‘ई-किसान उपज निधि‘ का शुभारंभ, अनाज भंडारण (Grain Storage) होगा आसान

नई दिल्ली: केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य और उद्योग एवं वस्त्र मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कृषि क्षेत्र 2047 तक राष्ट्र को ‘विकसित भारत‘ बनाने की दिशा में आधारस्तंभ होगा.

नई दिल्ली में पिछले दिनों वेयर हाउसिंग डवलपमैंट एंड रेगुलेटरी अथौरिटी (डब्ल्यूडीआरए) के ‘ई-किसान उपज निधि‘ (डिजिटल गेटवे) के शुभारंभ समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने लाखों भारतीयों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए किसानों को धन्यवाद दिया और कहा कि ‘ई-किसान उपज निधि‘ पहल के साथ प्रौद्योगिकी की सहायता से किसानों की भंडारण व्यवस्था सुगम हो जाएगी और किसानों को उन की उपज के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी.

पीयूष गोयल ने इस अवसर पर घोषणा की कि ज्यादा किसानों, विशेषकर छोटे किसानों को गोदामों का उपयोग करने और उन की आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डब्ल्यूडीआरए पंजीकृत गोदामों पर सुरक्षा जमा शुल्क जल्द ही कम किया जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि इन गोदामों में किसानों को पहले अपनी उपज का भंडारण करने के लिए 3 फीसदी सुरक्षा जमा राशि का भुगतान करना पड़ता था, अब केवल 1 फीसदी ही सुरक्षा जमा राशि के भुगतान करने की आवश्यकता होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने आगे कहा कि ‘डिजिटल गेटवे’ पहल खेती को आकर्षक बनाने के हमारे प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम है. बिना किसी संपत्ति को गिरवी रखे, अतिरिक्त सुरक्षा जमा नीति, ‘ई-किसान उपज निधि‘ किसानों द्वारा संकट के समय में उन की उपज बिक्री को रोक सकती है, जिन्हें फसल के बाद भंडारण की अच्छी रखरखाव सुविधाओं के न होने के कारण अकसर अपनी पूरी फसल को सस्ती दरों पर बेचना पड़ता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि डब्लूडीआरए के अंतर्गत गोदामों की अच्छी तरह से निगरानी की जाती है, इन की स्थिति बहुत अच्छी है और ये बुनियादी ढांचे से सुसज्जित हैं, जो कृषि उपज को अच्छी हालत में रखते हैं और खराब नहीं होने देते. इस तरह ये किसानों के कल्याण को बढ़ावा देते हैं.

उन्होंने डब्ल्यूडीआरए के अंतर्गत राज्यों में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा उपयोग किए जाने वाले गोदामों के अनिवार्य पंजीकरण और राज्यों के गोदामों से संबंधित बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से तैयार रखने के लिए एक रोडमैप तैयार करने पर बल दिया.

‘ई-किसान उपज निधि‘ प्लेटफार्म के बारे में विस्तार से बताते हुए पीयूष गोयल ने कहा कि अपनी सरलीकृत डिजिटल प्रक्रिया के साथ यह पहल किसानों के लिए किसी भी पंजीकृत डब्ल्यूडीआरए गोदाम में 6 महीने की अवधि के लिए 7 फीसदी प्रति वर्ष ब्याज पर भंडारण की प्रक्रिया को आसान बना सकती है.

उन्होंने गोदाम पंजीकरण के लिए एक औनलाइन प्लेटफार्म प्रदान करने की डब्ल्यूडीआरए पहल की सराहना की, जिस में साल दर साल उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. इस पोर्टल पर तकरीबन एक लाख गोदामों को पंजीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष 1,500 गोदाम पंजीकृत किए गए थे.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस बात पर भी बल दिया कि ‘ई-किसान उपज निधि‘ और ‘ई-एनएएम’ के साथ, किसान एक इंटरकनैक्टिड मार्केट की प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सक्षम होंगे, जो उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर या उस से ज्यादा दाम पर अपनी उपज को सरकार को बेचने का फायदा पहुंचाती है. उन्होंने कहा कि पिछले दशक में एमएसपी के जरीए सरकारी खरीद ढाई गुना बढ़ी है.

विश्व की सब से बड़ी सहकारी खाद्यान्न भंडारण योजना के शुभारंभ के बारे में बोलते हुए मंत्री पीयूष गोयल ने डब्ल्यूडीआरए से सहकारी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी गोदामों का मुफ्त पंजीकरण प्रदान करने के एक प्रस्ताव की योजना बनाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि सहकारी क्षेत्र के गोदामों को सहायता देने की पहल से किसानों को डब्ल्यूडीआरए गोदामों में अपनी उपज का भंडारण करने के लिए बढ़ावा मिलेगा, जिस से उन्हें अपनी फसल बेचने पर उचित मूल्य मिल सकेगा.

सूअरपालन (Pig Farming) इकाई का उद्घाटन

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पशुधन फार्म परिसर विभाग में आयोजित ‘वैज्ञानिक पद्धति से सूअरपालन‘ के विषय में तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण का शुभारंभ मुख्य अतिथि, लुवास के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा द्वारा किया गया.

