पशु संक्रामक रोग पर कार्यशाला

नई दिल्ली : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से आयोजित पशु संक्रामक रोग प्राथमिकता पर तीनदिवसीय कार्यशाला का आयोजन पिछले दिनों नई दिल्ली में शुरू हुआ.

इस कार्यशाला का उद्घाटन पशुपालन और डेयरी विभाग के पशुपालन आयुक्त (एएचसी) डा. अभिजीत मित्रा ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में इस बात को रेखांकित किया कि रोग को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया में माली नुकसान एक महत्वपूर्ण मानदंड है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संक्रामक रोगों के आर्थिक प्रभाव, विशेष रूप से पशुधन, मुरगीपालन और वन्यजीवों को प्रभावित करने वाले रोगों की रोकथाम व नियंत्रण प्रयासों के लिए किन रोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, यह निर्धारित करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

डा. अभिजीत मित्रा ने रेखांकित किया कि इन रोगों से संबंधित वित्तीय बोझ, जिस में उत्पादकता में कमी से ले कर उपचार और नियंत्रण उपायों पर होने वाली लागत शामिल है, न केवल कृषि क्षेत्र के लिए, बल्कि समग्र रूप से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए भी दूरगामी परिणाम उत्पन्न करता है.

पशुपालन आयुक्त ने आर्थिक हानि के अलावा रोग प्राथमिकता प्रक्रिया में जैव विविधता के नुकसान को एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में शामिल करने की पैरवी की. उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि जैव विविधता की हानि, जो आमतौर पर वन्यजीवों व अन्य प्रजातियों में संक्रामक रोगों के फैलने के कारण होती है, के इकोसिस्टम और उन के द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता प्रक्रिया अधिक समग्र हो जाती है. साथ ही, पशु स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव कल्याण के बीच आपसी निर्भरता को मान्यता प्रदान की जाती है.

एफएओ इंडिया के महामारी विज्ञान, एएमआर और जूनोसिस (एक रोग, जो कशेरूक पशुओं से दूसरे में फैलता है) विशेषज्ञ डा. राज कुमार सिंह ने पशु संक्रामक रोग प्राथमिकताकरण की प्रक्रिया और इस में शामिल विभिन्न समितियों की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी.

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इस कार्यशाला में डीएएचडी, आईसीएआर, राज्य पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों, राज्य पशुपालन विभागों, यूएसएआईडी, जेपीआईजीओ और एफएओ इंडिया की ईसीटीएडी टीम के विशेषज्ञों के रूप में विविध समूह एक मंच पर साथ आया.

इस एआईडीपी कार्यशाला का प्राथमिक लक्ष्य प्रमुख पशु संक्रामक रोगों का व्यापक मानचित्रण, पहचान और प्राथमिकता निर्धारण करना है. यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण पशु संक्रामक रोगों के मानचित्रण के साथ शुरू हुई, जिस में उन के आर्थिक व रोग संबंधी प्रभावों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञ परामर्श और द्वितीयक अनुसंधान का उपयोग किया गया. इस के बाद एक गहन पहचान प्रक्रिया अपनाई गई, जिस में विशेषज्ञों ने व्यापकता, आर्थिक प्रभाव और पशु व मनुष्यों, दोनों के लिए स्वास्थ्य से संबंधित जैसे कारकों के आधार पर रोगों का मूल्यांकन किया.

अगले 2 दिनों के दौरान विशेष रूप से चिंताजनक रोगों, जिन में पशुधन, मुरगीपालन और वन्यजीव जैसे स्थलीय जानवरों को प्रभावित करने वाले रोगों, साथ ही मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले जूनोटिक रोग शामिल हैं, को उन के महत्व के अनुरूप क्रमबद्ध किया जाएगा और प्राथमिकता दी जाएगी.

