Agricultural Science Centers को मिला आईएसओ का दर्जा

उदयपुर : 21 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध सभी कृषि विज्ञान केंद्रों (Agricultural Science Centers) को आईएसओ 9001: 2015 प्रमाणपत्र मिलने के साथ ही प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी इस उपलब्धि से नवाजा गया. अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) प्रमाणपत्र मिलने से वैश्विक स्तर पर प्रसार सेवाओं को न केवल बढ़ावा मिलेगा, बल्कि किसानों का और अधिक जुड़ाव होगा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने यह जानकारी देते हुए बताया कि एमपीयूएटी के इतिहास में यह उपलब्धि मील का पत्थर साबित होगी. आईएसओ प्रमाणपत्र मिलने से एमपीयूएटी की देशविदेश में ख्याति बढ़ेगी. साथ ही, केवीके की प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता, कर्मचारी सहभागिता, कानून व नियमों की अनुपालना और वैश्विक व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी.

इन केवीके को मिला आईएसओ प्रमाणपत्र

कृषि विज्ञान केंद्र – बोरवट फार्म- बांसवाड़ा, रिठोला- चित्तौड़गढ़, फलोज- डूंगरपुर, बसाड़- प्रतापगढ़, धोइंदा- राजसमंद और सियाखेड़ी- उदयपुर द्वितीय. सुवाणा- भीलवाड़ा प्रथम और अरणियाघोड़ा- भीलवाड़ा द्वितीय को पहले ही आईएसओ प्रमाणपत्र मिल चुका है. इस तरह प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी यह प्रमाणपत्र दिया गया है.

ये गतिविधियां बनीं मुख्य आधार

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्रों पर हालांकि किसान हित से जुड़ी अनेकों गतिविधियां संचालित होती हैं, लेकिन भीलवाड़ा की तर्ज पर सभी आईएसओ प्राप्त केवीके में विभिन्न प्रदर्शन इकाईयां जैसे सिरोही बकरी, प्रतापधन मुरगी, डेयरी, चूजापालन, वर्मी कंपोस्ट, वर्मीवाश, प्राकृतिक खेती इकाई, नर्सरी, नेपियर घास, वर्षा जल संरक्षण इकाई, बायोगैस, मछलीपालन, कम लागत से तैयार हाइड्रोपौनिक, हरा चारा उत्पादन इकाई, आंवला, अमरूद एवं नीबू का मातृवृक्ष बगीचा, बीजोत्पादन एवं क्राप केफैटेरिया आदि के माध्यम से किसान समुदाय के लिए समन्वित कृषि प्रणाली के उद्यम स्थापित कर, स्वरोजगार पैदा कर एवं आजीविका को सुदृढ कर आत्मनिर्भर किया जा रहा है.

ऐसे में किसानों का गांव से शहरों की ओर पलायन कम हुआ है. यही नहीं, किसान समुदाय के फसल उत्पादन और अन्य कृषि उत्पादों का समय पर विपणन होने से आमदनी में भी इजाफा हुआ है. इस के अलावा कृषि विज्ञान केंद्रों में समयसमय पर किसान मेलों, किसानवैज्ञानिक संवाद, किसान गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, महत्वपूर्ण दिवस, प्रदर्शन आदि प्रसार गतिविधियों का आयोजन कर कृषि नवाचार की सफल तकनीकियों का हस्तांतरण किया जा रहा है.

मुरगीपालन (Poultry Farming) व्यवसाय की सीखी बारीकियां

जयपुर: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना एवं अखिल भारतीय कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में झाड़ोल व फलासिया के स्वयं सहायता समूहों की 30 महिलाओं एवं गुडली के 40 किसान परिवारों के लिए मुरगीपालन (Poultry Farming) व्यवसाय का दोदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम राजस्थान कृषि महाविद्यालय में आयोजित किया गया.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत 10 महिला समूहों के गठन के साथ ही उन्हें कृषि संबंधित विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है. इस के लिए झाड़ोल व फलासिया में 10 महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है.

Poultry Farming

परियोजना प्रभारी डा. विशाखा बंसल ने बताया कि इन 2 दिनों में महिलाओं को मुरगीपालन व्यवसाय की तमाम बारीकियां सिखाई गईं जैसे कि मुरगियों को दाना कब और कैसे देना, मुरगियों का बाड़ा तैयार करना, टीकाकरण, अंडे एकत्रित करना आदि.

प्रशिक्षण में डा. गजानंद, डा. सुभाष, डा. डीपीएस डूडी, देवीलाल मेघवाल, डा. केसराम, डा. मनोज आदि ने मुरगीपालन की विस्तृत जानकारी दी. प्रशिक्षण में स्वयं सहायता समूहों को आय संवर्धन से जोड़ कर स्वावलंबी बनाने पर विशेष जोर दिया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम में कार्तिक सालवी, डा. कुसुम शर्मा व अनुष्का तिवारी ने महिलाओं को पशुपालन इकाई का भ्रमण करवाया.

Agricultural Science Fair: दिल्ली में तीनदिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेला

22 फरवरी, 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली द्वारा आयोजित तीनदिवसीय “पूसा कृषि विज्ञान मेला 2025” का उद्घाटन केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया. इस अवसर पर उन्होंने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, आईएआरआई के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव, उपमहानिदेशक डा. डीके यादव सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी और बड़ी संख्या में किसान भाईबहन, कृषि वैज्ञानिक, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप के प्रतिनिधि, खाद्य प्रसंस्करणकर्ता आदि उपस्थित रहे.

