मंडला मिलेट फूड फेस्टिवल (Millet Food Festival) में सजी उत्पादों की श्रृंखला

मंडला: मोटे अनाज के उपयोग के लिए आम लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से आयोजित मंडला मिलेट फूड फेस्टिवल का शुभारंभ मध्य प्रदेश सरकार की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके द्वारा किया गया. फूड फेस्टिवल के दौरान कलक्ट्रेट मार्ग को अत्यंत आकर्षक ढंग से सजाया गया. आकर्षक लाइटिंग एवं संगीत ने वातावरण को अद्भुत रूप दिया.

नगर के लोग बड़ी तादाद में फूड फेस्टिवल पहुंचे और स्थानीय व्यंजनों का भरपूर आनंद लिया. इस फूड फेस्टिवल में महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण एवं शहरी आजीविका, स्वयं सहायता समूह, कृषि विभाग, आत्मा, कार्ड, किचन, उत्कृष्ट विद्यालय, नवोदय तंदूरी चाय, दुग्ध संघ सहित अन्य विभाग, विभिन्न संस्थाओं और नगर के ख्यातिलब्ध प्रतिष्ठानों द्वारा स्वादिष्ठ व्यंजनों के स्टाल लगाए गए.

इस अवसर पर मास्टर सेफ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया, जिस में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय विजेताओं को पुरस्कृत किया गया.

सांस्कृतिक कार्यक्रमों से बंधा समां

फूड फेस्टिवल में स्थानीय व्यंजनों के अलावा कलाकारों ने संगीतमय प्रस्तुति दी. जनजातीय परिधानों में सजे कलाकारों ने सामूहिक नृत्य, गायन आदि से उपस्थित लोगों का खूब मनोरंजन किया और तालियां बटोरी.

कार्यक्रम में ख्यातिलब्ध कवि एवं गीतकार श्याम बैरागी ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की. रानू चंद्रौल एवं टीम नटराज द्वारा प्रस्तुत कत्थक, रानी अवंती बाई विद्यालय, सरदार पटेल कालेज, रावतपुरा कालेज, महर्षि विद्यामंदिर के विद्यार्थियों द्वारा मनमोहक प्रस्तुतियां दी गईं.

इस अवसर पर अनेक स्थानीय कलाकारों ने नृत्य एवं गायन से समां बांधा. कार्यक्रम स्थल पर फूड अंताक्षरी एवं बूझो तो जानें सहित अन्य खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया

किसानों को रासायनिक खेती छोड़ प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपनाना होगा

झाबुआ: कैबिनेट मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश शासन सु निर्मला भूरिया के मुख्य आतिथ्य और सांसद लोकसभा क्षेत्र रतलामझाबुआ गुमान सिंह डामोर की अध्यक्षता में कृषिगत क्षेत्र की उन्नत नवीन तकनीक विस्तारण, प्रदर्शनी, शासन की किसान कल्याणकारी योजनाओं के प्रचारप्रचार के उद्देश्य से कृषि विज्ञान केंद्र प्रक्षेत्र झाबुआ में कृषि विज्ञान मेले का शुभारंभ किया गया.

मेले में विभिन्न शासकीय विभागों द्वारा लगाई गई प्रदशर्नी का अवलोकन करते हुए अतिथि मंच पर पहुचे. सहायक संचालक कृषि कल्याण एवं कृषि विकास विभाग नगीन रावत द्वारा मेले के बारे में विस्तार से बताया गया.

मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश शासन सु निर्मला भूरिया द्वारा किसानों को आधुनिक खेती के साथसाथ प्राकृतिक खेती की ओर भी ले जाएं, आधुनिक खेती के कहीं न कहीं दुष्प्रभाव भी हैं.

रासायनिक खाद के उपयोग का असर हमारे शरीर पर भी होने लगा है. आज हम यूरिया का काफी मात्रा में उपयोग करने लगे हैं. आने वाले समय में हमें रासायनिक खाद का उपयोग कम करना होगा. हमें सोचना होगा कि हम आने वाले पीढ़ी को क्या दे रहे हैं.

सरकार की तरफ से विश्वास दिलाते हुए कहा कि हम किसानों के हित के लिए काम करेंगे.

सांसद गुमान सिंह डामोर ने आगे यह भी कहा कि वर्तमान समय में रासायनिक खाद का उपयोग बहुत बढ़ गया है. पहले हम गोबर की खाद का उपयोग करते थे, जो सर्वश्रेष्ठ खाद है. उन के द्वारा किसानों को जैविक खाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया गया. साथ ही, अन्य अतिथियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा भी जैविक खाद का उपयोग करने को कहा गया, जिस से कि हम रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव से बच सकें.

अतिथियों द्वारा उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान किया गया. साथ ही, किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी प्रदान किए गए.

जिला पंचायत अध्यक्ष सोनल जसवंत सिंह भाबोर द्वारा किसानों को जैविक खेती के उपयोग के लिए प्रेरित करते हुए किसानों की समस्या की ओर प्रकाश डाला गया.

