कृषि विश्वविद्यालय के लोगों को मिला ट्रेडमार्क (Trademark)

सबौर: बिहार कृषि विश्विद्यालय ने अपने लोगों और स्लोगन “Work is Worship, Work with Smile” पर पहला ट्रेडमार्क प्राप्त किया है, जो कुलपति प्रो. डी.आर. सिंह की परिकल्पना थी. कुलपति ने जनवरी 2023 में कार्य भार संभालने के बाद विश्वविद्यालय की शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों के विकास के लिए यह स्लोगन दिया था . यह ट्रेडमार्क भारत सरकार के ट्रेड मार्क्स रजिस्ट्र्री, ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के अंतर्गत, ट्रेड मार्क पंजीकरण प्रमाणपत्र, धारा 23 (2), नियम 56 (1) के तहत 6 जून 2023 से प्रदान किया गया है.

यह विश्वविद्यालय के लिए ट्रेडमार्क के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ी मान्यता है. कुलपति के गतिशील नेतृत्व में विश्वविद्यालय शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. कुलपति ने इस उपलब्धि के लिए अनुसंधान निदेशक, डा. अनिल कुमार सिंह और आईटीएमयू प्रभारी अधिकारी, डा. नींटू मंडल को बधाई दी. उन्होंने आगे यह आशा व्यक्त की, कि विश्वविद्यालय भविष्य में और अधिक पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क प्राप्त करेगा.

Employment Opportunities: कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में राष्ट्रीय युवा पेशेवर विकास कार्यक्रमकृषि विस्तार में नई दक्षता, करियर के अवसर और अनुसंधान विषय पर 5 दिवसीय कार्यक्रम हुआ. कृषि महाविद्यालय के विस्तार शिक्षा विभाग तथा राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की जब कि राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के निदेशक (कृषि विस्तार) डा. श्रवणन राज विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. कार्यक्रम में राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश पूसा संस्थान दिल्ली सहित विभिन्न प्रदेशों के 65 शोधकर्ताओं ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विस्तार के क्षेत्र में नवाचार कौशल विकास और अनुसंधान उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है. विश्व में हो रहे तकनीकी विकास,अनुसंधान और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रचारप्रसार के कारण कृषि विस्तार की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है जो अनुसंधान संस्थानों और कृषक समुदाय के बीच पुल का काम कर रही है.

उन्होंने बताया कि कृषि में रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं. युवाओं को आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार से जुडऩा होगा. सूचना प्रौद्योगिकी तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) को इस्तेमाल करके विस्तार शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, जो वर्तमान समय की मांग है. उन्होंने कहा कि आज हमें कृषि विस्तार और कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक के प्रचारप्रसार करने में कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) के सहयोग की भी आवश्यकता है.

युवा पेशेवरों ,शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर उन्हें सीखने और नवाचार के लिए प्रेरित करना होगा. प्रतिभागियों को कृषि विस्तार के मार्गदर्शक बताते हुए उन्होंने कहा कि कृषि परिदृश्य में एक ठोस बदलाव लाने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र को लाभकारी एवं आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के संस्थान निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि डा. श्रवणन राज ने कृषि क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाओं के संदर्भ में कहा कि कहा कि कृषि के क्षेत्र में युवाओं को आगे लाने के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित करने के साथसाथ आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार की भी आवश्यकता है.

विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षणों (Vocational Trainings) के लिए करें तुरंत आवेदन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में हरियाणा के अनुसूचित जाति /जनजाति के उम्मीदवारों को विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान में समय-समय पर अनुसूचित जाति/जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे स्वयं का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बन सके.

इसी कड़ी में अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों के लिए 5 दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जाएगा. जिस के अंतर्गत दूध से मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करना, आचार और परिरक्षित पदार्थ बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण, बेकरी में मिलेट्स के उपयोग पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. अनुसूचित जाति/ जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियां जो यह प्रशिक्षण लेना चाहते हैं वो गेट नंबर 3, लुद्दास रोड़ के नजदीक सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार मे आकर आवेदन कर सकते हैं. इन प्रशिक्षणों के लिए आवेदक की उम्र प्रमाणपत्र के अनुसार 18 से कम नहीं होनी चाहिए और वो किसी स्कूल मे अध्ययनरत नहीं होना चाहिए .विकलांग, विधवा, तलाकशुदा इत्यादि उम्मीदवारों को चयनित कमेटी द्वारा वरीयता दी जाएगी.

संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि आवेदन फौर्म 16 दिसम्बर 2024 तक किसी भी कार्य दिवस को सुबह 9 बजे से शाम 4.30 तक जमा करवा सकते है. चयनित प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्कीम के तहत खुद का रोजगार शुरू करने के लिए सहायता सामग्री देने का भी प्रावधान है.

फौर्म में सही विवरण न भरने या अधूरा छोड़ने या कोई आवश्यक दस्तावेज न लगाने की अवस्था में आवेदन रद्द कर दिया जाएगा. आवेदन फौर्म के साथ स्वयं सत्यापित दस्तावेजों की कौपी को संलग्न करना अति आवश्यक है जैसे शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र, आयु के लिए कोई भी हरियाणा सरकार द्वारा प्रमाणित प्रमाणपत्र, हरियाणा सरकार द्वारा जारी अनुसूचित-जाति/जनजाति प्रमाणपत्र, आधारकार्ड, स्वयं सत्यापित नवीनतम रंगीन फोटो, सक्रिय बैंक अकाउंट की कौपी के पहले पृष्ठ की प्रति जिस पर खाताधारक और बैंक का विवरण दिया हो इत्यादि.

फौर्म भरने से पहले ध्यान दिया जाए कि परिवार पहचान पत्र के अनुसार किसी भी सदस्य ने इस से पहले इस विश्वविद्यालय या इस के संबंधित हरियाणा के किसी भी कृषि विज्ञान केन्द्रों/संस्थानों से अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए सहायता प्राप्त स्कीम के तहत किसी भी तरह का प्रशिक्षण न लिया हुआ हो और इस संबंध में उम्मीदवार को एक अंडरटेकिंग इस संस्थान में देनी होगी. आवेदक को निर्धारित फौर्म भर कर ही खुद के हस्ताक्षर करने होंगे वरना उम्मीदवार का फौर्म रद्द कर दिया जाएगा.

मृदा स्वास्थ्य (Soil Health) अच्छा तो खेती से पैदावार अच्छी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मृदा दिवस पर सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में मिट्टी की देखभाल: माप, निगरानी व प्रबंधन पर विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी.आर. काम्बोज ने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. आर. काम्बोज ने कहा कि भूमि की उर्वरक क्षमता बनाएं रखने के लिए मिट्टी की जांच, फसल चक्र में बदलाव, जैविक प्रबंधन और कम भूजल दोहन वाली फ़सलें व तकनीकें अपनाना बहुत जरुरी है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो पैदावार भी बढ़ेगी. इस लिए किसान नियमित रुप से मिट्टी की जांच करवाते रहें और उस के अनुसार ही फसलों का चयन करें. क्योंकि अधिक रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान की लागत भी बढ़ती है और मिट्टी के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचता है.

विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य मिट्टी के संरक्षण, महत्व और उस के टिकाऊ उपयोग के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है. मिट्टी पृथ्वी पर जीवन का आधार है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन में मुख्य भूमिका निभाती है. विश्व में लगभग 95 फीसदी  खाद्य पदार्थ मिट्टी पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि मृदा की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखना खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा कि किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच बिलकुल करवानी चाहिए. इससे किसान कम मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक पैदावार ले सकते हैं. किसानों की मिट्टी की जांच के लिए विश्वविद्यालय द्वारा उचित प्रबंध किए गए हैं. किसानों को परंपरागत फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि इस से उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत होगी. किसान फसल अवशेष ना जलाएं क्योंकि इस से भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते हैं.

मृदा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों, सरकार द्वारा प्रदत्त कि जा रही सुविधाओं तथा किसानों के द्वारा की जा रही मेहनत राष्ट्र की प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने विभाग की शोध संबंधी प्राथमिकताओं के बारे में बताते हुए मृदा उर्वरता के जिला स्तरीय मानचित्र बनाने पर भी सुझाव दिया. कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि विभाग द्वारा साल 2024 में मिट्टी के 3000 तथा पानी के 2800 नमूनों की जांच की गई. उन्होंने कुलपति द्वारा 5 कृषि विज्ञान केंद्रों में नई मिट्टी प्रयोगशाला बनाने के लिए दिए गए बजट पर उनका धन्यवाद किया.

