समेकित जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) पर कार्यशाला  

नई दिल्ली : पानी के घटते संसाधनों और बढ़ती आबादी व उस से जुड़ी खाद्य मांग के परिप्रेक्ष्य में जल संग्रहण, जल उपयोग दक्षता और जल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए गहन प्रयासों की आवश्यकता है. सिंचाई क्षेत्र को उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों से पानी की मांग के मामले में गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए समेकित जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) समय की जरूरत है. इस के लिए अनुसंधान संगठनों और गैरसरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है, जो कृषि में पानी के कुशल उपयोग के लिए समुदाय को संगठित कर के जमीनी लैवल पर काम कर रहे हैं.

इस संदर्भ में जमीनी लैवल पर जल उपयोगकर्ता संघ अपने समुदाय व नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) का लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. वास्तव में बढ़ती पानी की मांग को पूरा करने के लिए पारंपरिक प्रथाओं और अनुकूलन कौशल की जानकारी जरूरी है.

जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन द्वारा किए गए कई हस्तक्षेपों ने प्रभाव का एक व्यापक दायरा देखा है, जिस में उच्च जल आवश्यकता वाली फसलों से कम जल आवश्यकता वाली फसलों की ओर बदलाव, उन्नत फसल पद्धतियां, जिस से पानी की मांग कम हो गई, खेत पर पानी बचत उपायों से मिट्टी में नमी का लैवल बेहतर हुआ आदि.

इसी पृष्ठभूमि में “सामुदायिक नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से टैंक आधारित कृषि को बनाए रखना” विषय पर एक संयुक्त कार्यशाला का आयोजन 19 सितंबर, 2024 को जल प्रौद्योगिकी केंद्र के सभाभवन में भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन, तमिलनाडु द्वारा किया गया. कार्यशाला के मुख्य उद्देश्य हैं :

– सामुदायिक नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करना,

– उन तकनीकों का प्रचार करना, जिन में टैंक आधारित कृषि को बनाए रखा,

– टैंक आधारित कृषि को बढ़ाने के लिए साझेदारी का विस्तार करने के तरीके उत्पन्न करना

कार्यशाला के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के कृषि आयुक्त डा. पीके सिंह ने भाग लिया. उन्होंने जल संरक्षण, जल प्रबंधन और टैंक आधारित कृषि को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों के महत्व पर प्रकाश डाला.

इस कार्यशाला में 4 तकनीकी सत्र हुए, जिन में टैंक सिंचाई आदेशों में जल उपयोगकर्ता संघों के अनुभव साझा किए गए, कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से टैंक आधारित कृषि को बनाए रखने पर एक नीति तैयार की गई.

इस अवसर पर भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी. विश्वनाथन, जल प्रौद्योगिकी केंद्र के परियोजना निदेशक डा. पीएस ब्रह्मानंद और धान अकादमी के निदेशक ए. गुरुनाथन, धान वायलगम टैंक फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी वी. वेंकटेशन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि भौतिकी प्रभाग के प्रमुख डा. एन. सुभाष, आईसीएआर–एनआईएपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके श्रीवास्तव ने कार्यशाला में भाग लिया.

कुलमिला कर इस कार्यशाला में भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, आईसीएआर-एनआईएपी, धान फाउंडेशन, कृषि मंत्रालय, आईडब्ल्यूएमआई और नीति आयोग से 100 प्रतिनिधि, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और बिहार के 25 किसान और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के छात्र शामिल हुए.

बिहार के किसानों को मिली कई सौगातें

नई दिल्ली : 18 सितंबर 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिहार के किसानों के लिए अनेक सौगातें दीं. बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडे की केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ कृषि भवन, नई दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में किसान हितैषी निर्णय लिए गए.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में बिहार के कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने और किसानों की सहूलियत के लिए बिहार स्थित कृषि भवन में एपीडा का औफिस खोलने के निर्णय पर एपीडा के सीएमडी द्वारा सहमति व्यक्त की गई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बिहार में किसानों के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं. इस के तहत उन्होंने हाईब्रीड उन्नत बीजों के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा सहयोग प्रदान करने के निर्देश भी दिए. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अधिक आवंटन के लिए बिहार की मांग पर संबंधित अधिकारियों को तत्काल दिशानिर्देश दिए. इस योजना की बिहार के लिए दूसरी किस्त जारी कर दी गई.

