उद्यमिता (Entrepreneurship) के माध्यम से देश बनेगा सशक्त

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित कृषि महाविद्यालय के सभागार में विश्व उद्यमी दिवस के अवसर पर छात्र कल्याण निदेशालय द्वारा एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. ‘भारत @-2047 समृद्ध एवं महान भारत’ विषय पर आयोजित इस गोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की, जबकि मुख्य वक्ता के तौर पर प्रसिद्ध आर्थिक विशेषज्ञ सतीश कुमार उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि उद्यमिता के माध्यम से हम देश को सशक्त व महान बना सकते हैं. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम करें, ताकि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सके. समृद्ध एवं महान भारत बनाने के लिए युवाओं को दृढ़ संकल्प के साथ दिनरात मेहनत करनी होगी.

उन्होंने युवाओं को मार्गदर्शक की भूमिका निभाने के लिए आगे आने का भी आह्वान किया. विद्यार्थियों को उच्च आदर्शों एवं संस्कारों से परिपूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए देश में विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों की कोई कमीं नहीं है. सभी व्यक्तियों को सरकारी सेवाएं उपलब्ध नहीं हो सकती हैं, इसलिए स्वावलंबी भारत अभियान के तहत युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और समृद्ध एवं खुशहाल भारत के निमार्ण के लिए ग्रामीण स्तर पर लघु औद्योगिक इकाइयां स्थापित करनी होंगी. किसानों की माली स्थिति को मजबूत करने के लिए गेहूं को गेहूं के तौर पर नहीं, बल्कि इस के उत्पाद बना कर बेचने होंगे. विकसित भारत के लिए आर्थिक समृद्धि भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देना भी विकसित भारत की महत्वपूर्ण चुनौती है. उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है. इस के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई है. कार्यक्रम में कुलपति व मुख्य वक्ता ने एक पुस्तक का विमोचन किया और कृषि महाविद्यालय के परिसर में पौधारोपण भी किया.

भारत को महान बनाने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका

मुख्य वक्ता सतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि समृद्ध एवं महान भारत बनाने के लिए स्वावलंबी भारत अभियान योजनबद्ध ढंग से समूचे देश में चलाया जा रहा है. युवा पीढ़ी को विकसित भारत बनाने के लिए काम करना होगा. इस के लिए उन्होंने 8 स्तंभ का भी उल्लेख किया, जिन में वाइब्रेंट डेमोक्रेसी, पूर्ण रोजगारयुक्त भारत, वैश्विक सर्वोच्च अर्थव्यवस्था, अभेद सुरक्षा तंत्र वाला भारत, विज्ञान एवं तकनीकी में अग्रणी भारत, पर्यावरण हितैषी भारत, विश्व बंधुत्व वाला भारत व उच्च जीवन मूल्यों से युक्त भारत शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि कौशल विकास के माध्यम से युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाने के लिए पहली बार कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय का भी गठन किया गया है. उद्यमिता की ओर राष्ट्र तीव्र गति के साथ आगे बढ़ रहा है. उद्यमिता के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत सफलता की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है, बल्कि इस से समाज में नए रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं.

एचएयू की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं को उद्यमी बनाने में लगातार प्रशिक्षण प्रदान करने का अग्रणी काम कर रहा है.

हकृवि के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. वीपी लोहाच ने बताया कि स्वावलंबी भारत अभियान के 4 पिलर बताए, जिन में स्वदेशी, विकेंद्रीकरण, उद्यमिता और सहकारिता शामिल है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप पूनियां ने अपने संबोधन में कहा कि वे संकल्प ले कर जाएं कि नौकरी लेने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बनूंगा.

छात्र कल्याण निदेशक डा. मदन खीचड़ ने गोष्ठी में आए हुए सभी लोगों का स्वागत किया और कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने धन्यवाद किया. मंच का संचालन छात्रा अन्नु ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक, गैरशिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे.

केवीके में गाजरघास (Carrot Grass) उन्मूलन सप्ताह का आयोजन

भागलपुर : स्थानीय केवीके में गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया गया. यह 16 अगस्त से ले कर 22 अगस्त तक मनाया गया. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रधान डा. राजेश कुमार ने बताया कि गाजरघास (पार्थेनियम) देश के विभिन्न भागों में कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बुटी आदि के नाम से जाना जाता है. यह देश के 35 मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ है. वर्षा ऋतु में इस का अंकुरण होने पर भीषण खरपतरवार का रूप ले लेती है. यह घास 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है.

अभियंत्रण वैज्ञानिक इं. पंकज कुमार ने बताया कि गाजरघास जो कृषि भूमि और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव डालता है. इस की प्रभावशाली वृद्धि और बीज उत्पादन के कारण यह फसलों, भूमि की उर्वरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कृषि तकनीकों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है.

