Col. Harishchandra Singh : सैनिक से प्रगतिशील किसान तक का सफर

Col. Harishchandra Singh : अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले “कर्नल हरिश्चंद्र सिंह” ने पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के नारे “जय जवान – जय किसान” को हकीकत में बदल कर देश में एक अलग मिसाल कायम की है. खेती के प्रति उन के लगाव और कार्य से प्रभावित हो कर 28 फरवरी, 2021 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने “मन की बात” कार्यक्रम में कर्नल हरिश्चन्द्र सिंह का उदाहरण पेश किया और बाद में उन्हें दो अवसरों पर आमंत्रित भी किया.

कर्नल हरिश्चंद्र सिंह भारत सरकार द्वारा प्रकाशित “कौफी टेबल बुक” में स्थान पाने वाले उत्तर प्रदेश के पहले किसान है. कर्नल हरिश्चन्द्र सिंह को बचपन से ही खेती में लगाव था और एक सैनिक के साथसाथ सफल किसान के रूप में जिस तरह से वह अपनी मेहनत के बल पर उभरे हैं, वह देश के लिए एक मिसाल है.

पिछले साल नवंबर 2024 में उन्हें “दिल्ली प्रेस” द्वारा लखनऊ में आयोजित राज्य स्तरीय “फार्म एन फूड कृषि अवार्ड” से भी सम्मानित किया गया, जहां उन से “फार्म एन फूड” के प्रतिनिधि ने विस्तार से बातें की और यह जानने की कोशिश भी की कि उन्होंने एक सैनिक से ले कर एक सफल किसान तक का सफर कैसे तय किया ?

Col. Harishchandra Singh

आप अपने बचपन की कुछ बातें और सेना में नौकरी के साथसाथ खेती से कैसे जुड़ाव हुआ और कैसे आप देश के लिए एक मिसाल बन गए, इस बारे में कुछ बताइए ?

मैं अयोध्या क्षेत्र के एक छोटे से गांव “चक्रसेन पुर” का मूल निवासी हूं. लेकिन अब लखनऊ में रह रहा हूं. मेरे पिता अध्यापक होने के साथसाथ एक बहुत अच्छे किसान और बागवान भी थे. स्कूल के दिनों में स्कूल जाने से पहले और आने के बाद, हमें खेती में कुछ न कुछ काम करना पड़ता था. घर में कुछ पशु भी थे उन की भी देखभाल करनी पड़ती थी. इस दौरान देश में हरित क्रांति की भी शुरूआत हो चुकी थी. हमारे सरकारी मिडिल स्कूल में एक बड़ा कृषि फार्म, ट्यूबेल और खेती के लिए दो जोड़ी बैल थे. उस समय प्रतिदिन कृषि के दो पीरियड होते थे, जिस में कृषि अध्यापक क्लास के बच्चों से प्रायोगिक खेती भी करवाते थे. यहीं से कृषि एवं बागबानी में मुझे रूचि पैदा हुई.

फिर ग्रेजुएशन के बाद मेरा भारतीय सेना में सैन्य अधिकारी के पद पर चयन हो गया. फिर खेतीबारी बहुत पीछे छूट सी गई, लेकिन सैन्य सेवा के दौरान भी इस से संबंधित कुछ मौके मिले, जिस से खेती के प्रति मेरा जोश और जुनून बना रहा. फिर मैं 54 साल की उम्र में जनवरी 2016 को कर्नल के पद से रिटायर हुआ .चूंकि खेती करने की कहीं न कहीं मन में कसक थी. इसलिए लखनऊ के पास बाराबंकी में मैंने खेती की जमीन खरीदी. यहां पर मैंने सुपरफूड कहे जाने वाले “चिया सीड” और “ड्रैगन फ्रूट” की खेती जैविक तरीके से करने की शुरूआत की.

आप कब से खेती कर रहे हैं और खेती में कोई खास तकनीक भी अपनाते हैं, किन फसलों को उगाते हैं?

