Organic Farming : फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. इन्हें इस्तेमाल करना आसान है,लेकिन महंगी होने व जरूरत से ज्यादा, बारबार डालने से किसानों की जेब कटती है, नकली निकलने पर ये बेअसर रहती हैं. इस के अलावा जानकारी की कमी से भी किसान इन्हें जल्दीजल्दी  व ज्यादा डालते हैं.

देखादेखी व बगैर सोचेसमझे अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से हवा, पानी व मिट्टी की हालत दिनोंदिन खराब हो रही है. इन का जहरीला असर फसल में आने से नित नई बीमारियां बढ़ रही हैं. इस कारण से भी जानवर व इनसान ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं. लिहाजा इस बारे में सोचना व इस समस्या को सुलझाना बहुत जरूरी है.

रसायनों के बढ़ते जहरीले असर से समूची आबोहवा को बचाने के लिए दुनिया भर में जैविक खेती जैसे कारगर तरीके अपनाए जा रहे हैं. हालांकि बहुत से किसान अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल जरूरी मानते हैं, जबकि इन के बगैर खेती करना मुश्किल नहीं है.

सरकारी कोशिशें

पहाड़ी इलाकों में आज भी अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल बहुत कम होता है. गौरतलब है कि बीते साल 2015 में सिक्किम सरकार ने अंगरेजी खाद व कीटनाशकों पर रोक लगा कर एक आरगेनिक मिशन चलाया था, जो पूरी तरह से सफल रहा. नतीजतन जैविक खेती में सिक्किम आज पूरे देश में एक उदाहरण है. इस के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड राज्य भी जैविक खेती में आगे हैं.

Organic Farming

सरकार पूरे देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने पर खास जोर दे रही है, लेकिन किसानों के अपनाए बिना यह काम मुमकिन नहीं है. केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साल 2015 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010-11 में सिर्फ 4 लाख 42 हजार हेक्टेयर रकबा जैविक खेती के तहत था.

साल 2011-12 में बढ़ कर यह 5 लाख 55 हजार हेक्टेयर हो गया था, लेकिन साल 2012-13 में घट कर 5 लाख 4 हजार हेक्टेयर व साल 2013-14 में फिर से बढ़ कर 7 लाख 23 हजार हेक्टेयर हो गया था. यह देश में मौजूद खेती के कुल रकबे का सिर्फ 0.6 फीसदी है, जो कि काफी कम है. लिहाजा इसे बढ़ाना होगा.

बीते  सालों से केंद्र सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अलग से एक नेशनल प्रोजेक्ट चला रखा है. जैविक खेती के प्रचारप्रसार, जागरूता व ट्रेनिंग वगैरह को बढ़ावा देने के लिए साल 2004 से गाजियाबाद में जैविक खेती पर एक नेशनल  सेंटर चल रहा है. बेंगलूरू, भुवनेश्वर, पंचकुला, इंफाल, जबलपुर व नागपुर में उस के 6 रीजनल सेंटर हैं.

इन में जैविक खेती को बढ़ाने, जैव तकनीक निकालने, उन्हें किसानों तक पहुंचाने, जैव उर्वरकों की जांचपरख करने जैसे काम होते हैं, लेकिन असलियत यह है कि ज्यादातर काम सिर्फ कागजों पर दौड़ते हैं. ज्यादातर किसानों को जैविक खेती की स्कीमों की जानकारी नहीं है.

खेती व बागबानी महकमों के निकम्मे मुलाजिम भी किसानों को जैविक खेती की जानकारी नहीं देते. लिहाजा इतने सारे सरकारी तामझाम का कोई फायदा नजर नहीं आता.

ज्यादातर किसानों में शिक्षा व रुचि की कमी है. खासकर छोटी जोत वाले, गरीब किसानों को जैविक खेती का असल मतलब, मकसद, तौरतरीकों व इस से होने वाले फायदों की जानकारी ही नहीं है. ऊपर से बाजार में जैव उर्वरक व जैव कीटनाशियों के नाम पर कबाड़ भी खूब धड़ल्ले बिक रहा है. इस से नुकसान किसानों का व फायदा उसे बनाने व बेचने वालों का होता है.

क्या है जैविक खेती

जैविक कचरे की मदद से जमीन की उपजाऊ ताकत व उपज बढ़ाना जैविक खेती का मकसद है. इस में एक तय समय में सब से पहले किसी खेत को रासायनिक असर से छुटकारा दिला कर उस के कुदरती रूप में बदला जाता है. इस के बाद जैविक काम उपज के कई हिस्सों में पूरे किए जाते हैं. कुल मिला कर जैविक खेती में रसायनों का इस्तेमाल किए बगैर सारा जोर खेती के कुदरती तौरतरीकों पर ही दिया जाता है.

खेत की तैयारी, बीज शोधन, बोआई, जमाव बढ़ाने, कीड़े मारने, खरपतवार के सफाए में रसायनों व अंगरेजी खादों का इस्तेमाल कम से कम व आखिरी दौर में बिलकुल नहीं किया जाता. हरी खाद, गोबर की खाद व कंपोस्ट खाद को डाल कर ऐसा फसलचक्र अपनाया जाता है, जिस में जमीन को उपजाऊ बनाने वाली दलहनी फसलें भी शामिल रहती हैं.

