Sesame : तिल की खेती को बढ़ावा 

Sesame : उत्तर प्रदेश में सरकार किसानों की उपज और आमदनी को बढ़ाने के लिए समयसमय पर कदम उठा रही है. इसी में से एक प्रदेश में तिल की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रोत्साहित करेगी. कृषि विभाग तिल के बीजों पर 95 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर अनुदान देगी. तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,846 रुपए प्रति क्विंटल है.

खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश में तकरीबन 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में तिल की खेती की जाती है. तिल की खेती में कृषि निवेश न के बराबर लगता है पर तिल का बाजार मूल अधिक होने के कारण प्रति इकाई क्षेत्रफल में लगभग होने की संभावना अधिक है तिल की प्रमुख प्रजातियां आरटी 346, आरटी 351, गुजरात तिल 6 आरटी, 372 आरटी, एमटी 2013-3 और बीयूएटी तिल-1 है. तिल के बीज बोने से पहले थीरम या कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजोपचारित करने से मिट्टी और बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है.

August : अगस्त माह के खेतीबारी से जुड़े खास काम

August: खेत में लगी फसलों के लिए अगस्त का महीना बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है. बारिश न होने पर फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लगातार ज्यादा बारिश होने पर फसलें गलने लगती है. ऐसी स्थिति में पानी निकालने की व्यवस्था होनी चाहिए. अगस्त के महीने में, किसानों को खरीफ फसलों की देखभाल, खरपतवार नियंत्रण और कीटरोग प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

प्रो. रवि प्रकाश मौर्य निदेशक प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी ने बताया कि इस समय रूकरूक कर लगातार बारिश हो रही है, जो फसलों के लिए लाभदायक है. परंतु लगातार बारिश होने पर कीटरोग पनपने लगते हैं, इस की पहचान कर रोकथाम करना चाहिए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा का भी फसलों में आवश्यकता अनुसार टौप ड्रैसिंग करें.

धान की रोपाई के 25-30 दिन बाद अधिक उपज वाली प्रजातियों में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन ( 65 किलोग्राम यूरिया), सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम नाइट्रोजन (33 किलोग्राम यूरिया) की टौप ड्रैसिंग करें. नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा की दूसरी और अंतिम टौप ड्रैसिंग धान की रोपाई के 50-60 दिन बाद करनी चाहिए.

धान में खैरा रोग लगने की संभावना जिंक की कमी के कारण होती है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती है, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं. इस के प्रबंधन के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेटअ और 20 किलोग्राम यूरिया को 1,000 लिटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

मक्का की फसल में नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम (87 किलोग्राम यूरिया) की दूसरी और अंतिम टौप ड्रैसिंग बोआई के 45-50 दिन बाद, नरमंजरी निकलते समय करनी चाहिए. ध्यान रहे कि खेत में उर्वरक प्रयोग करते समय पर्याप्त नमी हो.

Augustउड़द और मूंग के खेत में निराईगुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें. पीला मोजैक रोग से बचने के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. की एक लिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से शाम को छिड़काव करें.

इस समय गन्ने की लंबाई तकरीबन 2 मीटर की हो जाती है. गन्ना बांधने का कार्य पूरा कर लें. ध्यान रहे कि बांधते समय हरी पत्तियां एक समूह में न बंधे. शिमला मिर्च, टमाटर व गोभी की मध्यमवर्गीय किस्मों की पौधशाला में नर्सरी पूरे माह भर डाल सकते हैं. पत्तागोभी की नर्सरी माह के अंतिम सप्ताह में डालें. नर्सरी बारिश से बचाने के लिए पौलीथिन से कवर करनी चाहिए. बैगन, मिर्च, अगैती फूलगोभी व खरीफ प्याज की रोपाई करें. बैगन, मिर्च, भिंडी की फसलों में निराईगुड़ाई व जल निकास और फसल सुरक्षा की व्यवस्था करें.

कद्दू वर्गीय सब्जियों में मचान बनाकर उस पर बेल चढ़ाने से उपज में वृद्धि और स्वस्थ फल बनेंगे. परवल लगाने के लिए मेघा नक्षत्र (15 अगस्त के आस पास का समय) सब से बढ़िया रहता है.

आम, अमरूद, नीबू, आंवला, बेर, बेल, अनार आदि के नए बाग लगाने का समय अभी चल रहा है. इन की पौध किसी विश्वसनीय पौधशाला से ही प्राप्त कर लगाएं. किसी कारण से किसी खेत में कोई फसल नही लगा पाए हो तो उस में लाही/तोरिया की बोआई माह सितंबर में मौका मिलते ही करें. यह कम अवधि 90-95 दिन की तिलहनी फसल है, इसे काटकर गेहूं की फसल ले सकते हैं.

Nematodes : नीम से करें निमेटोड (सूत्रकृमि) का निबटान

Nematodes : खेती में निमेटोड एक तरह के बहुत सूक्षम धागा नुमा कीट होता है, जो कि जमीन के अंदर पाया जाता है और पौधे की जड़ों में लगता है, जो फसल उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित करते हैं. निमिटोड कई तरह के होते हैं और हर किस्म के निमेटोड नामक ये कीड़े फसलों को बरबाद करने के लिए कुख्यात हैं. ये सालों तक मिट्टी के नीचे दबे रह सकते हैं और पौधों को नुकसान पहुचाते हैं.  यह पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पौधे को भूमि से खाद पानी या पोषक तत्व पूरी मात्रा में नही मिल पाते और पौधे की बढ़वार रुक जाती है. निमेटोड लगने से जड़ों में गांठ बन जाती है जिस से पौधे का विकास रुक जाता है जिस से पौधा मर भी सकता है. देश की हर फसल पर इन का प्रकोप होता है, जिसे जड़ गांठ रोग, पुट्टी रोग, नीबू का सूखा रोग, जड़ गलन रोग, जड़ फफोला रोग आदि के नाम से भी जाना जाता है.

श्रीराम एग्रो प्रोडक्ट के मैनेजिंग डायरेक्टर अभिषेक गर्ग ने विस्तार से इस विषय पर बताया कि निमेटोड के प्रकोप से ग्रस्त होने वाली खास फसलें गेंहू, टमाटर, मिर्च, बैगन, भिंडी, परमल, धान इत्यादि हैं और फलों में अमरूद, सीताफल, अनार, नीबू, किन्नू, अंगूर जैसी अनेक फसलें हैं.

