हकृवि और प्राग के अनुबंध से मिलेगी मजबूती

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के बीच अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध को अगले 5 साल के लिए बढ़ाया गया. इस अनुबंध के अनुसार दोनों संस्थान शिक्षा व कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख अनुसंधानों में सहयोग को और अधिक सुदृढ़ करेंगे.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की ओर से प्रो. थामस सुब्रत अधिष्ठाता, फैकल्टी औफ इकोनोमिक्स एंड मैनेजमेंट ने इस समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

इस अवसर पर चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव, इंजीनियर सुकुमार और विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी व वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को होगा फायदा

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस प्रकार के समझौता ज्ञापनों के तहत हम आपसी हित के क्षेत्रों की पहचान और सुदृढ़ कर रहे हैं. इस अनुबंध के पश्चात मिल कर अनुसंधान कार्य करने के अतिरिक्त दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के आदानप्रदान, वैज्ञानिक संगोष्ठियों व शैक्षणिक बैठकों में भाग लेने, शैक्षणिक सूचनाओं के लेनदेन आदि को बढ़ाया जाएगा.

इस एमओयू से हकृवि के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की अनुसंधान व प्रौद्योगिकी को जानने व शिक्षा ग्रहण करने को बढ़ावा मिलेगा. इस अनुबंध के तहत दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अपनी शोध को नई तकनीकों के साथ दोनों संस्थानों में निपुणता के साथ पूरा करने में एकदूसरे का सहयोग करेंगे, जिस से शोध की गुणवत्ता में सुधार होगा और विद्यार्थियों को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

इंटरेक्शन मीट का आयोजन

विश्वविद्यालय की इंटरनेशनल अफेयर सेल ने चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज के विदेशी प्रतिनिधियों के साथ एक इंटरेक्शन मीट का आयोजन किया गया, जिस में यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिक डा. थामस सुब्रत, डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव और इंजीनियर सुकुमार ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों, वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों के साथ शोध और शैक्षणिक विषयों के बारे में चर्चा की. डा. थामस ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के विभिन्न पाठ्यक्रमों और शोध तकनीकियों के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने भारतीय छात्रों को दी जाने वाली यूरोपीय संघ के इरास्मस मुंडस फेलोशिप के बारे में बताया. उन्होंने विद्यार्थियों को कार्यक्रम के माध्यम से छात्रवृत्ति एवं शैक्षणिक सहयोग की दिशा में प्रोत्साहित किया. उन्होंने इन फेलोशिप द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता जैसे यात्रा भत्ते, अनुसंधान अनुदान और ट्यूशन छूट पर व्यावहारिक जानकारी प्रदान की.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत विश्वविद्यालय के छात्र शैक्षणिक गुणवत्ता के क्षेत्र में प्राग विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन को पूरा कर सकते हैं. ज्ञात रहे कि इस अनुबंध के अंतर्गत गत वर्षों में विश्वविद्यालय के 61 विद्यार्थी चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों का स्वागत किया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्रभारी डा. आशा क्वात्रा ने उन का आभार व्यक्त किया और मीटिंग के उद्देश्य के बारे में संक्षेप में बताया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संयोजक डा. अनुज राणा ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिकों का परिचय करवाया. इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता, सयुंक्त निदेशक डा. जंयती टोकस, आईडीपी के लाइज़न अफसर डा. मुकेश सैनी व डा. गणेश भी उपस्थित रहे.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India) बनाने में कृषि क्षेत्र की खास भूमिका

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से चौथी अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य विषय ‘रिसेंट एडवांसेज इन एग्रीकल्चर फार आत्मनिर्भर भारत’ (आरएएएबी-2024) था. यह कार्यशाला आरवीएसकेवीवी, ग्वालियर द्वारा आभासी मोड में आयोजित की गई. कार्यशाला में मुख्य अतिथि एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स रिक्रूटमेंट बोर्ड (एएसआरबी), नई दिल्ली के चेयरमैन डा. संजय कुमार, चीफ पैटर्न के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में यूएएस थारवाड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. पीएल पाटिल व आईजीकेवी, रायपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल इत्यादि उपस्थित रहे. कार्यशाला के आयोजक सचिव डा. अंकुर शर्मा रहे.