उद्यान वैज्ञानिक डा. ममता कुमारी ने बताया कि गेंदे के पौधे लगा कर गाजरघास के फैलाव को रोका जा सकता है. पशु विज्ञान वैज्ञानिक डा. मो. ज्याउल होदा ने बताया कि इस घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी एलर्जी, दमा, बुखार आदि पैदा होता है और पशुओं के लिए यह खरपतवार हानिकारक है. उन्होंने इस के उन्मूलन को ले कर विविध जानकारी दी.

इस अवसर पर कीट विज्ञान के वैज्ञानिक डा. पवन कुमार ने कहा कि इस की रोकथाम के लिए गाजरघास में फूल आने से पहले जड़ को उखाड़ देना चाहिए. साथ ही, जैविक नियंत्रण के बारे में छात्रछात्राओं को विस्तार से जानकारी दी, जबकि शस्य वैज्ञानिक डा. मनीष राज ने बताया कि पार्थेनियम की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए फसल चक्र अपनाएं. अलगअलग प्रकार की फसलें उगाने से खरपतवारों के विकास पर अंकुश लगाया जा सकता है.

फसल कटाई के बाद के अवशेषों को खेत में समान रूप से बिखेरें और कुचलें. इस से पार्थेनियम के बीजों को प्रकाश और हवा से बचाया जा सकेगा, जिस से उन के अंकुरण की संभावना कम होगी. जब आवश्यक हो, तो उचित और अनुमोदित खरपतवारनाशक का उपयोग करें. हालांकि, रासायनिक नियंत्रण का उपयोग सतर्कता से करें, ताकि यह फसलों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए. इस मौके पर रावे छात्रछात्राएं मौजूद रहे.

सुनीता देवी : सिलाई से शुरू किया सफर, अब ड्रोन तक की उड़ान

मुरैना : परिवार में घर चलाने में परेशानी और माली तंगी के चलते एक महिला ने इतनी मेहनत की कि उस की अलग पहचान बन गई. पूरे इलाके में अब इस महिला को ड्रोन दीदी के रूप में जाना जाता है. मुरैना जिले के जौरा तहसील के अंतर्गत पचोखरा में ’’सेल्फ हेल्प ग्रुप’’ की महिला ने मिशन ज्वाइन कर के अपना जीवन बदल लिया है.

कैलादेवी एसएचजी की सुनीता शर्मा ने अपने घर से रोजगार बढ़ाने के लिए सिलाई से सफर शुरू किया और धीरेधीरे से उन्हें ड्रोन चलाने तक की ट्रेनिंग मिली. सुनीता शर्मा की अब उस क्षेत्र में ड्रोन दीदी के रूप में पहचान बन गई है.

सुनीता शर्मा बताती हैं कि वे पहले घर पर रहती थीं. उन की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी. समूह से जुड़ने के बाद उन्हें 25,000 रुपए का लोन मिला. उन्होंने सब से पहले सिलाई मशीन खरीदी और सिलाई का काम शुरू किया. धीरेधीरे उन की 8,000 रुपए की कमाई हर महीने होने लगी. इस के बाद उन्होंने ’नमो ड्रोन योजना’ की ट्रेनिंग ली. अब तक 60 एकड़ से ज्यादा खेत में ड्रोन से मेडिसिन छिड़काव कर चुकी हैं. आजीविका मिशन से जुड़ कर ही ये सब संभव हो सका है.

उन्होंने यह भी बताया कि वे अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही हैं. उन  का परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है. सुनीता शर्मा ने कहा कि आजीविका मिशन एवं इफको की समस्त टीम को दिल से शुक्रिया जिन्होंने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया.

सुनीता शर्मा ने ’’नमो ड्रोन योजना’’ से दिनोंदिन तरक्की की है. उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि 15 अगस्त, 2024 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के लाल किले पर होने वाले मुख्य आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्पेशल गेस्ट की लिस्ट में उन को शामिल किया गया है.

किसान साथी मोबाइल एप (Kisan Sathi Mobile App) से 132 गांव के 72,000 किसान होंगे लाभान्वित

जयपुर : जयपुर स्थित राजस्थान इंटरनैशनल सैंटर में जल संसाधन विभाग, राजस्थान और जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘टचिंग लाइव्ज व्हाइल टचिंग द मून- इंडियाज स्पेस सागा’ थीम पर एकदिवसीय रन अप सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन के मुख्य अतिथि जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत एवं विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने इस अवसर पर पार्वती बांध, धौलपुर के कमांड क्षेत्र के काश्तकारों के लिए तैयार किए गए किसान साथी एप का लोकार्पण किया.
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि किसान साथी एप पार्वती बांध के कैचमेंट एरिया के किसानों को पानी की उपलब्धता और आपूर्ति के बारे में विश्वसनीय जानकारी प्रदान करेगा. इस से पार्वती सिंचाई परियोजना के 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के 132 गांव के लगभग 72,000 किसान लाभान्वित होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से इस एप द्वारा किसानों को घर बैठे ही जल की उपलब्धता की जानकारी मिल सकेगी और इस से सिंचाई जल के समुचित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा. प्रदेश के सभी बांधों को किसान साथी एप के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिस से प्रदेश के सभी किसान लाभान्वित हो सकेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि विभाग द्वारा नवाचार करते हुए मार्च माह में बड़े बांधों और नहरों के डिजिटलीकरण के लिए डैशबोर्ड का लोकार्पण भी किया गया था.

मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाए जाने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले से भावी पीढ़ी इस दिन को सदैव याद रखेगी.

उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और प्रयासों से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान पहुंचाने वाला विश्व का पहला देश भारत है और यह हमारे लिए गौरव की बात है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने कहा कि स्पेस टैक्नोलौजी के उपयोग से भूजल एवं सतही जल के अधिकतम उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसान साथी एप के जरीए किसानों और जल संसाधन विभाग के बीच एक प्रभावी संचार लिंक स्थापित किया गया है. इस एप के जरीए किसानों से ली गई फसल क्षेत्र की जानकारी के माध्यम से पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जा सकेगा. साथ ही, किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण करने की सुविधा भी मिलेगी.

सम्मेलन में जल संसाधन विभाग द्वारा जयपुर शहर के विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आयोजित की गई क्विज एवं पेंटिंग प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया. इस दौरान जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने स्पेस टैक्नोलौजी एवं जल संसाधन के क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया.

प्रदर्शनी में लगाई गई पुरस्कृत विजेताओं की पेंटिंग्स को उन्होंने सराहा. उद्घाटन सत्र को इसरो वैज्ञानिक सागर सांलुखे और जल शक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ संयुक्त आयुक्त कुशाग्र शर्मा ने भी संबोधित किया. मुख्य अभियंता जल संसाधन डीआर मीणा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया.

एकदिवसीय सम्मेलन में विभिन्न तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया, जिस में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का महत्व, जल क्षेत्र में सेटेलाइट की उपयोगिता, जल संसाधन के क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस का उपयोग, जल संसाधन प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उपयोगिता जैसे विषयों पर व्याख्यान हुए एवं चर्चा की गई.

किसान साथी एप की विशेषताएं
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के सहयोग से विकसित किया गया किसान साथी मोबाइल एप धौलपुर के पार्वती सिंचाई परियोजना के लगभग 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के किसानों को लाभान्वित करेगा. इस से धौलपुर, बाड़ी एवं बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के 132 गांव के 72,000 किसान लाभान्वित होंगे. पायलट प्रोजैक्ट के रूप में चयनित किए गए पार्वती बांध कमांड क्षेत्र के किसानों को इस एप के जरीए स्वामित्व विवरण के साथ फसल की जानकारी प्राप्त होगी.

किसान जियो टैग किए गए साक्ष्य के साथ पानी की चोरी, नहर संबंधी मुद्दों की जानकारी जल संसाधन विभाग को रिपोर्ट कर सकेंगे, वहीं मंडी भाव की जानकारी और मौसम की जानकारी भी इस एप के जरीए लाइव प्राप्त की जा सकेगी. बांध और नहर में जल की स्थिति भी एप पर उपलब्ध होगी.

इस एप के माध्यम से संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए जल उपयोगकर्ता संघ को पार्वती बांध से पानी की उपलब्धता और आपूर्ति की सही और सटीक जानकारी मिलेगी. किसानों से फसल क्षेत्र की जानकारी ले कर पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जाएगा. साथ ही, कमांड क्षेत्र के किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण की सुविधा भी मिलेगी.

कृषि संकाय चुनने पर बेटियों को मिल रही प्रोत्साहन राशि

जयपुर : कृषि क्षेत्र में बोआई से ले कर रोपण, सिंचाई और कटाई जैसे कामों में महिलाएं अग्रणी भूमिका निभाती हैं. इस क्षेत्र में उन के सशक्तीकरण के लिए राज्य सरकार द्वारा अभूतपूर्व फैसले किए गए हैं. ’कृषि विषय में अध्ययनरत छात्राओं को देय प्रोत्साहन राशि योजना’ भी बालिकाओं की कृषि क्षेत्र में प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने की ऐसी ही एक योजना है.

राज्य सरकार का उद्देश्य है कि बालिकाएं कृषि के क्षेत्र की नवीनतम विधाओं का अध्ययन करें और औपचारिक शिक्षणप्रशिक्षण प्राप्त करें, जिस से न केवल उन के परिवार की आय बढ़ेगी, बल्कि वे राज्य और देश की समृद्धि में भी योगदान देंगी.

योजना के तहत, कृषि संकाय से अध्ययन के लिए 11वीं कक्षा से ले कर पीएचडी कर रही छात्राओं को 15,000 से 40,000 की राशि प्रतिवर्ष दी जा रही है.

