प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने सहजन के बारे में बताया कि सहजन भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इस में औषधीय गुण हैं. इस में पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं
प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने सहजन के बारे में बताया कि सहजन भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इस में औषधीय गुण हैं. इस में पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं.
पूरा पौधा है काम का
सहजन के पौधे का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है. पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती हैं और करी में भी इस्तेमाल की जाती हैं. सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है. इस के बीज से तकरीबन 38-40 फीसदी तेल पैदा होता है, जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है.
सहजन का इस्तेमाल घडि़यों में भी किया जाता है. इस का तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है. इसी गुण के कारण इस का इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है. छाल, पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं.
पत्तियों की चटनी बनाने के लिए पौधे के बढ़ते अग्रभाग और ताजा पत्तियों को तोड़ लें. पुरानी पत्तियों को कठोर तना से तोड़ लेना चाहिए, क्योंकि इस से सूखी पत्तियों वाला पाउडर बनाने में ज्यादा मदद मिलती है.
सहजन की खेती
इस की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश में आसानी से की जा सकती है. पूरे खेत में न लगा सकें, तो खेती की मेंड़ों पर, बगीचों के किनारे, बेकार पड़ी भूमि में लगाएं.
प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि सहजन की खेती की सब से बड़ी बात यह है कि यह पौधा सूखे की स्थिति में कम से कम पानी में भी जिंदा रह सकता है. कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में भी यह पौधा लग जाता है. इस की वृद्धि के लिए गरम और नमीयुक्त जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम सटीक है. सहजन के फूल खिलने के लिए 25 से 30 डिगरी तापमान अनुकूल है.