किसान कृषि विज्ञान केंद्रों का लाभ लें, कृषि उत्पादों के व्यापार से जुड़ें

पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चित्तौरगढ़ में अखिल मेवाड़ क्षेत्र जाट महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि किसान दाता है और उसे किसी की मदद का मोहताज नहीं होना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि किसान की आर्थिक व्यवस्था में जब उत्थान आता है, तो देश की व्यवस्था में उद्धार आता है. बाकी किसान दाता है, किसान को किसी की ओर नहीं देखना चाहिए,  क्योंकि किसान के सबल हाथों में राजनीतिक ताकत है, आर्थिक योग्यता है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि कुछ भी हो जाए, कितनी ही बाधाएं आएं, कोई भी रोड़ा बने, आज के दिन विकसित भारत की महायात्रा में किसान की भूमिका को कोई हताश नहीं कर सकता.

25 साल पहले हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यहां मैं 25 साल बाद आया हूं. 25 साल पहले इसी जगह पर सामाजिक न्याय की लड़ाई की शुरुआत की थी, जाट और कुछ जातियों को आरक्षण मिले. यह शुरुआत 1999 की थी, समाज के प्रमुख लोग उपस्थित थे, मैं भी उन में से एक था. हम ने इस पवित्र भूमि, देवनगरी, मेवाड़ के हरिद्वार में संरचना की, कार्यसिद्धि मिली और आज उस के नतीजे देश और राज्य की प्रशासनिक सेवाओं में मिल रहे हैं.

उन्होंने कहा कि उसी आधार पर, उसी सामाजिक न्याय पर, उसी आरक्षण पर जिन को लाभ मिला है, आज वे सरकार में प्रमुख पदों पर हैं. उन से मेरा आग्रह है कि पीछे मुड़ कर जरूर देखें और कभी नहीं भूलें कि इस समाज के सहयोग की वजह से हमें सामाजिक न्याय मिला. जब भी कोई आंदोलन होता है, खासतौर से आरक्षण से जुड़ा हुआ, तो लोग आतंकित हो जाते हैं, हिंसक हो जाते हैं और कई दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं. लेकिन इस पावन भूमि पर मेरा सिर गौरव से ऊंचा है, छाती चौड़ी है कि हमारा आंदोलन सामाजिक न्याय का दुनिया के लिए सब से बड़ी मिसाल है. कहीं कोई अव्यवस्था नहीं हुई, कहीं कोई हिंसा नहीं हुई.

किसानों से कृषि विज्ञान केंद्रों का लाभ लेने का आग्रह करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने   कहा कि किसान को मदद करने के लिए 730 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र हैं. उन को अकेला मत छोड़िए, वहां पर जाइए और उन से कहिए कि आप हमारी क्या सेवा करेंगे? नई तकनीकों की जानकारी लीजिए, सरकारी नीतियों की जानकारी लीजिए. तब आप को पता लगेगा कि सरकार ने आप के लिए खजाना खोल रखा है, जिस की जानकारी आप को नहीं है. सहकारिता क्या कर सकती है, आप को जानकारी नहीं है.

उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अगर महीने में 1-2 बार भी आप जाएंगे, एक तो जो लोग काम कर रहे हैं, उन की नींद खुलेगी, वे सक्रिय होंगे, उन को पता लगेगा कि अन्नदाता जाग गया है, अन्नदाता की सेवा करनी पड़ेगी, अन्नदाता हमारा लेखाजोखा ले रहा है और जब आप लेखाजोखा लेंगे, तो गुणात्मक सुधार आएगा.

किसानों से कृषि उत्पादों के व्यापार और मूल्य संवर्धन में अपनी भागीदारी बढ़ाने पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि किसान अपने उत्पाद की मूल्य वृद्धि क्यों नहीं कर रहा? अनेक व्यापार किसान के उत्पाद पर चालू हैं. आटा मिल, तेल मिल, अनगिनत हैं. हम सब को मिल कर करना चाहिए. किसान को पशुधन की ओर ध्यान देना चाहिए.

खुशी होती है कि जब डेयरी बढ़ती है, लेकिन इस में और ज्यादा उछाल आना चाहिए. हमें दूध तक नहीं सिमटा रहना है, दही, छाछ तक ही नहीं रहना है, बल्कि जितने उत्पाद दूध के बन सकते हैं, पनीर हो, चाहे आइसक्रीम हो या रसगुल्ला हो, किसान का योगदान उन सब में होना चाहिए.

युवाओं को कृषि व्यापार से जुड़ने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि मेरा आग्रह किसान से है, किसान के बेटेबेटी से है. दुनिया का सब से बड़ा व्यापार, बेशकीमती व्यापार कृषि उत्पादन का है. किसान अपने उत्पाद के व्यापार से क्यों नहीं जुड़ा हुआ है? किसान उस में क्यों नहीं भागीदारी ले रहा है? हमारे नौजवान प्रतिभाशाली हैं. ज्यादा से ज्यादा किसानों को सहकारिता का फायदा लेते हुए, अन्य व्यवसायों में, कृषि उत्पादन के व्यवसायों में अपनेआप को लगन से काम करते रहना चाहिए. आप लिख कर ले लीजिए कि इस के दूरगामी आर्थिक सकारात्मक नतीजे होंगे.

ई-नाम प्लेटफार्म पर 10 नई वस्तुओं को जोड़ा, संख्या 231 तक पहुंची

किसानों, व्यापारियों और अन्य हितधारकों की ओर से अधिक कृषि वस्तुओं को शामिल करने की निरंतर मांग को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ई-नाम के तहत व्यापार के दायरे को और बढ़ाने का फैसला किया है.

