प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को लाभकारी बनाने के जरूरी टिप्स

प्राकृतिक खेती में किसी भी तरह के कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता. इस तरह की खेती में प्राकृतिक तौरतरीके ही अपनाए जाते हैं, जो सस्ते और सुविधाजनक भी होते हैं. प्राकृतिक खेती को लाभकारी बनाने के लिए खेती करने के तौरतरीकों में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे, प्राकृतिक खेती में देशी बीज/ घर का बीज बोना है. एक बीज के साथ दो बीजपत्रीयुक्त सहफसली खेती लेनी है. मोनोक्रापिंग (जैसे केवल गेहूं या धान नहीं उगाना है ) नहीं करना है.

-हमेशा मल्चिंग विधि अपनाएं. मल्चिंग में घासों का भी अनुपात एक बीजपत्री का एक भाग और दो बीजपत्री का दो भाग ही रखना है.

-कम से कम 4-5 लेयर की मल्टीस्टोरी क्रापिंग लेना है. फसलों की लाइन पूरबपश्चिम दिशा में ही रखना है.

-खेत में मेंड़ पर पौधे लगाना है, यदि कुछ पानी उपलब्ध है तो अल्टरनेट नालियों में सिंचाई करनी है.

-हर महीने में खेती में कम से कम एक बार घन जीवामृत व जीवामृत देना है. बीज बोने से पहले बीजोपचार जीवामृत से ही करना है.

-घर पर बीज बैंक बनाना है अर्थात बाजार से (लोहा, हींग, बुझा चूना छोड़ कर) कुछ भी नहीं खरीदना है. इस से प्रति एकड़ आमदनी बढ़ेगी.

-खेत से नियमित आमदनी के लिए फलफूल,अनाज, सब्जियों को एकसाथ उगाना है. खेती को फायदे का सौदा बनाना है, इसलिए हमेशा बिजनेसमैन की सोच रखना जरूरी है.

-किसानों, कृषि विशेषज्ञों को जोड़ कर मोबाइल फोन में व्हाट्सएस ग्रुप बना कर रखें, जिस से अपने खेत के उत्पादों को अपने खेत/फार्म /घर से ही विक्रय किया जा सके, जिस से उपज के दाम भी अच्छे मिल सकें. मंडी में उपज पहुंचने पर उसे औनेपौने दाम पर बेचना किसान की मजबूरी हो जाती है. इसलिए अपनी उपज के दाम खुद तय करें.

-प्राकृतिक खेती करने के लिए कम से कम एक देशी गाय या एक पशु जरूर पालें, जिस से पशु का गोबर भी मिल सके. घर पर गाय के मूत्र को पीपे में रख कर इकट्ठा करते रहना है. पुराना गौमूत्र और ताजा गोबर खेती के लिए ज्यादा गुणकारी है.

-यदि गाय नहीं पालना चाहते हैं, तो भैंस भी पाल सकते हैं. उस के गोबर व मूत्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

-किसान के पास कई बार काफी समय भी होता है, इसलिए उस समय का इस्तेमाल करें. इस के लिए कृषि से संबंधित नईनई जानकारी के लिए पत्रपत्रिकाओं को पढ़ें, कृषि समाचार आदि सुनें.
समयसमय पर किसानों और पशुपालकों के लिए सरकार द्वारा अनेक लाभकारी योजनाएं आती रहती हैं, अपनी सुविधानुसार उन का भी फायदा लेने की कोशिश करें.

-खेत में फालतू पानी न भरने दें. इस बात का भी ध्यान रखें कि पड़ोसी के खेत का पानी अपने खेत में नहीं आने देना है.

-खेत के चारों तरफ बाड़ के रूप में 1-2 मीटर ऊंचाई वाली फसल/ उत्पाद लगाएं, जो अपने काम में आएंगे.

-हो सके, तो खेत या फार्म पर कुछ पौधे सहजन के जरूर लगाएं.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को सफल मौडल के रूप में अपनाएं किसान

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र, सदलपुर द्वारा ‘गौ आधारित प्राकृतिक खेती’ विषय पर जिलास्तरीय जागरूकता कार्यक्रम व कृषि विज्ञान मेले का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों को जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र अग्निस्त्र, दशप्रर्णी अर्क आदि का प्रयोग कर के प्राकृतिक खेती को एक सफल मौडल के रूप में विकसित कर के अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. गौ आधारित प्राकृतिक खेती से न केवल पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने किसानों को कृषि कार्यों में नई तकनीक अपनाने की सलाह दी. साथ ही, किसानों को अपने उत्पादों का प्रसंस्करण कर के मूल्य संवर्धन करने और अपने उत्पादों की खुद कीमत तय कर के विपणन कर के अधिक लाभ कमाया जा सकता है. उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर और्गैनाइजेशन के तौर पर समूह बना कर काम करने, जिस में शुद्ध अनाज, सब्जी, फल तैयार कर के अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को जागरूक किया.

विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती में अंतर को समझाते हुए, वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है. किसान विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों से तकनीकी जानकारी ले कर सीमित क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं.

विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. ओपी बिश्नोई, डा. राजेश आर्य व डा. सुनील ने किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई विभिन्न किस्मों व तकनीकों की जानकारी दी.

सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. ओपी नेहरा, डा. बीडी यादव ने विभिन्न फसलों में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं के बारे में बताया. कृषि विज्ञान केंद्र के कोआर्डिनेटर डा. नरेंद्र कुमार ने किसानों को कृषि क्षेत्र में नवाचार द्वारा स्वरोजगार स्थापित कर के अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़ कर लागत कम कर के मुनाफा बढ़ाने की जानकारी दी.

कार्यक्रम के दौरान खेतीबारी से जुड़ी मशीनरी, उर्वरक, सिंचाई में काम आने वाली सिस्टम और अन्य इनपुट बनाने वाली कंपनियों की प्रदर्शनियां भी लगाई गईं, जिस में सब्जी उत्पादन में काम आने वाली मशीनें, शतप्रतिशत जल विलय उर्वरक और नैनो यूरिया व नैनो डीएपी इत्यादि उत्पादों के बारे में किसानों को जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान प्रगतिशील किसान सरपंच नथूराम, श्रीरामेश्वर करिर, शिवशंकर, कृष्ण रावलवास, सरजीत, विक्रम खांडा खेड़ी, चिरिंजी और कार्तिक को सम्मानित किया गया. इन प्रगतिशील किसानों ने प्राकृतिक खेती के बारे में अपने अनुभव साझा कर के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया. इस अवसर पर केवीके के वैज्ञानिक डा. कुलदीप व डा. दिनेश भी उपस्थित रहे.