मुख्य अतिथि डा. संजय कुमार ने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा 2020 में की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादों को प्रचलित व बढ़ावा देना है और कृषि क्षेत्र सहित भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है. इस मिशन के तहत ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प को पूरा करने में कृषि भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अब भारतीय कृषि न केवल उत्पादकता और लाभप्रदता पर, बल्कि स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में कृषि पारिस्थितिकी, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और संरक्षण कृषि का चलन बढ़ रहा है, क्योंकि किसान तेजी से मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्व को पहचान रहे हैं. इन  को अपना कर, किसान मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकते हैं, मिट्टी के कटाव को कम कर सकते हैं और रसायनों के प्रयोग को कम कर सकते हैं, जिस से जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से निबटा जा सकता है.

उन्होंने आगे बताया कि नई और आधुनिक तकनीकों को अपना कर किसान अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ा रहा है और देश को आत्मनिर्भर बनाने में भी अपना योगदान दे रहा है.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India)कार्यशाला के चीफ पैटर्न व हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि क्षेत्र की अह्म भूमिका रहेगी. कृषि हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. यह लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती है और हमारी विशाल आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है. हाल ही के वर्षों में,  इस क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जो इस क्षेत्र को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारे संकल्प को मजबूत करने में मदद करेगी.

उन्होंने आगे बताया कि आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए देश को उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, स्थानीय उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना होगा और उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के बारे में भी सोचना होगा. कृषि क्षेत्र में युवाओं और हितधारकों को आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि कृषि शिक्षा आत्मनिर्भर भारत के लिए सब से अच्छे रोडमैप में से एक हो सकती है, क्योंकि यह कृषि आधारित स्टार्टअप के लिए आधार तैयार करती है.

उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने और युवाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए जीपीएस, सेंसर, ड्रोन और डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों के हित के लिए शोध कार्यों, नवीनतम तकनीकों,  शैक्षणिक गतिविधियों व विस्तार कार्यों जैसी गतिविधियों से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

इस दौरान एग्रीमीट फांउडेशन, यूपी की अध्यक्ष डा. हर्षदीप कौर द्वारा कार्यशाला में भाग लेने वाले अतिथियों का परिचय करवाया गया. कार्यशाला में आरएलबीसीएयू, झांसी, उत्तर प्रदेश के अनुसंधान निदेशक डा. एसके चतुर्वेदी, एसकेएलटीएसएचयू, तेलंगाना की कुलपति डा. नीरजा प्रभाकर,  आईसीएआर-डीसीआर, पुटुर के निदेशक डा. जेडी अडिगा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कुलपति प्रो. एके शुक्ला ने भी अपने विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए.

आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर के संयुक्त निदेशक डा. अनिल दीक्षित ने सभी का स्वागत किया, जबकि कार्यशाला के अंत में आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर, छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक डा. एन. अश्विनी ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

पृथ्वी को प्रदूषणरहित (Pollution Free) रखना हम सभी का कर्तव्य

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में भूदृश्य संरचना इकाई द्वारा संपदा कार्यालय के सामने विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में पौध रोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे. उन्होंने कार्यक्रम में पौध रोपण कर के ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर सभी को पौध रोपण करने के लिए प्रेरित किया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है, पहली बार 22 अप्रैल, 1970 को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया गया था. इस वर्ष पृथ्वी दिवस का थीम ‘प्लेनेट बनाम प्लास्टिक’ है, जिस का मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति को होने वाले नुकसान के बारे में सचेत करना है.

एक अनुमान के मुताबिक, 90 फीसदी प्लास्टिक रिसाइकिल नहीं हो पाता है, जो पर्यावरण के लिए घातक है. प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण पर्यावरण में असंतुलन बढ़ रहा है, जिस की वजह से स्थिति  दयनीय होती जा रही है.