Col. Harishchandra Singh

देश की बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मैंने साल 2016 में जैविक तरीके से खेती करने का निर्णय लिया. शुरू में सुपर फूड कहे जाने वाली फसलों, फलों जैसे कि चिया सीड, किनुआ, रामदाना, काला गेहूं, काला चावल, काला आलू, ड्रैगन फ्रूट (कमलम), एप्पलबेर, नीबू, सेब, हल्दी एवं जिमीकंद आदि को लगाया. अब मैं ज्यादातर ड्रैगन फ्रूट (कमलम), चिया सीड, परवल, काले बैगनी आलू, अंदर से लाल आलू, जिमीकंद, नीबू, कुछ चुनिंदा किस्म के गेहूं/ चावल, अरहर, तिल, सरसों और पिपरमेंट (मेन्था) आदि की खेती कर रहा हूं. अपनी खेती में मैं लागत में कटौती और नवाचार पर ज्यादा ध्यान देता हूं.

आप ने खेती में कुछ अलग तरह की फसलों को ही क्यों चुना ?

Col. Harishchandra Singh

मैं बचपन से ही देखता आ रहा हूं कि पारंपरिक फसलों से किसानों को कोई खास आय नहीं होती, जिस से उन के जीवन स्तर का सुधर पाना मुश्किल है. कृषि के प्रति रूचि और खेती को लाभदायक कैसे बनाया जाए, इसी सोच से मैंने कुछ अलग हट कर फसलों का चुनाव किया और अपनी खेती में अनाजों, फलों एवं सब्जियों, तीनों को सम्मिलित किया.

आप ने बताया कि आप ने पारंपरिक खेती से हट कर फसलों का चुनाव किया, तो क्या यह सब आसान था या आप ने कहीं से कोई मदद भी ली ?

आप ने सही कहा ,शुरूआत में मैं इस तरह की खेती से पूरी तरह अंजान था, लेकिन नए काम का जोखिम उठाना मेरी आदत में है. खेती शुरू करने से पहले मैं कृषि एवं उद्यान विभाग, कृषि विज्ञान केंद्रों,  कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों और प्रगतिशील किसानों से मिला, जिस से मुझे काफी जानकारी हासिल हुई. साथ ही, सरकारी योजनाओं को जाना और सिंचाई की समस्या को दूर करने के लिए कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत मैंने अपने खेतों पर ‘सोलर पंप’ लगवाया. उद्यान विभाग द्वारा ‘पर ड्राप मोर क्राप’ परियोजना के अंतर्गत टपक एवं फव्वारा सिंचाई की सुविधा भी ली, इन सब से मुझे बहुत फायदा हुआ. खेती में समस्या आने पर मैंने कृषि विशेषज्ञों से भी मदद ली, जहां से मुझे बहुत कुछ नया सीखने को मिला. शुरुआत में कुछ दिक्कतें जरूर आई परंतु अब मैं सफलता पूर्वक खेती कर रहा हूं.

आप ने पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग खेती की, आप को क्या लगता है कि अन्य किसानों को भी आप से कुछ लाभ मिला ?

“मन की बात” कार्यक्रम के बाद देश के बहुत सारे किसान मुझ से जुड़ गए और प्रेरित हो कर चिया सीड और ड्रैगन फ्रूट की खेती करने लगे, जिस से देश में इन फसलों के आयात पर निर्भरता कम हुई है. ऐसा नहीं है कि मैंने ही कुछ अलग हट कर काम किया, मेरे जैसे न जाने कितने किसान हैं जो खेती में प्रतिदिन कुछ न कुछ बहुत अच्छा नवाचार कर रहे हैं. हम एक दूसरे के नवाचार और अनुभव से बहुत कुछ सीखते हैं. शुरूआती दौर में लोगों में प्रश्न और जिज्ञासा होती हैं, लेकिन अब काफी लोग अपनी सोच और कृषि मौडल को बदल रहे हैं, जिस से किसान लाभान्वित हो रहे हैं. लोगों में नए प्रयोगों एवं उत्पादों के बारे में जान ने की काफी जिज्ञासा रहती है. जागरूक और प्रगतिशील किसानों की आपस में चर्चा होने से जानकारी का आदानप्रदान होता है, जिस से लोगों को कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है. सरकार भी इस क्षेत्र में काफी प्रयास कर रही है.

