सांप के काटने पर झाड़फूंक नहीं इलाज कराएं

किसानी से जुड़े कामों में खतरा भी हर पल बना रहता है. कई बार खेत में काम करते समय भी जहरीले जीवजंतुओं के काटने की घटनाएं सामने आती हैं. खेतों में पाए जाने वाले सांप वैसे तो चूहों से फसलों की हिफाजत करते हैं, पर सांप को सामने देख कर डर के मारे सभी की घिग्घी बंध जाती है. अकसर खेत में उगी घनी फसल के बीच या खेत की मेंड़ पर उगी झाडि़यों में सांप छिपे रहते हैं.

खेत में काम करते समय अनजाने में किसान का पैर सांप के ऊपर पड़ जाता है और सांप अपने बचाव के लिए फन से उसे डस लेता है. सांप के काटने के इलाज की सही जानकारी न होने से किसान झाड़फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं. अगर काटने वाला सांप जहरीला निकला तो किसान को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है.

देश के ज्यादातर हिस्सों में सब से ज्यादा सांप के डसने की घटनाएं बारिश में नजर आती हैं, पर ठंड और गरमी में भी खेतों में लगी फसल में काम करते समय भी सांप के डसने से किसान प्रभावित हो जाते हैं.

वैटेरिनरी कालेज, जबलपुर के सांप विशेषज्ञ गजेंद्र दुबे के मुताबिक, भारत में सांपों की तकरीबन 270 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन में से 10-15 प्रजाति के सांप ही ज्यादा जहरीले होते हैं.

भारत में करैत, कोबरा, रसेल वाइपर, सा स्केल्ड वाइपर, किंग कोबरा, पिट वाइपर वगैरह सब से जहरीले सांप हैं. देश में तकरीबन हर साल 50,000 लोग सांप के डसने से प्रभावित होते हैं. कई बार सांप जहरीला न भी हो तो भी किसान सांप के काटने के डर से घबरा जाते हैं और हार्ट अटैक से मर जाते हैं.

सांपों का अंधविश्वास

हमारे समाज में सांपों के बारे में कई तरह के अंधविश्वास फैले हुए हैं. गांवदेहात में तो बाकायदा इन की देवीदेवताओं की तरह पूजा की जाती है. नागपंचमी के दिन इन्हें दूध पिलाने की परंपरा है. सांपों को ले कर कई फिल्में भी बनी हैं, जिन में दिखाया जाता है कि नागलोक एक अलग संसार है. ‘नागिन’, ‘नगीना’ जैसी कई फिल्मों में यह कहानी दिखाई गई है कि नाग या नागिन के जोडे़ में से किसी एक को मारने पर वे अपने साथी की मौत का बदला लेते हैं.

इसी तरह इच्छाधारी सांप और मणि रखने वाले सांपों की कहानियां गंवई इलाकों में लोगों को सुना कर सांपों के प्रति डर दिखाया जाता है.

वास्तव में विज्ञान कहता है कि न तो सांप दूध पीते हैं और न ही इच्छाधारी होते हैं. सांप बीन की धुन पर नाचते हैं, यह भी एक अंधविश्वास है, क्योंकि सांप के कान ही नहीं होते. गांवदेहात में पंडेपुजारी भी नागपंचमी पर इन की पूजापाठ करा कर केवल भोलेभाले लोगों से दानदक्षिणा बटोर कर अपनी जेबें भरने का काम करते हैं.

झाड़फूक से बचें

अकसर सांप के काटने पर लोग झाड़फूंक के चक्कर में जल्दी आ जाते हैं. किसानी महल्ला साईंखेड़ा के दरयाव किरार को जुलाई, 2018 में धान की रोपाई करते समय सांप ने दाएं हाथ की उंगली में काट लिया. उन्होंने तुरंत हाथ के ऊपरी हिस्से पर कपड़ा बांध लिया और अपने जानपहचान वाले के साथ झाड़फूंक करने वाले पंडे के पास पहुंच गए.

तकरीबन 5-6 घंटे तक झाड़फूंक करने के बाद शाम को घर आ गए. रात 11 बजे जब उन्हें लगातार उलटी होने लगी, तो परिवार के लोग उन्हें अस्पताल ले गए, जहां लगातार 5 दिन तक इलाज चलने के बाद उन की हालत में सुधार हुआ.

माहिर लोग बताते हैं कि अगर सांप जहरीला नहीं होता तो पीडि़त शख्स को कुछ नहीं होता. इस की वजह से झाड़फूंक को लोग सही मान लेते हैं.

लेकिन लोगों का यह तरीका ठीक नहीं है. कभी किसी को सांप काटे तो तुरंत ही उसे सरकारी अस्पताल ले जाना चाहिए. आजकल के नौजवान मोबाइल फोन में सोशल मीडिया की गलत जानकारी को सही मान कर गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं और सांप के डसने पर गलत तरीके अपना लेते हैं.

अक्तूबर, 2019 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गांव चांदनखेड़ा में धान के खेत में दवा का छिड़काव कर रहे एक किसान राजकुमार को सांप ने डस लिया था. उस ने व्हाट्सएप पर आए एक मैसेज में पढ़ा था कि सांप के काटने पर उस जगह पर कट लगा लेना चाहिए. सो, उस ने जल्दबाजी में सांप के जहर से बचने के लिए अपने पास रखे ब्लेड से हाथ में कट लगा लिया. उसे लगा कि खून के साथ सांप का जहर निकल जाएगा, लेकिन ज्यादा खून बह जाने के चलते जब किसान की हालत बिगड़ने लगी तो साथ में काम कर रहे उस के चाचा द्वारा उसे अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे एंटी स्नेक वीनम इंजैक्शन लगा कर सांप के जहर से बचा लिया.

बचाव, सावधानियां और सरकारी सहायता

बारिश में हर सरकारी अस्पताल में हर महीने औसतन 20 लोग सांप के डसने के चलते इलाज के लिए आते हैं. जागरूकता की कमी में कई बार झाड़फूंक में फंस कर लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं.

जिला अस्पताल की सिविल सर्जन डाक्टर अनीता अग्रवाल बताती हैं कि जिस अंग में सांप ने काटा है, उसे पानी से साफ कर के स्थिर रखने का प्रयास करें और अंग के पास किसी तरह का कट न लगाएं, क्योंकि इस से टिटनस फैलने का खतरा रहता है. जहां सांप ने काटा है, वहां कपड़े या धागे की पट्टी बांधते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वह इतना कस कर न बांधें कि खून का बहाव पूरी तरह बंद हो जाए. खून का बहाव पूरी तरह बंद होने से अंग के काटने की स्थिति बन सकती है.

सांप के काटने पर किसी ओझागुनिया, पंडा या मौलवी के पास जा कर झाड़फूंक कराने के बजाय बिना समय गंवाए सीधे सरकारी अस्पताल पहुंचना चाहिए. आजकल हर सरकारी अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में एंटी स्नेक वीनम इंजैक्शन मौजूद हैं.

तमाम सावधानियां बरतने के बाद भी तमाम किसान सांप के डसने का शिकार हो जाते हैं और झाड़फूंक के फेर में पड़ कर या देशी इलाज कराने की वजह से जान से हाथ धो बैठते हैं. इस से किसान परिवार के कमाऊ और कामकाजी सदस्य की मौत से माली दिक्कत आ जाती है.

सांप के डसने से मौत होने पर आजकल देश के ज्यादातर राज्यों की सरकारें पीडि़त परिवार को सहायता राशि मुहैया कराती हैं. अलगअलग राज्यों में अलगअलग सहायता राशि देने का प्रावधान है.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश में सहायता राशि 4 लाख रुपए देने का प्रावधान है, जबकि पजाब में 3 लाख रुपए, झारखंड में ढाई लाख रुपए की सरकारी सहायता देने का नियम है. यह सहायता राशि मरने वाले शख्स के निकटतम संबंधी या वारिस को दी जाती है.