उद्घाटन भाषण में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प पूरा करने के लिए लगातार कृषि के क्षेत्र में हम काम कर रहे हैं. मैं भी किसान हूं, मेरे खेत में कद्दू लगा है, शिमला मिर्च भी है और टमाटर भी है. जब क्रौप बंपर आती है, तो कीमतें कई बार गिरती हैं. मैं फूलों की खेती भी करता हूं, गेहूं और धान की खेती भी करता हूं. मैं ऐसा किसान नहीं हूं कि मंत्री हूं तो साहब बन गया हूं, मैं महीने में 2 बार अपने खेत में पहुंचने की कोशिश करता हूं.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आईसीएआर (ICAR) को बधाई देते हुए कहा कि आज जो किस्में दिखाई हैं, वे अपनेआप में बड़ी उपलब्धि हैं. वैज्ञानिक दिनरात मेहनत कर रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि हमारी 6 सूत्रीय रणनीति है. नंबर एक है उत्पादन बढ़ाना. उत्पादन बढ़ाने के लिए सब से प्रमुख चीज है अच्छे बीज. अच्छे बीज की वैरायटी बनाने का काम आईसीएआर (ICAR) कर रही है. हम कोशिश कर रहे हैं कि कैसे अच्छे बीज किसानों तक पहुंचें. ब्रीडर सीड, फाउंडेशन सीड के लिए हम तरीका निकालें कि कैसे वे किसान तक पहुंचें. बीज पहुंचाने के लिए विज्ञान और किसान को जोड़ना पड़ेगा. लैब टू लैंड, यह हम ने एक प्रयोग शुरू किया है आधुनिक कृषि चौपाल.

उन्होंने आईसीएआर (ICAR) को निर्देशित किया कि इस काम को अपने हाथ में ले ले. अगले महीने से आधुनिक कृषि चौपाल आईसीएआर (ICAR) करेगा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने बताया कि दूसरा प्रमुख काम है, उत्पादन लागत घटाना. उत्पादन बढ़ने से लागत घटती है. इस संबंध में कई योजनाएं भी हैं.

उन्होंने बताया कि 24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर में किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के खाते में राशि भेजेंगे.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने बताया कि मैं बिहार में मखाना उत्पादकों के बीच जाऊंगा, मखाना कैसे बोते हैं, वे देखेंगे. इस के पहले मैं सुपारी उत्पादकों के बीच गया था. अभी मैं ने पूसा में इंटीग्रेटेड फार्म देखा. एक हेक्टेयर में मछलीपालन, मुरगीपालन, तालाब था.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि हमें किसानों की लागत का इंतजाम भी करना है. किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दी गई है. इस से फलसब्जी के किसान को फायदा मिलेगा.

उन्होंने बताया कि तीसरा कार्य है, उत्पादन का ठीक दाम देना. इस के लिए लगातार एमएसपी (MSP) पर बढ़ोतरी की गई है. किसान का गेहूं, चावल तो सरकार खरीदेगी ही, मसूर, उड़द, तुअर भी पूरी खरीदी जाएगी. इन चीजों का उत्पादन तब बढ़ेगा, जब उन को अच्छे दाम मिले. किसान जहां बेचता है, वहां सस्ता बिकता है और दिल्लीमुंबई में आ जाए तो महंगा हो जाता है. अभी टमाटर के रेट कम हो गए. हम ने योजना बनाई है कि नेफेड के माध्यम से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च केंद्र सरकार चुकाएगी, जिस से किसान को ठीक दाम मिलें.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सोयाबीन के रेट घटे, तो बाहर से आने वाले तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी 27.5 फीसदी कर दी. चावल के निर्यात पर प्रतिबंध था, हम ने उसे हटाया और एक्सपोर्ट ड्यूटी कम की. बीच का मुनाफा जो है, वह घटना चाहिए, इस को ले कर हम वर्कआउट कर रहे हैं.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि मैं किसान संगठनों से नियमित मिलता हूं, मैं आज कुरुक्षेत्र जाऊंगा, चंडीगढ़ भी जाऊंगा. मुझे किसानों से सुझाव मिलते हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बताया कि लाल मिर्ची की कीमत कम हो गई है. हम ने तय किया कि लाल मिर्ची को हम एमआईएस (MIS) योजना के तहत खरीदने की अनुमति देंगे.

उन्होंने कहा कि इसी तरह चौथा प्रमुख कार्य है कि जब प्राकृतिक आपदा में फसल खराब होती है, उस के लिए हम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से मदद करते हैं. किसानों को जो लोन मिलता है, वह 7 लाख करोड़ से बढ़ कर 25 लाख करोड़ रुपए हो गया है.

शिवराज सिंह ने किसान भाइयों को आमंत्रित किया कि जो सुझाव हो, दीजिए, उसे हम वर्कआउट करेंगे.

उन्होंने कहा कि विकसित भारत तभी बनेगा, जब कृषि उन्नत होगी. आज जो नई किस्म का प्रदर्शन हुआ है, कोशिश होगी कि जल्दी से जल्दी वह किसान तक पहुंचें.

उन्होंने बताया कि मैं ने मध्य प्रदेश में किसान के लिए योजना बनाई, तो किसान के बीच बैठ कर बनाई. मैं कल मखाने के पोखर में उतरूंगा और देखूंगा कि कैसे मखाने की खेती होती है. इसलिए अब वैज्ञानिक भी खेत में उतरेंगे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एक समय था, जब भारत को अमेरिका से पीएल 480 गेहूं मंगवा कर खाना पड़ता था, जबकि आज भारत कई देशों का पेट भर रहा है. ये हमारे किसानों की मेहनत से हुआ है. ऐसे कई प्रयत्न हमें करने हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एक बात और है कि अपने देश में कोई चीज हो न हो, 5 साल, 12 महीने चुनाव की तैयारी चलती रहती है. सालभर नहीं हुआ, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव हुए, फिर लोकसभा चुनाव, फिर महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मूकश्मीर, हरियाणा के चुनाव और उस के बाद दिल्ली का दंगल. इस चुनाव की तैयारी में सारे काम ठप हो जाते हैं, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, अधिकारी सब चुनाव में लग जाते हैं. लांग टर्म की प्लानिंग नहीं हो पाती. अगर संशोधन कर के ये तय कर दिया जाए कि सभी चुनाव एक बार में होंगे, तो कैसा रहेगा? आओ, इस किसान मेले में संकल्प लें कि 5 साल में एक बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव होना चाहिए, ताकि सभी लोग जनता की सेवा में लग सकें.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने “नवोन्मेषी कृषक” और “अध्येता कृषक” पुरस्कारों से किसानों को सम्मानित किया, जिन्होंने अपनी खेती में नई तकनीकों को अपना कर अनुकरणीय कार्य किए हैं.