कृषि संकाय चुनने पर प्रोत्साहन

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के तहत राज्य में कृषि विषय ले कर अध्ययन करने वाली 11वीं एवं 12वीं कक्षा की छात्राओं को प्रतिवर्ष 15,000 की राशि प्रदान की जाती है.

उन्होंने आगे बताया कि कृषि विज्ञान से स्नातक के विषयों जैसे कि उद्यानिकी, डेयरी, कृषि अभियांत्रिकी, खाद्य प्रसंस्करण के साथ ही स्नातकोत्तर (एमएससी कृषि) में अध्ययन करने वाली छात्राओं को 25,000 रुपए हर साल दिए जाते हैं. इसी प्रकार कृषि विषय में पीएचडी करने वाली छात्राओं को 40,000 रुपए प्रतिवर्ष (अधिकतम 3 वर्ष) प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान किया गया है.

19,662 छात्राओं को मिला 35 करोड़ की राशि का प्रोत्साहन

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के तहत 21 दिसंबर, 2023 से जुलाई, 2024 तक अध्ययनरत 19,662 छात्राओं को 35 करोड़, 62 लाख रुपए का आर्थिक संबल दे कर कृषि संकाय लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

कृषि संकाय में अनामिका और विभा को मिला संबल

कृषि संकाय में स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर रही अनामिका शर्मा, उदयपुर के जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं. वे बताती हैं कि योजना के तहत बीएससी के प्रथम वर्ष में राज्य सरकार द्वारा 25,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी गई थी. वे बताती हैं कि उन्हें शुरू से ही कृषि के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने की इच्छा थी. वे चाहती थीं कि वे कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीकों के बारे में जानें और अपने परिवार की आय बढ़ाने में सहयोग करें.

अनामिका शर्मा कहती हैं कि वे स्वयं तो सक्षम हुई हीं हैं और अब वे पढ़ाई के साथसाथ किसानों को खेती करने की उन्नत तकनीकों, बीज, उर्वरक जैसी सहायक सामग्रियों के बारे में उचित जानकारी भी देती हैं.
इसी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा विभा प्रजापत भी इस योजना के लिए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का आभार जताते हुए नहीं थकतीं. वे कहती हैं कि इस योजना के कारण उन्हें कृषि विषय पढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिला है. वे चाहती हैं कि वे कृषि की नवीनतम तकनीकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा सीखें और इस क्षेत्र में कोई नवाचार करें, जिस से किसानों का कृषि कार्य में परिश्रम कम हो और उन की आय में इजाफा हो सके.

सस्ती दरों पर मिलेंगे मधुमक्खीपालन उपकरण (Bee equipment)

चंडीगढ़ : हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कंवर पाल ने बताया कि अब राज्य में मधुमक्खीपालन से जुड़े किसानों को इस व्यवसाय से संबंधित उपकरण सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगे. प्रदेश सरकार ने इन उपकरणों की दरें निश्चित कर दी हैं. आज “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों की दरें तय की गईं. यह किसानों की लंबे समय से मांग चली आ रही थी कि मधुमक्खीपालन में काम आने वाले उपकरणों की गुणवत्ता और दरें निर्धारित की जानी चाहिए.

“हाईपावर परचेज कमेटी” के चेयरमैन एवं कृषि मंत्री कंवर पाल ने बैठक के बाद जानकारी दी कि प्रदेश सरकार की किसान हितैषी नीतियों की बदौलत राज्य में पिछले 10 वर्षों में मधुमक्खीपालन का व्यवसाय तेजी से फलाफूला है. कई किसानों ने इस व्यवसाय को अपना कर कृषि विविधीकरण की तरफ कदम बढ़ाया है, जो कि कृषि जोत कम होने पर यह अच्छी पहल है.

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष राज्य में मधुमक्खीपालकों ने 5,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया था, जिस की बाजार में तकरीबन 55 करोड़ रुपए कीमत है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा मधुमक्खीपालकों को शहद एकत्रित करने और इस व्यवसाय से संबंधित अन्य उपकरणों को खरीदने पर लागत में 80 फीसदी की सब्सिडी दी जाती है. किसानों की डिमांड होती थी कि मधुमक्खीपालन के उपकरण बाजार में या तो मिलते नहीं. अगर वे मिलते भी हैं तो महंगी दरों पर निम्न क्वालिटी के मिलते हैं, जिस से उन की आमदनी पर खासा असर पड़ रहा है.

मंत्री कंवर पाल ने बताया कि कुरुक्षेत्र जिला के रामनगर में इजराइल और भारत सरकार का “एकीकृत मधुमक्खी विकास केंद्र” स्थापित किया गया है, जिस में किसानों को मधुमक्खीपालन के लिए प्रशिक्षण और अन्य जानकारी दी जाती है.

