मशरूम अनुसंधान केंद्र में जानें मशरूम उत्पादन (Mushroom Production) के तौरतरीके

सोनीपत: क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र (एमएचयू), मुरथल, सोनीपत में कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा के नेतृत्व में पांचदिवसीय ‘मशरूम उत्पादन, प्रसंस्करण व विपणन’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ. इस कार्यशाला में भागीदारी कर रहे प्रतिभागियों को विभिन्न प्रगतिशील किसानों के फार्म पर ले जा कर भ्रमण करवाया. साथ ही, कई प्रोसैसिंग प्लांटों का भी भ्रमण करवाया गया, वहीं बिहार से आए किसानों ने भी केंद्र का भ्रमण किया और मशरूम उत्पादन से ले कर प्रसंस्करण आदि तक की सभी प्रकार की जानकारी हासिल की.

एमएचयू के कुलसचिव व केंद्र के निदेशक डा. अजय सिंह ने बताया कि पांचदिवसीय ट्रेनिंग कार्यक्रम में दौरान 24 प्रतिभागियों को प्रगतिशील किसान, जो कि क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र से ट्रेनिंग ले कर अपना काम अच्छे से कर रहे हैं, उन किसानों के फार्म पर ले जा कर प्रतिभागियों को भ्रमण करवाया, ताकि प्रतिभागी प्रगतिशील किसानों से प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासाओं को शांत कर सकें, उन के मन में मशरूम उत्पादन को ले कर जो शुरुआती दिक्कतें हैं, उन्हें कैसे दूर करें, जानकारी हासिल कर सकें.

प्रतिभागियों को गांव हसनपुर, मुरथल के अलावा अटेरना, कुंडली स्थित प्रोसैसिंग यूनिट में ले जाया गया. वहां प्रतिभागियों ने अपनी आंखों से देखा कि मशरूम से क्याक्या उत्पाद बना सकते हैं, उत्पाद बनाने में कौनकौन सी मशीनें उपयोगी होती हैं, इस के पश्चात प्रतिभागियों को अढेरना गांव में एपीओ द्वारा लगाई यूनिट पर ले जाया गया, वहां पर प्रतिभागियों ने जाना कि किस प्रकार किसान मिल कर मशरूम को टीन में पैक कर विदेशों में भेजा जा रहा है. मशरूम को किस प्रकार पैक किया जा रहा है.

जहानाबाद, बिहार के 24 किसानों ने क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र का भ्रमण किया

नेशनल हार्टिकल्चर मिशन (एनएचएम) स्कीम के तहत जहानाबाद, बिहार के 24 किसानों ने क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र का भ्रमण किया. इस दौरान किसानों को विभिन्न प्रकार की मशरूम जैसे ढिंगरी, किंग ओएस्टर, ओरी क्लुरिया, बटन, शिटाके मशरूम को दिखाया और उन के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

मशरूम को उगाने के लिए खाद कैसे तैयार की जाती है आदि सभी जानकारियों से अवगत कराया गया. किसानों को बताया गया कि मशरूम की खेती कर उस के विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार कर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है.

किसान काफी उत्साहित नजर आए, जब उन्हें मशरूम का बीज कैसे तैयार होता है, कैसे लगाया जाता है, कैसे खाद तैयार होती है आदि सब अपनी आंखों से देखा और वैज्ञानिकों से मशरूम को ले कर जानकारी हासिल की.

केले के अपशिष्ट (Banana Waste) से बन रही घावों के लिए दवाई

केले के रेशों का उपयोग कर के घावों के लिए बनाई गई पर्यावरण-अनुकूल ड्रेसिंग सामग्री घाव की देखभाल के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है.

विश्व के सब से बड़े केले की खेती वाले देश भारत में केले के छद्म तने (स्यूडो स्टेम्स) प्रचुर मात्रा में हैं, जिन्हें कटाई के बाद फेंक दिया जाता है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान, इंस्टीट्यूट औफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टैक्नोलौजी –आईएएसएसटी के वैज्ञानिकों ने केले के छद्म तने, जिसे अकसर कृषि अपशिष्ट माना जाता है, को घावों के उपचार के लिए पर्यावरण अनुकूल घाव ड्रेसिंग सामग्री में बदल दिया है. .

