी बनाए रखता है.
इस का इस्तेमाल करने के लिए एक बडे़ प्लास्टिक के ड्रम में 200 लिटर पानी भर लें और इस में डीकंपोजर की डब्बी को खोल कर मिला दें. इसे किसी छायादार जगह पर रख लें. फिर 3 दिनों तक इस घोल को सुबहशाम रोज डंडे से मिला दिया करें. इस के बाद 11-12 दिनों तक इसे ऐसे ही छोड़ दें. यह घोल तैयार हो जाएगा औैर अच्छे नतीजों के लिए इस घोल को बनाते समय इस में गुड़ व बेसन भी मिला सकते हैं.
तैयार इस घोल को पहले की तरह ही पानी के जरीए खेत में पहुंचाना है, जो पराली को सड़ा कर खाद बना देगा.
कृषि यंत्र पैडी स्ट्रा चौपर
हार्वेस्टर मशीनें धान की कटाईर् में खेत की सतह से लगभग 1 फुट की ऊंचाई पर करती हैं, बाकी फसल अवशेष खेत में खड़ा रह जाता है जो किसानों के लिए समस्या बन जाता है. इस के समाधान के लिए पैडी स्ट्रा चौपर यंत्र है जो खेत में खड़ी पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट देता है. इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. यंत्र की कीमत लगभग डेढ़ लाख रुपए है.
चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने कहा कि राज्य में धान की कटाई का 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है और सरकार पराली जलाने से निबटने के लिए उपायों को बढ़ावा दे रही है.
केंद्रीय कैबिनेट सचिव द्वारा बुलाई गई बैठक के दौरान संजीव कौशल ने पराली जलाने पर अंकुश लगाने और आग की घटनाओं को सक्रिय रूप से कम करने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे अथक प्रयासों पर बल दिया, ताकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम किया जा सके.
सरकार के प्रयासों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि हरियाणा में 36.5 लाख एकड़ में धान की खेती होती है, जिस में 18.36 लाख एकड़ में बासमती की खेती और लगभग 18.2 लाख एकड़ में गैरबासमती की खेती शामिल है.
संजीव कौशल ने कहा कि वायु गुणवत्ता सूचकांक बनाए रखने के लिए सरकार सतर्क है. पिछले वर्ष की तुलना में साल 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में 38 फीसदी की कमी आई है और पिछले 2 सालों में 57 फीसदी की पर्याप्त कमी दर्ज की गई है.
संजीव कौशल ने आगे कहा कि आग पर काबू न पाने के लिए उपायुक्तों और स्टेशन हाउस अफसर को जिम्मेदार ठहराने के निर्देश जारी किए गए हैं. सरकार ने खेतों में आग के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही करते हुए 1256 चालान जारी किए हैं. खेतों में आग से संबंधित 72 एफआईआर दर्ज कर 44 अपराधियों को पकड़ा है.
संजीव कौशल ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने गुरुग्राम और फरीदाबाद जिलों में बीएस-प्प्प् पेट्रोल और बीएस-प्ट डीजल एलएमवी (4 व्हीलर) पर तत्काल प्रभाव से 30 नवंबर तक या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा जीआरएपी स्टेज प्प्प् को रद्द किए जाने तक प्रतिबंध लगा दिया है. (आपातकालीन सेवाओं में तैनात वाहनों, पुलिस वाहनों और प्रवर्तन के लिए उपयोग किए जाने वाले सरकारी वाहनों को छोड़ कर).
इन जिलों में बीएस-प्प्प् पेट्रोल और बीएस- प्ट डीजल एलएमवी (4 व्हीलर) का उपयोग करते पाए जाने वाले उल्लंघनकर्ताओं पर मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 194 (1) के तहत केस दर्ज किया जाएगा.
एनसीआर जिलों में पंजीकृत वाहनों पर होलोग्राम आधारित रंगीन स्टिकर लगाने के संबंध में उन्होंने कहा कि 14 नवंबर, 2018 से 31 जनवरी, 2023 के बीच एनसीआर जिलों में लगभग 10 लाख वाहनों को कलर कोड किया गया है.
उन्होंने आगे जानकारी देते हुए कहा कि विभिन्न पराली प्रबंधन योजनाओं के लिए 600 करोड़ की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है. इन उपकरणों का उद्देश्य बायोमास आधारित परियोजनाओं के लिए पराली को भूसे के लिए आपूर्ति सुनिश्चित करना है, जिस से पराली जलाने में कमी आएगी और पर्यावरण के प्रति जागरूक खेती को बढ़ावा मिलेगा.
