आम की अच्छी कीमत दिलाए अच्छी पैकेजिंग (Packaging)

आम के फलों को अगर अच्छे बाजार मूल्य पर बेचना चाहते हैं, तो इस के लिए जरूरी है कि आम के फल देखने में दागधब्बे रहित हों और दिखने में सुंदर भी हों. साथ में उस की साइज भी औसत में एकजैसी होनी जरूरी होती है. इस के लिए जितना जरूरी आम के बागों की समय से सिंचाई, गुड़ाईजुताई और कीट व बीमारियों का प्रबंधन होता है, उतना ही जरूरी हो जाता है कि फलों की बढ़वार की नियमित निगरानी और उस का बैगिंग किया जाना.

आम की परंपरागत और अधिक ऊंचाई वाली किस्मों में बैगिंग किया जाना तो संभव नहीं है, लेकिन देश में प्रचलित रंगीन बौनी किस्में, जिन्हें व्यवसाय के नजरिए  से अच्छा माना जाता है और जिन के पौधों की बढ़वार बहुत कम होती है या जिन किस्मों की नियमित अंतराल पर प्रूनिंग का काम पूरा किया जाता है, उन किस्मों की फलत में बैगिंग किया जाना आसान होता है.

आम की सघन बागबानी वाली सभी किस्मों की बैगिंग किया जाना आसान होता है. ऐसे में किसान समय से आम के फलों की बैगिंग कर के अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. बैगिंग किए जाने से फलों की क्वालिटी में गुणात्मक बढ़ोतरी हो जाती है. जो किसानों बागबानों को अधिक बाज़ार मूल्य दिलाने में मददगार होता है.

कब करें बैगिंग या थैलाबंदी

आम के फलों की बैगिंग का सब से मुफीद समय आम के फलों के आंवले के साइज के आकार के होने पर होता है. इस दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, सल्फेट, कौपर सल्फेट और बोरेक्स का पर्णीय छिड़काव करने के बाद एक थैले में एक ही फल को बंद कर के बैगिंग कर लेना चाहिए.

सघन बागबानी वाली किस्मों की कैसे करें थैलाबंद

सघन बागबानी के तहत रोपे गए आम के पौधे बौने साइज के होते हैं. ऐसे में इन किस्मों की थैलाबंदी आसान होती है. आम के फलों की थैलाबंदी के लिए जिन थैलों का प्रयोग किया जाता है, वह बाहर से भूरे और अंदर से काले रंग के होते हैं.

आप थैलाबंदी करते समय एकएक फलों पर थैला पहना कर उसे धागे से बांध दें. अगर थैलों की बंधाई नहीं की जाती है, तो हवा के झोंकों से थैले नीचे गिर सकते हैं.

कब करे थैलाबंद फलों की तुड़ाई

अगर आप ने अपने आम के बगीचे में फलों की थैलाबंदी कर रखी है, तो यह ध्यान रखें कि जब आम के फल पकने की अवस्था में पहुंच गए हों और उन के छिलके का रंग सुनहरा पीला हो गया हो, तभी तुड़ाई का काम शुरू करें.

चूंकि सघन बागबानी में पौधों की ऊंचाई कम होती है, ऐसे में फलों की तुड़ाई हाथ से आसान होती है. फलों को तोड़ते समय यह ध्यान रखें कि जब भी फल तोड़े जाएं, तो उन के साथ तकरीबन 1 सैंटीमीटर का डंठल जरूर लगा हुआ हो.

तुड़ाई के दौरान यह भी ध्यान रखें कि फलों को तोड़ते समय चोट न पहुंचे, अन्यथा फलों में सड़न पैदा हो सकती है. आप जब फलों की तुड़ाई कर लें, तो उन का भंडारण छायादार जगह पर ही करें. इस से फलों को लंबे समय तक महफूज रखा जा सकता है.

पैकेजिंग (Packaging)

थैलाबंदी का फल की क्वालिटी पर असर

आम ही नहीं, बल्कि किसी भी फल की अगर थैलाबंदी कर दी जाए, तो उस के फल सामान्य आकार, चमकदार रंग के साथ दागधब्बा रहित होते हैं. थैलाबंदी वाले फलों की मिठास, क्वालिटी और भंडारण क्षमता खुले में तैयार फलों की तुलना में काफी अच्छी मानी जाती है. इस से न केवल फलों का वजन अच्छा बढ़ता है, बल्कि फल में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है.

छात्रों को कृषि के क्षेत्र में कैरियर बनाने का सुनहरा अवसर

आज हमारा देश बहुत से कृषि उत्पादों के उत्पादन में विश्व स्तर पर पहला स्थान रखता है. अब जरूरत है कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही उत्पादों की क्वालिटी भी सुनिश्चित की जाए, जिस से कि मानव की सेहत बेहतर हो. साथ ही, पर्यावरण भी सुरक्षित हो सके.