यह कार्यशाला न केवल निगरानी प्रयासों को सुदृढ़ करेगी, बल्कि अधिक प्रभावी रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के डिजाइन और उन के कार्यान्वयन के बारे में भी जानकारी देगी. अर्थव्यवस्था और जैव विविधता के लिए सब से बड़ा खतरा उत्पन्न करने वाले रोगों को प्राथमिकता दे कर राष्ट्रीय थिंकटैंक रणनीति तैयार कर सकता है और संसाधनों को समान रूप से केंद्रित कर सकता है, जिस से भारत में अधिक टिकाऊ और लचीली पशु स्वास्थ्य प्रणाली विकसित हो सके.

पौध रोपण के तहत एक एकड़ जमीन पर ‘मातृ वन’

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों ‘एक पेड़ मां के नाम’ #Plant4Mother अभियान के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) कैंपस पूसा में पौधारोपण किया. उन्होंने बताया कि मंत्रालय लगभग एक एकड़ भूमि में ‘मातृ वन’ स्थापित करेगा.

कार्यक्रम में राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर, सचिव डेयर एवं महानिदेशक, आईसीएआर, डा. हिमांशु पाठक, कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्रालय के लगभग 200 अधिकारी व कर्मचारी और स्कूली छात्र भी उपस्थित थे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि देशभर में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) के सभी अधीनस्थ कार्यालय, आईसीएआर संस्थान, सीएयू, केवीके और एसएयू भी अपनेअपने स्थानों पर इसी तरह का वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया. उन्होंने यह भी बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत 800 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया और उम्मीद है कि कार्यक्रम के दौरान 3000-4000 पौधे लगाए जाएंगे.

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उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 जून, 2024 को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर वैश्विक अभियान ‘एक पेड़ मां के नाम #Plant4Mother’ का शुभारंभ किया था और प्रधानमंत्री के संकल्प को सुनिश्चित करने के लिए हमारे मंत्रालयों ने जनआंदोलन के रूप में ‘एक पेड़ मां के नाम’ #Plant4Mother अभियान की शुरुआत की है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस अवसर पर उपस्थित सभी अधिकारियों, कर्मचारियों और स्कूली विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इस अभियान में भाग लें और वृक्षारोपण कर के अपनी मां और धरती मां के प्रति सम्मान प्रकट करें.

वैश्विक अभियान के हिस्से के रूप में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि सितंबर, 2024 तक देशभर में 80 करोड़ पौधे और मार्च, 2025 तक 140 करोड़ पौधे लगाए जाएं.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 20 जून, 2024 को असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में वृक्षारोपण गतिविधि शुरू की, जिस में व्यक्तियों ने अपनी माताओं के सम्मान में पेड़ लगाए. पेड़ लगाने से सरकार द्वारा शुरू किए गए मिशन लाइफ (Mission LiFE) के उद्देश्य को भी पूरा किया जाता है, जो पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली का एक जनआंदोलन है. कृषि में, पेड़ उगाना टिकाऊ खेती को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. पेड़ मिट्टी, पानी की गुणवत्ता में सुधार कर के और जैव विविधता को बढ़ा कर कृषि उत्पादकता में सुधार करने में मदद करते हैं. पेड़ किसानों को लकड़ी और गैरलकड़ी उत्पादों से अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान करते हैं. अभियान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोकने और उलटने की अपार क्षमता है.

पशुओं के लिए जरूरी हरा चारा

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पशुपालन और डेयरी विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के दो अग्रणी संस्थानों सीईएएच, बैंगलुरू और रीजनल फोडर स्टेशन, हिसार द्वारा ‘भारत में चारा प्रबंधन में प्रगति’ (एएफएमआई-2024) विषय पर पांचदिवसीय पहली राष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण सह कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों के चारा विशेषज्ञों सहित 14 राज्यों के 71 पशु चिकित्सकों ने हिस्सा लिया.