किसानों को सब्सिडी (Subsidy) के साथ मिलेगी पूरी खाद

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सभा में फसलों पर एमएसपी, किसानों की कर्जमाफी समेत कई विषयों पर सवालों के जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए किसानों को एमएसपी देने से इंकार कर दिया था, जब कि‍ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों से एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी कर रही है, वहीं शिवराज सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार उपज एमएसपी पर खरीदती रहेगी. चौहान ने कहा कि हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय करने के साथ ही किसानों से उपज भी खरीदेगी. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि साल 2015 में इस मंत्रालय का नाम कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय रखा गया, इस से पहले किसान कल्याण का कोई संबंध ही नहीं था.

राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को नया नाम “किसानों के लाड़ले” दिया है. शिवराज सिंह चौहान राज्य सभा में प्रश्नकाल के दौरान कृषि संबंधी सवालों के जवाब दे रहे थे, इसी दौरान सभापति धनखड़ ने कहा कि जिस आदमी की पहचान देश में लाड़ली बहनों के भैया के नाम से है, अब वो किसान का लाड़ला भाई भी होगा, मैं पूरी तरह आशावान हूं कि ऊर्जावान मंत्री अपने नाम ‘शिवराज’ के अनुरूप ये करके दिखाएंगे. सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज से मैंने आपका नामकरण कर दिया- “किसानों के लाड़ले”.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसानों की उपज मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर खरीदी जाएगी. हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय भी करेगी और उपज भी खरीदेगी. उन्होंने कहा कि यह नरेंद्र मोदी की सरकार है, मोदी की गारंटी वादा पूरा करने की गारंटी है. शिवराज सिंह ने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने कहा था कि वो एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं.

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही ये फैसला किया कि लागत पर 50% मुनाफा जोड़कर एमएसपी की दरें तय की जाएगी. जब कांग्रेस सरकार थी, तब कभी भी 50% से ज्यादा लागत पर इन्होंने किसानों को लाभ नहीं दिया, लेकिन हम कटिबद्ध हैं, प्रतिबद्ध हैं कि कम से कम 50% से ज्यादा लाभ देकर किसानों की फसलें खरीदेंगे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मोदी की सरकार बहुत दूरदर्शिता से काम करती है. किसानों का कल्याण और विकास प्रधानमंत्री मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता है. कृषि के लिए बजट आवंटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. साल 2013-14 तक ये केवल 21,900 करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 1,22,528 करोड़ रुपए हो गया है. किसान कल्याण के लिए हमारी 6 प्राथमिकताएं हैं- हम उत्पादन बढ़ाएंगे, उत्पादन की लागत घटाएंगे, उत्पादन का उचित मूल्य देंगे, फसल में अगर नुकसान हो तो उसकी भरपाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के द्वारा करेंगे, हम कृषि का विविधीकरण करेंगे और प्राकृतिक खेती की तरफ ले जाकर किसानों की आय इतनी बढ़ाएंगे कि बार-बार किसान कर्ज माफी के लिए मांग करने की स्थिति में नहीं होगा.

हम आय बढ़ाने पर विश्वास रखते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि पूरी सामर्थ्य और क्षमता झोंक कर काम कर के अपने किसानों की सेवा कर सकूं और कृषि के परिदृश्य को हम और बेहतर बना सकें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का संकल्प लिया है उसी का एक रोडमैप हमने बनाया है, जिसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

शिवराज सिंह ने कहा कि हम न केवल फर्टिलाइजर उपलब्ध करवा रहे हैं, बल्कि सब्सिडी भी दे रहे हैं. पिछली बार किसानों को 1,94,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है. तब जाकर यूरिया की बोरी हो, डीएपी की बोरी हो, ये किसानों को सस्ती मिलती है. 2100 रुपए की एक बोरी पर सब्सिडी देने का चमत्कार नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है और सारे भारत के किसानों को सब्सिडी देकर हम फर्टिलाइजर समय पर उपलब्ध कराने का काम कर भी रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. कैमिकल फर्टिलाइजर के असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग के कारण जो नुकसान होते हैं, उसके लिए भी हम जागरूकता पैदा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस के लिए भी चिंतित हैं. इस के लिए जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की तरफ हम ध्यान दे रहे हैं, लेकिन मैं फिर पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहूंगा कि, किसानों को सब्सिडी के साथ पूरा खाद देने में सरकार ने ना तो कोताही बरती है, ना ही आगे कभी बरतेगी पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराया जाएगा.