Col. Harishchandra Singh

हमारे लाभदायक खेती के मौडल को देखने और जानने के लिए काफी किसान, कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ, कृषि शोधार्थी छात्र, सेवानिवृत्त कर्मी एवं आईटी सेक्टर के युवा भी आते हैं. कुछ नई बातें बताकर और नई जानकारी ले कर व दे कर जाते हैं और उन्हें अपनी खेती में अपनाते भी हैं. हम किसान लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं ताकि, नएनए प्रयोगों को अपना सकें. निश्चित ही कृषि क्षेत्र में नवाचार “आत्मनिर्भर भारत” की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रेडियो कार्यक्रम मन की बातमें आपका जिक्र हुआ, इससे आप पर और आप के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

प्रधानमंत्री जी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मेरी खेती का जिक्र किया जाएगा, इस बात का मुझे जरा सा भी आभास नहीं था और न ही इस बारे में कभी सोचा था. मैं घर से बाहर था लेकिन मेरी पत्नी व बहू इस कार्यक्रम को सुन रहे थे. जानकारी होते ही हम लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा, हम लोग बहुत ही आश्चर्य चकित हुए. इस से मैं इतना उत्साहित हुआ कि अब खेती में बेहद क्रियाशील हो गया हूं. अब बहुत से लोग मुझे अच्छे किसान के रूप में जानने लगे हैं. मेरा मानसम्मान बढ़ा है और बहुत कम समय में देश के प्रगतिशील किसानों में मेरी गिनती होने लगी है. अब मैं अपने को काफी ऊर्जावान महसूस कर रहा हूं और अपनी खेती का दायरा काफी बढ़ा चुका हूं.

स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती

हमारे देश के ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं, जिस से उन्हें अपेक्षा के अनुरूप फायदा नहीं मिल पाता है. पारंपरिक खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए मौसम की अनिश्चितता भी बड़ी समस्या है. खादबीज की समय से उपलब्धता न हो पाना भी किसानों के लिए खेती में नुकसान की एक बड़ी वजह बन जाता है. पारंपरिक फसलों का मूल्य भी व्यावसायिक की अपेक्षा बहुत कम होता है, जिस से किसान निराशा का शिकार हो कर खेती से धीरेधीरे दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में किसानों को पारंपरिक फसलों के साथ ही कुछ ऐसी फसलों की खेती की तरफ कदम बढ़ाना होगा, जिस का बाजार मूल्य और मांग दोनों अच्छे हों.

ऐसी ही एक व्यावसायिक फसल की खेती कर किसान अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, जिसे स्पिरुलिना के नाम से जाना जाता है. यह एक तरह का जीवाणु है, जिसे साइनोबैक्टीरियम के नाम से भी जाना जाता है.

आमतौर पर इसे हम ‘शैवाल’ भी कह सकते हैं. यह एक प्रकार की जलीय वनस्पति है, जो  झीलों,  झरनों और खारे पानी में आसानी से पैदा होती है. प्राकृतिक रूप से यह समुद्र में पाई जाती है. इस का रंग हरा व नीला होता है.

व्यावसायिक लेवल पर इस की खेती प्लास्टिक या सीमेंट के टैंक बना कर भी की जा सकती है. यह पोषण के सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इस में ऐसे कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व मौजूद होते हैं, जो हमें बीमारियों से बचाते हैं. साथ ही, इस में कई तरह के विटामिंस, खनिज और पोषक तत्त्व के साथसाथ प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. यह पोटैशियम, कैल्शियम सेलेनियम और जिंक का भी महत्त्वपूर्ण स्रोत है. कई देशों में इसे ‘सुपर फूड’ के नाम से भी जाना जाता है.

सेहत के लिए फायदेमंद : स्पिरुलिना की खेती किसानों के लिए इसलिए ज्यादा फायदेमंद मानी जा सकती है, क्योंकि यह सेहत और पोषण के लिए सब से मुफीद माना जाता है. इस का खाने में उपयोग करने से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, साथ ही, शरीर में कोलेस्ट्रौल की मात्रा को संतुलित रखता है. इस का उपयोग दिल के लिए भी अच्छा होता है.