जिले में आयोजित किए जा रहे किसान मेले में जिले के समस्त 6 विकास खंडों से तकरीबन 5,000 किसान इस मेले में सम्मिलित हुए, जिस में कृषिगत क्षेत्र की उन्नत नवीन तकनीक विस्तारण, कृषि को व्यवसाय के रूप में आगे बढाना, किसान का फसल उत्पादन बढाने के भारत शासन एवं राज्य शासन की महात्वाकांक्षी योजनाओं से अवगत कराए जाने के साथसाथ उत्पादन लागत में कमी लाने, प्रशिक्षित करना और प्रदर्शनी के माध्यम से कृषि से जुडे नवाचारों का जीवंत प्रदर्शन, खेती की नवीन उन्नत किस्मों के बीजों जैसे विभिन्न आयामों का मेले के माध्यम से प्रचारप्रसार किया गया.

मेले में दोनों दिन कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषिगत क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी सत्र आयोजित किए गए. मेले में विभिन्न शासकीय विभागों जैसे कृषि एवं कृषि से संबद्ध विभाग कृषि विज्ञान केंद्र, पशुपालन, उद्यानिकी विभाग, मत्स्यपालन, कृषि अभियांत्रिकी, स्वास्थ्य विभाग, आयुष विभाग, सहकारिता विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ ही मध्य प्रदेश गामीण अजीविका परियोजना, अशासकीय संगठनों की जिले में संचालित विभिन्न गतिविधियों से सबंधित प्रदर्शनियां और स्वयं सहायता समूह, कृषक उत्पाद संगठनों एवं जिले के निजी कृषि आदान विक्रेताओं द्वारा भी कृषि की नवीन उन्नत तकनीकी से संबंधित कृषि आदानों / उत्पादों के साथसाथ प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की बहनों द्वारा सास्वत यौगिक खेती के साथसाथ नशामुक्ति से सबंधित प्रदर्शनी लगाई गई.

मेले में जिले के किसानों को जिले के भौगोलिक परिदृश्य के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तकनीकी विस्तारण संबंधित प्रशिक्षित कराया गया. इसी क्रम में जिले के प्रगतिशील किसानों द्वारा अपने खेतों पर अपनाई जा रही है, कृषिगत नवीन उन्नत तकनीकी खेती, नवाचार के बारे में विस्तृत से जानकारी से अवगत कराते हुए परंपरागत खेती की जगह उन्नत तकनीकी को अपना कर किसान अपने जीवनस्तर में बदलाव के बारे में प्रशिक्षित कराया गया.

मेले में किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा मानव स्वास्थ एवं पर्यावरण की सुरक्षा हेतु प्राकृतिक खेती की विभिन्न विधाओं के बारें में विस्तृत प्रदर्शनी के माध्यम से चित्रण किया गया, इसी प्रकार प्रचलित भोज्य अनाजों के स्थान पर मिलेट्स के उपयोग के बारे में बताते हुए उन के उपयोगों के बारे में जानकारी दी गई.

कौशल विकास (Skill Development) हेतु किसानों को ट्रेनिंग

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में मानव संसाधन विकास विभाग (एचआरडी) द्वारा 4 राज्यों (राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) के 40 से ज्यादा पशुपालक किसानो के बैच को भेड़बकरी एवं खरगोशपालन पर 8 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम अविकानगर में आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. अरुण कुमार तोमर, निदेशक द्वारा की गई. इस मौके पर उन्होंने सभी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य आप के पशुपालन जैसे भेड़, बकरी, खरगोश आदि के ज्ञान में वैज्ञानिक तरीके से पालन को बढ़ावा देना है. इसलिए सभी वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई बातों को सुन कर अंत में अपने सवालजवाब करने हैं, जिस से सारी शंकाओं का समाधान किया जा सके.

उन्होंने कहा कि संस्थान के वैज्ञानिक आप को पशुपालन के विभिन्न पहलुओं को कवर करेंगे, फिर भी कोई सवाल रहे तो समापन कार्यक्रम में विस्तार से चर्चा कर के दूर करने की कोशिश टीम द्वारा की जाएगी.

अविकानगर में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वय डा. सुरेश चंद शर्मा, प्रभारी, एचआरडी, प्रभारी तकनीकी स्थानांतरण विभाग डा. लीलाराम गुर्जर व प्रभारी पीआरओ सेल डा. अमर सिंह मीना द्वारा किया जा रहा है. इस दौरान पशु पोषण विभाग के अध्यक्ष डा. रणधीर सिंह भट्ट, पशु स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष डा. गणेश सोनावाणे, प्रभारी ऊन विभाग डा. अजय कुमार, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार उपस्थित रहे.

इस मौके पर निदेशक के मार्गदर्शन में सभी किसानों का परिचय करते हुए उन की खेती और पशुपालन के बारे में जानकारी लेते हुए उन की समस्या पर चर्चा अपनी टीम के साथ की गई. निदेशक द्वारा सभी किसानों को छोटे स्तर से पशुपालन की शुरुआत करने का सुझाव दिया गया.

