हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 16-17 सितंबर को लगेगा कृषि मेला (Agricultural Fair)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 16-17 सितंबर को कृषि मेला (रबी) का आयोजन करेगा. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष मेले का विषय ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ होगा. मेले में आने वाले किसानों को विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा कृषि में फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में तमाम जानकारी दी जाएगी.

उन्होंने बताया कि इस मेले में बीज, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि मशीनें व यंत्र निर्माता कंपनियां भी भाग लेंगी. किसानों को विभिन्न कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त मशीनों, यंत्रों एवं उन की कार्य प्रणाली के साथ इन मशीनों की कीमत और इन के निर्माताओं की भी जानकारी मिल सकेगी.

विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पूर्व की भांति इस साल भी यह मेला विश्वविद्यालय के गेट नंबर 3 के सामने मेला ग्राउंड पर लगाया जाएगा. मेले में किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिश की गई रबी फसलों के उन्नत बीज और बायोफर्टिलाईज़र के अतिरिक्त कृषि साहित्य उपलब्ध करवाए जाएंगे. इस के लिए मेला स्थल पर विभिन्न सरकारी बीज एजेंसियों के सहयोग से बिक्री काउंटर लगाए जाएंगे.

किसानों को विश्वविद्यालय के अनुसंधान फार्म पर वैज्ञानिकों द्वारा उगाई गई खरीफ फसलें दिखाई जाएंगी और  उन में प्रयोग की गई टैक्नोलौजी की जानकारी दी जाएगी. साथ ही, किसानों की कृषि, पशुपालन और गृह विज्ञान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए मेले के दोनों ही दिन प्रश्नोत्तरी सभाएं आयोजित की जाएंगी. मेला स्थल पर मिट्टी, सिंचाई व रोगी पौधों की वैज्ञानिक जांच करवाने की किसानों को सुविधा दी जाएगी.

उधर, सहनिदेशक (विस्तार) डा. कृष्ण यादव ने बताया कि कृषि मेले में लगने वाली एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी के लिए स्टालों की बुकिंग शुरू की जा चुकी है. प्राइवेट कंपनियों को स्टाल ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर आवंटित किए जाएंगे.

उन्होंने बताया कि इस बार किसानों की सुविधा के लिए उन के बैठने हेतु वाटरप्रूफ पंडाल होगा. प्रदर्शनी क्षेत्र में पक्के रास्तों को बनाया गया है और मेला स्थल की सुरक्षा के लिए चारदिवारी, रोशनी व जल निकासी की व्यवस्था की गई है.

उल्लेखनीय है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हर साल सितंबर माह में कृषि मेला आयोजित करता है, जिस में हरियाणा और पड़ोसी राज्यों से हजारों किसान भाग लेते हैं. इस मेले में एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी भी लगाई जाती है, जिस में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, लुवास और हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त विभिन्न कृषि निविष्टों व फार्म मशीनरी बनाने वाली कंपनियां भी भाग ले कर अपनी तकनीकी प्रदर्शित करती हैं.

‘रंगीन मछली’ एप लौंच : 8 भाषाओं में जानकारी

भुवनेश्वर : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भुवनेश्वर स्थित भाकृअनुप-केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान भाकृअनुप सीफा में पिछले दिनों ‘रंगीन मछली’ मोबाइल एप लौच किया.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाईके) सहयोग से भाकृअनुप-सीफा द्वारा विकसित यह एप सजावटी मत्स्यपालन क्षेत्र की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है, जो शौकीनों, एक्वेरियम शाप मालिकों और मछलीपालकों के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान संसाधन प्रदान करता है. इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.

