गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर किसानों को कराया पूसा संस्थान का भ्रमण

नई दिल्ली : 27 जनवरी, 2025  को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 500 किसानों ने भ्रमण किया. ये किसान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष अतिथि के तौर पर देशभर से राजधानी के गणतंत्र दिवस (Republic Day)  उत्सव में शामिल होने आए थे. ये किसान भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे किसान उत्पादक समूह, किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनाओं के लाभार्थी थे.

किसानों के दिल्ली आने का ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके और किसान कृषि की आधुनिकतम तकनीकों की जानकारी से लाभान्वित हो सकें, इस उद्देश्य को ध्यान में रख कर इस भ्रमण की योजना बनाई गई.

पूसा संस्थान के संपूर्ण अनुसंधान प्रक्षेत्र में ऐसे 16 क्लस्टर चिह्नित किए गए, जैसे संरक्षित खेती, ग्रीनहाउस एवं अलंकृत नर्सरी, सब्जी नर्सरी, टपक सिंचाई के अंतर्गत सब्जी उत्पादन, वर्टिकल खेती एवं हाइड्रोपोनिक्स, मशरूम इकाई, समन्वित खेती (सिंचित) मौडल, समन्वित खेती (वर्षा आधारित) मौडल, जल प्रौद्योगिकी केंद्र में जल संसाधन प्रबंधन के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियां, अधिक समय तक फसल प्रबंधन हेतु पूसा फार्म सनफ्रीज, सरसों प्रक्षेत्र, गेहूं पोषण प्रबंधन प्रक्षेत्र, उपसतही सिंचाई एवं फर्टिगेशन प्रक्षेत्र, मसूर और चना प्रक्षेत्र, पुष्प उद्यान, आम एवं किन्नू का बगीचा एवं उद्यमिता विकास में सक्षम पूसा एग्री कृषि हाट शामिल थे.

गणतंत्र दिवस (Republic Day)

सभी स्थानों में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों एवं तकनीकी अधिकारी मौजूद थे. उन्होंने संबंधित तकनीकों की जानकारी दी. पूसा संस्थान में भ्रमण करने आए किसानों में महिलाएं, बुजुर्ग, युवा, सभी तबके के किसान थे. उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ बढ़चढ़ कर चर्चा में हिस्सा लिया एवं तकनीकी सीखने में रुचि दिखाई.

इस अवसर पर संस्था एवीपीएल की ओर से अंजुल त्यागी व उन की टीम मौजूद थी. इन्होंने ड्रोन द्वारा खेत पर छिड़काव का जीवंत प्रदर्शन किया.

कार्यक्रम की योजना कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान के संयुक्त निदेशक डा. आरएन पडारिया ने बनाई. इस कार्यक्रम का सफल संचालन डा. एके सिंह, प्रभारी, कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थानांतरण केंद्र ने किया.

कार्यक्रम में पूसा संस्थान के अनेक कृषि विशेषज्ञ, वैज्ञानिक व तकनीकी अधिकारी विभिन्न क्लस्टरों में तकनीकी ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी साझा करने के लिए अनुसंधान प्रक्षेत्र में किसानों के साथ चर्चा के लिए उपलब्ध रहे.

बछड़े में डायरिया (Diarrhea) का प्रकोप

गोवत्स यानी गाय के बछड़े बचपन से ही स्वस्थ हों, तो भविष्य में उन का दूध उत्पादन बेहतर होता है. लेकिन उन के जीवन के पहले 3 हफ्ते में दस्त (डायरिया) एक सामान्य और गंभीर समस्या बन कर सामने आ सकती है. यदि इस समस्या पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यही उन के मरने का कारण बन सकती है. साल 2007 में यूएस डेयरी की एक रिपोर्ट में पाया गया कि 57 फीसदी वीनिंग गोवत्सों की मृत्यु दस्त के कारण हुई, जिन में अधिकांश गोवत्स 1 माह से छोटे थे.

दस्त होने के कई कारण हो सकते हैं. सही समय पर दूध न पिलाना, दूध का अत्यधिक ठंडा होना या ज्यादा मात्रा में देना, रहने की जगह का साफसुथरा न होना या फफूंद लगा चारा खिलाना, बछड़ों में दस्त के प्रमुख कारण हैं. इसके अलावा बछड़ों में दस्त अकसर एंटरोपैथोजेनिक ई.कोलाई नामक जीवाणु के कारण होता है. यह जीवाणु आंत से चिपक कर घाव पैदा करता है, जिस से आंत के एंजाइम की गतिविधि घट जाती है. इस वजह से भोजन का पाचन प्रभावित होता है और खनिज पदार्थ अवशोषित होने के बजाय मल के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं.