नस्ल सुधार के लिए वैज्ञानिक तरीके से भेड़पालन (Sheep Rearing)

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में मालपुरा भेड़ के सैक्टर मालपुरा परियोजना के एनडब्बूपीएसआई की एससीएसपी उपयोजना के अंतर्गत मालपुरा तहसील के 11 गांवों (सदरपुरा, चौरूपुरा, धोली, खेड़ा, भीपुर, कैरवालिया, लावा, डिग्गी नुक्कड़, लक्ष्मीपूरा, अजमेरी एवं चांदसेन) एवं पीपलू तहसील के ज्वाली गांव आदि के 20 अनुसूचित जाति के किसानों को मालपुरा भेड़ों में नस्ल सुधार हेतु वैज्ञानिक भेड़पालन पर पांचदिवसीय (19 से 23 फरवरी, 2024) प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन मुख्य अथिति डा. जीके गौड़, सहायक महानिदेशक, पशु उत्पादन एवं प्रजनन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, कार्यक्रम के अध्यक्ष व निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर,प्रधान वैज्ञानिक डा. आरसी शर्मा, विभाग अध्यक्ष डा. एसएस मिश्रा, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी राजकुमार एवं मालपुरा परियोजना के पीआई डा. पीके मलिक की मौजूदगी में किया गया.

मुख्य अथिति डा. जीके गौड़ द्वारा अपने संबोधन में सभी किसानों को वैज्ञानिक तरीके से भेड़पालन करने के लिए विभिन्न उदाहरणों से संबोधित किया.

उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार गांवों के किसानों को आधुनिक खेती और पशुपालन के माध्यम से ही विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए हर रोज नई स्कीमें लागू कर रही है, जिस से गांवों में भी सभी तरह के संसाधनों का विकास हो.

उन्होंने यह भी बताया कि स्वच्छ वातावरण में पाला जाने वाला पशु ही सब से अच्छा मांस और उत्पाद देता है. यह वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन करने से ही संभव है.

भेड़पालन (Sheep Rearing)

अंत मे उन्होंने कहा कि आप के उत्थान के लिए ही हम लोग काम कर रहे हैं, इसलिए आप की आर्थिक उन्नति होने पर ही हमारे कामों की सार्थकता है.

निदेशक डा. अरुण कुमार द्वारा किसानों को भेड़पालन पर उन की समस्या को सुनते हुए अपनी टीम के साथ उपयुक्त सुझाव दिया और निवेदन किया कि भेड़पालन के लिए वैज्ञानिक तरीका और मालपुरा भेड़, सिरोही नस्ल के अच्छे पशु ही पालना चाहिए, जिस से आप को अच्छा मुनाफा मिले, क्योंकि इस वातावरण मे ये पशु सर्वोत्तम है. आने वाले समय में आप का क्षेत्र मालपुरा भेड़ के उत्तम पशुओं का अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए अच्छा पशु मिलने का केंद्र बनेगा .

उन्होंने बताया कि अभी संस्थान के पास किसानों की बहुत मांग है और आप के सहयोग के बिना मेरा संस्थान पूर्ति नहीं कर सकता.

पशु आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा. एसएस मिश्रा एवं मालपुरा परियोजना एनडब्लूपीएसआई के प्रधान अन्वेषक डा. पीके मलिक द्वारा समापन कार्यक्रम में पधारे अथितियों का स्वागत करते हुए परियोजना और विभाग द्वारा किए जा रहे प्रयास पर प्रकाश डालते हुए किसानों को संस्थान की बातों का प्रसार अन्य को करने का भी निवेदन किया.

कार्यक्रम के अथितियों द्वारा सभी किसानों को प्रशिक्षण प्रमाणपत्र के साथ चारा ट्राफ, लोहे की जाली, पशुपालन से जुड़े आवश्यक सामान का वितरण किया गया.

कार्यक्रम में एजीबी विभाग के वैज्ञानिक डा. नागराजन, डा. राजीव कुमार, डा. एसएमके थिरूमरान, डा. सरवणे, अमर सिंह मीना, योगीराज के साथ परियोजना की फील्ड में काम कर रहे कर्मचारी भी उपस्थित रहे.

शोध कार्य रीव्यू मीटिंग ( Research Work Review Meeting) का आयोजन

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान ( Central Sheep and Wool Research Institute), अविकानगर में संस्थान की अनुसंधान सलाहकार समिति (Research Advisory Committee )  द्वारा विभिन्न शोध कार्यों की दिशा एवं परिणाम का विस्तार से आकलन किया जा रहा है.

संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा सभी एक्सपर्ट्स को संस्थान के विभिन्न सैक्टर्स भेड़बकरी एवं खरगोश पर पशुओं की उत्पादन क्षमता एवं किसानों को दी जा रही नस्लों के बारे में विस्तार से बताया गया.

संस्थान के निदेशक ने अविकानगर संस्थान द्वारा किए गए शोध, अविकानगर द्वारा किसानों को जागरूकता के लिए स्वास्थ्य शिविर, रात्रि चौपाल एवं उन्नत नस्ल के पशुओं का प्रदर्शन के लिए वितरण को संस्थान के क्षेत्र केंद्र के साथ विस्तार से प्रेजेंटेशन आरएसी टीम को दिया गया.

समिति द्वारा संस्थान की गतिविधियों का मूल्यांकन कर वर्तमान एवं भविष्य के हिसाब से आवश्यक सुझाव दिया गया.

अविकानगर संस्थान के विभिन्न विभागों और क्षेत्रीय केंद्र के विभागाध्यक्ष, प्रभारी आदि द्वारा पिछले सालों में अपने विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध और प्रसारप्रचार के कार्यों का प्रेजेंटेशन आरएसी समिति को दिया जा रहा है.