उन्होंने कहा कि पृथ्वी को प्रदूषणरहित रखना हम सभी का कर्तव्य है. ऐसे में हमें पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना पड़ेगा और इसे बेहतर बनाने में योगदान देना होगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि लगातार पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, रासायनिक खाद व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग व प्लास्टिक के प्रयोग से हमारी धरती का स्वरूप एवं पर्यावरण दूषित होता जा रहा है. ऐसे में इसे बचाए रखने के लिए समाज को अहम कदम उठाते हुए सामूहिक प्रयास की जरूरत है.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि दिनप्रतिदिन बढ़ते जा रहे पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पौध रोपण करना बहुत जरूरी है. पृथ्वी को स्वस्थ व पहले की तरह बनाने के लिए हम सभी का कर्तव्य है कि अपनी धरती को हराभरा और बेहतर बनाने का संकल्प लेना पड़ेगा, ताकि संसार के सभी पेड़पौधों पशुपक्षियों एवं जंतुओं की जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके.

‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर जकरंदा के 200 पौधे किए रोपित

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के भूदृश्य संरचना इकाई के अध्यक्ष डा. पवन कुमार ने बताया कि पौध रोपण कार्यक्रम के तहत जकरंदा के 200 पौधे रोपित किए गए. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे और पौध रोपण भी किया.

जैव प्रौ‌द्योगिकी (Biotechnology) पर विचार मंथन

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय द्वारा कुलपति डा. डीआर सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में नवनियुक्त सहायक प्रोफैसर सह जैव प्रौ‌द्योगिकी के जूनियर वैज्ञानिक के लिए एक अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के साथ ही “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र भी आयोजित किया गया.

इस अवसर पर प्रसिद्ध जैव प्रौ‌द्योगिकी वैज्ञानिक और राष्ट्रीय पौध जैव प्रौ‌द्योगिकी संस्थान, आईसीएआर के पूर्व निदेशक प्रो. आर. श्रीनिवासन मुख्य अतिथि थे. उन्होंने पादप जैव प्रौ‌द्योगिकी, पर्यावरण जैव प्रौ‌द्योगिकी, जैव सूचना विज्ञान विभाग के नवनियुक्त फैकल्टी सदस्यों सहित श्रोताओं को ज्ञानवर्धन किया. साथ ही, वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य, पादप शरीर विज्ञान और जैव रसायन और आणविक जीव विज्ञान और आनुवंशिकी इंजीनियरिंग विभाग के सदस्य, स्नातक और परास्नातक छात्र भी उपस्थित थे.

प्रो. श्रीनिवासन ने ट्रांसजेनिक, आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों की प्रजातियों और एंजाइम प्रौ‌द्योगिकी जैसे उन्नत जैव प्रौ‌द्योगिकी विषयों के अनुप्रयोग को कवर किया, जो नए कीट प्रतिरोधी, जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के लिए सहायक हो सकते हैं, जो किसानों की आजीविका के उत्थान में मदद कर सकते हैं और भारत और अन्य देशों की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की चुनौती का भी समाधान कर सकते हैं.

पूरा वैज्ञानिक सत्र बहुत ही इंटरएक्टिव यानी संवादात्मक था और विभिन्न महाविद्यालयों जैसे बिहार कृषि महावि‌द्यालय, सबौर, डा. कलाम कृषि महावि‌द्यालय (डीकेएसी), किशनगंज, नालंदा कृषि महाविद्यालय (एनसीएच), नूरसराय, वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय (वीकेएससीए), डुमरांव के वैज्ञानिक और विद्वान, जो इस कार्यक्रम में भाग लेने आए थे, उन्होंने भारत और बंगलादेश, आस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका जैसे अन्य देशों में विकसित ट्रांसजेनिक पौधों जैसे बीटी बैंगन, बीटी पपीता और गोल्डन राइस की स्वीकार्यता के अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा की.