बीएयू मेँ विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) 2024 का हुआ आयोजन

बीएयू , सबौर ने 5 दिसंबर 2024 को विश्व मृदा दिवस 2024 बड़े जोश के साथ मनाया. इस वर्ष का विषय, ‘ मिट्टी का खयाल: मापें, निगरानी करें, प्रबंधित करें’ , स्थायी प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने के लिए सटीक मृदा डेटा की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

इस अवसर पर, बीएयू सबौर के कुलपति, डा. डी. आर. सिंह ने अपने संदेश में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के महत्त्व पर जोर दिया. उन्होंने मृदा संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की जागरूकता पहलों के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला.

भागलपुर के छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में मृदा स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए उत्साहपूर्वक भाग लिया. इस अवसर पर भारतीय मृदा विज्ञान सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा ई-न्यूजलैटर के चौथे अंक का विमोचन भी किया गया.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रोफैसर गौतम कुमार घोष (विश्वभारती, श्रीनिकेतन, पश्चिम बंगाल) का आमंत्रित व्याख्यान था. उन के विचार “समेकित पोषक प्रबंधन (INM)” के माध्यम से फसल उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीतियों पर केंद्रित थे.

छात्रकेंद्रित गतिविधियों, जैसे “KNOW YOUR SOIL” क्विज़ और जस्ट-ए-मिनट (JAM) प्रतियोगिता ने प्रतिभागियों की भागीदारी और मृदा संरक्षण की गहरी समझ को प्रोत्साहित किया. विजेताओं को भारतीय मृदा संरक्षण सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए.

हाथोंहाथ सीखने के अनुभव को जोड़ते हुए, मृदा परीक्षण किट पर एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया, जिस में स्कूल के छात्रों को मृदा स्वास्थ्य मूल्यांकन की व्यावहारिक जानकारी दी गई.  पूरे दिन, पीजी लैब-1 के पास पौधारोपण क्षेत्र में मृदा संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करने वाले शैक्षिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए.
विभागाध्यक्ष डा. अंशुमान कोहली ने भी भविष्य में इस तरह के आयोजन के लिए संकाय सदस्यों और छात्रों को प्रोत्साहित किया. नवोदय विद्यालय, नगरपारा, भागलपुर के 100 छात्रों और विभाग के 60 स्नातकोत्तर छात्रों ने कार्यक्रम में भाग लिया.

कार्यक्रम का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि मिट्टी के सेहत को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, जो स्थायी कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने में इस की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है.

कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.

केज कल्चर (Cage Culture) तकनीक से कैसे करें मछली (Fish) उत्पादन

लखनऊ : मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि मत्स्यपालन तकनीक एवं नदियों व जलाशयों में मत्स्य अंगुलिका का संचय, मत्स्य आखेट प्रबंधन की जानकारी, जल क्षेत्रों के दोहन न करने व जल क्षेत्र की निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) बनाते हुए अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन के साथसाथ देशीय मत्स्य प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन के लिए समारोह का आयोजन किया गया है. प्रदेश में उपलब्ध कुल जल क्षेत्रों से वर्ष 2023-24 मे उत्तर प्रदेश का कुल मत्स्य उत्पादन 11.60 लाख मीट्रिक टन एवं मत्स्य उत्पादकता 5539.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हुआ.

डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि प्रदेश में गंगा, यमुना, चंबल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई सदाबाही नदियां बहती हैं, जिन के दोनों किनारे एवं आसपास मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है, जो आजीविका के लिए मुख्यतः मत्स्यपालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन कार्यों पर निर्भर है. इन्हें रोजगार उपलब्ध कराने एवं उन के आर्थिक उन्नयन के लिए अभियान चला कर मत्स्य जीवी सहकारी समितियों के गठन की कार्यवाही की जा रही है, जिस के अंतर्गत 565 समितियों के गठन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए समिति गठन की कार्यवाही कराई जा रही है.

