किसानों (Farmers) को मिलेगा लाभ

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की उन्नत कृषि तकनीकों, शोध कार्यों व नवाचारों का कांगो गणराज्य के किसानों को भी लाभ मिलेगा. इसी कड़ी में कांगो गणराज्य के राजदूत वाबेंगा कालेबो थियो के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज से मुलाकात की. इस बैठक में हकृवि के अधिकारियों सहित हरियाणा के प्रगतिशील किसान भी उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को विश्वविद्यालय द्वारा कृषि क्षेत्र में किए जा रहे शोध कार्यों एवं उन्नत किस्म के बीजों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई. प्रतिनिधिमंडल को बासमती चावल एवं मक्का की खेती में खासतौर पर सहयोग देने पर चर्चा हुई.

बैठक में सदस्यों ने कृषि क्षेत्र में निवेश करने के लिए विशेष रूप से केंद्रीय कृषि अनुसंधान और कृषि व्यवसाय से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों को स्थापित करने में रुचि दिखाई. उन्होंने कहा कि चावल उत्पादन के लिए संसाधनों का पता लगाने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए हरियाणा के प्रगतिशील किसानों एवं कांगो के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए विस्तार से बातचीत की गई.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि कृषि क्षेत्र से संबंधित नवीनतम तकनीकों को अपना कर कांगो में आर्थिक विकास को गति प्रदान की जा सकती है. हरियाणा के प्रगतिशील किसानों ने बैठक में सिंचाई की नवीनतम विधियों, जलवायु परिवर्तन, कृषि उपकरण, कृषि पद्धतियों और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि करने के लिए स्थायी और लाभदायक पद्धति विकसित करने के लिए आपसी तालमेल बढ़ाने पर जोर दिया.

बैठक में बीज उत्पादन, कृषि आत्मनिर्भरता, मक्का उत्पादन, जैविक उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग के अतिरिक्त भोजन की बरबादी को कम करने, कृषि उपज में मूल्य जोड़ने, भंडारण की बेहतर व्यवस्था करने और फसल कटाई के बाद प्रोसैसिंग सुविधाओं में निवेश करने पर जोर दिया.

कांगो गणराज्य के राजदूत वाबेंगा कालेबो थियो ने बताया कि प्रतिनिधिमंडलों के मध्य हुई बैठक से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने, वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों एवं किसानों से जुड़े विभिन्न महत्वाकांक्षी कार्यों को गति मिलेगी. विश्वविद्यालय की उन्नत तकनीकों व नवाचारों से कांगो गणराज्य की कृषि संबंधित तकनीकों व उपकरणों में काफी सुधार आएगा.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की.

बैठक में अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्रभारी डा. आशा क्वात्रा ने प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों का स्वागत किया. भारत सरकार के विदेश सहयोग विभाग के सलाहकार पवन चौधरी, कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल, ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, छात्र कल्याण निदेशक डा. एमएल खिच्चड़, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता, डा. नीरज कुमार, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव व डा. पी. कीर्ति उपस्थित रहे.

कांगो प्रतिनिधिमंडल ने हकृवि के विभिन्न स्थलों का दौरा किया. प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न स्थलों को देखा. इन स्थलों में डा. मंगलसेन संग्रहालय, दीन दयाल उपाध्याय जैविक उत्कृष्टता फार्म, टिशू कल्चर लैब और एबिक का दौरा कर हकृवि के वैज्ञानिकों से अनुसंधान एवं तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त की.

48 फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes) को मिलेगी राष्ट्रीय पहचान

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सबएग्रीस सभागार में राज्य के विभिन्न जिलों में लंबे समय से किसानों द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों एवं व्यंजनों को जीआई टैग दिलाने को ले कर एक समीक्षा बैठक की गई. बैठक का आयोजन शोध निदेशालय द्वारा किया गया, जिस की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह कर रहे थे.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, अतिरिक्त इस के कालांतर से उन के द्वारा की जा रही महत्वपूर्ण फसलों की खेती एवं व्यंजनों को जीआई टैग प्रदान करवा कर उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई जाएगी. इस दिशा में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाएगा, ताकि देशभर में जीआई टैग के आधार पर राज्य का नाम रोशन हो सके और इस का भरपूर लाभ किसानों को भी मिल सके.

फसलों के व्यंजनों (Crops Recipes)कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि अब तक 97 स्टार्टअप को उद्यम के रूप में स्थापित करने में तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. कुलपति ने कहा कि सबएग्रीस से प्रमाणित होने के बाद उस स्टार्टअप की अहमियत और बढ़ जाती है.

समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों द्वारा कुल मिला कर 48 फसलों व व्यंजनों की विशेषताओं को ले कर अपनाअपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन की प्रस्तुति दी, जिस में वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार ने मोकामा के मखाना मशरूम, डा. प्रशांत सिंह ने रोहतास के सोना चूर चावल, डा. रफत सुल्ताना ने बांका, मुंगेर के पाटम अरहर, डा. अनिल कुमार ने भागलपुर के तितुआ मसूर, डा. रणधीर कुमार ने पटना के दीघा मालदा आम, डा. रविंद्र कुमार ने समस्तीपुर के बथुआ आम, डा. प्रकाश सिंह ने सहरसा के नटकी धान, डा. केके प्रसाद ने रोहतास के गुलशन टमाटर, डा. विनोद कुमार ने गोपालगंज के थावे का पुरुकिया, डा. तुषार रंजन ने सुपौल के पिपरा का खाजा और डा. सीमा ने पटना के रामदाना लाई पर अपना पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया, जिसे समीक्षा बैठक में उल्लेखनीय बताया गया.

उन्नत किस्मों से कपास (Cotton) की बढ़ेगी पैदावार

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को कपास का उत्पादन बढ़ाने, उन्नत किस्म के बीजों एवं तकनीकी जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए.

प्रशिक्षण शिविर में अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने किसानों को बताया कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप खेतों मे रखी हुई लकड़ियों/बनछटियों के कारण फैलता है, इसलिए इन का उचित प्रबंधन किया जाए.

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक प्रशिक्षण डा. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान द्वारा समयसमय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं.

कपास अनुभाग के प्रभारी डा. करमल सिंह ने प्रदेश में कपास उत्पादन के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं से अवगत कराया. उन्होंने बताया कि बीटी नरमा के लिए शुद्ध नाइट्रोजन, शुद्ध फास्फोरस, शुद्ध पोटाश व जिंक सल्फेट क्रमश: 70:24 24:10 किलोग्राम प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है. उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के आधार पर तय की जानी चाहिए. 5-6 साल में एक बार 5-7 टन गोबर की खाद जरूर डालनी चाहिए.

कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सोमवीर ने कपास की मुख्य विशेषताओं एवं किस्मों के बारे में अवगत करवाया, वहीं कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़ ने कपास में लगने वाले कीट व उन के प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

डा. संदीप कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया और डा. शुभम लांबा ने मंच का संचालन किया. इस के अतिरिक्त शिविर में किसानों को विश्वविद्यालय की तरफ से उत्पादक सामग्री भी प्रदान की गई.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project) द्वारा संचालित कामों का अवलोकन

उदयपुर : 4 अप्रैल, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना, जो कि विश्व बैंक द्वारा संचालित है, उस के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों में विश्व बैंक परियोजना द्वारा संचालित कामों का अवलोकन किया.

उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक एवं अधिकारियों के साथ संवाद किया और डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय के नवीनीकृत प्रयोगशाला का दौरा किया.

प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर के एक्पेरिंयन्शल लर्निंग यूनिट (नई खाद्य प्रसंस्करण प्रयोगशाला इकाई) में छात्रों द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों को देखा एवं उस की तहेदिल से सराहना की.

इस अवसर पर डा. बेकजोड शेमसीव ने विश्वविद्यालय के सभागार में विश्व बैंक परियोजना के अंतर्गत विदेश में प्रशिक्षण लेने गए संकाय सदस्यों एवं छात्रों से एकएक कर के वार्ता की एवं प्रशिक्षण के अनुभव के आधार पर नई तकनीकी का उपयोग करते हुए विश्वविद्यालय में नई परियोजना लाने एवं उस पर काम करने के लिए प्रेरित किया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस परियोजना के माध्यम से विश्वविद्यालय के 11 संकाय सदस्यों एवं 71 छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण करने का अवसर प्राप्त हुआ.

विश्व बैंक परियोजना (World Bank Project)

छात्रों ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सतत कृषि विकास के लिए स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षण एवं हवा, पानी और मिट्टी के विश्लेषण के लिए अत्याधुनिक उपकरणों के उपयोग पर प्रशिक्षण प्राप्त किया. इस के अतिरिक्त विश्वविद्यालय सभी सांगठनिक महाविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए आधुनिक उपकरण खरीदे गए, जो अनुसंधान के लिए काफी मददगार साबित हुए.

इस परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय की अनुसंधान गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला, जिस के द्वारा विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रकाशन में आशातीत प्रगति हुई है एवं विश्वविद्यालय का एच इंडेक्स वर्ष 2019 में 38 था, जो आज बढ़ कर 72 हो गया है. इस दौरान विश्वविद्यालय ने 17 पेटेंट प्राप्त किए हैं और विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने इस से प्रेरित हो कर अपना स्वयं का स्टार्टअप प्रारंभ कर दिया है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि परियोजना के द्वारा विश्वविद्यालय का चहुंमुखी विकास हुआ है और विशेष रूप से स्नातक छात्रों को विदेश में प्रशिक्षण के साथसाथ शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास हुआ है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में यह परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भारत सरकार) और विश्व बैंक की वित्तीय सहायता से विगत 5 सालों से लागू की जा रही थी. इस परियोजना का कार्यकाल 1 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2023 तक रहा.

परियोजना प्रभारी डा. पीके सिंह ने परियेाजना के अंतर्गत कराए गए विभिन्न कामों का एक प्रतिवेदन विश्व बैंक के टीम लीडर डा. बेकजोड शेमसीव के सम्मुख प्रस्तुत किया.

अंत में डा. लोकेश गुप्ता, अघिष्ठाता, डेयरी एवं खाद्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर ने विश्व बैंक की टीम के लीडर डा. बेकजोड शेमसीव का पहली बार विश्वविद्यालय में आने पर स्वागत किया एवं आभार जताया. साथ ही, विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों का स्वागत करते हुए आभार जताया.

पशु चिकित्सक (Veterinarian) बनें या करें उद्यम, खुले अनेक रास्ते

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार के पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 2018 बैच के 67 नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों के लिए शपथ समारोह का आयोजन किया गया, जिन में 21 छात्राएं और 46 छात्र शामिल रहे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा मुख्य अतिथि एवं आईपीवीएस निदेशक डा. एसपी दहिया, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार मंच पर उपस्थित रहे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने की. इस के बाद नवप्रशिक्षित स्नातकों को पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने शपथ दिलाई.

शपथ समारोह के बाद मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा द्वारा नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इंटर्नशिप कंप्लीशन सर्टिफिकेट वितरित किए गए.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को कहा कि उन की शिक्षा यहीं खत्म नहीं हुई है, आप लोग आगे भी अपने ज्ञान में लगातार वृद्धि करते रहना है, क्योंकि सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है. समय और स्थान के मुताबिक अपनेआप को अपडेट करना भी बहुत जरूरी है.

उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि पशु चिकित्सक आज के समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और पशु चिकित्सा एक चुनौतीपूर्ण व्यवसाय है. नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इसे इसी परिप्रेक्ष्य में पूरा करना है. आप ने इस पाठ्यक्रम में जो वैज्ञानिक ज्ञान और कौशल हासिल किया है, उस का प्रयोग समाज की उन्नति के लिए करना है और अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करना है, ताकि वे समाज को अच्छी सेवाएं दे सकें.

डा. वीके वर्मा ने कहा कि हमारा व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और हमें चाहिए कि हम उद्यमिता की तरफ ध्यान दें और नौकरी तलाशने वाले न बन कर नौकरी देने वाले बनें, जिस के लिए आप स्टार्टअप के तौर पर दुग्ध एवं मांस प्रसंस्करण संयंत्र, पशु चिकित्सा निदान प्रयोगशालाएं, औनलाइन पशु उत्पाद/पशु बाजार जैसे कई अन्य उद्यम शुरू कर सकते हैं.

 

पशु चिकित्सक (Veterinarian)लुवास कुलपति ने उपस्थित अधिकारियों, विभागाध्यक्षों, फैकल्टी सदस्यों, शपथ लेने वाले पशु चिकित्सक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आप सब बधाई के पात्र हैं, क्योंकि आप सब की अथक मेहनत के कारण ही हम ये आज का समारोह मना रहे हैं. लुवास परिवार की कड़ी मेहनत से ही आप आज समाज में एक उत्तम स्थान लेने के लिए सजग हैं.

कुलपति ने उपस्थित अभिभावकों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आप ने आज से साढ़े 5 वर्ष पूर्व अपने बच्चों को जिस भरोसे के साथ लुवास में प्रवेश दिलाया था, विश्वविद्यालय उस भरोसे को कायम रखते हुए उन बच्चों को परिपक्व पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के रूप में लौटा रहा है.

अंत में उन्होंने प्रशिक्षित छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि अब आप स्वतंत्र पशु चिकित्सा करने योग्य होंगे एवं समाज को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकेंगे.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आने वाले समय में उन्हें एक परिपक्व पशु चिकित्सक की तरह प्रदेश के पशुधन की सेवा करनी है, जिस से कि विश्वविद्यालय का नाम रोशन हो.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आने वाले समय में आप को समाज की अगुआई करनी है. उम्मीद है, पशु चिकित्सा की पढ़ाई खत्म होने के बाद अब आप पशुपालकों, समाज, राज्य और देश की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.

पशु चिकित्सक (Veterinarian)

शपथ लेने वाले नव पशु चिकित्सा छात्रों में से बाद में डा. आशीष चौहान, डा. करन एवं डा. जैस्मिन ने डिगरी के दौरान के अनुभव साझा किए व डा. रमन मोर ने अपने सभी दोस्तों को याद करते हुए एक कविता प्रस्तुत की.

इस अवसर पर लुवास विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. एसएस ढाका, अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, मानव संसाधन एवं प्रबंध निदेशक डा. राजेश खुराना, डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता डा. सज्जन सिहाग, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष व विद्यार्थी उपस्थित रहे.

डा. दिव्या अग्निहोत्री ने मंच का संचालन किया और संक्षेप में इंटर्नशिप प्रोग्राम के बारे में बताया. अंत में टीवीसीसी निदेशक डा. ज्ञान सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में जीवाणु व केंचुए कैसे हैं मददगार

प्राकृतिक खेती में केंचुए और जीवाणुओं का खासा महत्व है. वह खेत की मिट्टी को प्राकृतिक तरीके से सुधारने का काम करते हैं. इसी विषय पर अधिक जानकारी के लिए प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा से विस्तार से जानिए.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी में लाभदायक कीटों और केंचुओं की संख्या में कैसे इजाफा होता है?

प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं है, बल्कि केंचुए की मात्रा, जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक हैं. खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढ़ते हैं, तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ़ जाता है. जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा हो कर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है. दूसरे लाभदायक जीवाणु, जो रासायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नहीं पनप पाते हैं. प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ़ जाते हैं, जिस के फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा, बदलता मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का निर्माण किसान कैसे करें?

जीवामृत, जो कि वह सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है. इस को बनाने के लिए 10 लिटर देशी गाय का गौमूत्र, 10 किलोग्राम ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किलोग्राम बेसन, 2 किलोग्राम गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 लिटर पानी में मिला कर इन को जूट की बोरी से ढ़क कर छाया में रखना चाहिए. फिर सुबहशाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए. अंत में 48 घंटे बाद छान कर सात दिन के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए.

छोटे और मझोले किसान प्राकृतिक या जैविक खेती कैसे करें?

देश में 86 फीसदी किसान छोटे और मझोले हैं. जैविक खेती के आरंभ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है, उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रासायनिक इनपुट से भी अधिक है, जिस से जैविक खेती में छोटे किसानों का शोषण होता है. जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है.

जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है, तो इस में विद्यमान जीवाणु भूमि में जा कर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इन में ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 फीसदी नाइट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं. दूसरे, पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाने में जीवाणुओं के साथ केंचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व ले कर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है.

प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाए, तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है. फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या एक एकड़ में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इस के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ाए जाए, ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आए, तो इस से किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देश की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) उत्पाद को मिले बेहतर दाम

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने इस मीटिंग की अध्यक्षता की. इस मीटिंग में प्रबंधन मंडल के भूतपूर्व सदस्य सीपी आहुजा, शरद बतरा व शिवांग बतरा भी मौजूद रहे. कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती कर रहे विभिन्न जिलों के प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आधुनिक युग में प्राकृतिक खेती के विस्तार से ले कर उस की अहमियत पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों की समस्याओं को जान कर उन का हल करना व शोध कार्यों को उन के अनुरूप बनाना है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को बेहतर दाम दिलवाने के लिए उपभोक्ताओं से सामंजस्य व सीधे तौर पर जुड़ कर आपस में विश्वास पैदा करना जरूरी है.

उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से पाठ्यक्रम बनाना, अधिक से अधिक प्रशिक्षणों का आयोजन व किसान समुदाय द्वारा तैयार किए गए कृषि मौडल की प्रदर्शनी भी लगाने पर जोर दिया. प्राकृतिक खेती कर रहे किसान व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं, जिस में वे अपनी समस्याएं व समाधान शेयर करें, ताकि उस का तुरंत एकदूसरे को लाभ पहुंच सके, साथ ही आपस में तकनीकों का भी आदानप्रदान हो.

उन्होंने आगे बताया कि भावी पीढ़ियों को रसायनमुक्त व पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाना वैज्ञानिकों व किसानों की मुख्य प्राथमिकता है. इस के लिए उन्होंने कहा कि किसान शुरुआत में कम जगह पर प्राकृतिक खेती को अपनाएं और धीरेधीरे उस का क्षेत्रफल बढ़ाते जाएं.

उन्होंने वैज्ञानिकों से भी आह्वान किया कि वे आधुनिक युग में आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जब भी शोध करें, तो विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों, पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता, श्रमिकों की उपलब्धता, वर्षा, जमीन का और्गेनिक कार्बन, खरपतवार, पूरे साल का फसल चक्र, कीट और बीमारियों के प्रबंधन से संबंधित बातों पर मंथन जरूर करें.

हकृवि में स्थापित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैविक खेती उत्कृष्टता केंद्र के निदेशक डा. अनिल कुमार ने विभिन्न विषयों पर चल रहे प्रयोगों के बारे में जानकारियां साझा की. साथ ही, किसानों के सवालों के जवाब भी दिए.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के तहत विभिन्न फलों एवं सब्जियों पर शोध किए जा रहे हैं. अनुसंधानों के उचित परिणामों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है, जिस से कि वे प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए अधिक से अधिक जागरूक हों. संगोष्ठी में किसानों का यह मत था कि प्राकृतिक खेती के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए.

इस अवसर पर अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डा. राजेश कुमार गेरा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य सहित सहायक निदेशक डा. सुरेंद्र यादव, संयुक्त निदेशक डा. सुरेश कुमार, डा. सुमित देशवाल, डा. सुरेश कुमार, डा. किशोर कुमार, डा. दीपिका, मंजीत सहित प्रगतिशील किसान, जिन में सुधीर महता, सुभाष बेनीवाल, कमल वीर, पंकज माचरा, मुल्कराज चावला, सुरेन्द्र कुमार, राजेंद्र कुमार, रणधीर सिंह, मनेाज कुमार, सूरजभान, धर्मवीर पूनिया, सुरजीत सिंह, नरेश कुमार, अमनदीप, वीरेंद्र कुमार, कृष्ण, दलजीत सिंह, गौरव तनेजा, मुकेश कंबोज, आशीष महता, डा. बलविंदर सिंह, संजय व दिलेर भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय (University) को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन के सभा कक्ष में सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए सेवा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि थे. उन्होंने अगस्त, सितंबर, अक्तूबर व नवंबर माह के दौरान 25 सेवानिवृत्त हुए विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को शाल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सेवाओं की प्रशंसा की.

उन्होंने कहा कि सभी ने मिल कर विश्वविद्यालय को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया है. यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों के द्वारा किए गए उल्लेखनीय कामों का ही नतीजा है कि विश्वविद्यालय आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए है.

उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय सदैव सेवानिवृत्त कर्मचारियों का ऋणी रहेगा. आप के द्वारा दिए गए योगदान का ऋण उतारा नहीं जा सकता. कर्मचारी अपनेआप को सेवानिवृत्त न समझ कर परिवार व समाज को अपनी सेवाएं प्रदान करें. उन्हें विश्वविद्यालय से जुड़े रह कर भी उस के विकास में अपना सकारात्मक योगदान देते रहना चाहिए.

उन्होंने कर्मचारियों से विश्वविद्यालय के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखने और भावी पीढ़ी से अपने अनुभव साझा करने का आह्वान किया, ताकि वे भी उन की तरह सहनशीलता के साथ कार्य निष्पादन कर सकें.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अधिकारियों से कहा कि जब कभी भी रिटायर्ड कर्मचारी विश्वविद्यालय में आएं, तो उन्हें उचित मानसम्मान दिया जाए.

विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक नवीन जैन ने रिटायर हुए कर्मचारियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के दरवाजे सदैव रिटायर कर्मचारियों के लिए खुले हुए हैं. वह अपने काम के लिए किसी भी समय यहां आ सकते हैं. उन्होंने रिटायर हुए कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों की विस्तार से जानकारी दी.

रजिस्ट्रार डा. बलवान सिंह मंडल ने सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों व कर्मचारियों को बधाई दी, साथ ही उन के अच्छे स्वास्थ्य व लंबी उम्र की कामना की.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढ़ींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व अंशुल भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय से गत 4 माह में कुल 5 वैज्ञानिक और 20 गैरशिक्षक कर्मचारी रिटायर हुए.

वैज्ञानिकों में डा. तेजेंदर पाल मलिक, डा. कुशल राज, डा. राकेश महरा, डा. योगेंद्र कुमार यादव व डा. एसएस जाखड़ हैं, जबकि गैरशिक्षक कर्मचारियों में सुदेश, राकेश कुमार, मदन लाल, शिव सेवक, अल्का अरोड़ा, केशव प्रसाद, शशि बाला, राममेहर सिंह, अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार, बहादुर सिंह, पृथ्वी सिंह, मोहन लाल, छांगा राम, रामबाई, रतन सिंह, सियाराम, सतनारायण, कर्ण सिंह व रमेश कुमार शामिल हैं.

मत्स्यपालन में स्वरोजगार (Self-Employment in Fisheries) की अपार संभावनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में मत्स्यपालन के प्रति जागरूक करने व बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं, जिस में विभिन्न कालेज व स्कूलों के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

इस समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने की.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय के उन्नत अनुसंधानों के माध्यम से प्रदेश के मत्स्यपालन क्षेत्र को बढ़ाने में उपरोक्त महाविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. मत्स्यपालन में स्वरोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं.

उन्होंने विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे नीली क्रांति को बढ़ावा देेने के लिए कारगर कदम उठाएं. मत्स्यपालन के व्यवसाय में बढ़ोतरी करने के लिए भी विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों को प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित किया जा रहा है.

उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वे विद्यार्थियों में नेतृत्व गुणों को विकसित करें, ताकि विद्यार्थी राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना योगदान दे सकें. उन्होंने छात्रों एवं शिक्षकों को नियमित बैठकें आयोजित करने का भी सुझाव दिया.

अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए महाविद्यालय की प्रगति एवं गतिविधियों पर प्रकाश डाला, जबकि डा. रचना गुलाटी ने समारोह में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन अंकित व अजय ने किया. इस अवसर पर उपरोक्त महाविद्यालय के सभी शिक्षक, गैरशिक्षक कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.

विभिन्न स्कूलों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की रंगोली, पोस्टर, स्लोगन, वादविवाद, एक्वास्केपिंग व मत्स्यपालन क्षेत्र में उद्यमिता से संबंधित अनेक प्रतियोगिताएं भी करवाई गईं.

ये रहा प्रतियोगिताओं का परिणाम

इनोवेशन एंड एंटरप्रेंन्योरशिप प्रतियोगिता में उमेश ने प्रथम, कार्तिक ने द्वितीय और सूरज ने तृतीय स्थान, एक्वास्केपिंग में पूर्णिमा व आरजू ने प्रथम, रमन, कार्तिक व अमित ने द्वितीय, जबकि अंकित व विजय ने तृतीय स्थान प्राप्त किया.

वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी निशा ने पहला, आशिका व उमेश ने दूसरा, जबकि विधि और शाइना ने तीसरा स्थान प्राप्त किया. उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की आरोही प्रथम, जबकि कृष्णा दूसरे स्थान पर रहे.

रंगोली प्रतियोगिता में मनोज व युक्ति प्रथम, दिव्या, खुशी, मुस्कान व प्रमोद द्वितीय, जबकि सुनील, दीक्षा, पूजा व निकिता तृतीय स्थान पर रहे. निकिता, कीर्ति, दीपक व महक ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की कृति ने पहला, विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित राजकीय माध्यमिक विद्यालय की रेणुका, अंजली, भानू, सुशील, नंदिनी व प्रिया ने दूसरा, जबकि कैंपस स्कूल की तनीक्षा व नितीका ने तीसरा व नंदिनी और हिमांशी ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

समारोह में विद्यार्थियों द्वारा नृत्य एवं गायन सहित अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिस में मानसी, खुशी, दीप्ति, मोहित, अमित, साहिल, सुहानी व जतिन ने भाग लिया.

