एफपीओ के जरीए किसानों की आमदनी बढ़ाने पर जोर

ग्वालियर : एफपीओ एवं एआईएफ योजना की निगरानी समिति की बैठक सहशिविर आयोजित कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओ) से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ें. सभी एफपीओ लाइसैंस लें और अपना व्यवसाय बढ़ाएं. एफपीओ को शासन की ओर से पूरा सहयोग दिलाया जाएगा.

यह बात जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विवेक कुमार ने एफपीओ एवं एआईएफ (एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड) की जिला स्तरीय निगरानी समिति की बैठक सहशिविर में कही. उन्होंने कहा कि एफपीओ से जुड़ कर किसान अपनी आमदनी में बड़ा इजाफा कर सकते हैं. ज्ञात हो कि जिले में वर्तमान में 11 हजार एफपीओ संचालित हैं.

जिला पंचायत के सीईओ विवेक कुमार ने एफपीओ से संबंधित विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे समयसमय पर एफपीओ का भ्रमण करते रहें और जिले के सभी एफपीओ की निरंतर मौनीटरिंग हो. एफपीओ को बिजनैस मौडल के आधार पर काम करने के लिए प्रेरित करने पर उन्होंने बल दिया. साथ ही, यह भी कहा कि एफपीओ को जो समस्याएं आ रही हैं, उन के समाधान के लिए विभागीय अधिकारी उचित मार्गदर्शन दें.

कलक्ट्रेट के सभागार में बीते रोज राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) एवं किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग के तत्वावधान में आयोजित हुई बैठक में जिले में संचालित केंद्र पोषित योजना के अंतर्गत सभी 11,000 एफपीओ की वित्तीय स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई, जिस में एफपीओ का टर्नओवर, लाभहानि, शेयरधारकों की संख्या, सभी एफपीओ के लिए जरूरी लाइसैंस जैसे सीड, पैस्टिसाइड, फर्टिलाइजर, मंडी, जीएसटी, एफएसएसएआई इत्यादि शामिल हैं. साथ ही, सभी एफपीओ के मार्केट लिंकेज के लिए ओएनडीसी औनबोर्डिंग की स्थिति, बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत करने में कोलेट्रल सिक्युरिटी की समस्या एवं कृषक उत्पादक संगठन की विश्वसनीयता में वृद्धि करने और लिंकेज पर मार्गदर्शन सहित अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई.

शिविर का संचालन नाबार्ड के जिला प्रबंधक धर्मेंद्र सिंह ने किया. इस अवसर पर उपसंचालक कृषि आरएस शक्यवार द्वारा खाद, बीज एवं फर्टिलाइजर के लाइसैंस, मंडी सचिव कदम सिंह द्वारा मंडी लाइसैंस, कृषि विज्ञान केंद्र एवं आत्मा के अधिकारियों द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया. मछली विभाग के अधिकारियों ने विभागीय योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी.

बैठक में जिले के कृषि एवं संबंधित विभाग, एलडीएम, एनसीडीसी, सीबीबीओ एवं जिले में संचालित समस्त कृषक उत्पादक संगठन के सीईओ एवं डायरेक्टर शामिल रहे.

तुषार ने स्वरोजगार के तहत खोला स्वयं का मत्स्यपालन केंद्र

बड़वानी: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से लाभान्वित बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के ग्राम पंचायत ओझर निवासी तुषार वालके, पिता महेश वालके ने ओझर में विराह मत्स्यपालन केंद्र नाम से मत्स्यपालन इकाई संचालित की है. इस योजना के तहत तुषार ने 50 लाख रुपए की राशि पर 30 लाख रुपए अनुदान राशि प्राप्त की.

उन्होंने बताया कि एक साल पहले साल 2023-24 में स्वरोजगार के रूप में मत्स्यपालन केंद्र को स्थापित किया था. वे शिक्षित मत्स्य किसान हैं, वे कुछ अलग करना चाहते थे, उन की इसी चाह ने उन्हे मत्स्यपालन केंद्र खोलने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने आगे बताया कि उन के मत्स्यपालन केंद्र पर कुल 8 टैंक हैं, जिन में प्रति टैंक 3,000 फिंगर साइज पंगेसियस मछली के बीज का संचयन किया जाता है. 7 माह की अवधि पूरी होने पर मछलियां उत्पादन के लिए तैयार हो जाती हैं, जिन्हें स्थानीय मछली व्यापारी केंद्र पर आ कर थोक में विक्रय कर के ले जाते हैं. इस का थोक भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम मिल जाता है. इस में सालाना मत्स्य उत्पादन लगभग 24 मीट्रिक टन हो जाता है. इस से कुल सालाना आय 30 लाख रुपए है और लगभग 22 लाख सालाना खर्च घटाने के बाद शुद्ध वार्षिक लाभ 14 लाख रुपए प्राप्त होता है. इस स्वरोजगार के द्वारा 4 अन्य लोगों को भी आय का माध्यम प्रदान किया है.