कुछ ई.कोलाई वेरोटोक्सिन का उत्पादन करते हैं, जिस से अधिक गंभीर स्थिति जैसे खूनी दस्त हो सकते हैं. 2 से 12 सप्ताह के बछड़ों में साल्मोनेला प्रजाति के जीवाणुओं के कारण दस्त आमतौर पर देखा जाता है. इस के अलावा कोरोना वायरस, रोटा वायरस जैसे वायरस और जियार्डिया, क्रिप्टोस्पोरिडियम पार्वम जैसे प्रोटोजोआ भी दस्त के सामान्य कारण हैं.

दस्त के लक्षणों को पहचानना महत्वपूर्ण है. बछड़े की धंसी हुई आंखें, तरल पदार्थों का सेवन कम होना, लेटना, हलका बुखार, ठंडी त्वचा और सुस्ती इस समस्या के संकेत हैं. यदि बछड़ा बारबार लेट रहा हो, खुद से खड़ा नहीं हो पा रहा हो और खींचने पर आंखों के पास की त्वचा वापस आने में 6 सेकंड से अधिक समय ले रही हो, तो तुरंत पशु चिकित्सक से परामर्श लें.

दस्त से बचाव के लिए गर्भावस्था के अंतिम 3 महीनों में गाय के पोषण का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि बछड़ा स्वस्थ और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ जन्म ले. बछड़े को जन्म के 2 से 6 घंटे के भीतर खीस पिलाना आवश्यक है. यदि बछड़ा डिस्टोकिया (कठिन प्रसव) से पैदा हुआ हो, तो उस के सिर और जीभ पर सूजन के कारण वह खीस को ठीक से नहीं पी पाएगा. ऐसे में बछड़े की विशेष देखभाल करनी चाहिए.

इस के अतिरिक्त बछड़े को बाहरी तनाव जैसे अधिक ठंड, बारिश, नमी, गरमी और प्रदूषण से बचाना चाहिए. समय पर टीकाकरण भी आवश्यक है, ताकि बछड़ा स्वस्थ रह सके.

यदि बछड़े को दस्त हो जाए, तो सब से पहले शरीर में पानी और इलैक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करना जरूरी है. इस के लिए हर दिन 2-4 लिटर इलैक्ट्रोलाइट घोल पिलाएं. घर पर ही इलैक्ट्रोलाइट घोल बनाने के लिए :

1 लिटर गरम पानी में 5 चम्मच ग्लूकोज, 1 चम्मच सोडा बाइकार्बोनेट और 1 चम्मच टेबल नमक मिलाएं. यानी चम्मच = 5 ग्राम लगभग.

नेबलोन आयुर्वेदिक पाउडर (10-20 ग्राम) को सादा पानी या चावल के मांड में मिला कर दिन में 2-3 बार पिलाएं. यदि स्थिति गंभीर हो, तो हर 6 घंटे पर दें. दस्त करने वाले आंतरिक परजीवियों से बचाव के लिए अलबेंडाजोल, औक्सीक्लोजानाइड और लेवामिसोल जैसे डीवार्मर्स समयसमय पर देना चाहिए. यदि आवश्यक हो तो पशु चिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक्स का उपयोग करें.

बछड़ों में दस्त की समस्या को समय पर पहचान कर उचित देखभाल और उपचार से इसे नियंत्रित किया जा सकता है.

ओडिशा में बढ़ेगा दूध उत्पादन

मयूरभंज : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बीते 13 जनवरी, 2025 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में डेयरी और पशुधन क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहलों की एक श्रृंखला का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग की अगुआई में इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर आजीविका को बढ़ाना, पशुधन उत्पादकता में सुधार करना और क्षेत्र में महत्वपूर्ण पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान करना है.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, केंद्रीय  शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री  जौर्ज कुरियन  और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी सहित कई व्यक्ति उपस्थित थे.

कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ के तहत मयूरभंज में ‘मवेशी प्रेरण’ कार्यक्रम का उद्घाटन किया. इस पहल में ओडिशा के मयूरभंज जिले में चुने गए लाभार्थियों को 3,000 उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले मवेशियों का वितरण किया गया. पशुपालन और डेयरी विभाग की ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ योजना के तहत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा मयूरभंज में 5 सालों में 37.45 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ उत्पादकता वृद्धि परियोजना कार्यान्वित की जा रही है.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य दूध उत्पादन को बढ़ाना, ग्रामीण आय को मजबूत करना और टिकाऊ पशुधन विधियों को बढ़ावा देना है. कार्यक्रम के हिस्से के रूप में गिफ्ट मिल्क प्रोग्राम भी शुरू किया गया. साथ ही, कुपोषण से निबटने और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए डिजाइन किए गए  इस कार्यक्रम में मयूरभंज जिले के लगभग 1,200 स्कूली बच्चों को विटामिन ए और डी से भरपूर 200 मिलीलिटर फ्लेवर्ड दूध प्रदान किया जाएगा.

