पशुपालकों के लिए हरे चारे की उपलब्धता का संकट पशुपालन की कठिनाइयों के लिहाज से एक प्रमुख समस्या मानी जाती है, जबकि पशुओं के समुचित विकास और अधिक दुग्ध के लिए प्रचुर मात्रा वाले पोषक तत्व से युक्त हरा चारा खिलाना बेहद जरूरी होता है.

पशुपालकों के लिए साल के कुछ महीने ऐसे होते हैं, जिस में वह आसानी से हरे चारे की उपलब्धता कर लेता है. लेकिन गरमियों के महीनों में अधिक पानी व सिंचाई के अभाव में पशुओं के लिए आवश्यक मात्रा में हरा चारा उगा पाना कठिनाई भरा होता है. इन परिस्थियों में पशुपालकों को हरे चारे के संकट से उबारने में बहुवर्षीय चारे की प्रजातियां बेहद फायदेमंद साबित होती हैं.

बहुवर्षीय हरे चारे में से एक गिनी घास की खेती इस लिहाज से फायदेमंद साबित होती है. हरे चारे के इस बहुवर्षीय फसल में पानी और सिंचाई की आवश्यकता दूसरे चारे की फसलों की अपेक्षा कम होती है. इस की फसल कम नमी की अवस्था में भी बड़ी तेजी से वृद्धि करती है.

गिनी घास में उपलब्ध पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा और उस का स्वाद दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने में कारगर साबित होता है. गिनी घास की खेती आसान तरीकों से की जा सकती है. इस के लिए दोमट या बलुई दोमट उपयुक्त होती है, जिस में जलनिकासी की उचित व्यवस्था होना जरूरी है.

गिनी घास की फसल के लिए अम्लीय व क्षारीय मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है. गिनी घास की फसल को छायादार स्थानों, मेंड़ों, नहरों के किनारे पर भी आसानी से उगाया जा सकता है.

गिनी घास की फसल लेने के लिए इस की बोआई सीधे बीज द्वारा, तने की कटिंग द्वारा या जड़ों की रोपाई कर की जा सकती है.

पोषक तत्वों की उपलब्धता

विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह के अनुसार, गिनी घास में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्वों की उपलब्धता पाई जाती है. इस में रेशा 28.36 फीसदी, प्रोटीन 6.10 फीसदी, फास्फोरस 0.29 फीसदी, कैल्शियम 0.29 फीसदी, मैग्नीशियम 0.38 फीसदी व पत्तों की पाचन क्षमता 55.58 फीसदी की मात्रा उपलब्ध होती है, जो पशुओं के विकास व दुधारू पशओं में दूध बढ़ाने में सहायक होती है.

नर्सरी तैयार करना

गिनी घास की रोपाई जड़ों से करना ज्यादा उपयुक्त होता है, क्योंकि इस से पौधे से पौधे की दूरी व लाइन से लाइन की दूरी का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है. जड़ों से रोपाई के लिए सब से पहले इस की नर्सरी तैयार करें. एक हेक्टेयर खेत में जड़ों की रोपाई के लिए 3.4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता नर्सरी डालने के लिए होती है.

नर्सरी डालने का सब से उपयुक्त समय अप्रैलमई माह का होता है. इस के लिए 6 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़ी 10-20 क्यारियां बनानी पड़ती हैं. इन क्यारियों में बीज डालने के पहले गोबर की कंपोस्ट खाद मिलाना नर्सरी उठने में सहायक होता है. नर्सरी में बीज डालने के उपरांत नर्सरी की फव्वारे से सिंचाई करते रहें.

बोआई का उचित समय

विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह बताते हैं कि गिनी घास चारे की ऐसी फसल है, जिसे वर्षभर में कभी भी बोया या रोपा जा सकता है. फिर भी सर्दी के मौसम में गिनी घास की रोपाई करने से बचना चाहिए. गिनी घास की रोपाई का सब से उपयुक्त समय वर्षा ऋतु का होता है.
गिनी घास की बोआई या रोपाई के पहले खेत की एक जुताई रोटावेटर या हैरो से करने के पश्चात दूसरी जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए.