सहायक संचालक मत्स्योद्योग जिला बड़वानी एनपी रैकवार ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिस का उद्देश्य मछुआरों के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र का समग्र विकास करना है. पीएमएमएसवाई को मछली उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता से ले कर प्रौद्योगिकी, कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे और विपणन तक मत्स्यपालन मूल्य श्रंखला में महत्वपूर्ण अंतराल को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया है. इस के माध्यम से एक मजबूत मत्स्य प्रबंधन ढाचा स्थापित कर मछली किसानों के सामाजिक व आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करना है.

बिहार को तिलहन (Oilseeds) के क्षेत्र में बनेगा आत्मनिर्भर

सबौर : निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्वावधान में कुलपति सभागार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति डा. डीआर सिंह की अध्यक्षता में तिलहन फसल को केंद्र में रख कर गहन विचार मंथन किया गया. इस बैठक में डा. आरके माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद मुख्य अतिथ के रूप में मौजूद थे.

इस विचार मंथन संगोष्ठी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, उपनिदेशक अनुसंधान डा. शैलबाला डे, अध्यक्ष, पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग डा. पीके सिंह एवं तिलहन अनुसंधान से जुड़े बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रमुख वैज्ञानिकों, जिस में डा. रामबालक प्रसाद निराला, डा. चंदन किशोर, मनोज कुमार, डा. खुशबू चंद्रा, डा. लोकेश्वर रेड्डी प्रत्यक्ष रूप से बैठक में तिलहनी फसलों से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया गया.

बैठक की शुरुआत निदेशक अनुसंधान डा. डीआर सिंह ने संक्षिप्त रूप से बिहार में तिलहन के सभी 9 फसलों जैसे राईसरसों, सोयाबिन, मूंगफली, तिल, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, अरंडी एवं रामतिल (नाइजर) के बिहार में वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इस की संभावनाओं पर प्रकाश डाला. तदोपरांत डा. रामबालक प्रसाद निराला ने समग्र एवं विस्तृत रूप से बिहार में हो रहे सभी तिलहन फसलों की एक रूपरेखा प्रस्तुत की.

विदित हो कि डा. रामबालक प्रसाद निराला तीसी के प्रमुख वैज्ञानिक हैं एवं तिलहन फसलों के अनुसंधान समन्वयक भी हैं.

उन्होंने अपने प्रस्तुति के दरम्यान तिलहन फसल के कृषि हेतु उन की शक्ति, कमजोरी, उपयोगिता एवं समस्या पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला. इसी क्रम में डा. चंदन किशोर, डा. अमरेंद्र ने भी राईसरसों से जुड़े अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रस्तुति की. वहीं मूंगफली एवं सोयाबीन से संबंधित कार्यक्रमों को डा. मनोज कुमार, तिल से संबंधित कार्यक्रमों को डा. खुशबू चंद्रा एवं अरंडी से संबंधी कार्यक्रमों को डा. लोकेश्वर रेड्डी ने प्रस्तुत किया.

कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय के तिलहन से जुड़े सभी केंद्रों के अनुसंधान वैज्ञानिक भी आभासी रूप से जुड़े हुए थे एवं भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक डा. एएल रत्नाकुमार, डा. जी. सुरेश, डा. मणिमुर्गन एवं डा. लावण्या, डा. दिनेश कुमार, डा. विश्वकर्मा, डा. पुष्पा, डा. जीडी सतीष एवं डा. रमन्ना भी आभाषी रूप से इस बैठक में जुड़े रहे और अंत में उन्होंने अपनी विशिष्ट सलाह बैठक में दी.

डा. आरके माथुर ने अपने विशिष्ट सलाह में विश्वविद्यालय को भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद को संयुक्त रूप से अनुसंधान कार्यक्रम चलाने की सलाह दी. साथ ही, बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने एवं सभी तिलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्रों को बढ़ाने पर जोर दिया.

इसी बीच उन्होंने तिल अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को मुख्य केंद्र के रूप में अंगीकार एवं सूरजमुखी के अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को सहायक केंद्र के रूप में अंगीकार करने का आश्वासन दिया.

किसानों की मांग को देखते हुए डा. फिजा अहमद, निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा तिल के सफेद बीज वाले प्रभेद को विकसित करने पर जोर दिया गया.

बैठक का समापन कुलपति डा. डीआर सिंह के समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ संपन्न हुआ. कुलपति डा. डीआर सिंह, बिहार सरकार के चतुर्थ कृषि रोड मैप को ध्यान में रखते हुए तिलहन फसल के उत्पादन के महत्व को बताया.

उन्होंने वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि जिलेवार तिलहन फसल की खेती की योजना बनाई जाए और प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र को तेल कर्षण इकाई को लगाने के लिए कहा. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा की जा रही अनुसंधान कार्यों की राष्ट्रीय स्तर प्रदान करने के लिए भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के साथ एमओयू पर काम करने को कहा गया.