अपने संबोधन में राजीव रंजन सिंह ने सजावटी मत्स्यपालन क्षेत्र के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि मंत्रालय इस के विकास पर जोर दे रहा है, रोजगार पैदा करने और अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए इस क्षेत्र की क्षमता को पहचान रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि एक्वेरियम के शौक को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

‘रंगीन मछली’ एप 8 भारतीय भाषाओं में लोकप्रिय सजावटी मछली प्रजातियों पर बहुभाषी जानकारी प्रदान करता है, जिस से यह व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ हो जाता है. चाहे शौकिया लोग मछली की देखभाल पर मार्गदर्शन चाहते हों या किसान अपनी नस्लों में विविधता लाना चाहते हों, एप देखभाल, प्रजनन और रखरखाव के तरीकों पर व्यापक जानकारी देता है. इस की प्रमुख विशेषताओं में से एक “एक्वेरियम शाप्स ढूंढें” टूल है, जो उपयोगकर्ताओं को दुकान मालिकों द्वारा अपडेट की गई एक गतिशील निर्देशिका के माध्यम से आसपास की एक्वेरियम की दुकानों का पता लगाने, स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देने और उपयोगकर्ताओं को सजावटी मछली और एक्वेरियम से संबंधित उत्पादों के लिए विश्वसनीय स्रोतों से जोड़ने की अनुमति देता है.

इस के अलावा एप में सजावटी मछली उद्योग में नए लोगों और पेशेवरों दोनों के लिए शैक्षिक मौड्यूल शामिल हैं. ‘एक्वेरियम केयर की मूल बातें’ मौड्यूल, एक्वेरियम के प्रकार, मछलियां जल निस्पंदन, प्रकाश व्यवस्था, भोजन, दिनप्रतिदिन के रखरखाव जैसे आवश्यक विषयों को शामिल करता है, जबकि “सजावटी जलीय कृषि” मौड्यूल विभिन्न सजावटी मछलियों के प्रजनन, पालन पर ध्यान केंद्रित करता है.

इस एप को इस लिंक से गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है :

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.ornamentalfish

किसान करें पराली प्रबंधन, अन्यथा लगेगा जुर्माना

बस्ती : फसलों के अवशेष जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए पराली प्रबंधन जरूरी है. उक्त जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के जनपदों में किसानों को जागरूक करते हुए फसल अवशेष न जलाए जाने का सुझाव दिया है.

उन्होंने यह भी बताया कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वराशक्ति कमजोर होती है और पैदावार में गिरावट आती है. कंबाइन हार्वेस्टर के साथ एसएमएस यंत्र का प्रयोग करें, जिस से पराली प्रबंधन कटाई के समय ही हो जाए. इस के विकल्प के रूप में अन्य फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र जैसे- स्ट्रा रीपर, मल्चर, पैड़ी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, स्ट्रा रेक व बेलर का भी प्रयोग कंबाइन हार्वेस्टर के साथ किया जाए, जिस से खेत में फसल अवशेष बंडल बना कर अन्य उपयोग में लाया जा सके.

उन्होंने आगे बताया कि कंबाइन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि फसल कटाई के साथ फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का प्रयोग करें, अन्यथा कंबाइन हार्वेस्टर के मालिक के विरुद्ध नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जाएगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि पराली जलाए जाने की घटना पाए जाने पर संबंधित को दंडित करने, क्षति पूर्ति वसूली जैसे 02 एकड़ से कम क्षेत्र के लिए 2,500 रुपए, 02 से 05 एकड़ के लिए 5,000 रुपए और 05 एकड़ से अधिक के लिए 15,000 रुपए तक पर्यावरण कंपनसेशन की वसूली एवं पुनरावृत्ति होने पर अर्थदंड की कार्यवाही का प्रावधान है.

यदि कोई किसान बिना पराली को हटाए रबी के बोआई के समय जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल या सुपर सीडर का प्रयोग कर सीधे बोआई करना चाहता है, तो ऐसे किसानों को कृषि विभाग द्वारा निःशुल्क डीकंपोजर उपलब्ध कराया जाता है. इस के लिए किसान संबंधित उपसंभागीय कृषि प्रसार अधिकरी या राजकीय कृषि बीज भंडार से संपर्क कर डीकंपोजर प्राप्त कर सकते हैं. पराली से देशी खाद तैयार करने और फसल अवशेष को गोशाला में दान करने के लिए प्रेरित किया गया है.

पूसा संस्थान में ‘मक्का आधारित फसल विविधीकरण’ पर वैज्ञानिककिसान संवाद

नई दिल्ली : कृषि प्रौद्योगिकी आकलन और स्थानांतरण केंद्र एवं कृषि प्रसार संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा ‘मक्का आधारित फसल विविधीकरण’ विषय पर वैज्ञानिककिसान संवाद आयोजित किया गया, जिस में संस्थान के वैज्ञानिकों एवं ग्राम मंडोरा, खरखोदा, सोनीपत के 40 किसानों ने हिस्सा लिया.