कैसे करें पहचान ?

अभिषेक गर्ग का कहना है कि यदि आप के पौधे बढ़ न पा रहे हों, पौधे सुखकर मुरझा जाते हैं और उन की जड़ों में गांठे बन गई हो और उन में लगने वाले फल और फूल की संख्या बहुत कम हो गई हो, तो हो सकता है कि यह निमेटोड का प्रकोप हो. इस के लिए जैविक समाधान से पौध संरक्षण कर सकते हैं.

मिट्टी में रसायन छिड़क कर निमेटोड की समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास महंगा ही नहीं, बल्कि निष्प्रभावी भी होता है. निमेटोड और दीमक आदि कीड़ो को प्रभावी रूप से समाप्त करने के लिए नीमखाद पाउडर का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद है, इस के लिए नीम खली का तेल युक्त होना आवश्यक है.

नीम खाद नीम खली के इस्तेमाल से निमेटोड बनना रूक जाते हैं. नीमखाद के इस्तेमाल से उपज में अच्छी वृद्धि भी होती है और फूलों का ज्यादा बनना और फलों की संख्या भी बढती है और फलों को ज्यादा चमकदार और स्वादिष्ठ और उन का बड़ा आकार करने में भी मदद करता है.

नीम खली केवल कीटनाशक ही नहीं है, अपितु यह खाद भी है. इस में सभी प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व पौधे के लिए मौजूद होते हैं, जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं और मित्र कीटों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. इस के अलावा, नीम खली के उपयोग से दीमक, सफेद गिडार, फंगस और गलन आदि सभी बीमारियों की रोकथाम भी होती है.

कैसे करें उपचार

फसलों के लिए गरमियों के मौसम में मिट्टी की गहरी जुताई करें और 1 हफ्ते के लिए खुला छोड़ दें, बोआई से पहले नीम खली 2 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से डाल कर फिर से जुताई करें. इस के बाद ही बोआई करें.

बागबानी में कैसे करें इस्तेमाल

अनार, नीबू, किन्नू, अंगूर और समस्त प्रकार के फलों व अन्य पौधों के रोपण के समय एक मीटर गहरा गड्ढा खोदकर नीम खली और सड़े गोबर की खाद/बकरी की मिंगन आदि मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर पौध रोपण करें. अगर पौधे पहले से ही लगा रखे हैं, तो भी पौधों की उम्र के हिसाब से नीमखाद की मात्रा संतुलित करें.  1 से 2 साल तक के पौधे में 1 किलोग्राम और 3 से 5 साल तक के पौधे में 2 से 3 किलोग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डाल कर पौधे की जड़ों के पास थाला बना कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर पानी दें. साथ ही, घुलनशील नीम तेल भी ड्रिप के साथ इस्तेमाल करें.

किसान नीम खाद/नीम खली और घुलनशील नीम तेल की खरीद हेतु या अधिक जानकारी के लिए अभिषेक गर्ग से इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं :

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Russia’s Negative List : भारतीय 70 जड़ी बूटियां व मसाले नैगेटिव लिस्ट में

Russia’s Negative List :  भारतीय हर्बल खेती के प्रमुख प्रतिनिधि एवं राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के सदस्य डा. राजाराम त्रिपाठी का मौस्को में प्रतिष्ठित “Meet & Greet” कार्यक्रम में जोरदार स्वागत किया गया. डा. राजाराम त्रिपाठी,  राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) और ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के संस्थापक भी हैं.

इस कार्यक्रम में रूस के विभिन्न औद्योगिक, व्यापारिक और कृषि क्षेत्रों के सफल उद्यमी, डाक्टर, किसान और विशेषज्ञ मौजूद थे, जिन्होंने भारत के औषधीय पौधों, मसालों और सुपरफूड्स जैसे उत्पादों की रूसी बाजार में बढ़ती मांग पर जोर दिया.

इस विशेष चर्चा का विषय बनी भारत की तकरीबन 70 महत्त्वपूर्ण जड़ीबूटियां और मसाले, जिन में अश्वगंधा की जड़ी भी शामिल है. रूस में अश्वगंधा जैसा प्रसिद्ध हर्बल उत्पाद भी प्रचलन में नहीं है. रूस में भारतीय मूल के जानकारों ने बताया कि यह अघोषित सूची भारतीय हर्बल व मसालों के आयात के लिए बड़ी बाधा बनी हुई है. जिस का प्रमुख कारण, रूसी अधिकारियों के पास इन उत्पादों के सही तथ्यों व वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी  माना जा रहा है.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने स्पष्ट कहा “आप के द्वारा बताए गए यह प्रतिबंध केवल व्यापारिक नुकसान नहीं, बल्कि दोनों देशों के लिए औषधीय और स्वास्थ्य सहयोग में भी बड़ी बाधा है. मैं इसे भारत सरकार के समक्ष उच्च प्राथमिकता से उठाऊंगा और वैज्ञानिक डेटा और शोध के माध्यम से इसे दूर करने का हर संभव प्रयास करूंगा. इस से न केवल भारतीय किसानों को लाभ होगा, बल्कि रूस के नागरिकों के स्वास्थ्य में भी सुधार आएगा.”

डा. राजाराम त्रिपाठी ने यह भी बताया कि वे जल्द ही  दोबारा रूस आने की योजना बना रहे हैं, जहां वे किसानों के बीच जा कर परंपरागत एवं आधुनिक कृषि तकनीकों के आदानप्रदान का आयोजन करेंगे ताकि, दोनों देशों के किसानों को इस का सीधा लाभ मिले.

इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में ‘इंटरनैशनल बिजनेस एलायंस’ के अध्यक्ष सैमी मनोज कोटवानी और ‘कृषि जागरण’ के संस्थापक एमसी डोमिनिक की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. रूस में भारतीय हर्बल एवं ऐरोमैटिक उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए, और अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 25 फीसदी टैरिफ के संदर्भ में, रूस को वैकल्पिक निर्यात बाजार के रूप में देखा जा रहा है. इस संदर्भ में भारतरूस के व्यापार और सांस्कृतिक सहयोग को अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता पर सभी उपस्थित लोगों ने जोर दिया.