केवीके में गाजरघास (Carrot Grass) उन्मूलन सप्ताह का आयोजन

भागलपुर : स्थानीय केवीके में गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया गया. यह 16 अगस्त से ले कर 22 अगस्त तक मनाया गया. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रधान डा. राजेश कुमार ने बताया कि गाजरघास (पार्थेनियम) देश के विभिन्न भागों में कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बुटी आदि के नाम से जाना जाता है. यह देश के 35 मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ है. वर्षा ऋतु में इस का अंकुरण होने पर भीषण खरपतरवार का रूप ले लेती है. यह घास 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है.

अभियंत्रण वैज्ञानिक इं. पंकज कुमार ने बताया कि गाजरघास जो कृषि भूमि और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव डालता है. इस की प्रभावशाली वृद्धि और बीज उत्पादन के कारण यह फसलों, भूमि की उर्वरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कृषि तकनीकों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है.

उद्यान वैज्ञानिक डा. ममता कुमारी ने बताया कि गेंदे के पौधे लगा कर गाजरघास के फैलाव को रोका जा सकता है. पशु विज्ञान वैज्ञानिक डा. मो. ज्याउल होदा ने बताया कि इस घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी एलर्जी, दमा, बुखार आदि पैदा होता है और पशुओं के लिए यह खरपतवार हानिकारक है. उन्होंने इस के उन्मूलन को ले कर विविध जानकारी दी.

इस अवसर पर कीट विज्ञान के वैज्ञानिक डा. पवन कुमार ने कहा कि इस की रोकथाम के लिए गाजरघास में फूल आने से पहले जड़ को उखाड़ देना चाहिए. साथ ही, जैविक नियंत्रण के बारे में छात्रछात्राओं को विस्तार से जानकारी दी, जबकि शस्य वैज्ञानिक डा. मनीष राज ने बताया कि पार्थेनियम की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए फसल चक्र अपनाएं. अलगअलग प्रकार की फसलें उगाने से खरपतवारों के विकास पर अंकुश लगाया जा सकता है.

फसल कटाई के बाद के अवशेषों को खेत में समान रूप से बिखेरें और कुचलें. इस से पार्थेनियम के बीजों को प्रकाश और हवा से बचाया जा सकेगा, जिस से उन के अंकुरण की संभावना कम होगी. जब आवश्यक हो, तो उचित और अनुमोदित खरपतवारनाशक का उपयोग करें. हालांकि, रासायनिक नियंत्रण का उपयोग सतर्कता से करें, ताकि यह फसलों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए. इस मौके पर रावे छात्रछात्राएं मौजूद रहे.

सुनीता देवी : सिलाई से शुरू किया सफर, अब ड्रोन तक की उड़ान

मुरैना : परिवार में घर चलाने में परेशानी और माली तंगी के चलते एक महिला ने इतनी मेहनत की कि उस की अलग पहचान बन गई. पूरे इलाके में अब इस महिला को ड्रोन दीदी के रूप में जाना जाता है. मुरैना जिले के जौरा तहसील के अंतर्गत पचोखरा में ’’सेल्फ हेल्प ग्रुप’’ की महिला ने मिशन ज्वाइन कर के अपना जीवन बदल लिया है.

कैलादेवी एसएचजी की सुनीता शर्मा ने अपने घर से रोजगार बढ़ाने के लिए सिलाई से सफर शुरू किया और धीरेधीरे से उन्हें ड्रोन चलाने तक की ट्रेनिंग मिली. सुनीता शर्मा की अब उस क्षेत्र में ड्रोन दीदी के रूप में पहचान बन गई है.

सुनीता शर्मा बताती हैं कि वे पहले घर पर रहती थीं. उन की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी. समूह से जुड़ने के बाद उन्हें 25,000 रुपए का लोन मिला. उन्होंने सब से पहले सिलाई मशीन खरीदी और सिलाई का काम शुरू किया. धीरेधीरे उन की 8,000 रुपए की कमाई हर महीने होने लगी. इस के बाद उन्होंने ’नमो ड्रोन योजना’ की ट्रेनिंग ली. अब तक 60 एकड़ से ज्यादा खेत में ड्रोन से मेडिसिन छिड़काव कर चुकी हैं. आजीविका मिशन से जुड़ कर ही ये सब संभव हो सका है.

उन्होंने यह भी बताया कि वे अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही हैं. उन  का परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है. सुनीता शर्मा ने कहा कि आजीविका मिशन एवं इफको की समस्त टीम को दिल से शुक्रिया जिन्होंने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया.

सुनीता शर्मा ने ’’नमो ड्रोन योजना’’ से दिनोंदिन तरक्की की है. उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि 15 अगस्त, 2024 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के लाल किले पर होने वाले मुख्य आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्पेशल गेस्ट की लिस्ट में उन को शामिल किया गया है.