आरएसी समिति के अध्यक्ष डा. विष्णु शर्मा संस्थान के काम को ले कर बेहद खुश नजर आए. संस्थान को भविष्य के हिसाब से भी शोध के नए क्षेत्र पर काम करने के सुझाव और पहलुओं पर निदेशक डा. अरुण कुमार और संस्थान की टीम के साथ विस्तृत चर्चा की. अविकानगर के मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना ने जानकारी दी.

डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी (Dairy and Food Technology) पर ट्रेनिंग

महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा आम फल प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग एवं खाद्य अनुपूरक के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय योगदान को किसानों और उद्यमियों तक पहुंचाने के लिए डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय और भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय के सयुंक्त तत्वावधान में 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आम फल प्रसंस्करण एवं खाद्य अनुपूरक पर तकनीकी कौशल का विकास करने के साथ किसानों और उद्यमियों की पारंपरिक कार्य प्रणाली का उन्नयन करना है. साथ ही, उद्यमिता विकास के लिए संपूर्ण तकनीकी सहायता प्रदान की गई.

कौशल विकास कार्यक्रम समन्वयक डा. निकिता वधावन ने बताया कि यह महाविद्यालय का 5वां प्रशिक्षण कार्यक्रम है. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए 21 प्रतिभागियों ने आवेदन किया था, जिस में से 16 महिलाएं हैं. इस तरह से महाविद्यालय महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य के लिए अपना योगदान दे रहा है.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विख्यात वैज्ञानिकों ने न केवल सैद्धांतिक, बल्कि महाविद्यालय की विश्व स्तरीय आईएसओ  प्रमाणित प्रयोगशालाओं में मार्गदर्शन प्रदान कराने के साथ ही भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किए गए, जो कि प्रतिभागियों को अपना उद्यम स्थापित करने में मददगार होगा. महाविद्यालय विगत 42 सालों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रदान कर रहा है.

एक उद्यमी मंजू चैहान ने बताया कि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI)  के विभिन्न मानकों को बहुत ही सरल तरीके से समझाया गया और निश्चित तौर पर यह व्याख्यान उन के उद्यम को उत्तरोत्तर प्रगतिशील करने के साथसाथ यशोवर्धनकारी साबित होगा.

आत्मविश्वास से लबरेज मीरा डूंगरी का कहना था कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम बेरोजगारों एवं महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ उद्यम स्थापित करने का एक स्वर्णिम अवसर है. उन्होंने  बेरोजगारों एवं महिलाओं से ऐसे अवसर का लाभ उठाने की अपील की.

आंवले के विभिन्न उत्पाद बनाने वाले संजीवनी फूड्स की ज्योति सेन का कहना था कि आम के प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग की कई तकनीकों और विधाओं के बारे में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जितनी सरलता से बताया गया, वह सिर्फ इसी महाविद्यालय से उम्मीद थी. उन का कहना था कि ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम हर महीने आयोजित किए जाने चाहिए.

राजस्थान में कृषि यंत्रीकरण पर कोई खास ध्यान नहीं

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उपमहानिदेशक डा. एसएन झा ने कृषि संरचना एवं पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक के अभियांत्रिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 19वीं कार्यशाला के उद्बोधन में कहा कि राजस्थान में कृषि अभियंताओं ने जल ग्रहण विभाग में काफी अच्छे काम किए हैं, जिसे राजस्थान के किसानों को बहुत फायदा हुआ है. राजस्थान में कृषि यंत्रीकरण पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जा रहा, राजस्थान सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.

वर्तमान में दुनियाभर में कृषि उत्पादन के प्रसंस्करण एवं प्रबंधन पर ध्यान दिया जा रहा है, राजस्थान में भी कृषि उत्पाद की प्रोसैसिंग पर ध्यान दे कर किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है.

वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए हमें 75 फीसदी फार्म को मेकैनाइज करना होगा, क्योंकि भविष्य में युवा खेती के काम करने के लिए कम ही उपलब्ध रहेंगे. राजस्थान के किसानों का भविष्य सुधारने एवं किसानों की आय बढ़ाने के लिए राजस्थान सरकार से अनुरोध है कि राजस्थान के किसानों की खेती को आसान एवं प्रोफिटेबल बनाने एवं भविष्य में सब से आगे रहने के लिए राजस्थान में पृथक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग हो, जो डायरैक्ट कृषि अभियांत्रिकी के अंतर्गत हो.

डा. एसएन झा ने आगे बताया कि भारत सरकार के कृषि मंत्री द्वारा भी राजस्थान के मुख्यमंत्री से निवेदन किया है कि कृषि अभियांत्रिकी विभाग अलग से बनाया जाए, भारत सरकार की कृषि पर संसद की स्थाई समिति ने भी अनुशंसा की है कि हर पंचायत स्तर पर कृषि यांत्रिकीकरण को बढ़ावा दिया जाए.