सांप के डसने से मौत होने पर मरने वाले का पोस्टमार्टम कराना जरूरी होता है. सरकारी सहायता लेने के लिए अपनी तहसील के राजस्व अधिकारी, एसडीएम या तहसीलदार दफ्तर में मौत हो जाने के 15 दिन के अंदर आवेदन करना जरूरी है. आवेदन के साथ राशनकार्ड, आधारकार्ड की प्रमाणित प्रति के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाणपत्र जमा कराना जरूरी है.

किसानों को फ्री बीज, कृषि यंत्रों पर भारी छूट

बस्ती : दलहन और तिलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को बीजों की निःशुल्क मिनी किट वितरित की जा रही है.

सूबे के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही द्वारा सर्किट हाउस, बस्ती में 50 किसानों एवं कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती में आयोजित गोष्ठी में 100 किसानों को सरसों/मटर /चना /मसूर की मिनी किट का वितरण किया गया.

इस मौके पर उपस्थित किसानों को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने आगे कहा कि खाद्य तेलों के विदेशी आयात में कमी लाए जाने हेतु सरकार द्वारा तिलहन के बीजों का निःशुल्क मिनी किट वितरित किया जा रहा है. इसी कड़ी में बस्ती मंडल को 12,000 मिनी किट उपलब्ध कराया गया है.

उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा इस वर्ष रबी में दलहन एवं तिलहन के 10 लाख निःशुल्क मिनी किट किसानों को उपल्ब्ध कराया जा रहा है. इस से प्रदेश में तिलहन एवं दलहन के उत्पादन में वृद्धि होगी.

बीज वितरण में पारदर्शिता के लिए बायोमैट्रिक आधारित पौश मशीन का उपयोग

उन्होंने कहा कि बीज वितरण में पारदर्शिता लाए जाने के लिए बायोमैट्रिक आधारित पौश मशीन का उपयोग किया जा रहा है. लेकिन किसानों की सुविधा के लिए और समय से बोआई का काम पूरा किया जा सके. इस के लिए पात्र किसानों के जरूरी कागजात ले कर उन्हें समय से मिनी किट मुहैया कराए जाने का निर्देश दिया गया है.

न्होंने आगे कहा कि ऐसे किसानों का बाद में बायोमैट्रिक लिया जाएगा.

Kisan Yojnaकृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि जिन किसानों को एक बार बीज मुहैया कराया जाता है, वह उसे 3 सालों तक बीज के रूप में उपयोग में ला सकते हैं.

मोटे अनाज की खेती करने हेतु किसानों से अपील करते हुए कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि सरकार मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सदा प्रयासरत हैं और इस की खेती के लिए बीज कृषि विभाग के राजकीय कृषि बीज भंडारों पर मुफ्त उपलब्ध हैं.

उन्होंने मोटे अनाज के फायदे बताते हुए कहा कि इस के प्रयोग से तमाम तरह की बीमारियां नहीं होती हैं और यह पौष्टिक भी होता है. मोटे अनाज की खेती कम लागत में और बिना रासायनिक खाद का प्रयोग किए की जा सकती है, जिस से किसानों को ज्यादा लाभ प्राप्त होगा.

50 फीसदी अनुदान पर मिलेट्स प्रोसैसिंग मशीन

उन्होंने यह भी कहा कि श्रीअन्न पुनरोद्धार योजना के तहत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 50 फीसदी अनुदान पर मिलेट्स प्रोसैसिंग मशीन किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि बस्ती में 110 एफपीओ पंजीकृत हैं, जिन्हें प्रशिक्षित कर उन्हें सक्षम बनाया जाएगा.

उन्होंने सभी एफपीओ को शक्ति पोर्टल पर पंजीकृत किए जाने का निर्देश दिया और कहा कि एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए प्रति किसान 2,000 रुपया मैचिंग ग्रांट भी दिया जा रहा है. इस के लिए एफपीओ में निर्धारित संख्या में शेयर अंशधारक किसानों का होना जरूरी है.

किसानों को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि सरकार एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार से इन की आर्थिक मदद कर रही है, जैसे- फार्म मशीनरी बैक की स्थापना, बीज विधायन संयंत्र और मिलेट्स आउटलेट्स आदि लगाने पर सब्सिडी दी जा रही है.

कृषि विभाग पराली प्रबंधन यंत्रों पर छूट

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही किसानों से पराली न जलाने की अपील करते हुए कहते हैं कि कृषि विभाग के समस्त राजकीय कृषि बीज भंडारों पर डीकंपोजर मुफ्त उपलब्ध है, जिस का प्रयोग कर कंपोस्ट खाद बना कर प्रयोग करने से लागत में कमी आती है और रासायनिक खाद की अपेक्षा कंपोस्ट खाद पूरी तरह जैविक होती है एवं कृषि विभाग पराली प्रबंधन यंत्रों पर 50 से 80 फीसदी की छूट भी दे रहा है.

कृषि विज्ञान केंद्र का भ्रमण

इस के बाद कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए, जहां उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती का भ्रमण किया. इस दौरान उन्होंने आम, अमरूद, आंवला, मुसम्मी, किन्नू, संतरा, नाशपाती, अंजीर, सेब की विभिन्न प्रजातियों की जानकारी प्राप्त की.

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने पूसा नरेंद्र काला नमक-1 धान के बीज उत्पादन कार्यक्रम की प्रशंसा की. उन्होंने जगरी यूनिट को तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया. इस के उपरांत कृषि विभाग, बस्ती द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र के भारत रत्न नानाजी देशमुख कांन्फ्रेस हाल में आयोजित मिनी किट वितरण कार्यक्रम में कप्तानगंज, बहादुरपुर, दुबौलिया एवं हर्रैया के किसानों को सरसों, लाही, मसूर एवं चना बीज के मिनी किट का वितरण किया

किसान बिना किसी भेदभाव के प्राप्त कर सकते हैं कृषि योजनाओं का लाभ

इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान रोजगारपरक प्रशिक्षण प्राप्त कर खेती के साथ ही साथ कृषिगत व्यवसाय डेरी , मुरगीपालन, बकरीपालन, मशरूमपालन, मधुमक्खीपालन के साथ फलपौध की नर्सरी पर जोर दिया.

Kisan Yojnaकृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने आईएफएस मौडल अपनाने पर किसानों का आवाह्न किया और कहा कि सिर्फ धान, गेहूं, गन्ना से किसानों की आय में आशातीत बढोतरी नहीं हो सकती है. किसान एकीकृत फसल प्रणाली (आईएफएस मौडल) अपना कर अपनी आय में 3-4 गुना वृद्धि कर सकते हैं. प्रदेश सरकार एवं केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित में अनेक कृषिगत योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिन का लाभ किसान बिना किसी भेदभाव के प्राप्त कर सकते हैं.

सांसद हरीश द्विवेदी ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए चलाई जा रही योजनाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार की अगुआई में लगातार खेती लाभ की तरफ अग्रसर हुई है. कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह ने केंद्र पर उगाई जा रही सब्जियों, फलों व अनाजों की उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र पर दूरदराज के किसानों की भी पहुंच आसान हुई है.