किसान साथी मोबाइल एप (Kisan Sathi Mobile App) से 132 गांव के 72,000 किसान होंगे लाभान्वित

जयपुर : जयपुर स्थित राजस्थान इंटरनैशनल सैंटर में जल संसाधन विभाग, राजस्थान और जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘टचिंग लाइव्ज व्हाइल टचिंग द मून- इंडियाज स्पेस सागा’ थीम पर एकदिवसीय रन अप सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन के मुख्य अतिथि जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत एवं विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने इस अवसर पर पार्वती बांध, धौलपुर के कमांड क्षेत्र के काश्तकारों के लिए तैयार किए गए किसान साथी एप का लोकार्पण किया.
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि किसान साथी एप पार्वती बांध के कैचमेंट एरिया के किसानों को पानी की उपलब्धता और आपूर्ति के बारे में विश्वसनीय जानकारी प्रदान करेगा. इस से पार्वती सिंचाई परियोजना के 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के 132 गांव के लगभग 72,000 किसान लाभान्वित होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से इस एप द्वारा किसानों को घर बैठे ही जल की उपलब्धता की जानकारी मिल सकेगी और इस से सिंचाई जल के समुचित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा. प्रदेश के सभी बांधों को किसान साथी एप के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिस से प्रदेश के सभी किसान लाभान्वित हो सकेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि विभाग द्वारा नवाचार करते हुए मार्च माह में बड़े बांधों और नहरों के डिजिटलीकरण के लिए डैशबोर्ड का लोकार्पण भी किया गया था.

मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाए जाने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले से भावी पीढ़ी इस दिन को सदैव याद रखेगी.

उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और प्रयासों से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान पहुंचाने वाला विश्व का पहला देश भारत है और यह हमारे लिए गौरव की बात है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने कहा कि स्पेस टैक्नोलौजी के उपयोग से भूजल एवं सतही जल के अधिकतम उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसान साथी एप के जरीए किसानों और जल संसाधन विभाग के बीच एक प्रभावी संचार लिंक स्थापित किया गया है. इस एप के जरीए किसानों से ली गई फसल क्षेत्र की जानकारी के माध्यम से पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जा सकेगा. साथ ही, किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण करने की सुविधा भी मिलेगी.

सम्मेलन में जल संसाधन विभाग द्वारा जयपुर शहर के विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आयोजित की गई क्विज एवं पेंटिंग प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया. इस दौरान जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने स्पेस टैक्नोलौजी एवं जल संसाधन के क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया.

प्रदर्शनी में लगाई गई पुरस्कृत विजेताओं की पेंटिंग्स को उन्होंने सराहा. उद्घाटन सत्र को इसरो वैज्ञानिक सागर सांलुखे और जल शक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ संयुक्त आयुक्त कुशाग्र शर्मा ने भी संबोधित किया. मुख्य अभियंता जल संसाधन डीआर मीणा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया.

एकदिवसीय सम्मेलन में विभिन्न तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया, जिस में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का महत्व, जल क्षेत्र में सेटेलाइट की उपयोगिता, जल संसाधन के क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस का उपयोग, जल संसाधन प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उपयोगिता जैसे विषयों पर व्याख्यान हुए एवं चर्चा की गई.

किसान साथी एप की विशेषताएं
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के सहयोग से विकसित किया गया किसान साथी मोबाइल एप धौलपुर के पार्वती सिंचाई परियोजना के लगभग 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के किसानों को लाभान्वित करेगा. इस से धौलपुर, बाड़ी एवं बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के 132 गांव के 72,000 किसान लाभान्वित होंगे. पायलट प्रोजैक्ट के रूप में चयनित किए गए पार्वती बांध कमांड क्षेत्र के किसानों को इस एप के जरीए स्वामित्व विवरण के साथ फसल की जानकारी प्राप्त होगी.

किसान जियो टैग किए गए साक्ष्य के साथ पानी की चोरी, नहर संबंधी मुद्दों की जानकारी जल संसाधन विभाग को रिपोर्ट कर सकेंगे, वहीं मंडी भाव की जानकारी और मौसम की जानकारी भी इस एप के जरीए लाइव प्राप्त की जा सकेगी. बांध और नहर में जल की स्थिति भी एप पर उपलब्ध होगी.

इस एप के माध्यम से संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए जल उपयोगकर्ता संघ को पार्वती बांध से पानी की उपलब्धता और आपूर्ति की सही और सटीक जानकारी मिलेगी. किसानों से फसल क्षेत्र की जानकारी ले कर पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जाएगा. साथ ही, कमांड क्षेत्र के किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण की सुविधा भी मिलेगी.

सस्ती दरों पर मिलेंगे मधुमक्खीपालन उपकरण (Bee equipment)

चंडीगढ़ : हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कंवर पाल ने बताया कि अब राज्य में मधुमक्खीपालन से जुड़े किसानों को इस व्यवसाय से संबंधित उपकरण सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगे. प्रदेश सरकार ने इन उपकरणों की दरें निश्चित कर दी हैं. आज “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों की दरें तय की गईं. यह किसानों की लंबे समय से मांग चली आ रही थी कि मधुमक्खीपालन में काम आने वाले उपकरणों की गुणवत्ता और दरें निर्धारित की जानी चाहिए.

