बांस की बांसुरी से तो हम सब ही परिचित हैं. बांस को लोग आमतौर पर लकड़ी मान लेते हैं. बांस एक तरह की विशेष घास है. आज यह मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है.

बांस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है. इस के परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूं, मक्का, जौ और धान हैं. बांस दुनिया में सब से तेजी से बढ़ने वाला पौधा है जो  24 घंटे में 7.6 इंच बढ़ता है. कुछ प्रजातियां अनुकूल परिस्थितियों में प्रतिदिन एक मीटर से अधिक बढ़ सकती हैं. एक नया बांस एक साल से भी कम समय में अपनी पूरी ऊंचाई पर पहुंच गया.

बांस का एक पेड़ किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में 35 फीसदी अधिक औक्सीजन छोड़ता है और बांस हर साल 17 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बन डाईऔक्साइड को अवशोषित भी करता है. यह एक बहुमूल्य कार्बन सिंक के रूप में काम कर सकता है.

मजे की बात यह है कि बांस को उगाने के लिए किसी उर्वरक की जरूरत नहीं है. यह अपने पत्तों को गिरा कर उन के पोषक तत्वों का उपयोग खुद को विकसित करने के लिए करता है.

बांस सूखे सहिष्णु पौधे हैं. ये रेगिस्तान में विकसित हो सकते हैं. सब से सौफ्टवुड पेड़ों के 20-30 सालों की तुलना में बांस की कटाई 3-5 सालों में की जा सकती है.

बांस का उपयोग कंक्रीट के साथसाथ मचान, पुलों और घरों के बनाने के लिए किया जाता है. बांस में भूमिगत जड़ों और राइजोम्स का एक विस्तृत नेटवर्क है, जो मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं. बांस गरमियों में अपने आसपास की हवा को 8 डिगरी तक ठंडा करता है.

ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से ले कर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, 500 उत्तरी अक्षांश से ले कर उत्तरी आस्ट्रेलिया और पश्चिम में, भारत और हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों और अमेरिका में दक्षिणपूर्व अमेरिका से ले कर अर्जेंटीना एवं चिली में (470 दक्षिण अक्षांश) तक बांस के वन पाए जाते हैं.

बांस की खेती कर के कोई भी इंसान लखपति बन सकता है. एक बार बांस खेत में लगा दिया जाए, तो 5 साल बाद वह उपज देने लगता है. अन्य फसलों पर सूखे एवं कीटबीमारियो का प्रकोप हो सकता है. इस के कारण किसान को माली नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन बांस एक ऐसी फसल है, जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है.

छोटीछोटी टहनियों और पत्तियों को डाल कर उबाला गया पानी, बच्चा होने के बाद पेट की सफाई के लिए जानवरों को दिया जाता है. जहां पर चिकित्सकीय उपकरण उपलब्ध नहीं होते, बांस के तनों एवं पत्तियों को काटछांट कर सफाई कर के खपच्चियों का उपयोग किया जाता है.

बांस का खोखला तना अपंग लोगों का सहारा है. इस के खुले भाग में पैर टिका दिया जाता है. बांस की खपच्चियों को तरहतरह की चटाइयां, कुरसी, टेबल, चारपाई एवं अन्य चीजें बनाने के काम में लाया जाता है. मछली पकड़ने का कांटा, डलिया आदि बांस से ही बनाए जाते हैं. मकान बनाने और पुल बांधने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है. इस से तरहतरह की चीजें बनाई जाती हैं, जैसे चम्मच, चाकू, चावल पकाने का बरतन आदि.

नागा लोगों में पूजा के अवसर पर इसी का बरतन काम में लाया जाता है. इस से खेती के औजार, ऊन और सूत कातने की तकली बनाई जाती है. छोटीछोटी तख्तियां पानी में बहा कर, उन से मछली पकड़ने का काम लिया जाता है. बांस से तीर, धनुष, भाले आदि लड़ाई के सामान तैयार किए जाते थे.

पुराने समय में बांस की कांटेदार झाड़ियों से किलों की रक्षा की जाती थी. पैनगिस नामक एक तेज धार वाली छोटी वस्तु से दुश्मनों के प्राण लिए जा सकते हैं. इस से तरहतरह के बाजे जैसे बांसुरी, वायलिन, नागा लोगों का ज्यूर्स हार्प एवं मलाया का औकलांग बनाया जाता है.

एशिया में इस की लकड़ी बहुत उपयोगी मानी जाती है और छोटीछोटी घरेलू वस्तुओं से ले कर मकान बनाने तक के काम आती है. बांस का तना भी  खाया जाता है और इस का अचार व मुरब्बा भी बनता है.

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