मेले के दौरान किसानों को नवाचारों और वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. मेले में किसानों के लिए उन्नत बीज, जैविक खाद, जलवायु अनुकूल तकनीक, ड्रोन स्प्रे तकनीक, स्मार्ट सिंचाई तकनीक और बाजार लिंकेज जैसी महत्वपूर्ण जानकारी 300 से अधिक स्टाल के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. इस आयोजन से किसानों को नई तकनीकों को अपनाने, वैज्ञानिकों से सीधे बात करने और अपनी खेती को लाभदायक बनाने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिला है.

Agricultural Fair: पूसा संस्थान के कृषि मेलों में मीडिया संस्थानों को मिलेगा फ्री स्टौल

Agricultural Fair: पूसा संस्थान,नई दिल्ली में इस साल 22 से ले कर 24 फरवरी तक कृषि मेला (Agricultural Fair) लगेगा. इस बाबत 17 फरवरी को पूसा संस्थान में प्रैसवार्ता हुई थी, जिस की शुरुआत डा. आरएस बाना ने सभी का स्वागत करते हुए की.

उस के बाद पूसा संस्थान के नवनियुक्त डायरैक्टर डा. सीएच श्रीनिवास राव और डा. आरएन पंडारिया, जौइंट डायरैक्टर ऐक्सटैंशन ने सभी मीडिया वालों को संबोधित किया. उस के बाद संस्थान के अनेक कृषि वैज्ञानिकों ने भी कृषि जगत और इस मेले से जुड़ी जानकारी दी.

प्रैसवार्ता में चर्चा के दौरान ‘फार्म एन फूड’ के प्रतिनिधि ने अपनी बात सामने रखते हुए कहा कि मीडिया वाले आप का मेला कवर करते हैं, आप के संस्थान की गतिविधियों को आगे पहुंचाने का काम करते हैं, लेकिन कृषि मेले के लिए हमें फ्री स्टौल जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं होती है.

अगर हमें पूसा मेले में स्टौल लेना है, तो मीडिया संस्थान को भी तय दर पर रकम का भुगतान करना होता है.

 

इस पर वहां मौजूद डा. आरएन पंडारिया ने आश्वासन दिया कि हम ने यह सब नोट कर लिया है और अब मीडिया के लिए नि:शुल्क स्टौल मिलेगा. उस में आप की हर सुविधा का ध्यान रखा जाएगा. आप वहां से अपना प्रचार कर सकते हैं, काम कर सकते हैं.

बाद में ‘फार्म एन फूड’ के प्रतिनिधि द्वारा दिल्ली प्रैस द्वारा कराए जा रहे  ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के बारे में भी जानकारी दी गई और बताया गया  कि हम अलगअलग राज्यों में इस अवार्ड समारोह का आयोजन करते रहे हैं और आने वाली 28 फरवरी को भोपाल में 16 कैटेगिरी में यह समारोह होने जा रहा है.

इस से पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी हम इस का सफल आयोजन कर चुके हैं.

संवाद के दौरान पूसा के बड़े अधिकारियों को यह भी बताया गया कि आप के संस्थान से डा. नफीस अहमद हमारे अवार्ड समारोह के जूरी मैंबर भी रहे हैं.

प्रैसवार्ता के अंत में दिल्ली प्रैस संस्थान की तरफ से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं का सैट भी भेंट किया गया.

पूसा कृषि विज्ञान मेला (Pusa Agricultural Science Fair) 2025

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का पूसा कृषि विज्ञान मेला 2025 22 फरवरी से 24 फरवरी में आयोजित होने जा रहा है. मेले का विषय “उन्नत कृषि विकसित भारत” है.

इस उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान होंगे. रामनाथ ठाकुर, राज्य मंत्री, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि होंगे. भागीरथ चौधरी, राज्य मंत्री, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय 24 फरवरी, 2025 को आयोजित समापन सत्र के मुख्य अतिथि होंगे. डा. हिमांशु पाठक, सचिव डेयर और महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद उद्घाटन और समापन सत्र की अध्यक्षता करेंगे.

इस साल के पूसा कृषि विज्ञान मेले के मुख्य आकर्षण होंगे :

– भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित नई किस्मों और तकनीकों का लाइव  प्रदर्शन.

– भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद  के संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों, एफपीओ, उद्यमियों, स्टार्टअप्स, सार्वजनिक और निजी कंपनियों द्वारा नवीन तकनीकों, उत्पादों और सेवाओं की प्रदर्शनी.

– तकनीकी सत्र और किसानों वैज्ञानिकों के साथ संवाद, जो जलवायु अनुकूल कृषि, फसल विविधीकरण, डिजिटल कृषि, युवाओं और महिलाओं का उद्यमिता विकास, कृषि विपणन, किसान संगठन और स्टार्टअप्स, और किसानों के नवाचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित होंगे.

– पूसा द्वारा विकसित फसलों की किस्मों की बिक्री.

– मेले के दौरान कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषि सलाह.