मत्स्य विकास मंत्री संजय कुमार निषाद ने बताया कि केज कल्चर मछली के गहन उत्पादन के लिए एक उभरती हुई तकनीक है. जलाशयों में स्थापित केजों मे पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है.

प्रमुख सचिव, मत्स्य, के. रवींद्र नायक ने कहा कि मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों को नवीन तकनीकी प्रदान की जा रहाई है एवं उन के द्वारा प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए पूरे मनोयोग से कार्यवाही की जा रही है. प्रदेश में मात्स्यिकी क्षेत्र के विस्तार से रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथसाथ लक्षित वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी में मत्स्य सैक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपस्थित मत्स्यपालकों एवं ठेकेदारों से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि लाए जाने के संबंध में सुझाव आमंत्रित किए गए. अधिक से अधिक केज लगाए जाने के संबंध में प्रमुख सचिव मत्स्य द्वारा भारत सरकार से धनराशि की मांग की बात कही और यह भी कहा कि जलाशय के ठेकेदार आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं. वह स्वयं के संसाधन से भी जलाशयों में केज स्थापित कराए.

महानिदेशक मत्स्य राजेश प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से समुचित उपयोग करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में अग्रणी बनाया जा सकता है. प्रदेश के मत्स्यपालकों द्वारा वर्तमान में नवोन्मेषी तकनीकी के माध्यम से मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा रही है.

विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में निदेशक मत्स्य एनएस रहमानी विश्व मात्स्यिकी दिवस के बारे में प्रकाश डालते हुए इस के उद्देश्यों एवं प्रदेश में मत्स्य विकास के बारे में विस्तार से बताया गया.

निदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि मत्स्य उत्पादन वर्ष 2023-24 में 11.60 लाख मीट्रिक टन प्राप्त किया गया. अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी तकरीबन 8.85 फीसदी है. प्रदेश में मत्स्य उत्पादकता 5540 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है.

प्रदेश को वर्ष 2020 एवं 2023 के दौरान अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतर्स्थलीय मत्स्यपालन राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 36664.64 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया और प्रदेश के बाहर भी मेजर कार्प मत्स्य बीज निर्यात किया जा रहा है.

प्रदेश में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विगत 4 सालों में 1277 इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयां लगाई गई, जिस में मुख्यतः 954 रिसर्कुलेटरी ऐक्वाकल्चर सिस्टम, 63 मत्स्य बीज हैचरी, 123 लघु एवं वृहद मत्स्य आहार मिलों, 55 फिश कियोश्क, 78 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 4 मोबाइल लैब की निजी क्षेत्र में स्थापित कराई गई. मछली की बिक्री के लिए कोल्डचेन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की 2604 इकाइयों पर अनुदान देते हुए लाभान्वित किया गया है.

मत्स्य बीज की उपलब्धता के लिए 63 मत्स्य बीज हैचरी, 266 हेक्टेयर में मत्स्य बीज रियरिंग यूनिट निर्मित कराई गई है. 2019.72 हेक्टेयर क्षेत्रफल के निजी क्षेत्र में तालाब बनाया गया है. केज में मत्स्य उत्पादकता के दृष्टिगत 682 केज स्थापित कराए जा चुके हैं. डेढ़ लाख मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के तहत पंजीकृत कर आच्छादित किया गया.

मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों में प्रथम वर्ष निवेश के लिए अब तक 954 लाभार्थियों को 822.22 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के अंतर्गत 96 लाभार्थियों को 91.044 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया.

निषादराज बोट सब्सिडी योजना में अब तक कुल 920 मछुआ समुदाय के गरीब व्यक्तियों को जीवकोपार्जन हेतु मछली पकड़ने एवं बेचने के लिए नाव, जाल, आइसबौक्स एवं लाइफ जैकेट उपलब्ध कराए गए. विगत 4 वर्षों में 28,520 व्यक्तियों को मत्स्यपालन के लिए 25858.39 हेक्टेयर क्षेत्रफल के ग्रामसभा के तालाबों के पट्टे उपलब्ध कराए गए.