प्रो. देवाशीष चौधरी और सेवानिवृत्त प्रो. राजलक्ष्मी देवी के नेतृत्व में आईएएसएसटी-डीकिन यूनिवर्सिटी संयुक्त पीएचडी कार्यक्रम में एक शोध विद्वान मृदुस्मिता बर्मन सहित अनुसंधान टीम ने एक उत्कृष्ट यांत्रिक शक्ति और एंटीऔक्सीडेंट गुणों वाला एक बहुक्रियाशील (मल्टीफंक्शनल) पैच बनाने के लिए केले के रेशों को चिटोसन और ग्वार गम जैसे जैव बहुलकों (बायोपौलीमर्स) के साथ कुशलतापूर्वक संयोजित किया है.

इसे एक कदम और आगे बढ़ाते हुए शोधकर्ताओं ने विटेक्स नेगुंडो एल. पौधे के सत्व (एक्स्ट्रेक्ट) के साथ इस पैच को लोड किया, जो कृत्रिम परिवेशीय औषधि निकास (इन विट्रो ड्रग रिलीज) और जीवाणुरोधी एजेंटों के रूप में पौधे के सत्व-मिश्रित केले के रेशे (फाइबर) -बायोपौलीमर मिश्रित पैच की क्षमताओं का प्रदर्शन करता है. इस अभिनव ड्रेसिंग सामग्री को बनाने में उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियां प्राकृतिक और स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं और जो विनिर्माण प्रक्रिया को सरल, लागत प्रभावी और गैरविषैली (नौन-टौक्सिक) बना देती हैं.

घाव की ड्रेसिंग सामग्री घाव की देखभाल के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है और प्रचुर मात्रा में केले के पौधे के लिए अतिरिक्त उपयोग का सुझाव देती है, जिस से किसानों को लाभ हो सकता है और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम हो सकता है.

प्रो. देवाशीष चौधरी ने बताया कि यह जांच घाव भरने में एक नए युग का द्वार खोलने के साथ ही कम लागत वाला, विश्वसनीय और पर्यावरण के अनुकूल ऐसा विकल्प प्रस्तुत करती है, जो जैव चिकित्सकीय (बायोमैडिकल) अनुसंधान में महत्वपूर्ण क्षमता रखती है. केले के फाइबर-बायोपौलीमर मिश्रित यह ड्रेसिंग अपने व्यापक अनुप्रयोगों एवं स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के साथ घाव की देखभाल में क्रांति ला सकती है.

एल्सेवियर ने हाल ही में इस कार्य को इंटरनेशनल जर्नल औफ बायोलौजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित किया है.

इस अभूतपूर्व शोध को हाल ही में एल्सेवियर द्वारा इंटरनेशनल जर्नल औफ बायोलौजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित किया गया है, जो वैज्ञानिक समुदाय में इस के महत्व को और अधिक उजागर करता है.

अधिक जानकारी के लिए प्रो. देवाशीष चौधरी की औफिशियल वैबसाइट devasish@iasst.gov.in पर संपर्क कर सकते हैं.

खरीफ और रबी मौसम में फसलोत्पादन (Crop Production) के द्वितीय अग्रिम अनुमान जारी

नई दिल्ली: पिछले वर्ष से जायद के मौसम को रबी मौसम से अलग कर दिया गया है और इसलिए इस वर्ष क्षेत्र, उत्पादन और उपज के द्वितीय अग्रिम अनुमान में केवल 2 मौसमों यानी खरीफ और रबी मौसम शामिल हैं.

यह अनुमान मुख्य रूप से राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरण (एसएएसए) से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किए गए हैं. प्राप्त आंकड़ों को रिमोट सैंसिंग, साप्ताहिक फसल मौसम निगरानी समूह (सीडब्ल्यूडब्ल्यूजी) की रिपोर्ट और अन्य एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के साथ मान्य और त्रिकोणित किया गया है. इस के अलावा अनुमान तैयार करते समय जलवायु परिस्थितियों, पिछले रुझानों, मूल्यो में उतारचढ़ाव, मंडी आगमन आदि पर भी विचार किया जाता है.