इस अवसर पर कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने सूअरपालन इकाई का उद्घाटन भी किया. उन्होंने कहा कि सूअरपालन दुनियाभर में बढ़ रहा है. सूअर की उच्च प्रजनन क्षमता और उच्च चारा रूपांतरण अनुपात के कारण सूअरपालन हमेशा से लाभदायक रहा है. इस इकाई का उद्देश्य प्रदेश के युवाओं को प्रशिक्षण देना व उन्हें सूअरपालन में व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रेरित करना रहेगा.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों की मदद कर सूअरपालन के अर्थशास्त्र पर काम करेंगे. इस अवसर पर कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने विभागाध्यक्ष, इकाई के प्रमुख और विभाग के संकाय सदस्यों को सूअरपालन इकाई की स्थापना पर बधाई दी.

सूअरपालन (Pig Farming)

पशुधन फार्म परिसर विभाग के अध्यक्ष डा. वीरेंदर सिंह पंवार ने ‘वैज्ञानिक पद्धति से सूअरपालन‘ पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस प्रथम आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 12 प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इन 3 दिनों में सूअरपालन के विभिन्न विषयों पर वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की जाएगी. इस प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को सूअर की देखभाल, उन के प्रजनन, प्रबंधन, भोजन प्रबंधन और स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन के बारे में सिखाया जाएगा.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीएस पंवार, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, आईपीवीएस निदेशक डा. एसपी दहिया, मानव संसाधन एवं प्रबंधन निदेशक डा. राजेश खुराना, सूअरपालन इकाई प्रमुख डा. नरेंद्र लांगयाण व अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी व प्रतिभागी उपस्थित रहे.

वजन 2 किलोग्राम, कटहल की साइज का आलू (Potato)

फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश में किसान आलू (Potato) की खेती बड़े पैमाने पर करते आए हैं. वैसे, इन दिनों आलू (Potato) की खुदाई का काम जोरों पर है. ये सामान्य सी बात है, लेकिन हाल ही में केवल अकेले आलू (Potato) के साइज और वजन को ले कर खासी चर्चा है.

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक किसान के खेत से खुदाई के दौरान 2 किलोग्राम वजन का आलू मिला, जो अपनेआप में चैकाने वाली खबर है. जिस किसान के खेत यह आलू उगा है, वह किसान भी रातोंरात चर्चा में आ गया.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के पतौजा गांव में मेराज हुसैन नाम के एक किसान के खेत से 2 किलोग्राम का आलू मिलने से हर तरफ चर्चा का माहौल है. उस किसान का कहना है कि वह कई सालों से आलू की खेती करता आया है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब खेत से इतना बड़े साइज का वजनदार आलू निकला.

इन दिनों आलू पक कर तैयार हो जाता है और किसान आलू की खुदाई के बाद उपज बेचते भी हैं और अगले साल के लिए बीज सहेज कर कोल्ड स्टोर में भी रखते हैं. जो भी हो, आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है और 2 किलोग्राम के आलू ने अपनी शहंशाही यहां दिखा ही दी.

ये अजूबा हुआ उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के एक गांव पतौजा में, जहां 2 किलोग्राम का आलू खेत में उगा है, जिस ने भी सुना उसी को हैरत हुई. आसपास के गांव के लोग तो आलू देखने पहुंचने लगे हैं. आलू को देख सभी को हैरानी में डाल दिया है.

पतौजा गांव के उस किसान का कहना है कि वह परंपरागत तौर से खेती करते हैं. आलू की फसल को जैविक और रासायनिक दोनों तरीके से उगाते हैं. उस किसान ने बताया कि इस बार उस के खेत में आलू की अच्छी पैदावार हुई है. इस बार उसे अच्छा मुनाफा भी मिलेगा.

आसपास में भी अधिकांश किसान आलू की खेती करते हैं. वह सभी आलू की फसल को फायदे का सौदा मानते हैं. जो भी हो, पतौजा गांव के किसान मेराज हुसैन को आलू ने एक अलग पहचान तो दिला ही दी.

स्ट्राबेरी (Strawberry) को बढ़ावा देने के लिए प्रक्षेत्र दिवस (Field Day) का आयोजन

सबौर: बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर में स्ट्राबेरी प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य उद्देश्य किसानों के बीच स्ट्राबेरी के उत्पादन तकनीक को दिखाना एवं राज्य में स्ट्राबेरी के उत्पादन को बढ़ावा देना है, ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा आमदनी प्राप्त हो सके. स्ट्राबेरी प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन उद्यान विभाग, बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर एवं कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

कार्यक्रम का आयोजन स्ट्राबेरी शोध परियोजना की मुख्य अन्वेशक डा. रूबी रानी ने परियोजना के तहत किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता सहअधिष्ठाता एवं प्राचार्य डा. एसएन राय ने की. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अधिष्ठाता कृषि डा. अजय कुमार साह थे. इस में विभाग के अध्यक्ष डा. अहमर आफताब, उपनिदेशक शोध डा. शैलबाला देई, विभाग के वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक डा. ममता कुमारी, किसान और आरएडब्ल्यूई के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

स्ट्राबेरी (Strawberry)

कार्यक्रम के दौरान डा. रूबी रानी ने राज्य के स्ट्राबेरी उत्पादन एवं समस्याओं पर प्रकाश डाला और विश्वविद्यालय द्वारा किए गए प्रयासों एवं स्ट्राबेरी पर किए गए शोध की संक्षिप्त जानकारी दी.