बिहार का कृषि क्षेत्र में अच्छा परफौर्मेंस है. इस आधार पर कृषोन्नति योजना के लिए अधिक राशि के आवंटन के लिए उन्होंने बैठक में ही निर्देशित किया. इस के अलावा गेहूं के लिए अधिक आधार बीज उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए और कृषि यांत्रिकरण के लिए अधिक राशि उपलब्ध कराने का निर्णय भी लिया गया.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के बिहार स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान व बीज उत्पादन केंद्र को आवश्यकतानुरूप अत्याधुनिक बनाया जाएगा, जिस के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को मार्गदर्शन दिया. साथ ही, लीची के लिए प्रसिद्ध बिहार में लीची एवं शहद उत्पादक किसानों की सहायता के लिए भी उन्होंने दिशानिर्देश प्रदान किए. इस के साथ ही एनआरसी मखाना का सशक्तीकरण करने का निर्णय लिया गया. बिहार के किसानों को इन सब से काफी फायदा होगा. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि एवं किसान कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनेकानेक कदम उठाए जा रहे हैं, इसी कड़ी में बिहार के किसानों के लिए भी हरसंभव कदम उठाए गए हैं.

1 अक्तूबर, 2024 से एमएसपी पर मोटे अनाज की होगी खरीदी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार श्रीअन्न के फायदों के प्रति एक तरफ जहां आम लोगों को प्रेरित कर रही है, वहीं किसानों को भी इस की खेती के फायदे से जोड़ रही है.  उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024-25 के लिए मोटे अनाजों की खरीद 1 अक्तूबर, 2024 से शुरू होगी, जो 31 दिसंबर, 2024 तक चलेगी.

मोटे अनाज में शामिल बाजरा, ज्वार और मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीद के लिए किसानों का रजिस्ट्रेशन और रीन्युअल शुरू हो गया है. किसान अपनी किसी भी समस्या के लिए पहले जारी टोल फ्री नंबर 18001800150 से मदद ले सकते हैं. इस के अलावा वे जिला खाद्य विपणन अधिकारी, क्षेत्रीय विपणन अधिकारी, विपणन निऱीक्षक से भी संपर्क कर सकते हैं.

किसानों का जिस बैंक खाते में भुगतान होगा, उस का आधार से जुड़ा होना जरूरी है. भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में किया जाएगा. वहीं, बिचौलियों को रोकने के लिए खरीद केंद्र पर मोटे अनाज की खरीद ई-पाप (इलैक्ट्रोनिक पौइंट औफ परचेज) डिवाइस के माध्यम से किसानों के बायोमीट्रिक वैरिफिशन के जरीए होगी.

किसानों को विभागीय वैबसाइट http://fcs.up.gov.in या ‘यूपी किसान मित्र’ एप पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. खरीद रजिस्टर्ड किसानों से ही की जाएगी.

बदायूं,  बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर व देहात, कन्नौज, इटावा, बहराइच, बलिया, फर्रुखाबाद, मीरजापुर, सोनभद्र व ललितपुर में मक्का की खरीद की जाएगी, वहीं बाजरा की खरीद में बदायूं, बुलंदशहर, बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़, कासगंज, एटा, हाथरस, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर-देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, बलिया, मीरजापुर, जालौन, चित्रकूट, प्रयागराज, कौशांबी, जौनपुर, फतेहपुर जिले शामिल है. इस के अलावा बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, कानपुर नगर-देहात, फतेहपुर, उन्नाव, हरदोई, मीरजापुर व जालौन में ज्वार की खरीद होगी.

कपास की खेती (Cotton Cultivation) और फसल चक्र में बदलाव

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय में ‘कपास की खेती में गुलाबी सुंडी और बरसात के प्रभाव’ विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा व हकृवि के कपास अनुभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्यातिथि के तौर पर उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हकृवि के वैज्ञानिकों एवं कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों को आपसी तालमेल के साथ काम करने का आह्वान किया.