Kisan Yojnaइस अवसर पर भाजपा जिलाध्यक्ष विवेकानंद मिश्रा, जिलाधिकारी आंद्रा वामसी, मुख्य विकास अधिकारी जयदेव पुलिस अधीक्षक बस्ती, उपनिदेशक कृषि अशोक कुमार गौतम, एसडीएम सदर गुलाबचंद, जिला कृषि अधिकारी डा. राजमंगल चौधरी, रतन शंकर ओझा, जिला कृषि रक्षा अधिकारी बस्ती, हरेंद्र प्रसाद, उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी, कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक और भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी, यशकांत सिंह ब्लौक प्रमुख, रामनगर, अनिल दूबे, प्रमुख प्रतिनिधि, कुदरहा, वैज्ञानिक डा. बीबी सिंह, डा. डीके श्रीवास्तव, डा. प्रेमशंकर, हरिओम मिश्रा सहित मिनी किट प्राप्त करने वाले किसान राम मूर्ति मिश्र, राम चरित्र, इमराना, राजाराम यादव, राजेंद्र सिंह, अहमद अली सहित सैकडों किसानों को सरसों, लाही, मसूर एवं चना, मटर बीज के निःशुल्क मिनी किट वितरित किया गया

कृषि वैज्ञानिक प्रो. रवि प्रकाश मौर्य हुए डाक्टरेट औफ साइंस से सम्मानित

नई दिल्ली : देवरिया जनपद के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र मल्हनी भाटपार रानी से प्राथमिक से इंटरमीडिएट (कृषि) की शिक्षा प्राप्त कर बाबा राघवदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देवरिया से स्नातकोत्तर (कृषि) की उपाधि प्राप्ति के बाद प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने नौकरी की प्रारंभिक सेवा मई, 1985 से कृषि विज्ञान केंद्र, सुल्तानपुर से की.

साल 1992 से 5 मार्च, 1998 तक केवीके, कैमूर, बिहार में प्रिंसिपल के पद पर रहे. उस के बाद आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारग़ंज, अयोध्या में असिस्टेंट प्रोफैसर से सेवा प्रारंभ कर विभिन्न पदों पर रहे और नवंबर, 2021में प्रोफैसर/वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए.

इन की 36 वर्षों से अधिक की कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा कार्यों, अनुभवों, प्रकाशनों आदि को देखते हुए वर्ल्ड पीस औफ यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली ने डाक्टरेट इन साइंस इन एग्रीकल्चर ( डीएससी, कृषि विज्ञान) विशेषज्ञता पौध स्वास्थ्य ( हानिकारक कीट) प्रबंधन मानद उपाधि से सम्मानित किया गया.

यह उपाधि दिल्ली के अशोक होटल में प्रदान की. यह उपाधि पीएचडी के बाद होती है. सेवानिवृत्त के बाद प्रो. मौर्य ने एक प्रोफैसर रवि सुमन कृषि एवं ग्रामीण विकास ( प्रसार्ड) ट्रस्ट की स्थापना फरवरी, 2022 में अपने पैतृक गांव मल्हनी (भाटपार रानी देवरिया) में की है, जिस के निदेशक/ अध्यक्ष हैं, जिस के माध्यम से कृषि एवं ग्रामीण विकास से संबंधित नई तकनीक क्षेत्र के किसानों, ग्रामीणों के बीच विभिन्न माध्यमों से पहुंचाने का प्रयास करते हैं.

64 वर्ष की उम्र में भी वे काफी सक्रिय भूमिका ग्रामीणों के बीच निभा रहे हैं.

मसालों की कटाई व प्रोसैसिंग

पुराने समय से मसालों का हमारे जीवन में खास स्थान रहा है. मसालों का अपने रूप, रस, सुगंध, स्वाद, रंग, आकार वगैरह के कारण अलग ही महत्त्व है. भारत के मसालों की मांग विदेशों में तेजी से बढ़ रही है. मसाले हमारे खाने को जायकेदार बनाने के साथ दवा का भी काम करते हैं.

कटाई के बाद मसालों की सफाई, ग्रेडिंग, पैकिंग वगैरह काम किए जाते हैं. कटाई के समय मसालों में नमी 55-85 फीसदी होती है. इन को महफूज रखने के लिए इन की नमी को घटा कर 8-10 फीसदी तक करना पड़ता है.

मसालों के कारोबार के लिए उन की सही तरीके से कटाई के बाद मड़ाई, सफाई, ग्रेडिंग और पैकिंग पर खास ध्यान दें. यहां हम मसालों की कटाई के बाद के कामों की चर्चा कर रहे हैं.

धुलाई : जिन मसालों को जमीन के पास से या जमीन में से खोद कर निकाला जाता है, उन की धुलाई करना जरूरी होता है, ताकि उन में लगी धूल और संक्रमण पैदा करने वाले पदार्थ साफ हो जाएं. धुलाई बहते पानी से करनी चाहिए. इलायची, हलदी, अदरक वगैरह मसालों की धुलाई की जाती है.

छाल निकालना : कुछ मसाले जैसे अदरक, लहसुन के सूखने में इन की छाल ही रुकावट होती है. इन को सुखाने के लिए इन की छाल निकालना जरूरी होता है. छाल निकालने के लिए खास तरह के चाकुओं का इस्तेमाल किया जाता है. सफेद अदरक लेने के लिए अदरक की छाल निकाल कर उसे नीबू पानी से धो लिया जाता है. इस के लिए 600 मिलीलिटर नीबू के रस को 30 लिटर पानी में मिलाया जाता है.

गोदना : सभी तरह की मिर्च को सुखाने के लिए गोदने की विधि इस्तेमाल की जाती है. मिर्च को लंबाई में दबा कर चपटा कर के सुखाने में कम समय लगता है. इस से क्वालिटी व रंग भी बना रहता है.

रासायनिक उपचार : इस से मसालों को उन के असली रंगरूप में रख कर सुंदर बनाया जाता है, जिस से उन की अच्छी कीमत मिलती है.

छोटी इलायची के बाहर का हरा चमकदार रंग उस की छाल में मौजूद क्लोरोफिल के कारण होता है. इस की चमक को बनाए रखने के लिए इलायची को

2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट के घोल में 10 मिनट तक रखा जाता है. मिर्च को सोडियम बाई कार्बोनेट व जैतून के तेल के मिश्रण से उपचारित करने के बाद सुखाने से उस का रंग बना रहता है.

अदरक को धोने के बाद साफ पानी में एक दिन के लिए रखा जाता है. इस के बाद 2 फीसदी बुझे चूने के घोल में 6 घंटे के लिए रखा जाता है.

बुझे चूने के पानी के घोल से उपचारित अदरक को सल्फर डाई औक्साइड के धुएं से (लगभग 3.5 किलोग्राम गंधक धुआं प्रति टन अदरक की दर से) 12 घंटों के लिए उपचारित किया जाता है.

इलायची की फली का रंग हरा चमक लिए हुए होना चाहिए. सभी फलियों का एक जैसा रंग नहीं होने के कारण इलायची की कीमत कम या ज्यादा होती है. एकसमान रंग लाने के लिए इलायची की फलियों को घुलनशील गंधक से उपचारित किया जाता है.

मसालों में हलदी के पीले रंग व इस की खास महक को बनाए रखने के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. खुदाई के 3-4 दिन बाद मुख्य कंद से छोटेछोटे कंदों को अलग कर लिया जाता है. कंदों को धो कर बुझे चूने के पानी, सोडियम कार्बोनेट या सोडियम बाई कार्बोनेट के घोल में उबाला जाता है.

मसालों को सुखाना

मसालों को सुखाने के दौरान इन में नमी की मात्रा को कम कर के 5 से 8 फीसदी तक बनाए रखें. सही ढंग से सूखने पर मसालों का मूल रंग व स्वाद बना रहता है. मसालों को सुखाने के लिए इन तकनीकों को अपनाएं:

धूप में सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने के लिए खास सावधानी रखनी पड़ती है, ताकि धूल व बारिश से उन्हें नुकसान न हो. इलायची को 2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट से उपचारित कर के और अदरक, हलदी को बुझे चूने के पानी से उपचारित कर के धूप में 8-10 दिन तक सुखाया जाता है.

मसालों में 5 से 8 फीसदी नमी रह जाने तक ही उन्हें धूप में सुखाया जाता है. आईसीएआर ने मिर्च के लिए मिर्च छेदन मशीन तैयार की है. इस मशीन द्वारा 10 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से मिर्च छेदन किया जाता है.