इस पहल का उद्देश्य कृषि वस्तुओं की कवरेज को बढ़ाना और किसानों व व्यापारियों को डिजिटल ट्रेडिंग प्लेटफार्म से लाभ उठाने के लिए अधिक अवसर प्रदान करना है, विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय (डीएमआई) ने 10 अतिरिक्त कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंड तैयार किए हैं.

ये नए वस्तु मापदंड राज्य की एजेंसियों, व्यापारियों, विषय विशेषज्ञों और एसएफएसी सहित प्रमुख हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनुमोदन के परिणामस्वरूप है.

डीएमआई को ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) प्लेटफार्म पर व्यापार की जाने वाली कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंडों को तैयार करने का काम सौंपा गया है. ये व्यापार योग्य मापदंड किसानों को कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और व्यावसायिकता सुनिश्चित कर के उन की उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. यह पहल पारदर्शिता बढ़ाती है, निष्पक्ष व्यापार कार्यप्रणालियों को सुविधाजनक बनाती है और कृषि क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान देती है.

डीएमआई ने 221 कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंड तैयार किए हैं, जो ई-नाम प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं और 10 अतिरिक्त वस्तुओं को शामिल करने से सूची में 231 वस्तुएं शामिल हो जाएंगी.

विविध वस्तुएं :

      1. तुलसी के सूखे पत्ते
      2. बेसन(चने का आटा)
      3. गेहूं का आटा
      4. चना सत्तू(भुने हुए चने का आटा)
      5. सिंघाड़े का आटा

मसाले :

      1. हींग
      2. सूखे मेथी के पत्ते

सब्जियां :

      1. सिंघाड़ा
      2. बेबीकौर्न

फल :

      1. ड्रैगन फ्रूट

नंबर 4 से 7 तक की वस्तुएं द्वितीयक व्यापार की श्रेणी में आती हैं और इस से एफपीओ को मूल्यवर्धित उत्पादों के विपणन के साथसाथ इस क्षेत्र में व्यापार को औपचारिक बनाने में मदद मिल सकती है.

ये नए स्वीकृत व्यापार योग्य मापदंड ई-नाम पोर्टल (enam.gov.in) पर उपलब्ध होंगे, जिस से कृषि वस्तुओं के डिजिटल व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए प्लेटफार्म की क्षमता और मजबूत होगी. यह कदम किसानों को बेहतर बाजार पहुंच, बेहतर मूल्य निर्धारण और बेहतर गुणवत्ता आश्वासन प्रदान करेगा, जिस से उन के आर्थिक कल्याण को बढ़ावा मिलेगा. इन अतिरिक्त व्यापार योग्य मापदंडों को तैयार किया जाना कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने, अधिक समावेशिता, दक्षता और बाजार पारदर्शिता सुनिश्चित करने के सरकार के जारी प्रयासों के अनुरूप है.

बागबानी फसलों (Horticulture Crops) में बढ़ रहा रिकौर्ड उत्पादन

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बागबानी फसलों के इन आंकड़ों को मंजूरी देने के साथ ही इन्हें जारी करते हुए बताया कि केंद्र सरकार द्वारा खेतीकिसानी के विकास के लिए निरंतर काम किया जा रहा है और कृषि मंत्रालय द्वारा अनेक योजनाओं के माध्यम से किसानों को निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस के फलस्वरूप बागबानी उत्पादन भी रिकौर्ड स्तर पर बढ़ रहा है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने विभिन्न बागबानी फसलों के क्षेत्र और उत्पादन के 2023-24 के अंतिम अनुमान और 2024-25 के प्रथम अग्रिम अनुमान जारी कर दिए हैं. वर्ष 2023-24 में देश में बागबानी उत्पादन 354.74 मिलियन टन एवं बागबानी क्षेत्र 29.09 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है. वर्ष 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 2.28 फीसदी (0.65 मिलियन हेक्टेयर) क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है.

इसी प्रकार देश में वर्ष 2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) में बागबानी उत्पादन लगभग 362.09 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2023-24 (अंतिम अनुमान) की तुलना में लगभग 73.42 लाख टन (2.07 फीसदी) अधिक है.

2023-24 (अंतिम अनुमानके मुख्य बिंदु :

  • वर्ष2023-24 में देश में बागबानी उत्पादन 354.74 मिलियन टन एवं बागबानी क्षेत्र 29.09 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है. वर्ष 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 2.28 फीसदी या 0.65 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है.
  • वर्ष2023-24 में फलों, सुगंधित एवं औषधीय पौधों, शहद, फूलों, बागान फसलों और मसालों के उत्पादन में वर्ष 2022-23 से वृद्धि देखी गई है.
  • वर्ष2023-24 में फलों का उत्पादन 1129.78 लाख टन रहने का अनुमान है, जिस का मुख्य कारण आम, केला, शरीफा, अंगूर और कटहल के उत्पादन में वृद्धि होना है.
  • सब्जियोंका उत्पादन 2072.08 लाख टन होने का अनुमान है. टमाटर, लौकी, गोभी, गाजर, टैपिओका, करेला और  खीरे के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.
  • साल 2023-24 में प्याज का उत्पादन 242.67 लाख टनहोने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 302.08 लाख टन था.
  • टमाटरका उत्पादन 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 4.40 फीसदी बढ़ कर 213.23 लाख टन होने का अनुमान है.
  • सुगंधितएवं औषधीय पौधों के उत्पादन में लगभग 19.44 फीसदी अर्थात 2022-23 में 6.08 लाख टन से बढ़ कर 2023-24 में 7.26 लाख टन तक की वृद्धि देखी गई है.
  • देशमें फूलों का उत्पादन साल 2022-23 में 30.97 लाख टन से बढ़ कर 2023-24 में 35.35 लाख टन होने का अनुमान है.
  • वर्ष2023-24 में बागान फसलों  का उत्पादन 176.66 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2022-23 में 170.49 लाख टन से अधिक है.
  • साल 2023-24 मेंमसालों का कुल उत्पादन लगभग 124.84 लाख टन होने का अनुमान है. जीरा, सौंफ, अदरक और लाल मिर्च (सूखी) के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.