जलवायु जोखिम और पोषण के बढ़ते महत्व को समझते हुए पूसा संस्थान में अनुसंधान जलवायु अनुकूल किस्मों और बायोफोर्टिफाइड किस्मों के विकास पर केंद्रित है, जो उच्च उत्पादकता के साथ बेहतर पोषण सुरक्षा प्रदान करता है.

साल 2024 के दौरान 10 विभिन्न फसलों में कुल 27 नई किस्में विकसित की गई हैं, जिन में 7 गेहूं की किस्में, 3 चावल, 8 संकर मक्का, 1 संकर बाजरा, 2 चने की किस्में, 1 अरहर संकर, 3 मूंग दाल की किस्में, 1 मसूर की किस्म, 2 डबल जीरो सरसों की किस्में और 1 सोयाबीन की किस्म शामिल हैं. इन में 16 किस्में और 11 संकर किस्में हैं.

बदलते जलवायु परिदृश्य के तहत पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 10 जलवायु अनुकूल और बायोफोर्टिफाइड किस्मों का विकास किया गया है, जिस में 7 अनाज और मिलेट्स, 2 दालें और 1 चारा किस्म शामिल है.

संस्थान ने बासमती धान उत्पादन और व्यापार में श्रेष्ठ किस्मों के विकास के माध्यम से विशाल योगदान दिया है. पूसा बासमती धान की किस्मों में पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509 और उन्नत बासमती धान की किस्में, जिन में बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता है, जैसे पीबी-1847, पीबी-1885 और पीबी-1886.

साल 2023-2024 में भारत से 5.2 मिलियन टन बासमती धान के निर्यात से 48,389 करोड़ रुपए की आय में लगभग 90 फीसदी योगदान करती है. अप्रैल, 2024 से नवंबर, 2024 तक पूसा के बासमती धान से निर्यात आय 31,488 करोड़ रुपए तक पहुंची है. 2 छोटी अवधि वाली धान की किस्में पूसा 1824 और पूसा 2090 विकसित की गई हैं, जो बाद में रबी फसल के खेतों की तैयारी के लिए पर्याप्त समय प्रदान कर सकती हैं.

पूसा आरएच 60 एक उच्च उपज वाली, छोटी अवधि वाली सुगंधित धान की संकर किस्म है, जिस में लंबे, पतले दाने होते हैं, जो बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए सब से मुफीद है. पूसा नरेंद्र केएन-1 और पूसा सीआरडी केएन-2 उन्नत काला नमक धान की किस्में हैं, जिन में बेहतर प्रतिरोधक क्षमता और उच्च उपज है, जो उत्तर प्रदेश के लिए अनुशंसित हैं.

पूसा के अनुसंधान कार्यक्रम ने पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया और 8 बायोफोर्टिफाइड किस्मों का विकास किया. एक गेहूं की किस्म (एचआई-1665) और एक ड्यूरम गेहूं की किस्म (एचआई-60 पीपीएम), प्रोविटामिन ए (6.22पीपीएम), उच्च लाइसीन (4.93 फीसदी) और ट्रिप्टोफैन (1.01 फीसदी) से समृद्ध किया गया है.

पूसा बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर-4 को उच्च प्रोविटामिन A, लाइसीन, ट्रिप्टोफैन से बायोफोर्टिफाइड किया गया है. पूसा पौपकौर्न संकर-1 और संकर-2 उच्च पौपिंग फीसदी और बटरफ्लाई प्रकार के पौप किए गए फ्लैक्स प्रदान करते हैं, जो एनडब्ल्यूपीजेड और पीजेड क्षेत्रों के लिए अनुशंसित हैं. पूसा एचएम-4 मेल स्टीराइल बेबीकौर्न-2 एक मेल स्टीराइल आधारित संकर है, जिसे एनईपीजेडपीजेड और सीडब्ल्यूजेड क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है.

2 डबल जीरो सरसों की किस्में (पूसा सरसों-35 और पूसा सरसों-36), जिन में एरूसिक अम्ल और ग्लूकोसिनोलेट्स कम होते हैं. समय पर बोई गई सिंचित परिस्थितियों में यह उच्च उपज प्रदान करती हैं, जो क्षेत्र-III (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान) के लिए उपयुक्त हैं. पूसा-1801 (एमएच 2417) बाजरा की एक द्विउद्देश्यीय किस्म (अनाज और चारा) है, जो उच्च लोहा (70 पीपीएम) और जिंक (57 पीपीएम) से युक्त बायोफोर्टिफाइड किस्म हैं. यह कई रोगों के प्रति प्रतिरोधक है और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए सब से उपयुक्त है.

चने की किस्म पूसा चना विजय 10217 उच्च उपज वाली किस्म है, जो फ्यूजेरियम विल्ट के प्रति प्रतिरोधक है. उत्तर प्रदेश में यह सिंचित परिस्थितियों के लिए अनुशंसित है. चने की किस्म पूसा-3057 में उच्च प्रोटीन (24.3 फीसदी) है और कई रोगों, जैसे फ्यूजेरियम विल्ट (उकठा), कौलर रोट (तना गलन) और ड्राई रूट रोट (जड़ गलन) के प्रति प्रतिरोधक है.

यह पोड बोरर (फली बेधक सूँडी) के प्रति भी मध्यम प्रतिरोधक है और इस के बीज आकर्षक रंग और बड़े आकार के होते हैं.

अरहर की किस्म पूसा अरहर हाइब्रिड-5 उच्च उपज वाली किस्म है (औसतन 23.35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक, और संभावित उपज 25.46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, जो एसएमडी, फाइटोफोथोरा स्टेम ब्लाइट, मैक्रोफोमिना ब्लाइट (अंगमारी) और अल्टरनेरिया लीफ स्पौट (पत्ती धब्बा रोग) के प्रति प्रतिरोधक है और यह दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा छोटे किसानों के लिए 1.0 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए एक एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है, जिस में फसलें, डेयरी, मछलीपालन, बतखपालन, बायोगैस संयंत्र, फलदार पेड़ और कृषि वनस्पति शामिल हैं. इस मौडल में प्रति हेक्टेयर हर साल 3 लाख, 79 हजार रुपए तक की शुद्ध आय प्राप्त करने की क्षमता है. इसी तरह, पूसा संस्थान द्वारा 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है, जिस में पौलीहाउस, मशरूम की खेती के साथसाथ फसल और बागबानी आदि गतिविधियां भी शामिल हैं. इस मौडल से प्रति एकड़ हर साल एक लाख, 75 हजार 650 रुपए की शुद्ध आय पैदा करने की क्षमता है.

बागबानी आधारित फसल विविधीकरण किसानों के बीच लोकप्रिय रहा है. सब्जियों, फलों और फूलों की खेती लाभदायक रही है, जबकि फलों और सब्जियों की खेती पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने में भी उपयोगी है.

सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए संस्थान ने  48 सब्जी फसलों में 268 सुधारित सब्जी किस्में विकसित की हैं, जिन में 41 संकर और 227 किस्में शामिल हैं. आईएआरआई ने गाजर (पूसा प्रतीक, पूसा रुधिरा, पूसा असिता), भिंडी (पूसा लाल भिंडी-1), भारतीय सेम (पूसा लाल सेम), ब्रोकोली (पूसा पर्पल ब्रोकोली-1) और विटामिन सी से भरपूर पालक की किस्म (पूसा विलायती पालक) जैसे पोषणयुक्त किस्में विकसित की हैं, ताकि कुपोषण की समस्या का समाधान किया जा सके.

यलो वेन मोजेक वायरस (वेयूएमवी) प्रतिरोधी और ए नैशन लीफ कर्ल वायरस (ईएलसीवी) सहिष्णु भिंडी की किस्में (पूसा भिंडी-5 और डीओएच-1) पैस्टिसाइड्स के उपयोग को कम करने और खेती की लागत में कमी लाने के लिए विकसित की गई हैं.

हाल के सालों में बैंगन की 6 किस्में और एक संकर, प्याज की 3 किस्में, खीरे की 2 किस्में और 1 संकर, भारतीय सेम की 3 किस्में, करेला की 3 संकर किस्में और खरबूजे की 2 किस्में और 1 संकर विकसित की गई हैं. 2 सौफ्टसीडेड अमरूद की किस्में, पूसा आरुषि (लाल गूदा) और पूसा प्रतीक्षा (सफेद गूदा), साथ ही, एक उभयलिंगी, सैमीड्वार्फ पपीता किस्म, पूसा पीत भी विकसित की गई है.

एक गेंदा किस्म, पूसा बहार को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जोन IV, V, VI और VII में विमोचन के लिए अनुशंसा की गई है. साल 2018-19 में (239.861 टन) से ले कर साल 2023-24 में (975.478 टन) तक गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन चौगुना से अधिक बढ़ा है.

जैव रसायन संभाग द्वारा विकसित पोषणयुक्त खाद्य उत्पादों में डिवाइन डो (बाजरे का आटा, जिस में गुणवत्ता वाली प्रोटीन, प्रतिरोधी स्टार्च, फाइबर और सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे Fe और Zn होते हैं) शामिल हैं. पर्लीलोफ एक ग्लूटनमुक्त ब्रेड प्री-मिक्स है, जो पूरी तरह से बाजरा से बनाया गया है, जो गेहूं आधारित ब्रेड का पोषणयुक्त विकल्प प्रदान करता है. इस का ग्लाइसैमिक इंडेक्स (पीजीई 68-69 फीसदी) कम है, जो रक्तशर्करा के प्रबंधन में मदद करता है, जबकि यह फाइबर, आवश्यक खनिजों और बायोएक्टिव यौगिकों से भरपूर होता है.

पूसा संस्थान द्वारा एक त्वरित रंगमापी परीक्षण किट ‘स्पीडीसीड व्यायबिलिटी किट’ विकसित की गई है, जो 1–4 घंटे के भीतर बीज के प्रकार के आधार पर जीवित और अव्यायी बीजों के बीच अंतर करने में सक्षम है. इस किट में एक सूचक घोल शामिल है, जो जीवित बीजों द्वारा छोड़े गए CO₂ को पकड़ने पर रंग बदलता है. पूसा एसटीएफआर मीटर, जिसे पूसा संस्थान द्वारा विकसित किया गया है, एक कम लागत, यूजर फ्रेंडली, डिजिटल एम्बेडेड सिस्टम और प्रोग्रामेबल उपकरण है, जो 14 महत्वपूर्ण मृदा मापदंडों का विश्लेषण करने के लिए है, जिस में गौण और सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि मृदा pH, EC, जैविक कार्बन, उपलब्ध N (जैविक कार्बन से व्युत्पन्न), P, K, S, B, Zn, Fe, Cu, Mn, साथ ही, चूना और जिप्सम की आवश्यकता का परीक्षण किया जा सकता है.

पूसा डीकंपोजर, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है, एक पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और आर्थिक रूप से प्रभावी सूक्ष्मजीव समाधान है, जो स्थल पर और स्थल के बाहर अवशेष प्रबंधन के लिए है.

पूसा डीकंपोजर को तैयार व उपयोग पाउडर रूप में भी किया गया है. यह पाउडर पूरी तरह से पानी में घुलने योग्य है और इसे आसानी से यांत्रिक स्प्रेयर के साथ उपयोग किया जा सकता है. खेत में धान के पुआल के विघटन के लिए प्रति एकड़ 500 ग्राम की सिफारिश की जाती है.