विभिन्न फसलों (केवल खरीफ और रबी) के उत्पादन का विवरण इस प्रकार हैः
– खरीफ खाद्यान्न – 1541.87 लाख मीट्रिक टन: रबी खाद्यान्न- 1551.61 लाख मीट्रिक टन
– खरीफ चावल -1114.58 लाख मीट्रिक टन: रबी चावल – 123.57 लाख मीट्रिक टन
– गेहूं- 1120.19 लाख मीट्रिक टन
– खरीफ मक्का – 227.20 लाख मीट्रिक टन: रबी मक्का – 97.50 लाख मीट्रिक टन
– खरीफ श्रीअन्न – 128.91 लाख मीट्रिक टन: रबी श्रीअन्न – 24.88 लाख मीट्रिक टन
– तूर – 33.39 लाख मीट्रिक टन
– चना- 121.61 लाख मीट्रिक टन
– खरीफ तिलहन- 228.42 लाख मीट्रिक टन: रबी तिलहन- 137.56 लाख मीट्रिक टन
– सोयाबीन – 125.62 लाख मीट्रिक टन
– रेपसीड और सरसों – 126.96 लाख मीट्रिक टन
– गन्ना- 4464.30 लाख मीट्रिक टन
– कपास – 323.11 लाख गांठें (प्रत्येक 170 किलोग्राम)
– जूट – 92.17 लाख गांठें (प्रत्येक 180 किलोग्राम)
– खरीफ खाद्यान्न उत्पादन 1541.87 लाख मीट्रिक टन: रबी खाद्यान्न उत्पादन 1551.61 लाख मीट्रिक टनवर्ष 2023-24 में खरीफ चावल का उत्पादन 1114.58 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो 2022-23 के 1105.12 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 9.46 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि दर्शाता है. वहीं रबी चावल का उत्पादन 123.57 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है और गेहूं का उत्पादन 1120.19 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के 1105.54 लाख मीट्रिक टन उत्पादन की तुलना में 14.65 लाख मीट्रिक टन अधिक है.

श्रीअन्न (खरीफ) का उत्पादन 128.91 लाख मीट्रिक टन और श्रीअन्न (रबी) का उत्पादन 24.88 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है. ज्वार (खरीफ) और ज्वार (रबी) का उत्पादन क्रमशः 15.46 लाख मीट्रिक टन और 24.88 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष की तुलना में क्रमशः 0.66 लाख मीट्रिक टन और 1.66 लाख मीट्रिक टन अधिक है.

इस के अलावा, पोषक व मोटे अनाज (खरीफ) का उत्पादन 356.11 लाख मीट्रिक टन और पोषक व मोटे अनाज (रबी) का उत्पादन 144.61 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है.

तूर का उत्पादन 33.39 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल के उत्पादन 33.12 लाख मीट्रिक टन के लगभग बराबर है. इस के अलावा तूर की कटाई अभी भी जारी है, जिस के परिणामस्वरूप क्रमिक अनुमानों में और भी बदलाव हो सकते हैं.

चने का उत्पादन 121.61 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के चने के उत्पादन से थोड़ा कम है, लेकिन औसत (वर्ष 2018-19 से 2022-23) चने के उत्पादन से अधिक है. मसूर का उत्पादन 16.36 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के 15.59 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से 0.77 लाख मीट्रिक टन अधिक है.

सोयाबीन का उत्पादन 125.62 लाख मीट्रिक टन और रेपसीड और सरसों का उत्पादन 126.96 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल के उत्पादन के लगभग बराबर है. हालांकि औसत उत्पादन से 20.57 लाख मीट्रिक टन अधिक है.

कपास का उत्पादन 323.11 लाख गांठें (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्राम) और गन्ने का उत्पादन 4464.30 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है.

खरीफ फसलों के उत्पादन अनुमान तैयार करते समय फसल कटाई प्रयोग (सीसीई) आधारित उपज पर विचार किया गया है. हालांकि राज्य अभी भी खरीफ सीसीई के परिणामों को संकलित करने की प्रक्रिया में है. इस के अलावा कुछ फसलों जैसे तूर, गन्ना, अरंडी आदि की सीसीई अभी भी जारी है.

रबी फसलों का उत्पादन प्रारंभिक बोए गए क्षेत्र की रिपोर्ट और औसत उपज पर आधारित है. इसलिए, सीसीई के आधार पर बेहतर उपज अनुमान प्राप्त होने पर ये आंकड़े क्रमिक अनुमानों में परिवर्तन के अधीन हैं. विभिन्न जायद फसलों का उत्पादन आगामी तीसरे अग्रिम अनुमान में शामिल किया जाएगा.

कृषि मेले व प्रशिक्षण कार्यक्रम में मिलती है नई तकनीकों (New Technologies) की जानकारी

चिड़ावा (झुंझुनूं) : 1 मार्च, 2023. रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान द्वारा आज संस्थान के खेलकूद परिसर में विशाल कृषि मेले का आयोजन हुआ, जिस में क्षेत्र के किसान, किसान महिलाएं, कृषि विषय का अध्ययन करने वाले छात्रछात्राएं, पशुपालकों सहित प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया. मेले में विभिन्न कंपनियों एंव सरकारी विभागों द्वारा लगाई गई कृषि आदानों, उपकरणों, नवीन कृषि यंत्रों, जैविक उत्पादों, जल संरक्षण सहित अन्य उपयोगी जानकारीपरक 35 स्टाल लगाए.

