कृषि संकाय चुनने पर बेटियों को मिल रही प्रोत्साहन राशि

जयपुर : कृषि क्षेत्र में बोआई से ले कर रोपण, सिंचाई और कटाई जैसे कामों में महिलाएं अग्रणी भूमिका निभाती हैं. इस क्षेत्र में उन के सशक्तीकरण के लिए राज्य सरकार द्वारा अभूतपूर्व फैसले किए गए हैं. ’कृषि विषय में अध्ययनरत छात्राओं को देय प्रोत्साहन राशि योजना’ भी बालिकाओं की कृषि क्षेत्र में प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने की ऐसी ही एक योजना है.

राज्य सरकार का उद्देश्य है कि बालिकाएं कृषि के क्षेत्र की नवीनतम विधाओं का अध्ययन करें और औपचारिक शिक्षणप्रशिक्षण प्राप्त करें, जिस से न केवल उन के परिवार की आय बढ़ेगी, बल्कि वे राज्य और देश की समृद्धि में भी योगदान देंगी.

योजना के तहत, कृषि संकाय से अध्ययन के लिए 11वीं कक्षा से ले कर पीएचडी कर रही छात्राओं को 15,000 से 40,000 की राशि प्रतिवर्ष दी जा रही है.

कृषि संकाय चुनने पर प्रोत्साहन

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के तहत राज्य में कृषि विषय ले कर अध्ययन करने वाली 11वीं एवं 12वीं कक्षा की छात्राओं को प्रतिवर्ष 15,000 की राशि प्रदान की जाती है.

उन्होंने आगे बताया कि कृषि विज्ञान से स्नातक के विषयों जैसे कि उद्यानिकी, डेयरी, कृषि अभियांत्रिकी, खाद्य प्रसंस्करण के साथ ही स्नातकोत्तर (एमएससी कृषि) में अध्ययन करने वाली छात्राओं को 25,000 रुपए हर साल दिए जाते हैं. इसी प्रकार कृषि विषय में पीएचडी करने वाली छात्राओं को 40,000 रुपए प्रतिवर्ष (अधिकतम 3 वर्ष) प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान किया गया है.

19,662 छात्राओं को मिला 35 करोड़ की राशि का प्रोत्साहन

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के तहत 21 दिसंबर, 2023 से जुलाई, 2024 तक अध्ययनरत 19,662 छात्राओं को 35 करोड़, 62 लाख रुपए का आर्थिक संबल दे कर कृषि संकाय लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

कृषि संकाय में अनामिका और विभा को मिला संबल

कृषि संकाय में स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर रही अनामिका शर्मा, उदयपुर के जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं. वे बताती हैं कि योजना के तहत बीएससी के प्रथम वर्ष में राज्य सरकार द्वारा 25,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी गई थी. वे बताती हैं कि उन्हें शुरू से ही कृषि के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने की इच्छा थी. वे चाहती थीं कि वे कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीकों के बारे में जानें और अपने परिवार की आय बढ़ाने में सहयोग करें.

अनामिका शर्मा कहती हैं कि वे स्वयं तो सक्षम हुई हीं हैं और अब वे पढ़ाई के साथसाथ किसानों को खेती करने की उन्नत तकनीकों, बीज, उर्वरक जैसी सहायक सामग्रियों के बारे में उचित जानकारी भी देती हैं.
इसी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा विभा प्रजापत भी इस योजना के लिए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का आभार जताते हुए नहीं थकतीं. वे कहती हैं कि इस योजना के कारण उन्हें कृषि विषय पढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिला है. वे चाहती हैं कि वे कृषि की नवीनतम तकनीकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा सीखें और इस क्षेत्र में कोई नवाचार करें, जिस से किसानों का कृषि कार्य में परिश्रम कम हो और उन की आय में इजाफा हो सके.

सस्ती दरों पर मिलेंगे मधुमक्खीपालन उपकरण (Bee equipment)

चंडीगढ़ : हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कंवर पाल ने बताया कि अब राज्य में मधुमक्खीपालन से जुड़े किसानों को इस व्यवसाय से संबंधित उपकरण सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगे. प्रदेश सरकार ने इन उपकरणों की दरें निश्चित कर दी हैं. आज “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों की दरें तय की गईं. यह किसानों की लंबे समय से मांग चली आ रही थी कि मधुमक्खीपालन में काम आने वाले उपकरणों की गुणवत्ता और दरें निर्धारित की जानी चाहिए.