इस पहल का वर्चुअल उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पोषण और शिक्षा पर ऐसे कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभाव पर भी ध्‍यान दिया और उम्मीद जताई कि इस तरह के प्रयास देशभर में इसी तरह के कार्यक्रमों के लिए एक मौडल के रूप में काम करेंगे. इस के अलावा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ओडिशा राज्य में दूध खरीद, प्रसंस्करण और विपणन को मजबूत करने के लिए एक बाजार सहायता कार्यक्रम शुरू किया.

इस पहल का उद्देश्य राज्य में दूध खरीद क्षमता को 5 लाख लिटर प्रतिदिन से बढ़ा कर 10 लाख लिटर प्रतिदिन करना है. यह कार्यक्रम किसानों के लिए बेहतर लाभ सुनिश्चित करने के लिए ब्रांडिंग और वितरण नैटवर्क बनाने पर केंद्रित है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने डेयरी क्षेत्र में दूरदर्शी नीतियों और अभिनव कार्यक्रमों के  माध्यम से बदलाव लाने में पशुपालन और डेयरी विभाग के प्रयासों की भी सराहना की. उन्होंने दूध उत्पादन में भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला, जो पिछले दशक में वैश्विक रुझानों को पार करते हुए 6 फीसदी सालाना दर से बढ़ा है.

राष्ट्रपति ने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने और डेयरी फार्मिंग में लाभ को बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान और उच्‍च गुणवत्तायुक्‍त वीर्य संवर्धन जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने भी ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ की सफलता पर जोर दिया, जिस ने देशी गोजातीय नस्लों की नस्ल सुधार और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने ग्रामीण आर्थिक विकास को गति देने और किसानों के लिए बाजार संपर्क में सुधार करते हुए महत्‍वपूर्ण डेयरी पहलों के लिए निरंतर समर्थन प्रदान करने के लिए पशुपालन व डेयरी विभाग और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के प्रयासों की भी सराहना की.

ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने कहा कि स्थायी ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने में पशुधन की महत्वपूर्ण भूमिका है. उन्होंने नवोन्मेषी और किसान केंद्रित कार्यक्रमों के माध्यम से डेयरी और पशुधन क्षेत्रों को आगे बढ़ाने के लिए राज्य की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

इस कार्यक्रम में ओडिशा के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री  गणेश राम सिंह खुंटिया, ओडिशा के पशु संसाधन विकास, मत्स्यपालन और एमएसएमई मंत्री  गोकुलानंद मल्लिक, पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय, पशुपालन और डेयरी विभाग की अतिरिक्त सचिव  वर्षा जोशी, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष मीनेश शाह, ओडिशा के मत्स्यपालन और पशु संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव सुरेश कुमार वशिष्ठ और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

पशुपालन में 40 योजनाओं का शुभारंभ : पशुपालकों को होगा मुनाफा

पुणे : पुणे के जीडी मदुलकर नाट्यगृह में 13 जनवरी, 2025 को उद्यमिता विकास सम्मेलन 2025, जिस का विषय था “उद्यमियों को सशक्त बनाना, पशुधन अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना” का आयोजन किया गया.

इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री  राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल और जौर्ज कुरियन के साथ किया.  इस अवसर पर महाराष्ट्र की पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री  पंकजा मुंडे भी मौजूद थीं.

इस सम्मेलन के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कुल 40 परियोजनाओं का शुभारंभ किया. इन में से 20 परियोजनाएं राष्ट्रीय पशुधन मिशन और 20 परियोजनाएं पशुपालन अवसंरचना विकास निधि के तहत शामिल हैं.

इस सम्मेलन में आए मंत्रियों ने प्रदर्शनी स्टालों का दौरा किया, उद्यमियों से बातचीत की और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्यों को सम्मानित किया गया. पशुपालन अवसंरचना विकास निधि के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु और उद्यमिता कार्यक्रम के लिए कर्नाटक, तेलंगाना और मध्य प्रदेश राज्यों को सम्मानित किया गया. साथ ही, कैनरा बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और एचडीएफसी जैसे बैंकों को इन योजनाओं के तहत क्रेडिट सहायता के लिए भी सम्मानित किया गया.