प्रमुख तथ्य:-

– रूस की नैगेटिव लिस्ट में शामिल हैं तकरीबन 70 भारतीय औषधीय जड़ीबूटियां, जिन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण अश्वगंधा भी है

– इस प्रतिबंध का कारण रूस में भारत की औषधीय जड़ीबूटियों के वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी बताई गई है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी भारत सरकार के समक्ष इसे उच्च प्राथमिकता से उठा कर वैज्ञानिक साक्ष्यों के माध्यम से प्रतिबंध हटाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

– रूस में भारतीय मसालों, सुपरफूड्स, मिलेट्स एवं ऐरोमैटिक उत्पादों की भारी मांग है.

– अमेरिका की 25 फीसदी टैरिफ की पृष्ठभूमि में रूस को भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण वैकल्पिक निर्यात बाजार के रूप में माना जा रहा है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी जल्द ही रूस आकर भारतीय एवं रूसी किसानों के बीच पारंपरिक एवं आधुनिक कृषि तकनीकों के आदानप्रदान की पहल करेंगे.

आईबीए अध्यक्ष मनोज कोटवानी ने कार्यक्रम समापन पर कहा कि, यह कार्यक्रम कृषि, स्वास्थ्य और व्यापार के क्षेत्रों में भारतरूस के सहयोग को नए आयामों पर ले जाने का अवसर है. डा. राजाराम त्रिपाठी का यह मिशन न केवल भारतीय हर्बल उत्पादकों को मजबूत बनाएगा, बल्कि दोनों देशों के बीच आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के आदानप्रदान को भी प्रोत्साहित करेगा.

मौस्को में आयोजित यह “Meet & Greet” भारतीय हर्बल उद्योग की वैश्विक उपस्थिति मजबूत करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

Seminar : पूसा संस्थान में हुआ किसान वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन

Seminar : 2 अगस्त,2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि अभियांत्रिकी सभागार में पीएम किसान कार्यक्रम के अंतर्गत एक किसान वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी में अनुसूचित जाति परियोजना एवं संस्थान के अंगीकृत गांवों के 200 किसानों ने भाग लिया.

इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से किसान सम्मान निधि की 20वीं किस्त जारी की और किसान सभा को संबोधित किया. इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि अभियांत्रिकी सभागार में किया गया, जिस में पूसा संस्थान की अनुसूचित जाति परियोजना एवं संस्थान के अंगीकृत गांवो एवं निकटवर्ती जिलों के 200 किसानों, पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों, तकनीकी अधिकारियों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में किसान सम्मान निधि की 20वीं किस्त के अंतर्गत 9.70 करोड़ से अधिक किसानों को 20,500 करोड़ रुपए की सम्मान राशि हस्तांतरित की.

इस संस्थान के कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थानांतरण केंद्र के प्रभारी डा. अनिल कुमार सिंह ने संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. रविंद्र पडारिया, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी विश्वनाथन, जल प्रौद्योगिकी केंद्र के परियोजना निदेशक डा. पी ब्रह्मानंद सहित उपस्थित वैज्ञानिकों, स्टाफ और किसानों का स्वागत किया.

इस के बाद वैज्ञानिक किसान परिचर्चा शुरू हुई. जिस में डा. प्रवीण उपाध्याय, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सस्य विज्ञान संभाग ने समन्वित खेती प्रणाली तकनीकी पर चर्चा की. साथ ही, डा. प्रलय भौमिक, वरिष्ठ वैज्ञानिक, अनुवांशिकी संभाग ने बासमती धान की उन्नत उत्पादन प्रौद्योगिकी,  डा. विनोद कुमार शर्मा प्रधान वैज्ञानिक ने मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन संभाग ने समेकित पोषण प्रबंधन जैसे विषयों पर किसानों को जानकारी दी.

अगले सत्र में तीन और विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा चर्चा की गई. इस सत्र में डा. विग्नेश एम, वरिष्ठ वैज्ञानिक, अनुवांशिकी संभाग ने मक्का उत्पादन प्रौद्योगिकी, डा. एसपी सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, अनुवांशिकी संभाग ने श्रीअन्न की महत्ता एवं उत्पादन प्रौद्योगिकी, डा. बिष्णु माया, वरिष्ठ वैज्ञानिक, पादप रोगविज्ञान संभाग ने खरीफ फसलों के मुख्य रोगों विशेषकर धान में बकानी रोग के नियंत्रण पर चर्चा की.

डा. पी ब्रह्मानंद, परियोजना निदेशक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने किसानों को जल संरक्षण और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के तरीके बताए. संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी विश्वनाथन ने अपने किसानों को संस्थान द्वारा शोध से उत्पन्न नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने की सलाह दी. संयुक्त निदेशक (प्रसार) ने किसानों को संगठन बना कर उद्यमिता और मार्केटिंग के क्षेत्र में भी कार्य करने की सलाह दी. अगले सत्र में किसानों को संस्थान के खेतों में, जहां विभिन्न विषयों के अनुसंधान चल रहे थे, भ्रमण कराया गया और उन्हें लाइव प्रदर्शनों और अनुसंधान प्रयोगों के माध्यम से खेतीबारी के अन्य विषयों पर जानकारी दी गई.

Kisan Samman Nidhi : प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की 20वीं किस्त जारी

Kisan Samman Nidhi : प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 20वीं किस्त 2 अगस्त, 2025 को वाराणसी में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम के माध्यम से देश भर के करोड़ों किसानों को जारी की गई. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के दिशानिर्देशन में पूरे देश के सभी कृषि संस्थानों में किसानों को जोड़ा गया.

इस कार्यक्रम के द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के किसानों को किसान सम्मान निधि सहित अन्य कृषि आधारित योजनाओं के बारे में जानकारी दी. उन्होंने किसानों से सीधी बात करते हुए  कहा कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता है कि सभी सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ किसानों और आम नागरिकों तक पहुंचे.  देश के विकास में किसानों के विकास के हित में काम करना सरकार का सर्वोपरि उद्देश्य है.

इस अवसर पर मऊ के राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान में जागरूकता सह जीवंत प्रसारण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. निदेशक, डा. संजय कुमार के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 124 किसान शामिल हुए और संस्थान के वैज्ञानिक व कार्मिक भी उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ वैज्ञानिक, डा. कल्याणी कुमारी ने किया. विकसित कृषि संकल्प अभियान के नोडल अधिकारी और कार्यक्रम के समन्वयक, प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने किसानों को संस्थान स्तर पर चल रहे भारत सरकार की कृषि योजनाओं के बारे में जानकारी दी. उस के बाद वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. अजय कुमार ने किसानों को धान की खेती में खरपतवार नियंत्रण विधियों और खेती में जैविक खाद के प्रयोग के बारे में बताया.