“हाईपावर परचेज कमेटी” के चेयरमैन एवं कृषि मंत्री कंवर पाल ने बैठक के बाद जानकारी दी कि प्रदेश सरकार की किसान हितैषी नीतियों की बदौलत राज्य में पिछले 10 वर्षों में मधुमक्खीपालन का व्यवसाय तेजी से फलाफूला है. कई किसानों ने इस व्यवसाय को अपना कर कृषि विविधीकरण की तरफ कदम बढ़ाया है, जो कि कृषि जोत कम होने पर यह अच्छी पहल है.

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष राज्य में मधुमक्खीपालकों ने 5,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया था, जिस की बाजार में तकरीबन 55 करोड़ रुपए कीमत है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा मधुमक्खीपालकों को शहद एकत्रित करने और इस व्यवसाय से संबंधित अन्य उपकरणों को खरीदने पर लागत में 80 फीसदी की सब्सिडी दी जाती है. किसानों की डिमांड होती थी कि मधुमक्खीपालन के उपकरण बाजार में या तो मिलते नहीं. अगर वे मिलते भी हैं तो महंगी दरों पर निम्न क्वालिटी के मिलते हैं, जिस से उन की आमदनी पर खासा असर पड़ रहा है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि कुरुक्षेत्र जिला के रामनगर में इजराइल और भारत सरकार का “एकीकृत मधुमक्खी विकास केंद्र” स्थापित किया गया है, जिस में किसानों को मधुमक्खीपालन के लिए प्रशिक्षण और अन्य जानकारी दी जाती है.

उन्होंने बताया कि किसानों की समस्या को समझते हुए प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि इसी केंद्र में कुछ निर्धारित दरों की दुकानें शुरू की जाएं, जहां पर मधुमक्खीपालन के उपकरण आसानी से उपलब्ध हो सकें. यहां पर एक परिसर की छत के नीचे किसानों को अच्छी गुणवत्ता के “बी बौक्सेस”, “बी टूलकिट”, “बी ब्रश”, “बी ग्लव्स”, “बी फीडर”, रानी मक्खी का पिंजरा, शहद निकालने की मशीन समेत अन्य उपकरण उपलब्ध होंगे.

पिछले दिनों कृषि मंत्री कंवर पाल की अध्यक्षता में हुई “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों के टेंडर फाइनल किए गए.

बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजा शेखर वुंडरू, निदेशक राजनारायण कौशिक, वित्त विभाग के विशेष सचिव जयबीर सिंह आर्य, बागबानी निदेशालय के विशेष विभागाध्यक्ष अर्जुन सिंह सैनी समेत अन्य अधिकारी उपस्थित थे.

राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना द्वारा प्रायोजित स्कूल शिक्षकों के लिए 5 दिवसीय प्रशिक्षण

नई दिल्ली : 21 अगस्त, 2024. विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा “स्कूल शिक्षकों के लिए बैगलेस डेज के माध्यम से कृषि और संबद्ध विज्ञान का परिचय” नामक 5 दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है. इस में दिल्ली व एनसीआर के 29 स्कूलों के 58 स्कूल शिक्षक भाग ले रहे हैं. प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन पूसा संस्थान, नई दिल्ली में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. हिमांशु पाठक, सचिव डेयर एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद थे. कार्यक्रम में डा. आरसी अग्रवाल, राष्ट्रीय निदेशक, एनएएचईपी और डीडीजी (कृषि शिक्षा) भी उपस्थित थे. डा. टीआर शर्मा, डीडीजी (फसल विज्ञान) एवं निदेशक (प्रभारी), पूसा संस्थान, नई दिल्ली, बिमला कुमारी, उपनिदेशक (व्यावसायिक), शिक्षा विभाग, दिल्ली सरकार, डा. सी. विश्वनाथन, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) और डा. अनुपमा सिंह, अधिष्ठाता, ग्रेजुएट स्कूल और संयुक्त निदेशक (शिक्षा), पूसा संस्थान भी कार्यक्रम में शामिल हुए. कार्यक्रम के दौरान कक्षा 6वीं, 7वीं और 8वीं के लिए 3 महत्वपूर्ण प्रकाशनों का विमोचन किया गया.

डा. सी. विश्वनाथन ने कार्यक्रम के गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया और प्रशिक्षण के बारे में भी जानकारी दी. डा. हिमांशु पाठक ने अपने भाषण में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे आजीविका, रोजगार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और अभी भी तकरीबन 60 फीसदी ग्रामीण परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत है.

उन्होंने शिक्षकों के महत्व और स्कूली छात्रों को कृषि की मूल बातें समझने और इस में गहरी रुचि विकसित करने के लिए संवेदनशील बनाने में उन की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. साथ ही, उन्होंने कृषि और संबद्ध विषयों में सक्रिय रुचि रखने वाले युवाओं और स्कूली छात्रों के विकास के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. आरसी अग्रवाल ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने, किसानों को उत्पादक और उद्यमी दोनों बनाने में कृषि शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश में कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने की अत्यधिक जरूरत है, जिस के लिए भारत में कृषि शिक्षा प्रणाली को और अधिक विकसित करना होगा.