अगर स्पिरुलिना का सेवन नियमित रूप से किया जाए तो यह सांस संबंधी बीमारी और एलर्जी से भी बचाता है. इस का उपयोग कैंसर की संभावनाओं को भी कम करता है. यह पाचन तंत्र और दिमागको भी मजूबत बनाता है.

स्पिरुलिना का खाने में उपयोग शरीर में खून की कमी को दूर करता है. यह मांसपेशियों को मजबूती देने के साथ शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. इसीलिए ढेर सारे गुणों को समेटे स्पिरुलिना की मांग न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी खूब है. इस नजरिए से कोई भी किसान अगर इस की खेती करता है, तो उसे मार्केटिंग के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है.

स्पिरुलिना को खाने के लिए पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस में आयरन,  ओमेगा 6 , ओमेगा 3 फैटी एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी 1, विटामिन बी 2, विटामिन बी 3, कौपर,  मैंगनीज, पोटैशियम और मैगनीशियम जैसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध होती है.

खेती के लिए अनुकूल दशा : स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती के लिए गरम मौसम का होना जरूरी है. भारत में ठंड के मौसम में इस की खेती नहीं की जा सकती.

अगर किसान चाहते हैं कि स्पिरुलिना की फसल में ज्यादा प्रोटीन की मात्रा हासिल करें, तो उस के लिए सामान्य धूप होना जरूरी है यानी तापमान 30 से 35 डिगरी सैल्सियस के बीच हो.

आजकल तापमान का पता लगाने के लिए कई तरह के मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं, जिन्हें हम अपने मोबाइल फोन में आसानी से इंस्टौल कर जानकारी ले सकते हैं. कम तापमान की दशा में स्पिरुलिना की क्वालिटी और उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं.

Sprilunaखेती के लिए पानी का टैंक या तालाब तैयार करना : स्पिरुलिना शैवाल की खेती को खुले तालाबों में करना न केवल कठिन होता है, बल्कि इस से क्वालिटी और उत्पादन दोनों ही प्रभावित होते हैं. इस के लिए किसान कंकरीट या प्लास्टिक की पन्नियों से टैंक तैयार कर सकते हैं.

शुरुआती दौर में कम लागत से स्पिरुलिना शैवाल की खेती शुरू करने के लिए पौलीथिन का गड्ढा भी तैयार किया जा सकता है. कंकरीट या पौलीथिन से तैयार किए गए गड्ढे का उत्तम आकार लंबाईचौड़ाई 10×20 फुट का हो सकता है और गहराई 2-3 फुट तक हो सकती है. गड्ढों को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए पौली पैक में भी बनाया जा सकता है.

खेती शुरू करना : कंकरीट या पौलीथिन से तैयार गड्ढे यानी टैंक में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी भर दिया जाता है. गड्ढे में पानी भरते समय यह ध्यान रखें कि उस में भरा जाने वाला पानी गंदा न हो. चूंकि गरम तापमान में इस की खेती की जाती है. ऐसे में गड्ढा खुले होने के चलते पानी का वाष्पीकरण भी होता रहता है, जिस से गड्ढे में पानी की मात्रा कम हो सकती है, इसलिए गड्ढे में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी की भराई करते रहना चाहिए.

पानी के गड्ढे में स्पिरुलिना के बीज व कल्चर डालने के पहले पानी में पीएच मान की संतुलित मात्रा का निर्धारण किया जाता है.

पीएच का मतलब होता है पानी में हाइड्रोजन की क्षमता या पोटैंशियल हाइड्रोजन. इस से पानी की गुणवत्ता का निर्धारण भी किया जाता है. पानी में स्पिरुलिना बीज डालने के पहले पानी में पीएच की आदर्श मात्रा 9 से 11 के बीच होना जरूरी है. इस की जांच के लिए बाजार में मामूली कीमत पर पीएच पेपर मुहैया होता है. इस के जरीए पानी में पीएच की मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है.