मशीन द्वारा सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने पर मौसमी बाधाओं के अलावा उन में सूक्ष्म जीवों, धूल, चिडि़यों की गंदगी वगैरह मिलने का डर रहता है, जिस से मसाले की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. इस से बचने के लिए मशीन से मसालों को 60 से 70 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 6 से 8 घंटों के लिए सुखाया जाता है.

बिजली की मशीन से सुखाना : गरम हवा के लिए बिजली से चलने वाली शोषक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस में तापमान, समय वगैरह का नियंत्रण रहता है, जिस से आसानी से हर तरह के मसालों को सुखाया जा सकता है.

भारतीय मसालों की राष्ट्रीय कानून के तहत हर अवस्था में ग्रेडिंग की जाती है. मसालों के लिए ग्रेडिंग करना कृषि उपज अधिनियम (1987) श्रेणीकरण विपणन के अधीन होता है. इन श्रेणियों को एगमार्क कहा जाता है. इस में भौतिक गुण जैसे रंग, आकार, घनत्व वगैरह का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है.

किसानों को अपने उत्पादों की अच्छी कीमत पाने के लिए ग्रेडिंग की जानकारी होना जरूरी है.

कारोबार की कुशलता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक ग्रेडिंग एक अहम अंग है.

मसालों की गुणवत्ता मान

साबुत बड़ी इलायची : साबुत बड़ी इलायची के सूखे व लगभग पके हुए फल संपुटों के रूप में होते हैं. दलपुंजों के टुकड़ों, डंठलों व अन्य चीजों का भार अनुपात में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थ की मात्रा भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

बड़ी इलायची का चूर्ण : बीजों के चूर्ण में बीज अच्छी तरह पिसे होने चाहिए. नमी भार में 14 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 8 फीसदी से कम और वाष्पीय तेल एक फीसदी से कम होना चाहिए.

साबुत लाल मिर्च : कैप्सिकम फ्रुटेसैंस के सूखे पके फल या फलियां शामिल होती हैं. इस में अन्य पदार्थ बाहरी दलपुंज के टुकड़े, धूल, मिट्टी के ढेले, पत्थर वगैरह  शामिल हैं.

Spicesये चीजें भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा खराब पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम हो.

लाल मिर्च चूर्ण : सूखी साफ फलियों का चूर्ण होना चाहिए. मिर्च के चूर्ण में धूल, कवक, कीट द्वारा नुकसान व सुगंधित पदार्थ नहीं होने चाहिए. मिर्च के चूर्ण की नमी 12 फीसदी से कम, कुल खनिज भार 8 फीसदी से कम होना चाहिए.

साबुत धनिया : कोरिएंडम सेटाइवम के सूखे बीज, जिस में धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले, भूसी, डंठल के अलावा अन्य खाद्य पदार्थ के बीज व कीटों द्वारा खाए बीज शामिल न हों, का अनुपात 0.8 फीसदी से ज्यादा न हो.

धनिया चूर्ण : इस में नमी भार में 12 फीसदी से ज्यादा नहीं व कुल खनिज भार 7 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

मेथी : सूखे पके बीज में फालतू पदार्थ, धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले वगैरह का अनुपात भार में 5 फीसदी से कम होना चाहिए. कीटों द्वारा खाए पदार्थ की मात्रा भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

मेथी चूर्ण : इस में मेथी के सूखे पके फलों का पिसा चूर्ण, जिस में नमी भार में 10 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 7 फीसदी से कम होनी चाहिए.

साबुत हलदी : पौधे से सूखे कंद या कंदीय जड़ में लैड क्रोमेट व अन्य रंजक पदार्थों की मिलावट नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम होनी चाहिए.

हलदी चूर्ण : चूर्ण में बाहरी रंग की मिलावट नहीं होनी चाहिए. चूर्ण में नमी भार में 13 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 9 फीसदी से कम होनी चाहिए. लैड क्रोमेट जांच नेगेटिव होनी चाहिए.

स्टोरेज : मसाले व इन के उत्पाद नमी के मामले में ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इन में नमी लेने की कूवत ज्यादा होती है. इस वजह से नमी से बचाने के लिए इन का भंडारण व पैकिंग अच्छी होनी चाहिए. नमी के आने पर इन में दरार पड़ने, रंग फीका पड़ने के अलावा कीट व बीमारियों का हमला हो जाता है.

मसूर की फसल को कीट व बीमारियों से बचाएं

माहू

मसूर में आमतौर पर माहू सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीड़ा है. यह कीट 45 से 50 दिन की अवस्था में पौधों का रस चूसता है, जिस से पौधे कमजोर हो जाते हैं. उपज में 25 से 30 फीसदी तक की कमी हो जाती है.

यह कीट पौधों का रस चूसने के साथसाथ अपने उदर से एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ता है, जिस से पत्तियों पर काले रंग की फफूंद पैदा हो जाती है. साथ ही, पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है.

प्रबंधन

* फसल की बोआई समय से करने से इस का प्रकोप कम होता है.

* फसल में नाइट्रोजन का ज्यादा इस्तेमाल न करें.

* माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.

* परभक्षी कौक्सीनेलिड्स या सिरफिड या फिर क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000-10,0000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.

* नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लिटर नीम का तेल 100 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* इंडोपथोरा व वरर्टिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोगकारक कवक) का माहू का प्रकोप होने पर छिड़काव करें.

* जरूरी होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल/0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर, थियोमेथोक्सम 25 डब्लूजी/1-1.5 ग्राम प्रति लिटर या मेटासिस्टौक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

कर्तन कीट (एग्रोटिस एप्सिलान)

यह कीट मसूर के अलावा सोलेनियसी परिवार के पौधों और कपास व दलहनी फसलों पर भी हमला करता है. यह रात के वातावरण में निकल कर नर व मादा संभोग कर के पत्तियों पर अंडे देते हैं. इन की जीवनचक्र क्रिया वातावरण के हिसाब से 1-2 महीने में पूरी होती है. इस की सूंड़ी जमीन में मसूर के पौधे के पास मिलती है और जमीन की सतह से पौधे और इस की शाखाओं के 30-35 दिन की फसल में काटती है.

प्रबंधन

* खेतों के पास प्रकाश प्रपंच 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर प्रौढ़ कीटों को आकर्षित कर के नष्ट किया जा सकता है, जिस की वजह से इस की संख्या को कम किया जा सकता है.

* खेतों के बीचबीच में घासफूस के छोटेछोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए. रात में जब सूंडि़यां खाने को निकलती हैं, तो बाद में इन्हीं में छिपेंगी, जिन्हें घास हटाने पर आसानी से नष्ट किया जा सकता है.

* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

सैमीलूपर (प्लूसिया ओरिचेल्सिया)

इस कीट की सूंडि़यां हरे रंग की होती हैं, जो पीठ को ऊपर उठा कर यानी अर्धलूप बनाती हुई चलती हैं, इसलिए इसे सैमीलूपर कहा जाता है. यह पत्तियों को कुतर कर खाती है.

एक मादा अपने जीवनकाल में 400-500 तक अंडे देती है. अंडों से 6-7 दिन में सूंडि़यां निकलती हैं जो 30-40 दिन तक सक्रिय रह कर पूर्ण विकसित हो जाती हैं.

पूर्ण विकसित सूंडि़यां पत्तियों को लपेट कर उन्हीं के अंदर प्यूपा बनाती हैं, जिन से 1-2 हफ्ते बाद सुनहरे रंग का पतंगा बाहर निकलता है.

प्रबंधन

* खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए और रोग व कीट प्रतिरोधी जातियों की बोआई करनी चाहिए.

* बीज को कीटनाशी व फफूंदनाशकों से उपचार कर लेना चाहिए.

* खेत में 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.

* खेत में परजीवी पक्षियों के बैठने के लिए 10 ठिकाने प्रति हेक्टेयर के अनुसार लगाएं.

* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

बीमारियों की रोकथाम

उकठा

यह भूमिजनित बीमारी है. बोआई के 20 से 25 दिन के बाद इस बीमारी के प्रकोप से पौधे पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं. पौधों का ऊपरी भाग एक तरफ  ?ाक जाता है और अंत में मुर?ा कर पौधा मर जाता है.