मंत्रियों ने पशुपालन अवसंरचना विकास निधि और राष्ट्रीय पशुधन मिशन लाभार्थियों की सफलता की कहानियों पर प्रकाश डालने वाले 2 संग्रहों का अनावरण किया. राष्ट्रीय पशुधन मिशन 2.0 का शुभारंभ किया और राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना के लिए एक निगरानी डैशबोर्ड भी लौंच किया गया.

इस के अतिरिक्त पशुपालन और डेयरी विभाग ने 14 जनवरी से 13 फरवरी, 2025 तक “पशुपालन और पशु कल्याण माह” घोषित किया, जिस के दौरान देशभर में जागरूकता अभियान और शैक्षिक गतिविधियां आयोजित की जाएंगी.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने पंकजा मुंडे और महाराष्ट्र सरकार को इस सम्मलेन की मेजबानी के लिए धन्यवाद किया. उन्होंने ग्रामीण आर्थिक विकास में पशुपालन की भूमिका, “एफएमडीमुक्त भारत”  को प्राप्त करने के लिए एफएमडी टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता और महाराष्ट्र सहित 9 एफएमडीमुक्त क्षेत्रों के बनाने पर जोर दिया.

उन्होंने  सरकारी उद्यमिता कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया और बैंकों से किसानों व महिला उद्यमियों का समर्थन करने के लिए लोन प्रक्रियाओं को आसान बनाने का निवेदन किया.

उन्होंने आगे बताया कि 24 जून, 2020 को ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज के तहत शुरू किया गया पशुपालन अवसंरचना विकास निधि 17,296 करोड़ रुपए की धनराशि के साथ  डेयरी प्रसंस्करण, मांस प्रसंस्करण, चारा उत्पादन और पशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में परियोजनाओं को बढ़ावा दे रहा है, जिसे अब अतिरिक्त वित्त पोषण और विस्तारित लाभों के साथ बढ़ाया गया है. अब तक 10,356.90 करोड़ रुपए की लागत वाली 362 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिस में 247.69 करोड़ रुपए ब्याज सब्सिडी जारी की गई है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने बताया कि साल 2021 में शुरू की गई पुनर्गठित राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना के तहत राष्ट्रीय पशुधन मिशन- उद्यमिता विकास कार्यक्रम गतिविधि मुरगीपालन, भेड़, बकरी, सूअर, ऊंट और अन्य पशुधन के साथसाथ चारा उत्पादन और ग्रेडिंग बुनियादी ढांचे में परियोजनाओं के लिए 50 फीसदी पूंजी सब्सिडी (50 लाख रुपए तक) प्रदान करती है. अब तक 2,182.52 करोड़ रुपए की कुल लागत वाली 3,010 परियोजनाओं को 1,005.87 करोड़ रुपए की सब्सिडी के साथ मंजूरी दी गई है. यह योजना आनुवंशिक विकास कार्यक्रम, चारा एवं खाद्य पहल और राज्य वर्गीकरण के आधार पर प्रीमियम सब्सिडी के साथ पशुधन बीमा भी प्रदान करती है.

महाराष्ट्र की पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री पंकजा मुंडे ने इस क्षेत्र के विकास, उत्पादकता वृद्धि के लिए उद्यमिता के महत्व पर जोर दिया और बैंकों से किसानों के लिए लोन प्रक्रिया को सरल बनाने का अनुरोध किया.

राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने पुणे की एक शैक्षणिक केंद्र के रूप में प्रशंसा की और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि  और राष्ट्रीय पशुधन मिशन के माध्यम से 15,000 से अधिक नौकरियों का सृजन होगा, इस की भी जानकारी दी.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने पारंपरिक प्रथाओं की तुलना में नवीन पशुपालन तकनीकों को अपनाने की वकालत की और सटीक पशुधन गणना और बेहतर प्रजनन प्रथाओं के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम की शुरुआत भारत सरकार की सचिव अलका उपाध्याय के भाषण से हुई, जिन्होंने पशुपालन को “उदयशील क्षेत्र” बताया, जिस में निवेश की अपार संभावनाएं हैं. उन्होंने लंपी स्किन डिजीज के लिए वैक्सीन बनाने के महाराष्ट्र के प्रयासों की सराहना की और निजी क्षेत्र के निवेश, प्रयोगशाला मान्यता और उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

इस सम्मलेन में गोसेवा आयोग के अध्यक्ष शेखर मुंदड़ा और कई सांसदों व परिषद के सदस्यों सहित कई प्रमुख व्यक्तियों ने भी भाग लिया. सम्मेलन में 2 तकनीकी सत्र हुए, ‘पशुधन क्षेत्र  विकास को गति देना: उद्यमिता, प्रसंस्करण और अवसर’ और ‘पशुधन क्षेत्र और लोन सुविधा में बैंकों और एमएसएमई की भूमिका’, जहां विशेषज्ञों ने निवेश और उद्यमिता के अवसरों पर चर्चा की.

पशुओं की वैक्सीन नवाचार (Innovation) पर हुआ सम्मेलन

हैदराबाद : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने इंडियन इम्यूनोलौजिकल्स लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से पिछले दिनों हैदराबाद में “महामारी की तैयारी और वैक्सीन नवाचार पर सम्मेलन” का आयोजन किया.

इस सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में नीति आयोग के सदस्य स्वास्थ्य प्रो. डा. विनोद के. पौल ने किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भविष्य की महामारियों से अच्छी तरीके से निबटने के लिए हमें पशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस में उभरती बीमारियों का शीघ्र पता लगाने और तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए नैदानिक सुविधाओं को बढ़ाना शामिल है. अगली पीढ़ी के पशु टीकों के विकास और उत्पादन के लिए उन्नत प्लेटफार्मों की स्थापना के महत्व पर भी उन्होंने जोर दिया, जो कि जूनोटिक रोगों के फैलाव को रोकने, पशु और इनसानी सेहत दोनों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इन महत्वपूर्ण घटकों को मजबूत करने के पीछे ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण के तहत एक लचीला स्वास्थ्य देखभाल ढांचा बनाने के बड़े लक्ष्य के साथ मिल कर चलना है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने कहा कि सरकार को बेहतर उत्पादकता के लिए पशु स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता है और अंतिम छोर तक डिलीवरी को प्रभावी बनाने के लिए आपूर्ति श्रंखला और कोल्ड चेन प्रणालियों में भी सुधार करने की जरूरत है.

पशुपालन आयुक्त डा. अभिजीत मित्रा ने पशुओं के लिए टीकों की सुरक्षा और पूर्वयोग्यता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया.

इस सम्मलेन का उद्देश्य ‘वन हेल्थ’ के विभिन्न पहलुओं की समझ को बढ़ावा देना था, जिस में टीकाकरण कार्यक्रमों को बढ़ाने, पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार, महामारी की तैयारी के लिए लचीली आपूर्ति श्रंखलाओं को बनाना, महामारी प्रतिक्रियाओं को मजबूत करना, रोग निगरानी को आगे बढ़ाना और टीका परीक्षण को सुव्यवस्थित करना, स्वास्थ्य सेवा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बढ़ावा देना, कोशिका और जीन थेरेपी टीकों और अनुमोदन के लिए नियामक मार्गों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल था.

इस कार्यक्रम में पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संयुक्त सचिव रमाशंकर सिन्हा, इंडियन इम्यूनोलौजिकल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डा. के. आनंद कुमार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के सदस्य सचिव डा. संजय शुक्ला, निवेदी के निदेशक डा. बीआर गुलाटी सहित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के विशेषज्ञ, वैक्सीन उद्योग, सीडीएससीओ आदि के सदस्य भी उपस्थित थे.

भारत : वैश्विक वैक्सीन हब

भारत को वैश्विक टीकाकरण केंद्र के रूप में जाना जाता है, जिस में 60 फीसदी  से अधिक टीके भारत में बनते हैं और 50 फीसदी  से अधिक टीका निर्माता हैदराबाद से टीकों का उत्पादन  करते हैं.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग, केंद्र सरकार से सौ फीसदी वित्तीय सहायता के साथ पशुधन में दुनिया का सब से बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम लागू कर रहा है, जिस में खुरपकामुंहपका रोग के 102 करोड़ टीकाकरण किए गए. वहीं ब्रुसेलोसिस के 4.23 करोड़ टीकाकरण किए गए.

दूसरी ओर, पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स यानी पीपीआर के 17.3 करोड़ टीकाकरण किए गए, क्लासिकल स्वाइन फीवर के 0.59 करोड़ टीकाकरण किए गए और लंपी स्किन डिजीज के 26.38 करोड़ टीकाकरण किए गए के लिए साझा पैटर्न शामिल हैं, जिस के तहत प्रत्येक पशु को भारत पशुधन यानी राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन में दर्ज एक विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त होती है, जो टीकाकरण कार्यक्रम पर नजर रखती है और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करती है. इस तरह के टीकाकरण कार्यक्रमों से देश में प्रमुख पशु रोगों की घटनाओं में काफी कमी आई है.

तिलतिल मरने को मजबूर किसान

देशभर के किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले 50 दिनों से भी अधिक समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए पंजाब और हरियाणा के शंभू और खनौरी बौर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हैं. उन की स्थिति अब अत्यंत गंभीर हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब सरकार से उन की सेहत को लेकर रिपोर्ट मांगी है. सरकार की चुप्पी और टालमटोल नीति के कारण किसान समुदाय में गहरी चिंता व्याप्त है कि अगर जगजीत डल्लेवाल कुछ हुआ तो किसान आंदोलन उग्र रूप ले सकता है. अगर ऐसा हुआ तो स्थिति कहीं अधिक खराब हो सकती है. पंजाब सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने जानकारी दी कि उन्हें नजदीक ही एक अस्थाई अस्पताल में शिफ्ट किया गया है. और केंद्र सरकार के साथ किसानों की बात भी चल रही है. जो भी हो, यह बहुत ही दुखद बात है कि किसानों को अपनी बात रखने के लिए उन्हें अपनी जान तक देनी पड़ रही है.

इस विकट स्थिति को लेकर अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डा. राजाराम त्रिपाठी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आज पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. डा. त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ ‘आईफा’ ने कहा कि “संवाद से समाधान निकलता है, लेकिन अब सबसे पहले डल्लेवाल के जीवन की रक्षा करना जरूरी है.

किसानों की आवाज को बारबार अनसुना करने से उन की पीड़ा हल नहीं होगी. यदि किसानों को उन का न्यायोचित अधिकार नहीं मिला तो यह देश के कृषि तंत्र के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा.”

उन्होंने याद दिलाया कि जब प्रधानमंत्री जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने स्वयं किसानों के हितों के लिए मुखर होकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के महत्व की वकालत की थी और आज वही किसान आप के भरोसे की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं.

मांगें सिर्फ किसानों की नहीं, देश की जरूरत हैं

देश के किसान न सिर्फ अपने परिवार बल्कि समूचे राष्ट्र को जीवनदायिनी अन्न उपलब्ध कराते हैं. उन के हितों की अनदेखी करना “ऊसर खेत में हरियाली की उम्मीद” करने जैसा है. एमएसपी की गारंटी न होने से किसानों को उन की उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता, जिस से कर्ज और आत्महत्या की समस्या और बढ़ जाती है.

डॉ. त्रिपाठी ने आगे कहा, “सरकार को चाहिए कि संवेदनशीलता का परिचय देते हुए तुरंत पहल करे. डल्लेवाल का जीवन बचाना और किसानों की न्यायोचित मांगों पर सकारात्मक कदम उठाना न केवल राजनीतिक बल्कि मानवीय जिम्मेदारी भी है. हमारी महासंघ की ओर से हर सहयोग के लिए हम तत्पर हैं.”

अंततः यह सुनिश्चित करना कि देश का किसान सम्मान के साथ जीवित रह सके, राष्ट्र के विकास की सबसे मजबूत नींव है.

कौशल विकास से ग्रामीण महिलाएं बनेंगी आत्मनिर्भर

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ग्राम पंचायत लोयरा की महिलाओं के लिए सुरक्षात्मक कपड़ों का डिजाइन व विकास और ग्राम ब्राह्मणों की हुंदर की महिलाओं के लिए अपशिष्ट फूलों का मूल्य संवर्धित उत्पादों में रूपांतरण पर 10 दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन 30 दिसंबर, 2024 से शुरू किया गया.

विगत 10 दिनों से प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाओं ने ब्लाउज, शर्ट, पैंट, कुरता, लहंगा, पेटीकोट, पटियाला सलवार इत्यादि कपड़ों के डिजाइन कर के कपड़े सिले. साथ ही, अपशिष्ट फूलों का उपयोग कर अगरबत्ती, धूपबत्ती, पौट पोरी, प्राकृतिक पौट, हर्बल हवन दीपक एवं खाद का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया.

कार्यक्रम का समापन 9 जनवरी, 2025 को किया गया, जिस में मुख्य अतिथि प्रो. अरविंद कुमार वर्मा, निदेशक अनुसंधान निदेशालय रहे. उन्होंने कहा कि एक महिला के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित होगा, सुदृढ़ होगा. ज्ञान से व्यक्ति में आत्मनिर्भरता आती है. हुनर चाहे सिलाई का हो या बच्चे पालने का, उस में महिलाओं का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसलिए महिला शिक्षा पर बल दिया जाता है एवं कृषि क्षेत्र में भी महिलाओं का योगदान होने से आर्थिक विकास निश्चित रूप से होता है. कृषि के साथसाथ अन्य विधाओं में कौशल विकास से महिलाएं जीविकोपार्जन करने में सक्षम होती हैं.

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि सरपंच प्रियंका सुथार ने बताया कि महाविद्यालय से समयसमय पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिस में  बीज वितरण, सिलाई, मूल्य संवर्धित उत्पाद, श्रम साध्य कृषि उपकरणों की जानकारी आदि महिलाओं में आत्मविश्वास जगाती हैं.

परियोजना समन्वयक डा. विशाखा बंसल ने बताया कि  भाकृअप के केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान, सीवा, भुवनेश्वर द्वारा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत इस वर्ष 100 ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न विषयों पर कौशल विकास करने का लक्ष्य था. इस के अंतर्गत न्यूट्री स्मार्ट विलेज लोयरा की 30 महिलाओं को, मदार की 20 महिलाओं को, ब्राह्मणों की हुंदर की 40 महिलाओं को एवं थूर की 28 महिलाओं को विभिन्न विधाओं में अब तक प्रशिक्षण दिया जा चुका है. साथ ही, विभिन्न शोध के परिणामों के आधार पर महिलाओं को समयसमय पर प्रशिक्षण दिया जाता है.

कार्यक्रम में प्रो. हेमू राठोड़, डा. विशाखा सिंह, डा. सुमित्रा मीणा उपस्थित रही. कार्यक्रम का संचालन डा. कुसुम शर्मा, यंग प्रोफेशनल द्वारा किया गया. कार्यक्रम में मुख्य भूमिका सिखाने वाले मास्टर ट्रेनर रवि मितवा और अनुष्का तिवारी की रही. परियोजना द्वारा विगत 10 दिवस में  70 ग्रामीण महिलाओं का कौशल विकास किया गया.

22 से 24 फरवरी तक लगेगा पूसा संस्थान, नई दिल्ली में कृषि मेला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित किया जाने वाला पूसा कृषि विज्ञान मेला इस वर्ष फरवरी 22-24, 2025 के दौरान संस्थान के मेला ग्राउंड में आयोजित किया जा रहा है. इस मेले का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” है. इस में विभिन्न कृषि कंपनियां, सरकारी व गैरसरकारी संस्थान, उद्यमी और प्रगतिशील किसान अपना स्टाल लगाएंगे. इस मेले में हर साल देश के विभिन्न भागों से 1 लाख से अधिक किसान, उद्यमी, राज्यों के अधिकारी, छात्र एवं अन्य उपयोक्ता भाग लेते हैं.

इस मेले के प्रमुख आकर्षणों में फसलों का जीवंत प्रदर्शन, फूलों और सब्जियों की संरक्षित खेती, गमलों में खेती, ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) खेती, मिट्टी एवं पानी की मुफ्त जांच, कट फ्लावर, विदेशी सब्जियों एवं उन्नत किस्म के फलों की प्रदर्शनी और विभिन्न भागीदारों द्वारा उच्च उपजशील बीजों/पौधों, कृषि प्रकाशनों की बिक्री और वैज्ञानिकों व किसानों की परस्पर चर्चा शामिल हैं.

इस अवसर पर किसानों को नवोन्मेषी एवं अध्येता सम्मान से सम्मानित किया जाएगा, जिस के लिए उन से आवेदन मांगे गए हैं. किसान अधिक से अधिक संख्या में इस सम्मान के लिए अपना आवेदन अतिशीघ्र भेजें. संबंधित विवरण पूसा संस्थान की वैबसाइट पर उपलब्ध है :

https://iari.res.in/en/krishi-vigyan-mela-2025.php.

कुलपति डा. कर्नाटक नई दिल्ली में मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित

नई दिल्ली : भारतीय कीट विज्ञान सोसाइटी ने 7 जनवरी, 2025 को नई दिल्ली में कीट विज्ञान में स्थापना दिवस समारोह और फ्रंटियर्स इन एंटोमोलौजी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित किया.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को पुरस्कार प्रदान करते हुए सोसाइटी के अध्यक्ष डा. वीवी राममूर्ति ने कीट विज्ञान शिक्षण, अनुसंधान व प्रसार में उन के आजीवन योगदान की सराहना की.

उल्लेखनीय है कि डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने 40 साल तक कृषि एवं कीट विज्ञान क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दी हैं. इन्हें मधुमक्खीपालन, चावलगेहूं और गन्ना पारिस्थितिकी तंत्र के कीट प्रबंधन और मृदा जैव प्रबंधन में विशेषज्ञता प्राप्त है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने तराई क्षेत्र में मधुमक्खी की एपिस मेलिफेरा प्रजाति स्थापित की और इस के पालन के लिए प्रबंधन पद्धतियां विकसित कीं, जिस से शहद, मोम और दूसरे शहद उत्पादों के उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि हुई है और परपरागण वाली फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने उत्तराखंड सरकार के कृषि पोर्टल का मधुमक्खीपालन भाग विकसित किया. डा. कर्नाटक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा साल 2021 का सर्वश्रेष्ठ कुलपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

पिछले कुछ सालों में डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिन में सोसाइटी फौर कम्युनिटी मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमेंट, नई दिल्ली द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, प्लांटिका एसोसिएशन औफ प्लांट साइंस रिसर्चर्स, देहरादून द्वारा डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षाविद सम्मान और सतत कृषि व संबद्ध विज्ञान के लिए वैश्विक अनुसंधान पहल पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान कीट विज्ञान अनुसंधान में उन के योगदान के लिए चौधरी हंसा सिंह पुरस्कार शामिल हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और राजस्थान के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन के लिए कई महत्वपूर्ण समितियों में नामित भी किया गया है.

किसानों को महज एक रुपए में मिलेगा पौधा

देश के किसानों के लिए सरकार द्वारा अनेक लाभकारी योजनाएं समयसमय पर आती रहती हैं, जिस का लाभ अनेक किसान और कृषि से जुड़े लोग उठाते रहे हैं. इन योजनाओं में चाहे कृषि यंत्र अनुदान योजना हो, पशुपालन योजना हो, सिंचाई योजना हो, अनेकों योजनाएं हैं, जिन का किसान लाभ उठा सकते हैं.

इसी कड़ी में अब किसानों के लिए कम कीमत में अनेक तरह के फलसब्जियों के पौधे उपलब्ध कराने की योजना आई है, ताकि किसानों को नाममात्र की कीमत पर पौधे मिल सकें.

किसानों के लिए सरकार की ओर से हाईटैक नर्सरियों को बनाया जा रहा है. इन नर्सियों से मात्र 1 रुपए में उन्नत किस्म के पौधे किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे. इस से उत्तर प्रदेश राज्य के किसानों को बहुत ही कम कीमत पर फलसब्जियों के पौधे प्राप्त हो सकेंगे, जिस से उन के फसल उत्पादन की लागत कम होने के साथ ही अधिक मुनाफा मिलेगा.

उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान विभाग की ओर से 2.16 करोड़ रुपए की लागत से 2 हाईटैक  नर्सरी का निर्माण कराया जा रहा है. इन नर्सरियों में फल व सब्जियों की उन्नत किस्मों के पौधे जल्दी ही किसानों को मिलने लगेंगे.

मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की सदर तहसील में एक करोड़ से अधिक लागत में एक हाईटैक नर्सरी तैयार हो गई है, जहां से कुछ ही दिनों में पौधे भी तैयार होने लगेंगे. इसी प्रकार महरौनी तहसील के अंतर्गत करीब एक एकड़ भूमि पर नर्सरी तैयार हो गई है. इस नर्सरी में भी किसानों के लिए सब्जीफल की पौध तैयार की जा रही है.

उद्यान विभाग की ओर से तैयार की गई नर्सरी  में उन्नत किस्मों के बीजों से प्याज, टमाटर, गोभी, लौकी, खीरा,  शिमला मिर्च, हरी मिर्च, बैगन आदि सब्जियों की तैयार पौध मिलेगी.

खास तकनीक से तैयार हो रही पौध

इन नर्सरियों में हाइड्रोलिक तकनीक इस्तेमाल कर के मौसम के अनुसार सब्जियों की पौध को तैयार किया जा रहा है. इस के लिए यहां पौलीहाउस के अंदर और आधुनिक तकनीक द्वारा पौध तैयार की जा रही है.

पौध तैयार करने में  कृषि यंत्रों की भी भूमिका है और  सीडलिंग तकनीक से पौध तैयार की जा रही है. इस के तहत किसानों की मांग को ध्यान में रख कर पौध तैयार की जा रही है.

उत्तर प्रदेश में फल व सब्जियों की खेती के लिए अनुदान:

प्रदेश में उद्यान विभाग की ओर से किसानों को सब्जी व मसाले की खेती पर सब्सिडी दी जाती है और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत साल 2024–25 में उत्तर प्रदेश के किसानों को सब्जियों की खेती के लिए अनुदान दिया जाता है.

उद्यान विभाग की ओर से इस योजना के तहत यहां के किसानों को एक हेक्टेयर में सब्जी की खेती के लिए 20,000 रुपए की सब्सिडी दी जाती है. एक किसान को एक एकड़ में खेती के लिए ही अनुदान का लाभ प्रदान किया जाता है. इस के अलावा मसाला फसलों की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 12,000 रुपए का अनुदान दिया जाता है.

इन फसलों पर अनुदान का लाभ लेने के लिए किसान को औनलाइन आवेदन करना होता है.

इस के अलावा उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए अनेक लाभदायक सरकारी योजनाएं हैं, जिन का लाभ किसान उठा रहे हैं.