इस के अलावा गड्ढे में उपलब्ध पानी की मात्रा के अनुसार प्रति लिटर पानी में 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट यानी खाने वाले सोडे़ का घोल मिलाते हैं. पानी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का घोल या कल्चर भी मिलाया जाता है. इस में एक किलोग्राम स्पिरुलिना के बीज के साथ 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट, 5 ग्राम सोडियम, 0.2 ग्राम यूरिया, 0.5 ग्राम पोटैशियम सल्फेट, 0.16 मैगनीशियम सल्फेट, 0.052 मिलीलिटर फास्फोरिक एसिड और 0.05 मिलीलिटर फेरस सल्फेट पानी से भरे टैंक में मिलाए जाते हैं. इस पानी को डंडे की मदद से रोज हिलाया जाना चाहिए. इसे तैयार करने में एक हफ्ते का समय लगता है.

किसान उक्त रसायनों के घोल की मात्रा के निर्धारण में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए औनलाइन भी संतुलित मात्रा का पैकेट खरीद सकते हैं. जब गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती योग्य पानी तैयार हो जाए, तो इस में स्पिरुलिना कल्चर और 10 लिटर पानी के हिसाब से 30 ग्राम शुष्क स्पिरुलिना का बीज डाला जाता है.

स्पिरुलिना की  खेती के लिए व्यावसायिक लेवल पर इस के बीज को किसानों को खुद ही अलग गड्ढे में तैयार करते रहना चाहिए. इस से बीज के ऊपर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है.

पानी को क्रियाशील बनाना : जिस गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती की जाती है, उस का क्रियाशील होना जरूरी है, इसलिए पानी को क्रियाशील बनाए रखने के लिए उस में बिजली या सोलर से चलने वाले आटोमैटिक पैडल या डंडे द्वारा पानी को फेंटते रहना चाहिए. इस से स्पिरुलिना जीवाणु कल्चर के साथ क्रियाशील हो कर अच्छा उत्पादन देता है. पानी के फेंटने के चलते स्पिरुलिना की फसल को पर्याप्त मात्रा में धूप भी मिलती  है.

फसल को सुखाना : स्पिरुलिना के गीले कल्चर को प्रतिदिन साफ कपडे़ से छान लिया जाता है. इस के बाद इस में उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इसे किसी छायादार बंद कमरे में फैला कर सुखाया जाता है. सूखा होने पर स्पिरुलिना कई महीनों तक चल जाएगी और इस में पोषक तत्त्व भी संरक्षित किया जा सकता है. इस की तैयार फसल को नैचुरल तरीके से सुखाने के लिए मशीनें भी उपलब्ध हैं. इस का उपयोग कर फसल को सुखाया जा सकता है.

जब स्पिरुलिना पर्याप्त मात्रा में सूख जाती है, तो इसे पीस कर चूर्ण या कैप्सूल के लिए तैयार कर लिया जाता है. इस तरह स्पिरुलिना के तैयार उत्पाद को वायुरोधी पैकिंग में पैक कर 3 से 4 साल तक पौष्टिक गुणों के साथ महफूज रखा जा सकता है.

Sprilunaलागत, उत्पादन व लाभ : स्पिरुलिना की खेती के लिए अगर कंकरीट का गड्ढा तैयार किया जाता है, तो 10×20 फुट आकार के गड्ढे पर तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए की लागत आती है. इस के अलावा प्लांट के लिए मशीनरी, कैमिकल वगैरह पर 20 गड्ढों कीलागत समेत एक बार में लगभग 7 से 8 लाख रुपए की लागत आती है.

एक बार पूंजी लगाने के बाद प्रत्येक गड्ढों से औसतन 2 किलोग्राम गीली कल्चर हर दिन पैदा होता है. इस तरह एक किलोग्राम गीले स्पिरुलिना के लगभग 100 ग्राम शुष्क पाउडर मिल जाता है. इस के आधार पर औसतन 20 टैंक स्पिरुलिना फार्मिंग से प्रतिदिन 4-5 किलोग्राम सूखा स्पिरुलिना पाउडर मिलता है.