2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) के मुख्य बिंदु :

  • देशमें वर्ष 2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) में बागबानी उत्पादन लगभग 362.09 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2023-24 (अंतिम अनुमान) की तुलना में लगभग 73.42 लाख टन (2.07 फीसदी) अधिक है.
  • फलों, सब्जियों, फूलोंऔर बागान फसलों के उत्पादन में वृद्धि की परिकल्पना की गई है.
  • वर्ष2024- 25 में फलों का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 2.48 लाख टन बढ़ कर 1132.26 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जिस का मुख्य कारण आम, अंगूर और केले के उत्पादन में वृद्धि होना है.
  • सब्जियोंका उत्पादन वर्ष 2023-24 के 2072.08 लाख टन से बढ़ कर 2024-25 में 2145.63 लाख टन होने की उम्मीद है. प्याज, आलू, टमाटर, हरी मिर्च, फूलगोभी और मटर में वृद्धि की उम्मीद है.
  • वर्ष2024-25 में प्याज का उत्पादन पिछले वर्ष लगभग  242.67 लाख टन की तुलना में लगभग  288.77 लाख टन होने की उम्मीद है, जो कि 46.10 लाख टन अधिक है.
  • आलूउत्पादन 595.72 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो गत वर्ष की तुलना में 25.19 लाख टन अधिक है.
  • टमाटरका उत्पादन पिछले वर्ष के लगभग  213.23 लाख टन की तुलना में लगभग 215.49 लाख टन होने की उम्मीद है, जो 1.06 फीसदी अधिक है.
  • बागानफसलों का उत्पादन 179.37 लाख टन होने का अनुमान है, जो 2023-24 में 176.66 लाख टन (लगभग 1.53 फीसदी) से अधिक है.
  • मसालोंका उत्पादन 119.96 लाख टन होने का अनुमान है. लहसुन व हलदी के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.

जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा, मिलती है माली मदद

सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ कर) में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है. पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) योजना लागू कर रही है. दोनों योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से ले कर प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, प्रमाणीकरण और विपणन और कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण तक एंड-टू-एंड समर्थन पर जोर देती है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 3 साल की अवधि के लिए प्रति हेक्टेयर 31,500 रुपए की सहायता प्रदान की जाती है. इस में से जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को औन-फार्म/औफ-फार्म जैविक इनपुट के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 3 साल की अवधि के लिए 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है.

जैविक उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए 2 प्रकार की जैविक प्रमाणन प्रणालियां विकसित की गई हैं, जो नीचे दी गई हैं:

  • निर्यात बाजार के विकास के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) योजना के अंतर्गत मान्यताप्राप्त प्रमाणन एजेंसी द्वारा तृतीय पक्ष प्रमाणन. एनपीओपी प्रमाणन योजना के अंतर्गत जैविक उत्पादों के लिए उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार और निर्यात आवश्यकताओं जैसे सभी चरणों में उत्पादन और संचालन गतिविधियों को कवर किया जाता है.
  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस-इंडिया) जिस में हितधारक (किसान/उत्पादक सहित) एकदूसरे के उत्पादन प्रथाओं का आकलन, निरीक्षण और सत्यापन कर के और सामूहिक रूप से उत्पाद को जैविक घोषित कर के पीजीएस-इंडिया प्रमाणन के संचालन के बारे में निर्णय लेने में शामिल होते हैं. पीजीएस-इंडिया प्रमाणन घरेलू बाजार की मांग को पूरा करने के लिए है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत एनपीओपी प्रमाणीकरण और पीजीएस-इंडिया प्रमाणीकरण के अंतर्गत कवर किया गया कुल बढ़ता हुआ राज्यवार जैविक क्षेत्र 59.74 लाख हेक्टेयर है, जो अनुलंग्नक-I में दिया गया है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत मूल्य संवर्धन, विपणन और प्रचार की सुविधा के लिए 3 वर्षों के लिए 4,500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है. किसानों के लिए पीकेवीवाई के अंतर्गत 3 वर्षों के लिए 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर और 7,500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से प्रमाणन और प्रशिक्षण व हैंडहोल्डिंग और क्षमता निर्माण के लिए सहायता प्रदान की जाती है, जबकि एमओवीसीडीएनईआर योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रमाणीकरण के लिए 3 वर्षों के लिए 10,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है.

बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य अपने क्षेत्र या अन्य राज्यों के प्रमुख बाजारों में सेमिनार, सम्मेलन, कार्यशालाएं, क्रेताविक्रेता बैठकें, प्रदर्शनियां, व्यापार मेले और जैविक उत्सव आयोजित करते हैं. सरकार ने किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को जैविक उत्पादों की सीधी बिक्री के लिए औनलाइन मार्केटिंग प्लेटफार्म के रूप में वैब पोर्टल- www.Jaivikkheti.in/ विकसित किया है, ताकि उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्ति में मदद मिल सके. जैविक खेती पोर्टल के अंतर्गत कुल 6.22 लाख किसान पंजीकृत हैं.

