पशुओं की सर्जरी में प्रशिक्षण कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के सर्जरी एवं रेडियोलौजी विभाग में देश के विभिन्न विभागों से आए पशु चिकित्सकों के लिए 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए लुवास के स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज ने सभी प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा करने पर बधाई दी.

उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप इन सारी तकनीकों का अपने क्षेत्र के पशुपालकों एवं पशुओं की भलाई के लिए अवश्य उपयोग करें एवं इसे अपने आसपास के पशु चिकित्सकों को भी सिखाएं, जिस से पशुधन की सर्जरी और भी अच्छी तरीके से की जा सके.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने कहा कि पशुधन किसानों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आप सभी प्रशिक्षणार्थियों से यही उम्मीद है कि आप सब ने इस प्रशिक्षण के दौरान जो सीखा, उस से पशुपालकों की मदद करने में सहायक सिद्ध होंगे और पशुओं की बीमारी से होने वाले माली नुकसान को कम कर सकेंगे.

प्रशिक्षण के बारे में जानकारी देते हुए विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 9 राज्यों (जम्मूकश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, ओड़िसा, तेलंगना, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक) के 20 पशु चिकित्सकों को एनेस्थिसिया, जनरल सर्जरी, यूरिनरी सर्जरी, डायफारमेटिक हर्निया, आंखों के मोतियाबिंद और अन्य सर्जरी में प्रशिक्षित किया गया.

एचएयू के एबिक सैंटर ने बढ़ाई आवेदन की तिथि

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में स्थापित एग्री बिजनैस इंक्यूबेशन सैंटर (एबिक) ने हरियाणा के छात्रों, उद्यमियों व किसानों से बिजनैस आइडिया मांगे हैं, जो उन को कृषि व्यवसायी बनाने में अहम रोल अदा कर सकते हैं.

अब एबिक ने पहल, सफल व छात्र कल्याण प्रोग्राम, जिस के अंतर्गत व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकार की ओर से ग्रांट देने का प्रावधान है, में आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दी है. इस के लिए उम्मीदवार को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना होगा.

आइडिया को मिल सकती है 4 से 25 लाख तक की ग्रांट

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के अनुसार, इस सैंटर के माध्यम से युवा छात्र, किसान, महिला व उद्यमी मार्केटिंग, नैटवर्किंग, लाइसैंसिंग, ट्रैडमार्क व पेटेंट, तकनीकी व फंडिंग से संबंधित प्रशिक्षण ले कर कृषि क्षेत्र में अपने स्टार्टअप को नया आयाम दे सकते हैं. इस के लिए ‘छात्र कल्याण प्रोग्राम’, ‘पहल’ एवं ‘सफल’-2024 नाम से 3 प्रोग्रामों का विवरण इस प्रकार हैं:

छात्र कल्याण प्रोग्राम : यह प्रोग्राम छात्रों के लिए पहली बार शुरू किया गया है, जो छात्रों को उद्यमी बनाने में मदद करेगा. इस प्रोग्राम के तहत केवल छात्र ही आवेदन कर सकते हैं. चयनित छात्र को एक महीने का प्रशिक्षण व 4 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित छात्र को एकमुश्त दी जाएगी.

पहल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 5 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को एकमुश्त दी जाएगी.

सफल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 25 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को 2 किस्तों में दी जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 5 सालों में 65 स्टार्टअप्स को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लगभग 7 करोड़ की राशि स्वीकृत की जा चुकी है. कुलपति प्रो, बीआर कंबोज ने उक्त कार्यक्रमों से संबंधित विवरण पुस्तिका का विमोचन किया.

आवेदकों के लिए आयु व शिक्षा नहीं बनेगी बाध्य

आवेदक को अपने आइडिया का प्रपोजल एचएयू की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना है, जोकि नि:शुल्क है. इस के बाद उस आइडिया का यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक व इंक्युबेशन कमेटी द्वारा एक महीने के प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाएगा. एक महीने के प्रशिक्षण के बाद भारत सरकार द्वारा गठित कमेटी आवेदक के आइडिया को प्रस्तुत करवाएगी और चयनित आवेदक को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुदान राशि स्वीकृत की जाएगी.