इस के लिए प्रत्येक पंचायत स्तर एवं ब्लौक स्तर पर कृषि अभियंता की पृथक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग बना कर नियुक्ति की जाए, जिस से किसानों के खेत का आधुनिक यांत्रिकीकरण होगा एवं उन के उत्पाद की प्रोसैसिंग हो कर वैल्यू एडिशन होने से उन को अधिक पैदावार एवं अधिक आय होगी. किसानों के खेत में मेकैनाइजेशन प्रोसैसिंग एवं वैल्यू एडिशन से आय दोगुनी.

इसलिए राजस्थान सरकार को भी अन्य राज्यों की तरह पर्थक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग का गठन करना चाहिए. वर्तमान में मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में अलग से विभाग बना हुआ है और छत्तीसगढ़ में हाल ही में अलग से विभाग के गठन करने की घोषणा की है.

कृषि अभियांत्रिकी विभाग मुख्य तौर से किसानों को दी जाने वाले सभी तकनीक आदान को सीधे तौर पर किसान के खेतों तक पहुंचाना, गुणवत्ता बनाए रखना, खेतों को यांत्रिकीकरण करवाना एवं उन के उत्पादों की प्रोसैसिंग, मूल्यवर्धन कराना, किसानों को प्रशिक्षण सहित सभी समस्याओं का निवारण पंचायत और ब्लौक लैवल पर कर भारत सरकार के मिशन 2047 के अनुसार 75 फीसदी फार्म को पूरी तरह से मेकैनाइज्ड फार्म में परिवर्तित कर के अहम भूमिका निभाएंगे. जो वर्तमान में बढ़ती आबादी की दर एवं अन्य रिसोर्सेसन की होती कमी को ध्यान में रखते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाएंगे.

Agricultural Mechanization

कार्यशाला का आयोजन एमपीयूएटी, उदयपुर एवं सीफेट, लुधियाना के संयुक्त तत्वाधान में किया गया. कार्यशाला में परियोजना के देशभर में 14 केंद्र ने सालभर के प्रतिवेदन प्रस्तुत किए. कार्यशाला के मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि प्लास्टिक का विवेकपूर्ण उपयोग कृषि के क्षेत्र में वरदान सिद्ध हो रहा है. निश्चित ही प्लास्टिक का पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव रहता है, परंतु इस का विवेकपूर्ण उपयोग अन्य पदार्थों का एक सस्ते विकल्प के रूप में अपनी पहचान पूरे विश्व में बन चुका है.

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक संयुक्त रूप से उत्कृष्ट काम कर रहे हैं. नतीजतन, भारत आज खाद्य पदार्थों के उत्पादन में आत्मनिर्भर तो हो ही चुका है और निर्यात में भी नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है.

डा. के. नरसिया, अतिरिक्त निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने वैज्ञानिकों से तकनीकी नवाचार करने एवं उस के आर्थिक पक्ष को संज्ञान में रखते हुए लागत कम करने का आह्वान किया. डा. नचिकेत कोतवालीवाले, निर्देशक सीफेट, लुधियाना ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि जनमानस में प्लास्टिक को ले कर काफी भ्रांतियां हैं, जबकि विवेकपूर्ण व जिम्मेदारीपूर्वक उपयोग प्लास्टिक की उपयोगिता को बढ़ाता है.

डा. नचिकेत ने वैज्ञानिकों को बहुआयामी अनुसंधान कार्यों को एक छत के नीचे ला कर सामूहिक प्रयास करने के लिए प्रेरित किया. कार्यालय में डा. राकेश शारदा, परियोजना समन्वयक, सीफेट, लुधियाना ने परियोजना का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिस में उन्होंने नई तकनीकियों की जानकारी दी.

कार्यशाला में टीबीएस राजपूत, पूर्व परियोजना निदेशक, भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, नई दिल्ली एवं इंजीनियर आनंद झांबरे, कार्यकारी निदेशक, एनसीपीएएच, नई दिल्ली विशेषज्ञ के रूप में भाग ले रहे हैं, जो कि नई परियोजनाओं एवं वार्षिक प्रतिवेदन की समीक्षा करेंगे.

तंबाकू फसल (Tobacco Crop) हुई खराब, मिलेगा बिना ब्याज ऋण

नई दिल्ली: वर्तमान में आंध्र प्रदेश में इस फसल का मौसम चल रहा है, जहां 42,915 एफसीवी तंबाकू उत्पादक हैं और कर्नाटक में नीलामी चल रही है, जहां 39,552 एफसीवी तंबाकू उत्पादक हैं.

3 दिसंबर से 5 दिसंबर, 2023 तक, मिचौंग चक्रवात के कारण आंध्र प्रदेश में भारी बारिश हुई थी. आंध्र प्रदेश में एलुरु, पूर्वी गोदावरी, काकीनाडा, प्रकाशम, नेल्लोर, बापटला, पालनाडु और गुंटूर जिलों में उगाई जाने वाली एफसीवी तंबाकू की फसल इन भारी चक्रवाती बारिश की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है.

आंध्र प्रदेश में चालू फसल मौसम में एफसीवी तंबाकू को 75,355 हेक्टेयर में बोया गया था, जिस में से तकरीबन 20 फीसदी यानी 14,730 हेक्टेयर में बोई गई फसल भारी वर्षा के कारण प्रभावित हुई.

एफसीवी तंबाकू की फसल फसल के बह जाने, खड़ी फसल के डूबने, जल जमाव और परिणामस्वरूप खड़ी फसल के मुरझा जाने से प्रभावित हुई है.

