Turmeric: हलदी न केवल मसाले की तरह खाने में इस्तेमाल की जाती है, बल्कि इसे सौंदर्य प्रसाधनों व औषधियों में भी इस्तेमाल किया जाता है. हलदी (Turmeric) को एक अच्छा एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोगों से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है. हलदी (Turmeric) में सब से ज्यादा स्टार्च पाया जाता है. इस में 13.01 फीसदी पानी, 6.03 फीसदी प्रोटीन, 5.01 फीसदी वसा, 69.04 फीसदी कार्बोहइड्रेड, 2.06 फीसदी रेशा और 3.05 फीसदी खनिज लवण की मात्रा पाई जाती है.
भारत हलदी (Turmeric) का सब से बड़ा उत्पादक देश है. भारत से दूसरे देशों को हलदी (Turmeric) भेजी जाती है. नकदी फसल मानी जाने वाली हलदी (Turmeric) की खेती कर के किसान कम लागत और कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. इस की खेती के लिए नम व शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. हलदी (Turmeric) की फसल अकसर छायादार फसलों के साथ बोई जाती है. इस से हलदी (Turmeric) के पीलेपन में बढ़ोतरी होती है और फसल का उत्पादन ज्यादा होता है.
हलदी (Turmeric) की खेती के लिए सब से सही मिट्टी जीवाश्म युक्त रेतीली व दोमट मटियार मानी गई है. जहां पानी की निकासी का इंतजाम हो, वहां हलदी (Turmeric) की खेती करना सही होता है. अगर पानी की निकासी का ठीक इंतजाम न हो, तो हलदी (Turmeric) की खेती मेंड़ बना कर की जाती है.
हलदी (Turmeric) की खास प्रजातियां : वरिष्ठ उद्यान विशेषज्ञ डा. दिनेश कुमार यादव का कहना है कि देश के अलगअलग क्षेत्रों के लिए हलदी (Turmeric) की कई प्रजातियां सही मानी गई हैं. हलदी (Turmeric) की कुछ खास प्रजातियां सभी जगहों पर लगाई जा सकती हैं. ऐसी ही कुछ प्रजातियां हैं नरेंद्र हलदी 1, नरेंद्र हलदी 2, नरेंद्र हलदी 3, रश्मि व राजेंद्र सोनिया. खास इलाकों के लिए सीओ 1 प्रजाति उम्दा मानी गई है. यह प्रजाति 285 दिनों में पक कर तैयार होती है और इस से लगभग 6 टन प्रति हेक्टेयर की उपज मिलती है. इस के अलावा सुगंधा सुवर्णा, सुरोमा, सुगना, कृष्णा, रेखानूरी व पीसीटी 8 सिलांग वगैरह भी अच्छी किस्में मानी गई?हैं.
खेत की तैयारी व रोपाई : हलदी (Turmeric) की फसल लेने के लिए सब से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए. उस के बाद 1 जुताई कल्टीवेटर से कर के पाटा लगा देना चाहिए और फिर 5-7 मीटर लंबी व 2-3 मीटर चौड़ी क्यारियां बना कर खेत को बांट लेना चाहिए.
क्यारियां बनाते समय यह जरूर ध्यान रखें कि उन से पानी निकलने का सही इंतजाम हो. हलदी (Turmeric) की बोआई के लिए सब से सही समय मई महीने से ले कर जुलाई महीने तक का माना गया है. 1 हेक्टेयर ख्ेत के लिए 12 से 14 क्विंटल हलदी (Turmeric) के कंदों की जरूरत पड़ती है. तैयार की गई क्यारियों में लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर व कंदों की आपसी दूरी 25 सेंटीमीटर व कंदों की गहराई 4-5 सेंटीमीटर रख कर रोपाई की जाती है.