मेले में कृषि विशेषज्ञों द्वारा कृषि उत्पादन को बढ़ाने, परंपरागत खेती के स्थान पर अधिक आय देने वाली फसलों की बोआई करने, भोजन में मिलेट्स का उपयोग बढ़ाने जैसी जानकारी दी गई.

कृषि मेले के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (जयपुर) के पूर्व कुलपति डा. प्रवीण सिंह राठौड़ ने कहा कि किसानों को अब जमीन के घटते क्षेत्रफल और गिरते भूजल स्तर पर विशेष ध्यान देना होगा. उन्होंने बताया कि निरंतर उवर्रकों के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता एवं पोषक तत्वों की उपलब्धता में निरंतर गिरावट आ रही है. इसी प्रकार अधिक सिंचाई वाली फसलों की बोआई के कारण भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है. राजस्थान के 216 ब्लौक ओवर एक्सप्लौटेड हो गए हैं.

यदि यही स्थिति रही तो सिंचाई के लिए दूर पेयजल के लिए हमें पानी की तलाश करनी होगी. उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को संतुलित उर्वरा प्रबंधन पर ध्यान देना होगा.

कायर्क्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रवासी उद्योगपति एंव ट्रस्टी रघुहरि डालमिया ने कहा कि देश को ऐसे किसानों की आवश्यकता है, जो देश की प्रगति में सहभागी बनें. किसानों ने जमीन को आबाद कर हम सब को भोजन के लिए अन्न उपलब्ध करवा कर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की है.

उन्होंने मेले में आए किसानों से आग्रह किया कि वे मेेले में प्रदर्शित की गई नवीन तकनीकों के उपकरणों, जानकारी व अनुसंधानों के ज्ञान को कृषि उपज बढ़ाने में साझा करें.

उन्होंने यह भी कहा कि कृषि विद्यालय अथवा महाविद्यालय से आने वाले छात्रछात्राएं संस्थान द्वारा वर्षा जल संरक्षण, वृक्षारोपण व कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनाई जा रही पद्धतियों का किसी भी दिन आ कर अवलोकन कर सकते हैं.

कृषि मेले में उद्यान विभाग झुंझुनूं के उपनिदेशक डा. शीशराम जाखड़ ने परंपरागत खेती के स्थान पर अधिक आय देने वाली नकदी फसलों की बोआई करने, बागान लगाने, परंपरागत सिंचाई पद्धति के स्थान पर फव्वारा, मिनी फव्वारा आदि पद्धतियों का उपयोग करने का सुझाव दिया.

पयार्वरण विकास एंव अध्ययन केंद्र के निदेशक डा. मनोहर सिंह राठौड़ ने किसानों को एकजुट होने व जागरूक हो कर खेती करने का सुझाव दिया.

स्वामी केशवानंद विश्वविद्यालय, बीकानेर के पूर्व निदेशक डा. हनुमान प्रसाद ने रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान द्वारा वर्षा जल संरक्षण सहित किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए चलाई जा रही कायर्क्रमों की सराहना की और कहा कि वर्षा जल की उपलब्धि को देखते हुए हमें कम पानी के उपयोग वाली फसलों की बोआई करनी होगी.

किसान आयोग के सदस्य ओपी खेदड़ ने कहा कि मिलेट्स की पौष्टिकता को देखते हुए हमें इस का उपयोग बढ़ाना होगा. प्रगतिशील किसान मुकेश मांजू ने भी अपने विचार रखे.

मेले में प्रगतिशील किसानों के रूप में विद्याधर, सवाई सिंह, सुरेश, लालचंद, कुंजबिहारी को, ग्राम विकास समिति के लिए मालुपुरा की ग्राम जलग्रहण समिति को, पयार्वरण मित्र के रूप में राकेश बराला को और जलयोद्धा के रूप में रोहिताश बराला को प्रमाणपत्र व प्रतीक चिन्ह दे कर सम्मानित किया.

प्रारंभ में संस्थान के परियोजना प्रबंधक भूपेंद्र पालीवाल ने अतिथियों का स्वागत किया और संस्थान की प्रगति पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम का संचालन मोनिका स्वामी द्वारा किया गया.

इस अवसर पर संस्थान के जल संसाधन समन्वयक संजय शर्मा, कृषि समन्वयक शुबेंद्र भट्ट, प्रशासनिक अधिकारी कुलदीप कुल्हार, अजय बलवदा, राकेश महला, सूरजभान रायला, नरेश, बलवान सिंह, अनिल सैनी, मान सिंह, जितेंद्र एवं सुनील उपस्थित रहे.