उन्होंने बताया कि किसानों की समस्या को समझते हुए प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि इसी केंद्र में कुछ निर्धारित दरों की दुकानें शुरू की जाएं, जहां पर मधुमक्खीपालन के उपकरण आसानी से उपलब्ध हो सकें. यहां पर एक परिसर की छत के नीचे किसानों को अच्छी गुणवत्ता के “बी बौक्सेस”, “बी टूलकिट”, “बी ब्रश”, “बी ग्लव्स”, “बी फीडर”, रानी मक्खी का पिंजरा, शहद निकालने की मशीन समेत अन्य उपकरण उपलब्ध होंगे.

पिछले दिनों कृषि मंत्री कंवर पाल की अध्यक्षता में हुई “हाईपावर परचेज कमेटी” की बैठक में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत के उपकरणों के टेंडर फाइनल किए गए.

बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजा शेखर वुंडरू, निदेशक राजनारायण कौशिक, वित्त विभाग के विशेष सचिव जयबीर सिंह आर्य, बागबानी निदेशालय के विशेष विभागाध्यक्ष अर्जुन सिंह सैनी समेत अन्य अधिकारी उपस्थित थे.

राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना द्वारा प्रायोजित स्कूल शिक्षकों के लिए 5 दिवसीय प्रशिक्षण

नई दिल्ली : 21 अगस्त, 2024. विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा “स्कूल शिक्षकों के लिए बैगलेस डेज के माध्यम से कृषि और संबद्ध विज्ञान का परिचय” नामक 5 दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है. इस में दिल्ली व एनसीआर के 29 स्कूलों के 58 स्कूल शिक्षक भाग ले रहे हैं. प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन पूसा संस्थान, नई दिल्ली में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. हिमांशु पाठक, सचिव डेयर एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद थे. कार्यक्रम में डा. आरसी अग्रवाल, राष्ट्रीय निदेशक, एनएएचईपी और डीडीजी (कृषि शिक्षा) भी उपस्थित थे. डा. टीआर शर्मा, डीडीजी (फसल विज्ञान) एवं निदेशक (प्रभारी), पूसा संस्थान, नई दिल्ली, बिमला कुमारी, उपनिदेशक (व्यावसायिक), शिक्षा विभाग, दिल्ली सरकार, डा. सी. विश्वनाथन, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) और डा. अनुपमा सिंह, अधिष्ठाता, ग्रेजुएट स्कूल और संयुक्त निदेशक (शिक्षा), पूसा संस्थान भी कार्यक्रम में शामिल हुए. कार्यक्रम के दौरान कक्षा 6वीं, 7वीं और 8वीं के लिए 3 महत्वपूर्ण प्रकाशनों का विमोचन किया गया.

डा. सी. विश्वनाथन ने कार्यक्रम के गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया और प्रशिक्षण के बारे में भी जानकारी दी. डा. हिमांशु पाठक ने अपने भाषण में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे आजीविका, रोजगार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और अभी भी तकरीबन 60 फीसदी ग्रामीण परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत है.

उन्होंने शिक्षकों के महत्व और स्कूली छात्रों को कृषि की मूल बातें समझने और इस में गहरी रुचि विकसित करने के लिए संवेदनशील बनाने में उन की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. साथ ही, उन्होंने कृषि और संबद्ध विषयों में सक्रिय रुचि रखने वाले युवाओं और स्कूली छात्रों के विकास के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. आरसी अग्रवाल ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने, किसानों को उत्पादक और उद्यमी दोनों बनाने में कृषि शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश में कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने की अत्यधिक जरूरत है, जिस के लिए भारत में कृषि शिक्षा प्रणाली को और अधिक विकसित करना होगा.

डा. अनुपमा सिंह ने स्कूलों के युवाओं के बीच कृषि को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों और वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया. उन्होंने कृषि शिक्षा में शामिल विविधता और विज्ञान पर भी प्रकाश डाला और कृषि में कैरियर के अवसरों को रेखांकित किया.

बिमला कुमारी ने प्रशिक्षण में भाग लेने जा रहे शिक्षकों को बधाई दी और हरित क्रांति के दौरान पूसा संस्थान द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला.

कार्यक्रम का समापन प्रशिक्षण समन्वयक डा. अलका सिंह, अध्यक्ष (कृषि अर्थशास्त्र) द्वारा दिए गए औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन और उस के बाद समूह फोटोग्राफ के साथ हुआ. इन 5 दिनों के व्यावहारिक प्रशिक्षण के तहत शिक्षकों को कई कृषि विषयों से अवगत कराया जाएगा.

 

पूसा संस्थान ने मनाया पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह (Parthenium Awareness Week)

नई दिल्ली : 16 अगस्त, 2024. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने अपने एग्रोनौमी फील्ड में एक समारोह के साथ पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह का उद्घाटन किया. यह सप्ताह, जिस का उद्देश्य पार्थेनियम के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसे खत्म करने के उपायों को बढ़ावा देना है. पूसा संस्थान ने इसे 16 से 22 अगस्त तक मनाया.