इस तरह से एक महीने में स्पिरुलिना का उत्पादन 100 से 130 किलोग्राम तक हासिल होता है. इस तरह से अगर सूखे स्पिरुलिना की बिक्री थोक दर पर लगभग 600 रुपए प्रति किलोग्राम होती है, तो आसानी से एक किसान हर माह तकरीबन 40-45 हजार रुपए  की आमदनी हासिल कर सकता है.

मिलेट से बनाएं सेहतमंद पकवान

कोदो, कुटकी, नाचनी या रागी और बाजरा आदि मिलेट के अंतर्गत आने वाले अनाज हैं. ये अनाज ग्लूटेन फ्री और फायबर से भरपूर होते हैं, जिस से इन्हें पचाने के लिए हमारे पाचनतंत्र को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती, इसीलिए इन्हें सुपर फ़ूड भी कहा जाता है. इन्हें अपनी रोज की डाइट में शामिल करना हमारे उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होता है.

आज हम आप को ऐसे ही मिलेट की 2 रैसिपी बनाना बता रहे हैं, जिन्हें आप आसानी से घर पर बना सकती हैं. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है :

रागी मिक्स वेज परांठा

कितने लोगों के लिए : 4

बनने में लगने वाला समय:  30 मिनट
मील टाइप: वेज

सामग्री (कवर के लिए)
रागी का आटा –  2 कप
नमक – स्वादानुसार
घी –  1/2 टीस्पून
पानी – 1 कप

अजवाइन – 1 चुटकी
तेल – परांठा सेंकने के लिए

सामग्री (भरावन के लिए)

उबले मैश किए आलू  – 2
बारीक कटा प्याज  – 1
बारीक कटी हरी मिर्च  – 3
बारीक कटा हरा धनिया  – 1 लच्छी
बारीक कटी शिमला मिर्च  – 1/2 कप
बारीक कटी बींस  – 1/4 कप
नमक  – स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर  – स्वादानुसार
अमचूर पाउडर  – 1/4 टीस्पून
जीरा  – 1/8 टीस्पून
गरम मसाला  – 1/4 टीस्पून
टोमेटो सौस  – 2 टेबलस्पून
तेल  – 1 टीस्पून

विधि :

एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के जीरा तड़का कर प्याज को सुनहरा होने तक भून लें. अब इस में हरी मिर्च, शिमला मिर्च, बींस और नमक डाल कर ढक कर 5 मिनट तक पकाएं. उस के बाद उबले हुए आलू और सभी मसाले डाल कर अच्छी तरह चलाएं. 2-3 मिनट भून कर हरा धनिया डाल कर गैस बंद कर दें.

अब आटा तैयार करने के लिए पानी को नमक, घी और अजवाइन के साथ एक भगौने में उबाल लें. जैसे ही पानी उबलने लगे तो गैस बंद कर दें और रागी का आटा डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब पानी में आटा अच्छी तरह मिक्स हो जाए, तो इसे एक प्लेट में निकाल कर हाथ से अच्छी तरह मिला कर एकदम गेहूं के आटे जैसा नरम कर लें.

अब चकले पर थोड़ा सा तेल या घी लगा कर 2 रोटी बेल लें. एक रोटी के किनारों पर उंगली से पानी लगाएं और ब्रश से पूरी रोटी पर टोमेटो सौस लगा कर 1 टेबलस्पून भरावन अच्छी तरह फैला दें. ऊपर से दूसरी रोटी रख कर उंगलियों की सहायता से चारों तरफ से दबा दें. तैयार परांठे को चिकनाई लगे तवे पर डाल कर घी लगा कर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक लें.

गरमागरम परांठे को चटनी या अचार के साथ सर्व करें.