डा. अनुपमा सिंह ने स्कूलों के युवाओं के बीच कृषि को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों और वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया. उन्होंने कृषि शिक्षा में शामिल विविधता और विज्ञान पर भी प्रकाश डाला और कृषि में कैरियर के अवसरों को रेखांकित किया.

बिमला कुमारी ने प्रशिक्षण में भाग लेने जा रहे शिक्षकों को बधाई दी और हरित क्रांति के दौरान पूसा संस्थान द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला.

कार्यक्रम का समापन प्रशिक्षण समन्वयक डा. अलका सिंह, अध्यक्ष (कृषि अर्थशास्त्र) द्वारा दिए गए औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन और उस के बाद समूह फोटोग्राफ के साथ हुआ. इन 5 दिनों के व्यावहारिक प्रशिक्षण के तहत शिक्षकों को कई कृषि विषयों से अवगत कराया जाएगा.

 

पूसा संस्थान ने मनाया पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह (Parthenium Awareness Week)

नई दिल्ली : 16 अगस्त, 2024. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने अपने एग्रोनौमी फील्ड में एक समारोह के साथ पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह का उद्घाटन किया. यह सप्ताह, जिस का उद्देश्य पार्थेनियम के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसे खत्म करने के उपायों को बढ़ावा देना है. पूसा संस्थान ने इसे 16 से 22 अगस्त तक मनाया.

इस कार्यक्रम की शुरुआत सम्मानित अतिथियों की उपस्थिति के साथ हुई, जिन में डा. अनुपमा सिंह, डीन एवं संयुक्त निदेशक (शिक्षा), डा. आरएन पड़रिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार) और डा. पीएस ब्रह्मानंद, परियोजना निदेशक जल प्रोद्योगिकी केंद्र शामिल थे. इस कार्यक्रम में एनएसएस स्वयंसेवक, एग्रोनौमी के छात्र, संकाय सदस्य और आईएआरआई के अन्य कर्मचारी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में सस्य विज्ञान संभागाध्यक्ष डा. एसएस राठौर ने पार्थेनियम के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर नकारात्मक प्रभावों पर जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह आक्रामक खरपतवार जैव विविधता, कृषि और मानव स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है, जिस से इस के संपर्क में आने वाले लोगों में एलर्जी, त्वचा में जलन और सांस संबंधी समस्याएं होती हैं.

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खरपतवार वैज्ञानिक डा. टीके दास ने पार्थेनियम के प्रसार को रोकने के प्रभावी नियंत्रण और उपायों की जानकारी दी. उन्होंने इस खरपतवार को खत्म करने और इस के आगे के प्रसार को रोकने के लिए यांत्रिक व रासायनिक नियंत्रण और जैविक विधियों सहित एकीकृत खरपतवार प्रबंधन उपायों का सुझाव दिया.

पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह आईएआरआई के प्रयासों का हिस्सा है, जिस का उद्देश्य जनता और कृषि समुदाय को पार्थेनियम के खतरों के बारे में शिक्षित करना और इस के नियंत्रण के लिए समन्वित कार्यवाही के महत्व को बढ़ावा देना है. इस सप्ताह के दौरान जागरूकता अभियान, कार्यशालाएं और फील्ड प्रदर्शन सहित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया गया, ताकि इस महत्वपूर्ण कारण के लिए समुदाय को शामिल किया जा सके. उद्घाटन समारोह ने पार्थेनियम के प्रभाव को कम करने और एक स्वस्थ व सुरक्षित पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए आईएआरआई द्वारा शुरू की गई पहलों की एक सीरीज की शुरुआत की.

कृषि प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण, विक्रम लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग और 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर प्रज्ञान रोवर की तैनाती के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने हर साल 23 अगस्त को ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में घोषित किया है. इस उपलब्धि के साथ ही भारत अंतरिक्ष में जाने वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है और चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन गया है. भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश है.

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में इस विशेष दिन को चिह्नित करने के लिए, अंतरिक्ष विभाग अगस्त, 2024 के दौरान राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन कर रहा है, ताकि देश के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और इस के अनुप्रयोगों के बारे में प्रेरित किया जा सके, जिस का विषय है, “चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना : भारत की अंतरिक्ष गाथा”.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने भारत के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व वृद्धि एवं विकास की ओर अग्रसर करने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में एक सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी की उपस्थिति में डिजिटल भू स्थानिक मंच, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली का शुभारंभ किया, जो देश के कृषि नवाचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कृषि डीएसएस अपनी तरह का पहला भू स्थानिक प्लेटफार्म है, जिसे विशेष रूप से भारतीय कृषि के लिए डिजाइन किया गया है.