सुपर सीडर के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की जरूरत नहीं होती है. साथ ही, धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है, जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है.
धान की कटाई के तुरंत बाद गेहूं की बोआई करने के लिए उपयोग में आने वाला सुपर सीडर एक यंत्र है. पराली को खेतों से बिना निकाले यह यंत्र गेहूं की सीधी बोआई (बिजाई) करने के काम में लाया जाता है.
हर साल ठंड का महीना शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत में प्रदूषण काफी बढ़ जाता है. इस की एक वजह पराली जलाने की समस्या है.
हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इसे खेत में जलाने से न केवल प्रदूषण फैलता है, बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है.
किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं बोना होता है और धान की पराली का कोई समाधान न होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प न होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है.
Super Seeder
पराली की समस्या का समाधान
इस समस्या से नजात पाने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह है. इस मशीन के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की जरूरत नहीं होती है.
सुपर सीडर के साथ धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है. जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है.
इस प्रकार सुपर सीडर मशीन से बोआई पर खर्च कम लगेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा. धान की सीधी बिजाई एवं गेहूं की सुपर सीडर से बोआई करने पर कम समय एवं कम व्यय के साथसाथ अधिक उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण और जल का संचयन भी आसानी से किया जा सकता है.
सुपर सीडर प्रैस व्हील्स के साथ बोआई और भूमि की तैयारी के संयुक्त अनुप्रयोग के लिए सब से अच्छा आविष्कार है. यह प्रैस व्हील्स के साथ सीड प्लांटर और रोटरी टिलर का कौम्बिनेशन है. सुपर सीडर का काम विभिन्न प्रकार के बीज जैसे सोयाबीन, गेहूं, धान आदि को बोना है. इस के अलावा इस का उपयोग कपास, केला, धान, गन्ना, मक्का आदि की जड़ों और ठूंठ को हटाने के लिए किया जाता है.
सुपर सीडर पराली जलाने पर रोक लगा कर खेती की मौजूदा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. इस यंत्र में बीज की किस्मों को बदलने और बीज को कम करने के लिए एक सीधी मीटरिंग प्रणाली है.
सुपर सीडर मशीन एकसाथ खेत की बोआई, मल्चिंग और उर्वरक का छिड़काव आदि प्रदान करती है. सुपर सीडर एक अच्छा उपाय है, जो जुताई, बोआई और बीजों को ढंकने के कामों को करती है. इस से किसानों की काम करने की क्षमता और आमदनी के अवसर एक ही बार में बढ़ जाते हैं. यह मशीन धान के ठूंठों को हटाने, उन्हें मिट्टी में मिलाने, जमीन तैयार करने और बीज बोने का अल्टीमेट सौल्यूशन है.
सुपर सीडर मशीन कैसे काम करती है
सुपर सीडर मशीन धान के ठूंठों को हटा कर मिट्टी में मिलाने का काम करती है. सभी किस्मों के बीज बोते हुए जमीन तैयार करती है.
सुपर सीडर मशीन में धान के अवशेषों को कुतरने के लिए एक रोटर और गेहूं बोने के लिए एक जीरो टिल ड्रिल है.
अवशेष प्रबंधन रोटर पर फ्लेल टाइप के सीधे ब्लेड लगे होते हैं, जो बोआई के समय पुआल या ढीले पुआल को काट/दबा/हटा सकते हैं. फिर यह मिट्टी में बीज के उचित स्थान के लिए प्रत्येक टाइन को रोटर के एक चक्कर में 2 बार साफ करता है. साथ ही, बीज वाली कतारों के बीच अवशेषों को यथासंभव सतह पर धकेलते हैं.
यह मशीन कार्यशक्ति के हिसाब से 35 से 65 हौर्सपावर के ट्रैक्टर से चलाई जा सकती है. इस में बोआई के समय फसलों की दूरी और गहराई भी सुनिश्चित की जा सकती है.
ये पीटीओ संचालित सर्वश्रेष्ठ सुपर सीडर मशीनें उपयुक्त काम कर सकती हैं, सभी निम्न से उच्च एचपी ट्रैक्टर 0.3-0.4 हेक्टेयर प्रति घंटा से अधिक की दूरी तय कर सकते हैं.