किसानों को रासायनिक खेती छोड़ प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपनाना होगा

झाबुआ: कैबिनेट मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश शासन सु निर्मला भूरिया के मुख्य आतिथ्य और सांसद लोकसभा क्षेत्र रतलामझाबुआ गुमान सिंह डामोर की अध्यक्षता में कृषिगत क्षेत्र की उन्नत नवीन तकनीक विस्तारण, प्रदर्शनी, शासन की किसान कल्याणकारी योजनाओं के प्रचारप्रचार के उद्देश्य से कृषि विज्ञान केंद्र प्रक्षेत्र झाबुआ में कृषि विज्ञान मेले का शुभारंभ किया गया.

मेले में विभिन्न शासकीय विभागों द्वारा लगाई गई प्रदशर्नी का अवलोकन करते हुए अतिथि मंच पर पहुचे. सहायक संचालक कृषि कल्याण एवं कृषि विकास विभाग नगीन रावत द्वारा मेले के बारे में विस्तार से बताया गया.

मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश शासन सु निर्मला भूरिया द्वारा किसानों को आधुनिक खेती के साथसाथ प्राकृतिक खेती की ओर भी ले जाएं, आधुनिक खेती के कहीं न कहीं दुष्प्रभाव भी हैं.

रासायनिक खाद के उपयोग का असर हमारे शरीर पर भी होने लगा है. आज हम यूरिया का काफी मात्रा में उपयोग करने लगे हैं. आने वाले समय में हमें रासायनिक खाद का उपयोग कम करना होगा. हमें सोचना होगा कि हम आने वाले पीढ़ी को क्या दे रहे हैं.

सरकार की तरफ से विश्वास दिलाते हुए कहा कि हम किसानों के हित के लिए काम करेंगे.

सांसद गुमान सिंह डामोर ने आगे यह भी कहा कि वर्तमान समय में रासायनिक खाद का उपयोग बहुत बढ़ गया है. पहले हम गोबर की खाद का उपयोग करते थे, जो सर्वश्रेष्ठ खाद है. उन के द्वारा किसानों को जैविक खाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया गया. साथ ही, अन्य अतिथियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा भी जैविक खाद का उपयोग करने को कहा गया, जिस से कि हम रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव से बच सकें.

अतिथियों द्वारा उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान किया गया. साथ ही, किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी प्रदान किए गए.

जिला पंचायत अध्यक्ष सोनल जसवंत सिंह भाबोर द्वारा किसानों को जैविक खेती के उपयोग के लिए प्रेरित करते हुए किसानों की समस्या की ओर प्रकाश डाला गया.

जिले में आयोजित किए जा रहे किसान मेले में जिले के समस्त 6 विकास खंडों से तकरीबन 5,000 किसान इस मेले में सम्मिलित हुए, जिस में कृषिगत क्षेत्र की उन्नत नवीन तकनीक विस्तारण, कृषि को व्यवसाय के रूप में आगे बढाना, किसान का फसल उत्पादन बढाने के भारत शासन एवं राज्य शासन की महात्वाकांक्षी योजनाओं से अवगत कराए जाने के साथसाथ उत्पादन लागत में कमी लाने, प्रशिक्षित करना और प्रदर्शनी के माध्यम से कृषि से जुडे नवाचारों का जीवंत प्रदर्शन, खेती की नवीन उन्नत किस्मों के बीजों जैसे विभिन्न आयामों का मेले के माध्यम से प्रचारप्रसार किया गया.

मेले में दोनों दिन कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषिगत क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी सत्र आयोजित किए गए. मेले में विभिन्न शासकीय विभागों जैसे कृषि एवं कृषि से संबद्ध विभाग कृषि विज्ञान केंद्र, पशुपालन, उद्यानिकी विभाग, मत्स्यपालन, कृषि अभियांत्रिकी, स्वास्थ्य विभाग, आयुष विभाग, सहकारिता विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ ही मध्य प्रदेश गामीण अजीविका परियोजना, अशासकीय संगठनों की जिले में संचालित विभिन्न गतिविधियों से सबंधित प्रदर्शनियां और स्वयं सहायता समूह, कृषक उत्पाद संगठनों एवं जिले के निजी कृषि आदान विक्रेताओं द्वारा भी कृषि की नवीन उन्नत तकनीकी से संबंधित कृषि आदानों / उत्पादों के साथसाथ प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की बहनों द्वारा सास्वत यौगिक खेती के साथसाथ नशामुक्ति से सबंधित प्रदर्शनी लगाई गई.

मेले में जिले के किसानों को जिले के भौगोलिक परिदृश्य के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तकनीकी विस्तारण संबंधित प्रशिक्षित कराया गया. इसी क्रम में जिले के प्रगतिशील किसानों द्वारा अपने खेतों पर अपनाई जा रही है, कृषिगत नवीन उन्नत तकनीकी खेती, नवाचार के बारे में विस्तृत से जानकारी से अवगत कराते हुए परंपरागत खेती की जगह उन्नत तकनीकी को अपना कर किसान अपने जीवनस्तर में बदलाव के बारे में प्रशिक्षित कराया गया.

मेले में किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा मानव स्वास्थ एवं पर्यावरण की सुरक्षा हेतु प्राकृतिक खेती की विभिन्न विधाओं के बारें में विस्तृत प्रदर्शनी के माध्यम से चित्रण किया गया, इसी प्रकार प्रचलित भोज्य अनाजों के स्थान पर मिलेट्स के उपयोग के बारे में बताते हुए उन के उपयोगों के बारे में जानकारी दी गई.

पौधों में डालें ये खाद फसल नहीं होगी खराब

सर्दी का मौसम सब से ज्यादा मुश्किल भरा होता है. इस मौसम में पौधों की बढ़वार धीमी हो जाती है, इसलिए उन्हें अधिक पोषण की जरूरत होती है. ऐसे में पौधों को सही खाद देना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है.

पौधों को सर्दियों में मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए कुछ खास तरह की खादें दी जाती हैं. ये खादें घर पर भी बनाई जा सकती हैं.

इस के लिए आप चाय की पत्ती, अंडे के छिलके, सब्जी और फलों के छिलके आदि का खाद बनाने में प्रयोग कर सकते हैं. कंपोस्ट बनाने के लिए आप एक गड्ढा खोद सकते हैं या किसी बरतन में भी. पौधों को खाद देने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से ढीला कर लें, फिर खाद को मिट्टी में मिला दें.

खाद को पौधे की जड़ों के पास न डालें. खाद देने के बाद मिट्टी को अच्छी तरह से पानी दें. पौधों को खाद देने का सब से अच्छा समय सुबह या शाम का होता है. जब मौसम ठंडा हो, तब खाद देनी चाहिए.