कार्यशाला का शुभारंभ चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने किया. कार्यक्रम में संयुक्त आयुक्त (राष्ट्रीय पशुधन मिशन) डा. एचआर खन्ना व संयुक्त आयुक्त और निदेशक (सीईएएच) डा. महेश पीएस भी मौजूद रहे.
प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि नई किस्मों एवं तकनीकों को अपना कर चारा उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है. उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकार के चारा बीज उत्पादन और संबंधित गतिविधियों में शामिल पशु चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया.

उन्होंने पशु पोषण के महत्व पर पशुपालकों में जागरूकता पैदा करना, पशुधन स्वास्थ्य, चारा उत्पादन डेयरी और चारा उत्पादों की आपूर्ति से जुड़े हितधारकों के लिए एक साझा मंच प्रदान करने पर भी बल दिया. साथ ही, उन्होंने पशु चिकित्सा विज्ञान और कृषि में प्रशिक्षित युवाओं से इस क्षेत्र के बेहतर भविष्य के लिए चारा क्षेत्र में उद्यमिता अपनाने का आग्रह किया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि देश में इस समय 11.3 फीसदी हरे चारे व 23.2 फीसदी सूखे चारे की कमी है. कृषि भूमि सीमित होने के कारण चारा फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना कठिन है, लेकिन हम चारा फसलों की उन्नत किस्मों का बीज उपलब्ध करवा कर, चारा उत्पादन की नईनई तकनीक विकसित कर के, विभिन्न क्षेत्रों के लिए चारा फसलों के उचित फसल चक्र विकसित कर के बहुवर्षीय चारा फसलों की खेती कर के इस का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं. इस से न केवल हमारे पशुधन की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी. चारे की कमी के दिनों में साइलेज बना कर पशुओं को खिलाया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि चारा फसलों की मुख्य चुनौतियों में गुणवत्तापूर्ण बीज की कमी भी है. इस के लिए हमें किसानों व संबंधित अधिकारियों को चारा फसलों के बीज उत्पादन के लिए प्रेरित करना होगा. यदि इन विषयों पर पशु चिकित्सकों, संबंधित अधिकारियों एवं किसानों को प्रशिक्षण दिया जाए, तो इस से चारा उत्पादन में फायदा हो सकता है. गौरतलब है कि पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए वर्षभर हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है.

डा. महेश पीएस ने कार्यशाला में प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम की थीम और आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी. क्षेत्रीय चारा केंद्र, हिसार के निदेशक डा. पीपी सिंह ने सभी का धन्यवाद किया.

इस अवसर पर एचएयू के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग, पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग, सीएसबीएफ, हिसार के निदेशक डा. रुंतु गोई व हकृवि के चारा अनुभाग के वैज्ञानिक भी उपस्थित रहे.

खेती की तकनीकी जानकारी दे रहे डा. वीके सिंह

सीतापुर : वर्तमान में कृषि शिक्षा मे युवाओं की दिलचस्पी बढ़ी है. पिछले कुछ वर्षों से मैडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन जैसे विषयों में रोजगार के अवसरों में कमी आई, लेकिन कृषि में रोजगार की स्थिति काफी बेहतर है. इसलिए युवा प्रतिभा कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रही है. किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा कैसे मिले ,कौन से समय में किस फसल की बोआई की जाए. इन विभिन्न विषयों पर जिले के युवा किसानों को खेतीबारी का ककहरा कृषि विज्ञान केंद्र, अंबरपुर में सीख रहे हैं.
केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि आज के समय में यह कहना कि कृषि शिक्षा में युवा इसलिए आ रहे हैं कि वे समाज की सेवा कर सकें, पूरी तरह से सच नहीं होगा. वास्तविकता तो यह है कि कृषि शिक्षा में रोजगार के अधिक साधन मुहैया हैं, इसीलिए युवा कृषि शिक्षा की ओर आकर्षित हो रहे हैं. पर, यह भी सच है कि उन के मन में कुछ नया करने के सपने हैं. आवश्यक है कि हम उन के सपने को साकार करने में मदद करें.

कृषि विज्ञान केंद्र पर कई युवाओं ने मशरूम उत्पादन, और्गेनिक गुड़ उत्पादन इकाई, पोल्ट्री फार्म, वर्मी कंपोस्ट बनाने जैसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त कर आज अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

कृषि की इन पद्धतियों को अपना रहे हैं किसान

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS)

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए है. बड़े किसान भी इस प्रणाली के जरीए खेती कर के मुनाफा कमा सकते हैं. एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उद्देश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का सही तरीके से इस्तेमाल करना है. इस के तहत आप एक ही साथ अलगअलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशीपालन, फल उत्पादन, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन इत्यादि कर सकते हैं. इस से आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे. लागत में कमी आएगी और उत्पादकता बढ़ेगी. एकीकृत कृषि प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल है और यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाती है.

मचान विधि से लतावर्गीय सब्जियों की खेती

मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. इस में खेत में बांस या तार का जाल बना कर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है. इस विधि का उपयोग करने से किसान अपनी फसल 90-95 फीसदी तक बचा सकते हैं. बारिश के मौसम में सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए खेती की ये तकनीक वरदान साबित हो सकती है.

बता दें कि मचान पर पानी जमा नहीं होता है, जिस की वजह से किसान की फसलों के सड़ने का खतरा कम हो जाता है. इस के अलावा फसल में यदि कोई रोग लगता है, तो मचान के माध्यम से दवा छिड़कने में भी आसानी होती है.

वैज्ञानिक खेती पर प्रशिक्षण

आचार्य नरेंद्र कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय में कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह के दिशानिर्देशन में पांचदिवसीय किसान प्रशिक्षण आयोजन किया जा रहा है, जिस में बिहार प्रांत के जहानाबाद जनपद के 56 प्रगतिशील किसानों प्रशिक्षण श्रीअन्न (मोटे अनाज की फसलें) की वैज्ञानिक खेती, उत्पाद, प्रसंस्करण एवं विपरण पर ले रहे हैं.

प्रशिक्षण में अपर निदेशक प्रसार डा. आरआर सिंह ने बताया कि जमीन में पोषण व्यवस्थित तरीके से डालें, नहीं तो किसी न किसी की कमी या अधिकता से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

प्रशिक्षण के दौरान डा. साधना सिंह, अधिष्ठाता सामुदायिक महाविद्यालय ने श्रीअन्न यानी मोटे अनाज के प्रसंस्करण के बारे में विस्तृत जानकारी दी एवं उस के महत्व के बारे में बताया. वहीं डा. केएम सिंह, वरिष्ठ प्रसार अधिकारी ने बताया कि श्रीअन्न का अधिक उत्पादन लेने के लिए सस्य क्रियाएं समय से किया जाना अति आवश्यक होता है, जिस से उत्पादन में आशातीत वृद्धि होती है.

प्रशिक्षण में डा. श्वेता, डा. प्रज्ञा, मृदुला पांडे, मिथिलेश चौधरी ने मोटे अनाजों से बनने वाले उत्पादों को बनाना शिखाया. डा. अनिल कुमार ने मोटे अनाजों के उत्पाद एवं अनाज की विपणन संबंधी विस्तृत जानकारी दी. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, जौनपुर प्रथम के अध्यक्ष डा. एसके कनौजिया ने श्रीअन्न जैविक विधि से पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

प्रशिक्षण में धनंजय, रामजी, शिव नारायण, नीरज, अशोक, श्रीकांत पासवान, सुधीर, सतीश रंजन, सौरभ, अरविंद, आदित्य प्रकाश, उमेश कुमार, विकास चंद आदि प्रतिभागी उपस्थित थे.

फसल में कीट व बीमारी होने पर रोकथाम जरूरी

भोपाल : किसान खरीफ फसल सोयाबीन में पत्ती काटने वाले कीट व चक्र भंग, मक्का में इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है. वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, समन्वित कीट नियंत्रण के अंतर्गत प्रकाश प्रपंच यानी फैरोमौन ट्रैप, टी आकार की खूंटी, जैविक व अनुशंसित रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें.

वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, सोयाबीन फसलें अभी पुष्पन फलन की अवस्था में हैं. खरीफ फसलों में भी कीटों पर नियंत्रण करें. इस समय खरीफ फसल में सोयाबीन, उड़द, मूंगफली आदि पुष्पन व फलन की अवस्था में हैं. सोयाबीन की फसल पर गर्डल बीटल, तना मक्खी, सफेद मक्खी, मूंगफली में सफेद सुंडी, मक्का में फाल आर्मी वर्म, धान में पत्ती लपेटक एवं उड़द में सफेद मक्खी का अधिक प्रकोप देखा जा रहा है.

सोयाबीन फसल में कीटों के लिए अनुशंसित कीटनाशक

सोयाबीन की फसल में कीटों के लिए अनुशंसित कीटनाशक दवा का उपयोग करें. तना मक्खी की रोकथाम के लिए कीटनाशक प्रति हेक्टेयर थियामेथोक्सम + लैम्बडा, साइहलोथ्रिन,125 मिली, लैम्बडा साइहलोथ्रिन 04.90 सीएस 300 मिली, क्लोरेंट्रानिलिप्रोल + लैम्बडा साइहलोथ्रिन 200 मिली, आइसोसायक्लोसेरम 9.2 फीसदी (डब्ल्यूडब्ल्यू) 600 मिली, कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 04 फीसदी + फिप्रोनिल सीजी 200 मिली, सफेद मक्खी के लिए  बीटासायफ्लुथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड ओडी 350 मिली, एसिटामिप्रिड 25 फीसदी + बायफेंथ्रिन 25 फीसदी डब्ल्यूजी 250 ग्राम, थियामेथोक्सम + लैम्बडा साइहलोथ्रिन 125 मिली, क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी 150 कीटनाशक का छिड़काव करें.

हरी इल्ली के लिए स्पायनेटोरम 11.7 एससी 450 मिली, चना इल्ली फ्लूबेंडियामाइड 39.35 एससी 150 मिली, तंबाकू इल्ली फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यूजी 250-300 ग्राम, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, ब्रोफ्लानिलाइड 300 एससी 42-62 ग्राम, टेट्रानिलिप्रोल 250-300 मिली, गर्डल बीटल के लिए थायक्लोप्रिड 21.7 एससी 750 मिली, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, प्रोफेनोफास 50 ईसी 1250 मिली, एसिटामिप्रिड 25 फीसदी  + बायफेंथ्रिन 25 फीसदी डब्ल्यूजी 250 ग्राम, चने की इल्ली क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी 150 मिली, इंडोक्साकार्ब 15.8 एससी 333 मिली, इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी ईसी 425 मिली, बोफ्लानिलाइड 300 एससी 42-62 ग्राम, वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार एक बार में एक ही कीटनाशी का छिड़काव करें.

सोयाबीन व उड़द में पीला मोजेक रोग का नियंत्रण के दौरान ग्रसित पौधों को उखाड़ कर तुरंत नष्ट करें. सिंथेटिक पाइराथ्राइट्स कीटनाशक का उपयोग न करें.

प्रारंभिक अवस्था में ही थियामेथोक्जम 25 डब्ल्यूजी या एसीटामिप्रिड 20 एसपी मात्रा 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

मूंगफली में सफेद सुंडी के नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशक क्लोरोपाइरीफास 50 ईसी मात्रा 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें.

एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती

पांढुरना : पांढुरना जिले के विकासखंड सौंसर के गांव मर्राम में उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह की उपस्थिति में ‘सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती में पौधों की बढ़वार नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन’ विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला में पहले से चयनित अनुसूचित जनजाति के 51 किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. रामाकृष्णा द्वारा एचडीपीएस पद्वति से कपास फसल उत्पादन के संबंध में विस्तारपूर्वक किसानों को बताया गया.

उन्होंने कहा कि हलकी जमीन का चयन करते हुए कतार से कतार की दूरी 90 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर के अंतराल पर फसल बोई गई. सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती करने वाले किसानों को उचित केनोपी मैनेजमेंट के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की गई, जिस में फसल की 45 दिन की अवस्था में कम से कम पौधे 1.5 से 2.0 फीट एवं पाति निर्माण अवस्था पर ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस चमत्कार 12 मिलीलिटर प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर एक एकड में 10 टंकी दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई, जिस से कि पौधे की बढ़वार नियंत्रित करते हुए प्रति एकड़  क्षेत्रफल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके. सभी चयनित किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर द्वारा उन्नत किस्म का बीज एवं ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस नि:शुल्क प्रदान किया गया.

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केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के डा. दीपक नागराले द्वारा कपास फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान की गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीन जेडएआरएस डा. आरसी शर्मा ने कपास फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डा. डीसी श्रीवास्तव के द्वारा कपास फसल नवाचार को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया, जिस से कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती के लिए जिले में हलकी जमीन में कपास उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित होना बताया गया, जिस से किसानों को पूर्व में हो रहे उत्पादन की तुलना में दोगुना से अधिक उत्पादन होने की बात कही गई.

इस कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी सौंसर, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, बीटीएम, एटीएम. आत्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिक्षा मेहरा एवं सृजन के अधिकारी उपस्थित थे.

टोल फ्री नंबर 1962 पर घर बैठे पशुओं का इलाज

कटनी : जिले में चलित पशु चिकित्सा इकाई के तहत संचालित 7 एंबुलेंस वाहनों के माध्यम से अब तक 8,000 पशुओं का घर पहुंच कर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई है. घर पहुंच कर चिकित्सा सुविधा के संचालन के लिए काल सैंटर के टोल फ्री नंबर 1962 पर डायल कर किसान और पशुपालक पशुओं के लिए घर पर ही चिकित्सा सुविधा का लाभ ले सकते हैं.

उपसंचालक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग के डा. आरके सिंह ने बताया कि जिले में संचालित 7 एंबुलेंस वाहन में प्रत्येक में एक डाक्टर, एक पैरावेट और एक ड्राइवर कम अटेंडेंट की तैनाती की गई है. एंबुलेंस वाहन में पशुओं के उपचार से संबंधित सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

घरबैठे चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए पशुपालकों से मात्र 150 रुपए लिया जाता है और सभी उपचार एवं दवाएं निःशुल्क हैं. पशुपालकों से पशुओं के उपचार के बाद अब तक 12 लाख रुपए का शुल्क भी प्राप्त हुआ है.

पशुपालकों के लिए वरदान बनी पशु चिकित्सा एंबुलेंस योजना केंद्र और राज्य सरकार की सहभागिता से संचालित हुई है. प्रदेश में टी एंड एम प्राइवेट लिमिटेड आउटसोर्स एजेंसी द्वारा पशु चिकित्सा एंबुलेंस का संचालन किया जा रहा है. चिकित्सा एंबुलेंस योजना कटनी जिले के सभी 6 विकासखंडों और कटनी शहर मे संचालित है.

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सहकारी समितियों का पंजीयन केवल औनलाइन

भोपाल : जिले में सहकारी समितियों का पंजीयन अब केवल औनलाइन प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा. औनलाइन प्रक्रिया से समितियों का पंजीयन करवाने के लिए संबंधित व्यक्तियों को कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है.

