किसानों की आय दोगुना के लिए 6 सूत्र

पटना : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पटना में कृषि भवन में किसानों के साथ परिचर्चा की. उन्होंने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी लालकिले से कहा है कि वो तीन गुना तेजी से काम करेंगे. वे बिहार की सरकार, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और कृषि विभाग को बधाई देना चाहते हैं. वे लगातार किसान के कल्याण के काम में लगे हुए हैं. उन्होंने स्टाल देखे, मखाना, चावल, शहद, मक्का, चाय सबकुछ अद्भुत है. बड़ी जमीन के टुकड़े हमारे पास नहीं हैं, 91 फीसदी सीमांत किसान हैं. लेकिन फिर भी किसान अद्भुत काम कर रहे हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमारे किसानों के लिए 6 सूत्र हैं, जिन पर हम काम कर रहे हैं. उत्पादन बढ़ाना, इस के लिए जरूरी है अच्छे बीज. उत्पादन अच्छा है, लेकिन और भी अधिक संभावना है. फल, सब्जी, अनाज, दलहन, तिलहन के अच्छे बीज जरूरी हैं. 65 फसलों की 109 प्रजातियों के बीज प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को समर्पित किए हैं. ऐसी धान की किस्म है, जिस में 30 फीसदी कम पानी लगता है. बाजरे की एक किस्म है, जिस की फसल 70 दिन में आ जाती है. ऐसे बीज हैं, जो जलवायु के अनुकूल हैं. बढ़ते तापमान में भी अच्छा उत्पादन देते हैं. वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में बात करेंगे, जिस से यहां किसानों को बीज की उपलब्धता हो जाए.

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उन्होंने आगे कहा कि उत्पादन की लागत घटाना हमारा दूसरा संकल्प है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से किसानों को बहुत मदद मिलती है. किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) से खाद के लिए सस्ता लोन मिल जाता है. तीसरी चीज है उत्पादन के ठीक दाम मिल जाएं. यहां का मखाना धूम मचा रहा है. मखाना एक्सपोर्ट क्वालिटी का पैदा हो रहा है. चीजें एक्सपोर्ट होती हैं, तो किसान को ज्यादा फायदा होता है. इस से जुड़ा कार्यालय बिहार में आए, इस के लिए वे प्रयास करेंगे.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि कृषि का विविधीकरण सरकार के रोडमैप में है. परंपरागत फसलों के साथ ही ज्यादा पैसे देने वाली फसलों को बढ़ावा देने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. वे फूड प्रोसैसिंग की बात भी करना चाहेंगे. बिहार का टैलेंट दुनिया में अद्भुत है. इस टैलेंट का ठीक उपयोग बिहार को भारत का सिरमौर नहीं बनाएगा, भारत को दुनिया का सिरमौर बना देगा. इसे खेती में और कैसे लगा सकते हैं, नए आइडियाज के साथ. कैमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग आखिर हम कब तक करेंगे. इस से उर्वरक क्षमता भी कम होती है और जो उत्पादन होता है, उन का शरीर पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है. आजकल केंचुए गायब हो गए हैं. खाद डाल कर उन का समापन ही कर दिया. केंचुआ 50-60 फीट जमीन के नीचे जाता है, ऊपर आता है, इस से जमीन उर्वरक रहती है.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में प्राकृतिक खेती का मिशन शुरू हो रहा है. इस से उत्पादन घटेगा नहीं, बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि अगली बार खेतों में ही कार्यक्रम करेंगे, प्रैक्टिकल दिक्कत भी देखेंगे. किसान के बिना दुनिया नहीं चल सकती है. बाकी चीजें तो फैक्टरी में बन जाएंगी, लेकिन गेहूंचावल कहां से लाओगे? हम सब मिल कर काम करेंगे.