डीएपी खाद एक प्राकृतिक खाद है, जो पौधों को पोटैशियम, नाइट्रोजन और फास्फोरस देती है. यह खाद पौधों की बढ़वार में बहुत अच्छी है. डीएपी खाद पौधों को सर्दियों में देने से वे स्वस्थ और मजबूत होते हैं.

कंपोस्ट खाद एक कार्बनिक खाद है, जो पौधों को सभी पोषक तत्त्व देती है. यह खाद पौधों के आसपास की मिट्टी भी उपजाऊ बनाती है. कंपोस्ट खाद सर्दियों में पौधों को मजबूत और स्वस्थ बनाती है.

गोबर खाद एक प्राकृतिक खाद है, जो पौधों के आसपास की मिट्टी को भी उपजाऊ बनाती है. गोबर खाद सर्दियों में पौधों को स्वस्थ और मजबूत बनाती है.

मस्टर्ड केक खाद एक प्राकृतिक खाद है, जो पौधों को पोटैशियम, नाइट्रोजन और फास्फोरस देती है. पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली भी इस खाद से मजबूत होती है. सर्दियों में यह खाद देने से पौधे ठंड से बचते हैं और अच्छी तरह से विकसित होते हैं.

सर्दियों के समय पौधों में डालने के लिए वर्मी कंपोस्ट बहुत अच्छी खाद है. आप इस खाद को सभी प्रकार के पौधों में इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, फूलों, फलों और सब्जियों वाले पौधों के लिए यह खाद अधिक फायदेमंद है.

वर्मी कंपोस्ट, मिट्टीरहित माध्यम जैसे कोकोपिट आदि में उगाए जाने वाले पौधों के लिए भी अच्छी मानी जाती है. यह पौधों को अतिरिक्त पोषक तत्त्व देती है. इस के अलावा वर्मी कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करने से मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है.

वर्मी कंपोस्ट का उपयोग नए पौधों को लगाने के दौरान पौटिंग मिक्स बनाने के लिए किया जाता है. वर्मी कंपोस्ट खाद का प्रयोग पौधों की बढ़वार अवस्था में भी किया जाता है. पौधे की बढ़वार अवस्था के दौरान हर 2-3 महीने में एक गमले में एक मुट्ठी वर्मी कंपोस्ट डाली जा सकती है.

सर्दियों में पौधों की बढ़वार के लिए एप्सम साल्ट एक सब से अच्छा उर्वरक है. इस का इस्तेमाल तकरीबन सभी प्रकार के पौधों में कर सकते हैं. एप्सम साल्ट का प्रयोग पौटिंग मिक्स बनाने के दौरान और पौधे की बढ़वार अवस्था में किया जा सकता है. पौधे की बढ़वार अवस्था के दौरान महीने में 1-2 बार 1 लिटर पानी में 1 चम्मच एप्सम साल्ट मिला कर पौधों की जड़ों में डाल दें या इस पानी का दिन के समय पौधों पर छिड़काव करें.

अगर सर्दी में होम गार्डन में लगी सब्जियों और फूलों वाले पौधे नहीं बढ़ रहे हैं या फिर उन में फूल और फल नहीं आ रहे हैं, तो इस के लिए किसान मस्टर्ड केक खाद का उपयोग पौधों में कर सकते हैं. यह उर्वरक पौधों की ग्रोथ को बढ़ाता है और साथ ही पौधों को कीड़ों और बीमारी से भी बचाता है.

पौधों में इस फर्टिलाइजर का इस्तेमाल घोल बना कर किया जाता है. सौल्यूशन बनाने के लिए मिट्टी के बरतन में थोड़ी मात्रा में मस्टर्ड केक खाद ले कर उस में 1 लिटर पानी डालें और फिर उसे कुछ समय के लिए ढक कर रख दें. इस के बाद इस घोल को कपड़े की मदद से अच्छे से छान लें. छानने के बाद तकरीबन 50 मिलीलिटर मस्टर्ड केक घोल को 1 लिटर पानी में मिलाएं और फिर उसे पौधों में डालें.

सर्दी के मौसम में पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए लकड़ी की राख, एक बैस्ट खाद का काम करती है. इस में पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, मैंगनीज और जस्ता जैसे उपयोगी पोषक तत्त्व पाए जाते हैं. लकड़ी की राख का गार्डन में अनेक उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है: जैसे कि यह मिट्टी के पीएच स्तर को बढ़ा देती है, स्लग और घोंघे जैसे कीटों को गार्डन से दूर रखती है और पौधों को जरूरी पोषक तत्त्व प्रदान कर के पौधों की ग्रोथ को बढ़ाती है.

होम गार्डन में लकड़ी की राख का उपयोग करने का सब से अच्छा तरीका यह है कि इसे पौधों की मिट्टी के ऊपर फैला (टौप ड्रैसिंग) दिया जाए. सभी पौधों पर लकड़ी की राख का उपयोग न करें, केवल वे पौधे, जिन्हें पोटैशियम पोषक तत्त्व की जरूरत हो या मिट्टी के पीएच लैवल को बढ़ाना हो, तभी इस का प्रयोग थोड़ी मात्रा में करें.

केला खाने के बाद जो छिलका बचता है, उस का उपयोग जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है. सर्दी के मौसम में यह खाद पौधों के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है. इस में पोटैशियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस पोषक तत्व की भरपूर मात्रा पाई जाती है.

केले के छिलकों को फर्टिलाइजर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सब से पहले एक बरतन लें और उस में 3-4 छिलकों को डाल कर पानी भर दें. कुछ (4-5) दिनों के बाद केले के छिलकों को पानी में से निकाल कर अलग कर दें और पानी को पौधों में फर्टिलाइजर के रूप में इस्तेमाल करें.

जैविक खेती (Organic farming) की जरूरत और अहमियत

कृषि में वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित फसल चक्रों का अपनाना फसल के अवशेष व कृषि प्रक्षेपण के अलावा पैदा होने वाले कूड़ेकचरे की बनी खाद, गोबर की खाद और हरी खाद का इस्तेमाल करना, दलहनी फसलों को उगाना, कीट, बीमारियों व खरपतवार का नियंत्रण शस्य क्रियाओं और जैविक विधि द्वारा करना, रोग व कीटरोधी प्रजातियों को उगाना, जीवाणुओं व दूसरे पादप स्रोतों से प्रमुख व सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की पूर्ति करना, ग्रीष्मकालीन जुताई करना आदि शामिल हैं. यह कृषि पद्धति सरल, सस्ती व प्रदूषण निवारक है.

यह सच है कि हरित क्रांति से अनाजों की पैदावार में आशातीत वृद्धि हुई है, लेकिन रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से अनेक पर्यावरणीय समस्या पैदा हो गई है. कीटनाशी व खरपतवारनाशी दवाओं (रसायन) के प्रयोग से न केवल फसल उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी हुई है,  बल्कि इन के प्रयोग से अनाज, तिलहन, सब्जियां, फल आदि जहरीले होते चले जा रहे हैं, जिस से हमारी खाद्य सुरक्षा व भूमि की उत्पादन क्षमता के टिकाऊपन को खतरा पहुंच गया है.