आंध्र प्रदेश में एफसीवी तंबाकू उत्पादकों की कठिनाइयों को देखते हुए, भारत सरकार ने तंबाकू बोर्ड संबंधी उत्पादक कल्याण कोष से उन उत्पादक सदस्यों को 10,000 रुपए का ब्याजमुक्त ऋण स्वीकृत किया है, जिन की फसलें आंध्र प्रदेश में इस चक्रवाती वर्षा के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी.

यह केवल आंध्र प्रदेश फसल मौसम 2023-24 के लिए एक बार दिया जाने वाला ब्याजमुक्त ऋण है. यह धनराशि 2023-24 आंध्र प्रदेश फसल मौसम से संबंधित तंबाकू उत्पादकों की नीलामी बिक्री आय से वसूल की जाएगी.

Tobacco

वर्तमान में कर्नाटक में एफसीवी तंबाकू की नीलामी चल रही है. अब तक, बोर्ड द्वारा कर्नाटक में अपने ई-नीलामी मंचों के माध्यम से तकरीबन 85.12 मिलियन किलोग्राम एफसीवी तंबाकू का विपणन किया जा चुका है. तंबाकू उत्पादकों को मिलने वाली औसत कीमत में 12.49 फीसदी की वृद्धि हुई है यानी यह कीमत पिछले वर्ष 228.01 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ कर चालू वर्ष में 256.48 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है.

कर्नाटक में राज्य सरकार ने 2 एफसीवी तंबाकू उत्पादक तालुकों को छोड़ कर सभी तालुकों को सूखा क्षेत्र घोषित कर दिया है. इस की वजह से एफसीवी तंबाकू उत्पादकों की आजीविका प्रभावित हुई है.

इस के कारण केंद्र सरकार ने केवल कर्नाटक फसल मौसम 2023-24 के लिए पंजीकृत उत्पादकों के अतिरिक्त उत्पादन और अपंजीकृत उत्पादकों के अनधिकृत उत्पादन की बिक्री पर जुर्माना माफ करने के बाद तंबाकू बोर्ड नीलामी मंच पर एफसीवी तंबाकू की बिक्री की अनुमति देने का फैसला लिया है.

अनुसूचित जाति के किसानों के लिए प्रशिक्षण

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में मालपुरा परियोजना के एनडब्ल्यूपीएसआई की एससीएसपी उपयोजना के अंतर्गत टोंक जिले की विभिन्न तहसीलों के गांवों के 20 अनुसूचित जाति के किसानों का पांचदिवसीय कौशल विकास हेतु भेड़बकरीपालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम एजीबी विभाग के प्रशिक्षण हाल में आयोजित किया गया.

इस मौके पर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर, विभागाध्यक्ष डा. एसएस मिश्रा, प्रधान वैज्ञानिक डा. आरसी शर्मा, प्रशिक्षण समन्वयक डा. पीके मलिक, डा. लीला राम गुर्जर, डा. अजय कुमार आदि की उपस्थिति में ट्रेनिंग कार्यक्रम की शुरुआत की गई.

पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्रा एवं डा. पीके मलिक द्वारा मालपुरा परियोजना में स्थानीय क्षेत्र के लोगों के लिए किए जा रहे कामों को विस्तार से किसानों को बताया गया.

संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा भी किसानों को इस प्रशिक्षण के माध्यम से अपने पशुपालन से जुड़ी जानकारी दी गई और सभी किसानों को मालपुरा नस्ल के पशुओं के पालन के साथ अच्छी पैदावार के लिए अच्छा पशु प्रबंधन देने के लिए किसानों को उदाहरण के साथ समझाया गया, जिस से भारत सरकार के आत्मनिर्भर गांव की परिकल्पना को साकार किया जा सके.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में अविकानगर के मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना सहित एजीबी विभाग के समस्त वैज्ञानिक, तकनीकियों और समस्त संविदा कर्मचारी उपस्थित रहे.

किसान आंदोलनः किसान की समस्या की जड़ में कौन? बाजार या सरकार

यदि गौर से देखा जाए, तो आजादी के बाद से ही अलगअलग समस्याओं को ले कर स्थानीय स्तर पर किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं. बिजली, पानी, खाद, बीज, परिवहन, गोदाम और बाजार की अलगअलग क्षेत्र में अलगअलग समस्याएं रही हैं. छुटपुट स्तर पर इन्हें अस्थाई तौर पर सुलझाने के प्रयास भी हुए, पर रोग बढ़ता ही गया ज्योंज्यों दवा की. इन समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए कोई दूरगामी नीति आज तक नहीं बन पाई, जो कि बेहद जरूरी थी.

पिछले आंदोलन की अगर बात करें, तो इस की जड़ में सरकार के वे तीनों विवादास्पद कानून थे, जिसे सरकार ने बिना किसान संगठनों और किसानों से चर्चा किए, बिना उन्हें विश्वास में लिए ही किसानों की भलाई के नाम पर किसानों पर थोप दिया था. अंधे को भी दिख रहा था कि तीनों कानून कारपोरेट के पक्ष में गढ़े गए थे, परंतु कारपोरेट्स प्रेमहिंडोले पर झूल रही सरकार ने किसानों को निरा ही बेवकूफ समझ लिया.

