Seeds : अच्छी किस्म के बीजों को छोटे किसानों तक जल्दी पहुंचाएं

Seeds: कृषि अनुसंधान देश के कृषि क्षेत्र का प्रमुख आधार है. इसे और अधिक सशक्त करने और कृषि शोध के क्षेत्र में नवाचार करने के साथ ही वर्तमान योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के उद्देश्य से केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशकों के साथ 29 अप्रैल, 2025 को मैराथन बैठक की.

नई दिल्ली के एनएएससी कौम्प्लेक्स स्थित बोर्ड रूम में यह अहम बैठक हुई. इस बैठक में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने आईसीएआर के विभिन्न प्रभागों द्वारा किए जा रहे शोध प्रयोगों की जानकारी लेने के साथ ही भावी रणनीतियों के बारे में विस्तार से मार्गदर्शन दिया.

किसानों की खुशहाली के लक्ष्य को फोकस रखते हुए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक की शुरुआत में कहा कि जब अंतिम पंक्ति का किसान समृद्ध बनेगा, तभी सही माने में विकसित भारत का संकल्प पूरा होगा.

इस चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार की बजट घोषणा (2025-26) की प्रमुख 4 घोषणाओं, जिस में दलहन में आत्मनिर्भरता, उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन, कपास उत्पादकता के लिए मिशन, फसलों के जर्म प्लाज्म के लिए जीन बैंक में तेजी से प्रगति के साथ काम करने को कहा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अच्छी किस्म के बीज विकसित करने की दिशा में पूरी प्राथमिकता और समर्पण से काम करने का निर्देश दिया. दलहन में मेंड़ वाली किस्म विकसित करने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि दलहन को बढ़ावा देने के लिए क्या वैज्ञानिक अप्रोच हो सकती है, इस दिशा में काम होना चाहिए.

सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देने पर विशेष जोर देते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कृषि मंत्रियों के साथ बात की. उन्होंने सोयाबीन की खेती को खरीफ फसल की बोआई के दौरान बढ़ावा देने के लिए भरपूर प्रयास करने के लिए कहा और किसानों में सोयाबीन की पैदावार के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर जन जागरूकता अभियान चलाने की बात भी कही.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बीजों की नई किस्मों का विकास हो और ये किसानों तक जल्दी पहुंचे, इस बात की कोशिश होनी चाहिए. देशभर के बीज केंद्र प्रभावी भूमिका निभाते हुए काम करें. विशेषकर यह सुनिश्चित हो कि छोटे और सीमांत किसानों तक प्रौद्योगिकी का फायदा ज्यादा से ज्यादा और जल्दी पहुंचे.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गेहूं और चावल के साथ दलहन, तिलहन व मोटे अनाजों की उपज पर भी जोर देने की जरूरत है. उन्होंने कीटनाशकों के सही उपयोग पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के संबंध में और अधिक अनुसंधान और शोध की जरूरत है. इस के साथ ही मिट्टी की जांच किसानों के अपने खेतों में ही करने के प्रयास होने चाहिए, ऐसा करने से किसानों में रुचिपूर्वक खेती करने की पहल में मदद मिलेगी.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्राम स्तर पर खेत से बाजार तक की श्रृंखला को व्यवस्थित करने की कोशिश पर भी बात की और कृषि समितियों की सक्रिय भूमिका को भी रेखांकित किया.

इस बैठक में फसल विज्ञान प्रभाग के बाद एनआरएम डिवीजन और कृषि विस्तार प्रभाग की प्रस्तुती भी हुई, जिस में विभिन्न विषयों पर विचारविमर्श किया गया. इस दौरान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती, छोटे किसानों के लिए मौडल फार्म विकसित करने, प्राकृतिक खेती के उत्पादों को राज्य सरकारों के साथ मिल कर प्रमाणित करने की व्यवस्था, छोटे किसानों को खेती के साथ ही पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन से जोड़ने के प्रयास, चारा उत्पादन में वृद्धि के लिए संभावनाओं की तलाश, प्राकृतिक खेती के लिए विशेष किस्म के बीजों के उत्पादन पर भी जोर दिया.

इस के साथ ही शुष्क, बारानी कृषि प्रबंधन में ग्रामीण विकास मंत्रालय के समन्वय के साथ काम करने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और किसानों की आवश्यकताओं में जोड़ते हुए काम करने, बांस की खेती और जलवायु संरक्षण की दिशा में पेड़ उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने, मृदा टैस्टिंग किट (मृदा परीक्षण), प्रौद्योगिकी के प्रभाव का प्रमाणिक मूल्यांकन, किसानों के उचित प्रशिक्षण व कौशल विकास, गैरसरकारी संगठनों की सहभागिता सहित केवीके की भूमिका को प्रभावशाली बनाने जैसे विषयों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए और जरूरी निर्देश दिए.

Agriculture : खेतीकिसानी की उन्नति में केवीके की खास भूमिका

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते दिनों 28 अप्रैल को नई दिल्ली में देशभर के सभी 731 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) से वर्चुअल संवाद किया. केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर आयोजित इस अभिनव संवाद कार्यक्रम में सभी केवीके के चल रहे प्रयासों, उन की भूमिका और भावी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को ले कर चर्चा हुई. इस दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी केवीके से किसान उन्मुख प्रयासों में तेजी लाने की बात कही, साथ ही कहा कि खेतीकिसानी की उन्नति में केवीके सशक्त माध्यम के रूप में भूमिका निभाए.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि केवीके कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं. साथ ही, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि खरीफ बोआई से पहले सभी केवीके और आईसीएआर, राज्य सरकारों के साथ मिल कर किसान जागरूकता अभियान चलाएं.