“हाईपावर परचेज कमेटी” के चेयरमैन एवं कृषि मंत्री कंवर पाल ने बैठक के बाद जानकारी दी कि प्रदेश सरकार की किसान हितैषी नीतियों की बदौलत राज्य में पिछले 10 वर्षों में मधुमक्खीपालन का व्यवसाय तेजी से फलाफूला है. कई किसानों ने इस व्यवसाय को अपना कर कृषि विविधीकरण की तरफ कदम बढ़ाया है, जो कि कृषि जोत कम होने पर यह अच्छी पहल है.

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष राज्य में मधुमक्खीपालकों ने 5,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया था, जिस की बाजार में तकरीबन 55 करोड़ रुपए कीमत है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा मधुमक्खीपालकों को शहद एकत्रित करने और इस व्यवसाय से संबंधित अन्य उपकरणों को खरीदने पर लागत में 80 फीसदी की सब्सिडी दी जाती है. किसानों की डिमांड होती थी कि मधुमक्खीपालन के उपकरण बाजार में या तो मिलते नहीं. अगर वे मिलते भी हैं तो महंगी दरों पर निम्न क्वालिटी के मिलते हैं, जिस से उन की आमदनी पर खासा असर पड़ रहा है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि कुरुक्षेत्र जिला के रामनगर में इजराइल और भारत सरकार का “एकीकृत मधुमक्खी विकास केंद्र” स्थापित किया गया है, जिस में किसानों को मधुमक्खीपालन के लिए प्रशिक्षण और अन्य जानकारी दी जाती है.

उन्होंने बताया कि किसानों की समस्या को समझते हुए प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि इसी केंद्र में कुछ निर्धारित दरों की दुकानें शुरू की जाएं, जहां पर मधुमक्खीपालन के उपकरण आसानी से उपलब्ध हो सकें. यहां पर एक परिसर की छत के नीचे किसानों को अच्छी गुणवत्ता के “बी बौक्सेस”, “बी टूलकिट”, “बी ब्रश”, “बी ग्लव्स”, “बी फीडर”, रानी मक्खी का पिंजरा, शहद निकालने की मशीन समेत अन्य उपकरण उपलब्ध होंगे.

पिछले दिनों कृषि मंत्री कंवर पाल की अध्यक्षता में हुई “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों के टेंडर फाइनल किए गए.

बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजा शेखर वुंडरू, निदेशक राजनारायण कौशिक, वित्त विभाग के विशेष सचिव जयबीर सिंह आर्य, बागबानी निदेशालय के विशेष विभागाध्यक्ष अर्जुन सिंह सैनी समेत अन्य अधिकारी उपस्थित थे.

कृषि प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण, विक्रम लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग और 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर प्रज्ञान रोवर की तैनाती के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने हर साल 23 अगस्त को ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में घोषित किया है. इस उपलब्धि के साथ ही भारत अंतरिक्ष में जाने वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है और चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन गया है. भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश है.

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में इस विशेष दिन को चिह्नित करने के लिए, अंतरिक्ष विभाग अगस्त, 2024 के दौरान राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन कर रहा है, ताकि देश के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और इस के अनुप्रयोगों के बारे में प्रेरित किया जा सके, जिस का विषय है, “चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना : भारत की अंतरिक्ष गाथा”.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने भारत के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व वृद्धि एवं विकास की ओर अग्रसर करने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में एक सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी की उपस्थिति में डिजिटल भू स्थानिक मंच, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली का शुभारंभ किया, जो देश के कृषि नवाचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कृषि डीएसएस अपनी तरह का पहला भू स्थानिक प्लेटफार्म है, जिसे विशेष रूप से भारतीय कृषि के लिए डिजाइन किया गया है.

यह प्लेटफार्म उपग्रह चित्रों, मौसम की जानकारी, जलाशय भंडारण, भूजल स्तर और मृदा स्वास्थ्य जानकारी सहित व्यापक डाटा तक सहज पहुंच उपलब्‍ध कराता है, जिस पर किसी भी समय कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. कृषि डीएसएस में व्यापक कृषि प्रबंधन का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए कई उन्नत मौड्यूल शामिल हैं. खेतों के विशाल विस्तार से ले कर मिट्टी के सब से छोटे कण तक, कृषि डीएसएस ने सबकुछ कवर किया है.

फसल मानचित्रण और निगरानी के साथ हम विभिन्न वर्षों में पार्सल स्तरीय फसल मानचित्रों का विश्लेषण कर के फसल पैटर्न को समझने में सक्षम होंगे. यह जानकारी फसल रोटेशन प्रथाओं को समझने में मदद उपलब्‍ध कराती है और विविध फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर के टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है. सूखे की निगरानी, सूखे की स्थिति से आगे रहने में मदद करेगी, जो विभिन्न संकेतकों जैसे मिट्टी की नमी, जल भंडारण, फसल की स्थिति, सूखे की अवधि आदि पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी देती है.