कोदो मिलेट पिज्जा

कितने लोगों के लिए:  6
बनने में लगने वाला समय:  30 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री
कोदो मिलेट –  1 कप
चना दाल  – 1/4 कप
चावल  – 1/2 कप
दही  – 1/2 कप
ईनो फ्रूट साल्ट  – 1 सैशे
बारीक कटी हरी मिर्च  – 4
अदरक  – 1 छोटी गांठ
हींग  – 1 चुटकी
जीरा  – 1/8 टीस्पून
नमक  – स्वादानुसार
हल्दी पाउडर  – 1/4 टीस्पून
बारीक कटी लाल शिमला मिर्च – 1 टीस्पून
बारीक कटी हरी शिमला मिर्च – 1 टीस्पून
बारीक कटी पीली शिमला मिर्च – 1 टीस्पून
चीज क्यूब्स  – 6
चिली फ्लेक्स  – 1/2 टीस्पून
ओरेगेनो  – 1/2 टीस्पून
चाट मसाला  – 1 टीस्पून
घी  – 1 टीस्पून

विधि :

कोदो मिलेट, चावल और दाल को बनाने से पहले ओवरनाइट भिगो दें. सुबह पानी निकाल कर हरी मिर्च, नमक और दही के साथ बारीक पीस लें. अब इस में ईनो फ्रूट साल्ट, जीरा, हींग और हल्दी पाउडर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. तैयार मिश्रण से चिकनाई लगे तवे पर एक बड़ा चम्मच मिश्रण ले कर मोटामोटा फैलाएं. जब इस का रंग बदल जाए तो पलट दें और एक पूरा चीज क्यूब ग्रेट कर दें. ऊपर से तीनों शिमला मिर्च डाल कर ढक कर एकदम धीमी आंच पर चीज के मेल्ट होने तक पकाएं. ऊपर से ओरेगेनो, चिली फ्लेक्स और चाट मसाला बुरक कर सर्व करें.

मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कल्चरल प्रोग्राम

मेरठ : श्री अन्न अर्थात मोटे अनाज का महत्व बहुत अधिक है. इसे हमें अपने भोजन में शामिल करना चाहिए, क्योंकि पौष्टिक गुणों के कारण आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस को सुपरफूड या न्यूट्री सीरियल्स के नाम से जाना जाता है. मोटे अनाज की फसलों को कम उपजाऊ भूमि पर कम मात्रा में जल उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग कर के उगाया जा सकता है.

कुलपति डा. केके सिंह ने कहा कि मोटे अनाज की खेती किसानों को कम लागत में बेहतर आमदनी प्राप्त करने का एक अच्छा स्रोत भी प्रदान करती है. मोटे अनाज पोषक और आर्थिक सुरक्षा देने के साथसाथ जलवायु सुरक्षा के लिए भी अनुकूल हैं, क्योंकि यह कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद करता है. इस में ग्लूटेनमुक्त और कम होने के कारण इस को मधुमेह से पीड़ित लोग व मोटापे की रोकथाम के लिए बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग में लाते हैं.

उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि विश्व में मोटे अनाजों का सब से बड़ा उत्पादक हमारा देश भारत ही है. देश में मोटे अनाजों की कुल पैदावार में सब से बड़ा हिस्सा बाजरा, ज्वार और रागी का है. इन में से बाजरा और ज्वार की विश्व में कुल पैदावार का लगभग 19 फीसदी हिस्सा भारत में पैदा किया जाता है. भारत के मोटे अनाज की पैदावार वाले प्रमुख राज्यों देखा जाए, तो लगातार मोटे अनाजों की मांग बढ़ती जा रही है.

सहायक महानिदेशक बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली डा. डीके यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि मोटे अनाज की खेती कब और कैसे की जाए और इस से किस प्रकार से अच्छा गुणवत्तायुक्त उत्पादन लिया जा सकता है विषय पर अपने विचार रखे.

कार्यक्रम अधिकारी शिवनंदन लाल ने अपने संबोधन में कहा कि पूरे देश में मोटे अनाजों की खेती और जी-20 की उपयोगिता को देखते हुए इस तरह के कार्यक्रमों का आकाशवाणी द्वारा आयोजन किया जा रहा है. इस आयोजन में लोक नृत्य एवं लोक संगीत को जनमानस तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है, जिस से लोग अपने लोकसंगीत को भी ना भूलें और मोटे अनाज की खेती कर के अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखें.