उन्होंने आगे प्राकृतिक खेती, जल संरक्षण और किसानों के हितों के मद्देनजर उत्पादकता बढ़ाने पर भी जोर दिया. साथ ही, उत्कृष्ट कार्य करने वाले केवीके को पुरस्कृत किए जाने के प्रस्ताव पर भी विचार हुआ.

इस चर्चा में देशभर के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के प्रमुखों के साथ ही कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए, जिन में से कुछ ने केवीके की उपलब्धियां बताईं, वहीं अपने सुझाव भी दिए. आईसीएआर कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, अटारी, जोधपुर (राजस्थान), अटारी, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश), अटारी, पटना (बिहार), अटारी, जबलपुर (मध्य प्रदेश) के अलावा मंडी (हिमाचल प्रदेश), नंदूरबार (महाराष्ट्र), खुर्दा (ओडिशा), मोरीगांव (असम) और लक्षद्वीप के केवीके प्रमुखों ने अपनेअपने क्षेत्र विशेष के अनुसार अपने कामकाज, उपलब्धियों और भावी कार्य योजनाओं के बारे में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को जानकारी दी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. एमएल जाट और उपमहानिदेशक (प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने प्रारंभ में केवीके के संबंध में रूपरेखा बताई.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अभियान स्वरूप कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कृषि व्यापक क्षेत्र है. प्रत्यक्ष रूप से लगभग 45 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है और हमारी जीडीपी का लगभग 18 फीसदी हिस्सा कृषि क्षेत्र से ही आता है, इसलिए इस व्यापक भूमिका को और अधिक मजबूत करने के लिए हमें लगातार प्रभावशाली प्रयास करने होंगे.

केवीके प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने किसानों के क्षमता निर्माण प्रशिक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कृषि से जुड़े अच्छे प्रशिक्षण और जागरुकता के माध्यम से हम किसानों को आत्मनिर्भर और सशक्त बना सकते हैं. साथ ही, उन्होंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और किसान जागरूकता को जोड़ते हुए काम करने की नई पहल करने संबंधी विचार भी साझा किए और किसानों को मिट्टी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उवर्रक के संतुलित इस्तेमाल की मात्रा के अनुसार उचित सलाह देते हुए खेती करने की दिशा में आगे काम करने के लिए भी कहा.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि के लिए 6 सूत्रीय रणनीति, जिस में उत्पादन बढ़ाना, लागत घटाना, फसलों के ठीक दाम, नुकसान की भरपाई, खेती का विविधीकरण और प्राकृतिक खेती पर भी मार्गदर्शन दिया. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में हमें उच्च मापदंड स्थापित कर के दिखाना है.

उन्होंने आगे कहा कि खाद्यान उत्पादन के लिए बेहतर बीजों, नए शोध, नई तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया और इसी क्रम में और अधिक मौडल फार्म बनाने और नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से भी किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए प्रयास करने को कहा.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जल संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ के लिए और अधिक प्रभावशाली रूप से भूमिका निभाने की जरूरत है. कम से कम पानी में अधिक से अधिक खेती की कोशिश होनी चाहिए.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि कृषि विज्ञान केंद्रों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और सभी को कार्य प्रदर्शन के पायदान पर ऊपर बने रहने के लक्ष्य के साथ काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अच्छा काम करने वाले केवीके को अगले साल से पुरस्कृत करने की व्यवस्था पर भी विचार की आवश्यकता है.

इस बैठक के अंत में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केवीके प्रमुखों से काम को पूजा के रूप में स्वीकारते हुए परिणाम उन्मुख हो कर काम करने की बात कही. एक अभिनव पहल के रूप में इस साल 15 जून, 2025 को खरीफ फसल की बोआई से पहले किसानों की जागरुकता के लिए व्यापक जन अभियान चलाए जाने संबंधी प्रस्ताव पर भी विचार किया गया और विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से खरीफ बोआई संबंधित जानकारी देने के लिए सूचना प्रवाह माध्यम से अधिक से अधिक किसानों को जोड़ने संबंधी रूपरेखा पर चर्चा हुई.

कम पानी और कम लागत वाली प्रजातियां हों विकसित

मेरठ : सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह और द जिनोमिक फाउंडेशन, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. एनके सिंह ने शोध के क्षेत्र में काम करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर कुलपति प्रो. केके सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए विज्ञान को शोध के काम करने होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि नईनई प्रजातियों को विकसित किया जाए, जिस से कम पानी और कम लागत में किसानों को अच्छी उपज प्राप्त हो सके. हमारा प्रयास है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को जल्द से जल्द नई प्रजातियां एवं तकनीकियां विकसित कर के दी जाएं, जिस से किसानों को लाभ हो सके.

द जिनोमिक फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. एनके सिंह ने कहा कि जिनोम एडिटिंग के द्वारा नई प्रजातियों में जल्द से जल्द सुधार किया जा सकता है. इस क्षेत्र में वह विश्वविद्यालय के साथ मिल कर काम करेंगे, जिस से प्रजातियों को सुधारने और विकसित करने में कम समय लगेगा. वहीं प्रो. आरएस सेंगर ने बताया कि जिनोमिक फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. एनके सिंह का धान अनुसंधान के क्षेत्र में और अरहर, आम डालनी फसलों आदि प्रजातियों के सीक्वेंस करने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान दिया है.

अब इस का लाभ विश्वविद्यालय को भी मिल सकेगा, जिस का सीधा फायदा पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का होगा. कुलपति प्रो. केके सिंह द्वारा उठाए गए इन कदमों से आने वाले समय में कृषि उत्पादन और अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई दिशा मिल सकेगी. इस दौरान कुल सचिव डा. रामजी सिंह निदेशक शोध डा. कमल खिलाड़ी मौजूद रहे.

विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025: भारत के पशु चिकित्सकों को किया गया सम्मानित

नई दिल्ली :  मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने पिछले दिनों 26 अप्रैल, 2025 को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय कार्यशाला के साथ विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 मनाया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन व डेयरी और पंचायती राज मंत्री एसपी सिंह बघेल ने किया, जिन्होंने पशु चिकित्सा समुदाय को “ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय जैव सुरक्षा की रीढ़” बताया.

उन्होंने आगे कहा, कि भारत में 536 मिलियन से अधिक पशुधन हैं, जो दुनिया में सब से अधिक हैं. लगभग 70  फीसदी  ग्रामीण परिवार आय, भोजन और सुरक्षा के लिए पशुओं पर निर्भर हैं. फिर भी, जो लोग सुनिश्चित करते हैं कि ये जानवर स्वस्थ रहें, वे शायद ही कभी सुर्खियों में आते हैं.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने आगे कहा, “स्वस्थ पशुओं के बिना स्वस्थ भारत नहीं है”. पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, कौशल विकास को बढ़ाने और भारत की पशु स्वास्थ्य प्रणालियों को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

इस साल की थीम “पशु स्वास्थ्य के लिए एक टीम की आवश्यकता होती है” पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एकीकृत पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पशु चिकित्सकों, पैरापशु चिकित्सा कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच सहयोगी प्रयासों को बढ़ाना होगा.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला, जिस का उद्देश्य 2030 तक खुरपका और मुंहपका (एफएमडी) रोग को खत्म करना है.

उन्होंने आगे बताया कि देश में अब तक 114.56 करोड़ से अधिक एफएमडी टीके और 4.57 करोड़ ब्रुसेलोसिस टीके लगाए जा चुके हैं. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का लक्ष्य 2025 तक एफएमडी को नियंत्रित करना और टीकाकरण के माध्यम से 2030 तक इसे खत्म करना है.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने देश के पशुपालन क्षेत्र को मजबूत करने में पशुधन की देशी नस्लों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दे कर कहा कि ये नस्लें न केवल स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं, बल्कि टिकाऊ और लचीली पशुधन उत्पादन प्रणाली सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं. इस के साथ ही, उन्होंने उन्नत प्रजनन तकनीकों को अपनाने के महत्व पर बल दिया, विशेष रूप से सैक्स सौर्टेड वीर्य का उपयोग, उत्पादकता और नस्ल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के सौ फीसदी  उपयोग को प्राप्त करने का लक्ष्य.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने ट्रैसबिलिटी और रोग निगरानी के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन (भारत पशुधन) जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों के उपयोग की तारीफ की. जूनोटिक रोगों के बढ़ते खतरे को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत के वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया.

राष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअली शामिल होते हुए पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय ने भारत के पशु चिकित्सा पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक सुधार का आह्वान किया. विश्व पशु चिकित्सा दिवस, 2025 के कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पशु चिकित्सकों ने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिस से भारत विश्व स्तर पर सब से बड़ा डेयरी उत्पादक, टेबल अंडा उत्पादन में दूसरा और चौथा सब से बड़ा मांस उत्पादक बन गया है. साथ ही, भारत आईवीएफ, सैक्स सौर्टेड वीर्य, ​​​​मवेशी टीकाकरण और डेयरी उपकरण निर्माण जैसी उन्नत तकनीकों में आत्मनिर्भर बन गया है.

पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने देशभर में पशु चिकित्सा पेशेवरों की कमी पर भी ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने पशु चिकित्सा शिक्षा सीटों में वृद्धि, पशु चिकित्सा कालेजों में अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना और छात्रों को सर्जरी और पशुधन चिकित्सा देखभाल में व्यावहारिक विशेषज्ञता प्रदान करने वाले पाठ्यक्रम का आग्रह किया और जूनोटिक बीमारियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए अलका उपाध्याय ने राज्यों में एक मजबूत निगरानी प्रणाली, समन्वित टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “पशु चिकित्सक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने में रक्षा की पहली पंक्ति है.”

रोम से वर्चुअल माध्यम से शामिल होते हुए खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहायक महानिदेशक और मुख्य पशुचिकित्सक डा. थानावत तिएनसिन ने वैश्विक वन हेल्थ प्रयासों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की और पशु स्वास्थ्य तैयारी के लिए महामारी कोष के तहत देश को हाल ही में मिली मान्यता की प्रशंसा की.

पशुपालन आयुक्त और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष डा. अभिजीत मित्रा ने सामूहिक टीकाकरण अभियान, बीमारी का जल्द पता लगाने और पशु स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम के उपयोग में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला.

उन्होंने खाद्य प्रणालियों के अदृश्य रक्षक और भविष्य की महामारियों के खिलाफ महत्वपूर्ण रक्षक के रूप में पशु चिकित्सकों की भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने पशु कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंध की ओर ध्यान आकर्षित किया और जोर दे कर कहा कि पशु कल्याण केवल करुणा का कार्य नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ पशुधन सुनिश्चित करने के लिए एक बुनियादी स्तंभ है.

विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 का इस साल का वैश्विक विषय “पशु स्वास्थ्य एक टीम लेता है” है, जो इस विचार को रेखांकित करता है कि पशु स्वास्थ्य एक एकल मिशन नहीं है, बल्कि यह पशु चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और किसानों को शामिल करने वाला एक सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है. इस कार्यक्रम ने पशु स्वास्थ्य की रक्षा में सहयोग की शक्ति पर प्रकाश डाला, यह पहचानते हुए कि पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और किसान एक मजबूत नेटवर्क बनाते हैं, जो न केवल पशुधन, बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करता है.