ई-नाम (E-NAM) प्लेटफार्म से मिल रही कृषि उपज की अच्छी कीमत

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. उन्होंने ई-नाम पोर्टल, एफपीओ और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी सहित किसान कल्याण की योजनाओं के संबंध में विस्तार से बताया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमारी  किसान कल्याण और कृषि का विकास उन की सर्वोच्च प्राथमिकता है. सरकार  किसानों के हित में लगातार काम कर रही है और नवाचार के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि  सरकार ने तय किया है कि उत्पादन की लागत पर कम से कम 50 फीसदी लाभ जोड़ कर ही एमएसपी तय की जाएगी. हम ने किसानों के लिए 6 सूत्रीय रणनीति बनाई है, जिस में उत्पादन बढ़ाना, लागत घटाना, नुकसान की भरपाई, फसलों के ठीक दाम, फसलों का विविधीकरण और प्राकृतिक खेती शामिल है, जिस से किसानों को बेहतर दाम और लाभ मिल सके.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ई-नाम मतलब राष्ट्रीय कृषि बाजार.  14 अप्रैल, 2016 को ई-नाम लौंच किया. ये एक औनलाइन ट्रैडिंग प्लेटफार्म है, जो किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करता है. किसान को केवल अपनी मंडी में ही अपना उत्पादन बेचना पड़ता था, बाकी जगह अगर मंडियों में दाम अच्छे होते थे, तो उस की जानकारी भी किसानों को नहीं होती थी.

ई-नाम ‘एक राष्ट्र एक बाजार’ की अवधारणा को ले कर कृषि उपज मंडियों को डिजिटल माध्यम से जोड़ता है, ताकि जहां किसान को उच्चतम मूल्य मिले, उच्चतम बोली लगे, वहां किसान अपनी फसल बेच पाए और इस से किसान को एक बाजार उपलब्ध हुआ है.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि ई-नाम प्लेटफार्म के तहत एक फार्मगेट मौड्यूल बनाया गया है, ताकि किसान अपनी उपज के फोटो को फार्मगेट से ही अपलोड कर सके. उपज को भौतिक रूप से लाने की आवश्यकता मंडी में नहीं है, बिना उपज को लाए ही ई-नाम पर बोली सुविधा का वह लाभ उठा सकता है.

ई-नाम मोबाइल एप के माध्यम से किसान अपनी उपज के ढेर को 360 डिगरी चारों दिशाओं से फोटो खींच कर पोर्टल पर डाल सकता है, जिसे खरीदार बोली लगाने से पहले देख सकते हैं कि वह कैसा है. ई-नाम एप के माध्यम से किसान अपनी उपज का डाटा बना कर अपने घर से ही अग्रिम पंजीकरण कर सकता है. यह बहुत बड़ी सुविधा किसानों के लिए खासी मददगार है.

उन्होंने आगे कहा कि छोटेछोटे किसान, जिन की उपज कम होती है, वह अपनी उपज के बेहतर दाम अकेले प्राप्त नहीं कर पाते हैं, उस के लिए छोटेछोटे किसानों को जोड़ कर एफपीओ (FPO) बनाया जा रहा है. अब तक 10 हजार से ज्यादा एफपीओ बनाए गए हैं. ये एफपीओ संगठित हो कर अपने आदान की व्यवस्था करते हैं, अपने सामान की मार्केटिंगब्रांडिंग कर सकते हैं. जब ये संगठित होते हैं, तो इन की उचित मूल्य प्राप्त करने की ताकत बढ़ जाती है और मुझे प्रसन्नता है कि कई एफपीओ किसानों के सशक्तीकरण का उदाहरण बन गए हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार इन एफपीओ की समीक्षा कर रहे हैं. मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि एफपीओ भी ई-नाम प्लेटफार्म पर अपने सामान को बेच सकते हैं. इस पोर्टल का लाभ उठाने के लिए उन को सारी जानकारी, अपनी उपज का 360 डिगरी फोटो डालना होता है और अब तक लगभग 31 दिसंबर, 2024 तक 4 हजार, 362 किसान उत्पादक संगठन ई-नाम से जुड़ चुके हैं और इस का लाभ उठा रहे हैं. इस के द्वारा कृषि उत्पाद की बिक्री में किसानों को औनलाइन पेमेंट भी प्राप्त होती है, जिस में एफपीओ भी शामिल हैं, औनलाइन रसीद की प्राप्ति करने में आसानी होती है.

कृषि विस्तार योजना (Agricultural Extension Scheme) से किसानों को लाभ

विस्तार परियोजना (वर्चुअली इंटीग्रेटेड सिस्टम टू एक्सेस एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज) का उद्देश्य प्लेटफार्मों पर विश्वसनीय, सत्यापित और नए संसाधनों को एकीकृत कर के कृषि के लिए एक एकीकृत, संघीय डिजिटल ईकोसिस्टम विकसित करना है.

यह किसान फीडबैक को शामिल करने के लिए दोतरफा संचार को सक्षम करते हुए डिजिटल समाधानों की मापनीयता, पहुंच और समावेशिता को बढ़ाने पर केंद्रित है. यह केंद्रराज्य सम्मलेन को बढ़ावा देने, हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने और आईसीएआर संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के प्रयासों के साथ मिलकर के,  कृषि विस्तार के लिए मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देता है.

