Mushroom : मशरूम उत्पादन भारत में पिछले कुछ दशकों से एक अच्छा रोजगार साबित हो रहा है और भारत की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए उन के पोषण हेतु मशरूम की खेती एक अच्छा विकल्प है. इसलिए भारत सरकार भी इस की खेती के लिए प्रोत्साहन दे रही है.

मशरूम उत्पादन के लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती. इसे घर के अंदर अथवा झोंपड़ी आदि में अंधेरे में ही उगाया जा सकता है. इस में लागत कम और आर्थिक लाभ ज्यादा है. मशरूम की खेती एक पूर्णकालिक अथवा आंशिक लाभकारी स्वरोजगार है. इस में प्रशिक्षण और उत्पादन दोनों से ही लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

यह गृहणियों के लिए एक लाभकारी रोजगार बन सकता है, जिस से वे घर के अन्य कार्यों के साथ ही इस का उत्पादन भी कर सकती हैं और धन कमा सकती हैं.

मशरूम में खनिज लवण और अन्य पोषक तत्त्व भी पाए जाते हैं. यह मोटापा नहीं बढ़ाती है. मशरूम खाने से विटामिन डी भी प्राप्त होता है, क्योंकि इस में एर्गोस्टेरौल पाया जाता है, जो विटामिन डी के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस में सोडियम पोटेशियम का अनुपात अधिक होने के कारण

उच्च रक्तचाप वाले लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. इस में फास्फोरस भी पाया जाता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है.

मशरूम की कुछ ही प्रजातियां खाने योग्य हैं, अन्य प्रजाति जहरीली या खाने योग्य नहीं हैं. भारत में ज्यादातर ढींगरी, मिल्की (दूधिया) पुआल मशरूम मौजूद हैं. भारत में औषधीय गुणों वाली मशरूम को भी उगाया जाता है.

उगाने की विधि

ढींगरी मशरूम की कई प्रजातियां भारत में उगाई जाती हैं, जिन को सालभर उगाया जा सकता है, किंतु इस की मुख्य खेती सितंबर के अंत या अक्तूबर के महीने में जब तापमान 22 से 28 डिगरी सैंटीग्रेड के बीच हो और फरवरी से अप्रैल तक भी की जा सकती है. इसे सैलूलोज युक्त पदार्थ जैसे गेहूं, धान, बाजरा, जौ, मक्का आदि किसी भी एक का भूसा अथवा सूखी पत्तियां जैसे वृक्षों की पत्तियां, गन्ने की पत्तियां और लकड़ी के बुरादे आदि पर उगाया जा सकता है.

भूसे को स्वच्छ पानी में रातभर भिगोया जाता है जिस में र्फौमलिन और बाविस्टनि नामक 2 रसायन एक निश्चित अनुपात में मिलाए जाते हैं, जिस से यह भूसा रोगाणु मुक्त हो जाता है. अगली सुबह भूसे से अतिरिक्त पानी निकाल दिया जाता है और इसे एक साफ फर्श पर फैला दिया जाता है और जब नमी 60 फीसदी रह जाती है तब इस में बीज मिला दिया जाता है. मशरूम के बीज को स्पौन कहते हैं.

भूसे को उपचारित या रोगाणु मुक्त करने की एक अन्य विधि भी है जिस में भूसे को गरम पानी में 2 से 3 घंटे उबाला जाता है. इस विधि को जैविक विधि भी कहते हैं. मशरूम के बीज को 4 से ले कर 6 फीसदी तक परत अथवा मिक्स विधि से भूसे में मिलाया जाता है.

यदि तापमान कम होता है तो इस स्पौन की मात्रा 6 से बढ़ा कर 10 फीसदी तक की जा सकती है. इस तरह बीज भूसे में मिला कर पौलीथिन में भर कर इस पौलीथिन का मुंह बांध दिया जाता है और इस में 10 से 15 छेद कर दिए जाते हैं. अब इस पौलीथिन को उठा कर एक अंधेरे कमरे में अथवा छायादार स्थान पर रख दिया जाता है. इन को कमरे बरामदे, झोंपड़ी आदि में रखा जा सकता है.

इन पौलीथिन को हैंगिग विधि अथवा रैक पर भी रखा जा सकता है. रैक न मिलने पर इन बैग को कमरे के फर्श पर भी रखा जा सकता है, किंतु फर्श अच्छी तरह से साफ होना चाहिए. कमरे का तापमान 22 से 28 डिगरी के बीच होना चाहिए और इस में आर्द्रता 80 से 85 फीसदी होनी चाहिए. साथ ही इस कमरे में अंधेरा भी रहना चाहिए. यह स्थिति 8 से 15 दिन तक रखनी चाहिए.

Mushroom

इस समय अवधि में मशरूम का कवक जाल पूरे भूसे में फैल जाता है और भूसा देखने में सफेद रंग में बदल जाता है. जब भूसे की यह स्थिति आ जाए तब पौलीथिन को हटा देना चाहिए अथवा पौलीथिन को यदि नहीं हटाया जाता है तब भी मशरूम किए गए छिद्रों से बाहर निकलने लगती है.

जब मशरूम छोटीछोटी (जिसे पिनहैड बोलते हैं) अवस्था में आ जाए तब उस पर हलका पानी का स्पे्र करना चाहिए, ताकि नमी बनी रहे. स्प्रे करने के बाद कमरे में आपेक्षिक आर्द्रता 80 से 90 फीसदी तक चली जाती है.

जब मशरूम निकलने लगे तो एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कमरे में ताजी हवा और हलकी रोशनी दोनों उपलब्ध हों. जरूरत पड़ने पर कमरे में 2 से 4 घंटे ट्यूबलाइट जला देनी चाहिए.

मशरूम की पहली फसल पिनहैड अवस्था के 8 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. उस की तुड़ाई के बाद यदि पौलीथिन हटा दी गई थी तब बैग को किसी ब्रश या अन्य साधन की सहायता से हलका रगड़ना अथवा खुरचना चाहिए. इस के बाद बैग को उठा कर फिर से अंधेरे कमरे में रखना चाहिए और फिर से पिनहैड अवस्था आने के बाद बैग पर पानी का स्प्रे करना चाहिए. इस से दूसरी फसल मिल जाती है.

दूसरी फसल की तुड़ाई के बाद फिर से यह प्रक्रिया अपनानी चाहिए. जिस से तीसरी फसल मिलती है. किंतु यह फसल पहली और दूसरी की अपेक्षा बहुत कम होती है.

आमतौर पर एक थैले से यदि इस थैली का वजन 3 किलोग्राम है तो इस में 1 से 1 किलो 200 ग्राम तक मशरूम प्राप्त की जा सकती है. यदि हम 1 किलो सूखे भूसे से उपज का अनुमान देखें तो यह 600 से 900 ग्राम तक हो सकता है.

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