सुपर सीडर की खासियत है कि एक बार की जुताई में ही बोआई हो जाती है. पराली की हरित खाद बनने से खेत में कार्बन तत्त्व बढ़ जाता है और इस से अच्छी फसल होती है. इस विधि से बोआई करने पर तकरीबन 5 फीसदी उत्पादन बढ़ सकता है और 50 फीसदी बोआई लागत कम होती है.
पहले बोआई के लिए 4 बार जुताई की जाती थी. ज्यादा श्रम शक्ति भी लगती थी. सुपर सीडर यंत्र से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बोआई की जा सकती है, जबकि किसान धान काटने के बाद 5-6 दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बोआई करते हैं. इस से गेहूं की बोआई में ज्यादा लागत आती है, जबकि सुपर सीडर यंत्र से बोआई करने पर लागत में भारी कमी आती है.
सुपर सीडर मशीन की विशेषताएं
* सुपर सीडर मशीनें सब से कुशल और विश्वसनीय फार्म इक्विपमेंट हैं, जो कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती हैं. वे किफायती, कुशल हैं और उच्च कृषि उपज में मदद करते हैं.
सुपर सीडर मशीनों की कुछ विशेषताएं इस तरह से हैं :
* ट्रैक्टर से चलने वाली सुपर सीडर मशीन बीज बोने में मददगार साबित हुई है. यह धान के ठूंठों को हटा कर, मल्चिंग के लिए मिट्टी में मिला कर और उचित गहराई और दूरी पर बीज बो कर मिट्टी तैयार करता है.
* मीटरिंग डिवाइस को मजबूत और बेहतर प्रदर्शन के लिए कच्चा लोहा और एल्यूमीनियम के साथ निर्मित किया जाता है.
* मौडर्न सुपर सीडर में जेएलएफ-टाइप के ब्लेड होते हैं, जो मिट्टी और अवशेषों को प्रभावी ढंग से मिलाने की अनुमति देते हैं.
* ट्रैक्टर सुपर सीडर इंप्लीमैंट का एक स्पैशल डिजाइन और बिल्ट क्वालिटी है, जो कठोर मिट्टी की स्थिति में भी प्रभावी प्रदर्शन करता है.
* यह एक पैमाइश तंत्र के साथ आता है, जो किसी भी बीज की बरबादी के बिना बीज की बोआई को आसान और तेज बनाता है.
* इस मशीन से एक बार की जुताई में ही बोआई हो जाती है.
* मशीन की मदद से पराली की हरित खाद बनाई जाती है, जिस से खेत में कार्बन तत्त्व बढ़ जाता है और फसल अच्छी होती है.
* इस विधि से बोआई करने पर फसल का तकरीबन 5 फीसदी उत्पादन बढ़ कर मिलता है.
* बोआई की लागत तकरीबन 50 फीसदी से भी कम होती है.
* श्रम शक्ति कम लगती है.
* इस मशीन से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बोआई कर सकते हैं.
* किसान धान काटने के बाद 5-6 दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बोआई कर सकते हैं.
Super Seeder
सुपर सीडर मशीन के लाभ
सुपर सीडर एक मल्टीपर्पज फार्म इंप्लीमैंट है, जो निम्नलिखित तरीकों से मदद करता है :
* यह गेहूं, सोयाबीन, या घास के विभिन्न प्रकार के बीजों को लगाने में मदद करता है.
* धान के पुआल की खेती में यह मदद करता है. गन्ना, धान, मक्का, केला आदि फसलों की जड़ों और ठूंठ को यह हटाता है.
* यह चावल के भूसे को काटने और उठाने में मदद करता है. जमीन में गेहूं बोता है और बोआई क्षेत्र में पलवार को फैलाने में मदद करता है.
* यह अवशेषों को जलाने से रोकने और पर्यावरण की रक्षा करने का एक अद्वितीय समाधान है.
* सुपर सीडर मशीन को चलाना और संभालना आसान है. यह कल्टीवेशन, मल्चिंग, बोआई और उर्वरक को एकसाथ फैलाने के कार्यों को करता है. वे टाइन और डिस्क मौडल में उपलब्ध हैं.
* रबी फसल जैसे गेहूं की परंपरागत तरीके से बोआई के बजाय सुपर सीडर से बोआई में लागत कम आती है. वैसे, धान की कटाई के उपरांत रबी फसल की बोनी के लिए 15 दिन का समय लगता है.
* इस तकनीक से बोआई करने पर सिंचाई की पानी में भी बचत होती है और खेतों में खरपतवार कम होते हैं.