यह प्लेटफार्म उपग्रह चित्रों, मौसम की जानकारी, जलाशय भंडारण, भूजल स्तर और मृदा स्वास्थ्य जानकारी सहित व्यापक डाटा तक सहज पहुंच उपलब्‍ध कराता है, जिस पर किसी भी समय कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. कृषि डीएसएस में व्यापक कृषि प्रबंधन का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए कई उन्नत मौड्यूल शामिल हैं. खेतों के विशाल विस्तार से ले कर मिट्टी के सब से छोटे कण तक, कृषि डीएसएस ने सबकुछ कवर किया है.

फसल मानचित्रण और निगरानी के साथ हम विभिन्न वर्षों में पार्सल स्तरीय फसल मानचित्रों का विश्लेषण कर के फसल पैटर्न को समझने में सक्षम होंगे. यह जानकारी फसल रोटेशन प्रथाओं को समझने में मदद उपलब्‍ध कराती है और विविध फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर के टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है. सूखे की निगरानी, सूखे की स्थिति से आगे रहने में मदद करेगी, जो विभिन्न संकेतकों जैसे मिट्टी की नमी, जल भंडारण, फसल की स्थिति, सूखे की अवधि आदि पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी देती है.

फसल मौसम की निगरानी हमें इस बारे में सूचित करेगी कि मौसम फसलों को कैसे प्रभावित कर रहा है और फसल की कटाई की स्थिति, फसल अवशेष जलाने आदि के बारे में भी जानकारी देगी.
‘फील्ड पार्सल सेगमेंटेशन’ के साथ, हम फील्ड पार्सल इकाइयों को सटीक बनाने में सक्षम होंगे, जो लक्षित हस्तक्षेपों के लिए प्रत्येक पार्सल की विशिष्‍ट जरूरतों, फसल पैटर्न को समझने में मदद करेंगे.
एक राष्ट्र एक मृदा सूचना प्रणाली आप की उंगलियों पर एक व्यापक मृदा डाटा प्रदान करती है, जिस में मिट्टी की किस्‍म, मिट्टी का पीएच मान, मिट्टी का स्वास्थ्य आदि शामिल हैं. मृदा डाटा हमें मृदा जल संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए फसल की उपयुक्तता और भूमि क्षमता का आकलन करने में मदद करेगा.

कृषि डीएसएस की ‘ग्राउंड ट्रुथ डाटा लाइब्रेरी’ शोधकर्ताओं और उद्योग को विभिन्न फसलों के लिए ग्राउंड ट्रुथ डाटा और स्पेक्ट्रल लाइब्रेरी जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान कर के नवाचार को बढ़ावा देगी.
बाढ़ प्रभाव आकलन से ले कर फसल बीमा समाधान और कई अन्य तक, कृषि डीएसएस एक समग्र समाधान है. यह हमारे किसानों को सशक्त बनाने, हमारी नीतियों को सूचित करने और हमारे राष्ट्र को पोषित करने के बारे में जानकारी देगी.

कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (डीएसएस) पर उपलब्ध विभिन्न डाटा स्रोतों को एकीकृत कर के, किसानों के लिए सही व्यक्तिगत सलाह, कीट हमले, भारी बारिश, ओलावृष्टि आदि जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी देने जैसे विभिन्न किसान केंद्रित समाधान विकसित किए जा सकते हैं.

कृषि डीएसएस केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह कृषि में नवाचार और स्थिरता के लिए उत्प्रेरक है. साथ मिल कर हम भारत के लिए एक लचीला, टिकाऊ और समृद्ध कृषि का निर्माण करेंगे.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो केंद्र, विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों (आईएमडी, सीडब्‍ल्‍यूसी, एनडब्‍ल्‍यूआईसी, एनआईसी, आईसीएआर, एसएलयूएसआई, एनएनसीएफसी) राज्य रिमोट सेंसिंग केंद्र, राज्य कृषि विभाग, संस्थान/विश्वविद्यालय, कृषि-तकनीक उद्योग के अधिकारी/प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न तकनीकी सत्र और उपग्रह आधारित डाटा उत्पादों तक पहुंचने के लिए इसरो के विभिन्न पोर्टल का प्रदर्शन शामिल था. कृषि के क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोगों पर चर्चा करने के लिए पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं.

नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के नेताओं और शोधकर्ताओं की यह प्रतिष्ठित सभा भारतीय कृषि की चुनौतियों का समाधान करने और बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता पर जोर दे रही है.