प्रशिक्षित युवा स्वरोजगार के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी रोजगार दे पाएंगे

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि युवाओं के लिए कृषि क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित करने का एक सुनहारा अवसर है. एबिक सैंटर से प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता ले कर युवा रोजगार खोजने के बजाय रोजगार देने वाले बन सकते हैं. इस सैंटर के माध्यम से स्टार्टअप्स देश को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे. भारत सरकार ने महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए 10 फीसदी अतिरिक्त अनुदान राशि देने का प्रावधान रखा है.

इस के साथ ही युवा, किसान व उद्यमी एबिक सैंटर के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, सर्विसिंग, पैकजिंग व ब्रांडिग कर के व्यापार की अपार संभावनाएं तलाश सकते हैं. ये तीनों कार्यक्रम उन को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित होंगे. उन्होंने कहा कि इस सैंटर से अब तक जुड़े युवा उद्यमी व किसानों ने न केवल अपनी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपए तक पहुंचाया है. अपितु उन्होंने दूसरे लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है.

केवीके वैज्ञानिक किसानों को दें नवीनतम तकनीकी जानकारी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली राज्य में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की जाएगी. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा. तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसलोत्पादन में बढ़ोतरी हो सके.

उन्होंने यह भी कहा कि किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है, जिस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.

कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

केज कल्चर तकनीक से मत्स्यपालन (Fish Farming)

भोपाल : मध्य प्रदेश में पर्याप्त जलाशय संसाधन हैं और बड़ी संख्या में केज बनाए गए हैं, जो मछली उत्पादन की उच्च क्षमता का संकेत देते हैं.

मछलीपालन में केज कल्चर एक खास तकनीक है, जिस में जलाशय में तय जगह पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश केज कल्चर की संस्कृति और जलीय कृषि में मछली उत्पादकता बढ़ाने के लिए एकीकृत प्रबंधन की खासा जरूरत की मांग करता है. यह देखते हुए कि वास्तविक समय निदान और प्रबंधन तकनीकों की कमी के कारण मछली में रोग एक बड़ी बाधा है.

संचालनालय मत्स्योद्योग मध्य प्रदेश ने केज कल्चर में मत्स्यपालन और जलीय कृषि रोग निदान और बेहतर प्रबंधन प्रथाओं पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान के साथ सहयोग से किया गया कार्यक्रम 5 एवं 6 सितंबर को संचालनालय मत्स्योद्योग भोपाल में आयोजित किया गया था.

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्था के डा. असित कुमार बेरा और नीलेमेश दास ने मछली रोग निदान निवारण उपाय, गहन जलीय कृषि और जलीय कृषि दवा के उपयोग योजना सहित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए. सत्र में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से 31 केज कल्चर किसान और 30 एक्वाकल्चर, टैंक कल्चर, बायोफ्लोक किसानों ने उपस्थित रह कर भाग लिया.

कार्यशाला में राज्य सरकार के 30 मत्स्य अधिकारियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया. 2 दिवसीय चर्चा के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण और तत्काल जरूरतों की पहचान की गई, जिस में क्षेत्र स्तर पर रोग का पता लगाना, क्षेत्र स्थल पर न्यूनतम निदान की सुविधा, कार्मिक रोग रिपोर्टिंग प्रशिक्षण और मछली व पानी के लिए स्वास्थ्य रिकौर्ड का रखरखाव शामिल है.

साथ ही, उन्होंने भविष्य के प्रबंधन विकल्पों के लिए डेटाबेस विकसित करने के लक्ष्य को साधा. संचालक मत्स्योद्योग, मध्य प्रदेश, रवि गजभिए और मुख्य महाप्रबंधक, मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ पीसी कोल ने कार्यक्रम में भाग लिया और पूरे राज्य में मछली उत्पादन में सुधार के लिए कार्यशाला के महत्व पर जोर दिया, प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया और उन्हें अन्य जिलों के किसानों व अधिकारियों तक पहुंचने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में नियमित आधार पर ऐसी इंटरैक्टिव चर्चा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी.

