कृषि विज्ञान केंद्रों का देश के किसानों के विकास में अतुलनीय योगदान है, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के वैज्ञानिक मौजूदा परिवेश में खेती – किसानी एवं किसानों की समस्याओं को चरणबद्ध कर उनके समाधान देने के लिए तत्पर है. कृषि विज्ञान केन्द्रों से क्या जानकारी पा सकते हैं किसान, जानने के लिए पढ़े ये लेख –

केवीके की वार्षिक कार्यशाला का हुआ आयोजन

राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कृषि विज्ञान केंद्रों की वार्षिक क्षेत्रीय 3 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर, राजस्थान में हुआ. जिसमे विशेषज्ञों दारा इस बारे में चर्चा की गई कि, हर कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) को मौजूदा परिवेश में खेती – किसानी एवं किसानों की समस्याओं को चरणबद्ध कर उन के समाधान तलाशने होंगे.

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के निदेशक ने क्या कहा

देशभर में स्थापित प्रयोगशालाओं, कृषि विश्वविद्यालयों व शोधार्थियों को भी किसानों की समस्याओं को साझा करना होगा, ताकि उनका सटीक अध्ययन कर किसानों को राहत पहुंचाई जा सके. ऐसा करने पर ही कृषि विज्ञान केंद्रों की सार्थकता साबित हो सकेगी. यह बात राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के निदेशक डा. धीर सिंह ने कही.

उन्होंने लैब में विकसित तकनीक को किसानों तक पहुंचाने में कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका अहम रही है. इस के अलावा कृषि क्षेत्र में किसानों के सामने आने वाली दिक्कतों का समाधान करना भी कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि वैज्ञानिकों का काम है.

युवा किसानों को आधुनिक तकनीक से जोड़े

कृषि में भविष्य देखने वाले युवाओं में आत्मविश्वास पैदा हो और कुछ इस तरह के माडल तैयार किए जाएं, जिन्हें देखकर ज्यादा से ज्यादा युवा कृषि से जुड़ने को लालायित हों. आज हमारे देश का दुग्ध उत्पादन 17 मिलियन टन से बढ़ कर 240 मिलियन टन हो गया. लेकिन युवाओं को जोड़ सके, ऐसी तकनीक या मौडल तैयार नहीं है. कृषि विज्ञान केंद्रों को चाहिए कि दुग्धोत्पादन, पशु आहार, विपणन प्रणाली जैसे कई क्षेत्र हैं, जहां मौडल तैयार कर युवाओं को इस से जोड़ा जा सकता है.

एनडीआरआई की 144 तकनीक विकसित

पशुआपालन के क्षेत्र में एनडीआरआई ने लैब में अब तक 144 तकनीक विकसित की हैं, जिन्हें किसानों,पशुपालकों के बीच ले जाकर उनमें आत्मविश्वास पैदा करने का काम केवीके को हाथ में लेना होगा. यही नहीं, सीएसआर यानी कौर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को अपनाते हैं, तो केवीके खुद ही अपना विकास आसानी से कर लेंगे.

किसान ऐसे बनेगा सशक्त

कार्यक्रम के अध्यक्ष महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. प्रताप सिंह ने कहा कि – “ सबसे पहले किसान हमारा हितधारक है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से एमओयू की फिर से समीक्षा की जरूरत है. नीतियां कठोर नहीं वरन इस तरह बनें जिन्हें फील्ड में आसानी से लागू किया जा सके और किसान सशक्त बन सकें. देश में कई क्रांतियां हुई हैं, लेकिन अब जरूरत है विपणन क्रांति की. किसान को आज केवल हम ही तकनीक नहीं दे रहे, बल्कि सोशल मीडिया के दौर में यूट्यूब, व्हाट्सएप, रेडियो एवं स्वयंसेवी संस्थाएं जैसे अनेक माध्यम से भी किसान वर्ग सीख रहा है.

तकनीकों पर काम करें केवीके

विशिष्ट अतिथि बंगाल राज्य में स्थित विधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी ने कहा कि – “ केवीके को भी गांवों को गोद लेकर प्रमुख तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए, ताकि आसपास के किसानों को सीखने को कुछ नया मिल सके. स्थानीय उत्पाद को किसान वर्ग बखूबी जानता है. केवीके को भी उसी दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करना होगा.

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67 केवीके ने शानदार मुकाम हासिल किए

आईसीएआर-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (अटारी जोन-2) के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि – “विगत एक वर्ष में जोन-2 के अधीन राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली प्रदेशों के 67 केवीके ने शानदार मुकाम हासिल किए हैं. ये केवीके तीनों राज्यों के 71 जिलों में कार्यरत हैं. हर केवीके अपनी विशिष्ट खूबियों से लबरेज है. देश का 94 प्रतिशत ईसबगोल के अतिरिक्त, जीरा व डेयरी उत्पादन में ये जोन शीर्ष पर हैं.

इस कार्यशाला के माध्यम से डेयरी, उद्यानिकी, दलहन उत्पादन के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित होंगे. कार्यक्रम में इस जोन में स्थित सभी विश्वविद्यालयों के प्रसार शिक्षा निदेशकों के अलावा तीनों राज्यों के 150 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिकों ने भाग लिया. यह जानकारी निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरएल सोनी ने दी.

कृषि साहित्य का हुआ विमोचन

डा. सीएम बलाई, डा. बीएस भाटी, डा. मनीराम, डा. आरके कल्याण, कैलाश खराड़ी द्वारा तैयार पुस्तक ‘रबी फसलों एवं बागबानी की उन्नत तकनीकियां’ का विमोचन किया गया. इसी प्रकार डा. सरोज चौधरी, डा. बंशीधर एवं टीम द्वारा तैयार ‘प्राकृतिक खेती’, डा. रामनिवास, डा. दशरथ प्रसाद एवं टीम द्वारा तैयार ‘राजस्थान के थार मरुस्थलीय क्षेत्र में वैज्ञानिक बकरी एवं भेड़पालन’ कृषि साहित्य का विमोचन किया. इसी प्रकार डा. बंशीधर, नरेश कुमार अग्रवाल, डा. प्रीति वर्मा एवं टीम द्वारा तैयार ‘रबी फसलों की वैज्ञानिक खेती’, डा. सुरेशचंद कांटवा एवं टीम द्वारा तैयार ‘फ्रूट ककड़ी की उन्नत खेती’ तथा डा. गोपीचंद सिंह द्वारा लिखित ‘सौंफ की उन्नत खेती’ साहित्य का विमोचन किया.

किसानों के लिए कृषि विज्ञान केंद्र एक जिला अस्पताल की तरह हैं, जहां किसानों की हर कृषि समस्या का समाधान वहां के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है. साथ ही, भविष्य में आने वाली कृषि समस्याओं के प्रति भी सचेत करने का काम कृषि विज्ञान केंद्र करते हैं.

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