कार्यक्रम में डा. रवींद्रनाथ पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), डीपी गोयल, अध्यक्ष 40 गांव विकास परिषद, सोनीपत, डा. सत्यप्रिय, अध्यक्ष कृषि प्रसार संभाग, डा. एके सिंह, प्रभारी कैटेट, डा. गोपाल कृष्ण, अध्यक्ष आनुवंशिकी संभाग, डा. संजय सिंह राठौड़, अध्यक्ष सस्य विज्ञान संभाग, डा. देबाशीस, अध्यक्ष मृदा विज्ञान संभाग, डा. दिनेश कुमार, अध्यक्ष खाद्य प्रसंस्करण शामिल हुए.

मक्का में शोध कर रहे वैज्ञानिक डा. फिरोज हुसैन, प्रधान वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. विगनेश एम., वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. राजकुमार, वैज्ञानिक आनुवंशिकी, डा. नित्यश्री, वैज्ञानिक कृषि अर्थशास्त्र ने भी संवाद में भाग लिया.

डा. एके सिंह, प्रभारी कैटेट ने कार्यक्रम में पधारे व्यक्तियों और प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया और किसानवैज्ञानिक संवाद के बारे में भी जानकारी दी.

डा. रवींद्रनाथ पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे मक्का आधारित फसल विविधीकरण किसानों के लिए लाभकारी हो सकता है. उन्होंने सभी को इस बात से अवगत कराया कि शीघ्र ही उपस्थित सभी किसानों को ‘मेरा गांव मेरा गौरव’ परियोजना से जोड़ा जाएगा, जिस से पूसा के वैज्ञानिक किसानों से सीधे जुड़ सकेंगे.

डीपी गोयल, अध्यक्ष 40 गांव विकास परिषद, सोनीपत ने सभी को अवगत कराया कि ग्राम मंडोरा, खरखोदा सोनीपत में शीघ्र ही स्मार्ट विलेज केंद्र खुलने जा रहा है, जो मक्का आधारित जानकारी सभी किसानों को उपलब्ध करवाएगा एवं किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ेगा.

डा. गोपाल कृष्ण, अध्यक्ष आनुवंशिकी संभाग ने जहां आनुवंशिकी संभाग में मक्का को ले कर चल रहे शोध कार्यों में प्रकाश डाला, वहीं डा. फिरोज हुसैन, प्रधान वैज्ञानिक आनुवंशिकी ने मक्का की जैव संवर्धित क़िस्मों की विस्तार से जानकारी किसानों को दी एवं सभी किस्मों के लाभ एवं गुणों पर चर्चा की.

सस्य विज्ञान संभाग के अध्यक्ष डा. संजय सिंह राठौड़ ने मक्का के फसल प्रबंधन की विस्तार से जानकारी दी, जिस में उन्होंने पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, कीट एवं रोग प्रबंधन सहित मक्का के साथ ली जाने वाली फसलों की चर्चा की.

मृदा विज्ञान संभाग के अध्यक्ष डा. देबाशीस ने मक्का के लिए उपयुक्त मिट्टी की विस्तृत जानकारी किसानों को दी. डा. दिनेश कुमार, अध्यक्ष खाद्य प्रसंस्करण ने मक्का से बनने वाले विभिन्न खाद्य उत्पादों एवं फूड प्रोसैसिंग के बारे में विस्तार से बताया.

कृषि प्रसार संभाग के अध्यक्ष डा. सत्यप्रिय ने किसानों को मक्का आधारित खेती के लिए कृषक उत्पादक समूह बनाने के लिए प्रेरित किया, जिस से हर एक सदस्य को परस्पर लाभ मिल सके एवं बाजार में मूल्य भी उपयुक्त मिले.

डा. नित्यश्री, वैज्ञानिक, कृषि अर्थशास्त्र ने इस बार पर जोर दिया कि किस तरह मक्के में मूल्य श्रंखला का विकास किया जा सकता है, जिस से किसानों की आय में वृद्धि होगी.