भेड़बकरी, खरगोशपालन : खर्चा कम, कमाई अधिक

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के एचआरडी विभाग द्वारा 8 दिवसीय (4 सितंबर से 11 सितंबर, 2024) स्ववित्तपोषित 13वां राष्ट्रीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर की अध्यक्षता मे कौंफ्रैंस हाल मे शुरुआत की गई.

इस 8 दिवसीय वैज्ञानिक भेड़बकरी एवं खरगोशपालन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के 9 राज्यों (राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र एवं अरुणाचल प्रदेश) के 27 प्रशिक्षिणार्थियों ने रजिस्ट्रेशन करा कर भाग लिया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अपने संबोधन में किसानों को संस्थान के पशु भेड़बकरी एवं खरगोशपालन के अवसर एवं उपयोगिता पर उदारहणस्वरूप विस्तार से संवाद किया और बताया कि भेड़ सब से कम संसाधनों में पालने वाला पशु है, जो अपने शारीरिक ग्रोथ भी बकरी की अपेक्षा जल्दी करता है. इसलिए आप देश की मांस की मांग को ध्यान मे रखते हुए अपनी रूचि के अनुसार भेड़बकरी एवं खरगोश का पालन करें.

उन्होंने आगे कहा कि भेड़ एवं बकरी में टीकाकरण के बाद विभिन्न प्रकार के प्रबंधन (आवास, चारा, दाना व विभिन्न मौसम आधारित सावधानी आदि) पर ध्यान दे कर आप अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि इस बैच में जिस तरह के पढ़ेलिखे लोग यहां उपस्थित हैं, उन से मुझे उम्मीद है कि ये व्यवसाय आने वाले समय में हौर्टिकल्चर व पोल्ट्री की तरह पशुपालन उद्यमिता का रूप जरूर लेगा.

उन्होंने आगे कहा कि विकसित भारत निर्माण तभी होगा, जब देश का हर नागरिक देश की तरक्की में भागीदारी होगा. मेरे संस्थान के पशु आत्मनिर्भर भारत में देश की युवाशक्ति के बल पर जरूर इस में रोजगारपरक व्यवसाय के जरीए योगदान देंगे.

अंत में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी लोगों से संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुभव से सीखने का निवेदन करते हुए अपने पहले से उपलब्ध नोलेज बढ़ाने का आग्रह किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयक डा. सुरेश चंद शर्मा एवं डा. लीलाराम गुर्जर द्वारा किया जा रहा है. प्रशिक्षण के उद्धघाटन के अवसर पर एजीबी विभाग अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्र, डा. अजय कुमार, डा. सत्यवीर ड़ागी, डा. विनोद कदम, डा. अरविंद सोनी आदि ने अपने अनुभव से ट्रेनिंग में भाग ले रहे लोगों से चर्चा की. यह जानकारी अविकानगर के मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना दी.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 16-17 सितंबर को लगेगा कृषि मेला (Agricultural Fair)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 16-17 सितंबर को कृषि मेला (रबी) का आयोजन करेगा. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष मेले का विषय ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ होगा. मेले में आने वाले किसानों को विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा कृषि में फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में तमाम जानकारी दी जाएगी.

उन्होंने बताया कि इस मेले में बीज, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि मशीनें व यंत्र निर्माता कंपनियां भी भाग लेंगी. किसानों को विभिन्न कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त मशीनों, यंत्रों एवं उन की कार्य प्रणाली के साथ इन मशीनों की कीमत और इन के निर्माताओं की भी जानकारी मिल सकेगी.

विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पूर्व की भांति इस साल भी यह मेला विश्वविद्यालय के गेट नंबर 3 के सामने मेला ग्राउंड पर लगाया जाएगा. मेले में किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिश की गई रबी फसलों के उन्नत बीज और बायोफर्टिलाईज़र के अतिरिक्त कृषि साहित्य उपलब्ध करवाए जाएंगे. इस के लिए मेला स्थल पर विभिन्न सरकारी बीज एजेंसियों के सहयोग से बिक्री काउंटर लगाए जाएंगे.

किसानों को विश्वविद्यालय के अनुसंधान फार्म पर वैज्ञानिकों द्वारा उगाई गई खरीफ फसलें दिखाई जाएंगी और  उन में प्रयोग की गई टैक्नोलौजी की जानकारी दी जाएगी. साथ ही, किसानों की कृषि, पशुपालन और गृह विज्ञान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए मेले के दोनों ही दिन प्रश्नोत्तरी सभाएं आयोजित की जाएंगी. मेला स्थल पर मिट्टी, सिंचाई व रोगी पौधों की वैज्ञानिक जांच करवाने की किसानों को सुविधा दी जाएगी.

उधर, सहनिदेशक (विस्तार) डा. कृष्ण यादव ने बताया कि कृषि मेले में लगने वाली एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी के लिए स्टालों की बुकिंग शुरू की जा चुकी है. प्राइवेट कंपनियों को स्टाल ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर आवंटित किए जाएंगे.

उन्होंने बताया कि इस बार किसानों की सुविधा के लिए उन के बैठने हेतु वाटरप्रूफ पंडाल होगा. प्रदर्शनी क्षेत्र में पक्के रास्तों को बनाया गया है और मेला स्थल की सुरक्षा के लिए चारदिवारी, रोशनी व जल निकासी की व्यवस्था की गई है.

उल्लेखनीय है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हर साल सितंबर माह में कृषि मेला आयोजित करता है, जिस में हरियाणा और पड़ोसी राज्यों से हजारों किसान भाग लेते हैं. इस मेले में एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी भी लगाई जाती है, जिस में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, लुवास और हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त विभिन्न कृषि निविष्टों व फार्म मशीनरी बनाने वाली कंपनियां भी भाग ले कर अपनी तकनीकी प्रदर्शित करती हैं.

‘रंगीन मछली’ एप लौंच : 8 भाषाओं में जानकारी

भुवनेश्वर : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भुवनेश्वर स्थित भाकृअनुप-केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान भाकृअनुप सीफा में पिछले दिनों ‘रंगीन मछली’ मोबाइल एप लौच किया.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाईके) सहयोग से भाकृअनुप-सीफा द्वारा विकसित यह एप सजावटी मत्स्यपालन क्षेत्र की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है, जो शौकीनों, एक्वेरियम शाप मालिकों और मछलीपालकों के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान संसाधन प्रदान करता है. इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.

अपने संबोधन में राजीव रंजन सिंह ने सजावटी मत्स्यपालन क्षेत्र के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि मंत्रालय इस के विकास पर जोर दे रहा है, रोजगार पैदा करने और अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए इस क्षेत्र की क्षमता को पहचान रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि एक्वेरियम के शौक को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

‘रंगीन मछली’ एप 8 भारतीय भाषाओं में लोकप्रिय सजावटी मछली प्रजातियों पर बहुभाषी जानकारी प्रदान करता है, जिस से यह व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ हो जाता है. चाहे शौकिया लोग मछली की देखभाल पर मार्गदर्शन चाहते हों या किसान अपनी नस्लों में विविधता लाना चाहते हों, एप देखभाल, प्रजनन और रखरखाव के तरीकों पर व्यापक जानकारी देता है. इस की प्रमुख विशेषताओं में से एक “एक्वेरियम शाप्स ढूंढें” टूल है, जो उपयोगकर्ताओं को दुकान मालिकों द्वारा अपडेट की गई एक गतिशील निर्देशिका के माध्यम से आसपास की एक्वेरियम की दुकानों का पता लगाने, स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देने और उपयोगकर्ताओं को सजावटी मछली और एक्वेरियम से संबंधित उत्पादों के लिए विश्वसनीय स्रोतों से जोड़ने की अनुमति देता है.