* सुपर सीडर पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि यह पानी बचाने में मदद करता है और मिट्टी और जमीन को अधिकतम लाभ प्रदान करता है. यह धान के अवशेषों के साथ मल्चिंग में मदद करता है. आवश्यकता के आधार पर इस का उपयोग जुताई के लिए भी किया जा सकता है. इन मशीनों के लिए कम निवेश की आवश्यकता होती है और किसानों के महत्त्वपूर्ण पैसे की बचत होती है.
सुपर सीडर अल्टीमेट मौडर्न फार्मिंग सौल्यूशन है, जो फसल अवशेषों को जलने से रोकता है. चूंकि यह एक बार में जुताई, बोआई और सीडबेड कवरिंग के तीन कार्यों को करता है, इसलिए किसानों को अलगअलग मशीनों में निवेश करने की आवश्यकता नहीं होती है. इस से उन के पैसे की बचत होती है और उन की उत्पादन क्षमता में इजाफा होता है.
सिंचाई की बचत
सीधी बिजाई/बोआई से धान में तकरीबन 30 फीसदी तक पानी की बचत होती है, जबकि गेहूं की फसल में एक सिंचाई की बचत होती है. इस मशीन के उपयोग से किसानों की परंपरागत कृषि पद्धतियों की अपेक्षा लगभग 3 से 5 फीसदी अधिक अनाज की उपज होती है.
इस तकनीक में जहां एक ओर खेत तैयार करने में लगे समय, पैसे और ईंधन की बचत होती है, तो वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरण हितैषी भी है.
उत्पादन में बढ़ोतरी
धान की लंबी अवधि वाली प्रजातियों की कटाई के बाद नहर सिंचित क्षेत्रों में नमी अधिक होने के कारण जुताई एवं बोआई द्वारा खेत तैयार करने में देरी होती है, जिस से उत्पादन भी कम होता है. धान की फसल की कटाई के बाद खड़ी ठूंठ में बिना जुताई के पंक्तियों से बोआई करने से लागत कम लगती है. साथ ही, डेढ़ गुना अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.
परती खेतों में बोआई करने से सिंचाई के पानी की बचत होगी और खरपतवार कम होंगे. कतार में बोते समय बीज एक निश्चित अंतराल की गहराई पर गिरता है. एक एकड़ के लिए 40 किलोग्राम गेहूं के बीज और 50 किलोग्राम डीएपी की जरूरत होती है.
फरवरी महीने में जब गरम हवा चलती है, तो सिंचाई करने पर फसल नहीं गिरती. इतना ही नहीं, लाइन में आसानी से फसल बोई जा सकती है. लागत में 4,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की कमी कर के बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही, गेहूं की बोआई कम समय और कम खर्च के साथसाथ अधिक उत्पादन मिलता है.
बस्ती : खरीफ 2023 में ग्राम पंचायत स्तरीय गोष्ठी व किसान पाठशाला का आयोजन जनपद के समस्त न्याय पंचायतों के 3-4 ग्राम सभाओं में 7 से 25 अगस्त तक वृहद रूप से होगा, जिस में फसलों के बारे में किसानों को जागरूक करने के साथ उन के क्षमता निर्माण सहित खेतीबारी से जुड़े अन्य विषयों जैसे दलहन, तिलहन, मिलेट्स, प्राकृतिक खेती, पराली प्रबंधन आदि विषयों पर जागरूक किया जाएगा.
उक्त आयोजन ग्राम पंचायत स्तरीय गोष्ठी व किसान पाठशाला का शुभारंभ अपर मुख्य सचिव, कृषि की अध्यक्षता में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए एनआईसी योजना भवन, लखनऊ से 7 जुलाई को दोपहर ढाई बजे से किया जाएगा. यह आयोजन 25 अगस्त, 2023 तक होगा.
इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग करेंगे. इस की लाइव स्टीमिंग को दोपहर ढाई बजे से https://webcast.gov.in/up/agriculture लिंक के जरीए दिखाया जाएगा.
इस बारे में जानकारी देते हुए बस्ती जिले के उपनिदेशक, कृषि, अनिल कुमार ने किसानों से अनुरोध किया कि अधिक से अधिक किसान उक्त वैब लिंक के माध्यम से जुड़ते हुए कार्यक्रम देख कर जानकारी प्राप्त कर लाभान्वित हो सकते हैं.