मशरूम शाकाहारी लोगों को खास पसंद होता है और यह स्वादिष्ठ होने के साथसाथ सेहत भी सुधारता है. ताजे और शुद्ध मशरूम का लुत्फ लेने के लिए या अतिरिक्त कमाई का जरीया बनाने के लिए इसे आसानी से घर में काफी कम जगह में उगाया जा सकता है. इस में विटामिन बी और सी भरपूर मात्रा में होते हैं. इस में शर्करा और स्टार्च बिलकुल नहीं होता है, जिस से यह शुगर और मोटापे के रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद है.

ढींगरी मशरूम से अधिक मुनाफा :

आमतौर पर ढींगरी मशरूम की खेती सितंबर से अप्रैल महीने के बीच की जा सकती है. इस के लिए 20 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान और 80 से 85 फीसदी आर्द्रता की जरूरत होती है. गेहूं, जौ, बाजरा वगैरह के भूसे, लकड़ी के बुरादे या रद्दी कागज की लुगदी पर इस का उत्पादन किया जा सकता है.

कैसे करें मशरूम उत्पादन :

वैसे अनाज का भूसा इस की खेती के लिए सब से अच्छा जरीया है. भूसे को साफ पानी में भिगो कर रातभर छोड़ दिया जाता है और अगली सुबह भूसे से पानी से निकाल कर कर उसे उबलते हुए पानी में डाल दिया जाता है. इस के बाद उसे ठंडा होने के लिए 2 से 4 घंटे तक छोड़ दें. भूसे को बैविस्टीन और फार्मेलिन की मदद से उपचारित कर के रोगमुक्त कर लेना चाहिए. इस के लिए 10 ग्राम बैविस्टीन और 50 मिलीलिटर फार्मेलिन को 100 लिटर पानी में डाल कर भूसे को उस में डुबो दिया जाता है.

किसान ने बताया कुछ खास :

मशरूम उगाने वाले बिहार के नालंदा जिले के कथैली गांव के किसान बृजनंदन प्रसाद कहते हैं कि प्रति किलोग्राम गीले भूसे में 40 से 60 ग्राम तक मशरूम का बीज (स्पौन) मिलाएं. अगर कमरे का तापमान कम हो तो स्पौन की मात्रा को 25 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है. बीज मिले भूसे को 45 सैंटीमीटर लंबे अैर 30 सैंटीमीटर चौड़े प्लास्टिक के थैलों में दोतिहाई तक भर दिया जाता है और उस के बाद सभी थैलों के मुंह को सुतली से अच्छी तरह से बांध दिया जाता है. सभी थैलों में छोटेछोटे छेद कर दिए जाते हैं. इस से बीजों को हवा मिलती रहती है.

जरूरत के मुताबिक छोटे या बड़े आकार के थैलों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

तापमान नियंत्रण से उम्दा पैदावार :

इन थैलों को कमरे, बरामदे, झोंपड़ी या किसी भी छायादार व हवादार जगह पर ही रखें. इस बात का ध्यान रखें कि जिस जगह पर थैलों को रखा जाए, वहां का तापमान 20 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड हो और आर्द्रता 80 से 85 के आसपास होनी चाहिए.

2-3 हफ्ते के बाद सफेद कवकजाल भूसे पर उगता नजर आने लगता है. जब कवकजाल पूरी तरह से फैल जाए तो थैलों को हटा दिया जाता है. भूसे में नमी बनाए रखने के लिए दिनभर में 2-4 दफे स्प्रेयर से पानी का छिड़काव करना होता है, ताकि आर्द्रता 80-85 के बीच बनी रहे. पौलीथिन के थैलों को हटाने के बाद मशरूम को हलकी रोशनी और ताजी हवा की दरकार होती है. इस के लिए कमरे में 3-4 ट्यूब लाइटें और पंखे लगा सकते हैं.

3 बार मिलता है मशरूम उत्पादन :

थैलों को हटाने के तकरीबन 15 दिनों के बाद भूसे के गट्ठर से मशरूम निकलने लगता है. इस के पूरी तरह तैयार होने पर किनारा भीतर की ओर मुड़ने लगता है. तब डंठल को तोड़ कर निकाल लें.
पहली फसल लेने के बाद भूसे के गट्ठर पर पानी का छिड़काव करते रहें, इस से 10-15 दिनों बाद दूसरी और फिर तीसरी फसल ली जा सकती है. 1 भूसे के गट्ठर से 3 बार फसल ली जा सकती है.

1 किलोग्राम भूसे से 1 किलोग्राम मशरूम पैदा होता है और इस पर प्रति किलोग्राम 15 रुपए का खर्च बैठता है. बाजार में मशरूम 150 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है. इस हिसाब से मशरूम लागत से 8-10 गुना ज्यादा कमाई देता है.

Mushroom Cultivation

मशरूम उगाने में इन बातों का रखें खयाल :

-मशरूम के स्पौन को कमरे के तापमान पर 30-35 दिनों से ज्यादा समय तक नहीं रखना चाहिए.

-मशरूम को उगाने के दौरान मौसम और तापमान को ध्यान में रखना चाहिए.

-सफाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए.

-ठीक से सफाई नहीं होने पर स्पौन के थैलों में फफूंद या कई तरह के कीड़े पैदा हो सकते हैं.

मशरूम उत्पादन एक ऐसा कारोबार है, जिसे बिना खेती की जमीन के भी शुरू किया जा सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है, मशरूम उत्पादन करने की तकनीक जानने की. इस के लिए अनेक कृषि संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र और मशरूम उत्पादक किसान समयसमय पर किसानों को ट्रेनिंग देते हैं. आप वहां से ट्रेनिंग ले कर इस कारोबार को कहीं अधिक मुनाफेदार बना सकते हैं. मशरूम की मांग आजकल बड़े होटलों और बाजार में काफी ज्यादा है, इसलिए इस का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...