10 वर्षों में यूरिया उत्पादन (Urea production) बढ़ कर 310 लाख मीट्रिक टन हुआ

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के धनबाद के सिंदरी में हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) सिंदरी उर्वरक संयंत्र को राष्ट्र को समर्पित किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 में उर्वरक संयंत्र का शिलान्यास किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की यात्रा की इस महत्वपूर्ण पहल के महत्व पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा कि भारत को हर साल 360 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता होती है और वर्ष 2014 में भारत सिर्फ 225 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन कर रहा था. मांग और पूर्ति के इस भारी अंतर के कारण बड़ी मात्रा में यूरिया की आयात की आवश्यकता पड़ी.

उन्होंने कहा कि हमारी सरकार के प्रयासों से पिछले 10 वर्षों में यूरिया का उत्पादन बढ़ कर 310 लाख मीट्रिक टन हो गया है.

उन्होंने यह भी कहा कि इस संयंत्र के शुभारंभ से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए मार्ग खुले हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामागुंडम, गोरखपुर और बरौनी उर्वरक संयंत्रों के पुनरुद्धार के बारे में भी जानकारी दी. साथ ही, सिंदरी को भी इस सूची में जोड़ा गया है.

यूरिया उत्पादन (Urea production)प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तालचेर उर्वरक संयंत्र भी अगले वर्ष में शुरू हो जाएगा. ये 5 संयंत्र 60 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन करेंगे और भारत को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भरता के मार्ग पर अग्रसर करेंगे.

हिंदुस्तान उर्वरक और रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) अर्थात राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी), इंडियन औयल कारपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल), कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और एफसीआईएल)/एचएफसीएल की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है, जिसे 15 जून, 2016 को निगमित किया गया था. प्रति वर्ष 12.7 एलएमटी की स्थापित क्षमता के साथ नया अमोनिया यूरिया संयंत्र स्थापित कर के सिंदरी उर्वरक इकाई का पुनरुद्धार किया गया. सिंदरी संयंत्र ने 5 नवंबर, 2022 को यूरिया का उत्पादन शुरू किया.

एचयूआरएल को सिंदरी में 2200 टीपीडी अमोनिया और 3850 टीपीडी नीमलेपित यूरिया की क्षमता वाले नए अमोनिया यूरिया संयंत्र स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इस के लिए 8939.25 करोड़ रुपए का निवेश किया गया. इस में एनटीपीसी, आईओसीएल और सीआईएल प्रत्येक की इक्विटी 29.67 फीसदी और एफसीआईएल की इक्विटी 11 फीसदी है.

अत्याधुनिक गैस आधारित सिंदरी संयंत्र की स्थापना आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए फर्टिलाइजर कारपोरेशन औफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर्स कारपोरेशन लिमिटेड (एचएफसीएल) की बंद पड़ी यूरिया इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए सरकार की पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यूरिया के क्षेत्र में घरेलू स्तर पर उत्पादित यूरिया की उपलब्धता बढ़ाने के लिए एफसीआईएल और एचएफसीएल की बंद इकाइयों का पुनरुद्धार सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है.

सिंदरी संयंत्र देश में प्रति वर्ष 12.7 एलएमटी स्वदेशी यूरिया उत्पादन बढ़ाएगा और यूरिया क्षेत्र में भारत को “आत्मनिर्भर” बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद करेगा. संयंत्र का लक्ष्य झारखंड राज्य के साथसाथ पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और बिहार में किसानों को यूरिया की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना है. संयंत्र न केवल उर्वरक की उपलब्धता में सुधार करेगा, बल्कि सड़क, रेलवे और इस से जुड़े उद्योगों की आधारभूत अवसंरचना के विकास सहित क्षेत्र में समग्र आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा.

यूरिया उत्पादन (Urea production)यह संयंत्र 450 प्रत्यक्ष और 1,000 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर प्रदान करेगा. इसबीके अतिरिक्त कारखाने के लिए विभिन्न वस्तुओं की आपूर्ति से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विक्रेता भी लाभान्वित होंगे, जिस से इस क्षेत्र को लाभ होगा. आज जब भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के मार्ग पर अग्रसर है, ऐसे में हिंदुस्तान उर्वरक और रसायन लिमिटेड का ‘भारत यूरिया’ न केवल आयात में कमी लाएगा, बल्कि स्थानीय किसानों को समय पर उर्वरकों की आपूर्ति और विस्तार सेवाओं को गति दे कर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़  बनाएगा.