अगर फसल की बोआई बीज से की जा रही है, तो बीज को एक से डेढ़ सैंटीमीटर गहराई में डालें. तने की कटिंग की रोपाई की दशा में कटिंग कम से कम 3 माह पुराना होना जरूरी है.

कटिंग के समय यह ध्यान दें कि जमीन के भीतर आधे से अधिक गाड़ देना चाहिए. खेत में रोपी गई इस कटिंग में जो गांठ जमीन के अंदर होती है, उसी से जड़ें निकलती हैं, जबकि ऊपरी गांठ से तना निकलता है.

गिनी घास की रोपाई करते समय पौध से पौध की दूरी 50 सैंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी 100 सैंटीमीटर रखना न भूलें.

अगर इसे अन्य फसलों के साथ रोपा जा रहा है, तो यह दूरी और बढ़ा देनी चाहिए. यह दूरी 100 से 250 सैंटीमीटर तक हो जाती है. दूसरी फसलों के साथ लेने की अवस्था में इसे बोई गई फसल के 2 लाइनों के बीच में बोया जाता है. एक हेक्टेयर खेत के लिए गिनी घास की 40,000 से 50,000 जड़ों की जरूरत पड़ती है.

गिनी घास की उन्नत प्रजातियां

गिनी घास की प्रजातियां, जो ज्यादा प्रचलित हैं, उन में कोयंबदूर- 1, कोयंबदूर- 2, डीजीजी-1, बुंदेल गिनी-1, बुंदेल गिनी-2, बुंदेल गिनी- 4, मकौनी, गटन, पीजीजी-1, पीजीजी-9 पीजीजी-14, पीजीजी-19, पीजीजी-101 व हेमिल प्रमुख हैं.

खाद एवं उर्वरक

विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह के अनुसार, हरे चारे की फसल के लिए गोबर की सड़ी खाद, कंपोस्ट खाद या केंचुआ खाद ज्यादा फायदेमंद होती है. अधिक चारा उत्पादन के लिए बोआई के पहले ही 200 से 250 क्विंटल तक गोबर की सड़ी खाद का उपयोग एक हेक्टेयर खेत के लिए करें.

जब जड़ों की रोपाई खेत में की जा रही हो, तब 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश की मात्रा का उपयोग प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों की जड़ों को देना चाहिए. इस के उपरांत प्रति हेक्टेयर की दर से हर कटाई के बाद 40 किलोग्राम नाइट्रोजन व 10 किलोग्राम फास्फोरस की मात्रा फसल को देनी चाहिए.

सिंचाई

गिनी घास की जड़ों की रोपाई खेत में करने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. इस के बाद बारिश न होने की अवस्था में 10-15 दिन के अंतराल पर नियमित सिंचाई करते रहें. फसल में उग आए अनावश्यक खरपतवार को समयसमय पर निकालते रहना जरूरी है.

कटाई व उत्पादन

गिनी घास की पहली कटाई फसल रोपे जाने के 2 से 3 तीन माह बाद से शुरू किया जाता है. इस के बाद की नियमित कटाई 30-45 दिन के अंतराल पर की जा सकती है या फसल की लंबाई लगभग 5 फुट के करीब हो जाए तो भी फसल को जमीन से 15 सैंटीमीटर के ऊपर से काटा जा सकता है. सर्दियों की पहली कटाई जमीन से सटा कर करनी चाहिए. इस से फसल में खराब तने अपनेआप हट जाते हैं.

गिनी घास की फसल उत्तर व मध्य भारत के लिहाज से वर्षभर में 5-7 बार व दक्षिण भारत में पूरे वर्ष ली जा सकती है तो 7-8 बार तक हो सकती है.

गिनी घास की उन्नत प्रजातियों की फसल लेने की दशा में औसत उत्पादन 200 से 250 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्रति कटाई प्राप्त होता है. इस प्रकार वर्ष का औसत उत्पादन 1,200 से 1,300 क्विंटल तक प्राप्त हो सकता है.

गिनी घास की खेती के बारे में अधिक जानकारी व बीज के लिए भारतीय घास और चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई) (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), ग्वालियर रोड, झांसी – 284003 (उत्तर प्रदेश) से संपर्क किया जा सकता है.

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