वैज्ञानिक डा. विनेश बनोथ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दे कर कार्यक्रम की समाप्ति हुई. किसानों ने वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव भी साझा किए और सरकार की इस पहल के प्रति आभार जताया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वीडियो कौंफ्रेंसिंग के माध्यम से इस बार तकरीबन 9.7 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 20,500 करोड़ रुपए की राशि ट्रांसफर की गई. इस योजना का उद्देश्य किसानों की आय को सहारा देना और उन्हें खेती की लागत में राहत पहुंचाना है. यह आयोजन केंद्र सरकार द्वारा किसानों की आर्थिक सहायता और सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है.

Tariff : अमेरिकी टैरिफ -हमें किसान और कृषि बाजार को मजबूत करना होगा

Tariff : अमेरिका का “मित्रता” का वह स्वर, जो हमेशा शिष्टाचार की बात करता था, अब वैश्विक पूंजी के गणित में विचित्र बेसुरा और असंवेदनशील हो गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 1 अगस्त, 2025 से भारत पर अचानक 25 फीसदी  टैरिफ (Tariff) लगाने की घोषणा के साथ दुनिया की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था ने “मित्रता” को व्यापारिक तानाशाही के रूप में परिभाषित कर दिया.

भारत, जहां 700 मिलियन से अधिक लोग सीधेसीधे कृषि आधारित व्यवस्था पर आपनी रोजीरोटी व रोजगार के लिए पूरी तरह निर्भर हैं और 140 करोड़ लोगों की भोजन की थाली जिस पर पूरी तरह निर्भर है, इस के लिए यह झटका केवल आर्थिक नहीं, आत्मसम्मान का प्रश्न भी है.

असल मुद्दा : बाज़ार खोलो या अनैतिक टैरिफ झेलो

बहाना ऊंचे टैरिफ (Tariff ), रूस से सैन्य संबंध या कुछ और हो, असल मुद्दा यही है कि भारत के कृषि बाजार को अमेरिकी (जैनेटिक मौडिफाइड) जीएम फसलों, जीएम उत्पादों और मीट मिल्क, सब्सिडी वाले डेयरी उत्पादों के लिए खोलना. क्या यही है “स्वतंत्र व्यापार”? क्या यह वही ग्लोबलाइजेशन है, जिस में किसानों की सदियों पुरानी मेहनत को सस्ते विदेशी उत्पादों से कुचलना जायज है? हमारे उत्पादन की मिट्टी की सुगंध, हमारे सामूहिक प्रयास, हमारी खेती की मूल संस्कृति की कीमत क्या अमेरिकी व्यापारी राष्ट्रपति समझेंगे?

क्या अमेरिका को हमारे किसान, हमारी ‘अमूल क्रांति’ याद है?

भारत के 700 मिलियन लोग खेती पर निर्भर यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक संघर्षशील विरासत है. भारतीय सहकारिता आंदोलन ने न केवल देश में दूध की नदियां बहायीं, बल्कि छोटे किसानों को आत्मनिर्भर भी बनाया है. अमेरिकी डेयरी उद्योग के सब्सिडी धंधों का एकाधिकार हमारे किसानों का पूर्ण संहार होगा.

सरकार का स्पष्ट नाअब समय की पुकार

अब वक्त है, जब भारत सरकार को अमेरिकी दबावों का शिकार बनने के बजाय, आत्मनिर्भर स्वाभिमान के साथ “ना” कहना चाहिए. रूस के साथ हमारे समन्वय पर और लगाए जा रहे अन्य आरोप सिर्फ बहाना हैं. सरकार को खाद्य सुरक्षा, कृषि नीति और किसानों के अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी दबाव या लालच के आगे झुकना उचित नहीं.

वास्तविक आंकड़े और 25 फीसदी  टैरिफ का प्रभाव

– भारत का कुल विदेश व्यापार : $1.3 ट्रिलियन (करीब 108 लाख करोड़ रुपए)

– भारतअमेरिका द्विपक्षीय व्यापार : $150 अरब (करीब 12.5 लाख करोड़ रुपए)

– भारत से अमेरिका को कृषि-आधारित निर्यात : $15 अरब (करीब 1.27 लाख करोड़ रुपए)

– 25 फीसदी टैरिफ का अनुमानित असर: $3.75 अरब (करीब 31 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त लागत)

– निर्यात में संभावित गिरावट: 20–30 फीसदी (यानी $4.5 अरब करीब 37,000 करोड़ रुपए तक की हानि)

– GDP पर प्रभाव : 0.3–0.5 फीसदी (60,000–1,00,000 करोड़ रुपए का असर)

– विदेशी व्यापार में संभावित गिरावट: 1.5–2 फीसदी (20,000–25,000 करोड़ रुपए)

व्यापार घाटा कम करने के लिए अतिरिक्त व्यवहारिक सुझाव :

1. निर्यात विविधीकरणउत्पाद और बाजार दोनों स्तरों पर

गैरपारंपरिक कृषि निर्यात : फूल, औषधीय वनस्पति, जैविक मसाले, मिलेट्स ,सुपरफूड्स (मोरिंगा, किण्वित उत्पाद), खाद्य संपूरकों आदि पर जोर दें, जिन की वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है.

सेवा क्षेत्र पर ध्यान : आईटी, फार्मा, अनुसंधान नीति सलाह, शिक्षा तकनीक जैसे सेवा निर्यात को गति दें, ये सेक्टर प्रति डौलर अधिक वैल्यू जोड़ सकते हैं.

– पूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों की तलाश : बांग्लादेश,नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से ले कर ब्राजील, वियतनाम, इजिप्ट जैसे कृषि आधारित, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय ब्रांड पहुंचाएं.

  1. आयात प्रतिस्थापन, विशेष रूप से कृषि कृषिरसायन क्षेत्र में

– रसायन, कृषि मशीनरी, कृषि डीजल, खाद्य प्रसंस्करण में घरेलू निर्माण क्षमता को बढ़ावा दें.

– ऐसे वस्तुओं में ड्रैगन फ्रूट, अल्पज्ञात दलहन, उच्च प्रोटीन युक्त अनाज जैसी फसलों का प्रोमोशन, इन्हें आत्मनिभर भारत का नया एजेंडा बनाएं.