खाद व उर्वरक की मात्रा : हलदी (Turmeric) की बोआई के समय ही 100 से 120 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए. इस के साथ ही 50 किलोग्राम नीम की खली व 120 किलोग्राम अरंडी की खली का मिश्रण बना कर मिट्टी में मिला देना चाहिए. बोआई के समय ही 100 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन की आधी मात्रा व 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस व 80 से 100 किलोग्राम पोटाश मिट्टी में मिलाने से फसल उत्पादन अच्छा मिलता है. नाइट्रोजन की बची आधी मात्रा बोआई के 60 दिनों बाद डालनी चाहिए.
सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण : हलदी (Turmeric) की फसल को ज्यादा नमी की जरूरत पड़ती है. बोआई से बारिश शुरू होने तक 4 से 5 बार फसल की सिंचाई करना जरूरी होता है. बारिश का मौसम शुरू होने के बाद 20 से 25 दिनों के अंतर पर फसल की सिंचाई करते रहना चाहिए.
नवंबर में हलदी (Turmeric) के कंद का विकास और मोटाई शुरू हो जाती है, इस दौरान फसल के अगलबगल मिट्टी चढ़ा कर सिंचाई करनी चाहिए, क्योंकि खेतों में पानी भरने से फसल के कंदों को नुकसान पहुंचता है. सिंचाई के साथसाथ खरपतवार नियंत्रण किया जाना भी बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि नमी बने रहने से खरपतवार उग आते हैं. इसीलिए पूरी फसल के दौरान कम से कम 3 बार निराईगुड़ाई का काम किया जाना चाहिए. फसल रोपने के 3 महीने बाद पहली निराईगुड़ाई व 30-30 दिनों के अंतराल पर दूसरी व तीसरी निराईगुड़ाई करनी चाहिए.
कीटों व बीमारियों की रोकथाम : कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया बस्ती में कीट नियंत्रण के विशेषज्ञ डा. प्रेमशंकर का कहना है कि हलदी (Turmeric) में वैसे तो कीट अधिक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं फिर भी कुछ कीटों का प्रकोप देखा गया है.
तनाबेधक कीट पौधे के कल्लों का रस चूस लेते हैं जिस से पौधे सूखने लगते हैं. इसी तरह थ्रिप्स नाम के कीट पत्तियों का रस चूस कर पौधों को सुखा देते हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर या कार्बोसल्फाम की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करना चाहिए. 1 हेक्टेयर फसल के लिए 1 लीटर कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है.
हलदी (Turmeric) में खासतौर पर पर्णचित्ती रोग का प्रकोप देखा गया है, जो टैफरीना मैक्यूलेस नामक फफूंद के कारण होता है. इस रोग के प्रकोप से फसल की पत्तियों के ऊपरी सिरों पर लाल व भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी या कार्बेंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की 750 ग्राम की मात्रा का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए.
खुदाई व भंडारण : हलदी (Turmeric) की अगेती फसल की खुदाई बोआई के 7 महीने बाद व पछेती फसल की खुदाई 9 महीने बाद की जाती है. मई व जून में बोई गई फसल फरवरी में खोदे जाने लायक हो जाती है. इस समय हलदी (Turmeric) की फसल में घनकंद यानी गांठें अच्छी तरह से बड़ी हो जाती हैं और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. खुदाई से पहले ही पौधों को काट लेना चाहिए. उस के बाद हलकी सिंचाई कर के कुदाल से इस की खुदाई करनी चाहिए.
1 हेक्टेयर रकबे में बोई गई फसल से 150 से 200 क्विंटल कच्ची हलदी (Turmeric) की उपज मिलती है, जबकि असिंचित इलाकों में यह उपज 80 से 120 क्विंटल होती है. हलदी को सुखाने के बाद यह मात्रा कुल उपज की महज 15 से 25 फीसदी ही बचती है. हलदी (Turmeric) सुखाने से पहले उसे किसी बडे़ बर्तन में रख कर उबाला जाता है. उबालते समय जब हलदी की गांठें नम पड़ने लगें, तो हलदी (Turmeric) को आंच से उतार कर कड़ी धूप में सुखा लेना चाहिए. इस के बाद किसी हवादार जगह पर बोरों में भर कर इस का भंडारण करना चाहिए.