रासायनिक उर्वरकों की जगह इफको व कृभको जैसे कारखानों में बने जैव उर्वकर डालें. अपने देश में अब इन की कमी नहीं है. करीब 5 लाख 50 हजार छोटेबड़े निर्माता हैं, जो जैव उर्वरकों का उत्पादन कर रहे हैं.

जैविक खेती में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटपतंगों की रोकथाम भी सुरक्षित तरीकों से की जाती है. उदाहरण के तौर पर लाइट व फैरोमेन ट्रैप, नजदीकी मुख्य फसल से कीड़े खींचने वाली ट्रैप क्राप, ट्राइकोडर्मा कार्ड, ट्राइकोगामा, ब्यूवेरिया बेसियाना फफूंद वगैरह कारगर बायोएजेंट्स के इस्तेमाल व कीड़े खाने वाले पक्षी और परजीवियों वगैरह को बचा, बढ़ा कर फसलों की हिफाजत की जाती है और उपज को सुरक्षित रखा जाता है.

इस के अलावा खेत में खरपतवारों का सफाया भी रासायनिक दवाओं से न कर के मशीनों व औजारों के जरीए निराईगुड़ाई वगैरह से ही किया जाता है. रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल किए बिना खेती करने से प्रति हेक्टेयर उपज की लागत व मेहनत थोड़ी बढ़ सकती है, लेकिन उपज बेचते वक्त उन की भरपाई हो जाती है.

आरगैनिक फूड्स से कमाई

आम जनता की औसत आमदनी बढ़ने से खानपान व रहनसहन के तौरतरीके बदले हैं. सेहत के लिए जागरूकता बढ़ी है. अब लोग आरगेनिक फूड प्रोडक्ट्स को पसंद करते हैं.

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इस वजह से शहरी बाजारों, बड़ेबड़े मौल्स, होटलों व डिपार्टमेंटल स्टोरों वगैरह में अलग से बिकने वाले आरगैनिक फल, सब्जी, मसाले, दालें व अनाज आदि की मांग तेजी से बढ़ रही है.

इसी वजह से खेती व डेरी वगैरह के आरगैनिक उत्पादों की कीमत बाजार में आम उपज के मुकाबले ज्यादा मिलती है. लिहाजा किसानों को बाजार के बदलते रुख को पहचान कर समय के अनुसार खेती के तरीकों में बदलाव करना चाहिए. किसान जैविक खेती के जरीए पैदा उम्दा उपज बेच कर अपनी आमदनी में आसानी से इजाफा कर सकते हैं.

प्रचारप्रसार व ट्रेनिंग जरूरी

केंद्र व राज्यों की सरकारों को देश के सभी इलाकों में जैविक खेती के बारे में प्रचारप्रसार कराना चाहिए. ताकि इस में किसानों की दिलचस्पी जागे, जागरूकता व हिस्सेदारी बढ़े. खासकर गांव के इलाकों में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों व सहकारी संस्थाओं वगैरह की मदद इस काम में ली जा सकती है.

इस के अलावा जैविक उत्पादों का आसान प्रमाणीकरण और उन की बिक्री का सही इंतजाम किया जाना भी बहुत जरूरी है. हालांकि पिछले दिनों भारतीय कृषि कौशल विकास परिषद, एएससीआई संस्था का गठन किया गया है, लेकिन उस के नतीजे भी सब को साफ दिखाई देने चाहिए. किसानों को जैविक खेती करने की तकनीक समझाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें आसानी से ट्रेनिंग, पैसा व छूट आदि दूसरी सुविधाएं दी जाएं.

हुनर बढ़ाने के मकसद से चल रही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में खेती से जुड़े 15 कामों की ट्रेनिंग में जैविक खेती भी शामिल है. किसान कौशल विकास के नजदीकी सेंटर पर जा कर जैविक खेती का हुनर सीख सकते हैं.

क्या करें किसान

दरअसल, 60 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद से पैदावार तो बेशक बढ़ी, लेकिन रासायनिक उर्वरकों व जहरीले कीटनाशकों के कुप्रभाव आज भी खतरा साबित हो रहे हैं. किसानों के कुदरती दोस्त केंचुए आदि बहुत से जीव खेतों से खत्म हो रहे हैं, जिस से मिट्टी का भुरभुरापन खत्म होता जा रहा है.

जमीन की ऊपरी परत कड़ी व खारी हो जाने से पैदावार घटी है. फल, सब्जी व मसालों के स्वाद व अनाज के गुण भी अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं. खेती के माहिरों का कहना है कि गरमी में गहरी जुताई जरूर करें, ताकि कीड़े, उन के अंडे व खरपतवार आदि खुदबखुद खत्म हो जाएं और कीटनाशकों की जरूरत ही न पड़े.

वैज्ञानिकों व होशियार किसानों ने पौधों से तैयार कीड़ेमार व घासफूस नाशक अर्क, जैवकीटनाशी और बदबूदार कीटनाशक वगैरह खोजे हैं. मटका खाद, गोमूत्र, नीम पत्ती, निंबौली, मट्ठा, लहसुन व करंज की खली जैसे सभी कारगर नुस्खों को इकट्ठा कर के परखने के बाद सरकार को ऐसी जानकारी छपवा कर कृषि विज्ञान केंद्रों वगैरह के जरीए किसानों तक पहुंचानी चाहिए, ताकि किसान उन्हें खुद बना कर इस्तेमाल कर सकें.

अपने इलाके की आबोहवा के अनुसार रोग व कीट प्रतिरोधी किस्में चुनें. फसल की बिजाई हमेशा सही समय से करें. खेती में सुधार व बदलाव करना बेहद जरूरी है. खेत साफ रखें. रोगी व कीड़ों के असर वाले पौधे तुरंत हटा कर नष्ट कर दें. जानवरों के मलमूत्र व सड़ेगले कार्बनिक पदार्थों के लिहाज से मुरगी, मछली व पशु पालना जैविक खेती में मददगार साबित होता है.

जैविक खेती के फायदे

जमीन को उपजाऊ बनाए रखने के लिए जरूरी है कि रसायनों का इस्तेमाल कम से कम या बिल्कुल भी न हो. उन की जगह किसान नाडेप खाद, चीनी मिलों से हासिल सड़ी हुई प्रेसमड, नीम, सरसों, नारियल व मूंगफली की खली या वर्मी कंपोस्ट खाद डाल कर जैविक खेती करें, ताकि खेतों की मिट्टी में पानी को ज्यादा वक्त तक बनाए रखने की कूवत भी बनी रहे. साथ ही साथ इस से जल, जंगल व जमीन सुरक्षित रह सकेंगे. उपज की क्वालिटी अच्छी होगी, जिस से किसानों की कमाई बढ़ेगी.

जैविक खेती करने वाले किसान यदि अपने उत्पादों का रजिस्ट्रेशन कृषि एवं प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, एपीडा, नई दिल्ली में करा लें तो उन्हें खुद अपनी उपज को अच्छी कीमत पर बड़े व अमीर देशों को सीधे भेजने का मौका मिल सकता है. अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में जैविक खेती व आरगैनिक फूड्स का बोलबाला होगा और किसानों को उन की उपज की वाजिब कीमत मिलेगी. बशर्ते किसान जैविक खेती करने की पहल करें. जैविक खेती के बारे में सलाहमशविरा या ज्यादा जानकारी इस पते पर ली जा सकती है.

निदेशक, राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, सेक्टर 19, हापुड़ रोड, कमला नेहरू नगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश.

फोन नंबर : 0120-2764906, 2764212.

जैविक खेती को बढ़ावा

केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साल 2015 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक चलाए जा रहे 8 मिशनों में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन, एनएमएसए सब से अहम है. इस के तहत जैविक खेती को खास बढ़ावा देने के लिए नीचे लिखे कामों के लिए राज्य सरकारों के जरीए पैसे से मदद की जाती है. लिहाजा जरूरत आगे आ कर इन से भरपूर फायदा उठाने की है.

सब्जीमंडी या खेती के कचरे से कंपोस्ट बनाने, नई तकनीक से तरल जैव उर्वरक या जैव कीटनाशी बनाने की यूनिट लगाने, तैयार जैव उर्वरक या जैव कीटनाशी की जांच करने वाली लैब लगाने, मौजूदा लैब्स को मजबूत करने, खेतों में जैविक सामान बढ़ाने, सामूहिक रूप से जैविक खेती करने, आनलाइन भागीदारी गारंटी सिस्टम चलाने, जैविक गांव अपनाने, ट्रेनिंग देने, प्रदर्शन करने, जैविक पैकेजों के विकास पर खोजबीन करने और जैविक खेती के लिए  रिसर्च व ट्रेनिंग संस्थान चलाने के लिए पैसे से मदद मुहैया कराई जाती है.

प्रमाणीकरण

जैविक खेती में उत्पादों का प्रमाणीकरण कराना सब से अहम कड़ी है. सारी मेहनत का दारोमदार इसी पर टिका रहता है. सर्टीफिकेशन ही असल पहचान है, जिस से पता चलता है कि कौन सा उत्पाद वाकई आरगैनिक है. लिहाजा जैविक खेती करने वाले किसानों को इस के मानकों व नियमों वगैरह की जानकारी होना जरूरी है. भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय जैविक उत्पाद कार्यक्रम एनपीओपी के तहत वाणिज्य विभाग द्वारा आरगैनिक इंडिया के नाम से बनाई नियमावली में सारे मानक व नियम आदि दिए गए हैं.

यह नियमावली और जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण करने वाली 24 संस्थाओं की सूची राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, एनसीओएफ, गाजियाबाद की वैबसाइट से डाउनलोड की जा सकती है. इस के अतिरिक्त पिछले दिनों सरकार ने भागीदारी गारंटी योजना पीजीएस चालू की है. इस के तहत जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण पीजीएस ग्रीन व पीजीएस आरगैनिक के रूप में किया जाता है. इस नई स्कीम की जानकारी भी राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र की साइट से ली जा सकती है.

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