कार्यक्रम का समापन डा. नफीस अहमद, प्रधान वैज्ञानिक, कैटेट ने धन्यवाद दे कर किया.

मक्का बीज उत्पादन (Maize Seed Production) में एमपीयूएटी का खास योगदान

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 11 सितंबर को प्रजनक बीज प्रताप संकर मक्का-6 के उत्पादन के लिए एक थ एक ही समय में 6 विभिन्न बीज उत्पादक कंपनियों के साथ सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर किए, जो कि विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार किया गया है.

विश्वविद्यालय ने यह सहमतिपत्र गुजरात की इंडो यूएस बायोटैक, आंध्र प्रदेश की चक्रा सीड्स, संपूर्णा सीड्स, श्री लक्ष्मी वैंकटश्वर सीड्स, मुरलीधर सीड्स कार्पोरेशन एवं तेलंगाना की महांकालेश्वरा एग्रीटैक प्राइवेट लिमिटेड के साथ हस्ताक्षरित किए गए.

यह समझौता विश्वविद्यालय द्वारा मक्का की विकसित प्रजाति प्रताप संकर मक्का-6 के पैतृक बीजों को उपलब्ध कराने के संदर्भ में किया गया है. एकसाथ विभिन्न राज्यों की 6 बीज उत्पादक कंपनियों के साथ समझौता करना किस्म की गुणवत्ता को दर्शाता है.

इस अवसर पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 का उत्पादन 62 क्विंटल से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है और विशेष अनुकूल परिस्थितियों में इस से भी अधिक उपज प्राप्त होती है.

उन्होंने आगे कहा कि प्रताप संकर मक्का-6 की यह किस्म दाने के साथ चारे के रूप में भी उपयोग होता है. साथ ही, उन्होंने अवगत कराया कि विश्वविद्यालय बीज उत्पादन कंपनियों को प्रताप संकर मक्का-6 की पैतृक पंक्ति का बीज 40 हजार रुपए प्रति क्विंटल उपलब्ध करवाएगी एवं इस के एवज में कंपनियां विश्वविद्यालय को 2.5 लाख रुपए मय 4 फीसदी रायल्टी का भुगतान करेगी. यह राशि तुलनात्मक दृष्टि से काफी कम रखी गई है, जिस से कि इस का सीधा लाभ किसानों को मिल सके, क्योंकि कंपनियां इसी प्रजनक बीज से आधार बीज बनाएगी, उस के बाद प्रमाणित बीज बना कर किसानों को उपलब्ध कराती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मक्का का उपयोग इन दिनों काफी बढ़ गया है. इस का उपयोग मुरगीपालन उद्योग, स्ट्रार्च उत्पादन एवं इथेनोल बनाने के लिए किया जाता है. इथेनोल का उपयोग पैट्रोल व डीजल के साथ मिश्रित कर ग्रीन ईंधन के रूप में किया जा रहा है, जो कि पर्यावरण के अनुकूल है. इसे हम भविष्य के ईंधन के रूप में भी देखते हैं.

अनुसंधान निदेशक, डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 का राष्ट्रभर में 22 केंद्रों पर परीक्षण किया गया, जहां इस किस्म ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है. इस किस्म का अनुमोदन अखिल भारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियोजना की पंतनगर में हुई 66वीं बैठक में किया गया था.

यह किस्म 4 राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात के लिए उपयुक्त पाई गई है. उन्होंने बताया कि इस किस्म के बीज उत्पादक कंपनियों के माध्यम से प्रसारण होने से यह किसानों तक शीघ्रता एवं सरलता से उपलब्ध हो सकेगी, जिस से किसान अधिक से अधिक लाभ कमा सकेंगे.

इस किस्म के वरिष्ठ प्रजनक एवं अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के प्रोफेसर, डा. आरबी दुबे ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 पीले एवं बोल्ड दाने वाली (84-85 दिन) जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों तरह के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह किस्म तना सडन रोग, सूत्रकृमि और तना छेदक कीट के प्रति रोगरोधी है. फसल पकने के बाद भी इस का पौधा हरा रहता है, जिस से उच्च गुणवत्ता का साइलेज बनता है.

इस कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारी परिषद के सदस्य, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, उदयपुर एवं सहनिदेशक बीज एवं फार्म उपस्थित रहे.