कृषि आदान विक्रेताओं (Agricultural Input Sellers) को डिप्लोमा जरूरी, करें आवेदन

सतना: परियोजना संचालक आत्मा किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने बताया कि कृषि आदान विक्रेताओं के लिए निर्धारित न्यूनतम अर्हता कृषि संकाय में स्नातक/विज्ञान डिगरीधारी या डिप्लोमाधारी नहीं होने की स्थिति में भारत सरकार द्वारा उर्वरक एवं कीटनाशक नियमों को संशोधित करते हुए न्यूनतम अर्हता प्राप्त करने की सलाह दी गई है.

उन्होंने बताया कि कृषि आदान विक्रेताओं के लिए भारत सरकार द्वारा मैनेज के माध्यम से एकवर्षीय कोर्स डिप्लोमा इन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन सर्विसेज फार इनपुट डीलर्स (देसी) की सुविधा उपलब्ध कराई गई है.

यह डिप्लोमा कोर्स 48 सप्ताह की अवधि का है, जिस के अंतर्गत सप्ताह में एक दिन स्थानीय मार्केट के अवकाश के अनुसार जिले के आदान विक्रेताओं को जिले में प्रशिक्षण के लिए अनुमोदित प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षित किया जाएगा.

प्रशिक्षण प्राप्त करने के इच्छुक आवेदकों को परियोजना संचालक आत्मा सतना के नाम से 20,000 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट निर्धारित प्रपत्र के साथ परियोजना संचालक आत्मा कार्यालय सतना में जमा कर पंजीयन कराना होगा. आवेदक को कम से कम 10वीं पास होना चाहिए. ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर डिप्लोमा कोर्स के लिए आवेदन लिए जाएंगे.

सब्सिडी के लिए 3 नए उर्वरक ग्रेड (Fertilizer Grades) शामिल

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एनबीएस योजना के तहत फास्फेटिक और पोटाश (पीएंडके) उर्वरक पर खरीफ सीजन, 2024 (1.4.2024 से 30.9.2024 तक) के लिए पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) दरें तय करने और 3 नए उर्वरक ग्रेड को शामिल करने के लिए उर्वरक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. खरीफ सीजन 2024 के लिए अस्थायी बजटीय आवश्यकता लगभग 24,420 करोड़ रुपए होगी.

यह मिलेगा लाभ: इस मंजूरी के बाद किसानों को रियायती, किफायती और उचित मूल्य पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी. साथ ही, उर्वरकों और इनपुट की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में हालिया रुझानों को देखते हुए पीएंडके उर्वरकों पर सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाया जाएगा.

इस से एनबीएस में 3 नए ग्रेडों को शामिल करने से संतुलित मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और किसानों को मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर उर्वरक चुनने के विकल्प मिलेंगे.

यह होगी कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य

किसानों को सस्ती कीमतों पर इन उर्वरकों की सुचारु उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पीएंडके उर्वरकों पर सब्सिडी खरीफ 2024 के लिए अनुमोदित दरों (1.4.2024 से 30.9.2024 तक लागू) के आधार पर प्रदान की जाएगी.

सरकार उर्वरक उत्पादकों/आयातकों के माध्यम से किसानों को रियायती कीमतों पर 25 ग्रेड के पीएंडके उर्वरक उपलब्ध करा रही है. पीएंडके उर्वरकों पर सब्सिडी 1.4.2010 से एनबीएस योजना द्वारा नियंत्रित है. सरकार ने किसानों को सस्ती कीमतों पर पीएंडके उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक और इनपुट यानी यूरिया, डीएपी, एमओपी और सल्फर की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में हालिया रुझानों को देखते हुए, फास्फेटिक और पोटाश (पीएंडके) उर्वरक पर 1.04.2024 से 30.9.2024 तक प्रभावी खरीफ 2024 के लिए एनबीएस दरों को मंजूरी देने का फैसला किया है.

सरकार ने एनबीएस योजना के तहत 3 नए उर्वरक ग्रेड को शामिल करने का भी निर्णय लिया है. उर्वरक कंपनियों को अनुमोदित और अधिसूचित दरों के अनुसार सब्सिडी प्रदान की जाएगी, ताकि किसानों को सस्ती कीमतों पर उर्वरक उपलब्ध कराया जा सके.

