Vegetable Nursery : सब्जी की खेती न सिर्फ सेहत के लिहाज से लाभकारी है, बल्कि कारोबारी नजरिए से भी काफी फायदेमंद है. आज पूरे भारत में तकरीबन 65 प्रकार की सब्जियों का कुल 71 लाख हेक्टेयर भूमि से तकरीबन 109 मिलियन टन उत्पादन होता है. इन सभी सब्जियों में कुछ की तो सीधे बोआई की जाती है, जैसे मटर, बींस, गाजर, मूली वगैरह. लेकिन कई खास सब्जियों, जैसे टमाटर, मिर्च, बैगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, प्याज वगैरह की खेती के लिए पौध (Vegetable Nursery) तैयार करनी होती है. कभीकभी खीरा वर्गीय सब्जियों की भी पौध (Vegetable Nursery) तैयार कर के खेतों में रोपाई की जाती है. ऐसी फसलों की सफल खेती के लिए स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत जरूरी है.
स्वस्थ पौध रोपण के कई चरण होते हैं. इस बारे में कृषि वैज्ञानिक डा. जीतेंद्र कुमार रंजन ने विस्तार से जानकारी दी :
जगह का चुनाव : पौध रोपण की शुरुआत हमेशा जगह के चुनाव से होती है, जिसे पौधशाला कहा जाता है. सब्जियों की पौधशाला (Vegetable Nursery) एक ऐसी जगह है, जहां पर सब्जियों की पौध (Vegetable Nursery) तैयार की जाती है और रोपण के समय तक पौध की देखरेख की जाती है. इस के लिए जगह का चुनाव करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखें, जैसे पौधशाला के लिए जमीन हमेशा ऊंचे स्थान पर चुनें, जहां पानी का सही निकास हो सके. पौध तैयार करने के लिए बलुई मिट्टी या दोमट मिट्टी का चुनाव करें. मिट्टी का पीएच मान 6.5 के करीब होना चाहिए. सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम पास में होना चाहिए. पौधशाला कभी भी छायादार पेड़ के पास न बनाएं. पौधशाला खेत के किनारे पर बनानी चाहिए, जिस से खेत के अन्य कामों में बाधा न हो.
क्यारी के लिए जमीन की तैयारी : क्यारी के लिए मिट्टी को हल से जुताई कर के भुरभुरी बना लें. मिट्टी से पुरानी जड़ों के टुकड़ों व घास वगैरह को बाहर निकालें. इस के बाद मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद 4 से 5 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से मिला दें. क्यारियों को अंतिम रूप देते समय मिट्टी को एकसार कर के हलके हाथों से दबा दें.
क्यारियां जमीन की सतह से कम से कम 20 से 25 सेंटीमीटर ऊपर होनी चाहिए. यह ऊंचाई मिट्टी की स्थिति, बारिश और पानी की निकासी पर निर्भर करती है. क्यारियों की लंबाई जरूरत और जगह के हिसाब से रखी जा सकती है, लेकिन चौड़ाई 50 सेंटीमीटर ही रखें, इस से निराईगुड़ाई करने में आसानी होती है. पानी की सही तरीके से निकासी के लिए चारों ओर नाली की चौड़ाई 25-30 सेंटीमीटर और गहराई 8 से 10 सेंटीमीटर रख कर इसे मुख्य जल निकासी की नाली से मिला दें.
बीजों की बोआई और पौधों का रखरखाव : अच्छे बीजों पर ही फसल की गुणवत्ता व बढ़ोतरी निर्भर करती है. बोआई से पहले सही किस्म के बीजों का चुनाव बेहद जरूरी है. इस के लिए बैगन में पूसा हाईब्रिड-5,6 और 9 व पंत संकर-1, टमाटर में अविनाश 2, रूपाली, ननहेम्स, शिमला मिर्च में भारत, इंदिरा, पूसा दीपी, पत्तागोभी में गोल्डन एकर, ग्रीन बाय, फूलगोभी में पूसा शुभ्रा, पीएबी 1 वगैरह किस्में खास हैं.

ध्यान रखने योग्य बातें
* बीज ज्यादा पुराना न हो. बोआई क्यारियों में लाइनें खींच कर करें. लाइन से लाइन की दूरी 5 सेंटीमीटर और गहराई 1 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
* बोआई के बाद क्यारियों को सूखी घास से ढक दें, जिस से मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे और जल्दी अंकुरण हो.
