फसलों की वृद्धि और विकास के लिए 16 पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है, जिसे पौधे अपने जीवनकाल में वातावरण, मृदा और पानी के स्रोतों से प्राप्त कर भरपूर उत्पादन देते हैं. असंतुलन की स्थिति में यदि जैविक घटक जैसे मृदा, बीज, सिंचाई, उर्वरक, पेस्टीसाइड और अन्य प्रबंधन आदि अथवा गैरजैविक घटक जैसे वर्षा (कम या ज्यादा), तापमान (कम या ज्यादा), तेजी से चलने वाली हवाएं, कुहरा, ओले पड़ना आदि के कारण भी कृषि उत्पादन प्रभावित होता है.

उपरोक्त घटकों में सब से महत्त्वपूर्ण मृदा को ही माना जाता है, जिस का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है. स्वस्थ मृदा का अनुकूल प्रभाव, लागत और उत्पादन सहित अन्य क्षेत्रों में भी पड़ता है.

उत्पादन लागत में कमी के साथ उपज में बढ़ोतरी

* मृदा परीक्षण के उपरांत अंधाधुंध उर्वरक के प्रयोग में कमी होने से संतुलित उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा मिलना.

* पोषक तत्त्वों के असंतुलन की दशा में मृदा में विषाक्तता बढ़ने के कारण पौधों/फसलों में उपज की कमी को दूर करने में सहायक है मृदा परीक्षण/स्वायल हैल्थ कार्ड.

* मृदा परीक्षण से मौजूद जीवांश की स्थिति (0.80 फीसदी सामान्य दशा) जानने के बाद उसे स्थायी बनाने के लिए फसल चक्र, समन्वित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल अवशेष प्रबंधन आदि उपायों पर जोर देने से मृदा की भौतिक, रासानिक व जैविक क्रियाओं में सुधार होने से कम लागत में भी अधिक गुणवत्तायुक्त उपज हासिल होती है.

किसान की आय में बढ़ोतरी

* कृषि उपज बढ़ने से किसान की आय में गुणात्मक वृद्धि होगी, यह कोई सर्वमान्य विधा नहीं है, जब तक कि कृषि उत्पादन लागत में कमी करते हुए अधिक उपज प्राप्त की जाए.

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