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं :

कृषि की प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग : इस सम्मेलन में उपग्रह रिमोट सेंसिंग, भू स्थानिक प्रौद्योगिकी और सटीक कृषि, फसल निगरानी, आपदा प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में उन के अनुप्रयोगों में नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित किया गया.

कृषि डीएसएस का शुभारंभ : भू स्थानिक मंच, कृषि डीएसएस, मौसम के पैटर्न, मिट्टी की स्थिति, फसल स्वास्थ्य, फसल का रकबा और सलाह पर वास्तविक समय के डाटा संचालित अभिज्ञान के साथ हितधारकों को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में अनावरण किया गया.

सार्वजनिक व निजी भागीदारी : सम्मेलन ने कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी लाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच सहयोग के महत्व को रेखांकित किया.

किसान केंद्रित दृष्टिकोण : इस कार्यक्रम ने उपयोगकर्ता के अनुकूल समाधान और क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे फसल उत्पादन पूर्वानुमान, सूखे की निगरानी, फसल स्वास्थ्य आकलन और फसल बीमा समाधान के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने में सक्रिय रहा है. भविष्य में भी यह विभाग भारतीय कृषि की बेहतरी के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिल कर काम करने के लिए समर्पित है.

कृषि शिक्षा पर केंद्र सरकार का फोकस : शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री

 नई दिल्ली :  14 अगस्त, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि और संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप लांच की. आईसीएआर कन्वेंशन सैंटर, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी भी उपस्थित थे.

यहां केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आसियान देशों का जिक्र करते हुए कहा कि हम सब एक हैं और एकदूसरे के बिना हमारा काम नहीं चल सकता. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. आज भी हमारी एक बड़ी आबादी खेती से ही रोजगार प्राप्त करती है. आज कृषि के सामने जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियां हैं. भारत ने सदैव कृषि को प्रधानता दी है.

उन्होंने आगे कहा कि समस्याओं के समाधान में कृषि शिक्षा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. सरकार ने पिछले समय में कृषि शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है, फोकस किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस काम में गंभीरता से लगी हुई है. देश में 66 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 4 डीम्ड विश्वविद्यालय, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और कृषि संकाय वाले 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिन की देखरेख आईसीएआर द्वारा की जाती है.

उन्होंने कहा कि ये संस्थान स्नातक से ले कर डाक्टरेट तक कई तरह के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिन में कृषि, बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, पशु चिकित्सा, कृषि इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. वे कृषि विज्ञान में महत्वपूर्ण शोध भी करते हैं और किसानों व हितधारकों को सेवाएं प्रदान करते हैं. उच्च कृषि शिक्षा के लिए छात्रों को आकर्षित करने व कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों में शिक्षण और अनुसंधान में शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, आईसीएआर यूजी, पीजी और पीएचडी के छात्रों को परिषद द्वारा विकसित निर्धारित मानदंडों के आधार पर विभिन्न छात्रवृत्ति प्रदान कर के सहायता करता है.

ये छात्रवृत्ति आईसीएआर कोटा सीटों, आईसीएआर प्रवेश परीक्षा द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को प्रदान की जाती हैं. आईसीएआर एयू प्रणाली की क्षमता और योग्यता को अब दुनियाभर में मान्यता मिल चुकी है. कई विकासशील देशों के छात्र भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में विकसित अनुसंधान और शिक्षण सुविधाओं से आकर्षित हो कर लाभान्वित हो रहे हैं.

उन्होंने बताया कि भारत सहित विकासशील देशों में निजी क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा हो रही हैं, इसलिए विकासशील देशों के छात्रों में भारतीय कृषि को समझने के लिए भारत आ कर अध्ययन करने की रुचि बढ़ रही है. भारत में उन के उच्च अध्ययन का समर्थन करने के लिए, आईसीएआर द्वारा नेताजी सुभाष फैलोशिप, भारतअफ्रीका फैलोशिप, भारतअफगानिस्तान फैलोशिप, बिम्सटेक फैलोशिप जैसे कई कार्यक्रम/फैलोशिप शुरू किए गए हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आसियानभारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और उस के बाद इस पर निर्मित ‘इंडोपैसिफिक विजन’ की आधारशिला है. भारत आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडोपैसिफिक पर आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करता है. हमारे लिए आसियान के साथ राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा सहयोग सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत आसियान और पूर्वी एशिया शिखर मंचों को जो प्राथमिकता देता है, वह पिछले साल हमारे जी-20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी की जकार्ता यात्रा से साफ है. उन्होंने 12 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी, जिस पर काफी हद तक अमल किया गया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच कृषि सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि आसियान व भारत कृषि जलवायु क्षेत्रों के मामले में बहुत समानताएं साझा करते हैं. अब कृषि और वानिकी में आसियानभारत सहयोग के लिए कृषि व संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप आरंभ की जा रही है. फैलोशिप विशेष रूप से कृषि और संबद्ध विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शक्तियों की पूर्ति और क्षमता का दोहन करने के लिए साझा हितों के नए और उभरते क्षेत्रों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम के लिए है. इस से आसियान सदस्य देशों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शोध आधारित शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिस से भारत और आसियान समुदाय एकदूसरे के करीब आएंगे व आसियान देशों से आने वाले छात्रों के बीच जानकारी के अंतर-सांस्कृतिक और अंतर्राष्ट्रीय आदानप्रदान के लिए मंच प्रदान होगा.