इस कार्यक्रम के संयोजक और कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और अपने संबोधन में कहा कि इस विश्वविद्यालय को एक समृद्धि और अभिवृद्धि के क्षेत्र में अनुसंधान, नई प्रौद्योगिकियों और ज्ञान के प्रसार के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया है. हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं कि हमारे किसान नवीनतम प्रौद्योगिकी से समर्थ होंगे. हमारी प्रथाएं विकसित और जलवायु परिवर्तन के साथ समर्थ होंगी और हमारी ग्रामीण समुदाय व किसान समृद्धि से जीवनयापन जी सकेंगे. इस के लिए जरूरी है कि वह नईनई तकनीकों का समावेश करें, जिस से उन को कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक उत्पादन मिल सके और उन की आर्थिक स्थिति अच्छी हो सके.

आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख मनोहर सिंह रावत ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बताया कि आकाशवाणी कार्यक्रम युवाओं के बीच में जी-20 देशों की भागीदारी के साथ मोटे अनाज के उत्पादन और उस के प्रसंस्करण एवं विस्तार के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और आगामी समय में आकाशवाणी द्वारा विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथसाथ सीमाओं पर जा कर भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिस से उस क्षेत्र के किसान एवं विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा मोटे अनाज की खेती कर के प्रसंस्करण, भंडारण और वित्तीय उत्पाद को बना कर बेचने की व्यवस्था करेंगे, जिस से लोगों के बीच मोटे अनाज की उपयोगिता और बढ़ सके और वह स्वस्थ रह सके.

डा. देश दीप, डा. नीलेश कपूर, डा. पंकज चौहान, डा. पुरुषोत्तम और विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 360 छात्रछात्राएं कार्यक्रम में मौजूद रहे.

इस अवसर पर आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी प्रमोद कुमार, कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. रामजी सिंह, निदेशक शोध प्रो. अनिल सिरोही, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से आए हुए प्रो. संजय राठौर, अधिष्ठाता कृषि डा. विवेक धामा, डा. रविंद्र कुमार, डा. विजेंद्र सिंह, डा. डीके सिंह, डा. कमल खिलाड़ी, डा. विपिन कुमार, डा. शैलजा कटोच, डा. शालिनी गुप्ता, डा. वैशाली, डा. देश दीप, डा. नीलेश कपूर, डा. पंकज चौहान, डा. पुरुषोत्तम और विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 360 छात्रछात्राएं कार्यक्रम में मौजूद रहे.

कृषि विश्वविद्यालय में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए और उस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए रागिनी का आयोजन किया गया. लोक कलाकारों ने लोकसंगीत के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन उस की उत्पादकता और आय बढ़ाने का संदेश दिया. रागिनी के द्वारा लोगों को समझाया कि किस का उत्पादन बढ़ाएं, जिस से सभी की आय बढ़ सकेगी.

इस कार्यक्रम में आकाशवाणी की 2 रागिनी पार्टियों ने हिस्सा लिया, जिस में कंपटीशन किया गया. प्रथम पार्टी अमित तेवतिया और पूजा शर्मा के द्वारा रागिनी प्रस्तुत की गई और दूसरी पार्टी प्रीति चौधरी की थी, जिस ने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए.

Millets

इस एकदिवसीय कार्यशाला के दौरान छात्रों द्वारा मोटे अनाज के माध्यम से रंगोली बनाई गई और मोटे अनाज के द्वारा पोस्टों को बनाया गया.

इस प्रतियोगिता में छात्रछात्राओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और उन की टीमों ने मोटे अनाज के माध्यम से विभिन्न प्रकार की रंगोली और पोस्टों को तैयार किया.

इकोफ्रेंडली तकनीकी और पर्यावरण मित्रता को बढ़ावा देने के लिए मंच पर मौजूद देश के विभिन्न जगहों से आए हुए आगंतुकों का स्वागत तुलसी का पौधा भेंट कर के किया गया.