कार्यक्रम के दौरान स्ट्राबेरी किसानों ने स्ट्राबेरी प्लांटिंग मैटीरियल की समस्या से अवगत कराया और बताया कि स्ट्राबेरी के नए पौध हमेशा पूना, महाबलेश्वर या हिमाचल प्रदेश से लाना पड़ता है और सही समय पर उपयुक्त मात्रा में प्राप्त नहीं हो पाता, जिस से फलन प्रभावित होता है.

उपनिदेशक शोध डा. शैलबाला देई ने अपने संबोधन में इन समस्या का शोध के द्वारा निदान करने पर बल दिया. अध्यक्ष, उद्यान विभाग (फल) डा. अहमर आफताब ने बताया कि स्ट्राबेरी के मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे जैम, शरबत, स्कवास आदि से ज्यादा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है. अधिष्ठाता कृषि ने पौधा उपलब्धि की कमी को दूर करने पर बल दिया और बिहार के जलवायु अनुकूल किस्मों की आवश्यकता पर भी बल दिया. कार्यक्रम का समापन डा. रूबी रानी के धन्यवाद ज्ञापन से हुई.

फसल कीट (Crop Pest) व बीमारी निगरानी पर प्रशिक्षण

रीवां: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कार्यालय केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा एकदिवसीय राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली प्रशिक्षण स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र, रीवां के सभागार में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम में संभाग के किसानों एवं जिला नोडल अधिकारियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया. सुनीत कुमार कटियार ने आईपीएम एवं एनपीएसएस के बारे में बताया और प्रवीण कुमार यडहल्ली, वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा फसलों में लगने वाले कीट एवं बीमारियों के बारे में बताया.

अभिषेक सिंह बादल, सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा पैस्टिसाइड लेवल क्लेम, पेस्ट एवं डिजीज हौटस्पौट एवं अन्य बिंदुओं पर चर्चा की गई. डा. अखिलेश कुमार, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र ने संभाग के वर्तमान कीट परिदृश्य के बारे में बताया.

सहायक संचालक प्रीति द्विवेदी ने संभाग में फसलों में कीट व बीमारियों के प्रकोप से सुरक्षा के लिए एनपीएस के संबंध में जिलों के नोडल अधिकारियों को जागरूकता एवं एडवाइजरी जारी किए जाने के लिए निर्देशित किया.

कार्यक्रम का आरंभ प्रीति द्विवेदी, सहायक संचालक, संयुक्त संचालक कृषि कार्यालय एवं डा. एके पांडे, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किया गया.

थारमणि एफपीओ (FPO) करवाएगा अनार (Pomegranate) की जहरमुक्त बागबानी

बाड़मेर: इस जिले में लगातार बढ़ रहे अनार बागबानी क्षेत्रफल और किसानों की आय बढ़ाने का बड़ा जरीया अनार बागबानी अब किसानों के हाथों से फिसलने लगी है, जहां अनार बागबानी में अत्यधिक रसायन के इस्तेमाल से निर्यात न हो पाने से भाव नहीं मिल रहे हैं, तो अब लंबे समय तक ज्यादा रासायनिक उपयोग के चलते अनार के पौधों का इम्यून सिस्टम भी जवाब देने लग गया है, जो पौधे 20 से 25 वर्ष तक पैदावार देते थे, वह पौधे 8-10 सालों में ही हांफने लगे हैं और किसान उन पौधों को उखाड़ने भी लग गए हैं.

भारत सरकार के 10,000 एफपीओ योजना के सहयोग से निर्मित किसान उत्पादक कंपनी थारमणि और्गैनिक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, गुड़ामालानी ने बाड़मेर व जालौर जिलों के अनार उत्पादक किसानों की इस गंभीर समस्या को समझते हुए समाधान के प्रयास शुरू किए हैं, जिस के तहत देश के नामी व परिणाम देने मंे सक्षम रहे जैविक कृषि गुरु और कृषि विशेषज्ञ ताराचंद बेलजी को बाड़मेर मंे अनार बागबानी किसानों को सहयोग के लिए आमंत्रित कर किसानों को प्रशिक्षण देने व रसायनों के बेतहाशा इस्तेमाल की जगह जैविक विकल्प देने के प्रयास में आगामी 13 व 14 मार्च को गुड़ामालानी में दोदिवसीय जहरमुक्त अनार प्रशिक्षण तय किया है.

ताराचंद बेलजी, जिन्होंने स्वयं के अनुसंधानों व जैविक तरीके से अभी तक देशभर में 38 फसलों का जैविक तरीके से रिकौर्ड उत्पादन लेने में सफलता हासिल कर चुके हैं.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए निर्मित ब्रोसर व बैनर का विमोचन 4 मार्च को जिला कलक्टर, बाड़मेर कार्यालय में कलक्टर प्रशांत जैन, संयुक्त निदेशक, कृषि, पदम सिंह भाटी, गुड़ामालानी प्रधान बिजलाराम चैहान, आडेल प्रधान प्रतिनिधि नगाराम बेनीवाल, भारतीय किसान संघ संभाग प्रचार प्रमुख व थारमणि चेयरमैन प्रहलाद सियोल, थारमणि सचिव दुर्गादास वैष्णव व डायरैक्टर रिड़मल राम देवासी द्वारा किया गया.

इस मौके पर जिला कलक्टर प्रशांत जैन ने भारत सरकार की एफपीओ योजना का अधिक से अधिक किसानों को लाभ लेने व जैविक खेती को जमीन, फसल व किसान हित में प्रोत्साहित करने का आह्वान किया.