इस का लक्ष्य किसानों को कार्यवाही योग्य जानकारी के साथ सशक्त बनाना, सहयोग को सुव्यवस्थित करना और डिजिटल कृषि विस्तार पहलों को लंबे समय तक सस्टेनेबल बनाए रखना हैं.

मौजूदा कृषि विस्तार प्रणाली का डिजिटीकरण और इस का दायरा काफी हद तक बढ़ाने और हर किसान को फसल उत्पादन, विपणन, मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और जलवायु स्मार्ट कृषि प्रथाओं, मौसम सलाह आदि पर उच्च गुणवत्ता वाली सलाहकार सेवाओं तक पहुंचाने का काम करता है. साथ ही, ये सलाहकार सेवाएं कृषि और उस से संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी सभी सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं जिस से किसानों को लाभ होता है.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि उन की तकनीकी और सामग्री समीक्षा समितियों को नेटवर्क पर लाया जा सके और छोटे पायलटों पर काम शुरू किया जा सके.वर्तमान में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग मौजूदा ‘विस्तार  परियोजना’ का  कार्यान्वयन कर रहा है.

विस्तार परियोजना  का उद्देश्य किसानों को नईनई जानकारी तक पहुंच प्रदान करने के लिए नेटवर्क के जरिए सभी पहलों और समाधानों के साथ एकीकरण करना है. इस में जमीनी स्तर पर तैनात एआई  सक्षम चैटबौट का लाभ उठाना और बाद में एग्रीस्टैक  के साथ एकीकरण शामिल है.

विस्तार परियोजना के प्रयासों में डिजिटल बौट्स पर एक्सटेंशन कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शामिल है. इसे वीडियो तैयार करने के कौशल को बढ़ाने और किसानों को चरणबद्ध तरीके से आगे प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, जमीनी स्तर पर आवश्यक जानकारी तक पहुंचने के लिए, उन्नत आईटी  उपकरणों को संभालने के लिए, फ्रंट लाइन एक्सटेंशन वर्कर्स को प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए, मौजूदा भागीदारी और नेटवर्क स्वयंसेवकों के माध्यम से और सरल बनाया जा सकता है.

उन्नत फसल विविधीकरण (Crop Diversification) पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 6 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत “सतत कृषि की क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्नत फसल विविधीकरण रणनीतियों” पर दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई.

कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सतत कृषि और फसल विविधीकरण के नवीन दृष्टिकोणों पर विचारविमर्श किया जाएगा. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और खाद्य सुरक्षा जैसी बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है. इस का मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को उन्नत ज्ञान और रणनीतियों से सुसज्जित करना है, ताकि वे फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान कर सकें.

कार्यक्रम में डा.अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने प्रशिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी दी. उन्होंने विविधीकृत फसल प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिस से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा, एकल फसल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही, उन्होंने फसल विविधीकरण में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों पर भी विस्तार से चर्चा करी.

इस कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में फसल विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने पारंपरिक कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश से कृषि प्रणालियों को अधिक सक्षम और लचीला बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. एचएल बैरवा, ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में फसल विविधीकरण पर चर्चा करी. डा. एचएल बैरवा ने किसानों को विभिन्न फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. उन्होंने फलोत्पादन के 10 आयाम बताए जिस से किसानों की आय व रोजगार में वृद्धि हो सके.

फसल विविधीकरण (Crop Diversification)

डा. लतिका व्यास, ने फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करी. उन्होंने अधिकारियों को उन्नत कृषि तकनीकों के प्रभावी स्थानांतरण की विभिन्न विधियों का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया, जिस से वे किसानों को नवाचारों और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें.

कार्यक्रम में उपस्थित मृदा वैज्ञानिक डा. सुभाष मीणा, ने कहा कि लगातार एक ही फसल उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिस से उत्पादकता प्रभावित होती है. साथ ही, उन्होंने फसल चक्र, मिश्रित फसल प्रणाली और जैविक खादों के उपयोग पर भी जोर दिया.

इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएगें, जिन में विस्तार अधिकारियों को जलवायु अनुकूलन,  मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, समेकित कृषि प्रणाली, नीतिगत ढांचे और सरकारी पहल व्याख्यान व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा.

फूलों की खेती (Flower Farming) आमदनी बढ़ाए

यदि किसी काम को करने की लगन और मेहनत का जज्बा हो तो व्यक्ति अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकता है. यह सिद्ध कर के दिखाया है नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा के किसान उमाशंकर कुशवाहा ने.

फूलों की खेती कर के उमाशंकर ने पूरी गाडरवारा तहसील में अपना नाम रोशन किया है. उमाशंकर ने परंपरागत खेती से हट कर अपनी आमदनी के जरीए बढ़ाए हैं. वे अपने खेतों में फूलों की खेती कर के कई किस्म के फूल उगाते हैं. फूलों के साथसाथ मालाएं और गुलदस्ते बना कर बेचते हैं. साथ ही शादीब्याह, जन्मदिन जैसे मौकों पर फूलों से पंडालों की सजावट भी कुशलता के साथ करते हैं.

गाडरवारा में शक्कर नदी के पार कौड़या रोड पर उमाशंकर का फार्महाउस है, जिस में उन के चारों भाइयों के परिवार रहते हैं. वे लोग सब्जीभाजी की खेती के अलावा फूलों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. उमाशंकर कुशवाहा बताते हैं कि उन के मामाजी भी सोहागपुर पिपरिया में फूलों की खेती करते थे. उन्हें देख कर ही उमाशंकर के मन में भी फूलों की खेती करने की चाहत हुई.