  1. रसद (लोजिस्टिक) और सप्लाईचेन को मजबूत करें

– बंदरगाहों का डिजिटलीकरण, कृषि स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर, रेलवेराजमार्ग कनेक्टिविटी को और बेहतर करना, ताकि निर्यात लागत घटे और उत्पाद वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके.

– फ्री ट्रेड वेयरहाउस और फूड पार्क का जाल ग्रामीण भारत में फैले. यह एमएसएमई क्षेत्र और कृषि निर्यात बढ़ोतरी के लिए जरूरी है.

  1. उच्च गुणवत्ता जैविक खेती और वैश्विक मानकों की ओर रूख

– जैविकप्रमाणीकृत खेती, यूरोपीय व उच्च, मानकों के अनुरूप निर्यात, इस से उत्पाद रिजेक्शन घटेगा, मूल्य बेहतर मिलेगा.

– कृषि अनुसंधान में निवेश (बीज, क्लाइमेट स्मार्ट फार्मिंग, सस्टेनेबल पैकेजिंग) यह दीर्घकालिक निर्यात वृद्धि का साधन बनेगा.

  1. डिजिटल और कौमर्स निर्यात

– कृषि एवं ग्रामीण उत्पादों के लिए अमेजन, वौलमार्ट या टीमौल जैसे प्लेटफौर्म पर सीधे निर्यात करना.

– भारत सरकार डिजिटल एक्सपोर्ट पोर्टल्स (इंडियामार्ट, ट्रेडइंडिया) की इंटरनेशनल मार्केटिंग, ब्रांडिंग और ओनडिलीवरी सिस्टम सक्षम करें.

  1. लेबरइंटैंसिव इंडस्ट्रीज का विस्तार और स्किलिंग

– हैंडलूम, लौजिस्टिक्स, मत्स्य, खाद्य प्रसंस्करण, हर्बल परंपरा,बोटैनिकल्स क्षेत्रों में आउटपुटऔर निर्यात दोनों में वृद्धि करना.

– ग्रामीण युवाओं को स्किल ट्रेनिंग और स्टार्टअप फंडिंग में प्राथमिकता.

Raja Ram Tripathi

इस समय मैं रूस की यात्रा पर हूं और यहां की कृषि नीतियों, किसानप्रधान दृष्टिकोण और तकनीकी आत्मनिर्भरता को निकट से देख रहा हूं. यह स्पष्ट महसूस होता है कि रूस ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की पाबंदियों को अनदेखा कर पूरी मजबूती से अपने कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में कार्य किया है. जैविक खेती, प्रसंस्करण और अनुसंधान आधारित नवाचारों के बल पर रूस ने साबित किया है कि जब नीति किसान को केंद्र में रख कर बनाई जाती है, तो कोई विदेशी दखल जरूरी नहीं होता.

भारत के लिए यह एक प्रेरक संकेत है कि हमें भी अमेरिकी दबावों से ऊपर उठ कर ऐसे कृषि मौडल अपनाने चाहिए, जो देश के स्वाभिमान, किसान और भविष्य तीनों को मजबूत करें. लेकिन यह सब रातोंरात नहीं होने वाला, पर इस की ठोस शुरुआत तो करनी ही होगी. सरकार को इस की शुरुआत सब से पहले किसानों को विश्वास में ले कर करनी चाहिए. मेरा मानना है कि भारत का किसान निश्चित रूप से ऐसी परिस्थितियों में अपनी पूरी ताकत और विश्वास के साथ देश व सरकार के साथ खड़ा होगा.

अंत में राष्ट्रीय स्वाभिमान, रणनीतिक विविधता और किसान समर्थ राष्ट्र की ओर “सच्चे मित्र वही हैं जो हमारी जमीन, हमारे किसान और हमारी संप्रभुता का सम्मान करें.” अमेरिकी टैरिफ का दबाव चाहे जितना हो, अब जरूरत है, व्यावहारिक, बहुपक्षीय और किसान समर्थन नीति की. रूस, अफ्रीका, एशिया में डिप्लोमैटिक व्यापारिक संबंध, दिल से भारत की आत्मनिर्भरता, खेतीउद्योग निर्यात सहित सब की सम्मिलित शक्ति से अब वक्त है दुनिया को यह बताने का कि :

– भारत अमेरिका से डरने वाला नहीं

– हमारे किसान घुटने टेकने वाले नहीं

– और सरकार बहुपक्षीय रणनीति व किसान सर्वोपरि सोच के साथ नए युग की बुनियाद रखने को दृढ़ संकल्पित है.

माटी की सुगंध और देशी किसान की ताकत, यही भारत की कारोबारी, नैतिक और राष्ट्रीय पूंजी है. हम व्यापार घाटे को भी अवसर में बदलेंगे, अमेरिका के टैरिफ को भी अपनी बहुआयामी आर्थिक शक्ति विस्तार का और अंतर्राष्ट्रीय रिश्तों को पुनः परिभाषित कर नया अध्याय बनाएंगे.

डा. राजाराम त्रिपाठी भारतीय कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ और ‘अखिल भारतीय किसान महासंघ’ (आईफा) के राष्ट्रीय-संयोजक हैं और इन दोनों रूस यात्रा पर हैं.

Global Tiger Day : सप्ताह भर चलेगा जागरूकता कार्यक्रम

Global Tiger Day : राष्ट्रीय प्राणी उद्यान, नई दिल्ली ने 29 जुलाई को ‘ग्लोबल टाइगर डे’ समारोह की शुरुआत की, जिस के तहत 30 जुलाई से 5 अगस्त तक एक विशेष सप्ताह भर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. स्कूली छात्रों को बाघ संरक्षण के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से आयोजित इस पहल में विभिन्न प्रकार की आकर्षक और शैक्षिक गतिविधियां शामिल हैं.

आयोजन के पहले दिन, चिड़ियाघर में 250 से ज्यादा उत्साही छात्रों ने बाघ संरक्षण पर केंद्रित एक गतिशील शिक्षण अनुभव में भाग लिया. राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के डा. मागेश के साथ एक विशेष संवाद सत्र आयोजित किया गया, जिस में उन्होंने बाघ संरक्षण से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों पर बात की. उन्होंने इस साल के बाघ दिवस को राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान “एक पेड़ मां के नाम” के साथ जोड़ने पर भी प्रकाश डाला और छात्रों को पेड़ लगा कर योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया.