इस के अलावा एप में सजावटी मछली उद्योग में नए लोगों और पेशेवरों दोनों के लिए शैक्षिक मौड्यूल शामिल हैं. ‘एक्वेरियम केयर की मूल बातें’ मौड्यूल, एक्वेरियम के प्रकार, मछलियां जल निस्पंदन, प्रकाश व्यवस्था, भोजन, दिनप्रतिदिन के रखरखाव जैसे आवश्यक विषयों को शामिल करता है, जबकि “सजावटी जलीय कृषि” मौड्यूल विभिन्न सजावटी मछलियों के प्रजनन, पालन पर ध्यान केंद्रित करता है.

इस एप को इस लिंक से गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है :

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.ornamentalfish

किसान करें पराली प्रबंधन, अन्यथा लगेगा जुर्माना

बस्ती : फसलों के अवशेष जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए पराली प्रबंधन जरूरी है. उक्त जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के जनपदों में किसानों को जागरूक करते हुए फसल अवशेष न जलाए जाने का सुझाव दिया है.

उन्होंने यह भी बताया कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वराशक्ति कमजोर होती है और पैदावार में गिरावट आती है. कंबाइन हार्वेस्टर के साथ एसएमएस यंत्र का प्रयोग करें, जिस से पराली प्रबंधन कटाई के समय ही हो जाए. इस के विकल्प के रूप में अन्य फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र जैसे- स्ट्रा रीपर, मल्चर, पैड़ी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, स्ट्रा रेक व बेलर का भी प्रयोग कंबाइन हार्वेस्टर के साथ किया जाए, जिस से खेत में फसल अवशेष बंडल बना कर अन्य उपयोग में लाया जा सके.

उन्होंने आगे बताया कि कंबाइन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि फसल कटाई के साथ फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का प्रयोग करें, अन्यथा कंबाइन हार्वेस्टर के मालिक के विरुद्ध नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जाएगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि पराली जलाए जाने की घटना पाए जाने पर संबंधित को दंडित करने, क्षति पूर्ति वसूली जैसे 02 एकड़ से कम क्षेत्र के लिए 2,500 रुपए, 02 से 05 एकड़ के लिए 5,000 रुपए और 05 एकड़ से अधिक के लिए 15,000 रुपए तक पर्यावरण कंपनसेशन की वसूली एवं पुनरावृत्ति होने पर अर्थदंड की कार्यवाही का प्रावधान है.

यदि कोई किसान बिना पराली को हटाए रबी के बोआई के समय जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल या सुपर सीडर का प्रयोग कर सीधे बोआई करना चाहता है, तो ऐसे किसानों को कृषि विभाग द्वारा निःशुल्क डीकंपोजर उपलब्ध कराया जाता है. इस के लिए किसान संबंधित उपसंभागीय कृषि प्रसार अधिकरी या राजकीय कृषि बीज भंडार से संपर्क कर डीकंपोजर प्राप्त कर सकते हैं. पराली से देशी खाद तैयार करने और फसल अवशेष को गोशाला में दान करने के लिए प्रेरित किया गया है.

पूसा संस्थान में ‘मक्का आधारित फसल विविधीकरण’ पर वैज्ञानिककिसान संवाद

नई दिल्ली : कृषि प्रौद्योगिकी आकलन और स्थानांतरण केंद्र एवं कृषि प्रसार संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा ‘मक्का आधारित फसल विविधीकरण’ विषय पर वैज्ञानिककिसान संवाद आयोजित किया गया, जिस में संस्थान के वैज्ञानिकों एवं ग्राम मंडोरा, खरखोदा, सोनीपत के 40 किसानों ने हिस्सा लिया.

