अधिक ठंड होने पर किसानों को अपनी फसल की भी चिंता सताने लगती है. घटते तापमान में पाला पड़ने की अधिक संभावना होती है. ऐसे में किसानों को पाले से फसल को बचाने के लिए क्या क्या करें तैयारी ? जानने के लिए इस लेख में पढ़ें ऐसी अनेक जानकारी जो आपकी फसल को रखेंगे स्वस्थ.

पाले से किन फसलों को होता है अधिक नुकसान :

जाड़े के दिनों में पाला पड़ना आम बात है. पाले से पशु-पक्षी तो बचने के उपाय कर लेते हैं, लेकिन किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या पाले से फसलों को बचाव को लेकर आती है. पाले से खराब होने वाली में टमाटर, मिर्च, बैगन जैसी सब्जियां और मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो सकता है. इसी तरह दलहनी फसल अरहर और गन्ने और गेहूं की फसलों में यह नुकसान 50 फीसदी तक हो सकता है.

फसल पर कैसे दिखता है पाले का असर :

रबी मौसम में फसलों में फूल और फलियां बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं, इसलिए ऐसे समय में किसानों को पाले से सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं. यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कई फल गिर जाते हैं. फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं.

किस समय पड़ता है पाला

जब तापमान शून्य डिगरी सेल्सियस से नीचे चला जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना रहती है. आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है. वैसे रात को तीसरे एवं चौथे पहर में पाला पड़ने की संभावनाएं अधिक रहती हैं.

जाड़ों में हवा का रुख बदल देता पाले का मिजाज :

सर्दियों में चलने वाली हवा का पाले छत्तीस का आंकड़ा है. सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर के बाद हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. आमतौर पर तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए और अगर शीत लहर चल रहे तो पाला नहीं पड़ेगा. परंतु यदि इसी बीच हवा का चलना रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना बढ़ है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है.

कैसे करें पाले से बचाव :

किसान दिन-रात खेती-किसानी का काम करते हुए मौसम के मिजाज को जानता है. और उसे आने वाले मौसम का अनुमान हो जाता है, इसलिए किसान को जब पाला पड़ने के आसार नजर आएं तो उस रात 12 बजे से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तरपश्चिम दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में बोई हुई फसल के किनारे मेंड़ों पर आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ा-कचरा या घास-फूस जलाकर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गरमी आ जाए. चाहें तो मेंड़ पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कूड़े-करकट के ढेर लगा कर धुआं करें. इस तरीके से तापमान बढ़ाया जा सकता है, जो पाले की रुकावट करेगा.

Crop Protection

पौधशाला में अपनाएं यह तकनीक :

पौधशाला के पौधों एवं छोटे पौधे वाले उद्यानों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए. हवा आने वाली दिशा की तरफ रुकावट करें. यानी उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाएं.

फसल पर करें मल्चिंग :

पाले से बचाव के लिए मल्चिंग भी एक तरीका है. यह तकनीक ज्यादातर छोटे पौधे वाली फसल या मेंड़ पर लगाई गई सब्जियों की खेती पर अधिक कारगर है. इस तकनीक में फसल को पुआल, प्लास्टिक शीट या सूखी पत्तियों आदि से ढक दिया जाता हैं, जिससे फसल का पाले से बचाव हो जाता है.

सिंचाई भी है लाभकारी :

जब पाला पड़ने की संभावना अधिक हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है, इसलिए कभी यह तरीका भी अपनाया जा सकता है.

सर्दियों में पड़ने वाला पाला खेती की अनेक फसलों को खासा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए किसान थोड़ी सूझ-बूझ से फसलों में पाले से होने वाले नुकसान को कम कर सकता है.

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