प्रो. श्रीनिवासन ने अपने 40 से अधिक वर्षों के शिक्षण और शोध अनुभव को भी साझा किया और मानव संसाधन के विकास और राष्ट्र निर्माण में उन की भूमिका के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन सीएबीटी द्वारा “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र का आयोजन किया गया. इस सत्र में 2 प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. सुमीत गैरोला, एचएनबी गढ़वाल विश्ववि‌द्यालय, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड और डा. प्रशांत मिश्रा, सीएसआईआर- भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान, जम्मू शामिल हुए. उन्होंने वैज्ञानिकों और जैव प्रौ‌द्योगिकी के प्रोफैसरों को संबोधित किया. दिया गया व्याख्यान बहुत ही जानकारी वाला था और बिहार में किसानों के कल्याण के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों का एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर केंद्रित था.

इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, अधिष्ठाता कृषि डा. एके सिंह, निदेशक विस्तार डा. सोहने, निदेशक बीज विज्ञान और विस्तार डा. फिजा अहमद, बिहार कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एसएन राय और कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय के डा. एन. चट्टोपाध्याय जैसे कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. उन्होंने जलवायु अनुकूल फसल किस्म, विकास, स्पीड ब्रीडिंग, जैव कीटनाशक, जैव कीटनाशक उत्पाद विकास के लिए सूक्ष्म जीवों के उपयोग और किसानों की आजीविका के अंतिम लाभ और उत्थान के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी के महत्व पर अपने विचार साझा किए.

कार्यक्रम का आयोजन और संचालन सीएबीटी/एमबीजीई के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य डा. शशिबाला, डा. रवि केसरी, डा. तुषार रंजन और डा. विनोद द्वारा किया गया.

48 फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes) को मिलेगी राष्ट्रीय पहचान

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सबएग्रीस सभागार में राज्य के विभिन्न जिलों में लंबे समय से किसानों द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों एवं व्यंजनों को जीआई टैग दिलाने को ले कर एक समीक्षा बैठक की गई. बैठक का आयोजन शोध निदेशालय द्वारा किया गया, जिस की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह कर रहे थे.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, अतिरिक्त इस के कालांतर से उन के द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों की खेती एवं व्यंजनों को जीआई टैग प्रदान करवा कर उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई जाएगी. इस दिशा में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाएगा, ताकि देशभर में जीआई टैग के आधार पर राज्य का नाम रोशन हो सके और इस का भरपूर लाभ किसानों को भी मिल सके.

फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes)कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि अब तक 97 स्टार्टअप को उद्यम के रूप में स्थापित करने में तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. कुलपति ने कहा कि सबएग्रीस से प्रमाणित होने के बाद उस स्टार्टअप की अहमियत और बढ़ जाती है.

समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों द्वारा कुल मिला कर 48 फसलों व व्यंजनों की विशेषताओं को ले कर अपनाअपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन की प्रस्तुति दी, जिस में वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार ने मोकामा के मखाना मशरूम, डा. प्रशांत सिंह ने रोहतास के सोना चूर चावल, डा. रफत सुल्ताना ने बांका, मुंगेर के पाटम अरहर, डा. अनिल कुमार ने भागलपुर के तितुआ मसूर, डा. रणधीर कुमार ने पटना के दीघा मालदा आम, डा. रविंद्र कुमार ने समस्तीपुर के बथुआ आम, डा. प्रकाश सिंह ने सहरसा के नटकी धान, डा. केके प्रसाद ने रोहतास के गुलशन टमाटर, डा. विनोद कुमार ने गोपालगंज के थावे का पुरुकिया, डा. तुषार रंजन ने सुपौल के पिपरा का खाजा और डा. सीमा ने पटना के रामदाना लाई पर अपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया, जिसे समीक्षा बैठक में उल्लेखनीय बताया गया.

उन्नत किस्मों से कपास (Cotton) की बढ़ेगी पैदावार

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को कपास का उत्पादन बढ़ाने, उन्नत किस्म के बीजों एवं तकनीकी जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए.

प्रशिक्षण शिविर में अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने किसानों को बताया कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप खेतों मे रखी हुई लकड़ियों/बनछटियों के कारण फैलता है, इसलिए इन का उचित प्रबंधन किया जाए.

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक प्रशिक्षण डा. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान द्वारा समयसमय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं.