किंतु इन तीनों कानून की गाज जब किसानों पर गिरी और उन्हें उन की जमीन हाथ से निकलती नजर आई, तो किसान अपनी तत्कालीन सभी छोटीबड़ी समस्याओं को किनारे रख कर अपने खेत, खेती बचाने के लिए सड़क पर उतर आए.

आखिरकार जब तीनों कानून वापस हुए और आंदोलन वापस हुआ तो किसानों के हाथ एक बार फिर खाली थे. हाथ में था केवल एमएससी गारंटी कानून लागू करने का आश्वासन का झुनझुना. जैसे ही सरकार ने अपने चुनिंदा तनखैय्या नुमाइंदों की एक नौटंकी एमएसपी गारंटी कमेटी बनाई, यह बिलकुल साफ हो गया कि सरकार की नीयत किसानों को ‘एमएसपी गारंटी‘ देने की नहीं है.

सरकार के इस धोखे और वादाखिलाफी ने पहले से ही सुलग रहे किसान आक्रोश की आग में घी का काम किया है. ऐसी हालत में किसान गुस्से के तवे पर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले वाले कोढ़ में खाज का काम करते रहे हैं और इस से समस्या और उलझ जाती है.

कुलमिला कर यह स्थिति किसानों के साथ ही सरकार और देश के लिए भी ठीक नहीं है. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि इस समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए इस की जड़ों की तहकीकात के साथ ही इस बारे में उठने वाले कुछ प्रमुख सवालों के ईमानदार जवाब ढूंढे़ जाएं.

सरकार का फसल लागत पर 50 फीसदी लाभ जोड़ कर एमएसपी तय करने या देने का दावा कितना सही है?

सरकार का यह दावा पूरी तरह से झूठ और गलत आंकड़ों पर आधारित है. एमएसपी तय करने में सब से महत्वपूर्ण आंकड़ा फसल लागत का होता है. इस में एमएस स्वामीनाथन की अनुशंसा के अनुसार ब्2़थ्स् यानी सी2 प्लस एफएल की मांग किसानों द्वारा की जाती रही है.

फसल लागत में जब तक किसान व उस के परिवार की मजदूरी वर्तमान कुशल मजदूर की तय दर से जोड़ी जाए, मजदूरों का वास्तविक भुगतान, बैलों के मूल्य और उन के भोजन एवं रखरखाव का खर्च, ट्रैक्टर, पावर टिलर, मोटरसाइकिल आदि का संचालन खर्च, भूमि के लीज का भुगतान, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क एवं ट्रैक्टर, ड्रिप ,सिंचाई पंप आदि सभी कृषि उपकरणों एवं कृषि भवनों पर वार्षिक मूल्य नुकसान की गणना, कार्यशील पूंजी पर ब्याज आदि को वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर नहीं जोड़ा जाता, तब तक खेती की लागत की गणना सही नहीं मानी जा सकती.

हालत यह है कि डीजल की बढ़ी कीमतों के कारण ट्रैक्टर की जुताई के खर्च में तकरीबन 20 फीसदी की वृद्धि हो गई. मजदूरी में तकरीबन 25 फीसदी की वृद्धि हो गई. खाद, बीज, दवा आदि में 20 से 25 फीसदी की वृद्धि देखी जा रही है.

ऐसी हालत में जब फसल लागत में 20 से 25 फीसदी की वृद्धि हो रही है, तब सरकार की एमएसपी में अधिकतम 1 फीसदी से 6 फीसदी तक की जाने वाली सालाना वृद्धि से किसान फायदे के बजाय घाटा हो रहा है. किसान को लागत पर 50 फीसदी फायदा मिलने के बजाय लागत 15 से 20 फीसदी घाटा हो रहा है. यही वजह है कि किसान की कमर टूट गई है.

एमएसपी न मिलने से किसान को कितना नुकसान है?

इस संदर्भ में सरकार की ही शांताकुमार कमेटी का कहना है कि अभी केवल 6 फीसदी उत्पादन ही एमएसपी पर खरीदा जाता है, बाकी 94 फीसदी किसानों का उत्पादन एमएसपी से भी कम रेट पर बिकता है, जिस की वजह से किसानों को हर साल तकरीबन 7 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है. हर साल किसानों को मिलने वाली सभी प्रकार की सब्सिडी को अलग कर दिया जाए तो भी, देशभर के किसानों को 5 लाख करोड़ से ज्यादा का घाटा हर साल सहना पड़ रहा है. इन हालात में खेती व किसानी कैसे बचेगी, यह सरकार और उस के नीति निर्माताओं के लिए भी सोचने का विषय है.

एमएसपी पर खरीद में सरकार और बाजार की भूमिका

एक सवाल यह भी उठाया जाता है कि भला सरकार किसानों का सारा माल कैसे खरीद सकती है? सरकार कारोबारियों को भी किसानों का माल खरीदने के लिए कैसे बाध्य कर सकती है?

