स्ट्राबेरी के बाद अब लीची (Litchi) जैसी फसल भी उगा सकेंगे किसान

उदयपुर : 20 अप्रैल 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर आगामी वर्षो में ’हार्ड वर्क’ से ’स्मार्ट वर्क’ की ओर अग्रसर होते हुए कई नवाचार करने को कृतसंकल्पित है, खासकर दक्षिणी राजस्थान में नई फसलों को बढ़ावा देते हुए धरतीपुत्र किसान को आर्थिक रूप से समृद्ध करने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे. इस क्रम में स्ट्राबेरी के बाद अब लीची जैसी फसल भी किसान अपने खेतों में उगा सकेंगे. विश्वविद्यालय की ओर से इस दिशा में अनुसंधान ट्रायल किए जाएंगे.

एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए यह बात कही. औनलाइन हुए इस विस्तृत संवाद में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अलावा कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट (असम) के कुलपति डा. बिद्युत चंदन डेका व महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, नागपुर के कुलपति डा. नितिन वी. पाटिल ने भी अपने विश्वविद्यालय का आगामी वर्षों का विजन साझा किया. चर्चा संवाद में भारतीय कृषि व अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में उपनिदेशक (कृषि शिक्षा) डा. आरसी अग्रवाल भी मौजूद थे.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि आने वाले वर्षों में विश्वविद्यालय के एकाधिक लक्ष्य हैं, जिन पर पूरे मनोयोग से काम करते हुए बेहतर परिणाम लाने के प्रयास किए जाएंगे, ताकि विधार्थियों, वैज्ञानिकों, किसानों और पशुपालकों को कुछ नया करने का अवसर मिल सके.

उन्होंने कहा कि उत्पाद व सुरक्षा प्रौघोगिकियों को विकसित करते हुए जैविक पोल्ट्री फार्म डिजाइन किया जाएगा. यही नहीं, पांरपरिक यानी किसान अभ्यास और जैविक पोल्ट्री उत्पादन प्रणालियों के तुलनात्मक प्रदर्शन लगा कर उन का मूल्यांकन किया जाएगा. साथ ही, जैविक पोल्ट्री उत्पादन पर छात्रों और अन्य हितधारकों की क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम किया जाएगा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने आईसीएआर महानिदेशक को बताया कि विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र दक्षिणी राजस्थान है और यहां खरीफ की प्रमुख फसल मक्का है. ऐसे में विश्वविद्यालय मक्का के खाद्य उत्पादों को प्रोन्नत करने के लिए प्रौद्योगिकियों का न केवल विकास करेगा, बल्कि मानकीकरण भी करेगा. साथ ही, चयनित मक्का खाद्य उत्पादों की पोषण संरचना का विश्लेषण और सुरक्षा का मूल्यांकन भी करेगा. मक्का प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग के लिए उपभोक्ता स्वीकार्यरत कीमत और विपणन रणनीतियों का आकलन भी किया जाएगा. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय नवीनतम तकनीकों के साथ हाईटैक मशरूम उत्पादन के लिए भी कृतसंकल्पित है. मशरूम के सेवन को लोकप्रिय बनाने की दिशा में काम होंगे, क्योंकि इस के कई स्वास्थ्य लाभ हैं.  इच्छुक युवा किसानों के लिए नियमित प्रशिक्षण भी आयोजित किए जाएंगे.

उन्होंने आगे बताया कि कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र खोले जाएंगे. पौधों की सुरक्षा और फसल पोषण में चिटोसिन नैनोकणों जैसे अग्रणी क्षेत्रों पर अनुसंधान किए जाएंगे. इस के अलावा विश्वविद्यालय की ओर से अब तक विकसित प्रौद्योगिकियों के व्यवसायीकरण की दिशा में भी काम किया जाएगा.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि कार्य एडवाइजरी में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) और एमएल (मशीन लर्निंग) का उपयोग करते हुए किसानों के हित में काम करना भी आगामी वर्षों के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है. पशुपालन के क्षेत्र में अधिकाधिक पशु नस्लों का सर्वे कर लक्षण के आधार पर पेटेंट कराया जाएगा.