छात्रों के अनुभव को और यादगार बनाने के लिए, राष्ट्रीय प्राणी उद्यान की शिक्षा टीम ने एक इंटरैक्टिव सत्र आयोजित किया, जिस में एक लघु प्रश्नोत्तरी और बाघ संरक्षण पर एक डौक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन शामिल था. इस अवसर पर बाघ के मुखौटे बनाने की गतिविधि का भी आयोजन किया गया, जिस ने इस दिन को और भी रचनात्मक बना दिया और विजेताओं को पुरस्कार भी दिए गए.

इस के बाद छात्रों ने बाघों के बाड़ों का दौरा किया, जहां उन की जिज्ञासा और उत्साह साफ  झलक रहा था क्योंकि उन्होंने प्रश्न पूछे व बाघों और भारत की समृद्ध जैव विविधता के बारे में जानकारी प्राप्त की. इस दौरे का समापन राष्ट्रीय प्राणी उद्यान के निदेशक के साथ एक संवाद सत्र के साथ हुआ. निदेशक ने छात्रों की भागीदारी की सराहना की और उन्हें वन्यजीवों के बारे में सीखते रहने और सरकार के संरक्षण प्रयासों, विशेष रूप से बाघ अभयारण्यों से संबंधित प्रयासों में सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया.

संरक्षण संदेश को और मजबूत करने के लिए, प्रत्येक सहभागी स्कूल को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निदेशक, राष्ट्रीय प्राणी उद्यान और क्षेत्रीय कार्यालय नागपुर के सहायक महानिरीक्षक द्वारा 10 पौधे भेंट किए गए, जो वन और वन्यजीव संरक्षण के प्रति उन की प्रतिबद्धता का प्रतीक है.

Mango Festival : मिठास और प्रगति का संगम उत्तर प्रदेश का आम महोत्सव

Mango Festival : देश के कई राज्यों में ‘फलों का राजा’ कहे जाने वाले आम पर महोत्सव आयोजित किया जाता है. लेकिन देश के सब से बड़े आम उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के अनूठे आम महोत्सव का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस साल 3 दिवसीय उत्तर प्रदेश आम महोत्सव का आयोजन 4 से 6 जुलाई के बीच लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में किया गया था, जिस में आम उत्पादक किसानों व बागबानों, आम के उत्पाद बनाने वालों के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की गई थीं और सब से अच्छा प्रदर्शन करने वालों को अलगअलग वर्गों और श्रेणियों में पुरस्कृत भी किया गया था.

तीन दिनों तक चलने वाले इस यूपी आम महोत्सव में एक दिन पहले ही आम उत्पादक अपने आमों की किस्मों के साथ पहुंच जाते हैं. इस बार भी प्रतियोगिता में भाग लेने वाले बागबान एक दिन पहले ही 3 जुलाई को पहुंच गए थे. इस दिन उद्यान महकमें के कर्मचारियों द्वारा किसानों के आम की अलग किस्मों के साथ पंजीकरण किया गया और बागबानों के आम को प्रदर्शनी हाल में प्रदर्शन व प्रतियोगता के लिए रखा गया.

आम की किस्मों नें मोहा सब का मन

इस बार के आम महोत्सव में आम की लगभग 800 प्रजातियों को शामिल किया गया था, जिस में अंगूर के आकार से ले कर कद्दू के आकर तक के आम देखने को मिले. प्रदर्शनी में रखे गए रंगीन, शंकर और विदेशी किस्मों में टौमी एटकिंस, सेंसेशन, पूसा प्रतिभा, पूसा लालिमा, पूसा श्रेष्ठ, अंबिका, अरुणिका, पूसा अरुणिमा सहित दर्जनों किस्में दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहीं. इस दौरान लोगों ने न केवल इसे अपने कैमरों में कैद किया बल्कि, हाथो में ले कर सैल्फियां भी लीं. इस के आलावा बड़े किस्मों साइज वाले आमों में हाथीझूल सब से ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहा.

शामिल रहे इतने प्रतियोगी

इस साल के उत्तर प्रदेश आम महोत्सव में 58 वर्गों में 7 श्रेणियों की प्रतियोगिताओं में आम की लगभग 800 प्रजातियों के 2,853 नमूने प्रदर्शित किए गए, जिन में प्रसंस्कृत पदार्थ वर्ग में 108 प्रतिभागियों ने 351 नमूने प्रस्तुत किए. इस महोत्सव में 1,449 प्रतिभागियों की भागीदारी रही.

इस महोत्सव में विभिन्न संस्थानों जैसे केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, सहारनपुर, बस्ती, झांसी और लखनऊ के औद्यानिक केंद्रों सहित उत्तराखंड, सिक्किम, मध्य प्रदेश के प्रतिभागियों ने भी भाग लिया.

इस महोत्सव में आम आइसक्रीम, आम जलेबी, आम पना, आम हलवा, आम रसगुल्ला आदि जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों के स्टाल भी आकर्षण का केंद्र रहे. तीन दिवसीय महोत्सव में भारी संख्या में आए हुए नागरिकों, स्कूली बच्चों ने आम और आम के उत्पादों दीदार किया.

मुख्यमंत्री ने किया आम महोत्सव का आगाज

लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में लगने वाले इस 3 दिवसीय आम महोत्सव का आगाज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था. इस मौके पर उन्होंने स्टालों का भ्रमण भी किया और बड़ेबड़े आमों को देख कर अचंभित भी हुए. उन्होंने एक स्टाल पर अवलोकन के दौरान अपने नाम के आम की किस्म देखी तो उसे हाथों में उठा कर खिलखिला कर हंस पड़े.

Mango Festival

इस के बाद दूरदराज से आए किसानों से बात करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश आम महोत्सव किसानों के लिए आमों की विभिन्न प्रजातियों के उत्पादन, बाजार व निर्यात की उत्तम व्यवस्था, औद्यानिक फसलों और तकनीक के विषय में जागरूकता उत्पन्न करने का माध्यम बनता जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश के किसान नवाचार व कृषि आधुनिकीकरण का प्रयोग कर कई गुना मुनाफा कमा रहे हैं. आम महोत्सव व प्रदर्शनी के माध्यम से किसानों की मेहनत को भलीभांति देखा जा सकता है.

इस अवसर पर उन्होंने लंदन और दुबई के लिए आम निर्यात हेतु कंटेनर को झंडी दिखा कर रवाना किया और उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग की आम महोत्सव-2025 पर आधारित स्मारिका का विमोचन भी किया गया. साथ ही उन्होंने प्रदेश के प्रगतिशील किसानों, बागबानों और निर्यातकों को सम्मानित भी किया.

उद्यान राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने कार्यक्रम में किसानों से कहा कि लखनऊ के आम की महक देश व विदेश के कोनेकोने तक पहुंच रही है. ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, रूस, इटली, ओमान आदि देशों में भी हमारे देश का आम निर्यात किया जा रहा है.

अजब गजब नाम वाले आम

इस बार उत्तर प्रदेश आम महोत्सव में केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान लखनऊ के स्टाल पर कई अजब गजब नाम वाले आम की किस्में को देखने को मिली, जिस में अलिफ लैला, अफीम, अंडा, मुसरत शास्त्री, हैदर साहब, खरबूजा, फकीर वाला, आर्य समाज, पत्थर, नबाब उस आमदी जैसी दर्जनों किस्में शामिल रहीं.

इस के अलावा संस्थान द्वारा हाल ही में विकसित की गई 2 रंगीन नवीन किस्मों के साथ दर्जनों, किस्में ऐसी भी देखने को मिलीं जिन पर नई किस्म ईजाद करने के लिए शोध चल रहा है. ऐसे आमों को एक विशेष कोड से पहचाना जाता है.

मोदीयोगी के नाम की किस्में रहीं आकर्षण का केंद्र

‘मैंगो मैन’ हाजी कलीमुल्ला द्वारा ईजाद किए गए सीएम योगी का जब ‘योगी आम’ से सामना हुआ तो चेहरे पर मुस्कान आ गई. ‘मैंगो मैन’ हाजी कलीमुल्ला ने बताया कि ‘योगी आम’ तकरीबन 1 किलोग्राम वजनी होता है, गूदा मुलायम और स्वाद बेहद लाजवाब. इस की गुठली काफी छोटी होती है.

वहीं ‘मोदी मैंगो’ के जनक बागबान मलीहाबाद के नवी पनाह के नवाचारी बागबान उपेंद्र कुमार द्वारा विकसित किए गए मोदी आम की खूबियों के बारे बताया कि मोदी आम लंबा आकार, 500 ग्राम वजन और पके हुए पर पीला रंग का होता है. यह जायके और खुशबू में बेहद संपन्न है.

2 छिलकों वाला अनोखा आम
इस प्रदर्शनी में ‘अनारकली’ नामक आम भी खूब आकर्षण का केंद्र बना था. हाजी कलीमुल्लाह ने बताया कि यह ऐसा आम है जिस में दो छिलके होते हैं, ऊपरी और भीतरी गूदा अलगअलग स्वाद लिए होता है.

पवन सिंह और कुमार विश्वास ने बांधा समां

आम महोत्सव के पहले दिन भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने महोत्सव की शाम में समा बांध दिया. दर्शकों और उन के फैन ने लाइट बुझा कर अपने मोबाईल की लाईट से उन का उत्साह बढाया. दूसरे दिन कवि कुमार विश्वास, पद्मिनी शर्मा जैसे नामचीन कवियों नें अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं तो लोग वाहवाह कर उठे.

उन्नत और रंगीन किस्मों के पौधों की रही डिमांड

आम महोत्सव के दौरान कई नर्सरियों द्वारा पौधे भी बेचे जा रहे थे, जिस में सब से ज्यादा मांग बौनी रंगीन, विदेशी और व्यावसायिक किस्मों की रही. इस दौरान दूर दराज के जिले सेआए किसानों नें जम कर पौधों की खरीदारियां की.

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए किया गया सम्मानित

इस महोत्सव के समापन समारोह में आम की विभिन्न प्रजातियों की 7 श्रेणियों के 46 वर्गों की प्रतियोगिता में 45 विजेताओं को प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान हेतु कुल 122 पुरस्कार और संरक्षित आम उत्पादों की 11 वर्गों के 22 विजेताओं द्वारा प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के कुल 29 पुरस्कार और आम के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के विजेता मोहम्मद अब्दुल सलीम को अंबिका प्रजाति का प्रदर्शन करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्श पुरस्कार प्रदान किया गया.

Mango Festival

सर्वाधिक पुरस्कार पाने वालों में अब्दुल सलीम को 21, इकबाल अहमद को 15 और एससी शुक्ला को 11 पुरस्कार प्राप्त हुए. इन 121 प्रजातियों के प्रदर्श प्रदर्शन हेतु एससी शुक्ला को प्रथम, 72 प्रजातियों के लिए हाजी कलीमुल्ला खान को द्वितीय, और 63 प्रजातियों के लिए अवध आम उत्पादक एवं बागबानी समिति को तृतीय पुरस्कार मिला. वहीं 5 से 12 साल के आयु वर्ग की आम खाने की प्रतियोगिता में अरिक्ता सिंह पहले, अनिका मिश्रा दूसरे और अभिश्रेष्ठ तीसरे स्थान पर रहे.

इस महोत्सव पुरस्कार वितरण के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश के उद्यान, कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार व कृषि निर्यात राज्य मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विजेताओं को सम्मानित किया.

इस दौरान उन्होंने कहा कि किसानों का सम्मान एवं स्वाभिमान हमारी सरकार की प्राथमिकता है. इस महोत्सव में आम उत्पादकों की मेहनत से 15 गांव से 5 किलोग्राम तक के आम प्रदेश के लोगों को देखने को मिले. उत्तर प्रदेश आम महोत्सव मिठास एवं प्रगति का संगम बना है.

मंत्रियो और अधिकारीयों ने किया आम की किस्मों का दीदार

महोत्सव के दौरान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, नगर विकास एवं ऊर्जा मंत्री ए०के शर्मा, कृषि राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख, अन्य वरिष्ठ मंत्रियों, वन एवं पर्यावरण, जन्तु उद्यान एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा. अरुण कुमार सक्सेना, क्सेना, आबकारी एवं मद्य निषेध राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नितिन अग्रवाल, विधान परिषद सदस्य जितेन्द्र सिंघल, राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव, जिला पंचायत, रायबरेली की अध्यक्ष रंजना चौधरी, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के अपर मुख्य सचिव बी.एल. मीणा, निदेशक मानु प्रकाश राम संयुक्त निदेशक श्री सर्वेश कुमार व राजीव वर्मा सहित वरिष्ठ विभागीय नें महोत्सव का दीदार किया और बागबानों को पुरस्कृत भी किया.