पदम सिंह भाटी, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग ने अनार बागबानी में अत्यधिक रसायनों के इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए एफपीओ के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक व जैविक विकल्पों के उपयोग पर बल देने व जागरूकता के साथ समय की मांग के अनुसार खेती करने की बात कही.

थारमणि एफपीओ चेयरमैन प्रहलाद सियोल ने बताया कि अनार बागबानी में किसानों के सामने रसायनों के विकल्प, सामूहिक प्रयासो की कमी, जैविक उत्पादों की बिक्री की समस्या है, जिसे थारमणि एफपीओ अनार किसानों को कैमिकल रसायनों के विकल्प के रूप में जैविक उत्पाद व देशी फार्मूलों का सटीक व सफल परिणाम देने वाले उत्पादों को किसानों तक उपलब्ध कराने, अनार किसानों को संगठित करने व जैविक अनार उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने का काम करने के तहत प्रशिक्षण के माध्यम से किसान, जमीन व अनार बागबानी जहर से छुटकारा पा कर जैविक व प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ जीवन व कम खर्च में अधिक उत्पादन ले सकें, ऐसा प्रयास किया जा रहा है. अगर कोई अनार बागबान इस प्रशिक्षण में शामिल होना चाहते हैं, वह प्रहलाद सियोल के मोबाइल नंबर 9001171800 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं.

रबी व खरीफ उपज खरीद के लिए राज्य खाद्य सचिवों की बैठक

नई दिल्लीः भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) ने 28 फरवरी, 2024 को नई दिल्ली में राज्यों के खाद्य सचिवों की एक बैठक आयोजित की. इस बैठक का उद्देश्य रबी विपणन सीजन (Rabi Marketing Season)  2024-25 और खरीफ विपणन सीजन (Kharif Marketing Season) 2023-24 में रबी फसलों की खरीद व्यवस्था पर चर्चा करना था. इस बैठक की अध्यक्षता भारत सरकार के डीएफपीडी सचिव ने की.

इस बैठक में खरीद को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों जैसे कि मौसम की स्थिति का पूर्वानुमान, उत्पादन का अनुमान और राज्यों की तैयारी की समीक्षा की गई. इस में विचारविमर्श के बाद आगामी आरएमएस 2024-25 के दौरान गेहूं खरीद का अनुमान 300-320 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) की सीमा में तय किया गया. इसी प्रकार केएमएस 2023-24 (रबी फसल) के दौरान धान की खरीद का अनुमान 90-100 लाख मीट्रिक टन की सीमा में तय किया गया.

वहीं, केएमएस 2023-24 (रबी फसल) के दौरान राज्यों की ओर से खरीद के लिए तकरीबन 6.00 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज व बाजरा (श्रीअन्न) की मात्रा का भी अनुमान लगाया गया. राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को फसलों के विविधीकरण और आहार स्वरूप में पोषण बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खरीद पर अपना ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी गई.

इस के अलावा तेलंगाना राज्य सरकार ने आपूर्ति श्रंखला अनुकूलन के संबंध में अपनाई गई अच्छे अभ्यासों को साझा किया और भारत सरकार की इस पर्यावरण अनुकूल पहल के माध्यम से सालाना 16 करोड़ रुपए की बचत का उल्लेख किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने ई-पीओएस को इलैक्ट्रौनिक वजन पैमाने के साथ जोड़ने के संबंध में सफल पहल साझा की, जिस ने लाभार्थियों को उन के लिए निर्धारित मात्रा के अनुसार खाद्यान्न की आपूर्ति प्रभावी ढंग से सुनिश्चित की है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्य एमएसपी खरीद अनुप्रयोगों की डिजिटल परिपक्वता पर अपना मूल्यांकन अध्ययन प्रस्तुत किया. इस के अलावा राज्य सरकारों को केएमएस 2024-25 की शुरुआत से पहले खरीद प्रणाली में पारदर्शिता व दक्षता लाने के लिए एग्रीस्टैक पोर्टल के मानक और मुख्य विशेषताओं के अनुरूप अपने मौजूदा अनुप्रयोगों को अपनाने या उन में सुधार की सलाह दी गई.

इस बैठक के दौरान नामित डिपो से उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न के परिवहन के लिए आपूर्ति श्रंखला अनुकूलन, खरीद केंद्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार, सर्वश्रेष्ठ पिसाई अभ्यासों व डिजिटल कौमर्स के लिए ओपन नैटवर्क (ओएनडीसी) पर उचित मूल्य की दुकानों को लाने से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई.

इस बैठक में एफसीआई के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक और राज्यों के प्रधान सचिव व सचिव (खाद्य) सहित भारतीय मौसम विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारतीय कृषि सहकारी विपणन संघ और भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ लिमिटेड के अधिकारी उपस्थित थे.

आठ हजार से अधिक एफपीओ (FPO) पंजीकृत

नई दिल्ली : देश में उपभोक्ताओं को अपनी उपज औनलाइन बेचने के लिए 8,000 पंजीकृत किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) में से लगभग 5,000 को ओपन नेटवर्क फोर डिजिटल कौ एलमर्स (ओएनडीसी) पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है.