मत्स्यपालन (Fisheries) है भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार

नई दिल्ली : मत्स्यपालन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात और खाद्य सुरक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र लगभग 3 करोड़ लोगों, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के लोगों को आजीविका प्रदान करता है. विश्व के दूसरे सब से बड़े मछली उत्पादक के रूप में भारत ने 175 लाख टन (साल 2022-23 में) का रिकौर्ड उत्पादन प्राप्त किया. यह कुल वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी का योगदान है.

इस क्षेत्र का महत्व देश के सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में 1.09 फीसदी और कृषि जीवीए में 6.724 फीसदी से अधिक योगदान के रूप में दिखता है. काफी अधिक विकास संभावनाओं के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र को टिकाऊ, जिम्मेदार और समावेशी विकास के लिए केंद्रित नीति व वित्तीय सहायता की जरूरत है.

भारत सरकार ने पीएमएमएसवाई, एफआईडीएफ, नीली क्रांति और पीएमएमकेएसएसवाई आदि जैसी विभिन्न योजनाओं व पहलों के माध्यम से मत्स्यपालन क्षेत्र में बदलाव की अगुआई की है. इस के तहत साल 2015 के बाद से अब तक का सब से अधिक 38,572 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है. इन नीतियों और पहलों के परिणामस्वरूप भारत वैश्विक मत्स्य उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. महत्वपूर्ण निर्यात बाजारों में विभिन्न चुनौतियों के बावजूद भारत का समुद्री खाद्य निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया.

भारत ने साल 2023-24 के दौरान 60,523.89 करोड़ रुपए का 17.8 लाख टन समुद्री खाद्य (सीफूड) निर्यात किया. पिछले एक दशक में झींगापालन के निर्यात में तेजी आई है. झींगा निर्यात लगभग 107 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ दोगुने से अधिक हो गया है. यह 19,368 करोड़ रुपए (साल 2013-14 में) से बढ़ कर 40,013.54 करोड़ रुपए (साल 2023-24 में) हो गया है. इस के परिणामस्वरूप समुद्री खाद्य निर्यात में काफी शानदार प्रगति हुई है. यह पिछले 10 सालों में 14 फीसदी की औसत वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ा है.

मत्स्य निर्यात में बढ़ोतरी पर हितधारक परामर्श विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद और सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया जा रहा है. इन हितधारकों में मछली पालने वाले किसान, मछुआरे, उद्योग क्षेत्र की प्रमुख हस्तियां, समुद्री खाद्य निर्यातक, नीति निर्माता और शोधकर्ताओं आदि शामिल हैं.

इस बैठक का उद्देश्य नवाचार, स्थिरता और मूल्य संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करने सहित वैश्विक समुद्री खाद्य बाजार में भारत की स्थिति में उन्नति और मछली पालने वाले किसानों व तटीय समुदायों के लिए समावेशी विकास को बढ़ावा देना है. इस में प्रतिभागी उत्पादकता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने सहित समुद्री खाद्य निर्यात और इस की मूल्य श्रंखला में अवसर तलाशने की क्षमता में सुधार लाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों, टिकाऊ जलकृषि प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढांचे के विकास पर चर्चा में शामिल होंगे.

इस परामर्श में वैश्विक समुद्री खाद्य बाजारों में भारत की उपस्थिति बढ़ाने के लिए कार्यान्वयन योग्य रणनीति तैयार करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिस से विभिन्न मछली/समुद्री शैवाल/समुद्री खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता को अधिकतम किया जा सके और देश के लाखों मछुआरों, तटीय समुदायों व मछली पालने वाले किसानों की आजीविका को समर्थन प्राप्त हो सके.

यह पहल मत्स्यपालन क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए भारत सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है. साथ ही, यह सुनिश्चित करती है कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता सहित करोड़ों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत बना रहे. इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से भारत सरकार मत्स्यपालन क्षेत्र में समावेशी विकास और लचीलेपन को बढ़ावा देना चाहती है, जो आखिरकार देश की समुद्री अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देगा.

रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) के अंधाधुंध उपयोग से कैंसर का खतरा

जयपुर : राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्राकृतिक खेती अपनाए जाने की जरूरत है. रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जमीन की उर्वराशक्ति क्षीण हो रही है. इन के अंधाधुंध उपयोग से कैंसर जैसे असाध्य रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे बीकानेर में कृषि विश्वविद्यालय के विद्या मंडप में ‘प्राकृतिक खेती पर जागरूकता कार्यक्रम‘ विषयक दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि 50 साल पहले तक कोई भी रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करता था. परिस्थितिवश इन का उपयोग शुरू हुआ. आज इन उर्वरकों के अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने हैं.

उन्होंने आगे कहा कि जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए गांव का पानी, गांव में ही रुके, ऐसे प्रयास किए जाएं. उन्होंने शून्य खर्च आधारित खेती के बारे में बताया और कहा कि यह भूमि अन्नपूर्णा है. सकारात्मक तरीके से इस का जितना उपयोग करेंगे, यह अधिक लाभ देगी.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि एक दौर था, जब देश के 40 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए हमारे पास पर्याप्त अन्न नहीं था. इस दौर में हमारे अन्नदाताओं ने भरपूर मेहनत की. इस की बदौलत आज 140 करोड़ देशवासियों का पेट भरने के बाद भी हमारे अन्न के भंडार भरे हुए हैं.

उन्होंने कृषि के साथ गोपालन करने का आह्वान किया. प्रदेश की गौ आधारित सहकारिता कार्यों की सराहना की और कहा कि कृषि और पशुपालन से किसानों की आय बढ़ेगी.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्होंने ऐसे आयोजन समयसमय पर आयोजित करने का आह्वान किया.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों के बारे में बताया और कहा कि हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. उन्होंने स्वामी केशवानंद के शिक्षा के विकास में दिए गए योगदान को याद किया और कहा कि 9 दिसंबर, 1925 को महाराजा गंगा सिंह ने नहर लाने की कार्ययोजना की शुरुआत की. उस के 100 साल पूरे होने पर ‘बीकानेर के सुशासन के सौ वर्ष’ कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इस में उद्योग, साहित्य, कृषि, पत्रकारिता आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाली प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा.

उन्होंने श्रीअन्न (मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता जताई और कहा कि राजस्थानी वनस्पति फोगला, केर, सांगरी और तुंबा आदि पर अनुसंधान किए जाने की जरूरत है.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि प्राकृतिक खेती हमारी प्राचीनतम पद्धति है. यह भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाए रखती है. इस खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है. आज रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण भूमि की उर्वराशक्ति प्रभावित हो रही है. मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का विजन है कि देश का किसान खुशहाल हो. विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अरुण कुमार ने स्वागत उद्बोधन दिया.
पूर्व में राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने ‘फसल अवशेष प्रबंधन हेतु स्टबल चापर सहस्प्रेडर’ पुस्तक का विमोचन किया. उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित स्टबल चापर सहस्प्रेडर का लोकार्पण किया और विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

सीएमवी वायरस से केले (Bananas) को बचाएं

बुरहानपुर : ग्राम बसाड़, निंबोला, नसीराबाद, बोरी एवं बुरहानपुर के आसपास के गांवों में उद्यानिकी विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा केला फसल के प्रक्षेत्रों का निरीक्षण किया गया, जिस में पाया गया कि कुछ खेतों में कुछ पौधों पर सीएमवी वायरस के प्रारंभिक लक्षण दिखाई दिए. इस के नियंत्रण एवं बचाव के लिए किसानों को सुझाव दिए गए.

किसानों को सलाह दी गई है कि खेत के आसपास एवं अंदर साफसफाई करें, आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जाए. अनुंशसित उर्वरक मात्रा 15 से 20 फीसदी उर्वरक अधिक डालें, साथ ही जैविक खाद/गोबर की खाद का भी उपयोग करें. रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़ कर खेत के बाहर करें या गड्ढे में दबा दें.

प्रभावित खेत में बीमारी फैलाने वाले कीट नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 45 एमएल, एसीफेट 15 ग्राम, स्टीकर 15 एमएल, नीम तेल 50 एमएल को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. इमिडाक्लोरोपिड 6 एमएल, एसीफेट 15 ग्राम, स्टीकर 15 एमएल, नीम तेल 50 एमएल को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. छिड़काव साफ मौसम में ही किया जाए.

