Frost: बारिश में ओले और गरमियों में सूखे से जो नुकसान फसलों को होता है, वही जाड़ों में पाले से होता है. कुदरत के इस मौसमी कहर के आगे भी किसान बेबस रहते हैं और फटी आंखों से पाले से हुए नुकसान को देखते रहते हैं.
लेकिन पाले से होने वाले नुकसान को एक हद तक काबू में किया जा सकता है. जब तेज ठंड पड़ती है तो पाले का डर भी बढ़ता है, जिस का ठीकठीक अंदाजा किसान नहीं लगा पाते. कई दफा जब सुबह वे खेत पर जाते हैं, तो सूखे पेड़ देख सिर ठोक लेते हैं कि पाला (Frost) पड़ गया और पैदावार पर ताला जड़ गया.
पाला (Frost) कम से कम नुकसान पहुंचाए, इस के लिए किसान क्या करें? इस बाबत जब कृषि के माहिर आशीष त्रिपाठी से बात की तो उन्होंने तफसील से जानकारी दी कि जाड़े के दिनों में जब वायु मंडल का तापमान हिमांक से नीचे गिरता है यानी पानी बर्फ की शक्ल में जमने लगता है, तब हवा में मौजूद नमी ओस में तब्दील न हो कर बर्फ के छोटेछोटे कणों में बदल जाती है, जिस से पौधों की पत्तियों का पानी जम जाता है. इस से कोशिकाएं फट जाती हैं और पत्तियां सूख जाती हैं. इसे ही पाला पड़ना कहते हैं. पेश हैं पाला पड़ने के कारणों वगैरह पर आशीष त्रिपाठी से हुई लंबी बातचीत के खास अंश:
क्या पाला पड़ने का अंदाजा पहले से लगाया जा सकता है?
जी हां, किसानों को रोजान मौसम का हाल पता करते रहना चाहिए. यह अखबारों, रेडियो और टीवी के जरीए पता किया जा सकता है. इन्हीं के जरीए जाना जा सकता है कि कब पाला पड़ने वाला है. इस के अलावा तेज जाड़े के मौसम में जब दिन में आसमान साफ रहे और तेज हवाएं न चलें, तो सुबह और शाम के तापमान में गिरावट आती है, ऐसे में पाला (Frost) गिरने का डर ज्यादा रहता है.
इसी तरह जब हवा में आर्द्रता यानी गीलापन कम हो और खेत के नजदीक का तापमान बर्फ जमने के तापमान से कम हो तो पाला गिर सकता है. इस के अलावा जब आसामन के बादल छंटते नजर आएं और हवा की रफ्तार कम हो तो यह भी पाला गिरने का इशारा है.
पाला कैसे नुकसान पहुंचाता है?
पाला (Frost) गिरने से पौधों में खाना बनना रुक जाता है और वे सांस भी नहीं ले पाते. इस से जरूरी पोषक तत्त्व पौधों को नहीं मिल पाते, नतीजतन वे सूखने लगते हैं.
पाले का असर कबकब ज्यादा होता है?
अकसर जाड़े की शुरुआत व आखिर में पाले का कहर ज्यादा देखने में आता है.
पाले से बचाव के लिए किसानों को क्या करना चाहिए?
अगर पाले का डर या अंदेशा हो, तो दिन के वक्त जब धूप खिली हो तब खेत में सिंचाई करने से पाला (Frost) असर नहीं डाल पाता. इस के अलावा शाम के वक्त खेत के चारों तरफ घासफूस में आग लगा कर धुंआ करने से भी पाले का असर कम होता है, पर इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि आग फैल कर नुकसान न पहुंचाए. पानी में घुलनशील सल्फर 80 फीसदी की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कने से भी फायदा होता है. छोटे पौधों और नर्सरी के ऊपर छांव कर देने से पाले का असर कम होता है.
फलदार पेड़ों में डालियों के नीचे पेपर, कपड़ा या टाटपट्टी बांधने से पाले का नुकसान कम किया जा सकता है. पपीता और आम जैसे पेड़ों में इसे आसानी से किया जा सकता है. फल वाले नए लगाए पौधों के चारों तरफ घासफूस डाल कर उन्हें पाले से बचाया जा सकता है.
सब्जियों को पाले से बचाने के लिए क्या मशवरा देंगे?
सिर्फ सब्जियों को ही नहीं, बल्कि फूल वाली फसलों को भी पाले से नुकसान होता है. इन में गंधक वाले रसायनों का इस्तेमाल आधार खाद के रूप में करना चाहिए.
पाले का अंदाजा हो तो सब्जियों और फूल वाले खेतों में 2 ग्राम सल्फर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से नुकसान काफी कम किया जा सकता है.
क्या तमाम फसलों की पाला रोधी किस्में मौजूद हैं?
सभी फसलों की तो नहीं हैं, लेकिन सब्जियों की कुछ किस्में हैं, जिन पर पाले का असर कम होता है. मसलन टमाटर की पूसा शीतल और मटर की पीएमएम 3 पाला (Frost) रोधी किस्में हैं.