आज के परिवेश में दूसरी सब से अधिक जरूरत है कृषि में उद्यम स्थापना की, जिस से कि ग्रामीण युवा बेरोजगारों को अपने गांव में ही आय और रोजगार के साधन मुहैया हो सकें. विगत दशकों में कृषि का क्षेत्र विभिन्न कारणों से उपेक्षित रहा है और कृषि के काम में लगे लोगों को यथोचित सम्मान नहीं मिला, लेकिन पिछले दशक से कृषि में उद्यमिता स्थापित करने का चलन बढ़ा है. इस क्षेत्र में न केवल कृषि के छात्र, बल्कि बड़ीबड़ी निजी कंपनियां और स्टार्टअप भी आ रहे हैं.

देश के विकास में कृषि शिक्षा और अनुसंधान में बढ़ती संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. कृषि के क्षेत्र में छात्रों की अच्छी तालीम, अनुसंधान व दक्षता अभिवृद्धि के लिए राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर 5 कृषि विश्वविद्यालय हैं, जिन में प्रवेश परीक्षा के जरीए एडमिशन दिया जाता है.

Ramji Singhसरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलसचिव प्रो. रामजी सिंह ने बताया कि राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश प्रदेश स्तरीय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (यूपी कैटेट) के माध्यम से होता है. इस वर्ष यूपी कैटेट 2024 प्रवेश परीक्षा का आयोजन कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा ही कराया जा रहा है, जिस में आवेदन 17 मार्च, 2024 से ही प्राप्त किए जा रहे हैं. आवेदन की अंतिम तिथि 7 मई, 2024 है.

उन्होंने आगे बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी में ज्यादातर छात्र इस परीक्षा को देने से वंचित रह जाते हैं, जिस से कि आगे चल कर उन के भविष्य पर इस का विपरीत प्रभाव होता है. खासकर यदि पूर्वांचल क्षेत्र की बात करें, तो इस क्षेत्र में छात्रों एवं अभिभावकों में कृषि शिक्षा की जागरूकता और भी कम है. इंटरमीडिएट विज्ञान अथवा कृषि में उत्तीर्ण छात्र बीएससी (कृषि) अथवा अन्य समकक्ष पाठ्यक्रम जैसे बागबानी, वानिकी, कृषि अभियंत्रण, खाद्य व दुग्ध प्रौद्योगिकी, पशु चिकित्सा विज्ञान, गृह (सामुदायिक) विज्ञान, मत्स्य विज्ञान व गन्ना प्रौद्योगिकी में प्रवेश ले सकते हैं. इस के अतिरिक्त एमएससी (कृषि) व पीएचडी में भी प्रवेश ले सकते हैं.

Rodra Pratapकृषि विज्ञान केंद्र, कोटवा, आजमगढ़ में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डा. रुद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में कृषि शिक्षा व अनुसंधान को बढ़ावा दिए जाने के लिए वर्तमान में कुल 5 राज्य कृषि विश्वविद्यालय संचालित हैं. इन विश्वविद्यालयों में शिक्षा और अनुसंधान का स्तर अन्य महाविद्यालयों से बेहतर होता है. साथ ही, छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की जानकारी और अच्छा शैक्षणिक माहौल भी मिलता है. यदि कृषि के क्षेत्र में नौकरी की बात करें, तो आज भी कृषि के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपार संभावनाएं हैं. लेकिन इस के लिए शिक्षा संस्थान जहां से शिक्षा ली गई है, बेहद मायने रखता है. श्री दुर्गाजी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदेश्वर, आजमगढ़ के सहायक प्राध्यापक डा. सर्वेश कुमार ने बताया कि स्थानीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से उत्तीर्ण छात्रछात्राएं भी विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्राप्त कर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

Mulayam Yadavकृषि विभाग, आजमगढ़ में वरिष्ठ प्राविधिक सहायक के पद पर काम कर रहे डा. मुलायम यादव ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालयों में बीएससी (कृषि), एमएससी (कृषि) व पीएचडी कर के प्रशासनिक पदों के साथ ही कृषि व अन्य संबंधित विभागों में अधिकारी व कर्मचारी के रूप में चयनित हो सकते हैं. साथ ही, ऊंची तालीम ले कर विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में वैज्ञानिक, महाविद्यालय व विश्वविद्यालयों मे सहायक प्राध्यापक आदि पदों पर भी चयनित हो सकते हैं. इस के अलावा बैंकों व अर्धसरकारी कंपनी व निजी कंपनियों में भी कृषि के छात्रों को अच्छी नौकरी मिलती है.

Roopaliआचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या की शोध छात्रा रूपाली सिंह ने बताया कि ग्रामीण छात्राओं के लिए भी कृषि विश्वविद्यालयों से शिक्षा लेना एक बेहतर विकल्प है. यहां से शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्रामीण युवा कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में उद्यम स्थापित कर के न केवल अपना भविष्य संवार  सकते हैं, बल्कि अन्य लोगों को रोजगार के साधन मुहैया करा सकते हैं.

फसल अवशेष ( Crop Residue) जलाने पर होगी कार्यवाही

बस्ती : गेहूं फसल अवशेष जलने की घटना का स्थलीय सत्यापन एवं घटनाओं के नियंत्रण के लिए क्षेत्रीय कर्मचारियों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने के साथ ही शासन एवं कृषि विभाग द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कराने के लिए संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के तीनों उपनिदेशक कृषि एवं जिला कृषि अधिकारियों को निर्देशित किया है.

अधिकारियों को लिखे पत्र में संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने कहा है कि जनपद स्तर पर एक सेल का गठन करते हुए प्रत्येक दिन की घटनाओं का अनुश्रवण किए जाने एवं प्रत्येक गांव के ग्राम प्रधान एवं क्षेत्रीय लेखपाल को प्रत्येक दशा में अपने से संबंधित क्षेत्र में पराली/कृषि अपशिष्ट जलाने की घटना को रोके जाने के लिए निर्देशित करें.

उन्होंने कहा कि प्रत्येक राजस्व ग्राम अथवा राजस्व ग्राम क्लस्टर के लिए एक राजकीय कर्मचारी को नोडल अधिकारी नामित करें, जो कि सभी के बीच प्रचारप्रसार करते हुए फसल अवशेष आदि को न जलने के लिए प्रेरित करे. लेखपाल की जिम्मेदारी होगी कि अपने क्षेत्र में फसल अवशेष जलने की घटनाएं बिलकुल न होने दें, अन्यथा शिकायत मिलने पर उन के विरुद्ध भी कार्यवाही की जाएगी. जनपद स्तर पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक सेल स्थापित करने के निर्देश पूर्व में दिए जा चुके हैं.

उपजिलाधिकारी के अंतर्गत गठित सचल दस्ते का दायित्व होगा कि फसल अवशेष आदि जलने की घटना की सूचना मिलते ही तत्काल मौके पर पहुंच कर संबंधित के विरुद्ध विधिक कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे.

उन्होंने बताया कि 2 एकड़ से कम जोत वाले किसानों के लिए फसल अवशेष जलाने पर 2,500 रुपए प्रति घटना और 2 एकड़ से अधिक जोत वाले किसानों से 5,000 रुपए प्रति घटना तहसीलदार के स्तर से आर्थिक दंड लगाया जाएगा.

उन्होंने आगे बताया कि फसल कटाई के दौरान प्रयोग की जाने वाली कंबाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अथवा स्ट्रा रीपर अथवा स्ट्रा रेक एवं बेलर अथवा अन्य कोई फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र का उपयोग किया जाना अनिवार्य होगा.

यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उक्त व्यवस्था बगैर आप के जनपद में कोई कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई न करने पाए. प्रत्येक कंबाइन हार्वेस्टर के साथ कृषि विभाग/ग्राम्य विकास का एक कर्मचारी नामित रहे, जो कि अपनी देखरेख में कटाई काम कराएं. फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों के बगैर चलते हुए पाए जाए, तो उस को तत्काल सीज कर लिया जाए और कंबाइन मालिक के स्वयं के खर्चे पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगवा कर ही छोड़ा जाए.

हकृवि और प्राग के अनुबंध से मिलेगी मजबूती

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के बीच अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध को अगले 5 साल के लिए बढ़ाया गया. इस अनुबंध के अनुसार दोनों संस्थान शिक्षा व कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख अनुसंधानों में सहयोग को और अधिक सुदृढ़ करेंगे.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की ओर से प्रो. थामस सुब्रत अधिष्ठाता, फैकल्टी औफ इकोनोमिक्स एंड मैनेजमेंट ने इस समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

इस अवसर पर चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव, इंजीनियर सुकुमार और विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी व वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को होगा फायदा

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस प्रकार के समझौता ज्ञापनों के तहत हम आपसी हित के क्षेत्रों की पहचान और सुदृढ़ कर रहे हैं. इस अनुबंध के पश्चात मिल कर अनुसंधान कार्य करने के अतिरिक्त दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के आदानप्रदान, वैज्ञानिक संगोष्ठियों व शैक्षणिक बैठकों में भाग लेने, शैक्षणिक सूचनाओं के लेनदेन आदि को बढ़ाया जाएगा.

इस एमओयू से हकृवि के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की अनुसंधान व प्रौद्योगिकी को जानने व शिक्षा ग्रहण करने को बढ़ावा मिलेगा. इस अनुबंध के तहत दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अपनी शोध को नई तकनीकों के साथ दोनों संस्थानों में निपुणता के साथ पूरा करने में एकदूसरे का सहयोग करेंगे, जिस से शोध की गुणवत्ता में सुधार होगा और विद्यार्थियों को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

इंटरेक्शन मीट का आयोजन

विश्वविद्यालय की इंटरनेशनल अफेयर सेल ने चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज के विदेशी प्रतिनिधियों के साथ एक इंटरेक्शन मीट का आयोजन किया गया, जिस में यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिक डा. थामस सुब्रत, डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव और इंजीनियर सुकुमार ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों, वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों के साथ शोध और शैक्षणिक विषयों के बारे में चर्चा की. डा. थामस ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के विभिन्न पाठ्यक्रमों और शोध तकनीकियों के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने भारतीय छात्रों को दी जाने वाली यूरोपीय संघ के इरास्मस मुंडस फेलोशिप के बारे में बताया. उन्होंने विद्यार्थियों को कार्यक्रम के माध्यम से छात्रवृत्ति एवं शैक्षणिक सहयोग की दिशा में प्रोत्साहित किया. उन्होंने इन फेलोशिप द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता जैसे यात्रा भत्ते, अनुसंधान अनुदान और ट्यूशन छूट पर व्यावहारिक जानकारी प्रदान की.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत विश्वविद्यालय के छात्र शैक्षणिक गुणवत्ता के क्षेत्र में प्राग विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन को पूरा कर सकते हैं. ज्ञात रहे कि इस अनुबंध के अंतर्गत गत वर्षों में विश्वविद्यालय के 61 विद्यार्थी चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों का स्वागत किया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्रभारी डा. आशा क्वात्रा ने उन का आभार व्यक्त किया और मीटिंग के उद्देश्य के बारे में संक्षेप में बताया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संयोजक डा. अनुज राणा ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिकों का परिचय करवाया. इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता, सयुंक्त निदेशक डा. जंयती टोकस, आईडीपी के लाइज़न अफसर डा. मुकेश सैनी व डा. गणेश भी उपस्थित रहे.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India) बनाने में कृषि क्षेत्र की खास भूमिका

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से चौथी अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य विषय ‘रिसेंट एडवांसेज इन एग्रीकल्चर फार आत्मनिर्भर भारत’ (आरएएएबी-2024) था. यह कार्यशाला आरवीएसकेवीवी, ग्वालियर द्वारा आभासी मोड में आयोजित की गई. कार्यशाला में मुख्य अतिथि एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स रिक्रूटमेंट बोर्ड (एएसआरबी), नई दिल्ली के चेयरमैन डा. संजय कुमार, चीफ पैटर्न के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में यूएएस थारवाड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. पीएल पाटिल व आईजीकेवी, रायपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल इत्यादि उपस्थित रहे. कार्यशाला के आयोजक सचिव डा. अंकुर शर्मा रहे.

मुख्य अतिथि डा. संजय कुमार ने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा 2020 में की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादों को प्रचलित व बढ़ावा देना है और कृषि क्षेत्र सहित भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है. इस मिशन के तहत ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प को पूरा करने में कृषि भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अब भारतीय कृषि न केवल उत्पादकता और लाभप्रदता पर, बल्कि स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में कृषि पारिस्थितिकी, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और संरक्षण कृषि का चलन बढ़ रहा है, क्योंकि किसान तेजी से मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्व को पहचान रहे हैं. इन  को अपना कर, किसान मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकते हैं, मिट्टी के कटाव को कम कर सकते हैं और रसायनों के प्रयोग को कम कर सकते हैं, जिस से जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से निबटा जा सकता है.

उन्होंने आगे बताया कि नई और आधुनिक तकनीकों को अपना कर किसान अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ा रहा है और देश को आत्मनिर्भर बनाने में भी अपना योगदान दे रहा है.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India)कार्यशाला के चीफ पैटर्न व हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि क्षेत्र की अह्म भूमिका रहेगी. कृषि हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. यह लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती है और हमारी विशाल आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है. हाल ही के वर्षों में,  इस क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जो इस क्षेत्र को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारे संकल्प को मजबूत करने में मदद करेगी.

उन्होंने आगे बताया कि आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए देश को उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, स्थानीय उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना होगा और उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के बारे में भी सोचना होगा. कृषि क्षेत्र में युवाओं और हितधारकों को आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि कृषि शिक्षा आत्मनिर्भर भारत के लिए सब से अच्छे रोडमैप में से एक हो सकती है, क्योंकि यह कृषि आधारित स्टार्टअप के लिए आधार तैयार करती है.

उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने और युवाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए जीपीएस, सेंसर, ड्रोन और डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों के हित के लिए शोध कार्यों, नवीनतम तकनीकों,  शैक्षणिक गतिविधियों व विस्तार कार्यों जैसी गतिविधियों से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

इस दौरान एग्रीमीट फांउडेशन, यूपी की अध्यक्ष डा. हर्षदीप कौर द्वारा कार्यशाला में भाग लेने वाले अतिथियों का परिचय करवाया गया. कार्यशाला में आरएलबीसीएयू, झांसी, उत्तर प्रदेश के अनुसंधान निदेशक डा. एसके चतुर्वेदी, एसकेएलटीएसएचयू, तेलंगाना की कुलपति डा. नीरजा प्रभाकर,  आईसीएआर-डीसीआर, पुटुर के निदेशक डा. जेडी अडिगा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कुलपति प्रो. एके शुक्ला ने भी अपने विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए.

आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर के संयुक्त निदेशक डा. अनिल दीक्षित ने सभी का स्वागत किया, जबकि कार्यशाला के अंत में आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर, छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक डा. एन. अश्विनी ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

पृथ्वी को प्रदूषणरहित (Pollution Free) रखना हम सभी का कर्तव्य

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में भूदृश्य संरचना इकाई द्वारा संपदा कार्यालय के सामने विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में पौध रोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे. उन्होंने कार्यक्रम में पौध रोपण कर के ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर सभी को पौध रोपण करने के लिए प्रेरित किया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है, पहली बार 22 अप्रैल, 1970 को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया गया था. इस वर्ष पृथ्वी दिवस का थीम ‘प्लेनेट बनाम प्लास्टिक’ है, जिस का मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति को होने वाले नुकसान के बारे में सचेत करना है.

एक अनुमान के मुताबिक, 90 फीसदी प्लास्टिक रिसाइकिल नहीं हो पाता है, जो पर्यावरण के लिए घातक है. प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण पर्यावरण में असंतुलन बढ़ रहा है, जिस की वजह से स्थिति  दयनीय होती जा रही है.

उन्होंने कहा कि पृथ्वी को प्रदूषणरहित रखना हम सभी का कर्तव्य है. ऐसे में हमें पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना पड़ेगा और इसे बेहतर बनाने में योगदान देना होगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि लगातार पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, रासायनिक खाद व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग व प्लास्टिक के प्रयोग से हमारी धरती का स्वरूप एवं पर्यावरण दूषित होता जा रहा है. ऐसे में इसे बचाए रखने के लिए समाज को अहम कदम उठाते हुए सामूहिक प्रयास की जरूरत है.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि दिनप्रतिदिन बढ़ते जा रहे पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पौध रोपण करना बहुत जरूरी है. पृथ्वी को स्वस्थ व पहले की तरह बनाने के लिए हम सभी का कर्तव्य है कि अपनी धरती को हराभरा और बेहतर बनाने का संकल्प लेना पड़ेगा, ताकि संसार के सभी पेड़पौधों पशुपक्षियों एवं जंतुओं की जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके.

‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर जकरंदा के 200 पौधे किए रोपित

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के भूदृश्य संरचना इकाई के अध्यक्ष डा. पवन कुमार ने बताया कि पौध रोपण कार्यक्रम के तहत जकरंदा के 200 पौधे रोपित किए गए. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे और पौध रोपण भी किया.

स्ट्राबेरी के बाद अब लीची (Litchi) जैसी फसल भी उगा सकेंगे किसान

उदयपुर : 20 अप्रैल 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर आगामी वर्षो में ’हार्ड वर्क’ से ’स्मार्ट वर्क’ की ओर अग्रसर होते हुए कई नवाचार करने को कृतसंकल्पित है, खासकर दक्षिणी राजस्थान में नई फसलों को बढ़ावा देते हुए धरतीपुत्र किसान को आर्थिक रूप से समृद्ध करने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे. इस क्रम में स्ट्राबेरी के बाद अब लीची जैसी फसल भी किसान अपने खेतों में उगा सकेंगे. विश्वविद्यालय की ओर से इस दिशा में अनुसंधान ट्रायल किए जाएंगे.

एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए यह बात कही. औनलाइन हुए इस विस्तृत संवाद में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अलावा कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट (असम) के कुलपति डा. बिद्युत चंदन डेका व महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, नागपुर के कुलपति डा. नितिन वी. पाटिल ने भी अपने विश्वविद्यालय का आगामी वर्षों का विजन साझा किया. चर्चा संवाद में भारतीय कृषि व अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में उपनिदेशक (कृषि शिक्षा) डा. आरसी अग्रवाल भी मौजूद थे.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि आने वाले वर्षों में विश्वविद्यालय के एकाधिक लक्ष्य हैं, जिन पर पूरे मनोयोग से काम करते हुए बेहतर परिणाम लाने के प्रयास किए जाएंगे, ताकि विधार्थियों, वैज्ञानिकों, किसानों और पशुपालकों को कुछ नया करने का अवसर मिल सके.

उन्होंने कहा कि उत्पाद व सुरक्षा प्रौघोगिकियों को विकसित करते हुए जैविक पोल्ट्री फार्म डिजाइन किया जाएगा. यही नहीं, पांरपरिक यानी किसान अभ्यास और जैविक पोल्ट्री उत्पादन प्रणालियों के तुलनात्मक प्रदर्शन लगा कर उन का मूल्यांकन किया जाएगा. साथ ही, जैविक पोल्ट्री उत्पादन पर छात्रों और अन्य हितधारकों की क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम किया जाएगा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने आईसीएआर महानिदेशक को बताया कि विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र दक्षिणी राजस्थान है और यहां खरीफ की प्रमुख फसल मक्का है. ऐसे में विश्वविद्यालय मक्का के खाद्य उत्पादों को प्रोन्नत करने के लिए प्रौद्योगिकियों का न केवल विकास करेगा, बल्कि मानकीकरण भी करेगा. साथ ही, चयनित मक्का खाद्य उत्पादों की पोषण संरचना का विश्लेषण और सुरक्षा का मूल्यांकन भी करेगा. मक्का प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग के लिए उपभोक्ता स्वीकार्यरत कीमत और विपणन रणनीतियों का आकलन भी किया जाएगा. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय नवीनतम तकनीकों के साथ हाईटैक मशरूम उत्पादन के लिए भी कृतसंकल्पित है. मशरूम के सेवन को लोकप्रिय बनाने की दिशा में काम होंगे, क्योंकि इस के कई स्वास्थ्य लाभ हैं.  इच्छुक युवा किसानों के लिए नियमित प्रशिक्षण भी आयोजित किए जाएंगे.

उन्होंने आगे बताया कि कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र खोले जाएंगे. पौधों की सुरक्षा और फसल पोषण में चिटोसिन नैनोकणों जैसे अग्रणी क्षेत्रों पर अनुसंधान किए जाएंगे. इस के अलावा विश्वविद्यालय की ओर से अब तक विकसित प्रौद्योगिकियों के व्यवसायीकरण की दिशा में भी काम किया जाएगा.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि कार्य एडवाइजरी में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) और एमएल (मशीन लर्निंग) का उपयोग करते हुए किसानों के हित में काम करना भी आगामी वर्षों के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है. पशुपालन के क्षेत्र में अधिकाधिक पशु नस्लों का सर्वे कर लक्षण के आधार पर पेटेंट कराया जाएगा.

इस मौके पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने विगत डेढ़ वर्ष की विश्विविद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया गया. विश्वविघालय ने मिलेट पर सचित्र मार्गदर्शिका विकसित की, जागरूकता रैलियां व कार्यशालाएं आयोजित की. यही नहीं, कृषि महाविद्यालयों, अनुसंधान निदेशालय और सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में मिलेट वाटिकाएं भी बनाई गईं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए हमारे जैविक खेती की नेटवर्क परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर 16 राज्यों के 20 केंद्रों में से सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया. अब इस परियोजना में हम एक कदम और आगे निकल कर प्राकृतिक कृषि की शोध में रत हैं. इस के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को चिन्हित किया है. वैज्ञानिकों की क्रियाशीलता से विगत वर्ष एमपीयूएटी ने 9.17 करोड़ राशि की 7 शोध परियोजनाएं प्राप्त करने में सफलता पाई. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित व अनुमोदित किया गया. विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा वर्ष 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई.

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय विगत एक वर्ष में 13 प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों से एमओयू किए, जिन में वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया व सेंट्रल लूजौन स्टेट यूनिवर्सिटी, फिलिपींस सम्मिलित हैं. वर्ष 2022-23 में हमारे प्रक्षेत्रों पर 4105.71 क्विंटल गुणवत्ता बीज का उत्पादन किया गया और 7.35 लाख पादप रोपण सामग्री तैयार की. साथ ही, मछली के 125 लाख स्पान, 3.20 लाख फ्राई और 1.95 लाख फिंगरलिंग का उत्पादन कर किसानों को वितरित किए गए. मुरगी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ने 33,156 चूजों का उत्पादन कर किसानों को मुरगीपालन के लिए प्रदान किए गए. मशरूम की विभिन्न किस्मों के 2,115 किलोग्राम स्पान मशरूम उत्पादकों को दिए गए.

जैव प्रौ‌द्योगिकी (Biotechnology) पर विचार मंथन

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय द्वारा कुलपति डा. डीआर सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में नवनियुक्त सहायक प्रोफैसर सह जैव प्रौ‌द्योगिकी के जूनियर वैज्ञानिक के लिए एक अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के साथ ही “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र भी आयोजित किया गया.

इस अवसर पर प्रसिद्ध जैव प्रौ‌द्योगिकी वैज्ञानिक और राष्ट्रीय पौध जैव प्रौ‌द्योगिकी संस्थान, आईसीएआर के पूर्व निदेशक प्रो. आर. श्रीनिवासन मुख्य अतिथि थे. उन्होंने पादप जैव प्रौ‌द्योगिकी, पर्यावरण जैव प्रौ‌द्योगिकी, जैव सूचना विज्ञान विभाग के नवनियुक्त फैकल्टी सदस्यों सहित श्रोताओं को ज्ञानवर्धन किया. साथ ही, वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य, पादप शरीर विज्ञान और जैव रसायन और आणविक जीव विज्ञान और आनुवंशिकी इंजीनियरिंग विभाग के सदस्य, स्नातक और परास्नातक छात्र भी उपस्थित थे.

प्रो. श्रीनिवासन ने ट्रांसजेनिक, आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों की प्रजातियों और एंजाइम प्रौ‌द्योगिकी जैसे उन्नत जैव प्रौ‌द्योगिकी विषयों के अनुप्रयोग को कवर किया, जो नए कीट प्रतिरोधी, जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के लिए सहायक हो सकते हैं, जो किसानों की आजीविका के उत्थान में मदद कर सकते हैं और भारत और अन्य देशों की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की चुनौती का भी समाधान कर सकते हैं.

पूरा वैज्ञानिक सत्र बहुत ही इंटरएक्टिव यानी संवादात्मक था और विभिन्न महाविद्यालयों जैसे बिहार कृषि महावि‌द्यालय, सबौर, डा. कलाम कृषि महावि‌द्यालय (डीकेएसी), किशनगंज, नालंदा कृषि महाविद्यालय (एनसीएच), नूरसराय, वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय (वीकेएससीए), डुमरांव के वैज्ञानिक और विद्वान, जो इस कार्यक्रम में भाग लेने आए थे, उन्होंने भारत और बंगलादेश, आस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका जैसे अन्य देशों में विकसित ट्रांसजेनिक पौधों जैसे बीटी बैंगन, बीटी पपीता और गोल्डन राइस की स्वीकार्यता के अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा की.

प्रो. श्रीनिवासन ने अपने 40 से अधिक वर्षों के शिक्षण और शोध अनुभव को भी साझा किया और मानव संसाधन के विकास और राष्ट्र निर्माण में उन की भूमिका के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन सीएबीटी द्वारा “भविष्य के औषधीय एवं सुगंधित पौधों (एमएपी) में नवाचारः सतत कृषि और आर्थिक प्रभाव के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक विचारमंथन सत्र का आयोजन किया गया. इस सत्र में 2 प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. सुमीत गैरोला, एचएनबी गढ़वाल विश्ववि‌द्यालय, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड और डा. प्रशांत मिश्रा, सीएसआईआर- भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान, जम्मू शामिल हुए. उन्होंने वैज्ञानिकों और जैव प्रौ‌द्योगिकी के प्रोफैसरों को संबोधित किया. दिया गया व्याख्यान बहुत ही जानकारी वाला था और बिहार में किसानों के कल्याण के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों का एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर केंद्रित था.

इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, अधिष्ठाता कृषि डा. एके सिंह, निदेशक विस्तार डा. सोहने, निदेशक बीज विज्ञान और विस्तार डा. फिजा अहमद, बिहार कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एसएन राय और कृषि जैव प्रौ‌द्योगिकी महाविद्यालय के डा. एन. चट्टोपाध्याय जैसे कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. उन्होंने जलवायु अनुकूल फसल किस्म, विकास, स्पीड ब्रीडिंग, जैव कीटनाशक, जैव कीटनाशक उत्पाद विकास के लिए सूक्ष्म जीवों के उपयोग और किसानों की आजीविका के अंतिम लाभ और उत्थान के लिए जैव प्रौ‌द्योगिकी के महत्व पर अपने विचार साझा किए.

कार्यक्रम का आयोजन और संचालन सीएबीटी/एमबीजीई के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य डा. शशिबाला, डा. रवि केसरी, डा. तुषार रंजन और डा. विनोद द्वारा किया गया.

जई (Oats) की नई किस्म से बढ़ेगा पशुओं का दूध

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग ने जई की नई उन्नत किस्म एचएफओ 906 विकसित की हैं. देश के उत्तरपश्चिमी राज्यों के किसानों व पशुपालकों को जई की इस किस्म से बहुत लाभ होगा.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा व पाचनशीलता अधिक होने के कारण ये पशुओं के लिए बहुत उत्तम हैं. उन्होंने बताया कि देश में 11.24 फीसदी हरे व 23.4 फीसदी सूखे चारे की कमी है. जिस के कारण पशुओं की उत्पादकता प्रभावित हो रही है. चारे की अधिक गुणवत्तापूर्ण व ज्यादा पैदावार देने वाली किस्में विकसित होने से पशुपालकों को लाभ होगा व पशुओं की उत्पादकता भी बढ़ेगी. साथ ही, एचएफओ 906 किस्म राष्ट्रीय स्तर की चैक किस्म कैंट एवं ओएस 6 से भी 14 फीसदी तक अधिक हरे चारे की पैदावार देती है.

जई की एचएफओ 906 एक कटाई वाली किस्म है. उन्होंने बताया कि भारत सरकार के राजपत्र में केंद्रीय बीज समिति की सिफारिश पर जई की एचएफओ 906 किस्म को देश के उत्तरपश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उतराखंड) के लिए समय पर बिजाई के लिए अनुमोदित की गई हैं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई फसलों की किस्मों का न केवल हरियाणा, अपितु देश के अन्य राज्यों के किसानों को भी लाभ हो रहा है. हकृवि द्वारा विकसित किस्मों की मांग अन्य प्रदेशों में भी लगातार बढ़ती जा रही है. यह हकृवि के साथ हरियाणा राज्य के लिए गर्व की बात है. उन्होंने इस उपलब्धि के लिए चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों को बधाई दी और भविष्य में भी अपने प्रयास जारी रखने का आह्वान किया.

उत्तरपश्चिमी राज्यों के लिए विकसित जई की नई किस्म की विशेषताएं

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा ने जई की नई किस्म की विशेषता के बारे में बताया कि एचएफओ 906 किस्म की हरे चारे की औसत पैदावार 655.1 क्विंटल व सूखे चारे की औसत पैदावार 124.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस की बीज की औसत पैदावार 27.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि क्रूड प्रोटीन की पैदावार 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म के चारे में प्रोटीन की मात्रा 10 फीसदी है, जिस के कारण इस के चारे की गुणवत्ता पशुओं के लिए अधिक लाभदायक है.

एचएफओ 906 किस्म को विकसित करने में इन वैज्ञानिकों का रहा योगदान

इस किस्म को विकसित करने में चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों डा. योगेश जिंदल, डा. डीएस फोगाट, डा. सत्यवान आर्य, डा. रवीश पंचटा, डा. एसके पाहुजा, डा. सतपाल एवं डा. नीरज खरोड़ का खासा योगदान रहा है.

इस अवसर पर आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा. गजराज सिंह दहिया, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य एवं एसवीसी कपिल अरोड़ा भी उपस्थित रहे.

“प्राणवायु क्लब” (Pranavayu Club) की स्थापना

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार में कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में पृथ्वी, आकाश, वायु, जल के स्वास्थ्य और हरित ऊर्जा एवं पर्यावरण पर केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र को संधारणीय रखने के लिए संयुक्त दृष्टिकोण की अदभुत अवधारणा के अंतर्गत “प्राणवायु क्लब” की स्थापना की गई है. क्लब का गठन छात्र कल्याण निदेशालय, लुवास के तत्वावधान में किया गया है और इस में लुवास के घटक कालेजों के 9 संकाय सदस्य और 18 छात्र शामिल हैं.

इस क्लब की पहली बैठक कुलपति सचिवालय में कुलपति की अध्यक्षता में हुई. कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा ने क्लब की कोर कमेटी के सदस्यों को उन के इस क्लब को ले कर विचारधारा के बारे में अवगत कराया. उन्होंने क्लब के कामकाज की रूपरेखा पर भी चर्चा की.

उन्होंने कहा कि इस क्लब के गठन की उन की अवधारणा न केवल संकाय सदस्यों और युवाओं के बीच स्वच्छ, साफ व संधारणीय पर्यावरण के लिए जागरूकता पैदा करना है, बल्कि इस दिशा में काम करना भी है.

डा. विनोद कुमार वर्मा ने कहा कि वह आशा व्यक्त करते है कि डा. दीपिका की अध्यक्षता में क्लब उन सभी पहलुओं पर काम करेगा, जिस से ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने, कचरे को कम करने, संसाधनों के पुनर्चक्रण और लुवास के अपने नवनिर्मित परिसर सहित आसपास के क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिए लुवास के कर्मचारी, विद्यार्थी व संकाय सदस्य को जागरूक करेगा व सब को साथ ले कर क्लब के उद्देश्य को पूरा भी करेंगे.  इस के अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों और पूर्व छात्रों का सहयोग लिया जाएगा.

अंत में उन्होंने कहा कि हमारी यह पहल लुवास के नवनिर्मित परिसर को हरियाली से भरपूर व विश्वविद्यालय को कार्बन न्यूट्रल बनाने में अहम भूमिका निभाएगी.

क्लब की अध्यक्ष पशु चिकित्सा रोग विज्ञान में एसोसिएट प्रोफैसर डा. दीपिका ने कुलपति को धन्यवाद दिया कि उन्होंने ऐसे समूह का नेतृत्व करने का अवसर दिया, जो पर्यावरण को स्वच्छ रखने की दिशा में काम करेगा. डा. दीपिका ने कहा कि इस क्लब की सदस्यता निजी संगठन, सरकारी एवं गैरसरकारी संगठन और आम लोग भी ले सकेंगे. इस के लिए सदस्यता अभियान जल्दी शुरू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि क्लब के सदस्य उन उद्देश्यों और लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपना पूरा प्रयास करेंगे.