गुलाबी सुंडी के प्रबंधन के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी के बारे में उन्होंने किसानों को जागरूक करने के लिए गांवों में प्रदर्शन प्लांट लगाने के साथ फसल चक्र में भी बदलाव करने का सुझाव दिया.

उन्होंने आगे कहा कि जहां भी भूमि में पोषक तत्वों की कमी है, वहां पर किसान कपास के साथ दलहनी फसलें उगा सकते हैं. उन्होंने किसानों की समस्याओं का समाधान उन के खेत में जा कर करने पर भी जोर दिया.

साथ ही, कपास की फसल के लिए आने वाले 20 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इसलिए कृषि वैज्ञानिक एवं अधिकारी खेतों में जा कर लगातार फीडबैक लेने के साथसाथ एडवाइजरी, मौसम पर नजर व प्रचारप्रसार के माध्यम से किसानों को जागरूक करें.

उन्होंने देशी कपास का बीज तैयार करने के लिए कृषि अनुभाग के अधिकारियों को जरूरी दिशानिर्देश दिए. उन्होंने कहा कि प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से किसानों को प्रत्येक फसल से संबंधित जानकारी सुनिश्चित की जाए. उन्होंने कार्यशाला में अधिकारियों एवं किसानों के साथसाथ पेस्टीसाइड विक्रेताओं को भी प्रशिक्षण देने का आह्वान किया.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक डा. आरपी सिहाग ने कहा कि कपास फसल की समस्याओं के समाधान एवं उत्पादन में बढ़ोतरी को ले कर गत 3-4 साल के दौरान हकृवि एवं विभाग के अधिकारियों ने आपसी तालमेल के साथ संगठित हो कर काम किया है. गुलाबी सुंडी एवं उखेड़ा की समस्याओं से निबटने के लिए गांव में प्रदर्शन प्लांट आयोजित कर के किसानों को जागरूक किया गया है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने कहा कि कपास फसल के लिए 15 दिन की एडवाइरी के स्थान पर इसे 7 दिन कर दिया गया है. साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की जानकारी किसानों को शीघ्र उपलब्ध करवाई जा रही है.

कुलसचिव डा. पवन कुमार ने कहा कि कपास एक आमदनी वाली फसल है. गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष गुलाबी सुंडी के प्रकोप में कमी आई है. वहीं कपास अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह ने कहा कि किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध करवाने के साथसाथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों के बारे में कृषि विभाग के अधिकारियों को जागरूक किया जाएगा, ताकि किसानों को भी जागरूक किया जा सके.

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. रमेश यादव ने कार्यशाला में धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. इस एकदिवसीय कार्यशाला में हकृवि एवं कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रदेशभर के अधिकारियों ने भाग लिया.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास कार्यक्रम पोर्टल का शुभारंभ

नई दिल्ली: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की चौथी वर्षगांठ पर मत्स्यपालन के क्षेत्र में बदलाव लाने और भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से कई पहलों और परियोजनाओं का शुभारंभ किया.

इस अवसर पर केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन भी उपस्थित थे. मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव (आईएफ) सागर मेहरा और विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्यपालन विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों और फ्रांस, रूस, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, नार्वे और चिली के दूतावासों के प्रतिनिधिमंडल ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.

मत्स्यपालन विभाग (भारत सरकार), राष्ट्रीय मत्स्यपालन विकास बोर्ड, आईसीएआर संस्थानों और संबद्ध विभागों और मंत्रालयों के अधिकारियों, पीएमएमएसवाई लाभार्थियों, मछुआरों, मछली किसानों, एफएफपीओ, उद्यमियों, स्टार्टअप, कौमन सर्विस सैंटर (सीएससी) और देशभर के अन्य प्रमुख हितधारकों ने हाइब्रिड मोड में इस कार्यक्रम में भाग लिया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने इस अवसर पर एनएफडीपी (राष्ट्रीय मत्स्य विकास कार्यक्रम) पोर्टल लौंच किया, जो मत्स्यपालन के हितधारकों की रजिस्ट्री, सूचना, सेवाओं और मत्स्यपालन से संबंधित सहायता के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा.