इस कार्यशाला में पशुपालन में जेनेरिक दवाओं के उपयोग से पहुंच और सामर्थ्य में सुधार, एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों के जूनोटिक संचरण को रोकने में पशु चिकित्सक की भूमिका, एकीकृत रोग निगरानी को मजबूत करना और मानव और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच डेटा साझाकरण के साथसाथ एक आकर्षक औनलाइन राष्ट्रीय प्रश्नोत्तरी पर उच्च प्रभाव वाले तकनीकी सत्र शामिल थे.

इस कार्यक्रम में पशुपालन और डेयरी विभाग की अतिरिक्त सचिव वर्षा जोशी व अतिरिक्त सचिव डा. रमाशंकर सिन्हा के साथसाथ आईसीएआर, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा परिषदों, एफएओ, डब्ल्यूओएएच, डब्ल्यूएचओ के अन्य वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय शोध संस्थानों के निदेशक और कई पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों और हितधारकों ने भाग लिया.

इस कार्यक्रम में 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और पूरे भारत में इस का सीधा प्रसारण किया गया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लिए प्राकृतिक बीज

Natural Farming: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय में ‘प्राकृतिक खेती’ (Natural Farming) विषय पर पिछले दिनों एक प्रशिक्षण आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में भारतीय बीज निगम के चंडीगढ़, अहमदाबाद, जैतसर और सूरतगढ़ के अधिकारियों ने भाग लिया.

प्रशिक्षण के दौरान कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि किसी भी खेती का आधार बीज होता है, ऐसे में प्राकृतिक खेती के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए बीजों की उपलब्धता बहुत जरूरी है. इसीलिए यह विशेष प्रशिक्षण बीज उत्पादन करने वाली संस्थाओं के लिए आयोजित किया गया है.

उन्होंने आगे बताया कि हरित क्रांति से हम ने उत्पादन तो बढ़ाया, पर कैमिकलों के अंधाधुंध उपयोग के चलते प्रकृति एवं इनसानी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव का सामना भी किया है. अब समय है कि हम प्रकृति एवं इनसानी खाने पर कैमिकलों के प्रभाव को जितना हो सके उतना कम या फिर पूरी तरह से खत्म कर सकें.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि प्रकृति के अनुकूल कार्य करना ही हमारी संस्कृति है और  प्रकृति के प्रतिकूल काम करना ही विकृति है. प्राकृतिक खेती में कई नए आयाम को जोड़ कर इसे स्वीकार्य रूप प्रदान कर किसान भाइयों के लिए एक आसान पद्धति तैयार कर सकते हैं.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. शांति कुमार शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन, नई दिल्ली ने बताया कि प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों के मन में कई भ्रांतियां रहती हैं, जिस का अनुसंधान के आधार पर हल करना बहुत जरूरी है.

Natural Farmingउन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती के विचार का उद्भव बहुत समय पहले ही हो चुका है. अब इस को समाज में प्रभावी रूप से प्रचारित करने एवं अपनाने का वक्त है. यदि अब भी रसायनमुक्त खेती के प्रयास नहीं किए गए, तो यह प्रकृति के लिए बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही, डा. शांति कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक खेती के लिए किए गए प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने प्रशिक्षण की जानकारी देते हुए कहा कि उदयपुर केंद्र पर जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर किए गए वृहद अनुसंधान कार्य का ही परिणाम है कि उदयपुर केंद्र राष्ट्र में इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए प्रथम स्थान पर चुना गया है.

डा. अरविंद वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रशिक्षण में प्राकृतिक खेती पर व्याख्यान एवं प्रायोगिक रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिस से प्राकृतिक बीज उत्पादन श्रृंखला को बल मिलेगा.

प्रशिक्षण प्रभारी डा. रविकांत शर्मा ने प्रशिक्षण का प्रारूप रखा और वहां पधारे अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया.

Agriculture Sector : कृषि क्षेत्र को बनाएं रोजगार, मौके हैं हजार

Agriculture Sector: 12वीं की परीक्षा का रिजल्ट जल्दी ही घोषित होने वाला है. छात्र और अभिभावक 12वीं के रिजल्ट आ जाने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए  सोचते हैं. तब तक अच्छे संस्थान में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए बाबा राघव दास कृषक इंटर कालेज भाटपार रानी के सभा  कक्ष में 12वीं के छात्रों एवं अध्यापकों के साथ एक कैरियर काउंसिल किया गया.

इस कैरियर काउंसिल में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या की प्रोफैसर डा. सुमन प्रसाद मौर्य, अध्यक्ष, मानव विकास एवं परिवार अध्ययन ने  छात्रों से उन के भविष्य  की पढ़ाई के बारे में  बताया कि छात्र आगे की पढ़ाई कृषि विश्वविद्यालयों  में कर सकते हैं. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश के 5 कृषि विश्वविद्यालयों में से एक है, जिस को  A++ मिला है.

इस विश्वविद्यालय का  कार्यक्षेत्र पूर्वांचल है, जहां कृषि, उद्यान एवं वानिकी,  मत्स्यपालन, पशुपालन एवं पशु चिकित्सा, कृषि अभियंत्रण   के अलावा सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय भी है. इस महाविद्यालय में स्नातक, परास्नातक एवं पीएचडी की उपाधि के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं.

Agriculture Sector

हर साल इस डिगरी कोर्स में नामांकन के लिए यूपी कैटेट (UP CATET) की संयुक्त परीक्षा होती है. इस के लिए मार्च महीने से ही औनलाइन आवेदन शुरू हो जाते हैं.  आवेदन की अंतिम तारीख 7 मई, 2025 है. यह आवेदन https//updated.net  पर किए जा सकते हैं.