उकठा बीमारी से बचाने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए. साथ ही, पुरानी फसलों के अवशेषों को मिट्टी में दबा देना चाहिए. खेतों के आसपास सफाई रखें.

रोकथाम

* उकठा बीमारी की रोकथाम के लिए सदैव रोगरोधी प्रजातियों की बोआई करनी चाहिए. जिन क्षेत्रों में यह बीमारी बारबार आती हो, वहां पर 3 से 4 वर्षा तक मसूर की फसल नहीं लेनी चाहिए.

* इस के अलावा बीजों को बोने से पहले थाइरम नामक फफूंदीनाशक से उपचारित करना लाभकारी पाया गया है.

* आजकल उकठा बीमारी के नियंत्रण के लिए पर्यावरण हितैषी ट्राइकोडर्मा नाम फफूंद का प्रयोग भी लाभकारी सिद्ध हो रहा है, जो नियंत्रण के रूप में विभिन्न मृदाजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए उपयोगी है.

रतुआ

इस बीमारी में फरवरी या इस के बाद तनों व पत्तियों पर गुलाबी से भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जो बाद में काले पड़ने लगते हैं.

रोकथाम

* इस की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों जैसे पंत एल-236, पंत एल-406 व नरेंद्र मसूर-1 का प्रयोग करना चाहिए.

* कटाई के उपरांत रोगग्रसित पौधों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए.

* इस के अतिरिक्त बीमारी का अधिक प्रकोप होने पर डाइथेन एम-45 का 0.2 फीसदी घोल का 12 से 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें.

चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)

आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण फसल बोआई के 80 से 90 दिन बाद पत्तियों की निचली सतह पर छोटेछोटे सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में सफेद चूर्ण के रूप में पूरी पत्ती, तने और फलियों पर फैल जाते हैं. ज्यादा संक्रमण की हालत में पौधों में हरे रंग की कमी क्लोरोसिस हो जाती है.

रोकथाम

*  रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

* मसूर की रोगरोधी किस्मों को चुनें.

* गंधक 20 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से संक्रमित खेत में बिखेर कर इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है.

* कुछ सल्फरयुक्त पदार्थ जैसे सल्फेक्स या एक्सेसाल 0.3 फीसदी छिड़काव करने से भी बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.

कटाई एवं मड़ाई

जब 70 से 80 फीसदी फलियां भूरे रंग की हो जाएं और पौधा पीला पड़ जाए, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए.

विदेशी बागबानी पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

बेंगलुरु: भाकृअनुप-भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर), बेंगलुरु में ‘‘विदेशी और कम उपयोग की गई बागबानी फसलें: प्राथमिकताएं एवं उभरते रुझान‘‘ पर 17 अक्तूबर से 19 अक्तूबर, 2023 तक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने प्रोफैसर डा. संजय कुमार सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु, डा. एनके कृष्ण कुमार, पूर्व उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान), भाकृअनुप, डा. जेसी राणा, देश के प्रतिनिधि, एलायंस औफ बायोवर्सिटी इंटरनैशनल और डा. वीबी पटेल, सहायक महानिदेशक (फल एवं रोपण फसलें), भाकृअनुप की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन किया.

कर्नाटक के राज्यपालज थावरचंद गहलोत ने विदेशी और कम उपयोग वाली फसलों के टिकाऊ उत्पादन के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों के बारे में किसानों और अन्य हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु की सराहना की.

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि बागबानी फसलों का उत्पादन साल 1950- 51 में 25 मिलियन टन से 14 गुना बढ़ कर तकरीबन 350 मिलियन टन हो गया है और खाद्यान्न उत्पादन से भी आगे निकल गया है.

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि आने वाले दिनों में देश कृषि, बागबानी, दुग्ध उत्पादन सहित सभी क्षेत्रों में चमकेगा और विश्व गुरु बनेगा.

इस अवसर पर पांच प्रकाशन जारी किए गए और राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने लाइसेंसधारक अर्का कमलम आरटीएस बेवरेज के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रस्तुत किया.

सैमिनार में शामिल प्रमुख सिफारिशें हैं:

मुख्यधारा के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में कम उपयोग वाली फसलों पर अनुसंधान कार्यक्रमों को समायोजित करने के लिए टास्क फोर्स समितियों का गठन किया जा सकता है. एफएओ के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए जैव पूर्वेक्षण और कम उपयोग वाली फसलों के मूल्यवर्धन के क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को मजबूत किया जा सकता है. इंटरनैशनल सैंटर फौर अंडर यूटिलाइज्ड क्रौप्स, यूके के अनुरूप महत्वपूर्ण अपितु कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर में एक उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किया जा सकता है.

फसल संग्रहालयों की स्थापना के माध्यम से कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षण को मुख्यधारा में लाने के लिए राष्ट्रीय और साथ ही वैश्विक नैटवर्क की स्थापना और जैव विविधता को आजीविका के अवसरों से जोड़ने के लिए कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षक किसानों की पहचान एवं उन्हें मान्यता देना. पीपीवी और एफआरए संबद्ध आईटीके के साथ कम उपयोग वाली बागबानी फसलों का पंजीकरण शुरू करना शामिल था.

निर्यात के लिए गुंजाइश प्रदान करने वाले सीएसआईआर संस्थानों के सहयोग से फार्मास्युटिकल और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों का उपयोग कर के पोषक तत्वों से भरपूर भोजन व उत्पादों के विकास के माध्यम से छिपी हुई भूख को हल करने के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों सहित खाद्य स्रोतों के विविधीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए.

नई संभावित देशी और कम उपयोग वाली सजावटी, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों की पहचान करने और उन के उत्पादन, संरक्षण व कटाई के बाद प्रबंधन प्रथाओं को विकसित करने और सौंदर्य प्रसाधन, न्यूट्रास्यूटिकल्स एवं फार्माकोलौजी के लिए उन के मूल्य की आवश्यकता पर जोर दिया गया.

एफपीओ को प्रोत्साहित कर के पहचानी गई विदेशी और कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए समर्पित समूहों का विकास और घाटे को कम करने एवं रिटर्न को अधिकतम करने के लिए मूल्यवर्धन के लिए पायलट पौधों के साथ प्रभावी डेटाबेस व एकीकृत बाजार विकसित करना.

डा. टी. जानकीराम, कुलपति, डा. वाईएसआर बागबानी विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे. इस के अलावा डा. बीएनएस मूर्ति, पूर्व बागबानी आयुक्त, भारत सरकार, सम्मानित अतिथि थे.

सेमिनार में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूके, इजराइल, मलयेशिया, मैक्सिको, कोरिया और जांबिया जैसे देशों के प्रतिनिधियों सहित कुल 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. प्रतिभागियों में 71 विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 24 राज्यों के लगभग 220 वैज्ञानिक, 160 छात्र और 40 आरए और एसआरएफ शामिल थे. सैमिनार में 150 किसानों और उद्यमियों ने भी हिस्सा लिया.

झींगा लार्वा फीड के उत्पादन के लिए साझेदारी

चेन्नई : भाकृअनुप- केंद्रीय खारा जल जीवपालन संस्थान (CIBA ), चेन्नई ने मेसर्स एमिटी एम्पिरिक टैक्नोलौजीज एलएलपी, कर्नाटक के साथ स्वदेशी झींगा लार्वा फीड के उत्पादन के लिए एक रणनीतिक गठबंधन बनाया. कार्यक्रम का आयोजन भाकृअनुप-सीबा की संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई द्वारा किया गया था.

सफल हैचरी संचालन के लिए गुणवत्तापूर्ण लार्वा फीड उत्पादन केंद्रीय तत्व हैं. भारत में उपयोग किया जाने वाला लार्वा फीड पूरी तरह से आयातित और महंगा है. इसलिए टिकाऊ जलीय कृषि के लिए झींगा उत्पादन अब लागत प्रभावी एवं स्वदेशी लार्वा फीड समय की मांग है.