पूसा फार्म सन फ्रिज, जिसे संस्थान द्वारा विकसित किया गया है, एक औफ-ग्रिड, बैटरीरहित सौर संवर्धित और वाष्पन शीतलक संरचना है. इस प्रौद्योगिकी का उद्देश्य खेतों में एक सौर शीतलक भंडारण केंद्र स्थापित करना है. इस ठंडे भंडारण का उपयोग नाशवान वस्तुओं के भंडारण के लिए किया जाता है.

“पूसा मीफ्लाई किट” और “पूसा क्यूफ्लाई किट” तैयार व उपयोग किट हैं, जो क्रमशः फलमक्खी की समस्या को विभिन्न प्रकार के फल और ककड़ी सब्जियों में प्रबंधित करने के लिए हैं. यह एक विशिष्ट और प्रभावी तरीका अपनाती है, जो बैक्ट्रोसेरा प्रजाति के नर फलमक्खियों को आकर्षित करने और नष्ट करने के लिए पैराफेरोमोन इन्प्रेग्नेशन का उपयोग करती है. यह पूरे मौसम के लिए पर्याप्त होती है. विभिन्न किटों को रोग प्रबंधन के लिए विकसित किया गया है.

चिली लीफ कर्ल वायरस और मूंगफली पीले मोजेक वायरस का त्वरित निदान करने के लिए प्वाइंट औफ केयर डायग्नोस्टिक किट और ईजी पीसीआर डिटेक्शन किट विकसित की गई हैं. पूसा धान बकानी परीक्षण किट को बीज और मृदा में बकानी रोग का कारण बनने वाले पैथोजन (रोग कारक) की पहचान करने के लिए विकसित किया गया है.

बढ़ते तापमान (temperature) से रबी की फसलों पर प्रभाव

सर्दी में जहां तापमान (temperature) घटना चाहिए, वहां अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी का असर फसलों की बढ़वार और पैदावार पर होने की संभावना बढ़ गई है. पिछले दिनों से हर दिन बढ़ते तापमान (temperature) को ले कर अब कृषि विशेषज्ञ भी रबी की फसलों में 10 फीसदी तक की गिरावट मानने लगे हैं. पिछले एक सप्ताह से हर दिन बढ़ रहे तापमान (temperature) और बढ़ती गरमी का असर रबी की फसलों पर होने की संभावना बढ़ गई है.

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, रात के समय फसलों में श्वसन की रफ्तार बढ़ जाती है. रबी की फसलों में 5 से 6 डिगरी सैल्सियस रात का तापमान तापमान (temperature) फायदेमंद रहता है, लेकिन पिछले दिनों से यह तापमान 6 से 10 डिगरी बना हुआ है. रात में जरूरत से दोगुना अधिक दर्ज हो रहा तापमान फसलों के लिए नुकसानदायक होता है.

रबी फसलों की बोआई अधितकर अक्टूबरनवंबर माह में होती है. ऐसे में देर से दिसंबरजनवरी माह में बोआई करने वाले किसानों को ज्यादा नुकसान होगा. यह ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है. मौसम आगे खिसका है, उतारचढ़ाव ज्यादा हो गया है.

तापमान बढ़ने से गेहूं फसल में बाद में आने वाले फूल अचानक आ आते हैं. अभी तना भरपूर विकसित नहीं हुआ है, ऐसे में फसलों का विकास प्रभावित होगा. जो तापमान बोआई के 2 महीने बाद की जरूरत वाला तापमान अभी मिलने से यह नुकसान संभव है.

एक डिगरी तापमान बढ़ने से फसलों में 10 फीसदी पानी की जरूरत बढ़ जाती है. लगातार एक हफ्ते तक तापमान में बढ़ोतरी का असर फसलों के लिए काफी होता है. दिन और रात के तापमान का फसलों पर अलगअलग प्रभाव होता है. रात में श्वसन की रफ्तार बढ़ जाती है. उस के लिए न्यूनतम तापमान 5 से 6 डिगरी होना चाहिए.

वर्तमान में तापमान 9 से 12 डिगरी सैल्सियस रिकौर्ड किया जा रहा है. दिन का तापमान 20-25 डिगरी सैल्सियस होना चाहिए, जो 27-28 दर्ज हो रहा है. तापमान बढ़ने से चना जल्दी पक जाएगा. चने की फसल के लिए जड़ों का गहराई तक जाना जरूरी होता है. तापमान में पानी की जरूरत होगी, जो फसल के लिए नुकसानदायक है. इस के अलावा मटर की फसलों को भी नुकसान होगा.

गेहूं की अच्छी बढ़वार और उपज में तापमान की भूमिका प्रमुख होती है. गेहूं में दाना भरने के समय 30 डिगरी सैल्सियस से ऊपर का तापमान फसल को प्रभावित करता है. बदलते जलवायु परिवर्तन से आने वाले सालों में 20 फीसदी उत्पादन में कमी की आशंका है. वहीं सरसों की फसल में तापमान बढ़ने से पैदावार में 10-15 फीसदी की गिरावट संभव है.

Agricultural Equipment : सैकड़ों परिवारों को मिले अनेक कृषि उपकरण

Agricultural Equipment  : उदयपुर  स्थित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ग्राम पंचायत झाडोलफलासिया के तुरगढ़ गांव में केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान भुवनेश्वर द्वारा अनुसूचित जाति के उपपरियोजना के अंतर्गत तीनदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 5 से 7 फरवरी, 2025 तक आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में अनुसूचित जाति के सौ परिवारों में अन्न भंडारण के लिए एल्युमिनियम की 100 कोठियां वितरित की गई. प्रशिक्षण कार्यक्रम में डा. विशाखा बंसल, प्रोफैसर व इकाई समन्वयक, प्रसार शिक्षा एवं संचार प्रबंधन ने अनाज भंडारण के लिए प्राकृतिक तरीकों के बारे में महिलाओं को जानकारी दी.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन आदिवासी जाति के परिवारों को कृषि वैज्ञानिक डा. सुभाष चंद्र मीणा ने खेतीबारी की उन्नत तकनीक एवं मृदा स्वास्थ्य के बारे में बताया और पशुपालन के विभिन्न गुर सिखाए. साथ ही, कार्तिक सालवी ने भी मृदा संरक्षण और मृदा के अपरदन के बारे में व मिट्टी के अनुसार फसल के उत्पादन के बारे में जानकारी दी.