प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य ने छात्रछात्राओं को समझाया कि सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में बीएससी आनर्स के  2 पाठ्यक्रम चलते हैं, जिन की अवधि 4 साल की है. पहला पाठ्यक्रम सामुदायिक विज्ञान (गृह विज्ञान) का है, जिस में गृह विज्ञान के 5 प्रमुख विषयों के विभागों द्वारा वैज्ञानिक एवं कलात्मक ज्ञान एवं कौशल सिखाए जाते हैं.

दूसरा फूड एवं  डाइटिशियन का कोर्स है. इस कोर्स में आहार विज्ञान में रोगियों के उपचार  के बारे में बताया जाता है. यह 4 वर्षीय डिगरी कार्यक्रम व्यावसायिक उपाधि है. इस में वे अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं.

शोध में इच्छुक छात्राएं आगे अपने पसंद के विषय पढ़ सकती  हैं. प्रवेश परीक्षा  आवेदन की प्रक्रिया के बारे में संपूर्ण जानकारी  गूगल पर यूपी कैटेट 2025 सर्च कर आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की साइट पर जा कर इस की विवरण पत्रिका को डाउनलोड कर सकते हैं.

यह विवरणिका चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा निकाला गया है, क्योंकि इस बार की  संयुक्त परीक्षा वे संचालित कर रहे हैं. इस विवरणिका में प्रवेश परीक्षा, विश्वविद्यालय के संबंध में, औनलाइन आवेदन की पद्धति, परीक्षा की पद्धति, पाठ्यक्रमवार सीटों की संख्या एवं काउंसलिंग की पद्धति के बारे में विस्तार से दिया गया है.

इस के साथ ही प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य ने तैयारी के टिप्स भी दिए. प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी  के निदेशक प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने एडमिशन कैरियर के साथसाथ जैविक खेती, पोषण वाटिका पर प्रकाश डाला.

कालेज के प्रधानाचार्य भानु प्रताप सिंह ने छात्रों के साथसाथ  अध्यापकों को भी कहा कि आप सभी कृषि क्षेत्र में बच्चों को अच्छे संस्थानों में नामांकन के लिए प्रोत्साहित करें, जिस से बच्चे अच्छे विश्वविद्यालय से पढ़ कर एक अच्छा नागरिक बनने के साथसाथ  रोजगार भी पा सकें.

Unseasonal Rain : अप्रैल माह में बेमौसम बरसात से फसल सुरक्षा

Unseasonal Rain : अप्रैल में बेमौसम बारिश से गेहूं, प्याज एवं अन्य सब्जियों जैसी फसलों को भारी नुकसान होगा, इस से किसानों की आय प्रभावित होगी और कीमतें बढ़ेगी.

प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपाररानी देवरिया के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश मौर्य सेवानिवृत वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया, कि बेमौसम बारिश (Unseasonal Rain) से उन किसानों को नुकसान होगा जिन्होंने अभी तक गेहूं की फसल की कटाईमड़ाई नहीं की है.

मौसम ठीक होने पर फसल सुखने के बाद तुरंत गेहूं की कटाईमड़ाई कर अनाज को सुखा कर भंडारण करें.

प्याज की फसल में नमी बढ़ने से पत्ते सड़ जाते हैं और प्याज जमीन में सड़ने लगती है. प्याज का रंग और क्वालिटी खराब हो सकती है. इस के साथ ही, लहसुन जो खुदाई की स्थिति में है, उसे भी नुकसान होगा.

बेमौसम बारिश (Unseasonal Rain) से पोस्टहार्वेस्ट गतिविधियों पर असर पड़ सकता है, जिस से जल्द खराब होने वाली फलों व सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. अब और बारिश होती है, तो मिट्टी में नमी बनी रहने से फसल में फंगस, बैक्टीरिया और कीट आदि सहित पीला मोजेक रोग का खतरा बढ़ जाएगा. ऐसे में फसल पीली हो कर सड़ जाएगी.

मक्का की फसलों को हवा चलने के कारण गिरने से नुकसान हाेने की संभावना है. कद्दू वर्गीय सब्जियों में फल सड़ने की आशंका बनेगी. आम के टिकोरे(फल) तेज हवा चलने से गिरेगें. इस के साथ ही दलहनी फसलों में उड़द व मूंग की फसल प्रभावित हो सकती है.

जो किसान खेत से फसल काट कर खलिहान में रखे हैं, वे प्रभावित होगी. मौसम साफ होने पर खलिहान में रखी फसल को फैला कर सुखाएं. किसानों को सलाह दी जाती है, कि जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित करें जिस से फसलों को बचाया जा सके.

जो खेत खाली है उन की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें, जिस से तेज धूप होने से हानिकारक कीट,खरपतवार फंगस आदि नष्ट हो जाएंगे और मृदा की गुणवत्ता बनी रहेगी.

इस के साथ ही, आकाशवाणी, दूरदर्शन से मौसम समाचार समयसमय पर सुनते रहें. मोबाइल पर मौसम ऐप डाउनलोड कर ताजा मौसम की जानकारी ले सकते हैं.

DAP Bags : किसानों को डीएपी की बोरी 1350 रूपए में मिलेगी

DAP Bags : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फास्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों पर खरीफ सीजन, 2025 (01.04.2025 से 30.09.2025 तक) के लिए पोषक तत्व आधारित सब्सिडी  दरें तय करने के लिए उर्वरक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. खरीफ सीजन 2025 के लिए बजटीय आवश्यकता लगभग 37,216.15 करोड़ रुपए होगी. यह रबी सीजन 2024-25 के लिए बजटीय आवश्यकता से लगभग 13,000 करोड़ रुपए अधिक है.

कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस  फैसले पर कहा कि मोदी सरकार निरंतर किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास में लगी है. किसानों की आय बढ़ाने के साथ उत्पादन बढ़ाना भी ज़रूरी है और उत्पादन बढ़ाने के लिए फर्टिलाइजर या खाद की आवश्यकता पर भी ध्यान देना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि उत्पादन बढ़ने के साथ ही फर्टिलाइजर की कीमतें भी नियंत्रित रहे, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता रही है. किसानों पर फर्टिलाइजर विशेषकर डीएपी की बढ़ी हुई लागत का बोझ न आए इसलिए सरकार बढ़ी हुई कीमतों का भार उठाने के लिए विशेष पैकेज देती है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार किसान हितैषी सरकार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 1350 रूपए प्रति बोरी कीमत तय की है, ताकि किसानों को अधिक कीमत न देनी पड़े इस के लिए भारी सब्सिडी किसानों को दी जा रही है.

उन्होंने बताया कि इस साल भी लगभग 1लाख 75 हजार करोड़ रूपए की सब्सिडी किसानों को सस्ती खाद उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने दी है. अब किसानों को डीएपी की बोरी 1350 रूपए में ही मिलेगी. खरीफ के सीजन में ही सस्ती डीएपी देने के लिए 37 हजार 216 करोड़ रूपए विशेष रूप से सब्सिडी दी जाएगी.

इस के साथ ही किसानों के पक्ष में आयातनिर्यात नीति में परिवर्तन किया गया है, चना उत्पादक किसानों के लिए चने पर 10  फीसदी आयात शुल्क लागू करने के फैसले की अधिसूचना कल केंद्र सरकार ने जारी कर दी है, जिस से चना  उत्पादक किसानों को लाभ होगा.

केंद्र सरकार के इस निर्णय पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने के कारण सस्ता चना विदेश से नहीं आएगा. इस से हमारे किसानों को उन की उपज का बाजार में सही दाम मिलेगा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इस साल चने का भी बंपर उत्पादन हुआ है. कृषि के 2024-25 के अग्रिम अनुमान के अनुसार चने का उत्पादन 115 लाख मीट्रिक टन से अधिक होगा जबकि पिछले साल 110 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था.

सरकार ने ऐसे अनेकों किसान हितैषी फैसले किए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंत्र है, कि किसानों को उस के उत्पादन के ठीक दाम दें, इसलिए न केवल उत्पादन की लागत पर 50 फीसदी लाभ दे कर न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी घोषित की जाती है बल्कि, खरीदने की भी उचित व्यवस्था की जाती है.

किसान के उत्पाद की कीमत घटने पर हम आयातनिर्यात नीति को भी किसान हितैषी बनाते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले दिनों आयतित मसूर आई थी. जिस पर जीरो फीसदी आयात शुल्क था. जिस से कीमतें कम होती और किसान को घाटा होता. इसलिए, सरकार ने फैसला किया कि आयतित मसूर पर आयात शुल्क 11 फीसदी वसूली जाएगी.

Group Working : समूह बना कर करेंगे काम, कमाएंगे दाम

उदयपुर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी राजेंद्र नगर, हैदराबाद, तेलंगाना की ओर से महाराणा प्रताप कृषि एंव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय में ‘श्रीअन्न का प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन एवं निर्यात’ विषय पर पांचदिवसीय महिला प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों संपन्न हुआ. प्रशिक्षण में बांसवाड़ा, राजसमंद व उदयपुर जिले की 30 महिलाओं ने हिस्सा लिया.

अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल महिलाओं को पिछले दिनों 25 से 29 मार्च तक विशेषज्ञों ने ‘श्रीअन्न’ के विभिन्न बेकरी आइटम जैसे रागी केक, ज्वार डोनट्स, ओट्स कुकीज, ज्वार ब्रेड, बाजरा लड्डू, ज्वार पापड़, कांगणी नमकीन, बाजरा लच्छा परांठा, ज्वार नान, कांगणी के लड्डू व सावां के फ्राइम, ब्राउनी, कप केक आदि लगभग दो दर्जन खाद्य वस्तुओं को न केवल बनाना सीखा, बल्कि समूह बना कर इन चीजों से कमाई करने का संकल्प लिया.

प्रशिक्षणार्थियों को विशेषज्ञ वेलेंटीना ने केक, कुकीज, ब्राउनी, कप केक बनाना सिखाया, वहीं विजयलक्ष्मी ने पापड़, पापड़ी, लड्डू बनाना सिखाया. हजारी लाल ने नान, बाजरा नान, ज्वार नान व नूडल्स बनाना सिखाया.

एमपीयूएटी में पादप अनुवांशिकी विभाग की हेड प्रो. हेमलता शर्मा ने प्रशिक्षणार्थियों को ‘श्रीअन्न’ यानी मोटे अनाज में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने आह्वान किया कि वे मोटे अनाज को नियमित आहार के काम में लें.

निदेशालय सभागार में आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि पूर्व निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय डा. आईजे माथुर ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान जो भी बेकरी उत्पाद बनाना सीखे हैं, इसे अब व्यवसायिक स्तर पर बनाएं. महिला समूह बना कर अपने उत्पाद बेकरी संस्थानों को दे और मुनाफा कमाएं.

Group Work

कभी मोटे अनाज (श्रीअन्न) यानी बाजरा, ज्वार, रागी, कांगणी, सावां, चीना आदि को ‘गरीबों का भोजन’ माना जाता था, लेकिन आज अमीर आदमी मोटे अनाज के पीछे भाग रहा है. मोटे अनाज में तमाम रोगों को रोकने संबंधी पोषक तत्वों की भरमार है, इसलिए लोग ‘श्रीअन्न’ को अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, राजेंद्र नगर, हैदराबाद के संयुक्त निदेशक डा. गोपाल लाल ने कहा कि लोगों को मोटे अनाज का महत्व समझ में आने लगा है और ‘श्रीअन्न’ की मांग भी बढ़ी है. प्रशिक्षण का ध्येय भी यही है कि सुदूर गांवों के समाज के कमजोर तबके की युवा महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने क्षेत्र में नया र्स्टाटअप शुरू कर सकें.

