यह नवजात बछड़ों में होने वाली जीवाणुजनित एक बीमारी है. इस में बछड़े को पतले, सफेदपीले बदबूदार दस्त व सैप्टिसीमिया हो जाता है. बछड़े की आंखें धंस जाती हैं, शरीर में पानी की कमी हो जाती है और कमजोर हो कर निढाल सा बैठ या लेट जाता है. इस के चलते ज्यादातर बछड़ों की मौत हो जाती है. यह रोग एक माह की उम्र तक के बछड़ों को हो सकता है.

कारण

* यह बीमारी एस्चीरिचिया कोलाई नामक जीवाणु से होती है, जो ग्राम नैगेटिव होता है. इस जीवाणु के 2 सीरोटाइप होते हैं, जो आंत और रक्त के संक्रमण को फैलाते हैं. ये जीवाणु वातावरण में हर जगह पाए जाते हैं.

* जिन बछड़ों को खीस नहीं पिलाया गया हो या विटामिन ए की कमी हो अथवा शारीरिक कमजोरी हो, ऐसे बछड़ों में यह बीमारी लग सकती है. इस के अलावा अगर बछड़ों के रहने की जगह गंदी हो या खानपान में लापरवाही हो या ज्यादा बछड़ों को छोटी जगह में रखा गया हो व ज्यादा गरम या ठंडा वातावरण जैसी वजहों से भी यह रोग फैल सकता है.

* स्वस्थ पशु द्वारा रोगी पशु के गोबर से दूषित आहार व पानी का उपयोग करने से भी यह रोग फैलता है. इस के अलावा गर्भपात हुए भ्रूण, वैजाइनल डिस्चार्ज, नेवल इंफैक्शन से भी नवजात पशु में संक्रमण हो सकता है.

लक्षण

दरअसल, नीचे दिए गए लक्षणों के आधार पर बछड़ों में 3 प्रकार के दस्त होते हैं :

आंतरिक विषरक्तता काफ स्काउर

* इस में बछड़े को दस्त होता है, शरीर ठंडा व तापमान कम हो जाता है, हृदय गति कम हो जाती है, आंखों की श्लेष्मिक झिल्ली सफेद दिखाई देती है और बछड़ा निढाल हो कर कोमा की अवस्था में लेट जाता है या 2-6 घंटे में बछड़े की मौत हो जाती है.

सैप्टिसिमिक काफ स्काउर

* अकसर ऐसे लक्षण जन्म के बाद 4 दिनों तक ज्यादा होते हैं.

* बछड़ा दूध पीना बिलकुल बंद कर देता है, काफी सुस्त हो जाता है, हृदय गति कम हो जाती है, तापमान घटताबढ़ता रहता है. इस के चलते गठिया, लंगड़ापन, जोड़ों में सूजन व दर्द होता है.

* शरीर में कंपकंपाहट व आंखों का घूम जाना भी इस का लक्षण है.

आंतरिक काफ स्काउर

* यह दस्त जन्म के पहले 3 हफ्ते के दौरान होता है.

* पतले चिकनाई युक्त और सफेदपीले रंग का दस्त होता है.

* बारबार दस्त से बछड़े की पूंछ व पिछले पैर गोबर से सने रहते हैं.

* तापमान बढ़ जाता है, पल्स रेट भी बढ़ जाती है.

* बछड़ा बरतन में रखा दूध या गाय का दूध नहीं पीता है, जिस से डिहाइड्रेशन हो जाता है.

* बारबार दस्त लग जाने से पेट में काफी दर्द होता है और कमर भी मुड़ जाती है.

* यदि समय पर इलाज न हो, तो 3-5 दिन में बछड़े की मौत हो जाती है.

निदान

लक्षण व गोबर की जांच के आधार पर :

* सफेदपीले व बदबूदार दस्त जन्म के कुछ ही दिन के बाद हो जाता है.

* कौक्सीडियोसिस, परजीवी संक्रमण व अन्य रोग की संभावना को खारिज करने के लिए गोबर की जांच करना जरूरी है.