कार्यक्रम में डा. रवींद्रनाथ पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), डीपी गोयल, अध्यक्ष 40 गांव विकास परिषद, सोनीपत, डा. सत्यप्रिय, अध्यक्ष कृषि प्रसार संभाग, डा. एके सिंह, प्रभारी कैटेट, डा. गोपाल कृष्ण, अध्यक्ष आनुवंशिकी संभाग, डा. संजय सिंह राठौड़, अध्यक्ष सस्य विज्ञान संभाग, डा. देबाशीस, अध्यक्ष मृदा विज्ञान संभाग, डा. दिनेश कुमार, अध्यक्ष खाद्य प्रसंस्करण शामिल हुए.

मक्का में शोध कर रहे वैज्ञानिक डा. फिरोज हुसैन, प्रधान वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. विगनेश एम., वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. राजकुमार, वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. नित्यश्री, वैज्ञानिक कृषि अर्थशास्त्र ने भी संवाद में भाग लिया.

डा. एके सिंह, प्रभारी कैटेट ने कार्यक्रम में पधारे व्यक्तियों और प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया और किसानवैज्ञानिक संवाद के बारे में भी जानकारी दी.

डा. रवींद्रनाथ पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे मक्का आधारित फसल विविधीकरण किसानों के लिए लाभकारी हो सकता है. उन्होंने सभी को इस बात से अवगत कराया कि शीघ्र ही उपस्थित सभी किसानों को ‘मेरा गांव मेरा गौरव’ परियोजना से जोड़ा जाएगा, जिस से पूसा के वैज्ञानिक किसानों से सीधे जुड़ सकेंगे.

डीपी गोयल, अध्यक्ष 40 गांव विकास परिषद, सोनीपत ने सभी को अवगत कराया कि ग्राम मंडोरा, खरखोदा सोनीपत में शीघ्र ही स्मार्ट विलेज केंद्र खुलने जा रहा है, जो मक्का आधारित जानकारी सभी किसानों को उपलब्ध करवाएगा एवं किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ेगा.

डा. गोपाल कृष्ण, अध्यक्ष आनुवंशिकी संभाग ने जहां आनुवंशिकी संभाग में मक्का को ले कर चल रहे शोध कार्यों में प्रकाश डाला, वहीं डा. फिरोज हुसैन, प्रधान वैज्ञानिक आनुवंशिकी ने मक्का की जैव संवर्धित क़िस्मों की विस्तार से जानकारी किसानों को दी एवं सभी किस्मों के लाभ एवं गुणों पर चर्चा की.

सस्य विज्ञान संभाग के अध्यक्ष डा. संजय सिंह राठौड़ ने मक्का के फसल प्रबंधन की विस्तार से जानकारी दी, जिस में उन्होंने पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, कीट एवं रोग प्रबंधन सहित मक्का के साथ ली जाने वाली फसलों की चर्चा की.

मृदा विज्ञान संभाग के अध्यक्ष डा. देबाशीस ने मक्का के लिए उपयुक्त मिट्टी की विस्तृत जानकारी किसानों को दी. डा. दिनेश कुमार, अध्यक्ष खाद्य प्रसंस्करण ने मक्का से बनने वाले विभिन्न खाद्य उत्पादों एवं फूड प्रोसैसिंग के बारे में विस्तार से बताया.

कृषि प्रसार संभाग के अध्यक्ष डा. सत्यप्रिय ने किसानों को मक्का आधारित खेती के लिए कृषक उत्पादक समूह बनाने के लिए प्रेरित किया, जिस से हर एक सदस्य को परस्पर लाभ मिल सके एवं बाजार में मूल्य भी उपयुक्त मिले.

डा. नित्यश्री, वैज्ञानिक, कृषि अर्थशास्त्र ने इस बार पर जोर दिया कि किस तरह मक्के में मूल्य श्रंखला का विकास किया जा सकता है, जिस से किसानों की आय में वृद्धि होगी.

कार्यक्रम का समापन डा. नफीस अहमद, प्रधान वैज्ञानिक, कैटेट ने धन्यवाद दे कर किया.