मुख्य रूप से गेंदा, नवरंगा और गैलार्डिया के फूलों की खेती करने वाले उमाशंकर का कहना है कि वे साल में 2 बार फूलों के बीज डाल कर फूलों की खेती करते हैं. वे जूनजुलाई में खेतों को अच्छी तरह से तैयार कर के गेंदे की पौध लगाते हैं.

देशी किस्म का गेंदा 90 से 100 दिनों में फूल देने लगता है, जबकि हाईब्रिड किस्म के गेंदे 50 से 60 दिनों में ही फूल देने लगते हैं. सितंबर से फरवरी तक गेंदे में अच्छी मात्रा में फूल निकलते हैं.

गरमी के मौसम में होने वाले फूलों नवरंगा और मांगरेट की बौनी किस्में अक्तूबर में बोई जाती हैं. फूलों के पौधों को रासायनिक खाद व उर्वरक के अलावा समयसमय पर कोराजन जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल भी करना पड़ता है.

नवरंगा की बोआई : नवरंगा फूल जिसे गैलार्डिया के नाम से भी जाना जाता है, को गरमी के फूलों का राजा कहा जाता है.

इसे बोने के लिए अक्तूबर में खेत की 2 बार जुताई के कर मिट्टी को भुरभुरी व समतल बना कर तकरीबन 3×1 मीटर की क्यारियां तैयार कर लेते हैं. क्यारियों में गोबर की सड़ी खाद डाल कर यूरिया, पोटाश और फास्फोरस भी डाला जाता है.

क्यारियों में अच्छी किस्म के फूल के बीज प्रति एकड़ 800 ग्राम से 1 किलोग्राम की मात्रा में 5 सेंटीमीटर गहरा बो देते हैं. बीज बोने के बाद ऊपर से सूखी घास डाल कर हलकी सिंचाई करते हैं.

क्यारियों में बीज बोने के 3 से 4 हफ्ते बाद खेत में लगाने के लिए पौध तैयार हो जाती है.

पौधों को शाम के समय लगाना अच्छा रहता है. हफ्ते में 2 से 3 दिन सिंचाई की जाती है. बीज बोने के 110 दिनों से 120 दिन में नवरंगा के फूल खिलने लगते हैं. इस में एक ही पौधे में बहुत सारे फूल लगते हैं.

कीटों की रोकथाम के लिए डायमेथियोट 30 ईसी दवा का छिड़काव समयसमय पर करते रहते हैं. फूलों की तोड़ाई का काम सुबह किया जाता है. फूलों पर पानी सींच कर उन्हें बांस की टोकरियों में पैक कर के बाहर भेजा जाता है. तोड़े गए फूलों को गीले कपड़े से ढक कर रखा जाता है. इन फूलों से आकर्षक गुलदस्ते और मालाएं बनाते हैं.

फूलों की खेती (Flower Farming)

5 लाख तक सालाना आमदनी : मौजूदा समय में उमाशंकर 1 एकड़ खेत में गेंदा, गुलाब, सेवंती वगैरह फूलों की खेती कर रहे हैं. फूल स्थानीय बाजारों में 30 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने के साथ ही आर्डर पर बाहर भी भेजे जाते हैं. उन के परिवार के सदस्य फूलों की माला तैयार करते हैं, जो 5 रुपए से ले कर 20 रुपए में बिकती हैं.

आम दिनों में रोजाना तकरीबन 500 रुपए तक फूलों की बिक्री से आमदनी होती है, जो खास मौकों पर बढ़ कर 2 हजार रुपए तक हो जाती है. कई बार मांग ज्यादा होने पर वे गुलाब के फूल 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से नागपुर से मंगा कर 150 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेच कर भी अतिरिक्त आमदनी कर लेते हैं.

1 एकड़ में की जा रही फूलों की खेती में साल भर में तकरीबन 1 लाख रुपए की लागत आती है और उस से उमाशंकर के परिवार को तकरीबन 5 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है.

शादीब्याह में होती है अच्छी आमदनी : शादीब्याह के दौरान उमाशंकर फूलों से मंडप सजाने का काम भी करते हैं. विवाह मंडप के साथ जयमाला स्टेज सजाने का काम कर के वे रोजाना 5 से 20 हजार रुपए तक कमा लेते हैं. वे गांव के युवकों को भी रोजगार देते हैं.

कई बार तो शादी के सीजन में 4-5 जगहों पर मंडप सजाने का काम मिल जाता है. गांव के 2-3 युवकों को उन्होंने मंडप सजाने के काम में माहिर बना दिया है. काम ज्यादा होने पर वे गांव के इन युवकों की मदद ले कर उन्हें भी आमदनी कराते हैं.

इसी तरह जन्मदिन पार्टी, शादी की सालगिरह जैसे कार्यक्रमों के साथसाथ उन्हें सुहागरात की सेज सजाने का काम भी मिलता है. राजनीतिक या सार्वजनिक समारोहों में भी उन्हें फूलों की मालाएं और गुलदस्ते सप्लाई करने का आर्डर मिलता रहता है.

30 वर्षीय उमाशंकर कुशवाहा ने अपनी सूझबूझ से खेती को फायदे वाला काम साबित किया है. उमाशंकर से फूलों की खेती के में उन के मोबाइल नंबर 982694273 पर बात कर के जानकारी हासिल की जा सकती है.