इस कार्यक्रम की शुरुआत सम्मानित अतिथियों की उपस्थिति के साथ हुई, जिन में डा. अनुपमा सिंह, डीन एवं संयुक्त निदेशक (शिक्षा), डा. आरएन पड़रिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार) और डा. पीएस ब्रह्मानंद, परियोजना निदेशक जल प्रोद्योगिकी केंद्र शामिल थे. इस कार्यक्रम में एनएसएस स्वयंसेवक, एग्रोनौमी के छात्र, संकाय सदस्य और आईएआरआई के अन्य कर्मचारी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में सस्य विज्ञान संभागाध्यक्ष डा. एसएस राठौर ने पार्थेनियम के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर नकारात्मक प्रभावों पर जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह आक्रामक खरपतवार जैव विविधता, कृषि और मानव स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है, जिस से इस के संपर्क में आने वाले लोगों में एलर्जी, त्वचा में जलन और सांस संबंधी समस्याएं होती हैं.

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खरपतवार वैज्ञानिक डा. टीके दास ने पार्थेनियम के प्रसार को रोकने के प्रभावी नियंत्रण और उपायों की जानकारी दी. उन्होंने इस खरपतवार को खत्म करने और इस के आगे के प्रसार को रोकने के लिए यांत्रिक व रासायनिक नियंत्रण और जैविक विधियों सहित एकीकृत खरपतवार प्रबंधन उपायों का सुझाव दिया.

पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह आईएआरआई के प्रयासों का हिस्सा है, जिस का उद्देश्य जनता और कृषि समुदाय को पार्थेनियम के खतरों के बारे में शिक्षित करना और इस के नियंत्रण के लिए समन्वित कार्यवाही के महत्व को बढ़ावा देना है. इस सप्ताह के दौरान जागरूकता अभियान, कार्यशालाएं और फील्ड प्रदर्शन सहित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया गया, ताकि इस महत्वपूर्ण कारण के लिए समुदाय को शामिल किया जा सके. उद्घाटन समारोह ने पार्थेनियम के प्रभाव को कम करने और एक स्वस्थ व सुरक्षित पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए आईएआरआई द्वारा शुरू की गई पहलों की एक सीरीज की शुरुआत की.

कृषि प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण, विक्रम लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग और 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर प्रज्ञान रोवर की तैनाती के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने हर साल 23 अगस्त को ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में घोषित किया है. इस उपलब्धि के साथ ही भारत अंतरिक्ष में जाने वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है और चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन गया है. भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश है.

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में इस विशेष दिन को चिह्नित करने के लिए, अंतरिक्ष विभाग अगस्त, 2024 के दौरान राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन कर रहा है, ताकि देश के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और इस के अनुप्रयोगों के बारे में प्रेरित किया जा सके, जिस का विषय है, “चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना : भारत की अंतरिक्ष गाथा”.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने भारत के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व वृद्धि एवं विकास की ओर अग्रसर करने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में एक सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी की उपस्थिति में डिजिटल भू स्थानिक मंच, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली का शुभारंभ किया, जो देश के कृषि नवाचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कृषि डीएसएस अपनी तरह का पहला भू स्थानिक प्लेटफार्म है, जिसे विशेष रूप से भारतीय कृषि के लिए डिजाइन किया गया है.

यह प्लेटफार्म उपग्रह चित्रों, मौसम की जानकारी, जलाशय भंडारण, भूजल स्तर और मृदा स्वास्थ्य जानकारी सहित व्यापक डाटा तक सहज पहुंच उपलब्‍ध कराता है, जिस पर किसी भी समय कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. कृषि डीएसएस में व्यापक कृषि प्रबंधन का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए कई उन्नत मौड्यूल शामिल हैं. खेतों के विशाल विस्तार से ले कर मिट्टी के सब से छोटे कण तक, कृषि डीएसएस ने सबकुछ कवर किया है.

फसल मानचित्रण और निगरानी के साथ हम विभिन्न वर्षों में पार्सल स्तरीय फसल मानचित्रों का विश्लेषण कर के फसल पैटर्न को समझने में सक्षम होंगे. यह जानकारी फसल रोटेशन प्रथाओं को समझने में मदद उपलब्‍ध कराती है और विविध फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर के टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है. सूखे की निगरानी, सूखे की स्थिति से आगे रहने में मदद करेगी, जो विभिन्न संकेतकों जैसे मिट्टी की नमी, जल भंडारण, फसल की स्थिति, सूखे की अवधि आदि पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी देती है.