फैलोशिप से आसियान राष्ट्रीयता के छात्रों को आईसीएआर व कृषि विश्वविद्यालय प्रणालियों के तहत सर्वश्रेष्ठ भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में, जरूरत अनुसार, पहचाने गए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कृषि व संबद्ध विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.

इस के अलावा भाग लेने वाले संस्थानों के भारतीय संकाय सदस्यों की आसियान सदस्य देशों में परिचयात्मक यात्राओं के माध्यम से आसियान क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान की जाएगी. इस से कृषि और संबद्ध विज्ञान क्षेत्र के विकास के लिए आसियान में विशेषज्ञ मानव संसाधन के एक पूल के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा पेश किए जाने वाले मास्टर्स प्रोग्राम छात्रों को अत्याधुनिक शोध से परिचित कराएंगे, उन्हें भविष्य के नवाचारों के लिए तैयार करेंगे. साथ ही, देश में दीर्घकालिक डिगरी कोर्स शोधकर्ताओं को लंबे समय तक जुड़े रहने में मदद कर सकता है और आसियान व भारत को कृषि से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकता है. शैक्षणिक वर्ष 2024-25 से कृषि और संबद्ध विज्ञान में मास्टर डिगरी के लिए आसियान सदस्य देशों के छात्रों को 50 फैलोशिप (प्रति वर्ष 10) प्रदान की जाएंगी. परियोजना 5 साल के लिए आसियानभारत कोष के तहत वित्त पोषण के लिए मंजूर की गई है, जिस में फैलोशिप, प्रवेश शुल्क, रहने का खर्च व आकस्मिकता शामिल है.

विज्ञान का फायदा तुरंत किसानों को मिले

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में निमंत्रित किसानों से संवाद और राष्ट्रीय नाशीजीव (कीट) निगरानी प्रणाली के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी जानते हैं कि आजादी हमें चांदी की तस्तरी पर भेंट नहीं की गई है. हजारों लोग फांसी के फंदे पर हंसतेहंसते झूल गए थे. हमारे अमर क्रांतिकारी आजादी के तराने गाया करते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज देश के लिए मरने की नहीं, जीने की आवश्यकता है. आजादी के महोत्सव में देश के गांवगांव से किसान पधारे हैं. किसान देश की धड़कन हैं और जनता के दिल की धड़कन हैं. किसान जो पैदा करते हैं, उस से सभी के दिल धड़क रहे हैं. किसान हमारे लिए बहुमूल्य हैं. हमें अन्नदाता को सुखी और समृद्ध बनाना है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 6 तरह के काम करेंगे – उत्पादन बढ़ाना. हमें उत्पादन बढ़ाना है, उस के लिए बीज, अभी प्रधानमंत्री मोदी ने 109 प्रकार के ज्यादा उपज देने वाले बीज किसानों को समर्पित किए. वैज्ञानिकों के अनुसंधान की जानकारी किसानों को होनी चाहिए. हमारा काम किसानों और वैज्ञानिकों को जोड़ना है. कई बार किसानों को जानकारी नहीं होती, तो वे गलत कीटनाशक का प्रयोग करते हैं, इस की जानकारी होना जरूरी है. विज्ञान का फायदा तुरंत किसानों को मिले, इस के लिए हम महीने में एक दिन किसानों की बात कार्यक्रम शुरू करेंगे. रेडियो पर ये कार्यक्रम होगा, इस में वैज्ञानिक बैठेंगे, कृषि विभाग के अधिकारी बैठेंगे, मैं भी बैठूंगा और किसानों को जोजो जरूरी है, उस के बारे में जानकारी दी जाएगी. कृषि विज्ञान केंद्र को पूरी तरह से किसानों से जोड़ने की जरूरत है. वैज्ञानिक लाभ को तुरंत किसानों तक पहुंचाने का काम होगा. अब जल्दी ही किसानों के बीच चर्चा होगी, विचारविमर्श होगा, जिस से खेती से हम फूड बास्केट बनने का चमत्कार कर सकें.