भेड़पालन की जानकारी आकाशवाणी केंद्र से मिलेगी

अविकानगर : भारतीय क़ृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर तहसील मालपुरा जिला टोंक के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर एवं आकाशवाणी केंद्र, जयपुर के निदेशक निलेश कुमार कालभोर के बीच आकाशवाणी केंद्र, जयपुर पर भेड़पालन तकनीकियों को किसान के द्वार पहुंचाने के लिए एमओयू साइन किया गया, जिस का उदेश्य अंतिम छोर के किसानों तक संस्थान की वैज्ञानिक पद्धति से भेड़बकरीपालन की तमाम जानकारी को पहुंचा कर लाभान्वित करना है.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने बताया कि आकाशवाणी केंद्र, जयपुर द्वारा “भेड़ा री बाता” पर अविकानगर संस्थान के विभिन्न विषय विशेषज्ञ व वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को भेड़पालन के विभिन्न पहलू पर विस्तार से जानकारी आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम के माध्यम से दी जाएगी.

इस का प्रसारण आकाशवाणी केंद्र, जयपुर द्वारा किया जाएगा, जिस से देश के दूरदराज के गांवढाणी के किसान, जो किसी करणवश जानकारी और तकनीकी ज्ञान के लिए संस्थानों एवं विश्वविद्यालय मे नहीं जा पाते हैं, उन को आकाशवाणी केंद्र के माध्यम से संस्थान एक नवीन पहल पर भेड़पालन तकनीकियों को किसानो के गांवढाणी तक पहुंचाया जाएगा.

एमओयू के अवसर पर केंद्र के दोनों निदेशकों के साथ अविकानगर संस्थान के पोषण विभाग के अध्यक्ष डा. रणधीर सिंह भट्ट, एजीबी विभाग के अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्र, प्रसार विभाग प्रभारी डॉ लीला राम गुर्जर एवं आकाशवाणी केंद्र कार्यक्रम समन्वयक भी मौजूद रहे.

डीएपी की जगह सिंगल सुपर फास्फेट व यूरिया को मिला कर करें उपयोग

जयपुर : प्रमुख शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन के समिति कक्ष में सितंबर के लिए प्रदेश में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति एवं उपलब्धता के बारे में समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया. बैठक में उर्वरकों एवं संभावित आपूर्ति के संबंध में कंपनीवार समीक्षा की गई.

प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने विनिर्माता कंपनियों को निर्देशित किया कि इस बार औसत से अधिक बारिश होने के कारण रबी की फसलों की बोआई में डीएपी व यूरिया की मांग बढ़ने की संभावना है. कंपनियां उर्वरक आपूर्ति में कोताही न बरतते हुए आवश्यकतानुसार सप्लाई समय पर करें.

उन्होंने कंपनी प्रतिनिधियों से कहा कि जिन जिलों में उर्वरकों की कमी आ रही है, वहां पर तुरंत उर्वरक सप्लाई किया जाना सुनिश्चित करें. डीएपी, यूरिया, एनपीके और एसएसपी उर्वरकों का सितंबर महीने का आवंटन जो केंद्र सरकार द्वारा किया गया है, उस की आपूर्ति कंपनियों द्वारा समय पर की जाए. वे किसानों को डीएपी के स्थान पर एसएसपी एवं एनपीके के उपयोगों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करें.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने नैनो यूरिया, नैनो डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट को किसानों द्वारा ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लेने के लिए इस का प्रचारप्रसार करने के लिए कहा. साथ ही, उर्वरकों की कालाबाजारी करने वाले आदान विक्रेताओं पर सख्त कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया.

उन्होंने आगे कहा कि कंपनियां उर्वरकों की सप्लाई मांग के हिसाब से समय पर पूरा करने की यथासंभव कोशिश करें. डीएपी कम पड़ने पर किसान एसएसपी व यूरिया को मिला कर विकल्प के रूप में उपयोग करें, इस के मिश्रण से फसलों का न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार होता है.

बैठक में संयुक्त निदेशक कृषि (आदान) लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद सहित विभागीय अधिकारी और उर्वरक विनिर्माता एवं आपूर्तिकर्ता कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे.