’ग्रीन कान्हा रन का आयोजन’

उदयपुर: 19, नवंबर, 2023. जलवायु परिवर्तन के चलते दिनोंदिन आबोहवा में अनेक बदलाव आ रहे हैं, जिन के प्रति सजग रहना जरूरी है. इसी कड़ी में पर्यावरण की सुरक्षा और वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हार्टफुलनेस संस्थान की ओर से ग्रैन्यूल्स ग्रीन कान्हा रन का आयोजन पिछले दिनों फतेह सागर में आयोजित किया गया. इस रन का आयोजन कान्हा शांति वनम के साथ ही विश्व के अनेक देशों में आयोजित किया गया था.

उदयपुर केंद्र समन्वयक डा. राकेश दशोरा ने बताया कि सुबह 7.30 बजे फतेह सागर की पाल पर देवली छोर से 2 किलोमीटर की दौड़ का आयोजन किया गया.

ग्रैन्यूल्स ग्रीन कान्हा रन के यूथ समन्वयक दीपक मेनारिया ने बताया कि इस दौड़ में डा. राजेश भारद्वाज, एडिशनाल एसपी (विजिलेंस), उदयपुर, सलोनी खेमका सीईओ, नगरनिगम उदयपुर, पुनीत शर्मा, डायरेक्टर, प्लानिंग उदयपुर, डा. एचपी गुप्ता, शल्य चिकित्सक, डा. उमा ओझा, सेवानिवृत्त प्रो. आरएनटी, मधु मेहता, जोनल कार्डिनेटर हार्टफुलनेस, नरेश मेहता, प्रशिक्षक आशा शर्मा, महेश कुलघुडे, मोहन बोराणा, डा. सुबोध शर्मा पूर्व डीन मात्स्यिकी महाविद्यालय के साथ ही लगभग 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.

इस इवेंट की श्रेणियों में 2 किलोमीटर, 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर व 21 किलोमीटर की दूरी तय की गई, जिस में अलगअलग लोगों ने हिस्सा लिया.

’कृषि पीएचडी के लिए 6 दिसंबर तक आवेदन’

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिले के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि आवेदन की प्रक्रिया 6 दिसंबर, 2023 तक जारी रहेगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए आगे बताया कि पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला एंेट्रेंस टैस्ट में हासिल मैरिट के आधार पर होगा. औनलाइन आवेदन फार्म एवं प्रोस्पैक्टस विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध है.

उन्होंने यह भी कहा कि आवेदन करने से पहले और कांउसलिंग के समय आने से पूर्व उम्मीदवार प्रोस्पैक्टस 2023-24 में दिए गए दाखिला संबंधी सभी हिदायतों व नियमों को अच्छी तरह से पढ़ लें.

सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आवेदन की फीस 1,500 रुपए है, जबकि अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग)के उम्मीदवारों के लिए 375 रुपए होगी. इस के अलावा उपलब्ध सीटों की संख्या, महत्वपूर्ण तिथियां, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, दाखिला प्रक्रिया आदि संबंधी सभी जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध प्रोस्पैक्टस में मौजूद है.

उन्होंने उम्मीदवारों को दाखिला संबंधी नवीनतम जानकारियों के लिए विश्वविद्यालय की वैबसाइट  ींन.ंब.पद ंदक ंकउपेेपवदे.ींन.ंब. पद पर नियमित रूप से चेक करते रहने को कहा है.

पीएचडी प्रोग्राम में दाखिले की ये होगी प्रक्रिया

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में पीएचडी में दाखिला कौमन ऐंट्रेंस टैस्ट के आधार पर होगा. कृषि महाविद्यालय में एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स, एग्रोनोमी, इंटोमोलौजी, एग्रीकल्चरल ऐक्सटेंशन एजुकेशन, हार्टिकल्चर, नेमोटोलौजी, जैनेटिक्स ऐंड प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पेथोलौजी, सीड साइंस एवं टैक्नोलौजी, सौयल साइंस, वेजीटेबल साइंस, एग्री. मेटीयोरोलौजी, फोरैस्ट्री, एग्री बिजनैस मैनेजमेंट व बिजनैस मैनेजमेंट विषय शामिल हैं, जबकि मौलिक एवं मानविकी महाविद्यालय में कैमिस्ट्री, बायोकैमिस्ट्री, प्लांट फिजियोलौजी, एनवायरमेंटल साइंस, माइक्रोबायोलौजी, जूलौजी, सोशियोलौजी, स्टैटिक्स, फिजिक्स, मैथमैटिक्स व फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी विषयों में दाखिले होंगे.

इसी प्रकार बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय में मोलिक्यूलर बायोलौजी ऐंड बायोटैक्नोलौजी, बायोइनफर्मेटिक्स विषय शामिल होंगे. सामुदयिक विज्ञान महाविद्यालय में फूड्स %

मसूर की फसल को कीट व बीमारियों से बचाएं

माहू

मसूर में आमतौर पर माहू सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीड़ा है. यह कीट 45 से 50 दिन की अवस्था में पौधों का रस चूसता है, जिस से पौधे कमजोर हो जाते हैं. उपज में 25 से 30 फीसदी तक की कमी हो जाती है.