उन्होंने पीएम-एमकेएसएसवाई परिचालन दिशानिर्देश भी जारी किए. एनएफडीपी को प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत बनाया गया है, जो प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत एक उपयोजना है. इस योजना से देशभर में मत्स्यपालन में लगे मछली श्रमिकों और उद्यमों की एक रजिस्ट्री बना कर विभिन्न हितधारकों को डिजिटल पहचान मिलेगी. एनएफडीपी के माध्यम से संस्थागत ऋण, प्रदर्शन अनुदान, जलीय कृषि बीमा आदि जैसे विभिन्न लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने एनएफडीपी पर पंजीकृत लाभार्थियों को पंजीकरण प्रमाणपत्र वितरित किए, जिन में अंकुश प्रकाश थली, रायगढ़, महाराष्ट्र, घनश्याम और प्रसन्न कुमार जेना, पुरी, ओडिशा, प्रदीप कुमार, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश, सुखपाल सिंह, फाजिल्का, पंजाब, रंजन कुमार मोहंती, बालासोर, ओडिशा, आनंद मैथ्यू, पूर्वी खासी हिल्स, मेघालय, रजनीश कुमार, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, कोक्किलिगड्डा गुंटूर, आंध्र प्रदेश, मीरा देवी, मुंगेर, बिहार, राजेश मंडल, बांका, बिहार, ग्याति रिन्यो, लोअर सुबनसिरी, अरुणाचल प्रदेश, बयाना सतीश, पश्चिम गोदावरी, आंध्र प्रदेश, हरेंद्र नाथ रबा, तामुलपुर, असम और अभिलाष केसी, अलाप्पुझा, केरल शामिल थे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी की. उन्होंने मोती की खेती, सजावटी मत्स्यपालन और समुद्री शैवाल की खेती के लिए समर्पित 3 विशेष मत्स्य उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना की घोषणा की. इन क्लस्टरों का उद्देश्य इन विशिष्ट क्षेत्रों में सामूहिकता, सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देना है, जिस से उत्पादन और बाजार पहुंच दोनों में वृद्धि होगी.

उन्होंने तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 100 तटीय गांवों को जलवायु अनुकूल तटीय मछुआरा गांवों (सीआरसीएफवी) में विकसित करने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए. इस के लिए 200 करोड़ रुपए किए गए हैं. यह पहल बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के बीच मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा और सामाजिकआर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के साथसाथ बुनियादी ढांचे में सुधार और जलवायु स्मार्ट आजीविका पर ध्यान केंद्रित करेगी.

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) द्वारा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग पर एक पायलट परियोजना का भी अनावरण किया गया. यह मत्स्यपालन में प्रौद्योगिकी को शामिल करने की दिशा में एक कदम है. इस अध्ययन का उद्देश्य अंतर्देशीय मत्स्यपालन की निगरानी और प्रबंधन में ड्रोन की क्षमता का पता लगाना, दक्षता और स्थिरता में सुधार करना है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने समुद्री शैवाल की खेती और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) के मंडपम क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना के लिए अधिसूचनाओं का अनावरण किया. उत्कृष्टता केंद्र समुद्री शैवाल की खेती में नवाचार और विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में काम करेगा, जो खेती की तकनीकों को परिष्कृत करने, बीज बैंक की स्थापना और नई प्रणालियों को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा.

इस के अलावा माली रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के आनुवंशिक संवर्द्धन के माध्यम से बीज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए समुद्री और अंतर्देशीय दोनों प्रजातियों के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग सैंटर की स्थापना का भी अनावरण किया गया.

मत्स्य विभाग, भारत सरकार ने ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय मीठा जल जलीय कृषि संस्थान (आईसीएआर-सीआईएफए) को मीठे पानी की प्रजातियों के लिए एनबीसी की स्थापना के लिए नोडल संस्थान और तमिलनाडु के मंडपम में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) के क्षेत्रीय केंद्र को समुद्री मछली प्रजातियों पर केंद्रित एनबीसी के लिए नोडल संस्थान के रूप में नामित किया है. लगभग 100 मत्स्यपालन स्टार्टअप, सहकारी समितियों, एफपीओ और एसएचजी को बढ़ावा देने के लिए 3 इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना को भी अधिसूचित किया गया.

