सफल किसान कायम करते हैं सफलता की मिसालें, कई किसान इनकी कहानियों से प्रेरणा लेकर जीवन में आगे बढ़ते हैं. राजस्थान के अजमेर जिले के नदी द्वितीय गांव के किसान रूपचंद कहार की कहानी संघर्ष, बदलाव और सफलता की मिसाल है. पढ़ें उनकी प्रेरक गाथा, और जाने कि आप खेती को कैसे फायदे का सौदा बना सकते हैं –
महकते खेत, बदलती किस्मत
परंपरागत खेती में लगातार हो रहे घाटे और जीवन में आई कठिनाइयों ने किसान रूपचंद कहार को, एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया था, जहां से आगे बढ़ने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता थी. उन्होंने न केवल खुद को इस मुश्किल स्थिति से उबारा बल्कि अपनी सोच, मेहनत और दूरदर्शिता के बल पर फूलों की खेती के क्षेत्र में ऐसी मिसाल कायम की, जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गई. आज 59 वर्षीय रूपचंद अपनी 60 बीघा जमीन में से 49 बीघा पर फूलों की खेती कर हर साल लगभग 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं. उनकी यह यात्रा न केवल उनके बल्कि उनके परिवार और पूरे गांव के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
पारंपरिक खेती का घाटा
किसान रूपचंद कहार ने खेती की शुरुआत पारंपरिक फसलों जैसे गेहूं, जौ, और सब्जियों से की. लेकिन प्राकृतिक आपदाओं, खराब बाजार और पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती ने उनके परिवार को आर्थिक तंगी में धकेल दिया. रूपचंद बताते हैं कि, पहले हम गेहूं, जौ, टमाटर जैसी फसलें करते थे. लेकिन हर बार या तो मौसम धोखा दे जाता या बाजार में फसल के दाम गिर जाते. मेहनत बहुत होती थी, लेकिन पैसा कुछ नहीं मिलता था. ऐसा लगने लगा था कि खेती छोड़नी पड़ेगी. यह स्थिति उनके परिवार के लिए कठिन थी. बच्चों की पढ़ाई और घर के खर्चों को पूरा करना उनके लिए चुनौती बन गया.
बदलाव का पहला कदम
लगातार नुकसान झेलने के बाद, रूपचंद जी ने फूलों की खेती का साहसिक निर्णय लिया. यह एक बड़ा जोखिम था क्योंकि गांव में किसी ने फूलों की खेती नहीं की थी. उन्होंने गुलदावरी के फूलों से शुरुआत की.
रूपचंद कहते हैं कि, “फूलों की खेती का विचार एक व्यापारी से मिला. उसने बताया कि इनकी मांग हमेशा रहती है और सही मेहनत की जाए तो फायदा जरूर होगा. मैंने शुरुआत छोटे स्तर पर की थी. पहले डर था, लेकिन जब पहली फसल तैयार हुई और व्यापारी खेत पर ही खरीदने आ गए, तब लगा कि यह सही रास्ता है.”
गुलदावरी की खेती: मुनाफे की मुख्य फसल
रूपचंद ने 25 बीघा जमीन पर गुलदावरी की खेती की है. यह उनकी मुख्य आय का स्रोत है. वे बताते हैं कि, गुलदावरी के एक बीघा में करीब ढाई लाख पौधे लगते हैं. इससे साढ़े तीन हजार किलो फूल निकलता है. इसका बाजार भाव 80 से 100 रुपये प्रति किलो रहता है. यह फूल साल में दो बार तैयार होता है पहली फसल मार्च से जून तक और दूसरी अक्टूबर से नवंबर तक. गुलदावरी से हमें हर साल करीब 4 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. गुलदावरी के फूल उनकी मेहनत का प्रतीक बन गए हैं. सही देखभाल और समय पर फसल कटाई से यह फसल उन्हें हमेशा मुनाफा देती है.