कृषि उत्पादन (Agricultural Production) में देशभर में आगे है हरियाणा

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘कृषि वैज्ञानिकों का किसानों से संवाद- कृषि विश्वविद्यालय की उपलब्धियां’ विषय पर मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के सभागार में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्यातिथि एवं प्रस्तोता व अध्यक्षता पूर्व अध्यक्ष, हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद, पंचकूला, पूर्व कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल एवं अध्यक्ष, पंचनद शोध संस्थान, चंडीगढ़ के प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने की.

विशिष्ट अतिथि हरियाणा विद्युत विनियामक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जगजीत सिंह घनघस रहे. यह गोष्ठी पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केंद्र, हिसार व चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा लगातार किए जा रहे शोध कार्यों, उच्च तकनीकों और किसानों की कड़ी मेहनत के कारण प्रदेश के खाद्यान्न उत्पादन में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई है. खाद्यान्न उत्पादन, जो प्रदेश के गठन के समय मात्र 2.59 मिलियन टन था, जो 7 गुना बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 18.43 मिलियन टन हो गया है. हरियाणा क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य राज्यों से छोटा है, जबकि केंद्रीय खाद्यान्न भंडार में योगदान देने वाला दूसरा सब से बड़ा राज्य है. देश के 60 फीसदी से अधिक बासमती चावल का निर्यात केवल हरियाणा से ही होता है. हरियाणा राज्य बाजरा, दलहन व तिलहन के उत्पादन में देशभर में अग्रणी है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाने के लिए 20 हजार क्विंटल से अधिक विभिन्न फसलों के बीज तैयार कर किसानों को वितरित किए जा रहे हैं. कृषि तकनीकी को किसानों तक पहुंचाना विश्वविद्यालय का एक ध्येय है, इसी कड़ी में विश्वविद्यालय द्वारा 6.50 लाख किसानों को मौसम एवं कृषि संबंधी जानकारी नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही है. इस के अतिरिक्त प्रदेश के प्रत्येक गांव के 20-20 किसानों का डाटा बेस एकत्रित किया गया है, जिस के माध्यम से कृषि संबंधी जानकारियां प्रदान की जा रही हैं.

कृषि उत्पादन (Agricultural Production)

प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विकसित भारत के मिशन में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

उन्होंने किसानों एवं युवाओं से संवाद स्थापित करने के साथसाथ किसानों को कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित करने का भी आह्वान किया और कृषि को आकर्षक बनाने के लिए युवाओं में सामाजिक, आर्थिक व मनौविज्ञानिक बदलाव की जरूरत है.

उन्होंने यह भी कहा कि बड़े हर्ष की बात है कि हकृवि किसानों से सीधे तौर पर जुड़ कर न केवल नईनई तकनीक व किस्में किसानों तक पहुंचा रहा है, बल्कि किसानों की समस्याओं के फीडबैक के आधार पर अपने शोध को गति भी प्रदान कर रहा है.

उन्होंने कहा कि पंचनद हकृवि के माध्यम से किसानों से संवाद शुरू करने की मुहिम को ओर अधिक गति प्रदान करेगा. उन्होंने कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के संतुलित प्रयोग पर बल दिया.

विशिष्ट अतिथि जगजीत सिंह घनघस ने बताया कि राष्ट्र की प्रगति के लिए कृषि एवं पावर सैक्टर बहुत जरूरी है. प्रदेश में गत 10 सालों से उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मुहैया करवाने के साथसाथ कृषि क्षेत्र को 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली दी जा रही है.

उन्होंने बताया कि लगभग 13 हजार लंबित कृषि नलकूप को भी बिजली से जोड़ा गया है. किसानों को सोलर पंप के माध्यम से सिंचाई करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है.

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता व उपाध्यक्ष डा. नीरज कुमार ने गोष्ठी में आए सभी का धन्यवाद किया और मंच का संचालन सचिव मोहित कुमार ने किया.

इस अवसर पर राज्य सूचना आयुक्त, हरियाणा एवं पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केंद्र, हिसार के अध्यक्ष डा. जगबीर सिंह, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य सहित पंचनद संस्थान के अनेक पदाधिकारी, वैज्ञानिक, किसान व छात्र उपस्थित थे.