उपायुक्त, सहकारिता ने बताया कि समितियों के पंजीयन के लिए विभागीय औनलाइन पोर्टल http:icmis.mp.gov.in पर जा कर 21 व्यक्ति मिल कर सहकारी समिति का गठन कर सकते हैं. पोर्टल पर नवीन संस्था का आवेदन करने के लिए आवेदक उल्लेखित लिंक पर जा कर स्वयं एमपी औनलाइन नागरिक सुविधा केंद्र के माध्यम से आवेदन कर सकता है. आवेदक को पोर्टल पर अपना लौग इन क्रिएट करना होगा. लौग इन क्रिएट करने के लिए आधार से लिंक मोबाइल नंबर प्रविष्टि कर ओटीपी सत्यापन होगा.

प्रस्तावित संस्था की जानकारी एवं प्रथम आवेदन की जानकारी भर कर पासवर्ड बनाना होगा. तत्पश्चात आवेदक का लौग इन निर्मित हो जाएगा. अंश पूंजी का मूल्य दर्ज कर के प्रस्तावित सदस्यों के फोटो एवं हस्ताक्षर अपलोड कर तदर्थ कमेटी नामांकित कर दस्तावेज अपलोड कर अंशों का मूल्य एवं सदस्यता प्रवेश शुल्क का औनलाइन भुगतान करेगा. आधार नंबर से वर्चुएल आईडी जनरेट होगा और आवेदक का ई-साइन कर आवेदन औनलाइन जमा करना होगा.

विभाग द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर अधिकतम 45 दिवस के भीतर आवेदन पर कार्यवाही की जाएगी. कुछ कमियां होने पर पोर्टल पर दर्ज किया जाएगा, जिस की सूचना एसएमएस से दी जाएगी. पंजीयन पोर्टल पर आवेदन मान्य होने पर पोर्टल से ही पंजीयन प्रमाणपत्र जनरेट होगा, जिस में डिजिटल हस्ताक्षर रहेंगे.

वर्षा ऋतु में पशुओं की देखभाल जरूरी

भोपाल : बदलते मौसम में जहां मानव जीवन के स्वास्थ्य सुरक्षा पर फोकस जरूरी है, वहीं पशुधन की भी वर्षा ऋतु में देखभाल बहुत आवश्यक है. पशुपालन विभाग की ओर से विशेष जागरूकता अभियान चला कर पशुपालकों को उन के पशुओं की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस मौसम में वातावरण में आई नमी में बढ़ोतरी की वजह से पशुओं पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिस से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जीवाणु, विषाणु फफूंदजनित एवं पशु परजीवियों जैसे जूं, मक्खी व मच्छरों से होने वाली सभी प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग के उपसंचालक ने बताया कि विभाग पशुपालकों को पशुओं की देखभाल के लिए जागरूक कर रहा है. बरसात के मौसम में पशुपालकों को पशुओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए. पशुओं को सूखे स्थान पर रखें, जहां हवा व धूप की मात्रा पर्याप्त में हो. साफसफाई का भी विशेष ध्यान रखें.

उन्होंने आगे कहा कि पशुओं को यदि पक्के फर्श पर रखा जाता है, तो उस स्थान पर सप्ताह में कम से कम 2 बार कीटाणुनाशक दवा से सफाई करें. परजीवियों से बचाव के लिए पशुपालक पशुबाड़े में मच्छरदानी का प्रयोग करें और समयसमय पर नजदीकी पशु चिकित्सक से परामर्श कर के परजीवियों से बचाव के लिए दवाएं व जानकारी प्राप्त करें.

साथ ही, पशुओं के खुरों को समयसमय पर साफ करते रहें, क्योंकि इस मौसम में फफूंद को बढ़ावा मिलता है. पशुओं को समय पर पेट के कीड़ों की दवा दें व नियमित टीकाकरण कराएं.

उन्होंने सलाह दी है कि अगर किसी भी बीमारी का लक्षण पशुओं में दिखाई दे, तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करें और पशु चिकित्सक की सलाह से उचित उपचार करवाएं.