देश के किसी भी हिस्से में अपने खरीदारों तक पहुंचने के लिए ओएनडीसी पर एफपीओ को शामिल करना उत्पादकों को बेहतर बाजार पहुंच प्रदान करने के केंद्र सरकार के उद्देश्य के अनुरूप है. इस कदम का उद्देश्य इन किसान उत्पादक संगठनों की डिजिटल मार्केटिंग, औनलाइन भुगतान, बिजनैस-टू-बिजनैस और बिजनैस-टू-कंज्यूमर लेनदेन तक सीधी पहुंच को सशक्त बनाना है.

6,865 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान के साथ वर्ष 2020 में शुरू की गई “10,000 किसान उत्पादन संगठनों (एफपीओ) का गठन और संवर्धन” नामक एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत 10,000 किसान उत्पादक संगठनों के सरकारी लक्ष्य की तुलना में 8,000 से अधिक एफपीओ पंजीकृत किए गए हैं.

इन एफपीओ में छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों का एकत्रित होना, किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन की आर्थिक ताकत और बाजार संपर्क बढ़ाने में भी सहायता प्रदान करता है.

एफपीओ किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पाद का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बेहतर प्रौद्योगिकी, ऋण, बेहतर इनपुट और अधिक बाजारों तक पहुंच की सुविधा प्रदान करते हैं.

एफपीओ को 3 वर्ष की अवधि के लिए प्रति एफपीओ 18 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. इस के अलावा एफपीओ को संस्थागत ऋण पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 15 लाख प्रति एफपीओ की सीमा और पात्र ऋण देने वाली संस्थाओं से प्रति एफपीओ 2 करोड़ रुपए के परियोजना ऋण के साथ एफपीओ के प्रति किसान सदस्यों को 2,000 रुपए तक मैचिंग इक्विटी अनुदान देने का प्रावधान किया गया है.

अभी तक 10.2 लाख से अधिक किसानों को कवर करते हुए 246 करोड़ रुपए की गारंटीकृत कवरेज के लिए 1,101 एफपीओ को क्रेडिट गारंटी जारी की गई है. 145.1 करोड़ रुपए का मैचिंग इक्विटी अनुदान पात्र 3,187 एफपीओ के बैंक खाते में सीधे हस्तांतरित कर दिया गया है.

कृषि को आत्मनिर्भर कृषि में परिवर्तित करने के लिए एफपीओ का गठन और प्रचार पहला कदम है. यह पहल किफायती उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने और एफपीओ के सदस्य की शुद्ध आय को बढ़ाती है. इस से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के साथसाथ ग्रामीण युवाओं के लिए उन के गांवों में ही रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. किसानों की आय में उल्लेखनीय सुधार करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम था.

एफपीओ को उपज समूहों में विकसित किया जाना है, जिस में पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं का लाभ उठाने और सदस्यों के लिए बाजार पहुंच को बेहतर बनाने के लिए कृषि और बागबानी उपज की खेती या उत्पादन किया जाता है. विशेषज्ञता और बेहतर प्रसंस्करण, विपणन, ब्रांडिंग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए “एक जिला, एक उत्पाद” क्लस्टर बनाए गए हैं. इस के अलावा कृषि मूल्य श्रृंखला संगठन एफपीओ का गठन कर रहे हैं और सदस्यों की उपज के लिए 60 फीसदी बाजार संपर्क की सुविधा प्रदान कर रहे हैं.

योजना का उद्देश्य

इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्थायी आय उन्मुख खेती के विकास और समग्र सामाजिकआर्थिक विकास और कृषि समुदायों के कल्याण के लिए 10,000 नए एफपीओ बनाने के लिए समग्र और व्यापक आधारित सहायक ईकोसिस्टम उपलब्ध कराना है. इस के अलावा कुशल, किफायती और सतत संसाधन उपयोग के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाना और अपनी उपज के लिए बेहतर तरलता और बाजार जुड़ाव के माध्यम से अधिक आय प्राप्त करना और सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से टिकाऊ बनाना भी है.

इस योजना के तहत एफपीओ के प्रबंधन, इनपुट, उत्पादन, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन, बाजार लिंकेज, क्रेडिट लिंकेज और प्रौद्योगिकी के उपयोग आदि के सभी पहलुओं में सृजन के वर्ष से 5 साल तक नए एफपीओ को सहायता और समर्थन प्रदान भी करना है. इस के साथ ही सरकार से समर्थन की अवधि के बाद आर्थिक रूप से व्यवहार्य और आत्मनिर्भर बनने के लिए कृषि उद्यमिता कौशल विकसित करने के लिए एफपीओ को प्रभावी क्षमता निर्माण प्रदान करना है. एफपीओ को या तो कंपनी अधिनियम के भाग 9ए के तहत या सहकारी समितियों के तहत पंजीकृत किया जा सकता है

किसानों ने किया प्राकृतिक उत्पादों (Natural Products) का प्रदर्शन, महिला किसान बनेगी लखपति

सिवनी: केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने पौलीटैक्निक मैदान में आयोजित हुए कृषि सह अन्न मेले को संबोधित कर कहा कि कृषि लागत में कमी और आम लोगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से देश में प्राकृतिक खेती के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन को बढावा देने का काम सरकार द्वारा किया जा रहा है. देश में अन्नदाताओं की आय को बढाने को ले कर विभिन्न प्रयास लगातार जारी हैं.