यह कीट पौधों का रस चूसने के साथसाथ अपने उदर से एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ता है, जिस से पत्तियों पर काले रंग की फफूंद पैदा हो जाती है. साथ ही, पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है.

प्रबंधन

* फसल की बोआई समय से करने से इस का प्रकोप कम होता है.

* फसल में नाइट्रोजन का ज्यादा इस्तेमाल न करें.

* माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.

* परभक्षी कौक्सीनेलिड्स या सिरफिड या फिर क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000-10,0000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.

* नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लिटर नीम का तेल 100 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* इंडोपथोरा व वरर्टिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोगकारक कवक) का माहू का प्रकोप होने पर छिड़काव करें.

* जरूरी होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल/0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर, थियोमेथोक्सम 25 डब्लूजी/1-1.5 ग्राम प्रति लिटर या मेटासिस्टौक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

कर्तन कीट (एग्रोटिस एप्सिलान)

यह कीट मसूर के अलावा सोलेनियसी परिवार के पौधों और कपास व दलहनी फसलों पर भी हमला करता है. यह रात के वातावरण में निकल कर नर व मादा संभोग कर के पत्तियों पर अंडे देते हैं. इन की जीवनचक्र क्रिया वातावरण के हिसाब से 1-2 महीने में पूरी होती है. इस की सूंड़ी जमीन में मसूर के पौधे के पास मिलती है और जमीन की सतह से पौधे और इस की शाखाओं के 30-35 दिन की फसल में काटती है.

प्रबंधन

* खेतों के पास प्रकाश प्रपंच 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर प्रौढ़ कीटों को आकर्षित कर के नष्ट किया जा सकता है, जिस की वजह से इस की संख्या को कम किया जा सकता है.

* खेतों के बीचबीच में घासफूस के छोटेछोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए. रात में जब सूंडि़यां खाने को निकलती हैं, तो बाद में इन्हीं में छिपेंगी, जिन्हें घास हटाने पर आसानी से नष्ट किया जा सकता है.

* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

सैमीलूपर (प्लूसिया ओरिचेल्सिया)

इस कीट की सूंडि़यां हरे रंग की होती हैं, जो पीठ को ऊपर उठा कर यानी अर्धलूप बनाती हुई चलती हैं, इसलिए इसे सैमीलूपर कहा जाता है. यह पत्तियों को कुतर कर खाती है.

एक मादा अपने जीवनकाल में 400-500 तक अंडे देती है. अंडों से 6-7 दिन में सूंडि़यां निकलती हैं जो 30-40 दिन तक सक्रिय रह कर पूर्ण विकसित हो जाती हैं.

पूर्ण विकसित सूंडि़यां पत्तियों को लपेट कर उन्हीं के अंदर प्यूपा बनाती हैं, जिन से 1-2 हफ्ते बाद सुनहरे रंग का पतंगा बाहर निकलता है.

प्रबंधन

* खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए और रोग व कीट प्रतिरोधी जातियों की बोआई करनी चाहिए.

* बीज को कीटनाशी व फफूंदनाशकों से उपचार कर लेना चाहिए.

* खेत में 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.

* खेत में परजीवी पक्षियों के बैठने के लिए 10 ठिकाने प्रति हेक्टेयर के अनुसार लगाएं.

* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

बीमारियों की रोकथाम

उकठा

यह भूमिजनित बीमारी है. बोआई के 20 से 25 दिन के बाद इस बीमारी के प्रकोप से पौधे पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं. पौधों का ऊपरी भाग एक तरफ  ?ाक जाता है और अंत में मुर?ा कर पौधा मर जाता है.

उकठा बीमारी से बचाने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए. साथ ही, पुरानी फसलों के अवशेषों को मिट्टी में दबा देना चाहिए. खेतों के आसपास सफाई रखें.

रोकथाम

* उकठा बीमारी की रोकथाम के लिए सदैव रोगरोधी प्रजातियों की बोआई करनी चाहिए. जिन क्षेत्रों में यह बीमारी बारबार आती हो, वहां पर 3 से 4 वर्षा तक मसूर की फसल नहीं लेनी चाहिए.

* इस के अलावा बीजों को बोने से पहले थाइरम नामक फफूंदीनाशक से उपचारित करना लाभकारी पाया गया है.

* आजकल उकठा बीमारी के नियंत्रण के लिए पर्यावरण हितैषी ट्राइकोडर्मा नाम फफूंद का प्रयोग भी लाभकारी सिद्ध हो रहा है, जो नियंत्रण के रूप में विभिन्न मृदाजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए उपयोगी है.

रतुआ

इस बीमारी में फरवरी या इस के बाद तनों व पत्तियों पर गुलाबी से भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जो बाद में काले पड़ने लगते हैं.

रोकथाम

* इस की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों जैसे पंत एल-236, पंत एल-406 व नरेंद्र मसूर-1 का प्रयोग करना चाहिए.

* कटाई के उपरांत रोगग्रसित पौधों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए.

* इस के अतिरिक्त बीमारी का अधिक प्रकोप होने पर डाइथेन एम-45 का 0.2 फीसदी घोल का 12 से 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें.

चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)

आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण फसल बोआई के 80 से 90 दिन बाद पत्तियों की निचली सतह पर छोटेछोटे सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में सफेद चूर्ण के रूप में पूरी पत्ती, तने और फलियों पर फैल जाते हैं. ज्यादा संक्रमण की हालत में पौधों में हरे रंग की कमी क्लोरोसिस हो जाती है.

रोकथाम

*  रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

* मसूर की रोगरोधी किस्मों को चुनें.

* गंधक 20 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से संक्रमित खेत में बिखेर कर इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है.

* कुछ सल्फरयुक्त पदार्थ जैसे सल्फेक्स या एक्सेसाल 0.3 फीसदी छिड़काव करने से भी बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.

कटाई एवं मड़ाई

जब 70 से 80 फीसदी फलियां भूरे रंग की हो जाएं और पौधा पीला पड़ जाए, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए.

हाइड्रोलिक रिवर्सिबल प्लाऊ आखिर है क्या?

यह जुताई का एक ऐसा खास उपकरण है जिस में ऊपर और नीचे की तरफ 2 या 3 हल जैसे नुकीले आकार की रौड लगी होती है जो जमीन में 1 से 1.5 फुट की गहराई तक जुताई कर मिट्टी को पलट देता है. यह हाइड्रोलक सिस्टम से नियंत्रित होता है.

रोटावेटर के लाभ

* इस में लगे हुए नुकीले हल मिट्टी की जुताई करते हैं और ब्लेडनुमा रौड मिट्टी को पलटने का काम करती है, जिस से कठोर परत टूट जाती है.

* मिट्टी नरम होने की वजह से फसलों और पौधों की जड़ों को बिना किसी रुकावट के प्रसार करने में मदद मिलती है और वे बेहतर विकास और उपज देती है.

* ऐसा करने से मिट्टी की जड़ों तक औक्सीजन आसानी से पहुंचती है, जो फसलों और पौधों के लिए बहुत जरूरी है. इस वजह से फसल की बढ़वार और पैदावार अच्छी होती है.

* जमीन में उगे खरपतवार और दूसरे वनस्पति को उखाड़ कर जमीन में मिला देता है जिस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है और उपज अच्छी होती है.

* खेत में एक बार ही रिवर्सिबल प्लाऊ से जुताई करने से जमीन की पानी ग्रहण करने की कूवत बढ़ जाती है.

* मिट्टी पलटने से खरपतवारों के बीज जमीन की गहराई में दब जाते हैं, जिस से उन का अंकुरण कम होता है और खरपतवार नियंत्रण में कारगर है.

* यह मशीन पिछली फसल कटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उन्हें जड़ से खोद कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देती है.

* ये खेत में नाली नहीं बनाता क्योंकि खुद ही ट्रैक्टर के साथ बदल जाता है और दूसरी तरफ से बनी हुई नाली में मिट्टी डाल देता है जिस से मिट्टी का कटाव नहीं होता.

इस का रखरखाव कैसे करें

* इस्तेमाल करने से पहले तय यह कर लें कि उपकरण पूरी तरह से सही है.

* इस्तेमाल के बाद उपकरण छायादार जगह पर रखें.

* बेरिंगों में ग्रीस या मौबिल औयल का इस्तेमाल करते रहें.

हाइड्रोलिक रिवर्सिबल प्लाऊ पर सरकार कितना अनुदान देगी : इस की अनुमानित कीमत 50,000 से 1,40,000 रुपए तक है. इस में सरकार आप को एनएफएसएम योजना के तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति लघु सीमांत और महिला किसानों के लिए इकाई लागत का 50 फीसदी और सामान्य किसानों के लिए 40 (20 हौर्सपावर से कम ट्रैक्टर पर 20,000 और 16,000 रुपए) 20 से 35 हौर्सपावर तक के ट्रैक्टर पर 70,000 रुपए और 56,000 रुपए अधिकतम अनुदान देती है.

अनुदान के लिए कागजात

* आवेदन पात्र मय लाभार्थी के पासपोर्ट साइज का प्रमाणित फोटो.

* जमीन की जमाबंदी या पासबुक.

* मशीन का क्रय बिल या प्रोफार्मा इनवोइस और अधिकृत विक्रेता का प्रमाणपत्र.

* यंत्र का प्रमाणित फोटो लाभार्थी के साथ.

* शपथपत्र या अंडरटेकिंग.

* ट्रैक्टर के कागजातों की प्रतिलिपि.

अलगअलग राज्यों में अनुदान अलग हो सकता है. यह योजना ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर है. योजना का फायदा लेने के लिए क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक/सहायक कृषि अधिकारी/सहायक निदेशक, कृषि अधिकारी से संपर्क करें.

सेहत के लिए सहजन

सब्जी की दुकान पर आप ने लंबी हरी सहजन की फलियां तो देखी होंगी, सुरजने की फली या कुछ इलाकों में मुनगे की फली भी कहा जाता है. सहजन की यह फली केवल बढि़या स्वाद ही नहीं, बल्कि सेहत और सौंदर्य के बेहतरीन गुणों से भी भरपूर है.

सहजन में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है, इसलिए त्वचा पर होने वाली कोई समस्या या त्वचा रोग में यह बेहद लाभदायक है. सहजन का सूप खून की सफाई करने में मददगार है. खून साफ होने की वजह से चेहरे पर भी निखार आता है. इस की कोमल पत्तियों और फूलों को सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आप को त्वचा की समस्याओं से दूर रख जवां बनाए रहने में मददगार है.

महिलाओं के लिए तो सहजन का सेवन बहुत फायदेमंद होता है. यह पीरियड्स संबंधी परेशानियों के अलावा गर्भाशय की समस्याओं से भी बचाए रखता है.

इस में जरा भी शक नहीं है कि सहजन आप की सैक्स पावर को बढ़ाने में मदद करता है. इस मामले में यह महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए फायदेमंद है. गर्भावस्था के दौरान इस का सेवन मां और बच्चा दोनों के लिए फायदेमंद होता है. गर्भावस्था में इस का सेवन करते रहने से शिशु के जन्म के समय आने वाली समस्याओं से भी बचा जा सकता है.

बचपन में नानीदादी सहजन की सब्जी, सूप वगैरह कितने चाव से बनातीखिलाती थीं. हम सहजन के टुकड़ों को दाल में, सांभर में, सब्जी या गोश्त के साथ कैसे मजे ले कर चूसचूस कर खाते थे.

दक्षिण भारतीय लोग तो अपने खाने में ज्यादातर सहजन का इस्तेमाल करते हैं, चाहे सांभर हो, रस्म हो या मिक्स वेज. दरअसल, हमारे बुजुर्ग जानते हैं कि सहजन में कई तरह के रोगों को दूर करने की कूवत है. सर्दीखांसी, गले की खराश और छाती में बलगम जम जाने पर सहजन खाना बहुत फायदेमंद होता है.

सर्दी लग जाने पर तो मां सहजन का सूप पिलाती थीं. सहजन में विटामिन सी, बीटा कैरोटीन, प्रोटीन और कई प्रकार के लवण पाए जाते हैं. ये सभी तत्त्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और शरीर के पूरे विकास के लिए बहुत जरूरी है.

सहजन में विटामिन सी का लैवल काफी उच्च होता है जो आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर कई बीमारियों से आप की हिफाजत करता है. बहुत ज्यादा सर्दी होने पर सहजन फायदेमंद है. इसे पानी में उबाल कर उस पानी की भांप लेना बंद नाक को खोलता है और सीने की जकड़न को कम करने में मदद करता है, वहीं अस्थमा की शिकायत होने पर सहजन का सूप पीना फायदेमंद होता है. सहजन का सूप पाचन तंत्र को मजबूत बनाने का काम करता है और इस में मौजूद फाइबर्स कब्ज की समस्या को होने नहीं देते हैं. कब्ज ही बवासीर की जड़ है.

सहजन का सेवन करते रहने से बवासीर और कब्जियत की समस्या नहीं होती है, वहीं पेट की दूसरी बीमारियों के लिए भी यह फायदेमंद है. डायबिटीज नियंत्रित करने के लिए भी सहजन का सेवन करने की सलाह दी जाती है. तो अगर बीमारियों को दूर रखना है तो सहजन से दूरी न बनाएं.

कैसे बनाएं सूप

जरूरी चीजें : 2 कप सहजन के पत्ते, 6 सफेद प्याज टुकड़ों में कटी हुई, 6 लहसुन की कलियां, 2 टमाटर टुकड़ों में कटे हुए, 1 छोटा चम्मच साबुत जीरा, 1 छोटा चम्मच साबुत काली मिर्च, 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, एकचौथाई छोटा चम्मच हलदी, नमक स्वादानुसार.

बनाने की विधि : सब से पहले सहजन की पत्तियों को धो कर साफ कर लें और इस के मोटे डंठल को तोड़ कर निकाल दें.

धीमी आंच पर एक प्रैशर कुकर में सहजन की पत्तियों, नमक, प्याज, लहसुन, टमाटर, जीरा, साबुत काली मिर्च, हलदी, धनिया पाउडर और पानी डाल कर इसे 4 सीटी लगा कर पकाएं और चूल्हा बंद कर दें.

कुकर का प्रैशर खत्म हो जाने के बाद ढक्कन खोलें. एक बड़े बरतन में उबली हुई सब्जियों को एक चम्मच से दबाते हुए छलनी से छान कर इस का सूप निकाल लें. अब इसे सर्विंग बाउल में निकालें और काली मिर्च बुरक कर गरमागरम सूप सर्व करें और खुद भी पीएं.

रबी फसलों को पाले से बचाएं

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा  संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि दिसंबर से जनवरी माह में पाला पड़ने की संभावना अधिक होती है, जिस से फसलों को काफी नुकसान होता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि जिस दिन ठंड अधिक हो, शाम को हवा का चलना रुक जाए, रात में आकाश साफ हो व आर्द्रता प्रतिशत अधिक हो, तो उस रात पाला पड़ने की संभावना सब से अधिक होती है. दिन के समय सूरज की गरमी से धरती गरम हो जाती है, जमीन से यह गरमी विकिरण के द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है, जिस के कारण जमीन को गरमी नहीं मिल पाती है और रात में आसपास के वातावरण का तापमान कई बार जीरो डिगरी सैंटीग्रेड या इस से नीचे चला जाता है.

ऐसी दशा में ओस की बूंदें/जल वाष्प बिना द्रव रूप में बदले सीधे ही सूक्ष्म हिमकणों में बदल जाती हैं. इसे ही ‘पाला’ कहते हैं.

पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं के रिक्त स्थानों में उपलब्ध जलीय घोल ठोस बर्फ में बदल जाता है, जिस का घनत्व अधिक होने के कारण पौधों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और रंध्रावकाश नष्ट हो जाते हैं. इस के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, औक्सीजन, वाष्प उत्सर्जन व अन्य दैहिक क्रियाओं की विनिमय प्रक्रिया में बाधा पड़ती है, जिस से पौधा नष्ट हो जाता है.

उन्होंने यह भी कहा कि पाला पड़ने से पत्तियां व फूल मुरझा जाते हैं और झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं. फूल झड़  जाते हैं. उत्पादन अधिक प्रभावित होता है.

पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता, आम व अन्य नवरोपित फसलें अधिक प्रभावित होती हैं. पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इस की चपेट में आ जाती हैं.

पाले से बचाव के तरीके

* खेतों की मेंड़ों पर घासफूस जला कर धुआं करें. ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गरम हो जाता है. पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसान फसलों में सिंचाई करें. सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है.

* पाले के समय 2 लोग सुबह के समय एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़ कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें, जिस से फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

* यदि किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं, तो उस को घासफूस की टाटिया बना कर अथवा प्लास्टिक से ढकें. ध्यान रहे कि दक्षिणपूर्व भाग खुला रखें, ताकि सुबह और दोपहर में धूप मिलती रहे.

* पाले से दीर्घकालिक बचाव के लिए उत्तरपश्चिम मेंड़ पर और बीचबीच में उचित स्थान पर वायुरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम व जामुन आदि को लगाएं, तो सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.

* यदि किसान फसलों पर कुनकुने पानी का छिड़काव करते हैं, तो फसलें पाले से बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसानों को पाला पड़ने के दिनों में यूरिया की 20 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए अथवा थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा को 1,000 लिटर पानी में घोल कर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 80 फीसदी डब्लूडीजी की 40 ग्राम मात्रा को प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

* ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है और वह जमने नहीं पाता है. इस तरह फसलें पाले से बच जाती हैं.

* फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट औफ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर सकते हैं.

* फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर किसान अपने खेतों में छिड़काव करें.

* फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम व 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क करें या पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह के मोबाइल नंबर 9795160389 पर संपर्क करें.

जाड़े में अधिक वर्षा से खेती को नुकसान या फायदा

रबी की खेती किसानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इसी से उस के सारे काम व विकास निर्धारित होते हैं. इन दिनों अच्छीखासी ठंड होती है और अगर बारिश हो जाए तो कहीं तो ये फायदेमंद होती है, लेकिन कई दफा ओला गिरने आदि से फसल को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. किसानों की मेहनत और कीमत दोनों ही जाया हो जाती हैं.

जाड़े की वर्षा को महावट कहा जाता था. फसल के लिए इसे अमृत वर्षा कहा जाता है, परंतु जब ये जाड़े की वर्षा इतनी अधिक हो जाए, जो खेत को नमी देने के बजाय उस में जलभराव हो जाए या ओला पड़ जाए, तो यह किसानों की फसल के लिए नुकसानदेह साबित होती है.

जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है, उस में उतने नुकसान की संभावना होती है.

ऐसी बरसात से दलहनी व तिलहनी फसलें पूरी तरह से बाधित हो जाती हैं और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना हो जाती है.

जब ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. चना, मटर, मसूर, अरहर, सरसों, आलू आदि में अधिक नुकसान होता है. कई जगहों पर तो सरसों व अरहर की जो फसलें गिर जाती हैं, उन्हें भी खासा नुकसान होता है.

ऐसे समय में ढालू भूमि जैसे यमुना, गंगा व नदियों के किनारे की खेती में जलभराव से नहीं जल बहाव से नुकसान होता है.

फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी खासा नुकसान होता है. फूल की अवस्था की समस्त फसलों में फूल गिरने व क्षतिग्रस्त होने से उत्पादन गिर जाता है.

मौसम नम होने व कोहरा होने से रोग व कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिस से फसल को नुकसान होना तय है.

वर्षा के बाद के उपाय

* खेतों में जो पानी भरा है, उसे निकालने की तुरंत कोशिश की जाए.

* खेत की निगरानी नियमित करते हुए रोग व कीट नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करें.

* झुलसा रोग का उपचार करें.

* माहू कीट का नियंत्रण करें.

* चना, मटर में फली छेदक कीट का निदान करें.

* गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाएं.

* आलू बीज उत्पादन वाली फसल की बेल को काट दें.

* देरी से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजातियों हलना, उन्नत हलना नैना की बोआई कर सकते हैं.

खाली खेतों के लिए फसल योजना

* अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत को तैयार कर तुरंत गेहूं की बोआई की जा सकती है.

* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल और प्याज की रोपाई कर सकते हैं.

* जायद की भिंडी व मिर्च के लिए खेत की तैयारी कर के फरवरी माह में बोआई व रोपाई कर सकते हैं.

* गन्ने की 2 कतारों के बीच मूंग व उड़द की बोआई कर सकते हैं.

* सब्जी की बोआई के लिए खेत को तैयार कर सकते हैं.

* आलू के खेत में गरमी की मूंगफली की बोआई कर क्षति पूर्ति कर सकते हैं.

दिए गए सुझाव के साथ  यदि इस विपरीत परिस्थिति में खेती का प्रबंधन करें तो कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है.

आलू बोआई यंत्र पोटैटो प्लांटर

आलू की खेती में आजकल कृषि यंत्रों का अच्छाखासा इस्तेमाल होने लगा है. आलू बोआई के लिए पोटैटो प्लांटर है, तो आलू की खुदाई के लिए पोटैटो डिगर कृषि यंत्र है. यहां हम फिलहाल आलू बोआई यंत्र पोटैटो प्लांटर की बात कर रहे हैं.

पोटैटो प्लांटर आलू की बोआई करने के साथसाथ मेड़ भी बनाता है. इस यंत्र से आलू बोआई का काम बखूबी होता है.

मशीन द्वारा तय दूरी और उचित गहराई पर ही आलू बीज खेत में गिरता है, जिस से पैदावार भी अच्छी होती है. साथ ही, खरपतवार नियंत्रण भी आसान होता है. हालांकि आलू बोने का यंत्र सभी किसानों के पास नहीं है लेकिन आज के आधुनिक दौर में अनेक किसानों का रुख मशीनों की ओर होने लगा है.

आलू बोने के 2 तरह के यंत्र आजकल चलन में हैं, एक सैमीआटोमैटिक आलू प्लांटर. दूसरा पूरी तरह आटोमैटिक प्लांटर. दोनों ही तरह के यंत्र ट्रैक्टर में जोड़ कर चलाए जाते हैं.

सैमीआटोमैटिक प्लांटर में यंत्र की बनावट कुछ इस तरह होती है जिस में आलू बीज भरने के लिए एक बड़ा बौक्स लगा होता है. इस में आलू बीज भर लिया जाता है और उसी के साथ नीचे की ओर घूमने वाली डिस्क लगी होती है जो 2-3 या 4 भी हो सकती हैं.

इन डिस्क में आलू बीज निकलने के लिए होल बने होते हैं. बोआई के समय जब डिस्क घूमती है तो आलू बीज नीचे गिरते जाते हैं और उस के बाद यंत्र द्वारा मिट्टी से आलू दबते चले जाते हैं. इस यंत्र से आलू बोआई के साथसाथ मेंड़/कूंड़ भी बनते जाते हैं. आलू के लिए जितनी डिस्क लगी होगी, उतनी लाइन में ही आलू की बोआई होगी.

हर डिस्क के पीछे बैठने के लिए सीट लगी होती है जिस पर आलू डालने वाला एक शख्स बैठा होता है. जितनी डिस्क होंगी उतने ही आदमियों की जरूरत होगी क्योंकि जब ऊपर हौपर में से आलू नीचे आता है तो डिस्क में डालने का काम वहां बैठे आदमी द्वारा किया जाता है.

इस मशीन से 1 घंटे में तकरीबन 1 एकड़ खेत में आलू बोआई की जा सकती है.

पूरी तरह आटोमैटिक आलू प्लांटर में किसी शख्स की जरूरत नहीं होती, केवल ट्रैक्टर पर बैठा आदमी इसे नियंत्रित करता है. इस मशीन में भी वही सब काम होते हैं जो सैमीआटोमैटिक यंत्र में होते हैं. इस की खूबी यही है कि इस में आलू खुदबखुद बोआई के लिए गिरते चले जाते हैं और खेत में बोआई होती जाती है. साथ ही मेंड़ भी बनती जाती है लेकिन इस के लिए ट्रैक्टर चलाने वाले को यंत्र के इस्तेमाल करने की जानकारी होनी चाहिए.

यह यंत्र सैमीआटोमैटिक की तुलना में महंगा होता है.

2 लाइनों में बोआई करने वाले मैन्यूअल पोटैटो प्लांटर की कीमत तकरीबन 40,000 रुपए है, 3 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत तकरीबन 50,000 रुपए है.

4 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत तकरीबन 60,000 रुपए है. आटोमैटिक पोटैटो प्लांटर की कीमत तकरीबन 1 लाख, 20 हजार रुपए तक हो सकती है. यह अनुमानित कीमत है.

आजकल अनेक कृषि यंत्र निर्माता जैसे खालसा आटोमैटिक पोटैटो प्लांटर, मोगा इंजीनियरिंग वर्क्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा कंपनी के पोटैटो प्लांटर बाजार में मौजूद हैं. आप अपने नजदीकी कृषि यंत्र निर्माता या विक्रेता से बात कर अधिक जानकारी ले सकते हैं.

साल 2022-23 में रिकौर्ड खाद्यान्‍न उत्‍पादन

नई दिल्ली : 18 अक्तूबर 2023. कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय ने वर्ष 2022-23 के लिए मुख्‍य फसलों के उत्‍पादन के अंतिम अनुमान जारी कर दिए हैं. इस के अनुसार देश में कुल खाद्यान्‍न उत्‍पादन रिकौर्ड 3296.87 लाख टन अनुमानित है, जो 2021-22 के 3156.16 लाख टन खाद्यान्न उत्‍पादन की तुलना में 140.71 लाख टन अधिक है. इस के अलावा साल 2022-23 के दौरान खाद्यान्‍न उत्‍पादन गत 5 वर्षों (2017-18 से 2021-22) के औसत खाद्यान्‍न उत्‍पादन की तुलना में 308.69 लाख टन अधिक है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि हमारे किसान लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं कृषि वैज्ञानिक व संस्थान भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि मंत्रालय द्वारा योजनाओं व कार्यक्रमों का सुचारु रूप से क्रियान्वयन हो रहा है. इस तरह सब के प्रयासों से कृषि क्षेत्र में रिकौर्ड खाद्यान्‍न उत्‍पादन सहित बेहतर नतीजे परिलक्षित हो रहे हैं.
अंतिम अनुमान के अनुसार, 2022-23 के दौरान मुख्‍य फसलों का उत्‍पादन इस प्रकार है :

खाद्यान्‍न – 3296.87 लाख टन
चावल – 1357.55 लाख टन
गेहूं – 1105.54 लाख टन
पोषक/मोटे अनाज – 573.19 लाख टन
मक्‍का – 380.85 लाख टन
दलहन – 260.58 लाख टन
तूर- 33.12 लाख टन
चना – 122.67 लाख टन
तिलहन – 413.55 लाख टन
मूंगफली– 102.97 लाख टन
सोयाबीन– 149.85 लाख टन
रेपसीड एवं सरसों – 126.43 लाख टन
गन्‍ना – 4905.33 लाख टन
कपास – 336.60 लाख गांठें (प्रति 170 किलोग्राम)
पटसन एवं मेस्‍टा– 93.92 लाख गांठ (प्रति 180 किलोग्राम)

वर्ष 2022-23 के दौरान चावल का कुल उत्‍पादन रिकौर्ड 1357.55 लाख टन अनुमानित है. यह पिछले वर्ष के 1294.71 लाख टन चावल उत्पादन से 62.84 लाख टन एवं विगत 5 वर्षों के 1203.90 लाख टन औसत उत्‍पादन से 153.65 लाख टन अधिक है.

Food Grain
Food Grain

वर्ष 2022-23 के दौरान गेहूं का कुल उत्‍पादन रिकौर्ड 1105.54 लाख टन अनुमानित है. यह पिछले वर्ष के 1077.42 लाख टन गेहूं उत्पादन से 28.12 लाख टन एवं 1057.31 लाख टन औसत गेहूं उत्‍पादन की तुलना में 48.23 लाख टन अधिक है.

श्री अन्न (पोषक/मोटे अनाजों) का उत्‍पादन 573.19 लाख टन अनुमानित है, जो 2021-22 के दौरान प्राप्त 511.01 लाख टन उत्‍पादन की तुलना में 62.18 लाख टन अधिक है. इस के अलावा यह औसत उत्‍पादन से भी 92.79 लाख टन अधिक है. श्री अन्न का उत्पादन 173.20 लाख टन अनुमानित है.

साल 2022-23 के दौरान कुल दलहन उत्‍पादन 260.58 लाख टन अनुमानित है, जो विगत 5 वर्षों के 246.56 लाख टन औसत दलहन उत्‍पादन की तुलना में 14.02 लाख टन अधिक है.

साल 2022-23 के दौरान देश में तिलहन उत्‍पादन रिकौर्ड 413.55 लाख टन अनुमानित है, जो साल 2021-22 के दौरान उत्‍पादन की तुलना में 33.92 लाख टन अधिक है. इस के अलावा साल 2022-23 के दौरान तिलहनों का उत्पादन 340.22 लाख टन औसत तिलहन उत्‍पादन की तुलना में 73.33 लाख टन अधिक है.

साल 2022-23 के दौरान गन्‍ना उत्‍पादन 4905.33 लाख टन अनुमानित है. साल 2022-23 के दौरान गन्‍ने का उत्‍पादन पिछले वर्ष के 4394.25 लाख टन गन्ना उत्पादन से 511.08 लाख टन अधिक है.
कपास का उत्‍पादन 336.60 लाख गांठ (प्रति 170 किग्रा की गांठ) अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के कपास उत्‍पादन की तुलना में 25.42 लाख गांठें अधिक है. पटसन एवं मेस्‍ता का उत्‍पादन 93.92लाख गांठ (प्रति 180 किग्रा की गांठ) अनुमानित है.

गन्ने की खेती में कीर्तिमान

भारत में ज्यादातर किसान खेती से परेशान हैं. ऐसे में वे मजबूरी में खेती कर रहे हैं. इस की मुख्य वजह कहीं न कहीं उन की उपज का सही दाम न मिल पाना है, जिस के चलते उन्हें लगातार घाटा हो रहा है. फिर भी कुछ ऐसे किसान हैं, जो जरा कर के खेतीबारी कर रहे हैं.

कृषि में नया प्रयोग एक सार्थक प्रयास सच साबित हो रहा है. ऐसे ही एक किसान हैं अचल मिश्रा. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के रहने वाले अचल मिश्रा ने कृषि में नया कीर्तिमान बनाया है.

देश की राजधानी से तकरीबन 450 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश का चीनी का कटोरा कहा जाने वाला जिला लखीमपुर खीरी के पलिया इलाके के मड़ई पुरवा के रहने वाले अचल मिश्रा तकरीबन 80 एकड़ भूमि पर गन्ने की खेती करते हैं. वे गन्ने में प्रति एकड़ गन्ना उत्पादन भी काफी अच्छा लेते हैं. नईनई विधियों को आजमा कर उपज बढ़ाने के लिए वे उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती में हमेशा प्रथम स्थान हासिल करते हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध काल्विन डिगरी कालेज से बैरिस्टरी में स्नातक अचल मिश्रा अपने विश्वविद्यालय से गोल्ड मैडलिस्ट भी रह चुके हैं. पढ़ाई के बाद नौकरी करने के बजाय खेती को ही अपना व्यवसाय बनाया और अपने गांव लौट कर परंपरागत खेती को छोड़ कर आधुनिक विधि से करना शुरू किया.

Sugarcane
Sugarcane

पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ से बात करते हुए अचल मिश्रा बताते हैं, ‘‘हम ने साल 2006 से गन्ने की खेती को नईनई वैज्ञानिक विधि से करना शुरू किया. मौजदू समय में मेरे खेत में भी 18 से 20 फुट तक का गन्ना होता है. उपज की बात करें, तो 1,050 से 1,200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. गन्ने की खेती में पिछले 5 सालों से लगातार मुझे प्रथम पुरस्कार मिल रहा है.’’

साल 2018 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों से प्रगतिशील किसानों को प्रधानमंत्री कार्यालय, दिल्ली में आमंत्रित किया था. उस में गन्ने की खेती करने वाले वे अकेले किसान थे.

गन्ने के साथसाथ तैयार करते हैं गन्ने की नर्सरी

Sugarcane
Sugarcane

अचल मिश्रा बताते हैं कि एक एकड़ खेत में उच्च कोटि की गन्ने की नर्सरी भी तैयार की. उन्होंने बताया कि कोलख 14201 गन्ने के बीज की नर्सरी बटचिप विधि से तकरीबन एक लाख पौध तैयार कर के 12 लाख रुपए कमाए. इस बार वे गन्ने की नर्सरी का काम बड़े पैमाने पर करने जा रहे हैं.

 

 

फार्म को बनाया टूरिस्ट प्लेस

अचल मिश्रा ने अपने फार्म को ‘यूएस गन्ना आश्रम’ के नाम से शानदार फार्महाउस तैयार कर रखा है. आश्रम में आने वाले अतिथियों को शुद्ध जैविक विधि से तैयार सागसब्जियां, देशी मोटे अनाज की रोटियां खाने को मिलती हैं, जिस का स्वाद चखने के लिए बहुत दूरदूर से लोग आते हैं.