बिजली के फूल: नई संभावनाएं
गुलदावरी के बाद उन्होंने बिजली के फूलों की खेती शुरू की. यह फूल अपने चमकीले रंग और अच्छी कीमत के लिए प्रसिद्ध है. रूपचंद ने 15 बीघा में बिजली के फूल लगाए हैं. अगस्त-सितंबर में पौधे लगाते हैं और नवंबर से मार्च तक फूल तैयार हो जाते हैं. एक बीघा में 75 हजार पौधे लगते हैं, जिससे साढ़े तीन हजार किलो फूल निकलता है. इसका भाव 80 रुपये प्रति किलो रहता है. इससे सालाना डेढ़ लाख रुपये की कमाई हो जाती है. बिजली के फूलों ने उनकी आय को और मजबूत किया. त्योहारों और विशेष अवसरों पर इन फूलों की मांग बढ़ जाती है, जिससे वे अच्छे दामों पर बेचते हैं.
आंवला की खेती: स्थायित्व की ओर कदम
फूलों के अलावा किसान रूपचंद ने 6 बीघा जमीन पर आंवला के 300 पेड़ लगाए हैं. चकिया और NS-6 प्रजाति के ये पेड़ लंबे समय तक उत्पादन देते हैं. वे कहते हैं कि, आंवला के पेड़ एक बार लगाने के बाद सालों तक फायदा देते हैं. एक पेड़ से 2,500 रुपये का माल निकलता है. आंवला की खेती से हमें हर साल करीब 5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. यह एक स्थिर आय का जरिया है. आंवला की खेती ने उनकी आय में स्थिरता लाई और उन्हें आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित बनाया.
खर्च और मुनाफा: सही रणनीति से बढ़ा फायदा
रूपचंद ने अपनी खेती में होने वाले खर्चों को भी बारीकी से प्रबंधित किया. वे सही योजना बनाकर फसल की लागत को नियंत्रित करते हैं. वे बताते हैं कि, गुलदावरी का एक पौधा 1 से 3 रुपये में मिलता है, जबकि बिजली का पौधा 1 से 1.5 रुपये का आता है. एक बीघा में खाद-पानी का खर्च करीब 10 हजार रुपये आता है. लेबर का खर्च 2 से ढाई हजार रुपये होता है. लेकिन सही मेहनत और बाजार की समझ से सालाना 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हो जाता है. उनकी यह रणनीति साबित करती है कि खेती में लाभ कमाने के लिए सही योजना और अनुशासन की जरूरत होती है.
बेटों का सहयोग: नई पीढ़ी का योगदान
रूपचंद के चारों बेटे अब खेती में उनका सहयोग करते हैं. प्रत्येक बेटा अपनी क्षमता और ज्ञान से खेती को आधुनिक बनाने में योगदान दे रहा है. बंटी (कृषि में 12वीं पास) ने पिताजी से खेती की बारीकियां सीखी हैं. अब नई तकनीकों से उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. जैविक खेती की योजना पर काम कर रहे हैं. ओमप्रकाश (आईटीआई इलेक्ट्रॉनिक्स पास) ने इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई की थी, लेकिन खेती में संतोष मिलता है. उन्होंने खेती में ड्रिप सिंचाई और जैविक खाद का उपयोग शुरू किया है. रूपचंद का मानना है कि, बेटों के सहयोग से काम न केवल आसान हो गया है बल्कि आधुनिक तकनीक के उपयोग से उनकी आय भी बढ़ी है.
आगे की योजना: जैविक खेती की ओर कदम
रूपचंद अब पूरी तरह जैविक खेती अपनाने की योजना बना रहे हैं. इससे न सिर्फ फसलों की गुणवत्ता बेहतर होगी बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. उनका कहना है कि, गांव के अन्य किसान भी फूलों की खेती करें और घाटे से उबरें. मेहनत का फल यहां जरूर मिलता है.
किसान भाइयों आप भी प्रगतिशील किसान रूपचंद की कहानी से प्रेरणा लें और फूलों की खेती को फायदे का सौदा बनाए.