पिछले 5 सालों में सीबा में केंद्रित अनुसंधान प्रयासों के परिणामस्वरूप सीबा श्रिम्प लारविप्लस का विकास हुआ. भारत सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप झींगा लार्वा फीड उत्पादन को बढ़ावा देना एक प्राथमिकता है.

भाकृअनुप-सीबा ने 6 नवंबर, 2023 को सीबा के निदेशक डा. कुलदीप के. लाल की उपस्थिति में स्वदेशी झींगा लार्वा फीड के निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

उन्होंने एक्वा फीड क्षेत्र में आर्थिक लाभ, नवाचार, विकास, स्थिरता और प्रतिस्पर्धात्मकता के महत्व पर जोर दिया, जिस का लक्ष्य अनुभव और अनुभवों को साझा कर के दीर्घकालिक और लाभकारी यात्रा के लक्ष्य को हासिल किया जाए.

एमिटी एम्पिरिक टैक्नोलौजीज के सीईओ मोहन रेड्डी ने अपने हैचरी और खेती के अनुभव को गिनाया और सीबा के झींगा लार्वा प्लस के साथ प्राप्त उत्साहजनक परीक्षण परिणामों को साझा किया. इस तकनीकों से हितधारकों को लाभ पहुंचाने और मौजूदा झींगा लार्वा फ़ीड के लिए एक आयात विकल्प बनाने के अपने इरादे को साझा किया.

रबी फसलों को पाले से बचाएं

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा  संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि दिसंबर से जनवरी माह में पाला पड़ने की संभावना अधिक होती है, जिस से फसलों को काफी नुकसान होता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि जिस दिन ठंड अधिक हो, शाम को हवा का चलना रुक जाए, रात में आकाश साफ हो व आर्द्रता प्रतिशत अधिक हो, तो उस रात पाला पड़ने की संभावना सब से अधिक होती है. दिन के समय सूरज की गरमी से धरती गरम हो जाती है, जमीन से यह गरमी विकिरण के द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है, जिस के कारण जमीन को गरमी नहीं मिल पाती है और रात में आसपास के वातावरण का तापमान कई बार जीरो डिगरी सैंटीग्रेड या इस से नीचे चला जाता है.

ऐसी दशा में ओस की बूंदें/जल वाष्प बिना द्रव रूप में बदले सीधे ही सूक्ष्म हिमकणों में बदल जाती हैं. इसे ही ‘पाला’ कहते हैं.

पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं के रिक्त स्थानों में उपलब्ध जलीय घोल ठोस बर्फ में बदल जाता है, जिस का घनत्व अधिक होने के कारण पौधों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और रंध्रावकाश नष्ट हो जाते हैं. इस के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, औक्सीजन, वाष्प उत्सर्जन व अन्य दैहिक क्रियाओं की विनिमय प्रक्रिया में बाधा पड़ती है, जिस से पौधा नष्ट हो जाता है.

उन्होंने यह भी कहा कि पाला पड़ने से पत्तियां व फूल मुरझा जाते हैं और झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं. फूल झड़  जाते हैं. उत्पादन अधिक प्रभावित होता है.

पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता, आम व अन्य नवरोपित फसलें अधिक प्रभावित होती हैं. पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इस की चपेट में आ जाती हैं.

पाले से बचाव के तरीके

* खेतों की मेंड़ों पर घासफूस जला कर धुआं करें. ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गरम हो जाता है. पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसान फसलों में सिंचाई करें. सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है.

* पाले के समय 2 लोग सुबह के समय एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़ कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें, जिस से फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

* यदि किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं, तो उस को घासफूस की टाटिया बना कर अथवा प्लास्टिक से ढकें. ध्यान रहे कि दक्षिणपूर्व भाग खुला रखें, ताकि सुबह और दोपहर में धूप मिलती रहे.

* पाले से दीर्घकालिक बचाव के लिए उत्तरपश्चिम मेंड़ पर और बीचबीच में उचित स्थान पर वायुरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम व जामुन आदि को लगाएं, तो सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.

* यदि किसान फसलों पर कुनकुने पानी का छिड़काव करते हैं, तो फसलें पाले से बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसानों को पाला पड़ने के दिनों में यूरिया की 20 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए अथवा थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा को 1,000 लिटर पानी में घोल कर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 80 फीसदी डब्लूडीजी की 40 ग्राम मात्रा को प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

* ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है और वह जमने नहीं पाता है. इस तरह फसलें पाले से बच जाती हैं.

* फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट औफ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर सकते हैं.

* फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर किसान अपने खेतों में छिड़काव करें.

* फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम व 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क करें या पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह के मोबाइल नंबर 9795160389 पर संपर्क करें.

एपीडा का लुलु हाइपरमार्केट के साथ तालमेल

नई दिल्ली: खाड़ी के सहयोगी देशों (जीसीसी) में कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने वैश्विक खुदरा बाजार की प्रमुख कंपनी लुलु हाइपरमार्केट एलएलसी के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.

नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड इंडिया फूड (डब्ल्यूआईएफ), 2023 में 3 नवंबर, 2023 को एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव और लुलु समूह के अध्यक्ष सहप्रबंध निदेशक यूसुफ अली एमए के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर ब्रांड इंडिया को बढ़ावा देना है.

इस समझौता ज्ञापन के साथ एपीडा पूरे जीसीसी में मोटे अनाजों (मिलेट्स) सहित भारतीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देगा, क्योंकि लुलु ग्रुप इंटरनेशनल (एलएलसी) की जीसीसी, मिस्र, भारत और सुदूर पूर्व में 247 लुलु स्टोर और 24 शापिंग मौल के साथ मौजूदगी है.

लुलु समूह मध्य पूर्व और एशिया में सब से तेजी से बढ़ती खुदरा श्रृंखला है.

Luluयह समझौता ज्ञापन लुलु हाइपरमार्केट रिटेल श्रृंखला के साथ एपीडा के निर्धारित उत्पादों के लिए प्रचारात्मक गतिविधियों की भी सुविधा प्रदान करेगा.

समझौता ज्ञापन के दस्तावेज के अनुसार, लुलु समूह अपने खुदरा दुकानों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की एपीडा की टोकरी में उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला को सक्रिय रूप से बढ़ावा देगा और प्रदर्शित करेगा.

एपीडा के उत्पादों को प्रमुखता से प्रदर्शित करने और उन की दृश्यता बढ़ाने के लिए लुलु समूह के स्टोर के भीतर एक समर्पित शेल्फ स्थान (विशेष खंड या गलियारे) आवंटित किए जाएंगे.

एपीडा और लुलु समूह संवादात्मक कार्यक्रमों, नमूनाकरण/चखने के अभियानों, मौसम के अनुसार फलसब्जियों के लिए विशिष्ट अभियानों, नए उत्पाद लौंगच और हिमालयी/उत्तरपूर्वी राज्यों से आने वाले उत्पादों, जैविक उत्पादों आदि के प्रचार के जरीए उपभोक्ताओं के साथ जुड़ेंगे.

एपीडा ने हिमालयी और उत्तरपूर्वी राज्यों की निर्यात संबंधी संभावनाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लुलु समूह के साथ अरुणाचल प्रदेश विपणन बोर्ड, जम्मू स्थित शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और मेघालय कृषि विपणन बोर्ड के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने में भी मदद की.

प्रचार संबंधी गतिविधियां गंतव्य देश में उपभोक्ताओं के लिए प्रजातीय, अनूठे और जीआई-टैग वाले कृषि उत्पादों के लाभों के बारे में जानकारी एवं जागरूकता का अधिकतम प्रसार करने में सक्षम होगी.