हकृवि को सांख्यिकी डाटा (Statistical Data) के औनलाइन मौड्यूल को मिले 4 कौपीराइट

हिसार: सांख्यिकीय डाटा (Statistical Data) के लिए तैयार औनलाइन मौड्यूल नवाचार को बढ़ावा व वैश्विक शोध कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान देंगे. डाटा विश्लेषण के मौड्यूल शोधार्थियों को भविष्य की चुनौतियों से निबटने के लिए सक्षम बनाएंगे. सांख्यिकीय डाटा के विश्लेषण के लिए निर्मित औनलाइन मौड्यूल का प्रयोग दुनियाभर में अनुसंधान डाटा के विश्लेषण के लिए किया जा सकता है, जो वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के लिए अत्याधिक लाभदायक साबित होगा.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहे.

उन्होंने बताया कि गणित और सांख्यिकी विभाग द्वारा सांख्यिकीय डाटा के विश्लेषण के लिए औनलाइन मौड्यूल तैयार करने पर चार कौपीराइट प्रदान किए गए हैं. ये मौड्यूल संवैधानिक अनुसंधान के व्यावहारिक अनुप्रयोग को प्रदर्शित करते हुए प्रजनन कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

उन्होंने इस उपलब्धि पर शामिल वैज्ञानिकों को बधाई दी. औनलाइन सांख्यिकीय विश्लेषण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लगातार नए मानक स्थापित करने के लिए गणित और सांख्यिकी विभाग की सराहना की.

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने कहा कि ये औनलाइन मौड्यूल गणित और सांख्यिकी विभाग के डा. ओपी श्योराण व डा. विनय कुमार अहलावत ने विकसित किए, जोकि अनुसंधान डाटा के विश्लेषण के क्षेत्र में यह मौड्यूल महत्वपूर्ण योगदान देंगे.

औनलाइन मौड्यूल ओपीस्टैट सौफ्टवेयर पर उपलब्ध किए जाएंगे

गणित एवं सांख्यिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. ओपी श्योराण ने सांख्यिकीय डाटा के लिए औनलाइन मौड्यूल के तकनीकी पहलुओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्रदान की.

उन्होंने आगे कहा कि यह मौड्यूल क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर पर आधारित है, जो एक्टिव सर्वर पेज एएसपी और पायथन का उपयोग कर के विकसित किए गए हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ये औनलाइन मौड्यूल न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि वैश्विक अनुसंधान समुदाय के लिए एक व्यावहारिक उपकरण भी है. इस मौड्यूल में लैटिस डिजाइन का विश्लेषण, बैक क्रास के साथ इनब्रेड लाइंस डेटा के लिए ट्रिपल टेस्ट क्रास का विश्लेषण व असममित लैटिस डिजाइन का विश्लेषण शामिल है. ये उन परिदृश्यों में विशेष रूप से फायदेमंद होते हैं, जहां संसाधन सीमित होते हैं और बड़ी संख्या में जीनोटाइप का परीक्षण किया गया है. औनलाइन मौड्यूल ओपीस्टैट सौफ्टवेयर पर उपलब्ध किए जांएगे, जिस का विश्व स्तर पर 156 देशों में डाटा विशलेषण के लिए उपयोग किया जाता है.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजू मेहता, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एसवीसी कपिल अरोड़ा व डा. अजय जांगड़ा मौजूद रहे.

मेरठ में 2 दिवसीय राष्ट्रीय आलू महोत्सव (National Potato Festival)

मेरठ: भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान-क्षेत्रीय केंद्र मोदीपुरम, मेरठ केंद्र पर भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान एवं भारतीय आलू संघ (आईपीए) की सहभागिता में आलू उत्पादन की नवीनतम तकनीकों एवं आलू की पोषकता की उपयोगिता के महत्व को जनमानस में लोकप्रिय बनाने हेतु एवं भविष्य की चुनौतियों पर विचारविमर्श करने के संदर्भ में 2 दिवसीय राष्ट्रीय आलू महोत्सव-2024 का आयोजन 9-10 मार्च, 2024 के दौरान किया जा रहा है.

इस आयोजन के मुख्य अतिथि डा. हिमांशु पाठक, सचिव, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग, भारत सरकार एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली होंगे.

आयोजन का होगा मुख्य आकर्षण

इस मौके पर नवनिर्मित आलू शीतगृह एवं हाईटैक आलू बीज उत्पादन तकनीक सिस्टम का उदघाटन, संस्थानों द्वारा विकसित आधुनिक प्रौद्योगिकियों एवं उत्पादों का सजीव प्रदर्शन, कृषि प्रदर्शनी, आलू बीज उत्पादन की उन्नत तकनीकयों का प्रदर्शन, एग्री ड्रोन द्वारा फसल सुरक्षा रसायनों के उपयोग का सजीव प्रदर्शन, आलू फसल में मशीनीकरण, कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी, नवोन्मेषी किसान सम्मेलन, कृषकवैज्ञानिक संवाद और परिचर्चा, सफलता की कहानी, प्रगतिशील व सफल किसानों की जबानी, विभिन्न राष्ट्रीयकृत बैंकों/वित्तीय संस्थानों द्वारा किसानों को प्रदान किए जाने वाले कृषि ऋण/योजनाओं की जानकारी हेतु परिचर्चा एवं आलू व्यंजन प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाएगा.