सफल आयोजन में रही इन की भूमिका

उत्तर प्रदेश आम महोत्सव के सफल आयोजन में महकमें के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने दिन रात एक कर दिया. जिस का परिणाम भी दिखा. आम महोत्सव में आने वालों की भीड़ बता रही थी कि पूरे महकमें नें जम कर मेहनत की है. निदेशक मानु प्रकाश राम के मार्गदर्शन में सभी जिलों के जिला उद्यान अधिकारी और कमर्चारी दिए गए जिम्मेदारियों को निभाते दिखे. सब से ज्यादा मेहनत करते हुए बस्ती जिले के संयुक्त निदेशक डा. वीरेंद्र सिंह यादव नें प्रदर्शनी के इंचार्ज के रूप में पूरे पारदर्शी प्रक्रिया से महोत्सव के आयोजन में भूमिका निभाई.

लुट लिए गए आम

आम महोत्सव के अंतिम दिन अफरातफरी मच गई और प्रदर्शनी में रखे आमों की लूट शुरू हो गई. महोत्सव समाप्ति घोषणा के पहले ही भीड़ बेकाबू हो गई. लोग प्रदर्शनी के आम उठा कर ले जाने लगे, जबकि प्रदर्शनी के आम केवल प्रदर्शन के लिए थे. विभाग द्वारा लगाई गई आमों की प्रदर्शनी को लोगों ने मुफ्त का माल समझ कर लूटा. इस मौके पर औरतें दुपट्टे, साड़ी के आंचल बैग इत्यादि में आम भर कर ले भागी.

आम लूट का वीडियो भी खूब वायरल हुआ, जिस में यह देखा जा सकता की प्रदर्शनी में लगाए गए आमों को कोई झोले में भर रहा है, कोई दुपट्टे में बांध रहा है और कुछ तो ऐसे जेब में घुसा रहे हैं जैसे मोबाइल नहीं, आम रख रहे हों. इस वायरल वीडियो ने यह साफ कर दिया है कि आम भले ही फल हो, पर हिंदुस्तान में वह भावना है और जब भावनाएं उफान पर हों, तो कानूनकायदे भी ठेले के पीछे छूट जाते हैं.

Training : किसान महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए सिलाई प्रशिक्षण

Training : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश बदल रहा है, ऐसे में नीतियों और हमारी सोच को भी बदलने का वक्त है. नवाचार की जरूरत महसूस की जा रही है, पुराने ढर्रे पर चलने का वक्त जा चुका है. यदि हम ने इस सच्चाई को नहीं जाना, तो हमारी हालत भी पुराने लैंडलाइन फोन और कैमरा कंपनियों जैसी हो जाएगी जो नवाचार से दूरी बनाने के कारण चलन से ही बाहर हो गए हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में आयोजित 15 दिवसीय सिलाई व कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे. निदेशालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो की ओर से अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत जीविकोपार्जन के लक्ष्य से आयोजित इस प्रशिक्षण में उदयपुर और सलूंबर जिलों के दूरदराज गांवों की 30 महिलाओं ने भाग लिया.

इन प्रतिभागी महिलाओं को प्रमाणपत्र व अत्याधुनिक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन सहित अन्य साजसामान किट मुफ्त में प्रदान की गई, ताकि वे अपने गांव जा कर स्वरोजगार की दिशा में कदम रख सकें.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि अब तक हम लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुसरण करते आ रहे थे जो हमारे देश की पद्धति नहीं थी. साल 1835 में बनी मैकाले शिक्षा पद्धति बिलकुल समय के उस दौर में सार्थक रही है, लेकिन भारतीय परंपरा के परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति की जरूरत महसूस की गई. इस क्रम में अगस्त 2020 में नई शिक्षा नीति आई.

इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा, शोध, प्रसार के साथसाथ कौशल विकास को भी शामिल किया गया. इस नई शिक्षा नीति से 2035 तक यानी 15 साल में देशभर में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देगा. उन्होंने प्रतिभागी महिलाओं से आह्वान किया कि प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान को व्यर्थ न गवाएं, अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण दें.

इस  कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. एनजी पाटील निदेशक आईसीएआर-एनबीएसएस, नागपुर महाराष्ट्र ने एमपीयूएटी में महज 11 फीसदी स्टाफ के बावजूद 57 पेटेंट हासिल करने को अपूर्व उपलब्धि बताया. उन्होने महिलाओं से कहा कि सिलाई कौशल का पहला प्रयोग अपने बच्चों व परिवार के लिए करें. महिला सशक्त होगी तो परिवार और देश भी सशक्त होगा. इस प्रशिक्षण का मकसद भी यही है कि महिलाएं आर्थिक उन्नति कर आत्मनिर्भर बन सकें.

इस कार्यक्रम में आईसीएआर एनबीएसएस, उदयपुर इकाई प्रभारी डा. बीएल मीणा, सीनियर वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण समन्वयक डा. आरएस मीणा ने कहा कि छोटीछोटी जोत वाले किसान  परिवारों से जुड़ी महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि, मशीन में आने वाली छोटीछोटी खराबियों व उन्हें दुरूस्त करने का प्रशिक्षण भी दिया गया.

इस कायर्क्रम के शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि सिलाई आज की नहीं, पुरातन विधा है. जब से मनुष्य ने वस्त्र पहनना शुरू किया है, समय के साथसाथ पहनावे में बदलाव आते रहे हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए निदेशालय 35 तरह के प्रशिक्षण आयोजित करता है. महिलाएं अपनी कल्पना को उड़ान देने में पीछे नहीं रहें.

बनाए झबला, बैग, कशीदाकारी भी सीखी

इस 15 दिवसीय प्रशिक्षण में महिलाओं ने रूमाल, कुर्ती, पेटीकोट, घाघरा, छोटे बच्चों का झबला आदि की कटिंग व सिलाई सीखी. मास्टर ट्रेनर डा. छवि, डा. लतिका व्यास ने बैग सिलाई व सुंदर कशीदाकारी भी सिखाई. इस मौके पर प्रशिक्षणार्थी राधा मेघवाल, शारदा खटीक, कोमल मेघवाल आदि ने अनुभव भी साझा किए.

इस कार्यक्रम में छात्र कल्याण अधिकारी डा. मनोज कुमार महला, रश्मि दूबे, डा. आदर्श शर्मा व राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के अधिकारियों ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका व्यास ने किया.