इस मौके पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने विगत डेढ़ वर्ष की विश्विविद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया गया. विश्वविघालय ने मिलेट पर सचित्र मार्गदर्शिका विकसित की, जागरूकता रैलियां व कार्यशालाएं आयोजित की. यही नहीं, कृषि महाविद्यालयों, अनुसंधान निदेशालय और सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में मिलेट वाटिकाएं भी बनाई गईं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए हमारे जैविक खेती की नेटवर्क परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर 16 राज्यों के 20 केंद्रों में से सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया. अब इस परियोजना में हम एक कदम और आगे निकल कर प्राकृतिक कृषि की शोध में रत हैं. इस के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को चिन्हित किया है. वैज्ञानिकों की क्रियाशीलता से विगत वर्ष एमपीयूएटी ने 9.17 करोड़ राशि की 7 शोध परियोजनाएं प्राप्त करने में सफलता पाई. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित व अनुमोदित किया गया. विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा वर्ष 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई.

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय विगत एक वर्ष में 13 प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों से एमओयू किए, जिन में वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया व सेंट्रल लूजौन स्टेट यूनिवर्सिटी, फिलिपींस सम्मिलित हैं. वर्ष 2022-23 में हमारे प्रक्षेत्रों पर 4105.71 क्विंटल गुणवत्ता बीज का उत्पादन किया गया और 7.35 लाख पादप रोपण सामग्री तैयार की. साथ ही, मछली के 125 लाख स्पान, 3.20 लाख फ्राई और 1.95 लाख फिंगरलिंग का उत्पादन कर किसानों को वितरित किए गए. मुरगी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ने 33,156 चूजों का उत्पादन कर किसानों को मुरगीपालन के लिए प्रदान किए गए. मशरूम की विभिन्न किस्मों के 2,115 किलोग्राम स्पान मशरूम उत्पादकों को दिए गए.

जैव प्रौ‌द्योगिकी (Biotechnology) पर विचार मंथन

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय द्वारा कुलपति डा. डीआर सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में नवनियुक्त सहायक प्रोफैसर सह जैव प्रौ‌द्योगिकी के जूनियर वैज्ञानिक के लिए एक अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के साथ ही “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र भी आयोजित किया गया.

इस अवसर पर प्रसिद्ध जैव प्रौ‌द्योगिकी वैज्ञानिक और राष्ट्रीय पौध जैव प्रौ‌द्योगिकी संस्थान, आईसीएआर के पूर्व निदेशक प्रो. आर. श्रीनिवासन मुख्य अतिथि थे. उन्होंने पादप जैव प्रौ‌द्योगिकी, पर्यावरण जैव प्रौ‌द्योगिकी, जैव सूचना विज्ञान विभाग के नवनियुक्त फैकल्टी सदस्यों सहित श्रोताओं को ज्ञानवर्धन किया. साथ ही, वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य, पादप शरीर विज्ञान और जैव रसायन और आणविक जीव विज्ञान और आनुवंशिकी इंजीनियरिंग विभाग के सदस्य, स्नातक और परास्नातक छात्र भी उपस्थित थे.

प्रो. श्रीनिवासन ने ट्रांसजेनिक, आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों की प्रजातियों और एंजाइम प्रौ‌द्योगिकी जैसे उन्नत जैव प्रौ‌द्योगिकी विषयों के अनुप्रयोग को कवर किया, जो नए कीट प्रतिरोधी, जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के लिए सहायक हो सकते हैं, जो किसानों की आजीविका के उत्थान में मदद कर सकते हैं और भारत और अन्य देशों की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की चुनौती का भी समाधान कर सकते हैं.

पूरा वैज्ञानिक सत्र बहुत ही इंटरएक्टिव यानी संवादात्मक था और विभिन्न महाविद्यालयों जैसे बिहार कृषि महावि‌द्यालय, सबौर, डा. कलाम कृषि महावि‌द्यालय (डीकेएसी), किशनगंज, नालंदा कृषि महाविद्यालय (एनसीएच), नूरसराय, वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय (वीकेएससीए), डुमरांव के वैज्ञानिक और विद्वान, जो इस कार्यक्रम में भाग लेने आए थे, उन्होंने भारत और बंगलादेश, आस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका जैसे अन्य देशों में विकसित ट्रांसजेनिक पौधों जैसे बीटी बैंगन, बीटी पपीता और गोल्डन राइस की स्वीकार्यता के अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा की.