बजट 2025-26: किसानों के लिए कड़वी घुट्टी या लालीपौप

“अन्नदाता सुखी भव:!” यह वाक्य भारत में सरकारों का शाश्वत जुमला बन चुका है. लेकिन सच यह है कि किसान सुखी तभी तक है, जब तक वह चुनावी मंचों और घोषणापत्रों में ‘संपन्न’ दिखता है. जैसे ही बजट आता है, वह एक बार फिर कर्ज, सूखा, बेमौसम बारिश और फसलों के गिरते दामों की भूलभुलैया में धकेल दिया जाता है. वित्त वर्ष 2025-26 का बजट भी किसानों के लिए वही पुरानी कहानी दोहराता है— वादों का महल और हकीकत की झोंपड़ी.

सरकार ने कुल 47.66 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया. इस में रेलवे के लिए 3 लाख करोड़ और सड़क परिवहन के लिए 2.9 लाख करोड़ की सौगात दी गई. लेकिन देश के 61 फीसदी लोगों की रोजीरोटी चलाने वाले और 1.5 अरब आबादी को दोनों वक्त भोजन देने वाले कृषि क्षेत्र को मात्र 1.75 लाख करोड़ रुपए?

कहने को यह पिछले साल से 23 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है, लेकिन महंगाई और मुद्रास्फीति को देखते हुए यह वास्तव में बजट में कटौती ही है. किसानों को यह बजट वैसा ही महसूस होगा, जैसे किसी भूखे को अधजली रोटी का टुकड़ा पकड़ा कर कहा जाए, “लो, खूब जी भर के खाओ.”

किसानों के लिए लालीपौप ब्रांड स्कीमें

अब आते हैं उन “अद्भुत” घोषणाओं पर, जिन का ढोल पीट कर सरकार ने यह जताने की कोशिश की है कि किसानों की बल्लेबल्ले हो गई.

किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दी गई. वाह, अब किसानों के सिर पर कर्ज का बोझ और भी तेजी से बढ़ेगा यानी नया कर्ज लो, पुराना चुकाओ, ब्याज बढ़ाओ और फिर आत्मनिर्भरता का सपना देखो.

धनधान्य योजना में 100 जिलों के 1.7 करोड़ किसानों को जोड़ने की बात कही गई है. सोचने वाली बात यह है कि भारत में 797 जिले हैं (लगभग 800), लेकिन इस में सिर्फ 100 जिलों को ही शामिल किया गया है यानी अगर सबकुछ ठीकठाक भी चला, तब भी यह योजना पूरे देश में लागू होने में 8 साल लगा देगी. यह वैसा ही है, जैसे किसी बीमार व्यक्ति को कहा जाए, “अभी 100 लोगों का इलाज करेंगे, बाकी को इंतजार करना होगा.”

दालों में आत्मनिर्भरता के लिए 6 साल की योजना घोषित की गई है. अरहर, उड़द, मसूर पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. लेकिन इस योजना के लिए कितना बजट तय किया गया है, इस का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया. ऐसे में यह एक पोस्टडेटेड चेक की तरह है, जो किसानों के लिए कागज पर तो अच्छा दिखता है, लेकिन असल में काम आएगा या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं है.

नेफेड और एनसीसीएफ किसानों से दालें खरीदेंगे, ऐसा कहा गया है. पर इन संस्थाओं का इतिहास बताता है कि खरीदारी का खेल महज फाइलों में ही ज्यादा चलता है.

डेयरी और फिशरी सैक्टर के लिए 5 लाख रुपए तक का लोन यानी और कर्ज, और ब्याज, और सरकार का बढ़िया विज्ञापन. वैसे, यहां यह बताना भी जरूरी है कि देरी और फिशरी सैक्टर के लिए और भी कई ऋण योजनाएं पहले से ही चल रही हैं.

कपास के लिए 5 साल का मिशन चलाया जाएगा, जिस में उत्पादन और विपणन पर ध्यान रहेगा. लेकिन इस के लिए भी सरकार ने कितना बजट तय किया है, इस की कोई जानकारी नहीं दी गई यानी यह भी एक पोस्टडेटेड चेक ही है. पिछले अनुभवों को देखते हुए किसानों को यह मान कर चलना चाहिए कि इन चेक के बाउंस होने की पूरी संभावना है, जैसे कि ‘साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी’ करने का वादा भी एक जुमला ही साबित हुआ.

पीएम किसान सम्मान निधि : ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’

अब आते हैं उस योजना पर, जिस से हर किसान को बहुत उम्मीदें थीं. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि. संसद की स्थायी समिति ने इस योजना के तहत किसानों को सालाना 6,000 रुपए की जगह 12,000 रुपए देने की सिफारिश की थी. सरकार ने इस पर क्या किया, कुछ नहीं.

भला सोचिए, आज के जमाने में 6,000 रुपए सालभर में किसी किसान के लिए क्या कर सकते हैं? इतनी रकम में तो 12 लाख सालाना आय पर टैक्स छूट पाने वाला एक परिवार का शहर के किसी महंगे रेस्तरां में एक डिनर भर कर सकता है. लेकिन सरकार को लगता है कि किसान इतने में खुश हो जाएं, ताली बजाएं और सरकार की जयजयकार करें.

एक बात और, यह योजना पिछले चुनावों के ठीक पहले जब शुरू हुई थी, तो लगभग 13:50 करोड़ किसानों को इस से जोड़ा गया था, पर धीरेधीरे इस के लाभ लेने वाले किसानों की संख्या को काटछांट कर लगभग आधा कर दिया गया है.