फसल मौसम की निगरानी हमें इस बारे में सूचित करेगी कि मौसम फसलों को कैसे प्रभावित कर रहा है और फसल की कटाई की स्थिति, फसल अवशेष जलाने आदि के बारे में भी जानकारी देगी.
‘फील्ड पार्सल सेगमेंटेशन’ के साथ, हम फील्ड पार्सल इकाइयों को सटीक बनाने में सक्षम होंगे, जो लक्षित हस्तक्षेपों के लिए प्रत्येक पार्सल की विशिष्‍ट जरूरतों, फसल पैटर्न को समझने में मदद करेंगे.
एक राष्ट्र एक मृदा सूचना प्रणाली आप की उंगलियों पर एक व्यापक मृदा डाटा प्रदान करती है, जिस में मिट्टी की किस्‍म, मिट्टी का पीएच मान, मिट्टी का स्वास्थ्य आदि शामिल हैं. मृदा डाटा हमें मृदा जल संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए फसल की उपयुक्तता और भूमि क्षमता का आकलन करने में मदद करेगा.

कृषि डीएसएस की ‘ग्राउंड ट्रुथ डाटा लाइब्रेरी’ शोधकर्ताओं और उद्योग को विभिन्न फसलों के लिए ग्राउंड ट्रुथ डाटा और स्पेक्ट्रल लाइब्रेरी जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान कर के नवाचार को बढ़ावा देगी.
बाढ़ प्रभाव आकलन से ले कर फसल बीमा समाधान और कई अन्य तक, कृषि डीएसएस एक समग्र समाधान है. यह हमारे किसानों को सशक्त बनाने, हमारी नीतियों को सूचित करने और हमारे राष्ट्र को पोषित करने के बारे में जानकारी देगी.

कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (डीएसएस) पर उपलब्ध विभिन्न डाटा स्रोतों को एकीकृत कर के, किसानों के लिए सही व्यक्तिगत सलाह, कीट हमले, भारी बारिश, ओलावृष्टि आदि जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी देने जैसे विभिन्न किसान केंद्रित समाधान विकसित किए जा सकते हैं.

कृषि डीएसएस केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह कृषि में नवाचार और स्थिरता के लिए उत्प्रेरक है. साथ मिल कर हम भारत के लिए एक लचीला, टिकाऊ और समृद्ध कृषि का निर्माण करेंगे.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो केंद्र, विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों (आईएमडी, सीडब्‍ल्‍यूसी, एनडब्‍ल्‍यूआईसी, एनआईसी, आईसीएआर, एसएलयूएसआई, एनएनसीएफसी) राज्य रिमोट सेंसिंग केंद्र, राज्य कृषि विभाग, संस्थान/विश्वविद्यालय, कृषि-तकनीक उद्योग के अधिकारी/प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न तकनीकी सत्र और उपग्रह आधारित डाटा उत्पादों तक पहुंचने के लिए इसरो के विभिन्न पोर्टल का प्रदर्शन शामिल था. कृषि के क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोगों पर चर्चा करने के लिए पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं.

नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के नेताओं और शोधकर्ताओं की यह प्रतिष्ठित सभा भारतीय कृषि की चुनौतियों का समाधान करने और बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता पर जोर दे रही है.

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं :

कृषि की प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग : इस सम्मेलन में उपग्रह रिमोट सेंसिंग, भू स्थानिक प्रौद्योगिकी और सटीक कृषि, फसल निगरानी, आपदा प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में उन के अनुप्रयोगों में नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित किया गया.

कृषि डीएसएस का शुभारंभ : भू स्थानिक मंच, कृषि डीएसएस, मौसम के पैटर्न, मिट्टी की स्थिति, फसल स्वास्थ्य, फसल का रकबा और सलाह पर वास्तविक समय के डाटा संचालित अभिज्ञान के साथ हितधारकों को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में अनावरण किया गया.

सार्वजनिक व निजी भागीदारी : सम्मेलन ने कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी लाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच सहयोग के महत्व को रेखांकित किया.

किसान केंद्रित दृष्टिकोण : इस कार्यक्रम ने उपयोगकर्ता के अनुकूल समाधान और क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे फसल उत्पादन पूर्वानुमान, सूखे की निगरानी, फसल स्वास्थ्य आकलन और फसल बीमा समाधान के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने में सक्रिय रहा है. भविष्य में भी यह विभाग भारतीय कृषि की बेहतरी के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिल कर काम करने के लिए समर्पित है.

कृषि शिक्षा पर केंद्र सरकार का फोकस : शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री

 नई दिल्ली :  14 अगस्त, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि और संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप लांच की. आईसीएआर कन्वेंशन सैंटर, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी भी उपस्थित थे.