पशु चारा प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यशाला

बेंगलुरु : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन पशुपालन उत्कृष्टता केंद्र-सीईएएच, बेंगलुरु, भारतीय पशुपालन अकादमी और क्षेत्रीय चारा स्टेशन (आरएफएस), हिसार द्वारा “भारत में पशु चारा प्रबंधन में प्रगति (एएफएमआई-2024)” विषय पर पांचदिवसीय पहली राष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम भारत सरकार के संयुक्त आयुक्त (राष्ट्रीय पशुधन मिशन) डा. एचआर खन्ना, सीईएएच के संयुक्त आयुक्त एवं निदेशक डा. महेश पीएस के मार्गदर्शन में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम का उद्घाटन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति प्रो. (डा.) बीआर कंबोज द्वारा किया गया. इतने बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया इस तरह का यह पहला कार्यक्रम था. इस अवसर पर लुवास विश्वविद्यालय से पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग, छात्र कल्याण निदेशक एवं संपदा अधिकारी डा. पवन कुमार व सीसीएसएचएयू के शोध निदेशक डा. राजबीर गर्ग भी उपस्थित रहे. इस के अलावा डा. एसके पाहुजा, एचआरएम निदेशक डा. रमेश कुमार, क्षेत्रीय चारा स्टेशन के निदेशक डा. पीपी सिंह व केंद्रीय भेड़ प्रजनन फार्म, हिसार के निदेशक डा. रुंतु गोगोई भी शामिल हुए.

इस कार्यशाला में लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय (लुवास) के 10 पशु चिकित्सा वैज्ञानिकों सहित 14 राज्यों (महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड) के कुल 71 प्रतिभागियों ने भाग लिया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व अन्य मंत्रालयों और चारे के क्षेत्र में काम करने वाले उद्योग के प्रख्यात वक्ताओं द्वारा अनुभव साझा किए गए.

विशेषज्ञों ने चारा उत्पादन के विभिन्न पहलुओं जैसे चारा उत्पादन का परिदृश्य, उपलब्धता और अंतर, चारा उत्पादन के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के लिए आवश्यक पहल, चारे की उत्पादकता बढ़ाने के उपाय और विभिन्न प्रकार के चारा उत्पादों में प्रौद्योगिकी और मूल्य संवर्धन की आवश्यकता के बारे में जानकारी दी.pashu chara prabandhan 2

चारा प्रबंधन के महत्व, फसलों में कीट प्रबंधन, चारा उत्पादन क्षेत्र के समक्ष चुनौतियों से निबटने के तरीकों और चारा विकास पर भारत सरकार की गतिविधियों और कार्यक्रमों पर भी चर्चा की गई. एक्सीलेंट इंटरप्राइजेज प्रा. लिमिटेड, खन्ना (पंजाब), पुणे के मैसर्स भाग्यलक्ष्मी डेयरी, मैसर्स कोर्टेवा एग्रीसाइंस (हैदराबाद) और एडवांटा समूह (हैदराबाद) जैसे चारा उद्यमियों ने भी प्रतिभागियों के साथ अपने प्रौद्योगिकी को साझा किया.

भारत सरकार देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में स्थित 8 क्षेत्रीय चारा केंद्र (हिसार, श्रीनगर, धाम रोड (सूरत), हेसरघट्टा (बेंगलुरु), अलामाधी (चेन्नई), कल्याणी (पश्चिम बंगाल), सूरतगढ़ (राजस्थान) और हैदराबाद) चला रही है, जहां उच्च गुणवत्ता वाले आधार/प्रमाणित बीज का उत्पादन हो रहा है.

इन स्टेशनों के सभी निदेशकों ने अपने स्टेशनों में किए जा रहे कार्यों को कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों के साथ विस्तार से साझा किया. इस अवसर पर लुवास के छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार ने अपने विचार प्रतिभागियों से साझा करते हुए बताया कि डेयरी फार्मिंग में भारत में लोगों की आय, रोजगार, पोषण सुरक्षा और आजीविका बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं. किफायती डेयरी फार्मिंग में डेयरी पशुओं को हरा चारा खिलाने की महत्वपूर्ण भूमिका है. भारत में विश्व में सब से अधिक मवेशी हैं, लेकिन प्रति पशु उत्पादकता कम है. राशन में गुणवत्तापूर्ण आहार और चारे की अनुपलब्धता इस के प्रमुख कारण हैं. डेयरी पशुओं की पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने और भोजन की लागत को कम करने के लिए राशन में हरे चारे का उचित उपयोग करना चाहिए, जिस से पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ती है और प्रजनन व दूध उत्पादन में भी मदद करते हैं.pashu chara prabandhan 2