प्रशिक्षण के 3 दिनों में कृषि से संबंधित विभिन्न प्रकार के उपकरणों (Agricultural Equipment) को अनुसूचित जाति के 571 परिवार में वितरित किया गया. जिस में कुल मिला कर 17 उपकरण (Agricultural Equipment) जैसे सिंचाई के लिए पाइप, मिल्क कैन, सिलाई मशीन, अजोला बेड, मेटल बकेट, खुरपी, दरांती, गार्डन रेक और स्प्रेयर आदि थे.

कार्यक्रम में सहायक कृषि अधिकारी शिव दयाल मीणा ने आदानों के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कार्यक्रम का संचालन डा. विशाखा बंसल, इकाई समन्वयक, कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में डा. कुसुम शर्मा, अनुष्का तिवारी, यंग प्रोफैशनल एवं कार्तिक सालवी द्वारा सहयोग दिया गया.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत प्रशिक्षण (Training)

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय में संचालित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की परियोजना “मेवाड़ क्षेत्र की परंपरागत फसलों के प्रसंस्करणों का उत्कृष्टता केंद्र” के तहत कृषि विज्ञान केंद्र, प्रतापगढ़ के देवगढ़ गांव में दोदिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण (Training) कार्यक्रम आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘मिलेट प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन’ व ‘हलदी एवं अदरक प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन’ रहा, जिस का उद्देश्य किसानों और महिलाओं को प्रसंस्करण तकनीकों से परिचित करा कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था. कार्यक्रम में कुल 65 ग्रामीण महिलाओं ने भाग लिया.

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने इस प्रशिक्षण को किसानों और महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर को उत्पन्न करने वाला बताया. परियोजना की प्रमुख अन्वेषक डा. कमला महाजनी ने बताया कि मिलेट, अदरक और हलदी प्रसंस्करण की दी गई जानकारी से महिलाओं में स्वयं का रोजगार शुरू करने की प्रेरणा मिलेगी, जिस से वे अपने लघु उद्योग स्थापित कर सकेंगी.

प्रशिक्षण के पहले दिन यंत्र चालक चित्राक्षी कछवाहा ने मिलेट और मसाला प्रसंस्करण मशीनों के उपयोग और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी. साथ ही, डा. पायल तलेसरा और योगिता पालीवाल ने रागी और बाजरा से चौकलेट बनाने की तकनीकों को बना कर सिखाया.

दूसरे दिन योगिता पालीवाल ने अदरक कैंडी, मुरब्बा, सांवे के गाठीया बनाने का प्रशिक्षण दिया, वहीं डा. पायल तलेसरा ने विपणन, पैकेजिंग और लेबलिंग पर प्रकाश डाला.

कार्यक्रम के दौरान मिलेट आधारित उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिस से प्रतिभागियों को इन के संभावित व्यावसायिक अवसरों की जानकारी मिली. प्रशिक्षण का समापन प्रतिभागियों को प्रसंस्करण क्षेत्र में नवाचार अपनाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हुए किया गया.

किसान और बीज उत्पादकों के लिए बढ़ाई सब्सिडी (Subsidy)

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों  वीडियो कौंफ्रेंसिंग से एक महत्वपूर्ण बैठक की थी, जिस में समीक्षा करते हुए देश के किसानों के हित में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं पोषण मिशन के दिशानिर्देशों में बड़े बदलाव करने की मंजूरी  दी गई.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के घटकों में किसानों के हित में परिवर्तन किए गए हैं. इस मिशन के दिशानिर्देशों में संशोधन करते हुए किसानों और बीज उत्पादकों के लिए सब्सिडी बढ़ाई गई है, वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों से साफ कहा कि योजना का लाभ सिर्फ किसानों को मिले, यह पक्का किया जाना चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसानों के नाम पर दूसरा कोई इस का फायदा उठा ले.

इस मिशन के तहत पारंपरिक देशी बीज किस्मों का उत्पादन बढ़ाने का प्रावधान किया गया है, वहीं पंचायत लेवल पर बीज प्रसंस्करण व भंडारण इकाई स्थापित करने की भी कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी दी है. उन्होंने आला अफसरों को निर्देश दिए कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि किसानों का भला हो.

इस के साथ ही पहले “बीज और रोपण सामग्री” उपमिशन सहित “राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन” अब कृषि संवर्धन योजना का एक घटक होगा. इस मिशन के उद्देश्य हैं- देश के चिन्हित जिलों में सतत तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से चावल, गेहूं, दलहन, मोटे अनाज (मक्का व जौ) व पोषक अनाज (श्री अन्न) का उत्पादन बढ़ाना, व्यक्तिगत खेत लेवल पर मिट्टी की उर्वरता व उत्पादकता बढ़ाना, किसानों में विश्वास बहाल करने के लिए  कृषि लाभ को बढ़ाना और कुशल बाजार संपर्कों के माध्यम से किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिए खेत पर फसलोपरांत मूल्य संवर्धन को बढ़ाना और बीज प्रतिस्थापन दर और किस्म प्रतिस्थापन दर को बढ़ाना एवं देश के बीज क्षेत्र के लिए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर ढांचे में सुधार करना आदि.