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कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए कहा कि किसानों का बजट एक समय 27 हजार करोड़ रुपए था, प्रधानमंत्री मोदी ने इस बजट को बढ़ा कर 1.52 लाख करोड़ रुपए कर दिया. किसानों को सब्सिडी पर खाद मिलती है. आजकल वे लोग किसानों की बात करते हैं, जिन का खेती से कोई लेनादेना ही नहीं है. उन्होंने खेत नहीं देखे, खेत की फसल नहीं देखी, उन को पता ही नहीं है कि गेहूं की बाली कैसी होती है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान जितना भी तुअर, मसूर, उड़द उगाएंगे, वो सब सरकार खरीदेगी. पहले के जमाने में तो खरीद ही नहीं होती थी. पुरानी सरकार में दाल की खरीदी केवल 6 लाख मीट्रिक टन की गई थी. मोदी सरकार ने 1.70 करोड़ मीट्रिक टन दाल खरीदी. उत्पादन की लागत घटाने के प्रयास भी जारी हैं. पीएम किसान सम्मान निधि के तहत अब तक 3.24 लाख करोड़ रुपए डाल दिए गए हैं किसानों के खातों में.

उन्होंने कहा कि पीएम फसल बीमा योजना आज दुनिया की सब से बड़ी फसल बीमा योजना है. हम निरंतर प्रयत्न करेंगे कि उस में सुधार करते रहें. कृषि का विविधीकरण हमें करना है. इस से किसान को ज्यादा फायदा होगा.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से आग्रह किया कि वे मृदा का स्वास्थ्य ठीक करने के लिए अपने खेत के कुछ हिस्से में प्राकृतिक खेती करें. इस के लिए मिशन बहुत जल्दी आने वाला है. इस की रूपरेखा बन गई है. एफपीओ और बनने चाहिए. इस से हम कई तरह के काम कर के अपनी आय बढ़ा सकते हैं.

गत वर्ष के मुकाबले गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का प्रकोप कम

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा कपास की फसल का फील्ड में लगातार सर्वे किया जा रहा है. सर्वे के दौरान गुलाबी सुंडी के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए किसानों को प्रशिक्षण के द्वारा जागरूक भी किया जा रहा है.

यह जानकारी देते हुए कपास विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक डा. करमल सिंह ने बताया कि हिसार व फतेहाबाद जिलों के विभिन्न गांवों में सर्वे कर के उस पर आधारित कपास में गुलाबी सुंडी व अन्य बीमारियों से बचाने के लिए एडवाइजरी भी जारी की गई है. अब तक किए गए सर्वे में यह पाया गया है कि राजस्थान से सटे हुए गांवों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप 10 से 35 फीसदी तक का असर देखा गया है, वहीं भिवानी व हिसार जिलों में गुलाबी सुंडी का असर 10 फीसदी तक है.

कपास अनुभाग व कृषि विभाग द्वारा किसानों को जागरूक करने के लिए विभिन्न गांवों में कृषि मेले भी आयोजित किए गए हैं. गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष कपास की फसल अच्छी है और इस बार पहले के मुकाबले कपास की अधिक पैदावार और मुनाफे की संभावना है.

डा. करमल सिंह ने बताया कि गत एक माह से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के एडीओ, बीएओ, एसडीएओ, एटीएम, बीटीएम और सुपरवाइजर को हरियाणा एग्रीकल्चरल मैनेजमेंट एंड एक्सटेंशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, जींद में प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

उन्होंने आगे बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों को विश्वविद्यालय में कपास अनुभाग में कपास के खेतों का भ्रमण भी करवाया जा रहा है. कपास अनुभाग द्वारा महीने में 2 बार कपास की उन्नत खेती करने के लिए एडवाइजरी भी जारी की जाती है.

आने वाले एक महीने में गुलाबी सुंडी से बचाव के लिए करें ये उपाय

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सभी किसानों को कपास की अधिक पैदावार लेने के लिए आगामी एक महीने तक सजग रहते हुए विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग द्वारा बनाई गई सिफारिश के अनुसार काम करने की सलाह दे रहा है. पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष गुलाबी सुंडी का प्रकोप कम है. अगले एक महीने तक किस गुलाबी सुंडी से बचाव के लिए 10 दिन के अंतराल पर इस प्रकार बताए गए कीटनाशकों का स्प्रे करें :

प्रोपेनोफोस 50 ईसी 3 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी, क्विनालफास 20 एएफ 4 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी, थायोडीकार्ब 75 डब्ल्यूपी 1.5 ग्राम प्रति लिटर पानी के साथ. जड़ गलन रोग के लिए प्रभावित पौधों के आसपास स्वस्थ पौधों में एक मीटर तक कार्बन्डजिम 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 100-200 मिलीलिटर प्रति पौध जड़ों में डालें. वहीं पैराविल्ट रोग के लिए किसान लक्षण दिखाई देते ही 24-48 घंटों के अंदर 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड 200 लिटर पानी में घोल बना कर छिडक़ाव करें.