यहां केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आसियान देशों का जिक्र करते हुए कहा कि हम सब एक हैं और एकदूसरे के बिना हमारा काम नहीं चल सकता. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. आज भी हमारी एक बड़ी आबादी खेती से ही रोजगार प्राप्त करती है. आज कृषि के सामने जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियां हैं. भारत ने सदैव कृषि को प्रधानता दी है.

उन्होंने आगे कहा कि समस्याओं के समाधान में कृषि शिक्षा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. सरकार ने पिछले समय में कृषि शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है, फोकस किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस काम में गंभीरता से लगी हुई है. देश में 66 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 4 डीम्ड विश्वविद्यालय, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और कृषि संकाय वाले 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिन की देखरेख आईसीएआर द्वारा की जाती है.

उन्होंने कहा कि ये संस्थान स्नातक से ले कर डाक्टरेट तक कई तरह के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिन में कृषि, बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, पशु चिकित्सा, कृषि इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. वे कृषि विज्ञान में महत्वपूर्ण शोध भी करते हैं और किसानों व हितधारकों को सेवाएं प्रदान करते हैं. उच्च कृषि शिक्षा के लिए छात्रों को आकर्षित करने व कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों में शिक्षण और अनुसंधान में शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, आईसीएआर यूजी, पीजी और पीएचडी के छात्रों को परिषद द्वारा विकसित निर्धारित मानदंडों के आधार पर विभिन्न छात्रवृत्ति प्रदान कर के सहायता करता है.

ये छात्रवृत्ति आईसीएआर कोटा सीटों, आईसीएआर प्रवेश परीक्षा द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को प्रदान की जाती हैं. आईसीएआर एयू प्रणाली की क्षमता और योग्यता को अब दुनियाभर में मान्यता मिल चुकी है. कई विकासशील देशों के छात्र भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में विकसित अनुसंधान और शिक्षण सुविधाओं से आकर्षित हो कर लाभान्वित हो रहे हैं.

उन्होंने बताया कि भारत सहित विकासशील देशों में निजी क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा हो रही हैं, इसलिए विकासशील देशों के छात्रों में भारतीय कृषि को समझने के लिए भारत आ कर अध्ययन करने की रुचि बढ़ रही है. भारत में उन के उच्च अध्ययन का समर्थन करने के लिए, आईसीएआर द्वारा नेताजी सुभाष फैलोशिप, भारतअफ्रीका फैलोशिप, भारतअफगानिस्तान फैलोशिप, बिम्सटेक फैलोशिप जैसे कई कार्यक्रम/फैलोशिप शुरू किए गए हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आसियानभारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और उस के बाद इस पर निर्मित ‘इंडोपैसिफिक विजन’ की आधारशिला है. भारत आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडोपैसिफिक पर आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करता है. हमारे लिए आसियान के साथ राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा सहयोग सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत आसियान और पूर्वी एशिया शिखर मंचों को जो प्राथमिकता देता है, वह पिछले साल हमारे जी-20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी की जकार्ता यात्रा से साफ है. उन्होंने 12 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी, जिस पर काफी हद तक अमल किया गया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच कृषि सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि आसियान व भारत कृषि जलवायु क्षेत्रों के मामले में बहुत समानताएं साझा करते हैं. अब कृषि और वानिकी में आसियानभारत सहयोग के लिए कृषि व संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप आरंभ की जा रही है. फैलोशिप विशेष रूप से कृषि और संबद्ध विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शक्तियों की पूर्ति और क्षमता का दोहन करने के लिए साझा हितों के नए और उभरते क्षेत्रों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम के लिए है. इस से आसियान सदस्य देशों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शोध आधारित शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिस से भारत और आसियान समुदाय एकदूसरे के करीब आएंगे व आसियान देशों से आने वाले छात्रों के बीच जानकारी के अंतर-सांस्कृतिक और अंतर्राष्ट्रीय आदानप्रदान के लिए मंच प्रदान होगा.

फैलोशिप से आसियान राष्ट्रीयता के छात्रों को आईसीएआर व कृषि विश्वविद्यालय प्रणालियों के तहत सर्वश्रेष्ठ भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में, जरूरत अनुसार, पहचाने गए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कृषि व संबद्ध विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.