इन सब रसायनों का निर्माण भूमिगत पैट्रो रसायन की मदद से किया जाता है, जिन का तेजी से दोहन हो रहा है. इस के कारण इन के निकट भविष्य में खत्म होने का डर है. जैविक खादों व फसल सुरक्षा की जैविक दवाओं के इस्तेमाल से ऐसी समस्याओं से बचा जा सकता है और कृषि उत्पादन लागत में भारी कमी लाई जा सकती है.

यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि विश्व के अनेक विकसित देशों में जैविक खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और जैविक विधि द्वारा तैयार खाद्य उत्पादों का 30 से 40 फीसदी ज्यादा कीमत पर अलग दुकानों से विपणन किया जा रहा है.

जैविक खेती के दूरगामी लाभ

* इस पद्धति से खेती करने से भूमि में जीवांश की पर्याप्त मात्रा बनी रहती है.

* भूमि में जैविक गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जिस से पेड़पौधों की वृद्धि तीव्र गति से होती है.

* फसल चक्र में दलहनी फसलें, हरी खाद व अंतरशस्य फसलों के समावेश को प्रोत्साहन मिलता है, जिस से भूमि की उर्वरता में टिकाऊपन रहता है.

* भूमि में केंचुओं की ज्यादा से ज्यादा संख्या में वृद्धि होती है, जो फसल अवशेष को जैविक खाद में बदलने में मदद करते हैं.

* प्रक्षेत्र व बाग के चारों तरफ वायुरोधक वृक्षों के रोपण को प्रोत्साहन मिलता है, जिस से बाग व फसल की सुरक्षा तो होती ही है, बल्कि पर्यावरण शुद्ध होता है. इस के अलावा कीमती लकड़ी प्राप्त होती है. वायु व जल द्वारा क्षरण रोकने के लिए शस्य क्रियाओं के अपनाने को प्रोत्साहन मिलता है, जिस से भूसंरक्षण होता है.

जैविक खेती (Organic farming)

जैविक खेती की विधि

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करने का एकमात्र विकल्प गांव में ज्यादा से ज्यादा संख्या में पशुपालन करना और उन से प्राप्त गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना है. इस के अलावा कूड़ाकचरा, फसल के अवशेष, खरपतवार, मिट्टी व पानी को बायोडायनामिक विधि द्वारा खाद बना कर इस्तेमाल करने से भी रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम किया जा सकता है.

कंपोस्ट बनाना

यह अंदाजा लगाया गया है कि देश में 60-70 टन कृषि से उत्पन्न अवशेष हर साल उपलब्ध होता है. लेकिन इस का शायद ही 10 फीसदी भाग जैविक खाद के बनाने के काम में लाया जाता है. अगर कृषि से पैदा संपूर्ण अवशेष को जैविक खाद में बदल दिया जाए, तो देश की 70 फीसदी वर्षा पर आधारित कृषि में बाहर से रासायनिक उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस के साथ ही साथ इस से प्रदूषण की समस्या का भी निदान हो सकेगा.

जैविक उत्पाद (Organic Products) से अच्छी आमदनी: समूह में कर रहे खेती

बालाघाट: प्राकृतिक व जैविक खेती के सिद्धांतों पर किसान फिर से लौटने लगे हैं. किसानों में यह समझ जागने लगी है कि रसायनों से भूमि को नुकसान होने के साथ ही स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ने लगा है. इस प्रभाव को कम करना है, तो हमारी देशी या जैविक व प्राकृतिक खेती ही सब से अच्छा उपचार है.

बालाघाट जिले में देशी या प्राकृतिक व जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पिछले 20 वर्षों में कई प्रयास किए गए. इन प्रयासों के बाद किसानों की समझ विकसित हुई है और अब प्राकृतिक व जैविक खेती का रकबा और किसान दोनों बढ़ने लगे हैं. इस का अनुमान बालाघाट से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर गड़दा के किसानों के प्रयासों से भी लगा सकते हैं.

यहां के किसान मुन्ना लाल कुमरे ने वर्ष 2002 से आत्मा परियोजना और कृषि व उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न प्रशिक्षणों व जिले के अंदर व राज्य के बाहर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के साथ प्रारंभ किया था. आज न सिर्फ व्यक्तिगत प्रयास कर, बल्कि 3 अन्य महिला समूहों के अलावा जैविक उत्पादन के लिए काम करने वाले किसानों के समूहों के साथ काम कर रहे हैं. ये समूह आज अच्छे किस्म के जैविक उत्पाद बना कर विक्रय कर अच्छी आमदनी प्राप्त करने लगे हैं. सब से अच्छा पक्ष यह भी सामने आया है कि समूह अब अन्य किसानों और व्यापारियों के लिए भी जैविक उत्पादन के लिए और्डर ले रहे हैं.

जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा महिला समूहों में साथ जैविक उत्पादनों का बनाया व्यवसाय

वैसे तो मुन्ना लाल अब तक 1,000 से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के तौरतरीके सिखा चुके हैं. इस में वे भूमि की सुरक्षा और बैक्टीरिया बढ़ाने के लिए जीवामृत, वेस्ट के उपयोग के लिए वेस्ट डीकंपोजर, कीटपतंगों से रक्षा के लिए दशपर्णी, बीजोपचार के लिए बीजामृत, हानिकारक कीटनाशकों के लिए अग्निअस्त्र, ब्रम्हास्त्र व नीमास्त्र सरीखे तकरीबन 10 प्रकार के जैविक उत्पादों से खरीफ व रबी के सीजन में तकरीबन 1 लाख, 20 हजार तक की इनकम कर लेते हंै. इतना ही नहीं, गांव में ही इन्होंने जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा नाम से महिलाओं के 3 समूह बनाए हैं. इन समूहों में भी 50-50 महिलाएं केंचुआ खाद के 1 व 2 किलोग्राम के पैकेट और 2 से 5, 10 लिटर तक के कीटनाशक भी तैयार कर विक्रय करने लगी हैं.

अब ये समूह इतने परिपक्व हो चुके हैं कि जिले व जिले के बाहर के बगीचे वाले बड़े किसान व अन्य व्यापारी भी और्डर पर जैविक उत्पाद तैयार करवा रहे हैं.