यह केंद्र हैदराबाद में राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज), मुंबई में आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई) और कोच्चि में आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) जैसे प्रमुख संस्थानों में स्थापित किए जाएंगे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने ‘स्वदेशी प्रजातियों को बढ़ावा देने’ और ‘राज्य मछली के संरक्षण’ पर पुस्तिका का विमोचन किया. 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 22 ने या तो राज्य मछली को अपनाया है या घोषित किया है, वहीं 3 राज्यों ने राज्य जलीय पशु घोषित किया है और केंद्र शासित प्रदेशों लक्षद्वीप और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह ने अपने राज्य पशु घोषित किए हैं, जो समुद्री प्रजातियां हैं.

721.63 करोड़ रुपए के परिव्यय वाली प्राथमिकता परियोजनाओं की घोषणा की गई, जिस में समग्र जलीय कृषि विकास का समर्थन करने के लिए असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा और नागालैंड राज्यों में 5 एकीकृत एक्वा पार्कों का विकास, बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों में 2 विश्व स्तरीय मछली बाजारों की स्थापना, कटाई के बाद प्रबंधन में सुधार के लिए गुजरात, पुडुचेरी और दमन और दीव राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 3 स्मार्ट और एकीकृत मछली पकड़ने के बंदरगाहों का विकास, और जलीय कृषि और एकीकृत मछलीपालन को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, पंजाब राज्यों में 800 हेक्टेयर खारे क्षेत्र और एकीकृत मछलीपालन शामिल हैं.

उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने पीएमएमएसवाई योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव पर जोर दिया, जो भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में अब तक का सब से बड़ा निवेश है. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अब तक मत्स्यपालन के क्षेत्र में प्राप्त परिणाम पहले के बुनियादी ढांचे के विकास का परिणाम हैं, इसलिए हमें विकसित भारत @2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना होगा.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने जोर दे कर कहा कि सरकार 3 करोड़ मत्स्य हितधारकों के विकास और कल्याण की दिशा में काम कर रही है. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सामाजिकआर्थिक कल्याण के लिए समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस), और पोत संचार और सहायता प्रणाली के लिए मछली पकड़ने वाले जहाजों पर ट्रांसपोंडर, क्षेत्र के औपचारिकीकरण और क्षेत्र में समान विकास के लिए एनएफडीपी, निर्यात के लिए मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने जैसी विभिन्न पहल विभाग द्वारा की गई हैं.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य विभागों को आगे आ कर आवंटित पैसों का उपयोग करने, एनएफडीपी पर मछली श्रमिकों के पंजीकरण आदि के लिए ठोस प्रयास करने की आवश्यकता भी व्यक्त की.
वहीं जौर्ज कुरियन ने क्षेत्रीय अंतराल को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत उपलब्धियों की सराहना की और बुनियादी ढांचे व प्रजाति विविधीकरण परियोजनाओं सहित प्रमुख पहलों को रेखांकित किया. उन्होंने इन उपलब्धियों को आगे बढ़ाने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की और इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की.

डा. अभिलक्ष लिखी ने भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में बदलाव लाने में पिछले 4 सालों में हुई उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला. उन्होंने स्मार्ट और एकीकृत मछली पकड़ने के बंदरगाहों, ड्रोन प्रौद्योगिकियों के उपयोग, एनएफडीपी, स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार आदि जैसी नई पहलों पर जोर दिया, जो हमें मत्स्यपालन के क्षेत्र को और आगे बढ़ाने में मदद करेंगी.

सागर मेहरा ने सभा का स्वागत किया और कार्यक्रम के लिए संदर्भ निर्धारित करते हुए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) से भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास और स्थिरता आई है. मई, 2020 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य मछली उत्पादन, इस के बाद के बुनियादी ढांचे, पता लगाने की क्षमता और सभी मछुआरों के कल्याण में कमियों को दूर करना है.