उत्पाद संबंधी पेशकशों को बेहतर बनाने के लिए उपभोक्ताओं से सक्रिय रूप से प्रतिक्रियाएं मांगी जाएंगी.

इस समझौता ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि एपीडा और लुलु समूह संयुक्त रूप से अपने स्टोरों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के जरीए कृषि उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बनाने के अवसरों का पता लगाने के लिए काम करेंगे, जिस से भारतीय कृषि उत्पादों की वैश्विक पहुंच और उपभोक्ताओं तक इस की सुलभता में विस्तार होगा.

एपीडा और लुलु समूह, दोनों संयुक्त रूप से विदेश में स्थित भारतीय मिशनों और संबंधित हितधारकों के सहयोग से क्रेताविक्रेता बैठक (बीएसएम), आर-बीएसएम/बी2बी बैठकें, व्यापार मेले/रोड शो जैसे निर्यातोन्मुखी प्रचार कार्यक्रमों की सुविधा प्रदान करेंगे.

इस समझौता ज्ञापन के दस्तावेज में यह कहा गया है कि लुलु समूह विभिन्न आयातक देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादों की लेबलिंग में अपनी सहायता प्रदान करेगा. साथ ही, इस में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष वाणिज्यिक मामलों और लागू शर्तों को पारस्परिक रूप से तय करेंगे.

27.50 रुपए प्रति किलोग्राम पर ‘भारत’ आटा

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, वस्त्र और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कर्तव्य पथ, नई दिल्ली से पिछले दिनों ‘भारत’ ब्रांड के अंतर्गत गेहूं के आटे की बिक्री के लिए 100 मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई. यह आटा 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम की एमआरपी पर उपलब्ध होगा.

यह भारत सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की श्रृंखला में नवीनतम है. ‘भारत’ ब्रांड आटा की खुदरा बिक्री से बाजार में किफायती दरों पर आपूर्ति बढ़ेगी और इस महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ की कीमतों में निरंतर कमी लाने में सहायता मिलेगी.

‘भारत’ आटा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के सभी फिजिकल और मोबाइल आउटलेट पर उपलब्ध होगा और इस का विस्तार अन्य सहकारी/खुदरा दुकानों तक किया जाएगा.

ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस (डी)) के अंतर्गत 2.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं 21.50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अर्धसरकारी और सहकारी संगठनों यानी केंद्रीय भंडार, एनसीसीएफ और नेफेड को आटा में परिवर्तित करने और इसे जनता को बेचने के लिए आवंटित किया गया है. ‘भारत आटा’ ब्रांड के अंतर्गत एमआरपी 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस अवसर पर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. पिछले दिनों टमाटर और प्याज की कीमतें कम करने के लिए अनेक कदम उठाए गए थे. इस के अतिरिक्त उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र द्वारा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से 60 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर ‘भारत दाल’ को भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों से किसानों को भी काफी फायदा हुआ है. किसानों की उपज केंद्र द्वारा खरीदी जा रही है और उस के बाद उपभोक्ताओं को रियायती दर पर उपलब्ध कराई जा रही है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से विभिन्न वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. प्रधानमंत्रीमोदी का विजन उपभोक्ताओं के साथसाथ किसानों की भी मदद करने का है.

भारत सरकार ने आवश्यक खाद्यान्नों की कीमतों को स्थिर करने के साथसाथ किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं.

भारत दाल (चना दाल) पहले से ही इन 3 एजेंसियों द्वारा अपने फिजीकल और/या खुदरा दुकानों से एक किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा रही है. प्याज भी 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचा जा रहा है.

अब, ‘भारत’ आटे की बिक्री प्रारंभ होने से उपभोक्ता इन दुकानों से आटा, दाल के साथसाथ प्याज भी उचित और किफायती मूल्यों पर प्राप्त कर सकते हैं.

भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेपों का उद्देश्य किसानों के साथसाथ उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंचाना है. भारत सरकार किसानों के लिए खाद्यान्न, दालों के साथसाथ मोटे अनाज और बाजरा का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करती है. पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) को लागू करने के लिए राष्ट्रव्यापी खरीद अभियान चलाया जाता है. यह किसानों को एमएसपी का लाभ सुनिश्चित करता है. आरएमएस 23-24 में 21.29 लाख किसानों से 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया. खरीदे गए गेहूं का कुल मूल्य 55679.73 करोड़ रुपए था. केएमएस 22-23 में 124.95 लाख किसानों से ग्रेड ‘ए’ धान के लिए घोषित एमएसपी 2060 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर 569 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा गया. खरीदे गए चावल का कुल मूल्य 1,74,376.66 करोड़ रुपये था.

खरीदा गया गेहूं और चावल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश में लगभग 5 लाख एफपीएस के नेटवर्क के माध्यम से लगभग 80 करोड़ पीडीएस लाभार्थियों को पूरी तरह से निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस के अलावा तकरीबन 7 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज/बाजरा भी एमएसपी पर खरीदा गया और 22-23 में टीपीडीएस/अन्य कल्याण योजनाओं के अंतर्गत वितरित किया गया.

टीपीडीएस के दायरे में नहीं आने वाले आम उपभोक्ताओं के लाभ के लिए अनेक उपाय किए गए हैं. किफायती और उचित मूल्य पर ‘भारत आटा’, ‘भारत दाल’ और टमाटर, प्याज की बिक्री एक ऐसा उपाय है. अब तक 59,183 मीट्रिक टन दाल की बिक्री हो चुकी है, जिस से आम उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत गेहूं की बिक्री के लिए राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक ई-नीलामी चला रहा है. इन साप्ताहिक ई-नीलामी में केवल गेहूं प्रोसैसर (आटा चक्की/रोलर आटा मिल) ही भाग ले सकते हैं.

एफसीआई सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य के अनुसार, एफएक्यू और यूआरएस गेहूं क्रमशः 2,150 रुपए और 2125 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिक्री के लिए पेशकश कर रहा है. व्यापारियों को ई-नीलामी में भाग लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि खरीदे गए गेहूं को सीधे संसाधित किया जाए और आम उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर जारी किया जाए. साप्ताहिक ई-नीलामी में प्रत्येक बोलीदाता 200 मीट्रिक टन तक ले सकता है.

एफसीआई ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 3 लाख मीट्रिक टन गेहूं दे रहा है. सरकारी निर्देशों के अनुसार, एफसीआई अब तक 65.22 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले बाजार में जारी कर चुका है.

भारत सरकार ने गेहूं की कीमतों को कम करने के लिए उठाए गए उपायों की श्रृंखला के हिस्से के रूप में ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत बिक्री के लिए पेश किए जाने वाले गेहूं की कुल मात्रा को दिसंबर, 2023 तक 57 लाख मीट्रिक टन के बजाय मार्च 2024 तक 101.5 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया है.

यदि आवश्यक हुआ, तो 31 मार्च, 2024 तक बफर स्टाक से 25 लाख मीट्रिक टन (101.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक) तक गेहूं की अतिरिक्त मात्रा उतारने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.

जमाखोरी पर लगाम

पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार ने जमाखोरी को रोकने के लिए थोक विक्रेताओं/व्यापारियों, प्रोसैसरों, खुदरा विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं जैसी विभिन्न श्रेणियों की संस्थाओं द्वारा गेहूं के स्टाक रखने पर भी सीमाएं लगा दी हैं. गेहूं के स्टाक होल्डिंग की नियमित आधार पर निगरानी की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापारियों, प्रोसैसरों और खुदरा विक्रेताओं द्वारा नियमित तौर पर गेहूं/आटा बाजार में जारी किया जाता है और कोई भंडारण/जमाखोरी नहीं होती है. यह कदम गेहूं की आपूर्ति बढ़ा कर उस की बाजार कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए उठाए गए हैं.