कमीशन पर काम कर 3 लाख तक मुनाफा लिया

किसान मुन्ना लाल ने बताया कि उन के पास पर्याप्त साधन नहीं थे, तो उन्होंने कमीशन पर जगह और पानी लिया. यहां उन्होंने अच्छी मात्रा में जैविक उत्पादन तैयार किया और  3 लाख रुपए तक का मुनाफा लिया.
मुन्ना लाल कुमरे जैविक बीज के तौर पर भी कंपनियों के लिए तकरीबन 500 किसानों के साथ 1-1 एकड़ में जैविक धान के बीज उत्पादित कर रहे हंै. मुन्ना लाल कुमरे को वर्ष 2023 में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार के रूप में 25,000 का इनाम भी दिया गया है.

बिजली के लाइट में आने वाले कीड़ों पर करते हैं प्रयोग

किसान मुन्ना लाल ने बताया कि अग्निअस्त्र, ब्रम्हास्त्र, नीमास्त्र आदि उत्पादों के प्रयोग वे घर पर बल्ब की रोशनी में आने वाले कीटों पर भी करते हैं यानी वे बल्ब के पास मिर्च या अन्य फसलों को लटका दिया करते हैं. इस के बाद फसलों पर कीट आने पर छिड़काव करते हैं. फिर घड़ी मिला कर समय देखते हंै कि कितनी देर में कीटों पर असर हुआ. इस के बाद जब कीट बेहोश या मर जाते हैं, तो एक डब्बे में बंद कर कीटों की जानकारी निकालते हैं. इस प्रयोग के अलावा घर की बागबानी में निरंतर प्रयोग कर अपने उत्पादों को परिपक्व बना रहे हैं.

246 सक्रिय जैविक खेती समूह

आत्मा परियोजना के संचालक अर्चना डोंगरे ने बताया कि वर्ष 2015-16 से जिले में देशी व जैविक खेती, बीज आदि के लिए समूह बनाने का काम शुरू हुआ. इस में किसानों को प्रशिक्षित किया गया. वर्तमान में 246 ऐसे समूह हैं, जो जैविक खेती के लिए काम कर रहे हैं. इस में तकरीबन 4,550 किसान जुड़े हैं, जो जैविक उत्पादों के साथ बीजों पर भी काम कर रहे हैं.

मोटे अनाज (Coarse grain) के उत्पादों के मिलते हैं अधिक दाम

सतना: 20 फरवरी, 2024. नगरीय विकास एवं आवास राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि हमारे किसानों द्वारा उगाए गए अनाज से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है. साथ ही, प्रदेश का किसान आर्थिक रूप से सशक्त भी हो रहा है.

सरकार की फसलों पर समर्थन मूल्य देने की नीति से किसानों की आर्थिक उन्नति हुई है. सरकार का किसानों से दोगुनी आय करने के संकल्प को पूरा करने में गति मिली है.

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि हमारे किसानों द्वारा उगाई गई फसल रूपी से सोने का सेवन करने से हमें काम करने की शक्ति मिलती है. वास्तव में अन्नदाता ही हमारा जीवनदाता है. उन्होंने एकेएस विश्वविद्यालय, सतना में प्रदेश स्तरीय तृतीय कृषि विज्ञान मेले का शुभारंभ किया.

इस अवसर पर पद्मश्री बाबूलाल दहिया, निशांत कुमार टाक, महाप्रबंधक, कृषि जागरण डा.दिनेश कुमार, कृषि वैज्ञानिक एके चतुर्वेदी, साउथ अफ्रीका से तोजामा कुलाटी सिविसा, डा. आरपी चैधरी, भरत मिश्रा, बीके खरे, उपसंचालक कृषि मनोज कश्यप, संचालक आत्मा परियोजना राजेश त्रिपाठी, जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुष्मिता सिंह परिहार, नेपाल झा, जयप्रताप बागरी, कृषि विज्ञान केंद्र, मझगवां से डा. आरएस नेगी सहित बड़ी संख्या में किसान और विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर संकाय के विद्यार्थी उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन प्रो. आरसी त्रिपाठी ने किया.

रसायनमुक्त खेती की ओर बढ़ें किसान

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कृषि मेले का शुभारंभ करते हुए कहा कि मेले की थीम एमपावरिंग द फार्मर थू्र नैचुरल और्गैनिक फार्मिंग पर आगे बढ़ते हुए किसान जैविक और प्राकृतिक खेती को अपनाएं और रसायनमुक्त खेती को महत्व दें. प्राकृतिक और जैविक खेती सही माने में हमारे स्वास्थ्य और मृदा स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं.

उन्होंने कहा कि रसायनयुक्त खेती के अनेकों दुष्प्रभाव हैं. वर्तमान में खेती की उपज ज्यादा लेने के उद्देश्य से रसायनों का बिना सोचेसमझे उपयोग किया जा रहा है. नतीजतन, हमें विभिन्न प्रकार के गंभीर रोग की समस्यायों से जूझना पड़ रहा है.

मोटे अनाज के उत्पादों को मिलती है अच्छी कीमत

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि आज का समय आधुनिकता का है. सभी क्षेत्रों में हम आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहे हैं. किसान भी खेती के कामों को आधुनिकता के साथ करें. मोटे अनाजों की खेती को बढ़ाने में किसान सहयोग करें. मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी सहयोग कर रही है. मोटे अनाज के उत्पादों की कीमत पारंपरिक खेती के उत्पादों से ज्यादा होती है. इस का बाहर निर्यात होने से किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी. प्रदेश में गेहूं निर्यात इस का एक उदाहरण है. गेहूं का उत्पादन बढ़ने से निर्यात में वृद्धि हुई है और किसानों को इस का फायदा भी मिल रहा है.

मोटे अनाज (मिलेट्स) की खेती से होने वाले फायदों पर जोर दिया जा रहा है. विदेशों में भारतीय उत्पादों की मांग बहुत ज्यादा है. मध्य प्रदेश ने प्रदेश के कृषि निर्यात के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है.
जिले के किसान और्गैनिक खेती को अपनाएं

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि मिलेट्स हमारी सभ्यता का, हमारे भोजन का अभिन्न अंग था. धीरेधीरे इस की मात्रा हमारे भोजन में कम होने लगी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिलेट्स को बढ़ावा देने की अभिनव पहल की और सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. सरकार के प्रयासों से मोटे अनाज की खेती को करने में किसान भी अपनी रुचि दिखा रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सतना जिले में सब से बड़ी आबादी किसानों की है. राज्य सरकार और मेहनती किसान मिल कर प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे.

उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रोत्साहन योजनाएं और मार्गदर्शी कार्यक्रमों का संचालन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है. अब शिक्षित युवाओं द्वारा भी कृषि को रोजगार के रूप में अपनाना प्रारंभ किया गया है. विश्वविद्यालय में अध्ययनरत कृषि संकाय के विद्यार्थी आधुनिक कृषि और उस की तकनीकों के बारे में गहन अध्ययन करें.