कार्यकम के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी डा. आरएल सोनी ने प्रतिभागी महिलाओं से आह्वान किया कि अपनेअपने गांव पंहुच कर सब से पहले ‘श्रीअन्न’ के विविध उत्पाद बना कर खुद तो खाएं ही, साथ ही पड़ोसियों व मेहमानों को खिलाएं.

इस के बाद समूह बना कर बड़े पैमाने पर उत्पादन कर स्वरोजगार से जुड़ें. खाद्यान्न उत्पादन में हमारा देश आत्मनिर्भर है, वहीं फलसब्जी व दूध उत्पादन में भी देश शीर्ष पर है. कमी केवल प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग की है. प्रोसैसिंग की उचित व्यवस्था न होने से बड़ी मात्रा में फलसब्जी बेकार हो जाती है.

हैदराबाद से आए प्रमुख वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष एससीएसपी योजना डा. एम. बालाकृष्णन ने कहा कि बाजरा उत्पादन में राजस्थान का नाम देश में अव्वल है. बाजरा डायबिटीज को नियंत्रण में करने का अच्छा माध्यम है. महिलाएं बाजरा व्यंजन बना कर नया धंधा शुरू कर सकती है.

प्रशिक्षण प्रभारी व कार्यक्रम संचालक डा. लतिका व्यास ने बताया कि प्रतिभागी महिलाओं को एक मुफ्त किट, जिस में 3 जार मिक्सर, आलू चिप्स मेकर प्रदान किए गए. साथ ही, मिलेट्स रेसिपी की बुकलेट भी दी गई.

Water Management : विकसित भारत के लिए सतत जल प्रबंधन

Water Management: भारत की प्राथमिक क्षेत्र ‘कृषि’ को रीढ़’ कहा जाता है, क्योंकि यह खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों व कृषि मजदूरों के रूप में लगभग 54 फीसदी कार्यबल प्रदान करता है. यह जान कर खुशी होती है कि भारतीय कृषि ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से पिछले 78 सालों के दौरान पोषक तत्वों, जल उपयोग दक्षता व फसल उत्पादकता के बारे में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है, जिस का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित वैज्ञानिक उन्नत प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को दिया जा सकता है.

यद्यपि, इस क्षेत्र को जलवायु संबंधित प्राकृतिक आपदाओं, मृदा और जल संसाधनों के घटते आधार, छोटी भूमि क्षेत्रों, मृदा और जल प्रदूषण आदि के रूप में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमें अमृत काल 1947 तक विकसित भारत के लिए प्रस्तावित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूल और सतत जल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.

इस अवधि के दौरान भारत 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य ले कर चल रहा है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें कुशल जल संसाधन प्रबंधन और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ बहुआयामी प्रबंधन योजना पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

‘ग्लेशियर संरक्षण : विश्व जल दिवस-2025 का विषय जैसा कि हम 22 मार्च, 2025 को ‘विश्व जल दिवस’ मना रहे हैं, हम अपना ध्यान इस के केंद्रीय विषय यानी ग्लेशियर संरक्षण पर केंद्रित करेंगे.

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालय में लगभग 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं. ग्लेशियर काफी मात्रा में मीठे पानी का भंडारण करते हैं और उन्हें धीरेधीरे छोड़ते हैं, जो मानव जाति के लिए बहुपयोगी है. वे पृथ्वी की जलवायु को संतुलित और विनियमित करने, जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि, पीने के लिए साफ पानी और बिजली उत्पादन के लिए जल संसाधन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

यद्यपि, इन ग्लेशियरों को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के रूप में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. परिणामस्वरूप, भारत के हिमालयी क्षेत्र सहित पूरे विश्व में इन के गलने की उच्च दर देखी जा रही है. इस से हिमनद झीलों का विस्तार होगा, जिस से नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है.

इस के अलावा ग्लेशियर की मात्रा में कमी के चलते कृषि क्षेत्र को जल संसाधनों में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, हमें इस मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित करने की जरूरत है.

सतत जल प्रबंधन एक उपाय

फसल उत्पादन के लिए जल जरूरी है. सिंचाई के लिए बढ़ते जल संसाधनों ने खाद्यान्न उत्पादन में तेजी लाने में काफी योगदान दिया है. देश में शुद्ध बोआई क्षेत्र के 141 मिलियन हेक्टेयर में से शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 78 मिलियन हेक्टेयर (55 फीसदी) है और शेष 63 मिलियन हेक्टेयर (45 फीसदी ) वर्षा सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत है.

वर्तमान में भारत में 112.2 मिलियन हेक्टेयर सकल सिंचित क्षेत्र है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (साल 2015) के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार, 1498 (बीसीएम) की अनुमानित कुल जल मांग की तुलना में उपलब्ध आपूर्ति केवल 1121 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है.

ग्लेशियर पिघलने के कारण कृषि के लिए पानी की उपलब्धता में कमी की पृष्ठभूमि में एकीकृत जल प्रबंधन कार्य योजना पर ध्यान देने की जरूरत है. घरेलू, औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्रों में अतिरिक्त जल की मांग के लिए साल 2050 तक अतिरिक्त 222 बीसीएम पानी की जरूरत होगी. नतीजतन, भारत में कृषि में सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाला पानी वर्तमान में 80 फीसदी से घट कर साल 2050 तक 74 फीसदी होने की उम्मीद है.