* अंकुरण शुरू होते ही घास को तुरंत हटाना न भूलें.
* क्यारियों के लिए सिंचाई का अच्छा इंतजाम होना चाहिए. शुरुआत में फुहारे की सहायता से पौधों की सिंचाई करें.
* अंकुरित पौधों को गरमी में तेज धूप से, जाड़े में पाले व ज्यादा ठंड से और बरसात में तेज पानी से बचाने के लिए पालीथीन की चादर से ढक दें. पौधों को ज्यादा नमी से बचाने के लिए कम लागत वाला पालीहाउस बनाएं.
बचाव : क्यारियों में से समयसमय पर खरतवार निकालना न भूलें. इस के लिए पहले सावधानी से हलकी निराई करें और फिर हाथ से खरपतवार उखाड़ें.
सब्जियों के पौधों (Vegetable Nursery) में डैपिंग आफ जिसे पौधे का गलन या कमर तोड़ भी कहते हैं, नाम की बीमारी लग जाती है. यह मिट्टी में पनपे कवक के कारण होती है.
इस से बचाव के लिए 25 मिलीलीटर फारमल्डीहाइड का 1 लीटर पानी में घोल बना कर मिट्टी को उपचारित करें. इस के बाद खेत को 1 हफ्ते के लिए पौलीथीन से ढक दें. यह उपचार बीज बोने से करीब 15 दिनों पहले करें.
बीजों को सेरेसन या कैप्टाफ से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. छोटे पौधों को दीमक व पौध काटने वाले कीट भी नुकसान पहुंचाते हैं. इन की रोकथाम के लिए फ्यूराडान 10जी दवा क्यारियां बनाते समय मिट्टी में मिला दें. मैलाथियान या इंडो सल्फान दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
पौधों की कम बढ़त होने पर 1 लीटर पानी में 5 ग्राम यूरिया का घोल बना कर छिड़काव करें. ध्यान रहे कि यूरिया ज्यादा न हो, वरना इस से पौधों के झुलसने का डर रहता है.

ज्यादा पैदावार के लिए
कुछ सब्जियों में दवाओं व रसायनों का इस्तेमाल कर के उपज को बढ़ाया जा सकता है. खीरा वर्गीय सब्जियों के फूलों में कई प्रकार के लिंग मिलते हैं. वैसे ज्यादातर फसलों में मोनोशियस प्रकार के लिंग पाए जाते हैं, जिन में एक पौधे पर ही नर व मादा फूल खिलते हैं.
लौकी, करेला, तुरई, खीरा, चप्पन कद्दू, टिंडा, चचींडा वगैरह में मोनोशियस प्रकार के फूल मिलते हैं. इन सभी में अगर फूलों की संख्या बढ़ाई जा सके, तो फलों की पैदावार में इजाफा हो जाता है. इस के लिए जिब्रेलिक अम्ल इथरल, मौलिक हाईडाजाइड और कई रसायन, जैसे बोलोन, कैल्शियम वगैरह के घोल का छिड़काव कर के मादा फूलों की संख्या
बढ़ाई जा सकती है. यह छिड़काव पौधशाला (Vegetable Nursery) में ही तब किया जाता है, जब पौध में 2-4 पत्तियां ही हों. लेकिन यह काम कृषि विशेषज्ञों की सलाह से ही करना चाहिए.
पौध रोपण
पौध तैयार होने के बाद बारी आती है, पौध रोपण की. इस के लिए इस का कठोरीकरण करना जरूरी है. इस के लिए रोपाई से 2 से 3 दिनों पहले क्यारियों में सिंचाई रोक कर सिरकी या पालीथीन को हटा देते हैं.
पौध रोपण से पहले गोबर की खाद को खेत में अच्छी तरह से मिला दें. तैयार पौध को बहुत लंबे समय तक पौधशाला या क्यारियों में न रखें, वरना पौध ज्यादा बढ़वार के कारण रोपण करने पर कम उपज देती है.
हमेशा पौधों का रोपण शाम के समय करें. पौध रोपण के तुरंत बार हलकी सिंचाई जरूर करें. शुरू में पौधों की रोजना सिंचाई करें. बाद में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.