अतिथियों द्वारा मेले का उद्घाटन एवं कृषि प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया. अतिथियों का स्वागत एवं परिचय डा. हर्षवर्धन ने दिया. इस के पश्चात अधिष्ठाता कृषि एवं तकनीकी संकाय डा. एसएस तोमर ने कृषि विज्ञान मेले का उद्देश्य निरूपित किया.

संसाधनों का समुचित उपयोग प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में संभव

उदयपुर: 6 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केंद्र के तहत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘प्राकृतिक कृषि – संसाधन संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन के लिए दिशा एवं दशा’’ का आयोजन अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर द्वारा 6 फरवरी से 26 फरवरी, 2024 तक किया जा रहा है.

इस अवसर पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी  विश्वविद्यालय, उदयपुर ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में बताया कि पूरेे विश्व में ‘‘संसाधन खतरे’’ (resource threats) खासतौर पर मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, पानी का घटता स्तर, जैव विविधता का घटता स्तर, हवा की बिगड़ती गुणवत्ता और पर्यावरण के पंच तत्वों में बिगड़ता गुणवत्ता संतुलन के कारण हरित कृषि तकनीकों के प्रभाव टिकाऊ नहीं रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया कि बदलते जलवायु परिवर्तन के परिवेश एवं पारिस्थितिकी संतुलन के बिगड़ने से इनसानी सेहत, पशुओं की सेहत और बढ़ती लागत को प्रभावित कर रहे हैं और अब वैज्ञानिक तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भूमि की जैव क्षमता से अधिक शोषण करने से एवं आधुनिक तकनीकों से खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सुरक्षा नहीं प्राप्त की जा सकती है.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि किसानों का मार्केट आधारित आदानों पर निर्भरता कम करने के साथसाथ स्थानीय संसाधनों का सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन के साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि 21वीं सदीं में सभी को सुरक्षित एवं पोषण मुक्त खाद्य की आवश्यकता है. इसलिए प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों के कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ की तरफ बढ़ाया जा सकता है.

भारतीय परंपरागत कृषि पद्धति योजना के तहत देश के 10 राज्यों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस से कम लागत के साथसाथ खाद्य पोषण सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा. जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के तहत खेती को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्राकृतिक खेती के घटकों को आधुनिक खेती में समावेश करना जरूरी है.

 

Natural Farming

डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की आवश्यकता एवं उद्देश्य के बारे में बताया कि उर्वरकों के प्रयोग को 25 फीसदी और पानी के उपयोग को 20 फीसदी तक कम करना, नवीनीकरण ऊर्जा के उपयोग में 50 फीसदी की वृद्धि और ग्रीनहाऊस उत्सर्जन को 45 फीसदी कम करना एवं तकरीबन 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि सुधार करना हमारे देश की आवश्यकता है.

इस के लिए प्राकृतिक खेती को देश को कृषि के पाठ्यक्रम में चलाने के साथसाथ नई तकनीकों को आम लोगों तक पहुंचाना समय की जरूरत है, जो कि वर्तमान समय में देश के कृषि वैज्ञानिकों के सामने एक मुख्य चुनौती है. प्राकृतिक खेती में देशज तकनीकी जानकारी और किसानों के अनुभवों को भी साझा किया जाएगा. इस प्रशिक्षण में देश के 13 राज्यों के 17 संस्थानों से 23 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं.

डा. एसके शर्मा ने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती आज की अंतर्राष्ट्रीय व विश्वस्तरीय  जरूरत है. प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान पिछले 3 सालों से किया जा रहा है. जापान में प्राकृतिक खेती पुराने समय से चल रही है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली पूरे भारत में स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम शुरू कर चुकी है.
डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने सभी अतिथियों के स्वागत के बाद कहा कि प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत को सुधारा जा सकता है. प्राकृतिक खेती के द्वारा लाभदायक कीटों को बढ़ावा मिलता है.

जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती द्वारा प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि आज देश का खाद्यान्न उत्पान तकरीबन 314 मिलियन टन हो गया है और बागबानी उत्पादन करीब 341 मिलियन टन हो गया है. क्या देश में 2 से 5 फीसदी कृषि क्षेत्र पर प्राकृतिक कृषि को चिन्हित किया जा सकता है?

यह संभव है, लेकिन इस के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता है, जो किसानों तक सही पैकेज औफ प्रैक्टिसेज व तकनीकी जानकारी पहुंचा सके, किसानों को मार्केट से जोड़ सके.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन प्रशिक्षण डा. लतिका शर्मा ने किया गया एवं डा. रविकांत शर्मा, सहनिदेशक अनुसंधान ने धन्यवाद प्रेषित किया.

किचन गार्डन बनाएं – उगाएं सब्जियां और फल

अगर आप हर रोज ताजी और हरी सब्जियों के खाने के शौकीन हैं तो आप के लिए किचन गार्डन सब से मुफीद तरीका हो सकता है. बस इस के लिए आप को घर का प्लान करने के समय ही ध्यान देने की जरूरत होती है. आप जब भी घर बनवाने की सोचें तो आपने आर्किटेक्ट को बोल कर कुछ खाली हिस्से को किचन गार्डन के लिए जरूर छोड़ निकलवा लें. आप द्वारा किचन गार्डन के लिए छोड़ी गई थोड़ी सी जमीन आप को हर साल हजारों रुपए का फायदा करा सकती है.

गमले भी हो सकते हैं किचेन गार्डन का हिस्सा

जिन लोगों के घर में सब्जियां उगाने के लिए खाली जमीन नहीं हैं. वह भी घर पर किचेन गार्डन बना कर सब्जियां उगा सकते हैं. इस के लिए गमले का इस्तेमाल किया जा सकता है. गमलों में सब्जियां उगाने के पहले गमलों में भरी जाने वाली मिट्टी को पहले से तैयार कर लेना चाहिए. इस के लिए, मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कंपोस्ट, या नाडेप कंपोस्ट को मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए. मिट्टी में इन खादों को मिलाने के बाद ही गमले में मिट्टी को भरा जाना चाहिए.

गमले में लगाईं जाने वाली सब्जियों के मामले में यह ध्यान दें की एक बार में ही खत्म हो जाने वाली सब्जियों की जगह उन मौसमी सब्जियों को उगाएं जिस से कई बार फलत ली जा सकें. गमले में सब्जी बीज बोने से पहले यह सुनिश्चित कर लें की आप अच्छी किस्म के बीज का इस्तेमाल ही कर रहे हैं. गमले में उगाए जाने वाले सब्जी के मामले में इस बात का विशेष ध्यान देना होता की उस में ली जाने वाली सब्जी के पौधें और जड़ों का फैलाव ज्यादा न हो. इसलिए उन्हीं सब्जियों को लगाना चाहिए  जो कम जगह घेरती हों.