इस 2 दिवसीय आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों के 1,000 से अधिक प्रगतिशील किसान, आलू क्षेत्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ, केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं निजी क्षेत्रों के वैज्ञानिक और प्रतिनिधि भाग लेंगे.

इस मौके पर जो लोग संस्थान या प्रतिष्ठान के तकनीकों या उत्पादों का सजीव प्रदर्शन करना चाहते हैं, वह स्टाल लगाने के निर्धारित शुल्क 20,000/- रुपए मात्र बैंक खाता MS IPA UNIT CPRI के पक्ष में देय बैंक ड्राफ्ट अथवा औनलाइन एनईएफटी या आरटीजीएस द्वारा खाता संख्या 10172902441, State Bank of India, IFSC – SBIN0003067 में भुगतान कर के अधोहस्ताक्षरी को 6 मार्च, 2024 से पहले सूचित कर सकते हैं.

सात रेडियो स्टेशन (Radio Station) वाला कृषि संस्थान

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित 7 सामुदायिक रेडियो स्टेशन (Radio Station) कृषि क्षेत्र से जुड़ी नवीनतम जानकारियां, प्रौद्योगिकियों, नवाचारों व मौसम से संबंधित सूचनाओं के प्रचारप्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

इन के द्वारा न केवल विश्वविद्यालय की नवीनतम शोध संबंधित जानकारियां प्रदान की जा रही हैं, अपितु भारत सरकार एवं हरियाणा के किसान हितैषी योजनाओं को किसानों तक प्रभावी तरीके से भी पहुंचाया जा रहा है.

ये विचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आज सामुदायिक रेडियो स्टेशन से संबंधित नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड, पानीपत से समझौते के दौरान कही.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जिस के पास 7 सामुदायिक रेडियो स्टेशन सिरसा, हिसार, जींद, पानीपत, रोहतक, झज्जर व कुरुक्षेत्र में कार्यरत हैं.

इस समझौते के तहत विश्वविद्यालय नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड के सहयोग से ‘पीएम प्रणाम योजना’ के तहत रासायनिक उर्वरकों के उचित उपयोग से संबंधित कार्यक्रमों का प्रसारण करेगा.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आगे कहा कि इस के प्रचारप्रसार से किसान रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग कर के भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाएंगे. विश्वविद्यालय के सभी रेडियो स्टेशन अपनेअपने क्षेत्रों में वैज्ञानिक वार्ताओं, प्रगतिशील किसानों की कहानियां, मनोरंजन रागनियों व गानों के माध्यम से रासायनिक खाद के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे.

विश्वविद्यालय का एनएफएल कंपनी के साथ हुआ समझौता

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजू महता ने बताया कि कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल व सहविस्तार निदेशक डा. कृष्ण कुमार यादव ने हस्ताक्षर किए, जबकि नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड की ओर से पानीपत स्थित ह्यूमन रिसोर्स डवलपमेंट के डिप्टी मैनेजर कुलवंत सिंह पंवार और वित्तीय एवं प्रबंधन में असिस्टेंट मैनेजर कनिका ठाकुर ने समझौते पर हस्ताक्षर किए.

हकृवि एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय, जो 7 रेडियो स्टेशन के माध्यम से किसानों को दे रहे सलाह

विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि हकृवि के 7 रेडियो स्टेशन किसानों तक कृषि की नवीनतम जानकारियां व मौसम से संबंधित सूचनाएं प्रदान करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसी कड़ी में पीएम प्रणाम योजना के तहत आधे घंटे के कुल 180 प्रोग्राम प्रति रेडियो स्टेशन के हिसाब से कुल 1260 कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे.

इस योजना के तहत विश्वविद्यालय को कुल 50.40 लाख रुपए दिए जाएंगे.

उन्होंने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय ने उत्तर भारत के किसानों के लिए पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित किया था. इस के बाद हरियाणा सरकार के सहयोग से अन्य सामुदायिक रेडियो स्टेशन लगाए गए हैं. इस तरह के समझौते से इन के संचालन से किसानों को फायदा पहुंचेगा.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एसवीसी कपिल अरोड़ा सहित नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड के अधिकारी मौजूद रहे.