मत्स्य पालक कल्याण फंड के अंतर्गत मछुआ बाहुल्य 289 गांवों में 3126 सोलर स्ट्रीट लाइट एवं 570 हाईमास्ट लाइट लगाई गई. कोष के माध्यम से चिकित्सा सहायता, दैवीय आपदा, प्रशिक्षण एवं मछुआ आवास बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई. माता सुकेता परियोजना के अंतर्गत 250 केज मछुआ समुदाय की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु लगाए जाने का प्रावधान है. 16757 मत्स्यपालकों को धनराशि 131.00 करोड़ रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए.

रिवर रैंचिंग के अंतर्गत मेजर कार्प एवं राज्य मीन चिताला मत्स्य प्रजातियों के नदियों मे संरक्षण के लिए कुल 297 लाख मत्स्य बीज नदियों में संचित कराया गया. विभागीय योजनाओं को पारदर्शी ढंग से औनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू की गई है. मो. परवेज खान प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद बाराबंकी द्वारा आरएएस एवं फीड मिल के बारे में विस्तार से मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

डा. संजय श्रीवास्तव, जनपद महराजगंज के प्रगतिशील मत्स्यपालक द्वारा हैचरी निर्माण में उस के लाभ लागत के संबंध में उपस्थित मत्स्यपालकों को तकनीकी विधियों के बारे में जानकारी दी गई. मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद गाजियाबाद द्वारा तालाब प्रबंधन एवं दूषित तालाबों में सफल मत्स्यपालन कैसे किया जाए, के संबंध में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

देवमणि निषाद, जनपद, गौरखपुर द्वारा अपनी सफलता की कहानी को मत्स्यपालकों के साथ साझा किया गया और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के संबंध में जानकारी दी गई. जय सिंह निषाद द्वारा आरएएस के माध्यम से कम भूमि एवं जल से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किए जाने के संबंद में अपने अनुभव को उपस्थित मत्स्यपालकों से साझा किया गया. दरोगा जुल्मी निषाद द्वारा मत्स्यपालन में उत्कृष्ट कार्य किए जाने के संबंध में उन्हें पुरस्कृत किया गया.

मनीष वर्मा द्वारा जलाशयों मे केज स्थापना एवं उस में उत्पादित की जाने वली मछलियों और प्रति केज से प्राप्त की जाने वाली शुद्ध आय के संबंध में अपने उदबोधन में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई. डा. नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक एनबीएफजीआर लखनऊ द्वारा संस्थान के कार्यों के संबंध में विस्तार से बताते हुए मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए उचित मात्रा में गुणवत्तायुक्त मत्स्य अंगुलिका का संचय कराते हुए मत्स्य उत्पादन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. प्रदेश की वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी के मत्स्य सैक्टर के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

मोनिशा सिंह, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. द्वारा संघ द्वारा समितियों एवं मत्स्यपालकों के लिए संचालित कार्यक्रमों के बारे में बताया गया. अंजना वर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लि. द्वारा निगम द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन और प्रदेश में मत्स्य बीज की उपलब्धता व जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से जलाशयों के मत्स्य उत्पादकता के बारे में बताया गया.

मंत्री द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न क्षेत्र में प्रदेश में उत्कृष्ट योगदान कर रही मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक, जनपद गाजियाबाद, देवमणि निषाद, जनपद गौरखपुर, जय सिंह निषाद, दरोगा जुल्मी निषाद सहित 16 व्यक्तियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के दौरान मत्स्य की विभिन्न गतिविधियों में अनुदानित 36 व्यक्तियों को मंत्री द्वारा अनुदान की धनराशि के चेक व प्रमाणपत्र भी वितरित किया गया.

विभाग द्वारा निःशुल्क मछुआ दुर्घटना बीमा योजना से आच्छादित करने के लिए मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से वर्ष 2024-25 में कुल लक्षित 1,50,000 मत्स्यपालकों का आच्छादन कराए जाने के लिए कार्यवाही की गई. केज कल्चर के साथसाथ पेन कल्चर और जिंदा मछली विक्रय केंद्र को प्रोसाहित करते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्यवर्धन के माध्यम से आय में वृद्धि लाई जाए. उपस्थित मत्स्यपालकों से सुझाव मांगे गए तदनुसार उत्पादन के बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार कराई जा सके.
उपनिदेशक पुनीत कुमार द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कार्यशाला के समापन की घोषणा की गई. कार्यक्रम उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. के सभापति वीरू निषाद एवं विभागीय अधिकारी सहित तमाम मत्स्यपालक उपस्थित रहे.