प्रतिभागियों को लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारत सरकार के विभिन्न संगठनों में चल रही क्षेत्रीय गतिविधियों को जाननेसमझने का अवसर भी मिला. क्षेत्रीय चारा स्टेशन, हिसार का दौरा प्रतिभागियों के लिए बहुत ही उत्साहजनक था.

समापन समारोह के अवसर पर लुवास के छात्र कल्याण निदेशक और संपदा अधिकारी डा. पवन कुमार व कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा उपस्थित थे. संयुक्त आयुक्त और निदेशक, सीईएएच,बेंगलुरु डा. महेश पीएस व निदेशक, क्षेत्रीय चारा स्टेशन डा. पीपी सिंह, हिसार व निदेशक क्षेत्रीय चारा स्टेशन, चेन्नई डा. अजय कुमार यादव द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए. प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला के आयोजन पर संतोष व्यक्त किया और सरकार से उन के ज्ञान और लाभ के लिए ऐसे और कार्यक्रम आयोजित करने का अनुरोध किया.

भारतीय बीज विज्ञान संस्थान में बीज उत्पादन कार्यशाला

मऊ : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, कुशमौर, मऊ में 28 अगस्त से 30 अगस्त तक चले तीनदिवसीय ‘कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ का 30 अगस्त, 2024 को समापन समारोह आयोजित किया गया.

निदेशक डा. संजय कुमार के दिशानिर्देशन में चल रहा यह कार्यक्रम कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (ATMA), कैमूर, बिहार द्वारा प्रायोजित किया गया. कार्यक्रम के अंतिम दिन किसानों को वैज्ञानिक डा. विनेश बनोथ ने संकर बीज उत्पादन तकनीकी पर जानकारी दी.

संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र, बेंगलुरु से औनलाइन माध्यम द्वारा वैज्ञानिक डा. अंजिथा जौर्ज और डा. मंजनगौड़ा ने किसानों को बीज भंडारण, कीट प्रबंधन और मोटे अनाज की खेती से अवगत कराया. वहीं डा. गिरीश सी. एवं डा. शांताराजा ने भी गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन तकनीकों के विभिन्न विषयों पर अपने व्याख्यान दिए.

प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह एवं वैज्ञानिक डा. आलोक कुमार ने किसानों के साथ उन की शंकाओं और सवालों पर समाधान देते हुए चर्चा की.

कार्यक्रम के समापन समारोह में किसानों से प्रशिक्षण के विषय में प्रतिक्रिया ली गई. निदेशक डा. संजय कुमार ने किसानों को आगे भी ऐसे कार्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया. कार्यक्रम के समन्वयक वैज्ञानिक डा. आलोक कुमार ने कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की. किसानों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा करने के लिए सर्टिफिकेट प्रदान किया गया. कार्यक्रम के समन्वयक वैज्ञानिक डा. पवित्रा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दे कर कार्यक्रम समाप्त हुआ.

कार्यक्रम के समन्वयक संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने बताया कि भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, कुशमौर में गेहूं (HD 2967, DBW 187, HD 3249, DBW 303), सरसों (गिरिराज), मटर (IPFD 9-3), और चना (पूसा 3043) के उच्च गुणवत्ता बीज उपलब्ध हैं. उन्होंने किसानों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि किसान न केवल संस्थान से गुणवत्तायुक्त बीज ले सकते हैं, बल्कि बीज उत्पादन की प्रभावी तकनीकों के लिए भी संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.

