किसानों की खुशहाली का रास्ता उनकी उपज की प्रोसैसिंग से निकलता है और आज मोटे अनाजों में बाजरा, जौ, जई, ज्वार, सांवां, कोदो, मंड़ुआ, चना, मक्का वगैरह अपने गुणों के लिए बेमिसाल माने जाते हैं. पुराने जमाने में इन्हें खूब पसंद किया जाता था और 7 अनाजों को मिलाकर सतनजा आटा खाया जाता था. अब फिर से पुराना जमाना लौट रहा है, लिहाजा किसानों को गुंजाइश वाले धंधों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.

प्रोसैसिंग से तगड़ा मुनाफा

पैक्ड ब्रांडेड आटा बेचने वाली बड़ी – बड़ी कंपनियां भी अब मिक्स ग्रेन आटा, हाई फाइबर व ओट्स के बिस्कुट व मल्टीग्रेन ब्रेड वगैरह बनाकर तगड़ा मुनाफा कमा रही हैं. बाजार सामने है. यदि किसानों के पास कच्चा माल व तकनीक हो तो कमाई का मौका अच्छा साबित हो सकता है.
लोग खाने में ज्यादा फाइबर व कम कैलोरी वाली चीजों को तरजीह देने लगे हैं. खान – पान व सेहत के लिए जागरूकता बढ़ने से मोटे अनाज पढ़े-लिखे, शहरी अमीरों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं. ऐसे में किसानों को भी बदलते वक्त की आहट पहचाननी चाहिए क्योंकि किसानों की खुशहाली का रास्ता उनकी उपज की प्रोसैसिंग से निकलता है. लिहाजा, खेती से हासिल कच्चे माल से कमाई के नए ज़रिए तलाशना वक्त का तकाज़ा है.

तकनीक से करें तरक्की

मोटे अनाजों से तैयार कौर्नफ्लैक्स, दलिया, पफ, स्नैक्स व ओट्स वगैरह अनेक उत्पाद माल्स में ऊंची कीमतों पर बिकते हैं. किसान चाहें तो अपनी उपज को कच्चे माल की तरह मंडी में ले जाकर औने – पौने दामों में बेचने की बजाय मोटे अनाजों से तैयार चीजें खुद बनाकर बेच सकते हैं.

कौन-से संस्थान देते हैं प्रशिक्षण

नई दिल्ली में पूसा के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में एक महकमा कटाई के बाद की तकनीक का है. उस के वैज्ञानिकों ने कृषि उपज के प्रसंस्करण पर काफी काम किया है, लेकिन ज्यादातर किसानों को उसकी जानकारी नहीं है. मसलन, वहां के वैज्ञानिकों ने मक्के की तरह बाजरे के फुल्ले और सोयाबीन व आंवले के रेशे मिलाकर बेकरी उत्पाद जैसे कई नए, स्वादिष्ठ व पौष्टिक उत्पाद बनाने की तकनीक निकाली है.
आम किसान नहीं जानते कि कटाई के बाद की तकनीक का केंद्रीय संस्थान सीफेट के नाम से लुधियाना (पंजाब) में चल रहा है. वहां खाने – पीने की चीजें बनाने की तकनीक व नए खाद्य उत्पाद बनाने की मशीनों की खोजबीन का काम होता है. वहां किसानों को अपनी तैयार उपज की कीमत बढ़ाने की तालीम व सहूलियत भी दी जाती है.
एक दूसरा केंद्रीय संस्थान सीएफटीआरआई के नाम से मैसूर में है. इस संस्थान के माहिरों ने मक्के के चिप्स, रागी के पापड़ व मल्टी ग्रेन ब्रैड और ज्वार के स्नैक्स वगैरह कई ऐसी खाने की चीजें बनाने की तकनीक निकाली है, जिसके जरिए किसान अपनी उपज का प्रसंस्करण करके अच्छी कमाई कर सकते हैं.

गांव में ही लगाएं प्रोसैसिंग यूनिट

किसान मोटे अनाजों से खाने के लिए तैयार चीजें बनाने की तकनीक सीखकर, गांवों में ही अपनी इकाई लगाकर खेती के साथ ही और ज्यादा कमाई कर सकते हैं. ऐसा करना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है, बशर्ते पुरानी लीक छोड़कर खेती के नए तरीके व तकनीक अपनाने, आगे बढ़ने व कुछ नया करके धन कमाने की चाहत हो.

मौके मौजूद हैं भरपूर

साल 1966 में जब हरित क्रांति आई तो सिंचित इलाकों में गेहूं, गन्ना, धान व फल – फूल, सब्जियों वगैरह का रकबा व पैदावार बढ़ने से बहुत से किसानों ने मोटे अनाजों की खेती छोड़कर नकदी फसलों की ओर रुख कर लिया. अब हालत यह है कि मोटे अनाजों की मांग व खपत ज्यादा तथा सप्लाई कम है. ऐसे में किसान यदि थोड़ा ध्यान दें तो वे मोटे अनाजों से खाने की चीजें बनाकर खासा फायदा उठा सकते हैं.
मुश्किल या नामुमकिन कुछ भी नहीं है, क्योंकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने अब तो मोटे अनाजों की भी कम वक्त में पककर ज्यादा उपज देने वाली बहुत-सी रोगरोधी किस्में निकाली हैं.

Millet Farming

आर्गेनिक बाजार

आजकल खेती के आर्गेनिक उत्पादों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है. लिहाजा यदि अंग्रेजी खाद व जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किए बगैर, देशी कंपोस्ट या गोबर की खाद डालकर, मोटे अनाजों की जैविक खेती की जाए, तो किसान उन्हें दूसरे मुल्कों को एक्सपोर्ट कर के बड़ी – बड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों से उनकी ज्यादा कीमत ले सकते हैं.

किसान यहां से लें जानकारी

मोटे अनाजों के प्रसंस्करण का काम अकेले या आपस में मिलकर साझेदारी फर्म, सहकारी समिति या कंपनी बनाकर भी किया जा सकता है. मोटे अनाजों की नई व फायदेमंद खेती व उनकी प्रोसैसिंग करने के बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए इच्छुक किसान इन पतों पर संपर्क कर सकते हैं-

परियोजना समन्वयक
गौण मोटे अनाज, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधी कृषि विज्ञान केंद्र कैंपस, बैंगलुरु.
निदेशक,
राष्ट्रीय ज्वार अनुसंधान केंद्र, राजेंद्र नगर, हैदराबाद.

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