कपास अनुभाग के प्रभारी डा. करमल सिंह ने प्रदेश में कपास उत्पादन के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं से अवगत कराया. उन्होंने बताया कि बीटी नरमा के लिए शुद्ध नाइट्रोजन, शुद्ध फास्फोरस, शुद्ध पोटाश व जिंक सल्फेट क्रमश: 70:24 24:10 किलोग्राम प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है. उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के आधार पर तय की जानी चाहिए. 5-6 साल में एक बार 5-7 टन गोबर की खाद जरूर डालनी चाहिए.

कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सोमवीर ने कपास की मुख्य विशेषताओं एवं किस्मों के बारे में अवगत करवाया, वहीं कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़ ने कपास में लगने वाले कीट व उन के प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

डा. संदीप कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया और डा. शुभम लांबा ने मंच का संचालन किया. इस के अतिरिक्त शिविर में किसानों को विश्वविद्यालय की तरफ से उत्पादक सामग्री भी प्रदान की गई.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project) द्वारा संचालित कामों का अवलोकन

उदयपुर : 4 अप्रैल, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना, जो कि विश्व बैंक द्वारा संचालित है, उस के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों में विश्व बैंक परियोजना द्वारा संचालित कामों का अवलोकन किया.

उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक एवं अधिकारियों के साथ संवाद किया और डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय के नवीनीकृत प्रयोगशाला का दौरा किया.

प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर के एक्पेरिंयन्शल लर्निंग यूनिट (नई खाद्य प्रसंस्करण प्रयोगशाला इकाई) में छात्रों द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों को देखा एवं उस की तहेदिल से सराहना की.

इस अवसर पर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय के सभागार में विश्व बैंक परियोजना के अंतर्गत विदेश में प्रशिक्षण लेने गए संकाय सदस्यों एवं छात्रों से एकएक कर के वार्ता की एवं प्रशिक्षण के अनुभव के आधार पर नई तकनीकी का उपयोग करते हुए विश्वविद्यालय में नई परियोजना लाने एवं उस पर काम करने के लिए प्रेरित किया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस परियोजना के माध्यम से विश्वविद्यालय के 11 संकाय सदस्यों एवं 71 छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण करने का अवसर प्राप्त हुआ.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project)

छात्रों ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सतत कृषि विकास के लिए स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षण एवं हवा, पानी और मिट्टी के विश्लेषण के लिए अत्याधुनिक उपकरणों के उपयोग पर प्रशिक्षण प्राप्त किया. इस के अतिरिक्त विश्वविद्यालय सभी सांगठनिक महाविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए आधुनिक उपकरण खरीदे गए, जो अनुसंधान के लिए काफी मददगार साबित हुए.

इस परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय की अनुसंधान गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला, जिस के द्वारा विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रकाशन में आशातीत प्रगति हुई है एवं विश्वविद्यालय का एच इंडेक्स वर्ष 2019 में 38 था, जो आज बढ़ कर 72 हो गया है. इस दौरान विश्वविद्यालय ने 17 पेटेंट प्राप्त किए हैं और विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने इस से प्रेरित हो कर अपना स्वयं का स्टार्टअप प्रारंभ कर दिया है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय का चहुंमुखी विकास हुआ है और विशेष रूप से स्नातक छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण के साथसाथ शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास हुआ है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में यह परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भारत सरकार) और विश्व बैंक की वित्तीय सहायता से विगत 5 सालों से लागू की जा रही थी. इस परियोजना का कार्यकाल 1 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2023 तक रहा.

परियोजना प्रभारी डा. पीके सिंह ने परियेाजना के अंतर्गत कराए गए विभिन्न कामों का एक प्रतिवेदन विश्व बैंक के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव के सम्मुख प्रस्तुत किया.

अंत में डा. लोकेश गुप्ता, अघिष्ठाता, डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर ने विश्व बैंक की टीम के लीडर डा. बेकजोड शेमसीव का पहली बार विश्वविद्यालय में आने पर स्वागत किया एवं आभार जताया. साथ ही, विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों का स्वागत करते हुए आभार जताया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में जीवाणु व केंचुए कैसे हैं मददगार

प्राकृतिक खेती में केंचुए और जीवाणुओं का खासा महत्व है. वह खेत की मिट्टी को प्राकृतिक तरीके से सुधारने का काम करते हैं. इसी विषय पर अधिक जानकारी के लिए प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा से विस्तार से जानिए.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी में लाभदायक कीटों और केंचुओं की संख्या में कैसे इजाफा होता है?