मृदा स्वास्थ्य और बीज गुणवत्ता पर कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम

मऊ : भाकृअनुप भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, कुशमौर, मऊ में तीनदिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह कार्यक्रम कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा), कैमूर, बिहार द्वारा प्रायोजित था. निदेशक डा. संजय कुमार के मार्गदर्शन में 29 अगस्त, 2024 को इस कार्यक्रम के अंतर्गत किसानों ने वैज्ञानिक डा. आलोक कुमार से बीज गुणवत्ता प्रबंधन के विभिन्न चरणों को प्रभावित करने वाले घटकों और कारकों के बारे में जानकारी प्राप्त की.

किसानों ने वैज्ञानिक डा. कल्याणी कुमारी से बीज के गुणवत्ता निर्धारण के लिए प्रायोगिक तकनीकें जैसे भौतिक शुद्धता, नमी, व्यवहार्यता प्रसुप्त आदि की जानकारी प्राप्त की.

वैज्ञानिक डा. अमित कुमार दाश ने किसानों को मृदा स्वास्थ्य और गुणवत्ता बीज उत्पादन में उस के महत्व के बारे में बताया. किसानों ने बीज प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला में बीज गुणवत्ता निर्धारण की प्रायोगिक तकनीकें सीखीं. गुणवत्ता बीज उत्पादन की योजना और संगठन के बारे में वैज्ञानिक डा. पवित्रा ने व्याख्यान दिया.

कार्यक्रम के समन्वयक संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह के नेतृत्व में किसानों ने संस्थान की विभिन्न प्रयोगशालाओं, बीज प्रसंस्करण इकाई, बीज गोदाम और प्रक्षेत्र भ्रमण किया. संस्थान के अन्य वैज्ञानिकों के साथ किसानों ने चर्चा की और लाभान्वित हुए.

कार्यक्रम के दूसरे दिन निदेशक डा. संजय कुमार के अधिवीक्षण में इस कार्यक्रम में किसानों को गुणवत्ता बीज उत्पादन की तकनीकियों से अवगत कराया. कार्यक्रम के समन्वयक संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन के सामान्य सिद्धांतों पर प्रकाश डाला और डा. आलोक कुमार और डा. पवित्रा ने भी कार्यक्रम का समन्वयन किया.

किसानों के लिए मुख्य विषयों पर व्याख्यान के साथ प्रयोगात्मक सत्र भी किए गए. संस्थान के अन्य वैज्ञानिकों के साथ क्षेत्रीय केंद्र बेंगलुरु के वैज्ञानिक भी औनलाइन माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़े और अपने अनुभव से ओतप्रोत व्याख्यान प्रस्तुत कर किसानों को लाभान्वित किया. निदेशक डा. संजय कुमार ने बताया कि पूर्वोत्तर में संगठित बीज क्षेत्र को मजबूती देने के लिए बिहार के किसानों का प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वागतयोग्य है.

पशु संक्रामक रोग पर कार्यशाला

नई दिल्ली : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से आयोजित पशु संक्रामक रोग प्राथमिकता पर तीनदिवसीय कार्यशाला का आयोजन पिछले दिनों नई दिल्ली में शुरू हुआ.

इस कार्यशाला का उद्घाटन पशुपालन और डेयरी विभाग के पशुपालन आयुक्त (एएचसी) डा. अभिजीत मित्रा ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में इस बात को रेखांकित किया कि रोग को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया में माली नुकसान एक महत्वपूर्ण मानदंड है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संक्रामक रोगों के आर्थिक प्रभाव, विशेष रूप से पशुधन, मुरगीपालन और वन्यजीवों को प्रभावित करने वाले रोगों की रोकथाम व नियंत्रण प्रयासों के लिए किन रोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, यह निर्धारित करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

डा. अभिजीत मित्रा ने रेखांकित किया कि इन रोगों से संबंधित वित्तीय बोझ, जिस में उत्पादकता में कमी से ले कर उपचार और नियंत्रण उपायों पर होने वाली लागत शामिल है, न केवल कृषि क्षेत्र के लिए, बल्कि समग्र रूप से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए भी दूरगामी परिणाम उत्पन्न करता है.