मक्का बीज उत्पादन (Maize Seed Production) में एमपीयूएटी का खास योगदान

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 11 सितंबर को प्रजनक बीज प्रताप संकर मक्का-6 के उत्पादन के लिए एक थ एक ही समय में 6 विभिन्न बीज उत्पादक कंपनियों के साथ सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर किए, जो कि विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार किया गया है.

विश्वविद्यालय ने यह सहमतिपत्र गुजरात की इंडो यूएस बायोटैक, आंध्र प्रदेश की चक्रा सीड्स, संपूर्णा सीड्स, श्री लक्ष्मी वैंकटश्वर सीड्स, मुरलीधर सीड्स कार्पोरेशन एवं तेलंगाना की महांकालेश्वरा एग्रीटैक प्राइवेट लिमिटेड के साथ हस्ताक्षरित किए गए.

यह समझौता विश्वविद्यालय द्वारा मक्का की विकसित प्रजाति प्रताप संकर मक्का-6 के पैतृक बीजों को उपलब्ध कराने के संदर्भ में किया गया है. एकसाथ विभिन्न राज्यों की 6 बीज उत्पादक कंपनियों के साथ समझौता करना किस्म की गुणवत्ता को दर्शाता है.

इस अवसर पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 का उत्पादन 62 क्विंटल से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है और विशेष अनुकूल परिस्थितियों में इस से भी अधिक उपज प्राप्त होती है.

उन्होंने आगे कहा कि प्रताप संकर मक्का-6 की यह किस्म दाने के साथ चारे के रूप में भी उपयोग होता है. साथ ही, उन्होंने अवगत कराया कि विश्वविद्यालय बीज उत्पादन कंपनियों को प्रताप संकर मक्का-6 की पैतृक पंक्ति का बीज 40 हजार रुपए प्रति क्विंटल उपलब्ध करवाएगी एवं इस के एवज में कंपनियां विश्वविद्यालय को 2.5 लाख रुपए मय 4 फीसदी रायल्टी का भुगतान करेगी. यह राशि तुलनात्मक दृष्टि से काफी कम रखी गई है, जिस से कि इस का सीधा लाभ किसानों को मिल सके, क्योंकि कंपनियां इसी प्रजनक बीज से आधार बीज बनाएगी, उस के बाद प्रमाणित बीज बना कर किसानों को उपलब्ध कराती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मक्का का उपयोग इन दिनों काफी बढ़ गया है. इस का उपयोग मुरगीपालन उद्योग, स्ट्रार्च उत्पादन एवं इथेनोल बनाने के लिए किया जाता है. इथेनोल का उपयोग पैट्रोल व डीजल के साथ मिश्रित कर ग्रीन ईंधन के रूप में किया जा रहा है, जो कि पर्यावरण के अनुकूल है. इसे हम भविष्य के ईंधन के रूप में भी देखते हैं.

अनुसंधान निदेशक, डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 का राष्ट्रभर में 22 केंद्रों पर परीक्षण किया गया, जहां इस किस्म ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है. इस किस्म का अनुमोदन अखिल भारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियोजना की पंतनगर में हुई 66वीं बैठक में किया गया था.

यह किस्म 4 राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात के लिए उपयुक्त पाई गई है. उन्होंने बताया कि इस किस्म के बीज उत्पादक कंपनियों के माध्यम से प्रसारण होने से यह किसानों तक शीघ्रता एवं सरलता से उपलब्ध हो सकेगी, जिस से किसान अधिक से अधिक लाभ कमा सकेंगे.

इस किस्म के वरिष्ठ प्रजनक एवं अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के प्रोफेसर, डा. आरबी दुबे ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 पीले एवं बोल्ड दाने वाली (84-85 दिन) जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों तरह के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह किस्म तना सडन रोग, सूत्रकृमि और तना छेदक कीट के प्रति रोगरोधी है. फसल पकने के बाद भी इस का पौधा हरा रहता है, जिस से उच्च गुणवत्ता का साइलेज बनता है.

इस कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारी परिषद के सदस्य, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, उदयपुर एवं सहनिदेशक बीज एवं फार्म उपस्थित रहे.