गमलों में लगाईं गई सब्जियों को छत के ऊपर, टेरिस पर या खिड़कियों और दरवाजों के पास आसानी से रखा जा सकता है. जिसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. इस से गमले में लगाए जाने वाले पौधों को सूरज की रौशनी दिखाना और पानी देना भी आसान होता है.

किचन गार्डन के लिए इन सब्जियों का करें चयन

आप मौसम को ध्यान में रख कर अपने किचन गार्डन के लिए सब्जियों का चयन करें. बारिश के शुरुआत में यानी जून जुलाई में बैगन, मिर्च,  खीरा, तोरई, लोबिया, बरसाती प्याज, अगेती फूलगोभी लोबिया,  भिंडी, अरबी, करेला, लौकी, टमाटर, मिर्च, कद्दू की रोपाई या बुआई की जा सकती है. वही रबी सीजन के शुरुआत यानी अक्तूबरनवंबर में चौलाई, लहसुन, टमाटर, भिंडी, बींस, गांठ गोभी, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, बैगन, सोया, पालक, चुकंदर, मूली मेथी, प्याज, लहसुन, पालक, फूल गोभी, गाजर, शलगम, ब्रोकली, सलाद पत्ता, बाकला, बथुआ, सरसों साग जैसी सब्जियों की बुआई या रोपाई की जा सकती है. जायद के सीजन यानी फरवरीमार्च में घिया, तोरी, करेला, टिंडा, खीरा, लौकी, परवल, कुंदरू, कद्दू. भिंडी, बैगन, धनियां, मुली, ककड़ी, हरा मिर्च, खरबूजा, तरबूज, राजमा, ग्वार जैसी सब्जियों की बुआई कर सकते हैं.

इस के अलावा कुछ मेडिशनल प्लांट को भी उगाया जा सकता है. जिस का उपयोग अगर हम रोज करें तो स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलती है. इन में नीम, तुलसी, एलोवेरा, गिलोय, पुदीना, अजवायन, सौंफ, मीठी नीम, अदरक का फसल लिया जाना आसान है. इन के साथ ही हम मौसमी फूलों के पौधों की रोपाई कर घरघर की खूबसूरती में भी चारचांद लगा सकते हैं.

जिन के पास पर्याप्त मात्रा में किचन गार्डन के लिए जमीन उपलब्ध हो वह सब्जियों के साथ फलदार पौधे जैसे पपीता, केला, नीबू, अंगूर, अमरूद, स्ट्राबैरी, रसभरी, अनार, करौंदा आदि रोप कर आसानी ताजे फल प्राप्त कर सकते हैं.

Kitchen Garden
Kitchen Garden

 

किचन गार्डन में काम आनेवाले यंत्र

अगर हम किचन गार्डन में सब्जियां या फल उगाने जा रहें है तो उस के लिए काम आने वाले कुछकुछ यंत्रों की भी जरूरत पड़ती है. जिस से किचन गार्डन का काम आसान बनाया जा सकता है. किचन गार्डन में गुड़ाई के लिए कुदाल और फावड़ा को जरूरी यंत्रों में शामिल किया जा सकता है. इस के अलावा निराई के लिए खुरपी, पानी देनें के लिए पाइप और फौआरा, के साथ दरांती, टोकरी, बालटी, सुतली, बांस या लकड़ी का डंडा, एक छोटा स्प्रेयर की भी जरूरत पड़ती है. जो आसानी से नजदीक के मार्केट से खरीदी जा सकती है.

आप भी बना सकतें हैं और्गेनिक खाद

अगर आप को जैविक या कंपोस्ट खाद मौके से बाजार में न भी मिले तो चिंता नहीं करनी चाहिए. क्यों की हम खुद ही घर पर जैविक और कंपोस्ट बना खाद बना कर न केवल बाजार पर निर्भरता कम कर सकते हैं बल्कि पैसों की बचत भी कर सकते हैं. इस के लिए हम घर से निकलने वाले कूड़ेकरकट, सब्जियों के छिलकों, रेत मिट्टी व थोड़ी मात्रा में गोबर की जरूरत पड़ती है. कंपोस्ट खाद बनानें के लिए हम जमीन में एक गहरा गड्ढा खोद सकते हैं. या मिट्टी के बड़े गमलें का प्रयोग भी कर सकते हैं. सब से पहले इस गड्ढे या गमले के तले मिट्टी की मोटी परत बिछाई जाती है. इस के ऊपर किचन से निकलने वाले सब्जियों और फलों के मुलायम छिलके और पल्प डाला जाता है इस के बाद ऊपर से मिट्टी की मोटी परत डाल कर ढक दिया जाता है. 15-20 दिन में यह खाद इस्तेमाल के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है. जिसे अपने किचन गार्डन में खाद के रूप में किया जा सकता है.

ऐसे करें बीज की बुआई और पौधों की रोपाई-कचन गार्डन में कुछ सब्जियों को सीधे बीज द्वारा बोकर उपजाया जा सकता है. तो कुछ के पौधों को नर्सरी में तैयार किए जाने के बाद रोपा जाता है. जिन सब्जियों की मिट्टी में सीधे बुआई की जाती है उन में करेला, बीन्स, लौकी, घिया, तरोई, कद्दू, लहसुन, प्याज, ककड़ी, पालक, अरबी, लोबिया, खीरा, मूली, धनियां, चौलाई, अजवायन, तुलसी जैसी फसलें शामिल की जा सकती हैं. जिन सब्जियों के पौधों की रोपाई करनी पड़ती है उस में फूल व पत्ता गोभी, टमाटर, बैगन, परवल, सौंफ, पुदीना, हरी व शिमला मिर्च, जैसी तमाम सब्जियां शामिल हैं. सीधे बुआई की जाने वाली सब्जियों की बुआई मेड़ या क्यारी बना कर की जानीं चाहिए. धनियां, प्याज, पुदीना को गार्डन में आनेजाने के रास्तों के बगल और मेड़ पर उगाया जा सकता है. जिन सब्जियों के पौधों की रोपाई करनी होती है उसे किसी विश्वसनीय नर्सरी से ही लेना उचित होता है.

आप ने अपने किचन गार्डन में जिन सब्जियां की बुआई कर रखी है उस में कोशिश करें की आप हर पंद्रह दिन पर फसल को में और्गेनिक खाद मिलती रहे. इस के अलावा फसल में उपयुक्त नमी बनाएं रखने के लिए समय से सिंचाई करते रहना भी जरूरी है. गर्मियों में सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. कोशिश करें की फसल में खरपतवार न उगने पाए इसलिए नियमित रूप से खरपतवार निकालते रहें.