मोटे अनाज की खेती, महिलाएं बनेंगी लखपति

उन्होंने कहा कि पुराने समय से प्राकृतिक खेती की पद्धति अपनाई जाती रही है और मोटे अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक है.

उन्होंने कहा कि किसान की आय में वृद्धि के लिए सरकार मोटे अनाज ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी, चीना सहित मोटे अनाज को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि इस काम में विशेष रूप से महिलाओं को जोड़ कर उन्हें लखपति बनाने के उद्देश्य से सरकार काम कर रही है.

सारस पोर्टल से ट्रेनिंग

उन्होंने बताया कि सारस पोर्टल के द्वारा अन्न के उत्पादन में लगे किसानों को पैकेजिंग, ब्रांडिंग आदि की ट्रेनिंग भी सरकार द्वारा दी जा रही है.

उन्नत तकनीकों की प्रदर्शनी

केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने अन्न मेले में उपस्थित किसानों से मेले में उपस्थित कृषि वैज्ञानिकों को एवं उन्नत कृषि तकनीकी को प्रदर्शित करती प्रदर्शनी से जानकारी प्राप्त करने की अपील करते हुए कहा कि अन्न मेले में शामिल हुए सभी किसान कृषि वैज्ञानिकों से उन्नत कृषि तकनीकी एवं बीजों की जानकारी अनिवार्य रूप से प्राप्त करें और उन्नत कृषि उपकरणों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए आवश्यकतानुसार नवीन तकनीक को अपनाएं.

अधिक कृषि रसायन नुकसानदायक, प्राकृतिक खेती को दें बढ़ावा

कार्यक्रम को संबोधित कर सांसद डा. ढालसिंह बिसेन ने कहा कि अधिक उत्पादन के लालच में हम ने विदेशी बीजों को अपना कर अनेक बीमारियों को जन्म दिया है और अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने से हमारी जमीन बंजर हो गई है और उत्पादित फसलों में भी पोषक तत्वों की कमी आई है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज हमें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिस से कम लागत में पोषक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी.

विधायक दिनेश राय ने किसानों से जैविक कृषि अपना कर उन्नत कृषि उपकरणों, बीजों एवं तकनीक को अपनाने की बात कही.

मृदा स्वास्थ्य कार्ड से फायदा

उन्होंने कहा कि प्रत्येक किसान अपनी कृषि भूमि का मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए, ताकि कमी वाले पोषक तत्वों को ध्यान में रख कर खाद एवं बीज का उपयोग किया जा सके. इसी तरह आलोक दुबे ने अपने उद्बोधन में शासन द्वारा संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी.

कलक्टर क्षितिज सिंघल द्वारा मेले में उपस्थित किसानों को अन्न मेले के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देने के साथसाथ सभी से उन्नत कृषि तकनीकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के बारे में जानकारी ले कर तकनीकों को अपनाने की अपील की गई.

कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष मालती डहेरिया, जनपद अध्यक्ष सिवनी किरण भलावी, जनपद अध्यक्ष लोचन सिंह मरावी के साथ ही अन्य जनप्रतिनिधियों एवं विभागीय अधिकारियों एवं बडी संख्या में किसानों की उपस्थिति रही.

आयोजित मेले में कृषि विभाग के साथसाथ उद्यानिकी, कृषि विज्ञान केंद्र, पशुपालन विभाग, मत्स्य, आजीविका मिशन, आयुष, जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र के साथसाथ अन्य विभागों द्वारा स्टाल के माध्यम से विभागीय योजनाओं की जानकारी दी गई.

मेले में विशेष रूप से अन्न फसलों के उत्पादों जैसे कोदो, कुटकी के बिसकुट, कुकीज एवं प्राकृतिक खेती के उत्पादों के साथ छिंदवाड़ा, मंडला के किसान उत्पादक संगठनों ने अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया. इस के साथसाथ सिवनी के प्रगतिशील किसानों द्वारा जीराशंकर चांवल एवं प्राकृतिक खेती के उत्पाद, नरसिंहपुर जिले के गुड़ एवं तुअर की दाल के साथसाथ अन्य जिलों के विभिन्न उत्पादकों द्वारा अपने उत्पाद का प्रदर्शन किया गया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) वर्तमान समय की जरूरत

प्राकृतिक कृषि पद्धति आजकल खेती का एक प्रमुख विकल्प बन रहा है, जो कृषि क्षेत्र में पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने के लिए अपना योगदान दे रही है. इस पद्धति में खेती का प्रबंधन प्राकृतिक और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के साथ किया जाता है, ताकि स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिले.

प्राकृतिक खेती एक भारतीय पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित कर पर्यावरण संरक्षण के साथसाथ स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही टिकाऊ खेती को बढ़ावा देता है.

प्राकृतिक खेती में रसायनों के प्रयोग को पूरी तरह से वर्जित किया जाता है और फसलोत्पादन के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग पौध पोषण एवं फसल सुरक्षा के लिए किया जाता है.

प्राकृतिक खेती क्यों?

प्राकृतिक खेती की जरूरत क्यों है? जबकि वर्तमान समय में प्रचलित रसायनयुक्त पारंपरिक कृषि से किसान को अच्छा फसलोत्पादन प्राप्त हो रहा है. इस का उत्तर प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि यह समझा जाए कि वर्तमान समय में प्रचलित रसायनयुक्त पारंपरिक खेती में क्याक्या समस्याएं हैं. वर्तमान समय में रसायन आधारित पारंपरिक कृषि के विभिन्न अनपेक्षित परिणाम हैं, जो पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं. पारंपरिक खेती से होने वाले अनपेक्षित कुछ प्रमुख परिणाम हो सकते हैं.