पशुपालन आयुक्त ने आर्थिक हानि के अलावा रोग प्राथमिकता प्रक्रिया में जैव विविधता के नुकसान को एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में शामिल करने की पैरवी की. उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि जैव विविधता की हानि, जो आमतौर पर वन्यजीवों व अन्य प्रजातियों में संक्रामक रोगों के फैलने के कारण होती है, के इकोसिस्टम और उन के द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता प्रक्रिया अधिक समग्र हो जाती है. साथ ही, पशु स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव कल्याण के बीच आपसी निर्भरता को मान्यता प्रदान की जाती है.

एफएओ इंडिया के महामारी विज्ञान, एएमआर और जूनोसिस (एक रोग, जो कशेरूक पशुओं से दूसरे में फैलता है) विशेषज्ञ डा. राज कुमार सिंह ने पशु संक्रामक रोग प्राथमिकताकरण की प्रक्रिया और इस में शामिल विभिन्न समितियों की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी.

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इस कार्यशाला में डीएएचडी, आईसीएआर, राज्य पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों, राज्य पशुपालन विभागों, यूएसएआईडी, जेपीआईजीओ और एफएओ इंडिया की ईसीटीएडी टीम के विशेषज्ञों के रूप में विविध समूह एक मंच पर साथ आया.

इस एआईडीपी कार्यशाला का प्राथमिक लक्ष्य प्रमुख पशु संक्रामक रोगों का व्यापक मानचित्रण, पहचान और प्राथमिकता निर्धारण करना है. यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण पशु संक्रामक रोगों के मानचित्रण के साथ शुरू हुई, जिस में उन के आर्थिक व रोग संबंधी प्रभावों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञ परामर्श और द्वितीयक अनुसंधान का उपयोग किया गया. इस के बाद एक गहन पहचान प्रक्रिया अपनाई गई, जिस में विशेषज्ञों ने व्यापकता, आर्थिक प्रभाव और पशु व मनुष्यों, दोनों के लिए स्वास्थ्य से संबंधित जैसे कारकों के आधार पर रोगों का मूल्यांकन किया.

अगले 2 दिनों के दौरान विशेष रूप से चिंताजनक रोगों, जिन में पशुधन, मुरगीपालन और वन्यजीव जैसे स्थलीय जानवरों को प्रभावित करने वाले रोगों, साथ ही मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले जूनोटिक रोग शामिल हैं, को उन के महत्व के अनुरूप क्रमबद्ध किया जाएगा और प्राथमिकता दी जाएगी.

यह कार्यशाला न केवल निगरानी प्रयासों को सुदृढ़ करेगी, बल्कि अधिक प्रभावी रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के डिजाइन और उन के कार्यान्वयन के बारे में भी जानकारी देगी. अर्थव्यवस्था और जैव विविधता के लिए सब से बड़ा खतरा उत्पन्न करने वाले रोगों को प्राथमिकता दे कर राष्ट्रीय थिंकटैंक रणनीति तैयार कर सकता है और संसाधनों को समान रूप से केंद्रित कर सकता है, जिस से भारत में अधिक टिकाऊ और लचीली पशु स्वास्थ्य प्रणाली विकसित हो सके.

पौध रोपण के तहत एक एकड़ जमीन पर ‘मातृ वन’

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों ‘एक पेड़ मां के नाम’ #Plant4Mother अभियान के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) कैंपस पूसा में पौधारोपण किया. उन्होंने बताया कि मंत्रालय लगभग एक एकड़ भूमि में ‘मातृ वन’ स्थापित करेगा.

कार्यक्रम में राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर, सचिव डेयर एवं महानिदेशक, आईसीएआर, डा. हिमांशु पाठक, कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्रालय के लगभग 200 अधिकारी व कर्मचारी और स्कूली छात्र भी उपस्थित थे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि देशभर में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) के सभी अधीनस्थ कार्यालय, आईसीएआर संस्थान, सीएयू, केवीके और एसएयू भी अपनेअपने स्थानों पर इसी तरह का वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया. उन्होंने यह भी बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत 800 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया और उम्मीद है कि कार्यक्रम के दौरान 3000-4000 पौधे लगाए जाएंगे.