पशुपालकों (Cattle Farmers) को भेड़ की उन्नत नस्लों का वितरण

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर की अनुसूचित जनजाति उपयोजना मे डूंगरपुर जिले के भटनाड़ा ग्राम पंचायत भवन में किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी एवं भेड़पालन के लिए 100 पशुओं के वितरण का आयोजन किया गया. इस मौके पर अविकानगर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन में टीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. जी. गणेश सोनवाणे द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित आदिवासी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से भेड़पालन, टीकाकरण एवं साल भर किए जाने वाली गतिविधियों पर विस्तार से संवाद किया गया. इस मौके पर टीएसपी उपयोजना के माध्यम से डूंगरपुर जिले में किए जा रहे काम के बारे में अतिथियों को अवगत कराया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उमेश मीणा विधायक आसपुर विधानसभा ने भी उपस्थित किसानों को वर्तमान समय के हिसाब से वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन एवं खेती करने पर जोर दिया और सभी आदिवासी किसानो को स्वरोजगार अपनाकर अपने परिवार की आर्थिक उन्नति के लिए नई पीढ़ी को कौशल विकास की ओर बढ़ने का आह्वाहन किया.

कार्यक्रम का संचालन डा. अमर सिंह मीणा द्वारा किया गया. संगोष्ठी के अवसर पर 11 आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी परिवारों को 5 भेड़ (4 मादा एवं 1 नर) की इकाई एवम 45 भेड़पालक आदिवासी किसानों को उन्नत नस्ल का एक मेढ़ा के साथ फीडिंग ट्रौप, पैलेट फीड, तसला, बालटी, खोडी, खुरपी, दंराती आदि का वितरण कार्यक्रम में उपस्थित अथितियों द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में सोहन लाल अहारी एवं रमनलाल कलसुवा द्वारा भेड़पालक आदिवासी किसानों का सर्वे कर के कार्यक्रम आयोजन में सहयोग किया गया. अविकानगर से पशुओं का परिवहन रामखिलाडी मीणा व राजेश चंदेल द्वारा किया गया. संगोष्ठी एवं वितरण कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान के वित्त अधिकारी भूपेंद्र कुमार गुर्जर, सरपंच देवशंकर नेनोमा एवं भटनाड़ा पंचायत के गांववासियों के साथ लाभान्वित आदिवासी किसान उपस्थित रहे.

पशुपालकों को भेड़ की उन्नत नस्लों के संदर्भ आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में चल रही अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डा. अरूण कुमार तोमर निदेशक के निर्देशन में आयोजित किया गया. जिसके समापन कार्यक्रम मे संस्थान द्वारा चयनित अनुसूचित जाति की 25 महिलओं एवं पुरूष बीपीएल किसानों ने भाग लिया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को भेड़-बकरीयों में प्रजनन, स्वास्थ्य, पशु पोषण, अधिक उत्पादन के लिए कृत्रिम गर्भाधान, ऊन एवं ऊन के उत्पादों की नवीन तकनीकी जानकारियां दी गईं. कार्यक्रम के समापन समारोह में अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. अजय कुमार ने किसानों को संम्बोधित करते हुए कहा कि वे भेड़-बकरी पालन कर अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं और कहा कि वे संस्थान से 5 दिन में मिली जानकरी को क्षेत्र के दुसरे  किसानों से भी साझा कर उन की भी जानकारी को बढ़ाएं. जिस से अन्य किसान भी इस का फायद ले सकें.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डा. एल.आर. गुर्जर, प्रभारी, तकनीकी स्थानांतरण एवं सामाजिक विज्ञान विभाग एवं डा. रंगलाल मीणा, वैज्ञानिक रहे. कार्यक्रम में गौतम चौपड़ा, डी.के. यादव एवं अन्शुल शर्मा ने भी सहयोग प्रदान किया.