पीएमएमएसवाई योजना मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र में 20,050 करोड़ रुपए का अब तक का सब से बड़ा निवेश है. पिछले कुछ वर्षों में, पीएमएमएसवाई मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र और समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विकसित और विस्तारित हुई है.

30 अगस्त, 2024 को पालघर (महाराष्ट्र) में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई पोत संचार और सहायता प्रणाली मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मत्स्यपालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम है. मछली पकड़ने वाले जहाजों पर 364 करोड़ रुपए की लागत से एक लाख ट्रांसपोंडर निःशुल्क लगाए जाएंगे, ताकि वे दोतरफा संचार कर सकें, संभावित मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकें, जिस से प्रयासों और संसाधनों की बचत हो सके और किसी भी आपात स्थिति में और चक्रवात के दौरान मछुआरों को सचेत किया जा सके. यह तकनीक मछुआरों को समुद्र में रहते हुए उन के परिवारों और मत्स्य विभाग के अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों के साथ रखेगी.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन क्षेत्र को मजबूत करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया गया और इस के परिणामस्वरूप आजीविका के अवसरों में वृद्धि हुई और “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण के अनुरूप सतत विकास हुआ.

पशुओं की सर्जरी में प्रशिक्षण कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के सर्जरी एवं रेडियोलौजी विभाग में देश के विभिन्न विभागों से आए पशु चिकित्सकों के लिए 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए लुवास के स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज ने सभी प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा करने पर बधाई दी.

उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप इन सारी तकनीकों का अपने क्षेत्र के पशुपालकों एवं पशुओं की भलाई के लिए अवश्य उपयोग करें एवं इसे अपने आसपास के पशु चिकित्सकों को भी सिखाएं, जिस से पशुधन की सर्जरी और भी अच्छी तरीके से की जा सके.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने कहा कि पशुधन किसानों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आप सभी प्रशिक्षणार्थियों से यही उम्मीद है कि आप सब ने इस प्रशिक्षण के दौरान जो सीखा, उस से पशुपालकों की मदद करने में सहायक सिद्ध होंगे और पशुओं की बीमारी से होने वाले माली नुकसान को कम कर सकेंगे.

प्रशिक्षण के बारे में जानकारी देते हुए विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 9 राज्यों (जम्मूकश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, ओड़िसा, तेलंगना, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक) के 20 पशु चिकित्सकों को एनेस्थिसिया, जनरल सर्जरी, यूरिनरी सर्जरी, डायफारमेटिक हर्निया, आंखों के मोतियाबिंद और अन्य सर्जरी में प्रशिक्षित किया गया.

एचएयू के एबिक सैंटर ने बढ़ाई आवेदन की तिथि

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में स्थापित एग्री बिजनैस इंक्यूबेशन सैंटर (एबिक) ने हरियाणा के छात्रों, उद्यमियों व किसानों से बिजनैस आइडिया मांगे हैं, जो उन को कृषि व्यवसायी बनाने में अहम रोल अदा कर सकते हैं.

अब एबिक ने पहल, सफल व छात्र कल्याण प्रोग्राम, जिस के अंतर्गत व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकार की ओर से ग्रांट देने का प्रावधान है, में आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दी है. इस के लिए उम्मीदवार को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना होगा.

आइडिया को मिल सकती है 4 से 25 लाख तक की ग्रांट

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के अनुसार, इस सैंटर के माध्यम से युवा छात्र, किसान, महिला व उद्यमी मार्केटिंग, नैटवर्किंग, लाइसैंसिंग, ट्रैडमार्क व पेटेंट, तकनीकी व फंडिंग से संबंधित प्रशिक्षण ले कर कृषि क्षेत्र में अपने स्टार्टअप को नया आयाम दे सकते हैं. इस के लिए ‘छात्र कल्याण प्रोग्राम’, ‘पहल’ एवं ‘सफल’-2024 नाम से 3 प्रोग्रामों का विवरण इस प्रकार हैं:

छात्र कल्याण प्रोग्राम : यह प्रोग्राम छात्रों के लिए पहली बार शुरू किया गया है, जो छात्रों को उद्यमी बनाने में मदद करेगा. इस प्रोग्राम के तहत केवल छात्र ही आवेदन कर सकते हैं. चयनित छात्र को एक महीने का प्रशिक्षण व 4 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित छात्र को एकमुश्त दी जाएगी.

