Beans : सेम एक ठंडी जलवायु वाली फसल है. इस की मुलायम फलियों की सब्जी या भर्ता बनाया जाता है. सब्जी अकेले या आलू के साथ मिला कर बनाई जाती है. इस की फलियों से स्वादिष्ट आचार भी बनाया जा सकता है. इन फलियों में प्रोटीन, खनिज तत्त्व, कार्बोहाइड्रेट्स और रेशा प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस के अतिरिक्त इस फली में  विटामिन बी, सी,आयरन, कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सल्फर इत्यादि भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. परिपक्व बीजों में विशेषकर काले रंग वाले बीज में ट्रिप्सिन नामक अवरोधक पदार्थ होता है जो उबालने पर समाप्त हो जाता है और जल में घुलनशील विशैला पदार्थ निकल जाता है. इसलिए इस के बीजों को उबाल कर ही खाना चाहिए. सेम की सब्जी का लगातार सेवन नही करना चाहिए. इस का ज्यादा सेवन हानिकारक होता है.

मृदा : इस के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. सेम की खेती के लिए उचित जल निकासी और 6.0 से 7.5 के बीच पीएच स्तर वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है. सेम की खेती के लिए 18 से 30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान सही रहता है.

सेम की कुछ प्रमुख प्रजातियां : काशी हरितिमा, काशी खुशहाल, काशी शीतल, काशी बौनी सेम-3, काशी बौनी सेम-9, पूसा सेम-2, पूसा सेम-3, जवाहर सेम-53, जवाहर सेम-79, रजनी, अर्का विजय व अर्का जय है. बोआई के 55-60 दिनों के बाद फूल आना शुरू हो जाता है और 70-75 दिनों में फलियां खाने योग्य हो जाती है. प्रति हेक्टेयर में 70- 125 क्विंटल उत्पादन होता है.

सिंचाई : खेत में नमी बनाए रखने के लिए समयसमय पर सिंचाई करना आवश्यक है.

बोआई का समय : सेम की बोआई का सब से सही समय जुलाईअगस्त का महीना है. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 100 सैंटीमीटर पौध से पौध की दूरी 75 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : बोआई से पहले खेत में 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद भूमि की तैयारी के समय खेत में मिला देना चाहिए. इस के अतिरिक्त तत्त्व के रुप में मृदा परीक्षण के आधार पर 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फास्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना आवश्यक है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बीज बोआई के समय खेत में प्रयोग करें. नाइट्रोजन की बची मात्रा को 2 बराबर भागों में बांट कर 20-25 व 35-40 दिनों के बाद टौप ड्रैसिंग के रूप में उपयोग करना चाहिए.

रोग और कीट प्रबंधन : सेम की फसल में लगने वाले रोगों और कीटों से बचाव के लिए उचित उपाय करना चाहिए.

तुड़ाई : जब सेम की फलियां पूरी तरह से विकसित हो जाएं और कोमल हों, तो फलियों की तुड़ाई करनी चाहिए.

सेम की खेती से लाभ
– सेम की फसल कम समय में तैयार हो जाती है.
– यह एक लाभदायक फसल है और किसानों को अच्छी कमाई दे सकती है.
– सेम की खेती में कम लागत आती है.
– सिंचाई की भी कम आवश्यकता होती है.

सेम की खेती के लिए कुछ अतिरिक्त सुझाव

बीजों को कवकनाशी से उपचारित कर के बोना चाहिए.
– खरपतवारों को नियंत्रित करना चाहिए।
– मचान बना कर सेम की बेलों को ऊपर चढ़ाना चाहिए.
– फसल की नियमित निगरानी करनी चाहिए और रोगों और कीटों के लक्षणों को पहचान कर तुरंत उपाय करना चाहिए.

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