उपचार

* बछड़े को मां के दूध के अलावा एक दिन तक किसी भी तरह का दूसरा आहार नहीं देना चाहिए. अगर वह मां का दूध थनों से पीए, तो पीने देना चाहिए.

* बछड़ों में मौत की वजह शरीर में पानी की कमी होती है, इसलिए शरीर में पानी की कमी को पूरा करने के लिए 5 फीसदी कैक्स्ट्रोज सैलाइन इंजैक्शन 10-20 मिलीलिटर  प्रति किलोग्राम शरीर के भारानुसार नसों में देना चाहिए.

* एस्चेरिचिया कोलाई जीवाणु एंटीबायोटिक्स के प्रति काफी रेजिस्टैंट होते हैं, इसलिए गोबर की जांच कराने के बाद ही निम्न में से कोई एक उचित एंटीबायोटिक देनी चाहिए:

फ्यूरोजोलीडोन : 10 मिलीलिटर  प्रति किलोग्राम शरीर भारानुसार प्रतिदिन मुंह द्वारा 2 विभाजित मात्रा में 3-5 दिनों तक, 200 मिलीग्राम का बोतल उपलब्ध.

नौरफ्लौक्सासिन : 22 मिलीलिटर  प्रति किलोग्राम शरीर भारानुसार प्रतिदिन मुख द्वारा 2 विभाजित मात्रा में 3-5 दिनों तक, 400 मिलीग्राम की बोतल उपलब्ध.

एमौक्सीसलिनि : 10 मिलीलिटर  प्रति किलोग्राम शरीर भारानुसार प्रतिदिन मुख द्वारा 2 विभाजित मात्रा में 3-5 दिनों तक, 1.5 ग्राम की बोतल उपलब्ध.

टैट्रासाइक्लीन : 5-10 मिलीलिटर  प्रति किलोग्राम शरीर भारानुसार प्रतिदिन मुख द्वारा 3 विभाजित मात्रा में 3-5 दिनों तक, 500 मिलीग्राम की बोतल उपलब्ध.

औक्सीटैट्रासाइक्लीन : 5-10 मिलीलिटर प्रति किलोग्राम  शरीर भारानुसार प्रतिदिन अंत:पेशीय नसों में 5-6 दिनों तक, 50 मिलीग्राम प्रति मिलीलिटर, 30 मिलीलिटर की बोतल उपलब्ध.

* जिस एंटीबायोटिक का प्रयोग मुंह द्वारा किया गया है, उसी एंटीबायोटिक का प्रयोग इंजैक्शन द्वारा करना चाहिए.

इस के अलावा क्रोटीसोन दवा शौच से बचाने के लिए दिया जाता है (डैक्सामीथासोन : 10-30 मिलीग्राम (कुल मात्रा) अंत:पेशीय नसों में 4 मिलीग्राम प्रति मिलीलिटर).

* दवा इंडीजीनस एंटीडायरहियल्स देनी चाहिए. उपलब्धता – पाउडर, ब्रांड नाम- नैबलोन, डाइरडोन, डाईलाइट, डायरीना, बछड़ों के लिए मात्रा : 6-10 ग्राम दिन में 2 बार मुख द्वारा 3-5 दिनों तक.

* विटामिन ‘ए’ का इंजैक्शन लगाना चाहिए. उपलब्धता : 6 लाख आईयू प्रति 2 मिलीलिटर इंजैक्शन की शीशी, बछड़ों के लिए मात्रा : 0.5 से 1 मिलीलिटर अंत:पेशीय और एक सप्ताह बाद दोबारा लगाना चाहिए.

* बताई गई दवाओं का उपयोग पशु डाक्टर की सलाह के बाद ही करना चाहिए.

रोकथाम

* गाय ब्याने के स्थान पर अच्छी तरह से सफाई होनी चाहिए.

* बछड़े को सही मात्रा में खीस पिलाना चाहिए.

* बछड़ों को अधिक संख्या में एकसाथ नहीं रखना चाहिए.

* बछड़ों के रहने की जगह हवादार और साफसुथरी होनी चाहिए.

* रोगी बछड़े के गोबर से आसपास के चारापानी को दूषित होने से बचाना चाहिए

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