पहल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 5 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को एकमुश्त दी जाएगी.

सफल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 25 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को 2 किस्तों में दी जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 5 सालों में 65 स्टार्टअप्स को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लगभग 7 करोड़ की राशि स्वीकृत की जा चुकी है. कुलपति प्रो, बीआर कंबोज ने उक्त कार्यक्रमों से संबंधित विवरण पुस्तिका का विमोचन किया.

आवेदकों के लिए आयु व शिक्षा नहीं बनेगी बाध्य

आवेदक को अपने आइडिया का प्रपोजल एचएयू की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना है, जोकि नि:शुल्क है. इस के बाद उस आइडिया का यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक व इंक्युबेशन कमेटी द्वारा एक महीने के प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाएगा. एक महीने के प्रशिक्षण के बाद भारत सरकार द्वारा गठित कमेटी आवेदक के आइडिया को प्रस्तुत करवाएगी और चयनित आवेदक को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुदान राशि स्वीकृत की जाएगी.

प्रशिक्षित युवा स्वरोजगार के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी रोजगार दे पाएंगे

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि युवाओं के लिए कृषि क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित करने का एक सुनहारा अवसर है. एबिक सैंटर से प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता ले कर युवा रोजगार खोजने के बजाय रोजगार देने वाले बन सकते हैं. इस सैंटर के माध्यम से स्टार्टअप्स देश को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे. भारत सरकार ने महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए 10 फीसदी अतिरिक्त अनुदान राशि देने का प्रावधान रखा है.

इस के साथ ही युवा, किसान व उद्यमी एबिक सैंटर के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, सर्विसिंग, पैकजिंग व ब्रांडिग कर के व्यापार की अपार संभावनाएं तलाश सकते हैं. ये तीनों कार्यक्रम उन को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित होंगे. उन्होंने कहा कि इस सैंटर से अब तक जुड़े युवा उद्यमी व किसानों ने न केवल अपनी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपए तक पहुंचाया है. अपितु उन्होंने दूसरे लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है.

केवीके वैज्ञानिक किसानों को दें नवीनतम तकनीकी जानकारी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली राज्य में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की जाएगी. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा. तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसलोत्पादन में बढ़ोतरी हो सके.

उन्होंने यह भी कहा कि किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है, जिस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.

कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

केज कल्चर तकनीक से मत्स्यपालन (Fish Farming)

भोपाल : मध्य प्रदेश में पर्याप्त जलाशय संसाधन हैं और बड़ी संख्या में केज बनाए गए हैं, जो मछली उत्पादन की उच्च क्षमता का संकेत देते हैं.

मछलीपालन में केज कल्चर एक खास तकनीक है, जिस में जलाशय में तय जगह पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश केज कल्चर की संस्कृति और जलीय कृषि में मछली उत्पादकता बढ़ाने के लिए एकीकृत प्रबंधन की खासा जरूरत की मांग करता है. यह देखते हुए कि वास्तविक समय निदान और प्रबंधन तकनीकों की कमी के कारण मछली में रोग एक बड़ी बाधा है.

संचालनालय मत्स्योद्योग मध्य प्रदेश ने केज कल्चर में मत्स्यपालन और जलीय कृषि रोग निदान और बेहतर प्रबंधन प्रथाओं पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान के साथ सहयोग से किया गया कार्यक्रम 5 एवं 6 सितंबर को संचालनालय मत्स्योद्योग भोपाल में आयोजित किया गया था.

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्था के डा. असित कुमार बेरा और नीलेमेश दास ने मछली रोग निदान निवारण उपाय, गहन जलीय कृषि और जलीय कृषि दवा के उपयोग योजना सहित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए. सत्र में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से 31 केज कल्चर किसान और 30 एक्वाकल्चर, टैंक कल्चर, बायोफ्लोक किसानों ने उपस्थित रह कर भाग लिया.