रखे यह सावधानी

किचन गार्डन की शुरुआत करने के पहले कुछ सावधानियों को बरतनें की खासा आवश्यकता होती है. इसलिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्रों से इस की जानकारी ले सकते है. देशभर में बनाए गए ज्यादतर कृषि विज्ञान केंद्र शहरों से सटे हुए हैं जहां गृह विज्ञान और किचन गार्डन से जुड़े एक्सपर्ट भी होते हैं. इन से जानकारी ले कर किचन गार्डन में सब्जियां उगाना ज्यादा फायदेमंद होता है. इस के अलावा कृषि महकमें की वेबसाइटों, आइसीएआर की वेबसाइट से भी जानकारी ली जा सकती है.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन में लगाए जाने वाली सब्जियों के उचित बढ़वार के लिए खुली धूप मिलना जरूरी है. इसलिए हमें घर बनाने का प्लान करते समय इन चीजों का ध्यान रखना चाहिए. घर बनाते समय उस के आसपास की मिट्टी में कंकड़म पत्थर की मात्रा बढ़ जाती है. जिसे गुड़ाई कर निकाल कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना उचित होता है.

हम जिन सब्जियों के बीज को सीधे मिट्टी में बो रहे है उसे बुआई के पूर्व में ही जैव फफूंदनाशी व जैव कल्चर से उपचारित करने कर लेना चाहिए. इस के अलावा बेल वाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, करेला, खीरा आदि को दीवार के सहारे छत के ऊपर ले जा सकते हैं. इस से बाकी जमीन पर लताएं नहीं फैलती है और खाली जमीन पर हम दूसरी सब्जियों की बुआई कर सकते हैं. सब्जियों की सालभर उपलब्धता बनी रहे इस के लिए हमें सब्जियों के चयन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है.

किचन गार्डन बनाने के लाभ

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन में सब्जियां और फलफूल से यह न केवल हर समय ताजा मिलती है बल्कि घर के आसपास की खाली भूमि का सदुपयोग हो भी हो जाता है. इस से सब्जियों और फलफूल के ऊपर होने वाले खर्च की पूरी तरह से बचत हो जाती है. इस के साथ ही हमारी बाजार की सब्जियों पर निर्भरता कम होने से सब्जी खरीदने में होने वाले समय की भी बचत हो जाती है. उन का कहना है की किचन गार्डन में घर के व्यर्थ पानी और कूड़े करकट का उपयोग भी हो जाता है.

विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन आपको प्राकृति और भी के करीब लाता है और सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. क्यों की पौधे की देखभाल करने में आप को संतुष्टि मिलती है और आप तनाव कम होता है. इस के साथ रसायन मुक्त सब्जियां होने से सेहत भी अच्छा रहता.

राघवेंद्र विक्रम सिंह के अनुसार किचन गार्डन में हम ऐसे कई पौधे उगा सकते है जिस से मच्छर को भगाने में मदद मिलती है. यह पौधे दूसरे तरह के कीड़ों को भी भगाने में कारगर होते हैं. इस में गेंदा, लेमनग्रास, तुलसी, नीम, लैवेंडर, रोजमेरी, हार्समिंट और सिट्रोनेला जैसे पौधे प्रमुख हैं.

अगर आप भी चाहते हैं की बाजार से आने वाली पेस्टिसाइड मिली हुई बासी फल, साग व सब्जियों की जगह ताजे फल व सब्जियां मिलती रहे तो इस में किचन गार्डन विधि आप के लिए सब से कारगर साबित हो सकती है. क्यों की आप को यह पता होता है की आप के किचन गार्डन में उगाई गई सब्जियों में किसी तरह के पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं किया गया है. और सब से बड़ी बात अगर कभी आप को लौकडाउन जैसी स्थिति का सामना करना पड़े तो आप बिना घर से निकले ही समय पर उन्हें तोड़ कर खाने में उपयोग कर सकते हैं.

अनेक सरकारी पहल और जैविक खेती को बढ़ावा

नई दिल्ली: 75वीं गणतंत्र दिवस परेड 26 जनवरी, 2024 को दिल्ली में कर्तव्य पथ पर भव्यता के साथ आयोजित की गई. इस वर्ष भारत सरकार ने इस महत्वपूर्ण परेड को देखने के लिए देश की प्रगति और एकता का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न क्षेत्रों के 15,000 से अधिक लोगों को विशेष निमंत्रण दिया था.

गणमान्य व्यक्तियों की सूची में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 1500 से अधिक किसानों को निमंत्रण दिया, जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थी हैं. इस के अलावा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) ने 25 और 26 जनवरी को अपने विशेष आमंत्रित लोगों के लिए 2 दिवसीय कार्यक्रम और प्रशिक्षण भी आयोजित किया.

एक समृद्ध अनुभव के लिए, 25 जनवरी 2024 को किसानों के लिए प्रमुख सरकारी योजनाओं और कृषि अवसंरचना निधि, प्रति बूंद से अधिक फसल, पीएमएफबीवाई आदि जैसी पहलों पर एक व्यापक प्रशिक्षण सत्र और पूसा परिसर के प्रसिद्ध क्षेत्रों का एक फील्ड दौरा आयोजित किया गया था.

कार्यक्रम की शुरुआत केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में एक उद्घाटन समारोह से हुई, जिस में राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे भी शामिल हुईं. गणमान्य व्यक्तियों ने प्रशिक्षण सत्र के संदर्भ और उन के आर्थिक कल्याण के प्रति सरकार की अटूट प्रतिबद्धता और निरंतर समर्थन पर प्रकाश डाला.

26 जनवरी को कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के विशेष आमंत्रित लोगों ने कर्तव्य पथ पर शानदार परेड देखी. परेड के बाद सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने राष्ट्र को आकार देने में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिन में कृषि बजट में 5 गुना वृद्धि, रिकौर्डतोड़ खाद्यान्न और बागबानी उत्पादन और एमएसपी में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी शामिल है.

पीएम किसान, पीएमएफबीवाई जैसी सरकारी पहल और जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाएं किसानों के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं.

मंत्री अर्जुन मंुडा ने कृषि परिदृश्य को बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति दिखाते हुए ऋण पहुंच, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना और प्राकृतिक खेती के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला.

कार्यक्रम का समापन किसानों को मंत्रियों और गणमान्य व्यक्तियों के साथ एक समूह फोटो सत्र में भाग लेने का अवसर मिलने के साथ हुआ, जिस के बाद दोपहर के भोजन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम स्थल पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की योजनाओं और पहलों को प्रदर्शित करने वाले समर्पित सेल्फी स्टैंड और बैनर थे, जो 2 दिवसीय उत्सव के दौरान उल्लेखनीय आकर्षण के रूप में काम कर रहे थे. किसानों ने निर्दिष्ट स्टैंडों पर सक्रिय रूप से भाग लिया और तसवीरें खिंचवाते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की.