जल प्रदूषण

पारंपरिक खेती में सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से जल निकायों में रिसाव होता है, जिस से भूजल और सतही जल प्रदूषित हो रहे हैं. यह प्रदूषण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है और इनसान की सेहत को भी प्रभावित कर रहा है.

मृदा क्षरण

गहन जुताई, मोनोक्रापिंग और रासायनिक निवेशों के उपयोग से मिट्टी की क्वालिटी का खराब होना, भूक्षरण, मिट्टी का सख्त होना और कृषि भूमि की उत्पादन क्षमता में गिरावट हो रही है. इस के उलट प्राकृतिक खेती में मिट्टी की क्वालिटी में सुधार होने से उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है.

जैव विविधता को नुकसान

पारंपरिक खेती में अकसर फसलोत्पादन के लिए प्राकृतिक रूप से उगे पेड़पौधे, जंगल आदि को (हैबिटैट) को साफ कर भूमि को खेती में शामिल किया जाता है. प्राकृतिक वास के इस नुकसान से जैव विविधता में गिरावट आ रही है, जिस से परागण और प्राकृतिक कीट नियंत्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रभावित हो रही हैं.

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन

पारंपरिक कृषि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. मुख्य रूप से सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस औक्साइड, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, वातावरण में अवमुक्त होती है.

स्वास्थ्य पर प्रभाव

पारंपरिक कृषि में कीटनाशकों के उपयोग से कृषि श्रमिकों, उपभोक्ताओं और आसपास के समुदायों पर नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव पड़ रहा है. खाद्य श्रंखला में कीटनाशकों के अवशेष स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हैं.

ग्रामीण समुदायों का क्षरण

पारंपरिक कृषि पद्धतियों से कृषि भूमि को बड़े पैमाने पर मोनोकल्चर में समेकित किया जा रहा है, जो छोटे किसानों को खेती से विस्थापित कर रहा है, जिस से ग्रामीण समुदायों का सामाजिक तानाबाना प्रभावित हो रहा है.

कई बार यह भी तर्क दिया जाता है कि प्राकृतिक खेती लाभदायक नहीं है. प्राकृतिक खेती कम लागत (स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कृषि निवेशों के प्रयोग के कारण कई बार इसे जीरो बजट प्राकृतिक खेती कहा जाता है) अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद, जिस का बाजार मूल्य अच्छा होता है, किसान की शुद्ध आय में कोई कमी नहीं होती है. रसायनयुक्त पारंपरिक कृषि में कई छुपे हुए खर्च निहित होते हैं, जिसे प्रायः हम आगणित ही नहीं करते. पारंपरिक कृषि से निम्नलिखित खर्च भी व्यक्ति अथवा समाज को करने पड़ते हैं.

पर्यावरणीय सफाई पर अनावश्यक खर्च

जल प्रदूषण, मिट्टी के क्षरण और अन्य पर्यावरणीय क्षति का निवारण अत्यंत महंगा होता है और इस के लिए पर्याप्त पैसों की जरूरत हो सकती है.

स्वास्थ्य देखभाल पर अनावश्यक खर्च

कीटनाशकों के संपर्क और दूषित जल स्रोतों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने से स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर वित्तीय बोझ पड़ रहा है.

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का नुकसान

जैव विविधता के नुकसान और पारिस्थितिकी प्रणालियों के क्षरण से परागण और जल शुद्धीकरण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की उपलब्धता कम हो रही है, जिस का व्यक्ति पर आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ता है.

जलवायु परिवर्तन लागत

पारंपरिक कृषि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, जिस का बड़े पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक प्रभाव है, जिस में बुनियादी ढांचे, कृषि और मानव स्वास्थ्य के नुकसान शामिल हैं.
प्राकृतिक खेती अपनाने से इन सभी नुकसानों से सुगमता से बचा जा सकता है. यदि इन नुकसानों को रोक कर इन पर होने वाले खर्चे को बचाया जाए, तो यह बहुत अधिक होगी. साथ ही, प्राकृतिक खेती से मानव स्वास्थ्य के साथसाथ मृदा एवं पर्यावरण के संरक्षण को भी बल मिलता है.

प्राकृतिक खेती की विशेषताएं

कैमिकल निर्भरता से नजात

प्राकृतिक खेती में कोई भी रासायनिक उर्वरक, सिंथेटिक कीटनाशक या खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है. प्राकृतिक कृषि पद्धति खेती को कैमिकल निर्भरता से पूरी तरह से मुक्त बनाता है.

मिट्टी का संरक्षण

प्राकृतिक खेती में मिट्टी के संरक्षण और उस की गुणवत्ता को बनाए रखने पर जोर दिया जाता है. इस में किसान के प्रक्षेत्र पर उपलब्ध स्थानीय उत्पादों को खेती के लिए उपयोग होता है, जो मृदा स्वास्थ्य को सुदृढ़ रखने में सहयोगी होता है.