कर्ज दो, कर्ज लो, पर किसानों की आय मत बढ़ाओ

इस बजट की सब से बड़ी विडंबना यह है कि यह किसानों को कर्ज लेने के लिए और ज्यादा प्रोत्साहित करता है, लेकिन उन की आय बढ़ाने का कोई ठोस उपाय नहीं करता. कर्ज के सहारे आत्मनिर्भरता का सपना दिखाना वैसा ही है, जैसे पानी में तैरना सिखाने के लिए किसी को बीच समुद्र में फेंक देना.

कर्ज बढ़ता जा रहा है, उत्पादन लागत बढ़ रही है, लेकिन किसानों की आय जस की तस है. सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. साल 2025 चल रहा है, किसान की आय दोगुनी तो नहीं हुई, हां, उस के कर्ज, समस्याएं और आत्महत्याएं जरूर दोगुनी हो गई हैं.

बजट या छलावा?

यह बजट किसानों के लिए “ऊंट के मुंह में जीरा” जैसा है. सरकार जितने भी बड़ेबड़े वादे करे, जब तक किसान को उस की उपज का सही दाम नहीं मिलेगा, उसे सरकारी योजनाओं की जटिलता से बाहर निकाल कर सीधे लाभ नहीं मिलेगा, तब तक इस तरह के बजट सिर्फ “आश्वासन की खेती” करते रहेंगे, जिस से केवल अफसरों और बिचौलियों की जेब भरेगी.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “सच्चा आर्थिक विकास वही है, जो उन लोगों को सशक्त करे, जो सब से ज्यादा वंचित हैं.”

लेकिन, यह बजट किसान को मजबूत नहीं, बल्कि कर्ज, सरकारी दांवपेंच और वादों के जाल में और फंसाने का ही काम करेगा. यह किसानों के लिए सुखद भविष्य का सपना दिखाने वाला, मगर हाथ में खाली कटोरा पकड़ा देने वाला बजट है.

किसान की थाली खाली, सरकार की माला जारी

तो कुलमिला कर यह बजट किसानों के लिए एक मृगतृष्णा है. घोषणाओं का मीठा पानी है, लेकिन जब किसान इसे पीने जाता है, तो हाथ कुछ नहीं लगता. सरकार को सच में किसानों की चिंता है या सिर्फ घोषणाओं की? यह सवाल अब हर किसान के मन में है.

बहरहाल, सरकार को चाहिए कि वह “कर्ज बांटो और वाहवाही लो” वाली नीति छोड़ कर ‘किसान को मजबूत बनाने के लिए उत्पादन की लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने हेतु ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ गारंटी कानून ले कर आए, वरना वह दिन दूर नहीं जब किसान, जिसे कभी देश की रीढ़ कहा जाता था, खुद को इस देश में बेगाना महसूस करने लगेगा.

थौमस पिकेटी का कहना है, “यदि संपत्ति और संसाधन कुछ हाथों में केंद्रित हो जाएं और आम जनता सशक्त न हो, तो अर्थव्यवस्था का विकास मात्र भ्रम होता है.”

तिलहन फसलों की उन्नत तकनीकी पर एकदिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम

उदयपुर : 29 जनवरी, 2025. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तिलहन पर फ्रंटलाइन डेमोंस्ट्रेशन के तहत एकदिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम का उद्देश्य फसल विविधीकरण में तिलहन फसलों को शामिल करने को प्रोत्साहित करते हुए किसानों की आय और कृषि स्थिरता को बढ़ाना था.

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने तिलहन फसलों के महत्व, कृषि प्रणाली में विविधता लाने और किसानों की आय बढ़ाने के तरीकों पर जोर दिया.

डा. जगदीश चौधरी, आर्चाय (कृषि विज्ञान) ने तिलहन आधारित खेती प्रणालियों के माध्यम से स्थायी कृषि विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने तिलहन आधारित फसल प्रणाली अपनाने के लाभों पर चर्चा की, जिस में मृदा स्वास्थ्य सुधार, संसाधनों का कुशल उपयोग और आर्थिक संवर्धन शामिल हैं.

डा. एचएल बैरवा, आर्चाय (उद्यानिकी) ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में तिलहन विषय पर चर्चा की. उन्होंने किसानों को तिलहन फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. वहीं डा. बीजी छिप्पा, सहआर्चाय (उद्यानिकी) ने तिलहन और उद्यानिकी फसलों के संयोजन से होने वाले लाभों और तकनीकी पहलुओं पर गहराई से चर्चा की.

सहायक आर्चाय डा. दीपक ने तिलहन फसलों में सूत्रकृमि (नेमाटोड) प्रबंधन पर व्याख्यान दिया. उन्होंने किसानों को तिलहन फसलों में होने वाले सूत्रकृमियों की पहचान, उन के प्रभाव और प्रभावी प्रबंधन तकनीकों पर विस्तृत जानकारी दी.

अंत में डा. हरि सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया और सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और आयोजन टीम को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया. उन्होने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों को तिलहन आधारित खेती प्रणालियों को अपनाने की दिशा में प्रेरित करने और उन की आय बढ़ाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने में सफल रहा.

इस कार्यक्रम में झाड़ोल और फलासिया से कुल 30 किसानों ने भाग लिया और प्रशिक्षण को अत्यंत लाभप्रद बताया. प्रतिभागियों ने इस ज्ञान को अपने खेतों में लागू करने का संकल्प लिया, ताकि फसल विविधीकरण के माध्यम से उन की कृषि आय और स्थिरता में सुधार हो सके.

कार्यक्रम में परियोजना से जुड़े प्रमुख अधिकारियों में रामजी लाल,  एकलिंग सिह, मदन लाल, एनएस झाला, गोपाल नाई और नरेंद्र यादव उपस्थित थे.