इस के अलावा भाग लेने वाले संस्थानों के भारतीय संकाय सदस्यों की आसियान सदस्य देशों में परिचयात्मक यात्राओं के माध्यम से आसियान क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान की जाएगी. इस से कृषि और संबद्ध विज्ञान क्षेत्र के विकास के लिए आसियान में विशेषज्ञ मानव संसाधन के एक पूल के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा पेश किए जाने वाले मास्टर्स प्रोग्राम छात्रों को अत्याधुनिक शोध से परिचित कराएंगे, उन्हें भविष्य के नवाचारों के लिए तैयार करेंगे. साथ ही, देश में दीर्घकालिक डिगरी कोर्स शोधकर्ताओं को लंबे समय तक जुड़े रहने में मदद कर सकता है और आसियान व भारत को कृषि से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकता है. शैक्षणिक वर्ष 2024-25 से कृषि और संबद्ध विज्ञान में मास्टर डिगरी के लिए आसियान सदस्य देशों के छात्रों को 50 फैलोशिप (प्रति वर्ष 10) प्रदान की जाएंगी. परियोजना 5 साल के लिए आसियानभारत कोष के तहत वित्त पोषण के लिए मंजूर की गई है, जिस में फैलोशिप, प्रवेश शुल्क, रहने का खर्च व आकस्मिकता शामिल है.

विज्ञान का फायदा तुरंत किसानों को मिले

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में निमंत्रित किसानों से संवाद और राष्ट्रीय नाशीजीव (कीट) निगरानी प्रणाली के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी जानते हैं कि आजादी हमें चांदी की तस्तरी पर भेंट नहीं की गई है. हजारों लोग फांसी के फंदे पर हंसतेहंसते झूल गए थे. हमारे अमर क्रांतिकारी आजादी के तराने गाया करते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज देश के लिए मरने की नहीं, जीने की आवश्यकता है. आजादी के महोत्सव में देश के गांवगांव से किसान पधारे हैं. किसान देश की धड़कन हैं और जनता के दिल की धड़कन हैं. किसान जो पैदा करते हैं, उस से सभी के दिल धड़क रहे हैं. किसान हमारे लिए बहुमूल्य हैं. हमें अन्नदाता को सुखी और समृद्ध बनाना है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 6 तरह के काम करेंगे – उत्पादन बढ़ाना. हमें उत्पादन बढ़ाना है, उस के लिए बीज, अभी प्रधानमंत्री मोदी ने 109 प्रकार के ज्यादा उपज देने वाले बीज किसानों को समर्पित किए. वैज्ञानिकों के अनुसंधान की जानकारी किसानों को होनी चाहिए. हमारा काम किसानों और वैज्ञानिकों को जोड़ना है. कई बार किसानों को जानकारी नहीं होती, तो वे गलत कीटनाशक का प्रयोग करते हैं, इस की जानकारी होना जरूरी है. विज्ञान का फायदा तुरंत किसानों को मिले, इस के लिए हम महीने में एक दिन किसानों की बात कार्यक्रम शुरू करेंगे. रेडियो पर ये कार्यक्रम होगा, इस में वैज्ञानिक बैठेंगे, कृषि विभाग के अधिकारी बैठेंगे, मैं भी बैठूंगा और किसानों को जोजो जरूरी है, उस के बारे में जानकारी दी जाएगी. कृषि विज्ञान केंद्र को पूरी तरह से किसानों से जोड़ने की जरूरत है. वैज्ञानिक लाभ को तुरंत किसानों तक पहुंचाने का काम होगा. अब जल्दी ही किसानों के बीच चर्चा होगी, विचारविमर्श होगा, जिस से खेती से हम फूड बास्केट बनने का चमत्कार कर सकें.

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कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए कहा कि किसानों का बजट एक समय 27 हजार करोड़ रुपए था, प्रधानमंत्री मोदी ने इस बजट को बढ़ा कर 1.52 लाख करोड़ रुपए कर दिया. किसानों को सब्सिडी पर खाद मिलती है. आजकल वे लोग किसानों की बात करते हैं, जिन का खेती से कोई लेनादेना ही नहीं है. उन्होंने खेत नहीं देखे, खेत की फसल नहीं देखी, उन को पता ही नहीं है कि गेहूं की बाली कैसी होती है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान जितना भी तुअर, मसूर, उड़द उगाएंगे, वो सब सरकार खरीदेगी. पहले के जमाने में तो खरीद ही नहीं होती थी. पुरानी सरकार में दाल की खरीदी केवल 6 लाख मीट्रिक टन की गई थी. मोदी सरकार ने 1.70 करोड़ मीट्रिक टन दाल खरीदी. उत्पादन की लागत घटाने के प्रयास भी जारी हैं. पीएम किसान सम्मान निधि के तहत अब तक 3.24 लाख करोड़ रुपए डाल दिए गए हैं किसानों के खातों में.

उन्होंने कहा कि पीएम फसल बीमा योजना आज दुनिया की सब से बड़ी फसल बीमा योजना है. हम निरंतर प्रयत्न करेंगे कि उस में सुधार करते रहें. कृषि का विविधीकरण हमें करना है. इस से किसान को ज्यादा फायदा होगा.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से आग्रह किया कि वे मृदा का स्वास्थ्य ठीक करने के लिए अपने खेत के कुछ हिस्से में प्राकृतिक खेती करें. इस के लिए मिशन बहुत जल्दी आने वाला है. इस की रूपरेखा बन गई है. एफपीओ और बनने चाहिए. इस से हम कई तरह के काम कर के अपनी आय बढ़ा सकते हैं.