केला एक महत्त्वपूर्ण फल है, जो दुनियाभर में पसंद किया जाता है, लेकिन इस की फसलें बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं. इन बीमारियों की वजह से केले की पूरी फसल को नुकसान पहुंच सकता है, जिस से किसानों को माली नुकसान हो सकता है. आंखों से न दिखने वाले बहुत ही छोटे कण यानी सिलिकौन नैनोपार्टिकल्स कैसे केलों में बीमारियों का प्रबंधन करने में मदद कर सकते हैं, आइए जानते हैं.

खेती वाली फसलें रोग लग जाने से काफी प्रभावित होती हैं, जिस से उपज और उत्पादकता कम हो जाती है. यद्यपि, अदरक की नरम सड़न को कम करने के लिए कैमिकल कवकनाशी का उपयोग एक प्रभावी तरीका माना जाता है, लेकिन उन के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से इनसान और पर्यावरणीय नजरिए से दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है. बागबानी पौधे सक्रिय रूप से रोग प्रबंधन विधियों पर रिसर्च का काम कर रहे हैं, जो फसल कटाई के बाद होने वाली बीमारियों के नियंत्रण के लिए सिंथेटिक कैमिकल फफूंदनाशकों की जगह ले सकते हैं.

केले की बीमारियां

केले में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं जैसे पनामा, ब्लैक स्पौट, सिगमा ब्लाइट आदि. इन बीमारियों के चलते केले की पत्तियां पीली हो जाती हैं. बाद में केला पूरी तरह से खराब हो जाता है. केला दागदार हो जाता है.

संरक्षण: सिलिकौन पौधों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों, कीटों और जलवायु परिस्थितियों से संरक्षित रखने में मदद करता है.

स्ट्रक्चरल समर्थन : यह पौधों को स्ट्रक्चरल समर्थन देता है, जिस से वे अच्छी तरह से खड़े रह सकते हैं.

जल संचयन : पौधों के तने में जल संचित करने में यह मदद करता है, जिस से पौधों की स्थिति सुधरती है. साथ ही, यह जल संचयन में मदद करता है.

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