प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं है, बल्कि केंचुए की मात्रा, जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक हैं. खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढ़ते हैं, तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ़ जाता है. जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा हो कर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है. दूसरे लाभदायक जीवाणु, जो रासायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नहीं पनप पाते हैं. प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ़ जाते हैं, जिस के फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा, बदलता मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का निर्माण किसान कैसे करें?

जीवामृत, जो कि वह सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है. इस को बनाने के लिए 10 लिटर देशी गाय का गौमूत्र, 10 किलोग्राम ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किलोग्राम बेसन, 2 किलोग्राम गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 लिटर पानी में मिला कर इन को जूट की बोरी से ढ़क कर छाया में रखना चाहिए. फिर सुबहशाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए. अंत में 48 घंटे बाद छान कर सात दिन के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए.

छोटे और मझोले किसान प्राकृतिक या जैविक खेती कैसे करें?

देश में 86 फीसदी किसान छोटे और मझोले हैं. जैविक खेती के आरंभ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है, उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रासायनिक इनपुट से भी अधिक है, जिस से जैविक खेती में छोटे किसानों का शोषण होता है. जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है.

जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है, तो इस में विद्यमान जीवाणु भूमि में जा कर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इन में ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 फीसदी नाइट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं. दूसरे, पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाने में जीवाणुओं के साथ केंचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व ले कर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है.

प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाए, तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है. फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या एक एकड़ में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इस के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ाए जाए, ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आए, तो इस से किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देश की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) उत्पाद को मिले बेहतर दाम

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने इस मीटिंग की अध्यक्षता की. इस मीटिंग में प्रबंधन मंडल के भूतपूर्व सदस्य सीपी आहुजा, शरद बतरा व शिवांग बतरा भी मौजूद रहे. कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती कर रहे विभिन्न जिलों के प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आधुनिक युग में प्राकृतिक खेती के विस्तार से ले कर उस की अहमियत पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों की समस्याओं को जान कर उन का हल करना व शोध कार्यों को उन के अनुरूप बनाना है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को बेहतर दाम दिलवाने के लिए उपभोक्ताओं से सामंजस्य व सीधे तौर पर जुड़ कर आपस में विश्वास पैदा करना जरूरी है.

उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से पाठ्यक्रम बनाना, अधिक से अधिक प्रशिक्षणों का आयोजन व किसान समुदाय द्वारा तैयार किए गए कृषि मौडल की प्रदर्शनी भी लगाने पर जोर दिया. प्राकृतिक खेती कर रहे किसान व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं, जिस में वे अपनी समस्याएं व समाधान शेयर करें, ताकि उस का तुरंत एकदूसरे को लाभ पहुंच सके, साथ ही आपस में तकनीकों का भी आदानप्रदान हो.

उन्होंने आगे बताया कि भावी पीढ़ियों को रसायनमुक्त व पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाना वैज्ञानिकों व किसानों की मुख्य प्राथमिकता है. इस के लिए उन्होंने कहा कि किसान शुरुआत में कम जगह पर प्राकृतिक खेती को अपनाएं और धीरेधीरे उस का क्षेत्रफल बढ़ाते जाएं.

उन्होंने वैज्ञानिकों से भी आह्वान किया कि वे आधुनिक युग में आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जब भी शोध करें, तो विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों, पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता, श्रमिकों की उपलब्धता, वर्षा, जमीन का और्गेनिक कार्बन, खरपतवार, पूरे साल का फसल चक्र, कीट और बीमारियों के प्रबंधन से संबंधित बातों पर मंथन जरूर करें.