बायोविविधता का संरक्षण

प्राकृतिक खेती के अनुसार, फसलों को प्राकृतिक तरीके से उगाया जाता है और एकल खेती को हतोत्साहित कर बहुफसली खेती को बढ़ावा देती है, जिस से बायोविविधता को संरक्षित करने को भी प्रोत्साहित किया जाता है.

प्राकृतिक वित्तीय उपाय

प्राकृतिक खेती में जैविक खादों, जैविक कीटनाशकों और प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित कर उन्नत खेती तकनीकों का उपयोग कर के किसान स्वावलंबी बनते हैं. प्राकृतिक खेती में किसान को बाहर से कृषि निवेशों की निर्भरता समाप्त होती है.

सामुदायिक सहयोग

प्राकृतिक खेती में स्थानीय समुदायों को सहयोग दिया जाता है, जो साझेदारी और अनुभव के माध्यम से खेती का प्रबंधन करते हैं.

जैविक खेती तकनीकों का उपयोग

जैविक खेती तकनीकों के उपयोग से खेती को संवेदनशील बनाया जाता है, जैसे कि जैविक खाद, जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक बायोफार्मिंग प्रविधि.

जल संरक्षण

प्राकृतिक खेती में जल संरक्षण को महत्व दिया जाता है, जैसे कि बूंदों के संचय तंत्र और सूखे के प्रतिरोध के लिए प्राकृतिक साधनों का उपयोग.

संरक्षण क्षेत्रों की गुणवत्ता

प्राकृतिक खेती में भूमि, वन्य जीवों और जल संपदा की सुरक्षा का खासा ध्यान रखा जाता है, जिस से संरक्षण क्षेत्रों की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है.

प्राकृतिक खेती के लाभ

स्वास्थ्य लाभ

प्राकृतिक खेती से प्राप्त उत्पादों में कैमिकल का कम उपयोग होता है, जिस से उन में पोषक तत्वों की अधिक मात्रा पाई जाती है. इस से उपभोक्ताओं को स्वस्थ और पौष्टिक आहार मिलता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव होता है.

पर्यावरण संरक्षण

प्राकृतिक खेती में कैमिकल का कम उपयोग किया जाता है, जिस से प्रदूषण कम होता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है. इस से जल, मिट्टी और वायु की स्थिरता बनी रहती है.

आर्थिक लाभ

प्राकृतिक खेती में कम खर्च और अधिक मूल्य प्राप्ति के चलते किसानों को अधिक लाभ होता है. इस के अलावा जब उत्पादों की मांग बढ़ती है, तो उन की कीमतें भी बढ़ जाती हैं, जिस से खेती करने वालें किसानों की आर्थिक स्थिरता बढ़ती है.

सामाजिक लाभ

प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान समुदाय आपस में साझेदारी करते हैं, जो सामाजिक भाईचारा और सामूहिक समृद्धि को बढ़ावा देता है. इस से सामाजिक न्याय, समर्थन और भाईचारा बढ़ता है.

बायोडाइवर्सिटी का संरक्षण

प्राकृतिक खेती में जलवायु, वन्य जीवों और जलवायु के संरक्षण का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिस से बायोडाइवर्सिटी का संरक्षण होता है. इस से प्राकृतिक प्रणालियों का संतुलन बना रहता है.

आत्मनिर्भरता

प्राकृतिक खेती के प्रयोग से किसान आत्मनिर्भर बनते हैं. वे अपनी जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकते हैं और स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग कर के उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं.

जल संरक्षण

प्राकृतिक खेती में जल संचयन, स्थल संरक्षण और जल संपादन की प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है. इस से जल संसाधन का सही उपयोग होता है और जल की कमी को कम किया जाता है.

अनुसंधान और विकास

प्राकृतिक खेती में नई और समृद्ध प्राकृतिक तकनीकों का अनुसंधान और विकास किया जाता है. यह न केवल खेती की उत्पादकता को बढ़ाता है, बल्कि विशेषज्ञों को भी नए और संबंधित क्षेत्रों में नए अवसर प्रदान करता है.

अनुभव और साझेदारी

प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान अनुभवों को साझा करते हैं और एकदूसरे से सीखते रहते हैं. यह सामूहिक उत्पादन और साझेदारी को प्रोत्साहित करता है, जिस से कृषि समुदाय का विकास होता है.
प्राकृतिक खेती के इन लाभों से न केवल कृषि सैक्टर में सुधार होता है, बल्कि समाज और पर्यावरण को भी स्थिरता और समृद्धि प्राप्त होती है. प्राकृतिक कृषि, खेती करने का वह प्राचीन तरीका है, जिस का रथ बीजामृत, जीवामृत, आच्छादन एवं वाफ्सा नामक चार पहियों पर आगे बढ़ता है.

प्राकृतिक खेती में शून्य अथवा न्यूनतम जुताई, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बीज, फसल आच्छादन, पूरे साल खेत में फसल, पौध पोषण के लिए जीवामृत अथवा घनजीवामृत का प्रयोग, फसल सुरक्षा के लिए खेत पर तैयार अवयवों के प्रयोग के साथसाथ गायों का पालन किया जाना सम्मिलित है, जिस के कारण खेती की लागत न्यूनतम, उच्च गुणवत्ता का उत्पादन और पर्यावरण के अनुकूल एक टिकाऊ कृषि पद्धति है, जो ऋषि कृषि परंपरा पर आधारित है. अतः वर्तमान समय में प्राकृतिक कृषि, खेती का अनुकूलतम विकल्प है.