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उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 जून, 2024 को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर वैश्विक अभियान ‘एक पेड़ मां के नाम #Plant4Mother’ का शुभारंभ किया था और प्रधानमंत्री के संकल्प को सुनिश्चित करने के लिए हमारे मंत्रालयों ने जनआंदोलन के रूप में ‘एक पेड़ मां के नाम’ #Plant4Mother अभियान की शुरुआत की है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस अवसर पर उपस्थित सभी अधिकारियों, कर्मचारियों और स्कूली विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इस अभियान में भाग लें और वृक्षारोपण कर के अपनी मां और धरती मां के प्रति सम्मान प्रकट करें.

वैश्विक अभियान के हिस्से के रूप में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि सितंबर, 2024 तक देशभर में 80 करोड़ पौधे और मार्च, 2025 तक 140 करोड़ पौधे लगाए जाएं.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 20 जून, 2024 को असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में वृक्षारोपण गतिविधि शुरू की, जिस में व्यक्तियों ने अपनी माताओं के सम्मान में पेड़ लगाए. पेड़ लगाने से सरकार द्वारा शुरू किए गए मिशन लाइफ (Mission LiFE) के उद्देश्य को भी पूरा किया जाता है, जो पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली का एक जनआंदोलन है. कृषि में, पेड़ उगाना टिकाऊ खेती को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. पेड़ मिट्टी, पानी की गुणवत्ता में सुधार कर के और जैव विविधता को बढ़ा कर कृषि उत्पादकता में सुधार करने में मदद करते हैं. पेड़ किसानों को लकड़ी और गैरलकड़ी उत्पादों से अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान करते हैं. अभियान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोकने और उलटने की अपार क्षमता है.

खेती की तकनीकी जानकारी दे रहे डा. वीके सिंह

सीतापुर : वर्तमान में कृषि शिक्षा मे युवाओं की दिलचस्पी बढ़ी है. पिछले कुछ वर्षों से मैडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन जैसे विषयों में रोजगार के अवसरों में कमी आई, लेकिन कृषि में रोजगार की स्थिति काफी बेहतर है. इसलिए युवा प्रतिभा कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रही है. किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा कैसे मिले ,कौन से समय में किस फसल की बोआई की जाए. इन विभिन्न विषयों पर जिले के युवा किसानों को खेतीबारी का ककहरा कृषि विज्ञान केंद्र, अंबरपुर में सीख रहे हैं.
केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि आज के समय में यह कहना कि कृषि शिक्षा में युवा इसलिए आ रहे हैं कि वे समाज की सेवा कर सकें, पूरी तरह से सच नहीं होगा. वास्तविकता तो यह है कि कृषि शिक्षा में रोजगार के अधिक साधन मुहैया हैं, इसीलिए युवा कृषि शिक्षा की ओर आकर्षित हो रहे हैं. पर, यह भी सच है कि उन के मन में कुछ नया करने के सपने हैं. आवश्यक है कि हम उन के सपने को साकार करने में मदद करें.

कृषि विज्ञान केंद्र पर कई युवाओं ने मशरूम उत्पादन, और्गेनिक गुड़ उत्पादन इकाई, पोल्ट्री फार्म, वर्मी कंपोस्ट बनाने जैसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त कर आज अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

कृषि की इन पद्धतियों को अपना रहे हैं किसान

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS)

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए है. बड़े किसान भी इस प्रणाली के जरीए खेती कर के मुनाफा कमा सकते हैं. एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उद्देश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का सही तरीके से इस्तेमाल करना है. इस के तहत आप एक ही साथ अलगअलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशीपालन, फल उत्पादन, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन इत्यादि कर सकते हैं. इस से आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे. लागत में कमी आएगी और उत्पादकता बढ़ेगी. एकीकृत कृषि प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल है और यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाती है.

मचान विधि से लतावर्गीय सब्जियों की खेती

मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. इस में खेत में बांस या तार का जाल बना कर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है. इस विधि का उपयोग करने से किसान अपनी फसल 90-95 फीसदी तक बचा सकते हैं. बारिश के मौसम में सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए खेती की ये तकनीक वरदान साबित हो सकती है.

बता दें कि मचान पर पानी जमा नहीं होता है, जिस की वजह से किसान की फसलों के सड़ने का खतरा कम हो जाता है. इस के अलावा फसल में यदि कोई रोग लगता है, तो मचान के माध्यम से दवा छिड़कने में भी आसानी होती है.

वैज्ञानिक खेती पर प्रशिक्षण

आचार्य नरेंद्र कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय में कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह के दिशानिर्देशन में पांचदिवसीय किसान प्रशिक्षण आयोजन किया जा रहा है, जिस में बिहार प्रांत के जहानाबाद जनपद के 56 प्रगतिशील किसानों प्रशिक्षण श्रीअन्न (मोटे अनाज की फसलें) की वैज्ञानिक खेती, उत्पाद, प्रसंस्करण एवं विपरण पर ले रहे हैं.

प्रशिक्षण में अपर निदेशक प्रसार डा. आरआर सिंह ने बताया कि जमीन में पोषण व्यवस्थित तरीके से डालें, नहीं तो किसी न किसी की कमी या अधिकता से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

प्रशिक्षण के दौरान डा. साधना सिंह, अधिष्ठाता सामुदायिक महाविद्यालय ने श्रीअन्न यानी मोटे अनाज के प्रसंस्करण के बारे में विस्तृत जानकारी दी एवं उस के महत्व के बारे में बताया. वहीं डा. केएम सिंह, वरिष्ठ प्रसार अधिकारी ने बताया कि श्रीअन्न का अधिक उत्पादन लेने के लिए सस्य क्रियाएं समय से किया जाना अति आवश्यक होता है, जिस से उत्पादन में आशातीत वृद्धि होती है.

प्रशिक्षण में डा. श्वेता, डा. प्रज्ञा, मृदुला पांडे, मिथिलेश चौधरी ने मोटे अनाजों से बनने वाले उत्पादों को बनाना शिखाया. डा. अनिल कुमार ने मोटे अनाजों के उत्पाद एवं अनाज की विपणन संबंधी विस्तृत जानकारी दी. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, जौनपुर प्रथम के अध्यक्ष डा. एसके कनौजिया ने श्रीअन्न जैविक विधि से पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

प्रशिक्षण में धनंजय, रामजी, शिव नारायण, नीरज, अशोक, श्रीकांत पासवान, सुधीर, सतीश रंजन, सौरभ, अरविंद, आदित्य प्रकाश, उमेश कुमार, विकास चंद आदि प्रतिभागी उपस्थित थे.

फसल में कीट व बीमारी होने पर रोकथाम जरूरी

भोपाल : किसान खरीफ फसल सोयाबीन में पत्ती काटने वाले कीट व चक्र भंग, मक्का में इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है. वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, समन्वित कीट नियंत्रण के अंतर्गत प्रकाश प्रपंच यानी फैरोमौन ट्रैप, टी आकार की खूंटी, जैविक व अनुशंसित रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें.

वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, सोयाबीन फसलें अभी पुष्पन फलन की अवस्था में हैं. खरीफ फसलों में भी कीटों पर नियंत्रण करें. इस समय खरीफ फसल में सोयाबीन, उड़द, मूंगफली आदि पुष्पन व फलन की अवस्था में हैं. सोयाबीन की फसल पर गर्डल बीटल, तना मक्खी, सफेद मक्खी, मूंगफली में सफेद सुंडी, मक्का में फाल आर्मी वर्म, धान में पत्ती लपेटक एवं उड़द में सफेद मक्खी का अधिक प्रकोप देखा जा रहा है.

