Cinnamon : दालचीनी के पेड़ का पत्ता ही तेजपत्र या तेजपात कहा जाता है. तेजपात व दालचीनी का बहुतायत से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इन्हें विदेशों से भी मंगाना पड़ता है.

भारतीय किसान दालचीनी (Cinnamon) की खेती कर के काफी पैसा कमा सकते हैं और देश की पूंजी विदेश जाने से बचा कर देश की सेवा कर सकते हैं. दक्षिण भारत के किसान इस के उत्पादन की ओर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.

श्रीलंका और मलय प्रायद्वीप दालचीनी (Cinnamon) की खेती के लिए बहुत मशहूर हैं. ये छोटे देश दालचीनी आयात से अच्छीखासी विदेशी मुद्रा कमा लेते हैं. भारत में भी दालचीनी का आयात श्रीलंका से किया जाता है. वहां की दालचीनी को सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है. वहां दालचीनी की आर्गेनिक (जैविक) खेती जैसे प्रयोग भी किए जा रहे हैं.

भारत के हिमाचल प्रदेश में भी इस की खेती की जाती है. ध्यान दिए जाने पर वहां भी बहुत सफलता पाई जा सकती है. पूसा के वैज्ञानिक डा. जानकीराम का कहना है कि केरल, नार्थ ईस्ट व अंडमान में स्पाइस क्राप की काफी खेती की जा रही है. मगर कुछ जगहों को छोड़ कर आमतौर पर इस का उत्पादन साइड क्राप की तरह किया जाता है. इस को मुख्य फसल की तरह अपनाने पर किसानों को काफी लाभ मिल सकता है.

अब तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक में किसान बड़े पैमाने पर इस की खेती कर रहे हैं. इस से उन्हें काफी लाभ मिल रहा है.

दालचीनी का इस्तेमाल : मसाले के रूप में इस का नियमित इस्तेमाल किया जाता है. इस के पत्तों से तेल निकाला जाता है, जिसे यूजिनोल के कारण काफी उपयोगी माना जाता है. दालचीनी (Cinnamon) के बीजों व मूल से भी तेल निकाला जाता है.

गरम मिजाज वालों और गर्भवती औरतों के लिए दालचीनी का इस्तेमाल किया जाना ठीक नहीं रहता है. गरम मिजाज वालों को इस के इस्तेमाल से सिरदर्द हो सकता है. इसी तरह गर्भवती औरतों के लिए यह गर्भनाशी साबित हो सकती है.

दालचीनी के गुण : यह यकृत की सफाई व भोजन के पाचन में काफी उपयोगी है, इसलिए इसे ओजक कहा जाता है. यह दिल को उत्तेजित करती है. इसे शहद के साथ इस्तेमाल करने से कोलेस्ट्राल कम होता है. यह मुंह की बदबू दूर करती है. इस के पत्तों के मंजन से दांत साफ व चमकीले होते हैं. यह दांत का दर्द भी कम करती है. यह हिचकी रोकने में भी मदद करती है. यह वायु, कफ व शरीर के जहर नष्ट करती है. यह बैठे गले को ठीक कर देती है.

रंग को साफ करने में भी इस की भूमिका कारगर है. दालचीनी ( (Cinnamon)) के अर्क का लेपन दिमाग के लिए बेहद उपयोगी है. इसे पाचन सुधारने और गैस खत्म करने में बहुत उपयोगी माना गया है.

औषधीय उपयोग : मोतीझरा, कान का बहरापन, आंखों की फड़कन, चर्मरोगों व संक्रामक रोगों में दालचीनी के इस्तेमाल से आराम मिलता है.

दालचीनी (Cinnamon) के काढ़े से रक्तस्राव रोकने में बहुत लाभ होता है. फेफड़ों व गर्भाशय के रक्तस्राव को रोकने में भी दालचीनी कारगर होती है. वैसे यह किसी भी तरह के रक्तस्राव को रोकने में उपयोगी है. प्रसव पीड़ा के कारण मांसपेशियों में कमजोरी को दूर करने में भी यह उपयोगी है.

दालचीनी का तेल : यह काफी महंगा मिलता है. चर्मरोग में इस की मालिश से बहुत लाभ होता है. पेट पर इस की मालिश से आंतों का खिंचाव दूर होता है. प्रसव के कारण पेट पर बने निशान भी तेल की मालिश से काफी कम किए जा सकते हैं.

यूरोप, उत्तरी अमेरिका व थाइलैंड वगैरह देशों में भारत इस का निर्यात काफी मात्रा में करता है. अन्य कई देशों में भी इस के निर्यात के रास्ते खुले हुए हैं.

कीट प्रकोप : दालचीनी में केंकर का प्रकोप ज्यादा होता है. इस्टोप्सेमाइसिन 100 पीटीएम के घोल के छिड़काव से इस कीट को नष्ट किया जा सकता है. वैसे पौधों के आसपास हाइजीन रख कर भी इस कीट से दालचीनी के पेड़ को बचाया जा सकता है. बारिश के मौसम में दालचीनी में लीफ माइंट का प्रकोप भी होता है. इसे क्यूनालफास के .05 फीसदी घोल का छिड़काव कर के खत्म किया जा सकता है. पत्तीधब्बा व झुलसा रोग होने पर बोडोमिक्सचर के छिड़काव से फसल को बचाया जा सकता है.

दालचीनी (Cinnamon) का पेड़ सदाहरित माना जाता है. इस के पेड़ 20-25 फुट ऊंचे होते हैं. इस की पत्तियों से बहुत तेज महक आती है, इसलिए उन्हें तेजपात या तेजपत्र कहा जाता है. इस की व्यावसायिक व अच्छी खेती के लिए हाई ह्यूमिडिटी अच्छी रहती है.

दालचीनी की दुनियाभर में काफी मांग है. छोटे देश भी इस में आत्मनिर्भर बनने में रुचि दिखा रहे हैं. श्रीलंका तो इस की खेती में आगे है ही, वियतनाम ने भी इस की खेती में काफी रुचि दिखाई है. वहां इस की खेती शुरू हो चुकी है और इस के काफी अच्छे नतीजे मिल रहे हैं.

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