सौ बात की एक बात यह है कि हम ’किसान तो यह कहते ही नहीं कि किसानों का ‘एक दाना‘ भी सरकार हम किसानों से खरीदे.’ हमारा सरकार से कहना साफ है कि आप तो बस किसानों के साथ बैठ कर खेती पर होने वाले सभी वाजिब खर्चों को जोड़ कर समुचित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य‘ तय कर दे और उस से कम पर की जाने वाली किसी भी खरीदी को गैरकानूनी घोषित करते हुए उस के लिए समुचित सजा के प्रावधान का कानून पारित कर दे. वर्तमान में सरकार डीजल व पैट्रोल के दाम तय कर ही रही है.

जमीन की खरीदीबिक्री का भी मूल्य स्टांप ड्यूटी के लिए सरकार ही तय करती है. गन्ने का मूल्य तो कितने ही सालों से सरकार तय कर ही रही है. बाजार को भी खरीदी के लिए बाध्य करने की जरूरत नहीं है. साथ ही, आयात नीति में जिस तरह देश की अन्य जरूरी वस्तुओं को आयात संरक्षण दिया जाता है, वैसे ही कृषि उत्पादों को भी सस्ते आयात से आवश्यकतानुसार जरूरी संरक्षण दिया जाए. बस सरकार को इतना ही तो करना है. वैसे भी खरीदीबिक्री का काम और विशेष परिस्थितियों के अलावा अनाजों की खरीदी कर के वोट के लिए उसे मुफ्त बांटना किसी सरकार का काम नहीं होना चाहिए.

क्या ‘एसपी गारंटी कानून‘ से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा?

बिलकुल नहीं. सरकार के खजाने पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ने वाला. यह जानबूझ कर फैलाया जाने वाला निरर्थक भ्रम है. सरकार तो वैसे भी जो भी अनाज सरकारी योजनाओं में वितरण के लिए किसानों से खरीदती है, वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीदती है, इसलिए सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने का सवाल ही नहीं उठता.

सरकार को तो बस एक छोटा सा कानून बनाना है, जिस में सरकार का एक पैसा खर्च नहीं होने वाला. वैसे भी यह सरकार बिना जनता के मांगे ही सैकड़ों नएनए कानून बनाने के लिए जानी जाती है, तो फिर किसानों की जायज मांग पर एक कानून और सही.

क्या इस से बाजार और व्यापारी को नुकसान होगा?

जरा भी नहीं. व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर उस से ऊपर की दर पर खरीदी करेंगे और अपना वाजिब लाभ जोड़ कर आगे उपभोक्ताओं को बेचेंगे. किसान अपना पैसा बैंक में नहीं रखता, इसलिए किसान को मिला पैसा तत्काल वापस बाजार में आ जाएगा, जिस से क्रियाशील पूंजी और बाजार की गति को और तेजी मिलेगी, देश के विकास दर में तीव्रता आएगी.

क्या इस से अंतिम उपभोक्ता को नुकसान होगा?

जी, बिलकुल नहीं. उलटे इस से उपभोक्ता भी अनावश्यक शोषण से बचेगा. उदाहरण से समझें, बाजार में किसानों का गेहूं 16 किलोग्राम बिका है और उपभोक्ताओं को 40 किलोग्राम आटा खरीदना पड़ रहा है यानी बाजार की ताकतें एमएसपी से कम दर पर खरीदी कर के किसानों का शोषण करने के साथ ही तकरीबन सौ फीसदी फायदा ले कर उपभोक्ताओं की भी जेब काट रही हैं.

एक और उदाहरण, गन्ना भी सरकार नहीं खरीदती, पर चीनी मिलों की खरीदी के लिए उस का रेट उस ने तय कर दिया है, तो इस से उपभोक्ताओं को लगातार चीनी वाजिब मूल्य पर मिल रही है. न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ ही कृषि उत्पादों और उन से तैयार उत्पादों की अधिकतम विक्रय मूल्य भी तय कर दिए जाएंगे, तो उपभोक्ताओं को जबरदस्त राहत मिलेगी.

क्या यह समस्या सचमुच बहुत जटिल है?

इस समस्या का हल ढूंढ़ने कहीं दूर जाने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि वह तो पहले ही मौजूद है. सरकार और किसान दोनों के द्वारा इसे जीतहार का सवाल न बनाया जाए और सरकार अपना अब तक के अपने गैरजरूरी अड़ियल, दमनकारी अलोकतांत्रिक रुख तत्काल छोड़ कर, दिमाग के जाले साफ कर देश के सभी किसान संगठनों के साथ मिलबैठ कर एक ऐसा सकारात्मक हल बड़े आराम से निकाल सकती है, जिस में किसानों को उन की लागत और मेहनत की वाजिब कीमत मिले, व्यापारियों को भी वाजिब मुनाफे के साथ खुला बाजार मिले और उपभोक्ताओं को भी वाजिब कीमत पर कृषि उत्पाद मिले.

साथ ही, किसानों की अन्य लंबित समस्याएं भी मिलबैठ कर बड़े आराम से सुलझाई जा सकती हैं. ऐसी किसी भी सकारात्मक पहल को अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा 45 किसान संगठनों का महासंघ), राष्ट्रीय एमएसपी गारंटी किसान मोरचा (223 किसान संगठन) और अन्य सकारात्मक किसान संगठनों का पूरा साथ व समर्थन मिलेगा.

– डा. राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा),राष्ट्रीय प्रवक्ताः एमएसपी गारंटी कानून किसान मोरचा