गैरबासमती चावल के निर्यात पर रोक

सरकार ने गैरबासमती चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और बासमती चावल के निर्यात के लिए 950 डालर का न्यूनतम मूल्य लगाया है. एफसीआई ओएमएसएस (डी) के तहत घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 4 लाख मीट्रिक टन चावल की पेशकश कर रहा है. सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों के अनुसार एफसीआई 29.00-29.73 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बिक्री के लिए प्रस्तुत कर रहा है.

गन्ना किसानों पर फोकस

सरकार ने गन्ना किसानों के साथसाथ घरेलू उपभोक्ताओं के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है. एक ओर किसानों को 1.09 लाख करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान के साथ पिछले चीनी सीजन का 96 फीसदी से अधिक गन्ने के बकाए का पहले ही भुगतान किया जा चुका है, जिस से चीनी क्षेत्र के इतिहास में सब से कम गन्ना बकाया लंबित है. वहीं दूसरी ओर विश्व में सब से सस्ती चीनी भारतीय उपभोक्ताओं को मिल रही है. जहां वैश्विक चीनी मूल्य एक वर्ष में लगभग 40 फीसदी बढ़कर 13 साल के उच्चतम स्तर को छू रहा है, वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में चीनी के खुदरा मूल्यों में सिर्फ 2 फीसदी की वृद्धि हुई है और पिछले एक वर्ष में 5 फीसदी से कम वृद्धि हुई है.

खाद्य तेलों पर भी नजर

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:

– कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. यह शुल्क संरचना 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दी गई है.

– 21 दिसंबर, 2021 को रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 32.5 फीसदी से घटा कर 17.5 फीसदी कर दिया गया और रिफाइंड पाम तेल पर बेसिक शुल्क 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है.

– सरकार ने उपलब्धता बनाए रखने के लिए रिफाइंड पाम तेल के खुले आयात को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है.

– सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहल में रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 15 जून, 2023 से 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है.

– कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले वर्ष से गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का असर घरेलू बाजार में पूरी तरह से हो. रिफाइंड सूरजमुखी तेल, रिफाइंड सोयाबीन तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में 2 नवंबर, 2023 तक एक वर्ष में क्रमशः 26.24 फीसदी, 18.28 फीसदी और 15.14 फीसदी की कमी आई है.

Bharat Attaउपभोक्ता मामले विभाग 34 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में स्थापित 545 मूल्य निगरानी केंद्रों के जरीए 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दैनिक खुदरा और थोक मूल्यों की निगरानी करता है. मूल्यों को कम करने के लिए बफर स्टाक जारी करने, जमाखोरी रोकने के लिए स्टाक सीमा लागू करने, आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाने, आयात कोटे में परिवर्तन, वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध आदि जैसे व्यापार नीति उपायों में परिवर्तन करने के लिए उचित निर्णय लेने के लिए मूल्यों की दैनिक रिपोर्ट और सांकेतिक मूल्य प्रवृत्तियों का विधिवत विश्लेषण किया जाता है.

उपभोक्ताओं को होने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए कृषिबागबानी वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता की जांच करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना की गई है. पीएसएफ के उद्देश्य हैं (i) फार्म गेट/मंडी पर किसानों/किसान संघों से सीधी खरीद को बढ़ावा देना; (ii) जमाखोरी और अनैतिक सट्टेबाजी को हतोत्साहित करने के लिए एक रणनीतिक बफर स्टाक बनाए रखना और (iii) स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज के माध्यम से उचित कीमतों पर ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति कर के उपभोक्ताओं की रक्षा करना. उपभोक्ता और किसान पीएसएफ के लाभार्थी हैं.

वर्ष 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना के बाद से आज तक सरकार ने कृषिबागबानी वस्तुओं की खरीद और वितरण के लिए कार्यशील पूंजी और अन्य आकस्मिक खर्च प्रदान करने के लिए 27,489.15 करोड़ रुपए की बजटीय सहायता प्रदान की है.

दालों का बफर स्टाक

वर्तमान में पीएसएफ के तहत दालों (तूर, उड़द, मूंग, मसूर और चना) और प्याज का गतिशील बफर स्टाक बनाए रखा जा रहा है. दालों और प्याज के बफर से स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज ने उपभोक्ताओं के लिए दालों और प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित की है और ऐसे बफर के लिए खरीद ने इन वस्तुओं के किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने में भी योगदान दिया है.

कम कीमत पर टमाटर

टमाटर की कीमतों में उतारचढ़ाव रोकने और इसे उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण निधि के तहत टमाटर की खरीद की थी और इसे उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर उपलब्ध कराया गया था.

राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों से टमाटर की खरीद की है और दिल्ली व एनसीआर, बिहार, राजस्थान आदि के प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों में सब्सिडी देने के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करा रहे हैं. टमाटरों को शुरुआत में खुदरा मूल्य 90 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, जिसे उपभोक्ताओं के लाभ के लिए क्रमिक रूप से घटा कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया है.

प्याज की कीमतों पर लगाम

प्याज की कीमतों में भी उतारचढ़ाव रोकने के लिए सरकार पीएसएफ के तहत प्याज बफर बनाए रखती है. बफर आकार को वर्ष दर वर्ष 2020-21 में 1.00 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर वर्ष 2022-23 में 2.50 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है. कीमतों को कम करने के लिए बफर से प्याज सितंबर से दिसंबर तक कम खपत वाले सीजन के दौरान प्रमुख खपत केंद्रों में एक कैलिब्रेटेड और लक्षित तरीके से जारी किया जाता है. वर्ष 2023-24 के लिए प्याज बफर लक्ष्य को और बढ़ा कर 5 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है.

जिन प्रमुख बाजारों में कीमतें बढ़ी हैं, वहां बफर से प्याज का निबटान शुरू हो गया है. 28 अक्तूबर, 2023 तक लगभग 1.88 लाख मीट्रिक टन निबटान के लिए गंतव्य बाजारों में भेजा गया है. इस के अलावा सरकार ने वर्ष 2023-24 के दौरान पीएसएफ बफर के लिए पहले से खरीदे गए 5 लाख मीट्रिक टन से अधिक 2 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का निर्णय लिया है. सरकार ने मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में आपूर्ति में सुधार के लिए 28 अक्तूबर, 2023 को प्याज पर 800 डालर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाया है.

दालों को रखा मुक्त श्रेणी में

दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2024 तक ‘मुक्त श्रेणी’ के तहत रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क शून्य कर दिया गया है. सुचारु और निर्बाध आयात की सुविधा के लिए तुअर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क हटा दिया गया है. वहीं जमाखोरी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत 31 दिसंबर, 2023 तक तुअर और उड़द पर स्टाक सीमा लगाई गई है.

कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग के स्टाक लगातार बाजार में जारी किए जाते हैं. कल्याणकारी योजनाओं के लिए राज्यों को चने की आपूर्ति 15 रुपए प्रति किलोग्राम की छूट पर भी की जाती है. इस के अलावा सरकार ने चना स्टाक को चना दाल में परिवर्तित कर के उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए 1 किलोग्राम के पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दर पर “भारत दाल” ब्रांड नाम के तहत खुदरा निबटान के लिए चना दाल में बदलने की व्यवस्था शुरू की.

‘भारत’ दाल का वितरण नेफेड, एनसीसीएफ, एचएसीए, केंद्रीय भंडार और सफल के खुदरा बिक्री केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है. इस व्यवस्था के तहत चना दाल राज्य सरकारों को उन की कल्याणकारी योजनाओं के तहत पुलिस, जेलों में आपूर्ति के लिए और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों और निगमों की खुदरा दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है.
भारत सरकार किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, अंत्योदय और प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए पीएमजीकेएवाई के तहत निशुल्क राशन (गेहूं, चावल और मोटे अनाज/बाजरा) और गेहूं, आटा, दाल और प्याज/टमाटर के साथसाथ चीनी और तेल की उचित और सस्ती दरों को सुनिश्चित कर के अपने किसानों, पीडीएस लाभार्थियों के साथसाथ सामान्य उपभोक्ताओं के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.