कार्यशाला में राज्य सरकार के 30 मत्स्य अधिकारियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया. 2 दिवसीय चर्चा के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण और तत्काल जरूरतों की पहचान की गई, जिस में क्षेत्र स्तर पर रोग का पता लगाना, क्षेत्र स्थल पर न्यूनतम निदान की सुविधा, कार्मिक रोग रिपोर्टिंग प्रशिक्षण और मछली व पानी के लिए स्वास्थ्य रिकौर्ड का रखरखाव शामिल है.

साथ ही, उन्होंने भविष्य के प्रबंधन विकल्पों के लिए डेटाबेस विकसित करने के लक्ष्य को साधा. संचालक मत्स्योद्योग, मध्य प्रदेश, रवि गजभिए और मुख्य महाप्रबंधक, मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ पीसी कोल ने कार्यक्रम में भाग लिया और पूरे राज्य में मछली उत्पादन में सुधार के लिए कार्यशाला के महत्व पर जोर दिया, प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया और उन्हें अन्य जिलों के किसानों व अधिकारियों तक पहुंचने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में नियमित आधार पर ऐसी इंटरैक्टिव चर्चा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी.

भेड़बकरी, खरगोशपालन : खर्चा कम, कमाई अधिक

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के एचआरडी विभाग द्वारा 8 दिवसीय (4 सितंबर से 11 सितंबर, 2024) स्ववित्तपोषित 13वां राष्ट्रीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर की अध्यक्षता मे कौंफ्रैंस हाल मे शुरुआत की गई.

इस 8 दिवसीय वैज्ञानिक भेड़बकरी एवं खरगोशपालन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के 9 राज्यों (राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र एवं अरुणाचल प्रदेश) के 27 प्रशिक्षिणार्थियों ने रजिस्ट्रेशन करा कर भाग लिया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अपने संबोधन में किसानों को संस्थान के पशु भेड़बकरी एवं खरगोशपालन के अवसर एवं उपयोगिता पर उदारहणस्वरूप विस्तार से संवाद किया और बताया कि भेड़ सब से कम संसाधनों में पालने वाला पशु है, जो अपने शारीरिक ग्रोथ भी बकरी की अपेक्षा जल्दी करता है. इसलिए आप देश की मांस की मांग को ध्यान मे रखते हुए अपनी रूचि के अनुसार भेड़बकरी एवं खरगोश का पालन करें.

उन्होंने आगे कहा कि भेड़ एवं बकरी में टीकाकरण के बाद विभिन्न प्रकार के प्रबंधन (आवास, चारा, दाना व विभिन्न मौसम आधारित सावधानी आदि) पर ध्यान दे कर आप अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि इस बैच में जिस तरह के पढ़ेलिखे लोग यहां उपस्थित हैं, उन से मुझे उम्मीद है कि ये व्यवसाय आने वाले समय में हौर्टिकल्चर व पोल्ट्री की तरह पशुपालन उद्यमिता का रूप जरूर लेगा.

उन्होंने आगे कहा कि विकसित भारत निर्माण तभी होगा, जब देश का हर नागरिक देश की तरक्की में भागीदारी होगा. मेरे संस्थान के पशु आत्मनिर्भर भारत में देश की युवाशक्ति के बल पर जरूर इस में रोजगारपरक व्यवसाय के जरीए योगदान देंगे.

अंत में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी लोगों से संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुभव से सीखने का निवेदन करते हुए अपने पहले से उपलब्ध नोलेज बढ़ाने का आग्रह किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयक डा. सुरेश चंद शर्मा एवं डा. लीलाराम गुर्जर द्वारा किया जा रहा है. प्रशिक्षण के उद्धघाटन के अवसर पर एजीबी विभाग अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्र, डा. अजय कुमार, डा. सत्यवीर ड़ागी, डा. विनोद कदम, डा. अरविंद सोनी आदि ने अपने अनुभव से ट्रेनिंग में भाग ले रहे लोगों से चर्चा की. यह जानकारी अविकानगर के मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना दी.