सोयाबीन फसल में कीटों के लिए अनुशंसित कीटनाशक

सोयाबीन की फसल में कीटों के लिए अनुशंसित कीटनाशक दवा का उपयोग करें. तना मक्खी की रोकथाम के लिए कीटनाशक प्रति हेक्टेयर थियामेथोक्सम + लैम्बडा, साइहलोथ्रिन,125 मिली, लैम्बडा साइहलोथ्रिन 04.90 सीएस 300 मिली, क्लोरेंट्रानिलिप्रोल + लैम्बडा साइहलोथ्रिन 200 मिली, आइसोसायक्लोसेरम 9.2 फीसदी (डब्ल्यूडब्ल्यू) 600 मिली, कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 04 फीसदी + फिप्रोनिल सीजी 200 मिली, सफेद मक्खी के लिए  बीटासायफ्लुथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड ओडी 350 मिली, एसिटामिप्रिड 25 फीसदी + बायफेंथ्रिन 25 फीसदी डब्ल्यूजी 250 ग्राम, थियामेथोक्सम + लैम्बडा साइहलोथ्रिन 125 मिली, क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी 150 कीटनाशक का छिड़काव करें.

हरी इल्ली के लिए स्पायनेटोरम 11.7 एससी 450 मिली, चना इल्ली फ्लूबेंडियामाइड 39.35 एससी 150 मिली, तंबाकू इल्ली फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यूजी 250-300 ग्राम, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, ब्रोफ्लानिलाइड 300 एससी 42-62 ग्राम, टेट्रानिलिप्रोल 250-300 मिली, गर्डल बीटल के लिए थायक्लोप्रिड 21.7 एससी 750 मिली, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, प्रोफेनोफास 50 ईसी 1250 मिली, एसिटामिप्रिड 25 फीसदी  + बायफेंथ्रिन 25 फीसदी डब्ल्यूजी 250 ग्राम, चने की इल्ली क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी 150 मिली, इंडोक्साकार्ब 15.8 एससी 333 मिली, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, बोफ्लानिलाइड 300 एससी 42-62 ग्राम, वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार एक बार में एक ही कीटनाशी का छिड़काव करें.

सोयाबीन व उड़द में पीला मोजेक रोग का नियंत्रण के दौरान ग्रसित पौधों को उखाड़ कर तुरंत नष्ट करें. सिंथेटिक पाइराथ्राइट्स कीटनाशक का उपयोग न करें.

प्रारंभिक अवस्था में ही थियामेथोक्जम 25 डब्ल्यूजी या एसीटामिप्रिड 20 एसपी मात्रा 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

मूंगफली में सफेद सुंडी के नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशक क्लोरोपाइरीफास 50 ईसी मात्रा 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें.

एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती

पांढुरना : पांढुरना जिले के विकासखंड सौंसर के गांव मर्राम में उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह की उपस्थिति में ‘सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती में पौधों की बढ़वार नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन’ विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला में पहले से चयनित अनुसूचित जनजाति के 51 किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. रामाकृष्णा द्वारा एचडीपीएस पद्वति से कपास फसल उत्पादन के संबंध में विस्तारपूर्वक किसानों को बताया गया.

उन्होंने कहा कि हलकी जमीन का चयन करते हुए कतार से कतार की दूरी 90 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर के अंतराल पर फसल बोई गई. सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती करने वाले किसानों को उचित केनोपी मैनेजमेंट के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की गई, जिस में फसल की 45 दिन की अवस्था में कम से कम पौधे 1.5 से 2.0 फीट एवं पाति निर्माण अवस्था पर ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस चमत्कार 12 मिलीलिटर प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर एक एकड में 10 टंकी दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई, जिस से कि पौधे की बढ़वार नियंत्रित करते हुए प्रति एकड़  क्षेत्रफल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके. सभी चयनित किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर द्वारा उन्नत किस्म का बीज एवं ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस नि:शुल्क प्रदान किया गया.

kapas keet

केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के डा. दीपक नागराले द्वारा कपास फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान की गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीन जेडएआरएस डा. आरसी शर्मा ने कपास फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डा. डीसी श्रीवास्तव के द्वारा कपास फसल नवाचार को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया, जिस से कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती के लिए जिले में हलकी जमीन में कपास उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित होना बताया गया, जिस से किसानों को पूर्व में हो रहे उत्पादन की तुलना में दोगुना से अधिक उत्पादन होने की बात कही गई.

इस कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी सौंसर, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, बीटीएम, एटीएम. आत्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिक्षा मेहरा एवं सृजन के अधिकारी उपस्थित थे.