फसल मौसम की निगरानी हमें इस बारे में सूचित करेगी कि मौसम फसलों को कैसे प्रभावित कर रहा है और फसल की कटाई की स्थिति, फसल अवशेष जलाने आदि के बारे में भी जानकारी देगी.
‘फील्ड पार्सल सेगमेंटेशन’ के साथ, हम फील्ड पार्सल इकाइयों को सटीक बनाने में सक्षम होंगे, जो लक्षित हस्तक्षेपों के लिए प्रत्येक पार्सल की विशिष्‍ट जरूरतों, फसल पैटर्न को समझने में मदद करेंगे.
एक राष्ट्र एक मृदा सूचना प्रणाली आप की उंगलियों पर एक व्यापक मृदा डाटा प्रदान करती है, जिस में मिट्टी की किस्‍म, मिट्टी का पीएच मान, मिट्टी का स्वास्थ्य आदि शामिल हैं. मृदा डाटा हमें मृदा जल संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए फसल की उपयुक्तता और भूमि क्षमता का आकलन करने में मदद करेगा.

कृषि डीएसएस की ‘ग्राउंड ट्रुथ डाटा लाइब्रेरी’ शोधकर्ताओं और उद्योग को विभिन्न फसलों के लिए ग्राउंड ट्रुथ डाटा और स्पेक्ट्रल लाइब्रेरी जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान कर के नवाचार को बढ़ावा देगी.
बाढ़ प्रभाव आकलन से ले कर फसल बीमा समाधान और कई अन्य तक, कृषि डीएसएस एक समग्र समाधान है. यह हमारे किसानों को सशक्त बनाने, हमारी नीतियों को सूचित करने और हमारे राष्ट्र को पोषित करने के बारे में जानकारी देगी.

कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (डीएसएस) पर उपलब्ध विभिन्न डाटा स्रोतों को एकीकृत कर के, किसानों के लिए सही व्यक्तिगत सलाह, कीट हमले, भारी बारिश, ओलावृष्टि आदि जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी देने जैसे विभिन्न किसान केंद्रित समाधान विकसित किए जा सकते हैं.

कृषि डीएसएस केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह कृषि में नवाचार और स्थिरता के लिए उत्प्रेरक है. साथ मिल कर हम भारत के लिए एक लचीला, टिकाऊ और समृद्ध कृषि का निर्माण करेंगे.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो केंद्र, विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों (आईएमडी, सीडब्‍ल्‍यूसी, एनडब्‍ल्‍यूआईसी, एनआईसी, आईसीएआर, एसएलयूएसआई, एनएनसीएफसी) राज्य रिमोट सेंसिंग केंद्र, राज्य कृषि विभाग, संस्थान/विश्वविद्यालय, कृषि-तकनीक उद्योग के अधिकारी/प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न तकनीकी सत्र और उपग्रह आधारित डाटा उत्पादों तक पहुंचने के लिए इसरो के विभिन्न पोर्टल का प्रदर्शन शामिल था. कृषि के क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोगों पर चर्चा करने के लिए पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं.

नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के नेताओं और शोधकर्ताओं की यह प्रतिष्ठित सभा भारतीय कृषि की चुनौतियों का समाधान करने और बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता पर जोर दे रही है.

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं :

कृषि की प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग : इस सम्मेलन में उपग्रह रिमोट सेंसिंग, भू स्थानिक प्रौद्योगिकी और सटीक कृषि, फसल निगरानी, आपदा प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में उन के अनुप्रयोगों में नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित किया गया.

कृषि डीएसएस का शुभारंभ : भू स्थानिक मंच, कृषि डीएसएस, मौसम के पैटर्न, मिट्टी की स्थिति, फसल स्वास्थ्य, फसल का रकबा और सलाह पर वास्तविक समय के डाटा संचालित अभिज्ञान के साथ हितधारकों को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में अनावरण किया गया.

सार्वजनिक व निजी भागीदारी : सम्मेलन ने कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी लाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच सहयोग के महत्व को रेखांकित किया.

किसान केंद्रित दृष्टिकोण : इस कार्यक्रम ने उपयोगकर्ता के अनुकूल समाधान और क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे फसल उत्पादन पूर्वानुमान, सूखे की निगरानी, फसल स्वास्थ्य आकलन और फसल बीमा समाधान के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने में सक्रिय रहा है. भविष्य में भी यह विभाग भारतीय कृषि की बेहतरी के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिल कर काम करने के लिए समर्पित है.

कृषि शिक्षा पर केंद्र सरकार का फोकस : शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री

 नई दिल्ली :  14 अगस्त, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि और संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप लांच की. आईसीएआर कन्वेंशन सैंटर, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी भी उपस्थित थे.

यहां केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आसियान देशों का जिक्र करते हुए कहा कि हम सब एक हैं और एकदूसरे के बिना हमारा काम नहीं चल सकता. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. आज भी हमारी एक बड़ी आबादी खेती से ही रोजगार प्राप्त करती है. आज कृषि के सामने जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियां हैं. भारत ने सदैव कृषि को प्रधानता दी है.

उन्होंने आगे कहा कि समस्याओं के समाधान में कृषि शिक्षा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. सरकार ने पिछले समय में कृषि शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है, फोकस किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस काम में गंभीरता से लगी हुई है. देश में 66 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 4 डीम्ड विश्वविद्यालय, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और कृषि संकाय वाले 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिन की देखरेख आईसीएआर द्वारा की जाती है.