उभरते परिदृश्यों को देखते हुए अब चुनौती जल की प्रति इकाई मात्रा में अधिक फसल का उत्पादन करना है. भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक कृषि के लिए संसाधनों की उपलब्धता, खाद्य मांग में वृद्धि की तुलना में धीमी दर से बढ़ेगी और इसलिए कृषि उत्पादों की भविष्य की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें साल 2050 तक जल उत्पादकता में दोगुना वृद्धि करने की जरूरत है.

साल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में कम होते जल संसाधनों से 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के परिदृश्य के तहत हमें अमृत काल (2047) तक कृषि में अपनी सिंचाई दक्षता को 38 फीसदी से 65 फीसदी तक सुधारने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन कार्ययोजना निष्पादित करनी होगी.

जल निकायों के पुनरुद्धार के माध्यम से प्रति व्यक्ति जल भंडारण में वृद्धि 2050 तक भारत की आबादी 1.67 बिलियन होने की संभावना है, जिस के परिणामस्वरूप जल, भोजन और ऊर्जा की मांग में वृद्धि होगी. व्यापक बांध निर्माण गतिविधियों के रूप में भारत सरकार द्वारा की गई पहलों के कारण, भारत में बड़े बांधों (जलाशयों) की कुल संख्या 5264 के आंकड़े को पार कर चुकी है. इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 171.1 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का लगभग 66.36 फीसदी यानी 257.8 बीसीएम है. यद्यपि, भारत के प्रति व्यक्ति भंडारण को 190 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति के वर्तमान स्तर से सुधारने की आवश्यकता है.

एक प्रमुख चिंता जलाशयों में अवसादन है, जो भंडारण क्षमता को काफी कम कर देता है. भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए, अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए जलाशय नियंत्रण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से जल भंडारण बुनियादी ढांचे का निर्माण महत्वपूर्ण है और भारत सरकार का अमृत सरोवर मिशन जिसे वर्ष 2022 में शुरू किया गया था, उस के द्वारा 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण या नवीनीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हमें उच्च जल उपयोग दक्षता प्राप्त करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों से मेल खाते हुए उपयुक्त फसल पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता है. चावल और गन्ने जैसी जल गहन फसलों से दलहन और तिलहन जैसी कम जल मांग वाली फसलों को चरणबद्ध तरीके से फसल विविधीकरण कर बड़े क्षेत्र में फसलों की खेती करने की आवश्यकता है, जिस से कि अधिक से अधिक संख्या में छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे.

हालांकि, फसल विविधीकरण योजना वर्षा, मिट्टी के प्रकार, जल के अंतर, मौजूदा फसल उत्पादकता और किसानों की शुद्ध आय पर विचार करते हुए एक सूचकांक पर आधारित होनी चाहिए.

सूक्ष्म सिंचाई और सुनियोजित जल प्रबंधन की जरूरत

भारत में सूक्ष्म सिंचाई के तहत 3.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र (साल 1992) से बढ़ कर 16.7 मिलियन हेक्टेयर (साल 2023) हो गया है. यद्यपि, सूक्ष्म सिंचाई की सांद्रता कुछ ही राज्यों में है और हमें इसे अन्य राज्यों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहां संभावनाएं मौजूद हैं. भारत के 5 राज्य कर्नाटक (2.42 मिलियन हेक्टेयर), राजस्थान (2.09 मिलियन हेक्टेयर), महाराष्ट्र (2.03 मिलियन हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (1.92 मिलियन हेक्टेयर) और गुजरात (1.70 मिलियन हेक्टेयर) मिल कर सूक्ष्म सिंचाई में लगभग 70 फीसदी  (10.16 मिलियन हेक्टेयर) का योगदान करते हैं. अमृत काल 2047 तक सूक्ष्म सिंचाई के तहत इष्टतम क्षेत्र प्राप्त करने के लिए, विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए सभी संभावित राज्यों में सिंचाई के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के प्रयास किए जाने चाहिए.

हमें सुनियोजित/सटीक सिंचाई प्रणाली पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो सही समय पर और सही तरीके से पौधे को इष्टतम मात्रा में जल आपूर्ति को सुनिश्चित करता है. यह परिवर्तनीय दर सिंचाई के माध्यम से जल तनाव के संदर्भ में भूमि के विषमता कारक को भी संबोधित करता है. सूचना प्रौद्योगिकी, मशीन लर्निंग, भौगोलिक स्थिति प्रणाली (जीपीएस), भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), ड्रोन आधारित निगरानी और स्वचालन में आधुनिक विकास के आगमन के साथ, आईओटी सक्षम सटीक सिंचाई प्रणाली अब और अधिक मजबूत हो गई है.

हाल की प्रगति ने सतह और भूजल सिंचाई दोनों में स्वचालन के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान की है, जो अधिकतम जल उपयोग दक्षता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है. जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मृदा नमी सैंसर आधारित स्वचालित बेसिन सिंचाई प्रणाली में 3 मुख्य इकाइयां शामिल हैं : एक संवेदन इकाई, एक संचार इकाई और एक नियंत्रण इकाई है और यह गेहूं में पारंपरिक मैन्युअल रूप से नियंत्रित प्रणाली की तुलना में 25 फीसदी पानी की बचत में मदद करता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रदान की गई तकनीकी सहायता से राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा विकसित राज्य विशिष्ट जल प्रबंधन कार्ययोजनाओं को भारतीय कृषि की जीत सुनिश्चित करने के लिए कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है. ये योजनाएं संबंधित राज्यों में कृषि पारिस्थितिक स्थितियों और जल संसाधन उपलब्धता और फसल जल की मांग को देखते हुए तैयार की गई हैं.

कुलमिला कर, सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. समय की मांग है कि संस्थागत और तकनीकी दोनों हस्तक्षेपों को एकीकृत किया जाए और जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसानों के खेतों में अच्छी तरह से सिद्ध औन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ाया जाए, जिस से अमृत काल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा किया जा सके.