किसान नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी का करें ज्यादा उपयोग

जयपुर : प्रमुख शासन सचिव कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया की अध्यक्षता में पिछले  दिनों पंत कृषि भवन के समिति कक्ष में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति एवं उपलब्धता की समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया, जिस में उर्वरकों व संभावित आपूर्ति के संबंध में कंपनीवार समीक्षा की गई. बैठक में उर्वरक निर्माता एवं आपूर्तिकर्ता फर्मों के प्रतिनिधियों द्वारा भाग लिया गया.

बैठक में वैभव गालरिया ने बताया कि डीएपी, यूरिया, एमपीके, एसएसपी उर्वरकों का मासिक आवंटन, जो कि केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, उस की शतप्रतिशत आपूर्ति होना सुनिश्चित किया जाए.

प्रमुख शासन सचिव ने नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को किसानों द्वारा ज्यादा प्रयोग में लेने के लिए विभाग द्वारा इन का प्रचारप्रसार करने के लिए भी कहा. साथ ही, उर्वरकों की हो रही कालाबाजारी की रोकथाम और कालाबाजारी करने वाले आदान विक्रेताओं पर कार्यवाही की जाए.

बैठक में कृषि आयुक्त कन्हैयालाल स्वामी ने सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) के विनिर्माता एवं आपूर्तिकर्ताओं को निर्देशित किया कि उर्वरकों की गुणवत्तापूर्वक एवं मांग के अनुरूप आपूर्ति प्राथमिकता से करें.

उन्होंने संयुक्त निदेशक (गुण नियंत्रण) को निर्देशित किया कि विशेष गुण नियंत्रण अभियान चला कर आदान विक्रेताओं के पोस मशीन एवं वास्तविक भौतिक स्टाक का निरीक्षण करें. कृषि आयुक्त कन्हैयालाल स्वामी ने एसएसपी व यूरिया को मिला कर डीएपी की जगह विकल्प के रूप में उपयोग करने का भी सुझाव दिया.

बैठक में अतिरिक्त निदेशक (आदान) डा. सुवालाल, संयुक्त निदेशक (आदान) लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक (गुण नियंत्रण) गजानंद सहित विभागीय अधिकारी और उर्वरक विनिर्माता एवं आपूर्तिकर्ता कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे.

‘गायपालन’ (Cow husbandry) विषय पर पांचदिवसीय प्रशिक्षण

भागलपुर : कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर के प्रशिक्षण कक्ष में ‘गायपालन’ विषय पर पांचदिवसीय प्रशिक्षण का उद्घाटन केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, डा. राजेश कुमार द्वारा किया गया. प्रशिक्षण के उद्घाटन के अवसर उन्होंने कहा कि पशुपालन का काम छोटे किसान से ले कर बड़े किसान तक करते हैं. इस प्रशिक्षण के माध्यम से गायपालन की विभिन्न तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी, जिस का उपयोग कर के आप एक सफल पशुपालक बन  सकते हैं और इसे स्वरोजगार के रूप में अपना कर आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं.

प्रशिक्षण के तकनीकी सत्र में बिहार कृषि महाविद्यालय के सस्य वैज्ञानिक डा. संजीव गुप्ता ने हाइड्रोपोनिक्स के माध्यम से सालभर पौष्टिक चारा उत्पादन संबंधी जानकारी दी

केंद्र के पशु वैज्ञानिक डा. मो. ज्याउल होदा द्वारा गायपालन से संबंधित विभिन्न आयामों की तकनीकी जानकारी जैसे गाय के रहने के लिए जगह का चयन एवं बनावट, उस के खाने के लिए उचित सामग्री एवं मात्रा संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई गई. साथ ही, समेकित कृषि प्रणाली, कृषि विज्ञान केंद्र एवं प्रक्षेत्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर का दुग्ध उत्पादन इकाई/बकरीपालन इकाई एवं अन्य इकाई का परिभ्रमण कराया गया.

इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिक ई. पंकज कुमार, डा. पवन कुमार, डा. मनीष राज, रूबी कुमारी, ईश्वर चंद्र सहित जिले के 25 गायपालक और किसानों ने भाग लिया.