प्रो. श्रीनिवासन ने अपने 40 से अधिक वर्षों के शिक्षण और शोध अनुभव को भी साझा किया और मानव संसाधन के विकास और राष्ट्र निर्माण में उन की भूमिका के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन सीएबीटी द्वारा “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र का आयोजन किया गया. इस सत्र में 2 प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. सुमीत गैरोला, एचएनबी गढ़वाल विश्ववि‌द्यालय, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड और डा. प्रशांत मिश्रा, सीएसआईआर- भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान, जम्मू शामिल हुए. उन्होंने वैज्ञानिकों और जैव प्रौ‌द्योगिकी के प्रोफैसरों को संबोधित किया. दिया गया व्याख्यान बहुत ही जानकारी वाला था और बिहार में किसानों के कल्याण के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों का एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर केंद्रित था.

इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, अधिष्ठाता कृषि डा. एके सिंह, निदेशक विस्तार डा. सोहने, निदेशक बीज विज्ञान और विस्तार डा. फिजा अहमद, बिहार कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एसएन राय और कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय के डा. एन. चट्टोपाध्याय जैसे कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. उन्होंने जलवायु अनुकूल फसल किस्म, विकास, स्पीड ब्रीडिंग, जैव कीटनाशक, जैव कीटनाशक उत्पाद विकास के लिए सूक्ष्म जीवों के उपयोग और किसानों की आजीविका के अंतिम लाभ और उत्थान के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी के महत्व पर अपने विचार साझा किए.

कार्यक्रम का आयोजन और संचालन सीएबीटी/एमबीजीई के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य डा. शशिबाला, डा. रवि केसरी, डा. तुषार रंजन और डा. विनोद द्वारा किया गया.

जई (Oats) की नई किस्म से बढ़ेगा पशुओं का दूध

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग ने जई की नई उन्नत किस्म एचएफओ 906 विकसित की हैं. देश के उत्तरपश्चिमी राज्यों के किसानों व पशुपालकों को जई की इस किस्म से बहुत लाभ होगा.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा व पाचनशीलता अधिक होने के कारण ये पशुओं के लिए बहुत उत्तम हैं. उन्होंने बताया कि देश में 11.24 फीसदी हरे व 23.4 फीसदी सूखे चारे की कमी है. जिस के कारण पशुओं की उत्पादकता प्रभावित हो रही है. चारे की अधिक गुणवत्तापूर्ण व ज्यादा पैदावार देने वाली किस्में विकसित होने से पशुपालकों को लाभ होगा व पशुओं की उत्पादकता भी बढ़ेगी. साथ ही, एचएफओ 906 किस्म राष्ट्रीय स्तर की चैक किस्म कैंट एवं ओएस 6 से भी 14 फीसदी तक अधिक हरे चारे की पैदावार देती है.

जई की एचएफओ 906 एक कटाई वाली किस्म है. उन्होंने बताया कि भारत सरकार के राजपत्र में केंद्रीय बीज समिति की सिफारिश पर जई की एचएफओ 906 किस्म को देश के उत्तरपश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उतराखंड) के लिए समय पर बिजाई के लिए अनुमोदित की गई हैं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई फसलों की किस्मों का न केवल हरियाणा, अपितु देश के अन्य राज्यों के किसानों को भी लाभ हो रहा है. हकृवि द्वारा विकसित किस्मों की मांग अन्य प्रदेशों में भी लगातार बढ़ती जा रही है. यह हकृवि के साथ हरियाणा राज्य के लिए गर्व की बात है. उन्होंने इस उपलब्धि के लिए चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों को बधाई दी और भविष्य में भी अपने प्रयास जारी रखने का आह्वान किया.

उत्तरपश्चिमी राज्यों के लिए विकसित जई की नई किस्म की विशेषताएं

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा ने जई की नई किस्म की विशेषता के बारे में बताया कि एचएफओ 906 किस्म की हरे चारे की औसत पैदावार 655.1 क्विंटल व सूखे चारे की औसत पैदावार 124.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस की बीज की औसत पैदावार 27.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि क्रूड प्रोटीन की पैदावार 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म के चारे में प्रोटीन की मात्रा 10 फीसदी है, जिस के कारण इस के चारे की गुणवत्ता पशुओं के लिए अधिक लाभदायक है.

एचएफओ 906 किस्म को विकसित करने में इन वैज्ञानिकों का रहा योगदान

इस किस्म को विकसित करने में चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों डा. योगेश जिंदल, डा. डीएस फोगाट, डा. सत्यवान आर्य, डा. रवीश पंचटा, डा. एसके पाहुजा, डा. सतपाल एवं डा. नीरज खरोड़ का खासा योगदान रहा है.

इस अवसर पर आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा. गजराज सिंह दहिया, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य एवं एसवीसी कपिल अरोड़ा भी उपस्थित रहे.

“प्राणवायु क्लब” (Pranavayu Club) की स्थापना

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार में कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में पृथ्वी, आकाश, वायु, जल के स्वास्थ्य और हरित ऊर्जा एवं पर्यावरण पर केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र को संधारणीय रखने के लिए संयुक्त दृष्टिकोण की अदभुत अवधारणा के अंतर्गत “प्राणवायु क्लब” की स्थापना की गई है. क्लब का गठन छात्र कल्याण निदेशालय, लुवास के तत्वावधान में किया गया है और इस में लुवास के घटक कालेजों के 9 संकाय सदस्य और 18 छात्र शामिल हैं.

इस क्लब की पहली बैठक कुलपति सचिवालय में कुलपति की अध्यक्षता में हुई. कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा ने क्लब की कोर कमेटी के सदस्यों को उन के इस क्लब को ले कर विचारधारा के बारे में अवगत कराया. उन्होंने क्लब के कामकाज की रूपरेखा पर भी चर्चा की.

उन्होंने कहा कि इस क्लब के गठन की उन की अवधारणा न केवल संकाय सदस्यों और युवाओं के बीच स्वच्छ, साफ व संधारणीय पर्यावरण के लिए जागरूकता पैदा करना है, बल्कि इस दिशा में काम करना भी है.

डा. विनोद कुमार वर्मा ने कहा कि वह आशा व्यक्त करते है कि डा. दीपिका की अध्यक्षता में क्लब उन सभी पहलुओं पर काम करेगा, जिस से ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने, कचरे को कम करने, संसाधनों के पुनर्चक्रण और लुवास के अपने नवनिर्मित परिसर सहित आसपास के क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिए लुवास के कर्मचारी, विद्यार्थी व संकाय सदस्य को जागरूक करेगा व सब को साथ ले कर क्लब के उद्देश्य को पूरा भी करेंगे.  इस के अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों और पूर्व छात्रों का सहयोग लिया जाएगा.

अंत में उन्होंने कहा कि हमारी यह पहल लुवास के नवनिर्मित परिसर को हरियाली से भरपूर व विश्वविद्यालय को कार्बन न्यूट्रल बनाने में अहम भूमिका निभाएगी.

क्लब की अध्यक्ष पशु चिकित्सा रोग विज्ञान में एसोसिएट प्रोफैसर डा. दीपिका ने कुलपति को धन्यवाद दिया कि उन्होंने ऐसे समूह का नेतृत्व करने का अवसर दिया, जो पर्यावरण को स्वच्छ रखने की दिशा में काम करेगा. डा. दीपिका ने कहा कि इस क्लब की सदस्यता निजी संगठन, सरकारी एवं गैरसरकारी संगठन और आम लोग भी ले सकेंगे. इस के लिए सदस्यता अभियान जल्दी शुरू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि क्लब के सदस्य उन उद्देश्यों और लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपना पूरा प्रयास करेंगे.

किसानों (Farmers) को मिलेगा लाभ

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की उन्नत कृषि तकनीकों, शोध कार्यों व नवाचारों का कांगो गणराज्य के किसानों को भी लाभ मिलेगा. इसी कड़ी में कांगो गणराज्य के राजदूत वाबेंगा कालेबो थियो के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज से मुलाकात की. इस बैठक में हकृवि के अधिकारियों सहित हरियाणा के प्रगतिशील किसान भी उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को विश्वविद्यालय द्वारा कृषि क्षेत्र में किए जा रहे शोध कार्यों एवं उन्नत किस्म के बीजों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई. प्रतिनिधिमंडल को बासमती चावल एवं मक्का की खेती में खासतौर पर सहयोग देने पर चर्चा हुई.

बैठक में सदस्यों ने कृषि क्षेत्र में निवेश करने के लिए विशेष रूप से केंद्रीय कृषि अनुसंधान और कृषि व्यवसाय से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों को स्थापित करने में रुचि दिखाई. उन्होंने कहा कि चावल उत्पादन के लिए संसाधनों का पता लगाने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए हरियाणा के प्रगतिशील किसानों एवं कांगो के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए विस्तार से बातचीत की गई.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि कृषि क्षेत्र से संबंधित नवीनतम तकनीकों को अपना कर कांगो में आर्थिक विकास को गति प्रदान की जा सकती है. हरियाणा के प्रगतिशील किसानों ने बैठक में सिंचाई की नवीनतम विधियों, जलवायु परिवर्तन, कृषि उपकरण, कृषि पद्धतियों और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि करने के लिए स्थायी और लाभदायक पद्धति विकसित करने के लिए आपसी तालमेल बढ़ाने पर जोर दिया.

बैठक में बीज उत्पादन, कृषि आत्मनिर्भरता, मक्का उत्पादन, जैविक उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग के अतिरिक्त भोजन की बरबादी को कम करने, कृषि उपज में मूल्य जोड़ने, भंडारण की बेहतर व्यवस्था करने और फसल कटाई के बाद प्रोसैसिंग सुविधाओं में निवेश करने पर जोर दिया.

कांगो गणराज्य के राजदूत वाबेंगा कालेबो थियो ने बताया कि प्रतिनिधिमंडलों के मध्य हुई बैठक से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने, वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों एवं किसानों से जुड़े विभिन्न महत्वाकांक्षी कार्यों को गति मिलेगी. विश्वविद्यालय की उन्नत तकनीकों व नवाचारों से कांगो गणराज्य की कृषि संबंधित तकनीकों व उपकरणों में काफी सुधार आएगा.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की.

बैठक में अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्रभारी डा. आशा क्वात्रा ने प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों का स्वागत किया. भारत सरकार के विदेश सहयोग विभाग के सलाहकार पवन चौधरी, कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल, ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, छात्र कल्याण निदेशक डा. एमएल खिच्चड़, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता, डा. नीरज कुमार, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव व डा. पी. कीर्ति उपस्थित रहे.

कांगो प्रतिनिधिमंडल ने हकृवि के विभिन्न स्थलों का दौरा किया. प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न स्थलों को देखा. इन स्थलों में डा. मंगलसेन संग्रहालय, दीन दयाल उपाध्याय जैविक उत्कृष्टता फार्म, टिशू कल्चर लैब और एबिक का दौरा कर हकृवि के वैज्ञानिकों से अनुसंधान एवं तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त की.

48 फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes) को मिलेगी राष्ट्रीय पहचान

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सबएग्रीस सभागार में राज्य के विभिन्न जिलों में लंबे समय से किसानों द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों एवं व्यंजनों को जीआई टैग दिलाने को ले कर एक समीक्षा बैठक की गई. बैठक का आयोजन शोध निदेशालय द्वारा किया गया, जिस की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह कर रहे थे.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, अतिरिक्त इस के कालांतर से उन के द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों की खेती एवं व्यंजनों को जीआई टैग प्रदान करवा कर उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई जाएगी. इस दिशा में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाएगा, ताकि देशभर में जीआई टैग के आधार पर राज्य का नाम रोशन हो सके और इस का भरपूर लाभ किसानों को भी मिल सके.

फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes)कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि अब तक 97 स्टार्टअप को उद्यम के रूप में स्थापित करने में तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. कुलपति ने कहा कि सबएग्रीस से प्रमाणित होने के बाद उस स्टार्टअप की अहमियत और बढ़ जाती है.

समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों द्वारा कुल मिला कर 48 फसलों व व्यंजनों की विशेषताओं को ले कर अपनाअपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन की प्रस्तुति दी, जिस में वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार ने मोकामा के मखाना मशरूम, डा. प्रशांत सिंह ने रोहतास के सोना चूर चावल, डा. रफत सुल्ताना ने बांका, मुंगेर के पाटम अरहर, डा. अनिल कुमार ने भागलपुर के तितुआ मसूर, डा. रणधीर कुमार ने पटना के दीघा मालदा आम, डा. रविंद्र कुमार ने समस्तीपुर के बथुआ आम, डा. प्रकाश सिंह ने सहरसा के नटकी धान, डा. केके प्रसाद ने रोहतास के गुलशन टमाटर, डा. विनोद कुमार ने गोपालगंज के थावे का पुरुकिया, डा. तुषार रंजन ने सुपौल के पिपरा का खाजा और डा. सीमा ने पटना के रामदाना लाई पर अपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया, जिसे समीक्षा बैठक में उल्लेखनीय बताया गया.

उन्नत किस्मों से कपास (Cotton) की बढ़ेगी पैदावार

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को कपास का उत्पादन बढ़ाने, उन्नत किस्म के बीजों एवं तकनीकी जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए.

प्रशिक्षण शिविर में अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने किसानों को बताया कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप खेतों मे रखी हुई लकड़ियों/बनछटियों के कारण फैलता है, इसलिए इन का उचित प्रबंधन किया जाए.

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक प्रशिक्षण डा. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान द्वारा समयसमय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं.

कपास अनुभाग के प्रभारी डा. करमल सिंह ने प्रदेश में कपास उत्पादन के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं से अवगत कराया. उन्होंने बताया कि बीटी नरमा के लिए शुद्ध नाइट्रोजन, शुद्ध फास्फोरस, शुद्ध पोटाश व जिंक सल्फेट क्रमश: 70:24 24:10 किलोग्राम प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है. उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के आधार पर तय की जानी चाहिए. 5-6 साल में एक बार 5-7 टन गोबर की खाद जरूर डालनी चाहिए.

कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सोमवीर ने कपास की मुख्य विशेषताओं एवं किस्मों के बारे में अवगत करवाया, वहीं कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़ ने कपास में लगने वाले कीट व उन के प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

डा. संदीप कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया और डा. शुभम लांबा ने मंच का संचालन किया. इस के अतिरिक्त शिविर में किसानों को विश्वविद्यालय की तरफ से उत्पादक सामग्री भी प्रदान की गई.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project) द्वारा संचालित कामों का अवलोकन

उदयपुर : 4 अप्रैल, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना, जो कि विश्व बैंक द्वारा संचालित है, उस के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों में विश्व बैंक परियोजना द्वारा संचालित कामों का अवलोकन किया.

उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक एवं अधिकारियों के साथ संवाद किया और डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय के नवीनीकृत प्रयोगशाला का दौरा किया.

प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर के एक्पेरिंयन्शल लर्निंग यूनिट (नई खाद्य प्रसंस्करण प्रयोगशाला इकाई) में छात्रों द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों को देखा एवं उस की तहेदिल से सराहना की.

इस अवसर पर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय के सभागार में विश्व बैंक परियोजना के अंतर्गत विदेश में प्रशिक्षण लेने गए संकाय सदस्यों एवं छात्रों से एकएक कर के वार्ता की एवं प्रशिक्षण के अनुभव के आधार पर नई तकनीकी का उपयोग करते हुए विश्वविद्यालय में नई परियोजना लाने एवं उस पर काम करने के लिए प्रेरित किया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस परियोजना के माध्यम से विश्वविद्यालय के 11 संकाय सदस्यों एवं 71 छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण करने का अवसर प्राप्त हुआ.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project)

छात्रों ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सतत कृषि विकास के लिए स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षण एवं हवा, पानी और मिट्टी के विश्लेषण के लिए अत्याधुनिक उपकरणों के उपयोग पर प्रशिक्षण प्राप्त किया. इस के अतिरिक्त विश्वविद्यालय सभी सांगठनिक महाविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए आधुनिक उपकरण खरीदे गए, जो अनुसंधान के लिए काफी मददगार साबित हुए.

इस परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय की अनुसंधान गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला, जिस के द्वारा विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रकाशन में आशातीत प्रगति हुई है एवं विश्वविद्यालय का एच इंडेक्स वर्ष 2019 में 38 था, जो आज बढ़ कर 72 हो गया है. इस दौरान विश्वविद्यालय ने 17 पेटेंट प्राप्त किए हैं और विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने इस से प्रेरित हो कर अपना स्वयं का स्टार्टअप प्रारंभ कर दिया है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय का चहुंमुखी विकास हुआ है और विशेष रूप से स्नातक छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण के साथसाथ शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास हुआ है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में यह परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भारत सरकार) और विश्व बैंक की वित्तीय सहायता से विगत 5 सालों से लागू की जा रही थी. इस परियोजना का कार्यकाल 1 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2023 तक रहा.

परियोजना प्रभारी डा. पीके सिंह ने परियेाजना के अंतर्गत कराए गए विभिन्न कामों का एक प्रतिवेदन विश्व बैंक के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव के सम्मुख प्रस्तुत किया.

अंत में डा. लोकेश गुप्ता, अघिष्ठाता, डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर ने विश्व बैंक की टीम के लीडर डा. बेकजोड शेमसीव का पहली बार विश्वविद्यालय में आने पर स्वागत किया एवं आभार जताया. साथ ही, विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों का स्वागत करते हुए आभार जताया.

पशु चिकित्सक (Veterinarian) बनें या करें उद्यम, खुले अनेक रास्ते

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार के पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 2018 बैच के 67 नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों के लिए शपथ समारोह का आयोजन किया गया, जिन में 21 छात्राएं और 46 छात्र शामिल रहे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा मुख्य अतिथि एवं आईपीवीएस निदेशक डा. एसपी दहिया, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार मंच पर उपस्थित रहे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने की. इस के बाद नवप्रशिक्षित स्नातकों को पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने शपथ दिलाई.

शपथ समारोह के बाद मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा द्वारा नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इंटर्नशिप कंप्लीशन सर्टिफिकेट वितरित किए गए.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को कहा कि उन की शिक्षा यहीं खत्म नहीं हुई है, आप लोग आगे भी अपने ज्ञान में लगातार वृद्धि करते रहना है, क्योंकि सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है. समय और स्थान के मुताबिक अपनेआप को अपडेट करना भी बहुत जरूरी है.

उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि पशु चिकित्सक आज के समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और पशु चिकित्सा एक चुनौतीपूर्ण व्यवसाय है. नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इसे इसी परिप्रेक्ष्य में पूरा करना है. आप ने इस पाठ्यक्रम में जो वैज्ञानिक ज्ञान और कौशल हासिल किया है, उस का प्रयोग समाज की उन्नति के लिए करना है और अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करना है, ताकि वे समाज को अच्छी सेवाएं दे सकें.

डा. वीके वर्मा ने कहा कि हमारा व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और हमें चाहिए कि हम उद्यमिता की तरफ ध्यान दें और नौकरी तलाशने वाले न बन कर नौकरी देने वाले बनें, जिस के लिए आप स्टार्टअप के तौर पर दुग्ध एवं मांस प्रसंस्करण संयंत्र, पशु चिकित्सा निदान प्रयोगशालाएं, औनलाइन पशु उत्पाद/पशु बाजार जैसे कई अन्य उद्यम शुरू कर सकते हैं.

 

पशु चिकित्सक (Veterinarian)लुवास कुलपति ने उपस्थित अधिकारियों, विभागाध्यक्षों, फैकल्टी सदस्यों, शपथ लेने वाले पशु चिकित्सक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आप सब बधाई के पात्र हैं, क्योंकि आप सब की अथक मेहनत के कारण ही हम ये आज का समारोह मना रहे हैं. लुवास परिवार की कड़ी मेहनत से ही आप आज समाज में एक उत्तम स्थान लेने के लिए सजग हैं.

कुलपति ने उपस्थित अभिभावकों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आप ने आज से साढ़े 5 वर्ष पूर्व अपने बच्चों को जिस भरोसे के साथ लुवास में प्रवेश दिलाया था, विश्वविद्यालय उस भरोसे को कायम रखते हुए उन बच्चों को परिपक्व पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के रूप में लौटा रहा है.

अंत में उन्होंने प्रशिक्षित छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि अब आप स्वतंत्र पशु चिकित्सा करने योग्य होंगे एवं समाज को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकेंगे.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आने वाले समय में उन्हें एक परिपक्व पशु चिकित्सक की तरह प्रदेश के पशुधन की सेवा करनी है, जिस से कि विश्वविद्यालय का नाम रोशन हो.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आने वाले समय में आप को समाज की अगुआई करनी है. उम्मीद है, पशु चिकित्सा की पढ़ाई खत्म होने के बाद अब आप पशुपालकों, समाज, राज्य और देश की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.

पशु चिकित्सक (Veterinarian)

शपथ लेने वाले नव पशु चिकित्सा छात्रों में से बाद में डा. आशीष चौहान, डा. करन एवं डा. जैस्मिन ने डिगरी के दौरान के अनुभव साझा किए व डा. रमन मोर ने अपने सभी दोस्तों को याद करते हुए एक कविता प्रस्तुत की.

इस अवसर पर लुवास विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. एसएस ढाका, अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, मानव संसाधन एवं प्रबंध निदेशक डा. राजेश खुराना, डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता डा. सज्जन सिहाग, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष व विद्यार्थी उपस्थित रहे.

डा. दिव्या अग्निहोत्री ने मंच का संचालन किया और संक्षेप में इंटर्नशिप प्रोग्राम के बारे में बताया. अंत में टीवीसीसी निदेशक डा. ज्ञान सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में जीवाणु व केंचुए कैसे हैं मददगार

प्राकृतिक खेती में केंचुए और जीवाणुओं का खासा महत्व है. वह खेत की मिट्टी को प्राकृतिक तरीके से सुधारने का काम करते हैं. इसी विषय पर अधिक जानकारी के लिए प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा से विस्तार से जानिए.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी में लाभदायक कीटों और केंचुओं की संख्या में कैसे इजाफा होता है?

प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं है, बल्कि केंचुए की मात्रा, जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक हैं. खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढ़ते हैं, तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ़ जाता है. जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा हो कर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है. दूसरे लाभदायक जीवाणु, जो रासायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नहीं पनप पाते हैं. प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ़ जाते हैं, जिस के फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा, बदलता मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का निर्माण किसान कैसे करें?

जीवामृत, जो कि वह सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है. इस को बनाने के लिए 10 लिटर देशी गाय का गौमूत्र, 10 किलोग्राम ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किलोग्राम बेसन, 2 किलोग्राम गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 लिटर पानी में मिला कर इन को जूट की बोरी से ढ़क कर छाया में रखना चाहिए. फिर सुबहशाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए. अंत में 48 घंटे बाद छान कर सात दिन के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए.

छोटे और मझोले किसान प्राकृतिक या जैविक खेती कैसे करें?

देश में 86 फीसदी किसान छोटे और मझोले हैं. जैविक खेती के आरंभ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है, उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रासायनिक इनपुट से भी अधिक है, जिस से जैविक खेती में छोटे किसानों का शोषण होता है. जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है.

जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है, तो इस में विद्यमान जीवाणु भूमि में जा कर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इन में ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 फीसदी नाइट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं. दूसरे, पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाने में जीवाणुओं के साथ केंचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व ले कर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है.

प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाए, तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है. फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या एक एकड़ में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इस के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ाए जाए, ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आए, तो इस से किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देश की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो.