Training : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश बदल रहा है, ऐसे में नीतियों और हमारी सोच को भी बदलने का वक्त है. नवाचार की जरूरत महसूस की जा रही है, पुराने ढर्रे पर चलने का वक्त जा चुका है. यदि हम ने इस सच्चाई को नहीं जाना, तो हमारी हालत भी पुराने लैंडलाइन फोन और कैमरा कंपनियों जैसी हो जाएगी जो नवाचार से दूरी बनाने के कारण चलन से ही बाहर हो गए हैं.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में आयोजित 15 दिवसीय सिलाई व कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे. निदेशालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो की ओर से अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत जीविकोपार्जन के लक्ष्य से आयोजित इस प्रशिक्षण में उदयपुर और सलूंबर जिलों के दूरदराज गांवों की 30 महिलाओं ने भाग लिया.
इन प्रतिभागी महिलाओं को प्रमाणपत्र व अत्याधुनिक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन सहित अन्य साजसामान किट मुफ्त में प्रदान की गई, ताकि वे अपने गांव जा कर स्वरोजगार की दिशा में कदम रख सकें.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि अब तक हम लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुसरण करते आ रहे थे जो हमारे देश की पद्धति नहीं थी. साल 1835 में बनी मैकाले शिक्षा पद्धति बिलकुल समय के उस दौर में सार्थक रही है, लेकिन भारतीय परंपरा के परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति की जरूरत महसूस की गई. इस क्रम में अगस्त 2020 में नई शिक्षा नीति आई.
इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा, शोध, प्रसार के साथसाथ कौशल विकास को भी शामिल किया गया. इस नई शिक्षा नीति से 2035 तक यानी 15 साल में देशभर में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देगा. उन्होंने प्रतिभागी महिलाओं से आह्वान किया कि प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान को व्यर्थ न गवाएं, अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण दें.
इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. एनजी पाटील निदेशक आईसीएआर-एनबीएसएस, नागपुर महाराष्ट्र ने एमपीयूएटी में महज 11 फीसदी स्टाफ के बावजूद 57 पेटेंट हासिल करने को अपूर्व उपलब्धि बताया. उन्होने महिलाओं से कहा कि सिलाई कौशल का पहला प्रयोग अपने बच्चों व परिवार के लिए करें. महिला सशक्त होगी तो परिवार और देश भी सशक्त होगा. इस प्रशिक्षण का मकसद भी यही है कि महिलाएं आर्थिक उन्नति कर आत्मनिर्भर बन सकें.
इस कार्यक्रम में आईसीएआर एनबीएसएस, उदयपुर इकाई प्रभारी डा. बीएल मीणा, सीनियर वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण समन्वयक डा. आरएस मीणा ने कहा कि छोटीछोटी जोत वाले किसान परिवारों से जुड़ी महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि, मशीन में आने वाली छोटीछोटी खराबियों व उन्हें दुरूस्त करने का प्रशिक्षण भी दिया गया.
इस कायर्क्रम के शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि सिलाई आज की नहीं, पुरातन विधा है. जब से मनुष्य ने वस्त्र पहनना शुरू किया है, समय के साथसाथ पहनावे में बदलाव आते रहे हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए निदेशालय 35 तरह के प्रशिक्षण आयोजित करता है. महिलाएं अपनी कल्पना को उड़ान देने में पीछे नहीं रहें.
बनाए झबला, बैग, कशीदाकारी भी सीखी
इस 15 दिवसीय प्रशिक्षण में महिलाओं ने रूमाल, कुर्ती, पेटीकोट, घाघरा, छोटे बच्चों का झबला आदि की कटिंग व सिलाई सीखी. मास्टर ट्रेनर डा. छवि, डा. लतिका व्यास ने बैग सिलाई व सुंदर कशीदाकारी भी सिखाई. इस मौके पर प्रशिक्षणार्थी राधा मेघवाल, शारदा खटीक, कोमल मेघवाल आदि ने अनुभव भी साझा किए.
इस कार्यक्रम में छात्र कल्याण अधिकारी डा. मनोज कुमार महला, रश्मि दूबे, डा. आदर्श शर्मा व राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के अधिकारियों ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका व्यास ने किया.