इस बैठक में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई प्रजातियों के प्रदर्शन, प्रमाणित बीज उत्पादन एवं प्रमाणित बीज वितरण के घटकों में किसानों के लिए सब्सिडी बढ़ाने की मंजूरी दी है. साथ ही, जलवायु अनुकूल, बायोफोर्टिफाइड और उच्च उपज देने वाली किस्मों के उत्पादन को प्राथमिकता दी जाएगी. साथ ही, इस मिशन के सभी प्रावधानों पर डिजिटली मानीटरिंग की जाएगी. कृषि मैपर और साथी पोर्टल की सहायता भी इस में ली जाएगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान  ने कहा कि स्कीम का फायदा किसानों को पूरी तरह से मिलना सुनिश्चित किया जाए व स्कीम के केंद्र में किसान ही हो.

इसी तरह पारंपरिक किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी दी है, क्योंकि ये पारंपरिक किस्में फसल विकास, स्थानीय अनुकूलन, पोषण मूल्य व अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में रणनीतिक महत्व रखती हैं. इस प्रकार पहचान, सूचीकरण, उन के उत्पादन के मुख्य क्षेत्रों की पहचान, जियो टैगिंग, उन के उत्पादन में वृद्धि, उन के उत्पादों को लोकप्रिय बनाने और उन की विपणन क्षमता बढ़ाने जैसे समग्र दृष्टिकोण के साथ पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है. इसलिए, इस घटक में उन के बीज वितरण, उत्पादन, विभिन्न पहलुओं में क्षमता निर्माण व पीपीवीएफआरए व राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत ऐसी किस्मों के बीज बैंक के निर्माण व विकास पर सहायता भी दी जाएगी.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में संशोधित दिशानिर्देशों में ग्राम पंचायत स्तर पर बीज प्रसंस्करण एवं भंडारण इकाई का प्रावधान भी किया गया है. इस के तहत बीज और रोपण सामग्री के ग्राम पंचायत लेवल पर बीज प्रसंस्करण एवं भंडारण इकाई को पुनर्जीवित करने की मंजूरी भी केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दी गई है, ताकि देशभर के किसानों के आसपास के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बीज प्रसंस्करण, सफाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग व भंडारण के काम किया जा सकें.

साथ ही, गैरपारंपरिक तरीके से आलू बीज उत्पादन के लिए नए घटक के निर्देशों को भी कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी प्रदान की है, वहीं बीज उत्पादन, विधायन, प्रमाणीकरण एवं टेस्टिंग से जुड़ी विभिन्न सरकारी एजेंसियों को दी जाने वाली सहायता में भी बढ़ोतरी की गई है, ताकि वे सशक्त हो कर और बेहतर काम कर सकें.

एग्रोटैक किसान मेला 2025 का सफलतापूर्वक समापन

रांचीः  बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित तीनदिवसीय एग्रोटैक किसान मेला 2025 का पिछले दिनों सफलतापूर्वक समापन हुआ. इस तीनदिवसीय मेले में हर दिन लोगों की अच्छीखासी भीड रही.

इस मेले में बड़ी संख्या में किसान और आम लोग पहुंच थे. मेले में कुल 120 स्टौल लगाए गए थे, जिस के माध्यम से पशुधन को होने वाली बीमारी से ले कर खेतीबाड़ी की आधुनिक तकनीक तक की जानकारी दी गई. साथ ही, किसानों द्वारा उत्पादित फलसब्जियों, फूलों और बोनसाई पेड़ों की भी प्रदर्शनी लगाई गई थी.

किसानों के लिए प्रतियोगिता का आयोजन

हर साल की तरह इस बार भी मेले में बीएयू के उद्यानिकी विभाग द्वारा प्रगातिशील किसानों के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी. इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए सब्जी उत्पादक किसानों में होड़ लगी हुई थी.

28 किलोग्राम का कद्दू रहा आकर्षण का केंद्र

2 साल से लगातार शिमला मिर्च और कद्दूकोहड़ा सेगमेंट में पुरस्कार जीतने वाले पिठोरिया ब्लौक के किसान मो. आलिम अंसारी ने कहा कि बेहद सावधानी से कद्दू का रखरखाव करना पड़ता है. पिछली बार 34 किलोग्राम का कद्दू मेले में लाया गया था. इस के लिए पिछली बार उन्हें पुरस्कार भी मिला था. इस बार वे 28 किलोग्राम का कद्दू ले कर मेले में पहुंचे थे. उन्होंने कहा कि इस बार वे कद्दू के अलावा शिमला मिर्च, सफेद कोहड़ा (भतुआ) आदि ले कर आए थे.

Kisan Mela

सब्जी उत्पादक किसानों को बढ़ावा दे सरकार

एग्रोटैक किसान मेले में 4 किस्म के आलू ले कर पहुंचे बोड़ैया के किसान मधु साव ने कहा कि जो लोग सब्जियां नहीं उगाते, वही यह कहते हैं कि इस में बहुत मुनाफा होता है, जबकि सच तो यह है कि आज सब्जी उत्पादक किसान बरबादी के कगार पर है. सरकार को सब्जियों के लिए बाजार उपलब्ध कराना चाहिए.

समझदारी से खेती करने की है जरूरत

अनगड़ा से आए एक प्रगतिशील किसान मो. शाहनवाज ने कहा कि अब समय है कि किसान होशियारी से खेती करें. वह पहले से ही यह अनुमान लगा लें कि जिस सब्जी को वह अभी लगा रहे हैं, जब वह तैयार होगी, तब उस की कीमत कितनी होगी. बाजार में उस की क्या कीमत मिलेगी आदि.

पशुओं को होने वाली रोग की दी गई जानकारी

एग्रोटैक किसान मेला-2025 में वेटेनरी कालेज द्वारा लगाए गए स्टौल में पशुपालकों को खुरपकामुंहपका बीमारी, उस के लक्षण और बचाव के उपाय बताए बताए गए, वहीँ बीएयू के अभियंत्रण विभाग की ओर से कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कई मशीनों का प्रदर्शन भी किया गया.