हकृवि में स्थापित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैविक खेती उत्कृष्टता केंद्र के निदेशक डा. अनिल कुमार ने विभिन्न विषयों पर चल रहे प्रयोगों के बारे में जानकारियां साझा की. साथ ही, किसानों के सवालों के जवाब भी दिए.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के तहत विभिन्न फलों एवं सब्जियों पर शोध किए जा रहे हैं. अनुसंधानों के उचित परिणामों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है, जिस से कि वे प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए अधिक से अधिक जागरूक हों. संगोष्ठी में किसानों का यह मत था कि प्राकृतिक खेती के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए.

इस अवसर पर अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डा. राजेश कुमार गेरा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य सहित सहायक निदेशक डा. सुरेंद्र यादव, संयुक्त निदेशक डा. सुरेश कुमार, डा. सुमित देशवाल, डा. सुरेश कुमार, डा. किशोर कुमार, डा. दीपिका, मंजीत सहित प्रगतिशील किसान, जिन में सुधीर महता, सुभाष बेनीवाल, कमल वीर, पंकज माचरा, मुल्कराज चावला, सुरेन्द्र कुमार, राजेंद्र कुमार, रणधीर सिंह, मनेाज कुमार, सूरजभान, धर्मवीर पूनिया, सुरजीत सिंह, नरेश कुमार, अमनदीप, वीरेंद्र कुमार, कृष्ण, दलजीत सिंह, गौरव तनेजा, मुकेश कंबोज, आशीष महता, डा. बलविंदर सिंह, संजय व दिलेर भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय (University) को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन के सभा कक्ष में सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए सेवा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि थे. उन्होंने अगस्त, सितंबर, अक्तूबर व नवंबर माह के दौरान 25 सेवानिवृत्त हुए विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को शाल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सेवाओं की प्रशंसा की.

उन्होंने कहा कि सभी ने मिल कर विश्वविद्यालय को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया है. यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों के द्वारा किए गए उल्लेखनीय कामों का ही नतीजा है कि विश्वविद्यालय आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए है.

उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय सदैव सेवानिवृत्त कर्मचारियों का ऋणी रहेगा. आप के द्वारा दिए गए योगदान का ऋण उतारा नहीं जा सकता. कर्मचारी अपनेआप को सेवानिवृत्त न समझ कर परिवार व समाज को अपनी सेवाएं प्रदान करें. उन्हें विश्वविद्यालय से जुड़े रह कर भी उस के विकास में अपना सकारात्मक योगदान देते रहना चाहिए.

उन्होंने कर्मचारियों से विश्वविद्यालय के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखने और भावी पीढ़ी से अपने अनुभव साझा करने का आह्वान किया, ताकि वे भी उन की तरह सहनशीलता के साथ कार्य निष्पादन कर सकें.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अधिकारियों से कहा कि जब कभी भी रिटायर्ड कर्मचारी विश्वविद्यालय में आएं, तो उन्हें उचित मानसम्मान दिया जाए.

विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक नवीन जैन ने रिटायर हुए कर्मचारियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के दरवाजे सदैव रिटायर कर्मचारियों के लिए खुले हुए हैं. वह अपने काम के लिए किसी भी समय यहां आ सकते हैं. उन्होंने रिटायर हुए कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों की विस्तार से जानकारी दी.

रजिस्ट्रार डा. बलवान सिंह मंडल ने सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों व कर्मचारियों को बधाई दी, साथ ही उन के अच्छे स्वास्थ्य व लंबी उम्र की कामना की.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढ़ींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व अंशुल भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय से गत 4 माह में कुल 5 वैज्ञानिक और 20 गैरशिक्षक कर्मचारी रिटायर हुए.

वैज्ञानिकों में डा. तेजेंदर पाल मलिक, डा. कुशल राज, डा. राकेश महरा, डा. योगेंद्र कुमार यादव व डा. एसएस जाखड़ हैं, जबकि गैरशिक्षक कर्मचारियों में सुदेश, राकेश कुमार, मदन लाल, शिव सेवक, अल्का अरोड़ा, केशव प्रसाद, शशि बाला, राममेहर सिंह, अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार, बहादुर सिंह, पृथ्वी सिंह, मोहन लाल, छांगा राम, रामबाई, रतन सिंह, सियाराम, सतनारायण, कर्ण सिंह व रमेश कुमार शामिल हैं.