उन्होंने कहा कि ये संस्थान स्नातक से ले कर डाक्टरेट तक कई तरह के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिन में कृषि, बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, पशु चिकित्सा, कृषि इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. वे कृषि विज्ञान में महत्वपूर्ण शोध भी करते हैं और किसानों व हितधारकों को सेवाएं प्रदान करते हैं. उच्च कृषि शिक्षा के लिए छात्रों को आकर्षित करने व कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों में शिक्षण और अनुसंधान में शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, आईसीएआर यूजी, पीजी और पीएचडी के छात्रों को परिषद द्वारा विकसित निर्धारित मानदंडों के आधार पर विभिन्न छात्रवृत्ति प्रदान कर के सहायता करता है.

ये छात्रवृत्ति आईसीएआर कोटा सीटों, आईसीएआर प्रवेश परीक्षा द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को प्रदान की जाती हैं. आईसीएआर एयू प्रणाली की क्षमता और योग्यता को अब दुनियाभर में मान्यता मिल चुकी है. कई विकासशील देशों के छात्र भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में विकसित अनुसंधान और शिक्षण सुविधाओं से आकर्षित हो कर लाभान्वित हो रहे हैं.

उन्होंने बताया कि भारत सहित विकासशील देशों में निजी क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा हो रही हैं, इसलिए विकासशील देशों के छात्रों में भारतीय कृषि को समझने के लिए भारत आ कर अध्ययन करने की रुचि बढ़ रही है. भारत में उन के उच्च अध्ययन का समर्थन करने के लिए, आईसीएआर द्वारा नेताजी सुभाष फैलोशिप, भारतअफ्रीका फैलोशिप, भारतअफगानिस्तान फैलोशिप, बिम्सटेक फैलोशिप जैसे कई कार्यक्रम/फैलोशिप शुरू किए गए हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आसियानभारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और उस के बाद इस पर निर्मित ‘इंडोपैसिफिक विजन’ की आधारशिला है. भारत आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडोपैसिफिक पर आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करता है. हमारे लिए आसियान के साथ राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा सहयोग सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत आसियान और पूर्वी एशिया शिखर मंचों को जो प्राथमिकता देता है, वह पिछले साल हमारे जी-20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी की जकार्ता यात्रा से साफ है. उन्होंने 12 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी, जिस पर काफी हद तक अमल किया गया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच कृषि सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि आसियान व भारत कृषि जलवायु क्षेत्रों के मामले में बहुत समानताएं साझा करते हैं. अब कृषि और वानिकी में आसियानभारत सहयोग के लिए कृषि व संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप आरंभ की जा रही है. फैलोशिप विशेष रूप से कृषि और संबद्ध विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शक्तियों की पूर्ति और क्षमता का दोहन करने के लिए साझा हितों के नए और उभरते क्षेत्रों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम के लिए है. इस से आसियान सदस्य देशों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शोध आधारित शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिस से भारत और आसियान समुदाय एकदूसरे के करीब आएंगे व आसियान देशों से आने वाले छात्रों के बीच जानकारी के अंतर-सांस्कृतिक और अंतर्राष्ट्रीय आदानप्रदान के लिए मंच प्रदान होगा.

फैलोशिप से आसियान राष्ट्रीयता के छात्रों को आईसीएआर व कृषि विश्वविद्यालय प्रणालियों के तहत सर्वश्रेष्ठ भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में, जरूरत अनुसार, पहचाने गए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कृषि व संबद्ध विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.

इस के अलावा भाग लेने वाले संस्थानों के भारतीय संकाय सदस्यों की आसियान सदस्य देशों में परिचयात्मक यात्राओं के माध्यम से आसियान क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान की जाएगी. इस से कृषि और संबद्ध विज्ञान क्षेत्र के विकास के लिए आसियान में विशेषज्ञ मानव संसाधन के एक पूल के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा पेश किए जाने वाले मास्टर्स प्रोग्राम छात्रों को अत्याधुनिक शोध से परिचित कराएंगे, उन्हें भविष्य के नवाचारों के लिए तैयार करेंगे. साथ ही, देश में दीर्घकालिक डिगरी कोर्स शोधकर्ताओं को लंबे समय तक जुड़े रहने में मदद कर सकता है और आसियान व भारत को कृषि से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकता है. शैक्षणिक वर्ष 2024-25 से कृषि और संबद्ध विज्ञान में मास्टर डिगरी के लिए आसियान सदस्य देशों के छात्रों को 50 फैलोशिप (प्रति वर्ष 10) प्रदान की जाएंगी. परियोजना 5 साल के लिए आसियानभारत कोष के तहत वित्त पोषण के लिए मंजूर की गई है, जिस में फैलोशिप, प्रवेश शुल्क, रहने का खर्च व आकस्मिकता शामिल है.